4 मार्च, 2017 की सुबह काम पर जाने के लिए जैसे ही मक्खन सिंह घर से निकला, सामने से जंगा आता दिखाई दिया. वह उसी की ओर चला आ रहा था, इस का मतलब था कि वह उसी से मिलने आ रहा था. उस ने जंगा से हाथ मिलाते हुए पूछा, ‘‘सुबहसुबह ही इधर, कोई खास काम…?’’
‘‘मैं तुम्हारे पास इसलिए आया था कि तुम्हें काले के बारे में कुछ पता है?’’
‘‘नहीं, उस के बारे में तो कुछ पता नहीं है. उस से तो मुझे जरूरी काम था, पर वह मिल ही नहीं रहा है.’’ मक्खन सिंह ने पछतावा सा करते हुए कहा.
‘‘मैं ने तो उसे कई बार फोन भी किया, पर बात ही नहीं हो सकी.’’
‘‘मैं तो उसे लगातार 3 दिनों से फोन कर रहा हूं. हर बार एक ही जवाब मिल रहा है कि उस का फोन बंद है. यार एक बहुत बड़ा ठेका मिल रहा है, पार्टी पैसे ले कर मेरे पीछे घूम रही है, पर काले के बिना बातचीत रुकी पड़ी है.’’ मक्खन सिंह ने कहा.
‘‘एक काम मेरे पास भी है. रेट भी ठीकठाक है, पर काले के बिना बात नहीं बन रही. पता नहीं वह कहां गायब हो गया है?’’
जंगा और मक्खन काफी देर तक काले के बारे में ही बातें करते रहे. अंत में कुछ सोचते हुए जंगा ने कहा, ‘‘मक्खन, क्यों न हम एक काम करें. हमारी एक दिन की मजदूरी का नुकसान तो होगा, पर काले के बारे में पता तो चल जाएगा.’’
‘‘लेकिन मुझे तो उस का घर भी नहीं मालूम.’’
‘‘घर तो मैं भी नहीं जानता, पर इतना जरूर जानता हूं कि वह बस्ती अजीतनगर में कहीं किराए पर रहता है. वहां चल कर लोगों से पूछेंगे तो कोई न कोई उस के बारे में बता ही देगा.’’ इस तरह जंगा और मक्खन काम पर जाने के बजाए काला की तलाश में अजीतनगर जा पहुंचे.
काला टोपी वाला के नाम से मशहूर नवनीत सिंह जंगा, मक्खन, रमेश और नरेश आदि के साथ मिल कर मकान बनाने का ठेका लेता था. सभी राजमिस्त्री थे, इसलिए सब मिलजुल कर काम करते थे और जो फायदा होता था, आपस में बांट लेते थे. नवनीत सिंह काला टोपी वाला के नाम से इसलिए मशहूर हो गया था, क्योंकि उस का घर का नाम काले था. वह हर समय सिर पर काली टोपी लगाए रहता था, इसलिए लोग उसे काली टोपी वाले कहने लगे थे. काले बेहद शरीफ, नेकदिल और मेहनती युवक था.
वह जिला मानसा के गांव बीरखुर्द कलां के रहने वाले अजायब सिंह का बेटा था, लेकिन काम की वजह से वह लगभग 5 साल पहले जिला संगरूर में आ कर रहने लगा था. यहां उस का काम ठीकठाक चल निकला तो वह उपनगर बस्ती अजीतनगर में राकेश के मकान का एक हिस्सा किराए पर ले कर उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी कुलदीप कौर के अलावा 2 बच्चे थे.
नवनीत सिंह उर्फ काला टोपी वाला की शादी सन 2007 में कुलदीप कौर के साथ तब हुई थी, जब काला अपने मांबाप के साथ गांव में रहता था. एक दिन वह नजदीक के गांव में किसी के मकान की छत डाल रहा था, तभी उस की मुलाकात कुलदीप कौर से हुई थी. वह पड़ोस में रहती थी. काम करने के दौरान काला और कुलदीप कौर की आपस में आंखें लड़ गईं. मकान का काम पूरा होतेहोते दोनों में ऐसा प्यार हुआ कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.
दोनों की जाति अलगअलग थी, इसलिए घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में एक ही सूरत थी कि वे घर से भाग कर शादी कर लें. आखिर उन्होंने यही किया. दोनों ने भाग कर शादी कर ली और अदालत में शादी रजिस्टर्ड करवा कर पतिपत्नी की तरह शान से रहने लगे. समय के साथ दोनों के परिवार भी शांत हो कर बैठ गए और उन का अपनेअपने घर आनाजाना शुरू हो गया. काला का घर ढूंढते हुए जंगा और मक्खन दोपहर को राकेश घर पहुंचे तो जिस हिस्से में काला रहता था, उस के दरवाजे पर दस्तक दी. तब अंदर से पूछा गया, ‘‘कौन?’’
जंगा ने पूरी बात बता कर काला से मिलने की इच्छा जताते हुए कहा कि उस से उस का मिलना बेहद जरूरी है, क्योंकि उस की वजह से काम के साथसाथ पैसे का भी नुकसान हो रहा है. पूरी बात सुनने के बाद कुलदीप कौर ने बिना दरवाजा खोले ही अंदर से कहा, ‘‘वह तो कहीं बाहर गए हैं. घर पर नहीं हैं. कब लौटेंगे, यह भी बता कर नहीं गए हैं. जब आएंगे, तब आ कर मिल लेना. अभी आप लोग जाइए.’’
कुलदीप कौर का टका सा जवाब सुन कर दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. कहां तो वे यह सोच कर आए थे कि काला मिले न मिले, उस के घर चायनाश्ता तो मिलेगा ही, लेकिन यहां तो चायपानी की कौन कहे, 2 बार कहने पर दरवाजा भी नहीं खुला.
कुलदीप कौर के इस व्यवहार से दोनों असमंजस में थे. मामला क्या है, उन की समझ में नहीं आ रहा था. बेआबरू हो कर वे दरवाजे से लौटने के लिए पलटे ही थे कि काला के पिता अजायब सिंह वहां आ गए. उन्होंने भी काला से मिलने के लिए दरवाजा खटखटाया, पर कुलदीप कौर ने यह कह कर दरवाजा नहीं खोला कि अभी वह कोई जरूरी काम कर रही है, इसलिए वह कल आएं.
जंगा और मक्खन अभी वहीं खडे़ थे. दोनों ससुर और बहू के बीच होने वाली बातें भी सुन रहे थे. अजायब सिंह बड़ी बेबसी से कह रहे थे, ‘‘3 दिनों से कोशिश कर रहा हूं अपने बेटे से मिलने की, पर यह औरत मिलने नहीं दे रही है. रोज कोई न कोई बहाना बना कर लौटा देती है. कल मैं अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ काले से मिलने आया था, तब इस ने बड़ी चालाकी से हमें लौटा दिया था.
‘‘यह हम सभी को बाजार ले गई और वहां बोली, ‘तुम सभी घर जाओ, मैं शाम को उन्हें भेज दूंगी.’ हम सब इंतजार करते रहे, काला नहीं आया. तब मुझे फिर आना पड़ा. अभी भी देखो न, कुछ बता नहीं रही है.’’
‘‘पापाजी बुरा मत मानना, हमें तो माजरा ही कुछ समझ में नहीं आ रहा है. भला कोई अपने ससुर से इस तरह का व्यवहार करता है?’’ जंगा ने कहा तो बुजुर्ग अजायब सिंह का सिर शरम से झुक गया. उस बीच मकान मालिक राकेश भी वहां आ पहुंचा. पूरी बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘मुझे तो कुछ और ही संदेह हो रहा है. कल से मकान के काले वाले हिस्से से अजीब सी दुर्गंध आ रही है. 2 दिनों से कुलदीप भी दरवाजा नहीं खोल रही है. पापाजी मेरी बात मानो तो पुलिस को खबर कर दो. खुद ही पता चल जाएगा कि माजरा क्या है?’’
यह बात सभी को उचित लगी. सभी थाना सिटी पहुंचे और थानाप्रभारी इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा से मिल कर उन्हें पूरी बात विस्तार से बताई. इस के बाद उन्होंने अजायब सिंह से तहरीर ले कर मामला दर्ज कराया और इस मामले की जांच चौकीप्रभारी बलजिंदर सिंह चड्ढा को सौंप दी.
चौकीप्रभारी बलजिंदर सिंह अजीतनगर स्थित काला के मकान पर पहुंचे और कुलदीप कौर से काला के बारे में पूछा. कुलदीप कौर पुलिस को भी गुमराह करते हुए कहती रही कि वह बाहर गए हैं. मकान से दुर्गंध आ रही थी, इसलिए बलजिंदर सिंह को मामला संदेहास्पद लगा. उन्होंने फोन द्वारा पूरी बात थानाप्रभारी को बताई तो वह एएसआई बलकार सिंह, तरसेम कुमार और अशोक कुमार को साथ ले कर अजीतनगर स्थित राकेश के मकान पर आ पहुंचे.
उन्होंने भी कुलदीप कौर से काला के बारे में पूछा तो अन्य लोगों की तरह उस ने उन्हें भी टालने की कोशिश करते हुए बताया कि वह शहर से बाहर गए हैं. कहां गए हैं, यह बता कर नहीं गए हैं. हार कर थानाप्रभारी ने साथ आई महिला हैडकांस्टेबल सुरजीत कौर को इशारा किया तो उस ने कुलदीप कौर से थोड़ी सख्ती की तो उस ने कहा, ‘‘काला की हत्या हो गई है. उस की लाश रसोईघर में पड़ी है.’’
काला की लाश रसोईघर में पड़ी होने की बात सुन कर सब हैरान रह गए. थानाप्रभारी जसविंदर सिंह साथियों के साथ मकान के अंदर पहुंचे तो रसोईघर में काला की लाश पड़ी मिल गई. अब तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस लाश की जांच करने में लग गई, तभी मौका पा कर कुलदीप कौर फरार हो गई.
लाश अभी तक पूरी तरह सड़ी नहीं थी, पर सड़ने जरूर लगी थी. मृतक काला के पेट में एक गहरा सुराख था, जिस में से खून निकल कर जम कर काला पड़ चुका था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, काला के पेट में कोई तेजधार वाली नुकीली चीज घुसेड़ कर घुमाई गई थी, जिस से नाभि चक्र एवं आंतें कट गई थीं. इसी वजह से उस की मौत हो गई थी. अजायब सिंह की तहरीर पर काला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस कुलदीप कौर की तलाश में जुट गई. उस के मायके में छापा मारा गया, पर वह वहां नहीं मिली.
आखिर 6 मार्च, 2017 को मुखबिर की सूचना पर उसे पटियाला जाने वाली सड़क पर बने बसअड्डे से गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर कुलदीप कौर से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए काला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह संदेह में उपजी हत्या की कहानी थी.
दरअसल, काला शरीफ, ईमानदार होने के साथसाथ हंसमुख और मिलनसार भी था. दूसरों के दुखदर्द को समझना, लोगों की मदद करना और सब से हंसहंस कर बोलना उस के स्वभाव में था. उस के इसी स्वभाव से कुलदीप कौर को जलन होती थी. यही नहीं, वह उसे गलत भी समझती थी. इन्हीं छोटीछोटी बातों को ले कर काला और कुलदीप कौर में लड़ाईझगड़ा ही नहीं, मारपीट भी हो जाती थी. मामला शांत होने पर काला कुलदीप कौर को प्यार से समझाता था कि वह बेकार ही उस पर शक करती है.
नवनीत सिंह उर्फ काला पत्नी के इस शक से काफी डरता था. उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता थी. गलीपड़ोस की औरतों को ले कर ही नहीं, कुलदीप कौर अपनी जेठानी को ले कर भी संदेह करती थी. पहले तो काला यह सब बरदाश्त करता रहा, पर जब उस ने उस के संबंध जेठानी से होने की बात कही तो काला बरदाश्त नहीं कर सका.
दरअसल, काला भाभी को मां की तरह मानता था. वह भाभी की बड़ी इज्जत करता था. जबकि कुलदीप कौर उस के पवित्र रिश्ते को तारतार करने पर तुली थी. काला ने उसे न जाने कितनी बार समझाया, पर वह अपनी आदत से मजबूर थी. उस के दिमाग की गंदगी निकल ही नहीं रही थी. काला के समझाने का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. जब देखो, तब वह काला को जेठानी के साथ जोड़ बुराभला कहती रहती थी.
कुलदीप कौर काला पर इस बात के लिए भी दबाव डालती रहती थी कि वह अपने भाई और पिता से मिलने उन के घर न जाए. जबकि काला पिता और भाइयों को नहीं छोड़ना चाहता था. कुलदीप कौर ने उसे कई बार धमकी दी थी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे छोड़ कर चली जाएगी या फिर वह उसे ऐसा सबक सिखाएगी कि वह भूल नहीं पाएगा.
कुलदीप कौर ने जब देखा कि काला उस की बात नहीं मान रहा है और पिता तथा भाइयों से मिलने जाता है तो उस ने काला को ही ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. 12 मार्च की रात उस ने काला के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खा कर काला गहरी नींद सो गया तो कुलदीप कौर ने बर्फ तोड़ने वाला सूजा पूरी ताकत से काला के पेट में घुसेड़ कर तेजी से चारों ओर कई बार घुमा दिया, जिस से उस की मौत हो गई.
काला को मौत के घाट उतार कर कुलदीप कौर उस की लाश को घसीट कर रसोईघर में ले गई और उसे वहां वैसे ही छोड़ दिया. अगले दिन वह रोज की तरह सामान्य रूप से अपने काम करती रही. उस ने काला का फोन भी बंद कर दिया था. इस बीच उस ने बच्चों को रसोईघर में नहीं जाने दिया. रातदिन कुलदीप कौर लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचती रही, पर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लाश को कहां ले जाए. अंत में लोग जब काले को तलाशते उस के घर पहुंचे तो उस की हत्या का राज खुल गया.
6 मार्च, 2017 को थानाप्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा ने कुलदीप कौर को अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में काला की हत्या में प्रयुक्त बर्फ तोड़ने वाला सूजा कुलदीप कौर की निशानदेही पर बरामद कर लिया गया. इस के बाद रिमांड अवधि समाप्त होने पर उसे पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित