बादली नहाने के बाद आईने के सामने आई तो अपना रूप देख कर खुद ही शरमा गई, उस का गुलाबी बदन नहाने के बाद और भी निखर गया था. यौवन का 21वां वसंत पार होने को था. बादली ने 5 बच्चे जन लिए थे, लेकिन उस का यौवन जस का तस था, तब जब वह 10 बरस पहले शंकरा राम की दुलहन बन कर उस के घर में आई थी. चेहरे पर बढ़ती उम्र की अभी एक भी लकीर नहीं उभरी थी.
आईना देखते ही अपने रूपयौवन पर वह इतरा उठी. एक गर्वीली मुसकान उस के चेहरे पर उभर आई. वह गीले बालों को सुखाने के इरादे से घर की छत पर आ गई. धूप खिली हुई थी. गीले बालों को आगे कर के हाथों से उन का पानी झाडऩे के बाद उस ने जैसे ही झटके से बालों को पीछे किया, किसी के द्वारा गहरी आह भरने की आवाज कानों में पड़ी. उस ने पलट कर देखा तो अपनी छत पर चेलाराम खड़ा नजर आया.
“ऐ, मुझे देख कर यूं आहें क्यों भर रहे हो?’’ बादली ने आंखें तरेरी.
“तुम चीज ही गजब की हो भाभी, आह तो निकलेगी ही मुंह से.’’ चेलाराम ठंडी सांस भर कर बोला, ‘‘मुझे शंकरा राम के भाग्य पर जलन होती है, कम्बख्त चांद ही समेट लाया अपने आंगन में.’’
बादली ने मादक अंगड़ाई ली, ‘‘तुम्हारे आंगन में भी तो सुमन ने उजाला फैला रखा है देवरजी.’’
“उस के साथ अपना मुकाबला मत करो भाभी, सुमन तुम्हारे रूपयौवन के सामने कहीं भी नहीं टिकती. तुम्हारा यह खिलाखिला यौवन किसी की भी रातों की नींद उड़ा सकता है.’’
बादली खिलखिला कर हंस पड़ी, हंसते हुए बोली, ‘‘तुम रात को ठीक से सो पाते हो या नहीं? कहीं मेरा यह यौवन तुम्हें बिस्तर पर करवटें बदलने को मजबूर तो नहीं करता देवरजी?’’
“करता है भाभी. अब तो जिस दिन यह यौवन बाहों में होगा, उसी दिन चैन की नींद आएगी.’’ चेलाराम ने ठंडी सांस भरते हुए बेझिझक मन की बात कह डाली.
“बेशरम!’’ बादली झेंप कर बोली और तेजी से सीढिय़ां उतर कर नीचे आ गई. चेलाराम की मंशा भांप कर वह रोमांच से भर गई. उस के गालों पर लाज की लालिमा उभर आई थी.
जालौर (राजस्थान) के थाना क्षेत्र सांचौर का एक गांव था गलीफा. इसी गांव में खेमाराम का परिवार रहता था. परिवार में उस की पत्नी गोमती, 2 बेटे शंकरा राम और जोगाराम के अलावा 5 बेटियां थीं. शुरू में खेमाराम के पास काफी जमीनजायदाद थी, लेकिन जैसेजैसे उस की बेटियां जवान होती गईं, उस की जमीनजायदाद बिकती चली गई. खेमाराम ने बेटियों की शादी में दिल खोल कर पैसा लुटाया, जिस की वजह से उस पर कंगाली छा चुकी थी.
रिश्ते में बदल गई दोस्ती…
इधर बड़ा बेटा शंकरा राम 31 साल का होने को आ गया था. खेमाराम उसे शादी के बंधन में बांधना चाहता था, लेकिन खेमाराम की खस्ताहालत और शंकरा राम की बढ़ी उम्र की वजह से कोई लडक़ी वाला उस से रिश्ता करने को राजी नहीं हो रहा था. खेमाराम काफी निराश और दुखी रहने लगा था, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेटे शंकरा राम का घर कैसे बसाए.
इसी गांव गलीफा में ही स्वरूप राम अपनी पत्नी और बेटी बादली के साथ रहता था. जमीनजायदाद भी मामूली थी, इसलिए वह अपनी बेटी बादली को ज्यादा पढ़ालिखा नहीं सका. खेमाराम स्वरूप राम का बचपन का मित्र था. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े और गांव की मिट््टी में खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों की शादी होने पर भी उन की दोस्ती बरकरार थी.
स्वरूप राम को मालूम हुआ कि खेमाराम अपने बेटे शंकरा राम के लिए लडक़ी की तलाश कर रहा है तो स्वरूप राम ने दोस्ती को रिश्ते में बदलने का मन बना कर बादली और शंकरा राम की शादी करने की बात खेमाराम से की तो वह खुश हो गया.
शुभ मुहुर्त में शंकरा राम और बादली विवाह बंधन में बंध गए. बादली उस वक्त 20 साल की थी, उसे अपने से 10 साल बड़े और शंकरा राम को पति के रूप में पा कर अधिक खुशी नहीं हुई थी. लेकिन मांबाप के मानसम्मान को ध्यान में रख कर उस ने अधूरे मन से शंकरा को अपना पति स्वीकार कर के उस का घर संभाल लिया.
शंकरा राम खूबसूरत पत्नी पा कर फूला नहीं समाया. बादली के प्यार में वह पगला सा गया. रातदिन वह बादली के आगेपीछे घूमता रहता. समय का पहिया घूमता रहा और बादली एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. परिवार बढ़ रहा था, लेकिन घर की आमदनी नहीं बढ़ रही थी. बादली ने कई बार इस बारे में पति से बात की लेकिन शंकरा राम ने उस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया. शंकराराम अपने पिता के साथ खेती में लगा रहता था.
धीरेधीरे बादली कुल मिला कर 5 बच्चों की मां बन गई थी. खेमाराम ने बेटे शंकरा राम के बढ़ते परिवार को ध्यान में रख कर उस के लिए अलग मकान बनवा दिया और जमीन का एक हिस्सा भी उसे अलग से दे दिया. खेमाराम अपनी पत्नी गोमती और बेटे जोगाराम के साथ पुराने मकान में ही रहता रहा.
बादली को नया घर मिला तो उस ने आजादी की सांस ली. अब उसे केवल अपने पति और बच्चों के लिए चूल्हा फूंकना था. सासससुर और देवर के बोझ से उसे मुक्ति मिल गई थी. शंकरा राम सुबह ही तैयार हो कर खेत पर चला जाता था. नाश्ता कर के बच्चे भी गांव में बनी पाठशाला में चले जाते थे. घर में अकेली बादली रह जाती थी. घर का काम निपटा कर वह छत पर जा कर बैठ जाती थी.
2 घर छोड़ कर चेलाराम अपनी पत्नी सुमन और 8 वर्षीय बेटे और 5 साल की बेटी के साथ रहता था. गांव के रिश्ते से बादली को वह भाभी कहता था. चेलाराम की सोच यह थी कि भाभी पर देवर का भी पूरापूरा हक होता है. इसलिए वह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश में लगा रहता था.
देवर से लड़ गए नैना..
बादली उस की हंसीठिठोली का बुरा नहीं मानती थी. गांवदेहात में देवरभाभी के बीच हंसीमजाक का रिश्ता स्वाभाविक माना जाता है. किंतु 2 दिन पहले बाल सुखाने के इरादे से छत पर आई बादली के साथ चेलाराम की जो बात हुई, उस ने बादली के पूरे जिस्म में सनसनाहट भर दी. पहली बार बादली को अहसास हुआ कि चेलाराम उसे पाने के लिए कितना तड़प रहा है.
बादली की उम्र बेशक 31 साल हो गई थी, लेकिन वह अपने आप को 20-21 साल की ही समझती थी. बादली चाहती थी कि शंकरा अभी भी पहले की तरह उसे बाहों में भर कर वह सुख प्रदान करे, जिस की हर युवा औरत कामना करती है. चूंकि बादली से विवाह हुए शंकरा राम को 10 वर्ष हो गए थे, वह अब 41 साल का हो चुका था. पत्नी की भावनाओं को नजरअंदाज कर देता था. ऐसे में बादली के मन में चेलाराम का खयाल आया.
चेलाराम 2-3 दिन उसे नजर नहीं आया. वह गांव में ही था या कहीं बाहर चला गया था, बादली को पता नहीं चला. दूसरे दिन होली थी. बादली चाहती थी कि चेलाराम इस होली पर कुछ ऐसा करे, जिस से होली का त्यौहार हमेशा यादगार बन जाए. उस दिन उस का पति शंकरा राम गांव के लोगों के साथ भांग छानने के लिए निकल गया था. बादली घर में अकेली थी. वह चारपाई पर बैठी चेलाराम के ख्यालों में गुम थी कि पता नहीं कब और कैसे दबे पांव चेलाराम उस के पीछे आ गया. उस ने हाथ में रंग लगा रखा था. बादली सचेत हो पाती, उस से पहले ही चेलाराम ने उस के गालों पर अपने हाथों का रंग रगड़ते हुए कहा, ‘बुरा न मानो भाभी, होली है.’
बादली ने उस के हाथ पकड़ लिए और घूम कर उस की तरफ चेहरा घुमा कर हंसते हुए बोली, ‘‘मैं आज तुम्हारी किसी शरारत का बुरा नहीं मानूंगी देवरजी.’’
“सच भाभी?’’ चेलाराम खुशी से चहक पड़ा, ‘‘फिर तो आज अपनी भाभी को बाहों में लेने की तमन्ना पूरी कर लेता हूं.’’ चेलाराम ने बादली को बाहों के घेरे में ले कर सीने से भींच लिया. बादली की धडक़नें तेज हो गईं. दोनों ही अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाए और अपनी हसरतें पूरी कर डालीं.
प्यार को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, वह छिप नहीं पाता. बादली और चेलाराम के प्रेम प्रसंग के किस्से पूरे गांव में दबी जुबान से होने लगे. शंकरा राम सीधे स्वभाव का था. चेलाराम को कुछ कहने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. इस के लिए वह अपनी पत्नी बादली को ही दोषी मान रहा था. पूरे गांव मे बादली को ले कर उस की थूथू हो रही थी. लोग उसे कायर, दब्बू इंसान और न जाने क्याक्या कह कर ताना मार रहे थे. परेशान हो कर शंकरा राम ने पंचायत बुलवा ली.
पंचायत में दी हिदायत…
25 फरवरी को गांव के पंचों ने पंचायत में चेलाराम पुत्र चेतराम और बादली पत्नी शंकरा राम को हाजिर होने का हुक्म दिया. दोनों पंचायत में उपस्थित हुए तो पंचों ने उन्हें समझाया कि वह जो अमर्यादित काम कर रहे हैं, इस से दूसरी बहूबेटियों पर गलत संदेश जा रहा है. गलीफा गांव की बदनामी हो रही है, सो अलग. इसलिए आज के बाद वह न आपस में मिलेंगे, न बात करेंगे. वे दोनों गांव और अपने परिवारों की इज्जत की खातिर नेकचलनी पर चलेंगे.
पंचायत ने सख्त चेतावनी दी कि आज के बाद यदि उन की शिकायत किसी ने की तो उन दोनों को गांव छोडऩे की सख्त सजा दी जाएगी. कोली समाज का कोई व्यक्ति उन से वास्ता नहीं रखेगा. दोनों ने पंचायत में कसम खा कर कहा कि वे आज से आपस में बात नहीं करेंगे.
बादली ने पंचायत के फैसले का सम्मान करते हुए चेलाराम से मिलना और बात करना बंद कर दिया, किंतु चेलाराम सुधरने को तैयार नहीं था. वह बादली को किसी भी कीमत पर छोडऩे को राजी नहीं हुआ. उस ने बादली के पति शंकरा राम को फोन द्वारा धमकाना शुरू कर दिया. वह बादली को भी रिश्ता तोड़ लेने पर देख लेने की धमकियां देने लगा. इस से शंकरा राम पहले से अधिक परेशान रहने लगा.
पहली मार्च को थाना सांचौर के एसएचओ निरंजन प्रताप सिंह को किसी अंजान व्यक्ति ने एक चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि उस ने सिद्धेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे कई जोड़े जूते और चप्पलें पड़ी देखी हैं. आसपास कोई नजर नहीं आ रहा है, उसे आशंका है कि किसी परिवार के लोगों ने सामूहिक आत्महत्या करने का प्रयास किया है.
एसएचओ ने घड़ी देखी, दिन के 2 बज रहे थे. उन्होंने यह सूचना एसडीएम संजीव कुमार और एसपी जालौर डा. कविता अंग को दे दी. एसएचओ निरंतर प्रताप सिंह, सीओ रूप सिंह और अन्य पुलिस दल के साथ सिद्धेश्वर के लिए रवाना हो गए. जो घटनास्थल फोन पर बताया गया था, वहां सचमुच जूते, चप्पलों का ढेर था. अब तक उच्चाधिकारी भी एसडीआरएफ टीम को ले कर मौके पर पहुंच गए थे. वहां एक 25 साल का युवक खड़ा रो रहा था.
एसएचओ ने उस से पूछा तो उस युवक ने बताया कि उस का नाम जोगाराम है, वह अपने बड़े भाई शंकरा राम की तलाश में यहां आया है. उस का भाई ही अपने परिवार को ले कर बस से सिद्धेश्वर के लिए निकला था. “यहां जो जूतेचप्पलों का ढेर है, वह सब उस के भाईभाभी और भतीजीभतीजों के हैं. वे सब शायद नदी में कूद गए हैं. उन्हें तलाश कीजिए साहब”.
एसपी डा. कविता अंग ने तुरंत नहर में गोताखोर उतार दिए. कड़ी मशक्कत के बाद पहला शव 4 वर्षीय बच्चे का निकला. जोगाराम ने रोते हुए बताया, ‘यह उस का सब से छोटा भतीजा हितेष है.’ अधिकारियों को विश्वास हो गया कि नहर में और भी शव हैं. गोताखोरों ने तलाश शुरू कर दी. काफी कड़ी मेहनत के बाद नहर से 6 शव और ढूंढ निकाले गए. ये शव शंकरा राम, बादली, उन की बेटियों रमिला (11 वर्ष), कमला (7 वर्ष), संगीता (8वर्ष) और बेटा विक्रम (10 वर्ष) के थे. हितेष की लाश सब से पहले निकाली गई थी.
जोगाराम दहाड़े मार कर रो रहा था. पूरे परिवार की जलसमाधि के बाद एक साथ 7 शव देख कर पुलिस के आला अफसरों की आंखें भी नम हो गई थीं. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा हो गई थी, सभी हैरान खड़े थे. शवों को आवश्यक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
थाना सांचौर में यह दुखद घटना भादंवि की धारा 306 के तहत दर्ज कर ली गई. शंकरा राम के भाई जोगाराम ने इस सामूहिक आत्महत्या के लिए चेलाराम को जिम्मेदार बताया. उस ने अधिकारियों के सामने चेलाराम की काली करतूत का जिक्र कर के उसे गिरफ्तार करने की मांग की.
गलीफा गांव में पोस्टमार्टम के बाद शंकरा राम और उस की पत्नी बादली तथा बच्चों के शव पहुंचे तो पूरा गांव शोक में डूब गया. हर किसी की आंखें भींग गईं. जो बच्चे कल तक गांव की गलियों में खेलतेकूदते थे, उन के शव उन्हें अपने कंधों पर गांव से अंतिम विदाई के लिए ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर एक ही चिता पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
पुलिस ने जालौर (राजस्थान) में सामूहिक आत्महत्या के पीछे चेलाराम को दोषी मानते हुए उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस चेलाराम के खिलाफ ठोस सबूत एकत्र करने में लगी हुई थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित