रात के 10 बजे राजेंद्र सिंह ने कमबाइन मशीन खेतों के बाहर बने कमरे के पास खड़ी की और ट्यूबवैल की मोटर चला कर नहाने लगा. नहा कर उस ने खाना खाया और सोने के लिए चारपाई पर लेट गया, क्योंकि उसे सुबह जल्दी उठना था.

दिन भर कमबाइन मशीन चलातेचलाते बलजिंदर इतना थक जाता था कि चारपाई पर लेटते ही उसे नींद आ जाती थी. अभी उस ने आंखें मूंदी ही थीं कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. अलसाई आंखें खोल कर उस ने मोबाइल स्क्रीन को देखा.

रात के ठीक 11 बजे थे. उस ने फोन रिसीव कर के कान से लगाया तो दूसरी ओर से उस के छोटे भाई की पत्नी सोमपाल कौर की घबराई हुई आवाज उभरी. उस ने कहा, ‘‘सत्तश्री अकाल वीरजी, क्या अभि के पापा आप के पास हैं?’’

‘‘नहीं तो. क्यों क्या बात है?’’ राजेंद्र ने चिंतित स्वर में पूछा तो सोमपाल कौर ने कहा, ‘‘बलजिंदर काम से नहीं लौटे हैं, मुझे चिंता हो रही है.’’

राजेंद्र ने सोमपाल कौर की बात सुन कर उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह किसी यारदोस्त के पास बैठ गया होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

‘‘लेकिन उन का फोन…’’

‘‘मैं ने कहा न, तुम सो जाओ. मैं सुबह घर आ कर देख लूंगा. चिंता की कोई बात नहीं है.’’ कह कर राजेंद्र ने फोन काट दिया. यह रात 11 बजे की बात थी.

जिला श्रीमुक्तसर साहिब के थाना सदर मटौल का एक गांव है खुन्नण कलां. इसी गांव के रहने वाले गुरमेज सिंह के 2 बेटे थे, 32 साल का राजेंद्र सिंह और 29 साल का बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला. इस गांव की अधिकांश आबादी मेहनतमजदूरी करने वाले सिखों की है.

गरीब परिवार के होने के कारण राजेंद्र और बलजिंदर जाटों के खेतों में काम कर के गुजरबसर करते थे. मेहनत की बदौलत दोनों भाई घर खर्च चलाने के साथसाथ थोड़ीबहुत बचत भी कर लेते थे.

राजेंद्र सिंह की शादी करीब 11 साल पहले हुई थी. वह अपने बीवीबच्चों के साथ गांव में ही अलग मकान में रहता था. बलजिंदर की शादी 8 साल पहले फाजिल्का के गांव महुआणा बोदला निवासी थाना सिंह की बेटी सोमपाल कौर के साथ हुई थी. दोनों का 7 साल का एक बेटा अभि सिंह था.

राजेंद्र सिंह खेतों में कमबाइन से फसल काटने का काम करता था, जबकि बलजिंदर ट्रैक्टर चलाता था. सोमपाल कौर भी मजदूरी करती थी. वह थी तो सांवले रंग की, पर उस के तीखे नैननक्श और आकर्षक शरीर किसी को भी उस की ओर देखने को मजबूर कर सकते थे.

14 अप्रैल, 2017 की सुबह बलजिंदर रोज की तरह अपने काम पर गया तो लौट कर नहीं आया. उस की पत्नी सोमपाल कौर और भाई राजेंद्र सिंह रात भर उस के नंबर पर फोन करते रहे. उस के फोन की घंटी तो बजती थी, पर कोई फोन नहीं उठा रहा था. अगले दिन सुबह राजेंद्र सिंह घर पहुंचा और सोमपाल कौर से पूरी बात सुनने के बाद भाई की तलाश में निकल पड़ा.

राजेंद्र सिंह ने आसपास के गांवों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों तथा उस के यारदोस्तों के यहां पता किया पर वह किसी के यहां नहीं गया था. बलजिंदर काफी हंसमुख और मिलनसार युवक था. वह गांव वालों के सुखदुख में काम आता था. इसलिए गांव के कई लोग और उस के दोस्त काफी परेशान थे और उस की तलाश में जुटे हुए थे.

लेकिन 3 दिनों तक ढूंढने के बाद भी बलजिंदर का कोई सुराग नहीं मिला. आखिर में ग्रामप्रधान और अन्य लोगों के कहने पर 19 अप्रैल, 2017 को राजेंद्र सिंह ने थाना सदर मलौट जा कर अपने भाई बलजिंदर सिंह की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

थाना सदर मलौट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस के भाई को ढूंढने की हर संभव कोशिश करेंगे. पुलिस अपना काम अपने तरीके से कर रही थी, पर राजेंद्र सिंह भी पुलिस के भरोसे नहीं बैठा था. उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि शाम 6 बजे तक घर लौटने वाला उस का भाई आखिर अचानक कहां गायब हो गया.

20 अप्रैल को राजेंद्र सिंह गांव के अपने दोस्तों हरदीप, बलजिंदर और जालंधर सिंह के साथ अपने भाई की तलाश कर के राजस्थान फीडर नहर के किनारे से गांव की ओर लौट रहा था तो भुल्लर गांव के पास उन्हें भयानक दुर्गंध का सामना करना पड़ा. जिज्ञासावश सभी ने नहर में झांक कर देखा तो नहर के किनारे सिर पर बांधने वाला केसरी रंग का पटका नजर आया था.

हालांकि वहां इतनी दुर्गंध थी कि खड़ा होना मुश्किल था. राजेंद्र सिंह के दोस्त नहर की ओर जाने से मना कर रहे थे, पर राजेंद्र सिंह पटका देख कर आगे जाना चाहता था. क्योंकि उस का भाई ज्यादातर केसरी रंग का ही पटका बांधा करता था. उस जगह नहर में बांध सा बना था, इसलिए वहां पानी रुका हुआ था.

राजेंद्र सिंह ने जब नीचे पानी में झांक कर देखा तो उसे नहर में एक लाश दिखाई दी. उस ने चिल्ला कर अपने दोस्तों को आवाज दी. सभी ने पानी में उतर लाश बाहर निकाली. वह लाश बलजिंदर सिंह की थी.

अपने जवान भाई की लाश देख राजेंद्र दहाड़े मार कर रोने लगा. उस के एक दोस्त ने जा कर यह सूचना थाना सदर मलौट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर श्रवण सिंह, अजमेर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरमीत सिंह, गुरजीत सिंह और कांस्टेबल रणदीप सिंह के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी.

पुलिस ने लाश और पटका कब्जे में ले कर पंचनामा तैयार कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला की गुमशुदगी को लाश बरामदगी दिखा कर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201/34 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

शुरुआती जांच में इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने सोमपाल कौर और उन के पड़ोसियों के बयान लिए. मृतक बलजिंदर के खास दोस्तों से भी पूछताछ की, पर उन्हें कोई सुराग नहीं मिला. मृतक बेहद मिलनसार था, उस की ना किसी से दुश्मनी थी, न लड़ाईझगड़ा. किसी से कोई लेनदेन भी नहीं था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस के अनुसार मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई थी.  उस के पेट में नशे के अंश भी पाए गए.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया. जांच में जब कहीं कोई बात सामने नहीं आई तो इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने गांव के मुखबिरों का सहारा लिया. मुखबिरों ने टोह लेने के बाद बताया कि गांव के ही हरबंस सिंह की पत्नी परमजीत कौर और मृतक की पत्नी सोमपाल कौर में कुछ ज्यादा ही पट रही है.

परमजीत कौर को ले कर मृतक का अपनी पत्नी से कई बार झगड़ा भी हुआ था. वजह यह थी कि गांव में कोई भी परमजीत कौर को अच्छी नहीं समझता था. उस की गिनती गलत औरतों में होती थी. मुखबिर ने यह भी बताया कि इन दिनों सोमपाल कौर रोजाना परमजीत कौर के साथ काम करने गांव के ही जाट जमींदार गुरप्रीत सिंह उर्फ पिंदा के खेतों में जाती है और काम खत्म होने के बाद सोमपाल कौर अकेली ही पिंदा के घर पर कईकई घंटे गुजारती है.

इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने सीधे परमजीत कौर पर हाथ डालने से पहले पिंदा के बारे में पता करवाया. पता चला कि पिंदा अय्याश किस्म का जमींदार है. उस का अपनी पत्नी से तलाक का केस चल रहा है. गांव की कई जरूरतमंद खूबसूरत औरतों से उस के संबंध हैं. बहलाफुसला कर काम दिलवाने के बहने परमजीत कौर ही उन औरतों को पिंदा के यहां ले आती थी.

परमजीत कौर, गुरप्रीत कौर और पिंदा के बारे में ठोस जानकारी मिलते ही इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने गुपचुप तरीके से पूछताछ के लिए परमजीत कौर और पिंदा को थाने बुलवा लिया. पहले उन्होंने परमजीत कौर से पूछताछ करने का फैसला लिया. पूछताछ से पहले उन्होंने लेडी कांस्टेबल जसवीर कौर को उस के कमरे में भेजा.

लेडी कांस्टेबल ने धमकाते हुए परमजीत कौर को चेतावनी दी कि साहब बडे गर्ममिजाज हैं. उन की बात का सीधासच्चा जवाब नहीं दिया तो समझो तुम्हारी फांसी पक्की है. इसलिए वह जो भी पूछें, सचसच जवाब देना. परमजीत सिंह ने परमजीत कौर पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाल कर पूछा, ‘‘देखो, मैं जानता हूं कि बलजिंदर को तुम सब ने मिल कर क्यों और कैसे मारा है, फिर भी मैं तुम्हें इस शर्त पर बचा सकता हूं कि तुम अपने मुंह से मुझे पूरी बात बता दो. नहीं तो दूसरों के चक्कर में तुम भी फांसी…’’

‘‘नहीं…नहीं सरदार जी, मुझे फांसी नहीं चढ़ना है. मैं तो पहले ही बेवजह इस चक्कर में फंस गई.’’ परमजीत कौर ने इंसपेक्टर परमजीत सिंह की बात पूरी होने से पहले ही एक सांस में सच उगल दिया. उस का बयान लेने के बाद परमजीत सिंह ने पुलिस टीम भेज कर गांव से मृतक बलजिंदर की पत्नी सोमपाल कौर तथा कुलविंदर सिंह उर्फ भूप को थाने बुलवा लिया.

अगले दिन पुलिस ने परमजीत कौर, सोमपाल कौर, गुरप्रीत सिंह उर्फ पिंदा तथा कुलविंदर सिंह और भूप को बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला की हत्या के आरोप में अदालत में पेश कर के 23 अप्रैल तक के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान चारों से पूछताछ में बलजिंदर की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह दूसरों की बातों में आ कर अपना घर बरबाद करने वाली बेअक्ल औरत की जुर्म भरी कहानी थी, जिस ने दूसरों के महलों के ख्वाब देख कर अपना झोपड़ा फूंक दिया था.

शादी के बाद सोमपाल कौर बड़ी खुश थी. बलजिंदर जैसा सुंदर, हृष्टपुष्ट, नेक, कमाऊ और मेहनती पति पा कर जैसे उसे सब कुछ मिल गया था. गरीब परिवार की बेटी गरीब परिवार में ही ब्याह कर आई थी. इसलिए उस के ना कोई ऊंचे ख्वाब थे, न कोई बड़ी महत्वाकांक्षा. बस 2 वक्त की रोटी और शांति से परिवार कर गुजारा होता रहे, यही उस की कामना थी.

बलजिंदर के लाख मना करने पर भी उस ने कंधे से कंधा मिला कर उस के साथ मेहनत की और पैसा जमा कर के कच्चे घर की जगह पक्का घर बनवा लिया. संतान के रूप में बेटा पैदा हुआ तो वह निहाल हो गई. कुल मिला कर सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. करीब 2 साल पहले उस ने लोगों के यहां काम करना बंद कर दिया था. अब उस का सारा समय बेटे अभि के लालनपालन में गुजरता था. पतिपत्नी अपने इस जीवन से संतुष्ट थे. इसी बीच अचानक बलजिंदर बीमार हो गया. बीमारी की वजह से वह 2-3 महीने तक काम पर नहीं जा पाया, जिस से घर की आर्थिक स्थिति डगमगा गई.

पति से पूछ कर सोमपाल कौर ने दूसरे के खेतों में काम करना शुरू कर दिया. कुछ समय बाद बलजिंदर ठीक हो गया तो उस ने सोमपाल कौर को घर पर ही रहने के लिए कहा, पर सोमपाल ने पति को समझाते हुए कहा, ‘‘इस में हर्ज क्या है, घर पर मैं सारा दिन खाली ही बैठी रहती हूं. चार पैसे जमा हो जाएंगे तो भविष्य में बेटे के काम आएंगे.’’ सोमपाल कौर की बात सही थी. बलजिंदर चुप रह गया. अब पतिपत्नी दोनों सुबह अभि को स्कूल भेज कर काम पर निकल जाते. स्कूल से लौट कर अभि अपने ताया राजेंद्र के घर चला जाता था.

लगभग एक साल पहले की बात है. सोमपाल कौर शाम को काम से घर लौट रही थी तो रास्ते में पिंदा के खेत पड़ते थे. पिंदा की नजर उस पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. उस का पिछले 2 सालों से अपनी पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा था. उस की रातें रंगीन करने का इंतजाम परमजीत कौर किया करती थी.

पिंदा ने जब सोमपाल कौर को देखा तब वह नहीं जानता था कि यह कौन है. उसे परमजीत कौर के माध्यम से पता चला कि वह अपने गांव की ही है तो उस ने परमजीत कौर के सामने नोट फेंकते हुए कहा कि उसे हर हाल में सोमपाल कौर चाहिए. परमजीत कौर ऐसे कामों में माहिर थी. उस ने सोमपाल कौर को फंसाने के लिए ऐसा जाल फेंका कि ना चाहते हुए भी वह परमजीत कौर की बातों में आ कर पिंदा के बिस्तर पर जा पहुंची.

धीरेधीरे दोनों को एकदूसरे के शरीर का ऐसा चस्का लगा कि दोनों साथ रहने के सपने देखने लगे. पिंदा ने सोमपाल कौर के लिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल दिया था. गरीब परिवार की सोमपाल कौर को लगने लगा कि अब वह जमीनदारनी बनने वाली है. लेकिन बलजिंदर के रहते यह संभव नहीं था. फिर भी यह खेल जैसे-तैसे गुपचुप तरीके से चलता रहा. लेकिन ऐसा कब तक संभव था.

आखिर एक दिन यह खबर बलजिंदर के कानों तक पहुंच ही गई. उस ने सोमपाल कौर को प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘कल से तुम बाहर काम पर जाना बंद कर दो और घर में रह कर बेटे की परवरिश पर ध्यान दो. कमाने के लिए मैं काफी हूं.’’

लेकिन सोमपाल ने बलजिंदर का कहना मानने से इनकार कर दिया. इस बात को ले कर घर में तनाव रहने लगा क्योंकि सोमपाल कौर ने खेतों में काम करना बंद नहीं किया था. लेकिन अब उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कभी भी कुछ भी हो सकता है. इसी बात को ध्यान में रख कर एक दिन उस ने पिंदा से कहा, ‘‘जो करना है जल्दी करो, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक घर में बगावत नहीं कर सकती. हमारे रिश्तेदारों को भी खबर लग गई है.’’

‘‘बताओ, क्या करना है.’’ पिंदा ने सोमपाल को बांहों में भर कर कहा, ‘‘कहो तो बलजिंदर का काम तमाम कर देते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं…’’ घबरा कर सोमपाल कौर बोली, ‘‘यह ठीक नहीं है. अगर हम फंस गए तो मेरे बेटे अभि का क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो, बलजिंदर को हम इस तरह से रास्ते से हटाएंगे कि किसी को हम पर शक नहीं होगा.’’

यह 2 अप्रैल की बात है. अगले दिन पिंदा के घर पर बलजिंदर की हत्या की योजना बनाई गई. इस योजना में पिंदा ने सोमपाल कौर के अलावा परमजीत कौर और गांव के ही कुलविंदर सिंह उर्फ भूप को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. योजना यह थी कि जिस दिन बलजिंदर का भाई राजेंद्र कमबाइन चलाने किसी दूसरे गांव जाए, उसी दिन यह काम कर दिया जाएगा.

गेहूं की कटाई शुरू हो चुकी थी. राजेंद्र बैसाखी वाले दिन पड़ोसी गांव लखमी रेहाणा चला गया. उसी दिन यानी 14 अप्रैल, 2017 की शाम जब बलजिंदर अपने काम से घर लौट रहा था तो रास्ते में उसे कुलविंदर सिंह और पिंदा मिल गए. बलजिंदर उन के साथ जाना नहीं चाहता था, पर बैसाखी मनाने के बहाने वे उसे जबरदस्ती घर ले गए.  परमजीत कौर और सोमपाल कौर दूसरे कमरे में मौजूद थीं.

वहां शराब का दौर चला और बलजिंदर को अधिक शराब पिला कर उसे नशे में कर दिया गया इस के बाद चारों उसे बातों में उलझा कर भुल्लर गांव के पास नहर पर ले गए. चूंकि बलजिंदर नशे का आदी नहीं था, इसलिए उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. बलजिंदर वही कर रहा था, जो वे कह रहे थे. नशे की अधिकता की वजह से वह सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था.

बहरहाल, नहर के पास पहुंच कर चारों ने उसी के सिर पर बंधे पटके को उस के गले में डाल कर कस दिया. सोमपाल कौर ने उस के बाजू और परमजीत कौर ने उस की टांगें पकड़ीं. पिंदा और कुलविंदर ने दोनों ओर से पटका खींच कर गला कसा. इस के बाद लाश नहर में फेंक कर सभी अपनेअपने घर चले गए थे. योजनानुसार रात 11 बजे सोमपाल कौर ने राजेंद्र को फोन कर के बलजिंदर के घर न आने की जानकारी दी थी.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने चारों आरोपियों को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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