हमेशा की तरह 25 जुलाई, 2016 की सुबह कंवलजीत कौर तैयार हो कर घर से निकली और कलानौर से बस पकड़ कर गुरदासपुर पहुंच गई. उस ने को फोन कर के राजीव बुला रखा था, इसलिए बसअड्डे पर बस के रुकते ही वह उतर कर सीधे उस गेट पर पहुंच गई थी, जहां वह मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. उस के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘जल्दी करो, पहले पुलिस लाइंस चल कर हाजिरी लगवा लूं, उस के बाद कहीं घूमने चलेंगे. अगर एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल होगी.’’ मोटरसाइकिल स्टार्ट ही थी, कंवलजीत के पिछली सीट पर बैठते ही राजीव ने मोटरसाइकिल पुलिस लाइंस की ओर बढ़ा दी.
जिला गुरदासपुर के कस्बा कलानौर के मोहल्ला नवांकटड़ा निवासी मेहर सिंह की बेटी कंवलजीत कौर ने सब को यकीन दिला दिया था कि उसे सरकारी नौकरी मिल गई है, वह भी कोई साधारण नहीं, पंजाब पुलिस में थानेदार की यानी असिस्टैंट सबइंसपेक्टर (एएसआई) की. सितारों वाली लकदक खाकी वरदी पहन कर वह 2 सालों से शहर में घूम कर रौब जमा रही थी. पिछले 2 सालों से कंवलजीत कौर गुरदासपुर में ही तैनात थी. इधर वह लोगों से कहने लगी थी कि अब कभी भी उस का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में हो सकता है. अगर उस का तबादला हो गया तो उस के लिए मुश्किल हो जाएगी. अभी तो वह घर में ही है, इसलिए उस के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.
कंवलजीत कौर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से पैदल ही कलानौर बसअड्डे पर आती थी और वहां से बस पकड़ कर गुरदासपुर पहुंच जाती थी. जानने वालों को उस ने बता रखा था कि गुरदासपुर में उसे सरकारी गाड़ी मिल जाती है, जिस से वह ड्यूटी करती है. उस का कहना था कि उस का इलाके में ऐसा दबदबा है कि बदमाश उस के नाम से कांपते हैं. न जाने कितने गुंडों की पिटाई कर के उस ने उन्हें जेल भिजवा दिया है. यही वजह थी कि बड़े अफसर भी उस के बारे में चर्चा करने लगे हैं कि पुलिस डिपार्टमेंट में यह लड़की काफी तरक्की करेगी.
राजेश के साथ कंवलजीत कौर पुलिस लाइंस पहुंची तो पता चला कि वहां आने वाले स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली पुलिस परेड की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. अंदर रिहर्सल हो रहा था. गेट पर काफी भीड़ थी. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिसकर्मियों को भी पूरी जांचपड़ताल के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा था.
कंवलजीत कौर पहले भी वहां कई बार आ चुकी थी. लेकिन कभी किसी ने कोई रोकटोक नहीं की थी. इत्मीनान से अंदर जा कर पूरी पुलिस लाइंस घूम कर वह आराम से बाहर आ गई थी, लेकिन उस दिन तो वहां की स्थिति ही एकदम अलग थी. कंवलजीत कौर बाहर ही रुक कर सोचने लगी कि इस स्थिति में अंदर जाना चाहिए या नहीं?
दूसरी ओर राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि बसअड्डे पर पुलिस लाइंस पहुंचने की जल्दी मचाने वाली कंवलजीत कौर अब अंदर क्यों नहीं जा रही है? उस ने इस बारे में कंवलजीत कौर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रही हूं कि आज अंदर न जाऊं. क्योंकि अंदर जाने पर फरलो (अनाधिकृत छुट्टी) पर मैं जल्दी बाहर नहीं निकल पाऊंगी. उस के बाद हमारा घूमनेफिरने का प्रोग्राम बेकार जाएगा.’’
‘‘कंवल, हमारा घूमनाफिरना इतना जरूरी नहीं है, जितना ड्यूटी. कहीं तुम्हारी नौकरी न खतरे में पड़ जाए. पहले भी कई बार तुम इस तरह हाजिरी लगवा कर मेरे साथ घूमने जा चुकी हो. बसस्टैंड पर तुम कह भी रही थी कि एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी.’’ राजीव ने कहा.
‘‘वही तो सोच रही हूं. अगर एब्सैंट लग गई तो मुश्किल और अंदर चली गई तो बाहर आने में मुश्किल. मैं बाहर नहीं आ सकी तो मेरे इंतजार में खड़ेखड़े तुम बोर होते रहोगे. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’
‘‘मेरी समझ से तो यही ठीक रहेगा कि मैं लौट जाऊं और तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. खाली होने के बाद फोन कर देना, मैं आ जाऊंगा.’’
‘‘अगर मैं अंदर चली गई तो शाम से पहले नहीं निकल पाऊंगी. ऐसे में आज हम ने जो घूमनेफिरने का प्रोग्राम बनाया है, वह चौपट हो जाएगा.’’
‘‘कोई बात नहीं, तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. मैं गुरदासपुर में ही रहूंगा. तुम्हारा फोन आते ही मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’
राजीव और कंवलजीत आपस में बातें कर रहे थे, तभी अधिकारियों की गाडि़यां आ गईं. उन के लिए गेट खोलने के साथ ही वहां खड़े सिपाहियों ने गेट के पास खड़े तमाम लोगों को अंदर धकेल दिया. उन में कंवलजीत और राजीव भी थे.
दोनों असमंजस की स्थिति में थे कि अब क्या करें, तभी वहां मौजूद एक थानेदार ने उन के पास आ कर कंवलजीत कौर से कहा, ‘‘मैडम, जल्दी करो, एंट्री करवा कर परेड ग्राउंड में पहुंच जाओ.’’ इस के बाद उस ने राजीव से कहा, ‘‘तुम बिना वरदी के ही आ गए. किस रैंक पर हो और क्या नाम है तुम्हारा?’’
राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही कंवलजीत कौर ने कहा, ‘‘सर, यह मिस्टर राजीव मेरे साथ आए हैं. यह नौकरी नहीं करते. इन की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है और उस की आज शादी है. इसलिए मैं इन्हें साथ ले कर आज की छुट्टी लेने आई हूं.’’
‘‘छुट्टियां तो आजकल बिलकुल नहीं मिल रही हैं मैडम. फिर जिस काम के लिए तुम्हें छुट्टी लेनी है, उस के लिए तो पहले ही सैंक्शन करवा लेना चाहिए था. वह देखिए, उस तरफ लाइंस इंसपेक्टर बैठे हैं. चलिए, मैं उन से तुम्हारी बात करवा देता हूं.’’
कंवलजीत कौर आनाकानी करने लगी तो राजीव खीझ कर बोला, ‘‘तुम तो आज एकदम बच्चों जैसा व्यवहार कर रही हो.’’ राजीव का इतना कहना था कि कंवलजीत कौर नाराज हो कर अनापशनाप बकने लगी. उस का कहना था कि उस के प्यार में पड़ कर उस ने जो कुछ किया है, वह उसे बिलकुल नहीं करना चाहिए था. क्योंकि अब वह उस की भावना की कदर न कर के उसे उसी के विभाग वालों के सामने जलील करने की कोशिश कर रहा है.
दूसरी ओर राजीव का कहना था कि उस ने जो कुछ भी कहा है, उस की भलाई के लिए कहा है. लेकिन कंवलजीत कौर का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह राजीव को जलील करने लगी तो वहां मौजूद थानेदार उन्हें चुप कराने का प्रयास करते हुए दोनों को लाइंस इंसपेक्टर दलबीर सिंह के पास ले गया.
थानेदार की बात सुन कर दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर को सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’
‘‘जी…जी यहीं है.’’ कंवलजीत कौर ने हकलाते हुए कहा.
‘‘यहां…कहां? यहां तो मैं ने पहले कभी नहीं देखा. आज पहली बार देख रहा हूं, वह भी बदतमीजी करते हुए.’’
‘‘नहीं सर, बदतमीजी नहीं, वह तो सर यह राजीव…’’
‘‘कौन है यह? पुलिस का आदमी तो नहीं लग रहा?’’
‘‘नहीं सर, यह पुलिस में नहीं है. ये लोग तो जमींदार हैं, बहुत जमीनजायदाद है इन के पास.’’
‘‘तो फिर यहां क्या लेने आया है यह?’’
‘‘यह मेरे साथ आया है सर. इस की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. आज उस की शादी है, जिस में शामिल होने के लिए मैं छुट्टी लेने आई थी.’’
‘‘छुट्टी लेने आई थी तो वरदी पहन कर आने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘सर, इसलिए कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो ड्यूटी कर लूंगी.’’
‘‘हां, इस तरह छुट्टी मिलने वाली नहीं, तुम्हें ड्यूटी करनी पड़ेगी. चलो, अपना आईकार्ड दिखाओ.’’
‘‘आईकार्ड, मतलब पहचानपत्र सर?’’
‘‘बड़ी अंजान बन रही हो, कह तो रही हो सीधे एएसआई भरती हुई हो?’’
दरअसल, 2-3 दिनों पहले दलबीर सिंह को उन के किसी मुखबिर ने बताया था कि एएसआई की वरदी पहन कर एक लड़की गुरदासपुर में घूम रही है. वह पैसे तो किसी से नहीं ऐंठती, पर थानेदारनी होने का रौब खूब दिखाती है. उस के रौब की वजह से कुछ दुकानदार उसे स्वेच्छा से नियमित रूप से पैसे दे रहे हैं. उस नकली थानेदारनी का हुलिया भी उस ने उन्हें बताया था. इस बारे में दलबीर सिंह काररवाई करने की योजना बना रहे थे. लेकिन कंवलजीत कौर को देख कर उन्हें लगा कि कहीं यही वह नकली थानेदारनी तो नहीं, जिस के बारे में मुखबिर ने बताया था. क्योंकि उस का हुलिया मुखबिर द्वारा बताए हुलिए से काफी हद तक मिल रहा था.
दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर से परिचय पत्र मांगा तो इधरउधर की बातें करते हुए अंत में उस ने कहा कि उस का आइडेंटिटी कार्ड खो गया है. इस से वह संदेह के दायरे में आ गई. दलबीर सिंह ने इस विषय पर अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि फिलहाल लड़की को एक किनारे कर के पहले उस के साथ आए लड़के से विस्तार से पूछताछ करो. संभव है, वह भी उस के साथ शामिल हो. वहां की बदलती स्थिति को देख कर लड़का यानी राजीव काफी घबरा गया था. पुलिस ने उसे अलग ले जा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो वह बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि इस के पहले उस का पुलिस से कभी वास्ता नहीं पड़ा था.
पूछताछ में उस ने अपना नाम राजीव कुमार बताया. वह नई आबादी, कलानौर, जिला गुरदासपुर के रहने वाले सुरेश कुमार का बेटा था. उस के पिता इलाके के खातेपीते जमींदार थे. वह मांबाप की अकेली औलाद था. 3 साल पहले वह फिल्म देखने गया था, तभी उस की मुलाकात कंवलजीत कौर से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में दोनों में प्यार हो गया था, जो जल्दी ही परवान चढ़ गया. कंवलजीत कौर ने उसे बताया था कि वह साधारण परिवार से संबंध रखती है, पर अपनी मेहनत से जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहती है. उस ने बीसीए कर रखा था. वह काफी खूबसूरत थी और भाईबहनों में सब से बड़ी थी.
राजीव ने जब उस के बारे में अपने घर वालों से बात की तो पिता ने कहा कि उन के पास सब कुछ है, वह बिना दानदहेज के उस से शादी कर लेंगे. लेकिन अंतिम निर्णय उस की मां को लेना है. राजीव की मां किरनबाला ने सब कुछ तो मान लिया, लेकिन एक शर्त रख दी कि लड़की सरकारी नौकरी में होनी चाहिए. अगर पुलिस अफसर हुई तो और भी अच्छा होगा. राजीव ने सारी बात कंवलजीत कौर को बताई तो वह काफी मायूस हुई. लेकिन उस ने राजीव से संबंध बनाए रखे. फिर एक दिन उस ने राजीव को फोन कर के बताया कि उसे पंजाब पुलिस में एएसआई की नौकरी मिल गई है. उस ने अपनी तैनाती भी गुरदासपुर की ही बताई. इस के बाद वह जब भी राजीव से मिली, एएसआई की वरदी में ही मिली.
कंवलजीत कौर से उस का चक्कर चल ही रहा था कि उसी बीच उस के घर वालों ने उस की शादी कौलेज की एक लैक्चरर से तय कर दी. वह कंवलजीत कौर को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मम्मीपापा को मनाने की कोशिश में लगा था. वह कंवलजीत को दिल से पसंद करता था और उसी से शादी करना चाहता था. इसीलिए वह जब भी उसे जहां बुलाती थी, वह काम छोड़ कर उस से मिलने पहुंच जाता था.
उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. राजीव से पूछताछ चल ही रही थी, उसी के साथ पुलिस ने कंवलजीत कौर के बारे में पता कराया तो उस का झूठ खुल कर सामने आ गया. वह कभी भी पुलिस में भरती नहीं हुई थी. पुलिस की वरदी पहन कर वह सब को बेवकूफ बना रही थी. इस के बाद उस के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर एएसआई की वरदी में ही गिरफ्तार कर के चेहरा ढांप कर उसे पत्रकारों के सामने पेश किया गया. उस ने स्वीकार किया कि प्रेमी राजीव से शादी करने के लिए वह फरजी दारोगा बनी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने कंवलजीत कौर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत हो चुकी थी. पुलिस ने राजीव को बेकसूर मानते हुए इस मामले में गवाह बना लिया था. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने कंवलजीत कौर के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया था.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित