पिछले 15 सालों से दुर्गेश शर्मा और पटना पुलिस के बीच चूहे बिल्ली का खेल चल रहा था. पिछले दिनों उस की गिरफ्तारी के बाद पटना पुलिस ने जरूर चैन की सांस ली होगी.
22 जुलाई, 2017 को एसटीएफ ने दुर्गेश शर्मा को ‘राजेंद्रनगर न्यू तिनसुकिया ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन के पास पकड़ा. उस समय उस की बीवी और बच्चे भी साथ थे. एसटीएफ ने जब नाम पूछा, तो दुर्गेश ने अपना नाम राजीव शर्मा बताया. उस ने रेलगाड़ी का टिकट भी राजीव शर्मा के नाम से रिजर्व करा रखा था. उस ने राजीव शर्मा के नाम का पैनकार्ड, आधारकार्ड और वोटर आईडी भी एसटीएफ को दिखाया. कुछ देर के लिए एसटीएफ की टीम भी चकरा गई.
टीम को लगा कि कहीं उस ने गलत आदमी पर तो हाथ नहीं डाल दिया, पर एसटीएफ के पास दुर्गेश शर्मा का फोटो था, जिस से उस की पहचान हो सकी. दुर्गेश शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस को कई सुराग और राज पता चले हैं. उस ने अपने तकरीबन 15 गुरगों के नाम पुलिस को बताए, जिन के दम पर वह रंगदारी वसूलता था.
16 जनवरी, 2016 में उस ने एसके पुरी थाने के राजापुर पुल के पास सोना कारोबारी रविकांत की हत्या कर दी थी.उस हत्या के बारे में दुर्गेश शर्मा ने कहा कि उस की हत्या गलती से हो गई थी. उस के गुरगे करमू राय ने शराब के नशे में रविकांत की हत्या कर दी थी. दुर्गेश शर्मा पटना के मैनपुरा, बोरिंग रोड, राजा बाजार, दीघा और पाटलीपुत्र कालौनी जैसे महल्लों के बड़े कारोबारियों से ले कर छोटे दुकानदारों तक से रंगदारी वसूलता था.
दुर्गेश शर्मा पटना हाईकोर्ट से फर्जी तरीके से जमानत भी ले चुका है. साल 2011 में फर्जी जमानत पर फरार होने के बाद दुर्गेश शर्मा ने सिलीगुड़ी को अपना ठिकाना बना लिया था. पटना में जीतू उपाध्याय दुर्गेश शर्मा का खासमखास गुरगा था और वही पटना में रंगदारी वसूली का काम किया करता था और नैट बैंकिंग के जरीए दुर्गेश शर्मा के खाते में रुपए ट्रांसफर कर देता था.
सिलीगुड़ी के अलावा दुर्गेश उर्फ राहुल उर्फ राजीव ने पुलिस से बचने के लिए पटना के बाहर कई शहरों में अपना ठिकाना बना रखा था. कोलकाता के साल्ट लेक इलाके में भी उस का ठिकाना था. झारखंड के धनबाद शहर में भी उस का मकान था. असम के तिनसुकिया शहर के सुबोचनी रोड पर सटू दास के मकान में वह किराएदार था. रांची, जमशेदपुर में भी उस के मकान होने का पता चला है.
पटना के बोरिंग रोड इलाके में बन रहे एक मौल में भी दुर्गेश शर्मा की हिस्सेदारी है. साथ ही, पटना के मैनपुरा इलाके और पश्चिमी पटना की कई कीमती जमीनों पर भी वह कब्जा करने की फिराक में था. दुर्गेश शर्मा शंकर राय की हत्या करने के लिए पटना आया था. उस के बाद उस ने समर्पण करने की सोची थी. दुर्गेश शर्मा और शंकर राय के बीच इलाके के दबदबे को ले कर टकराव चलता रहा है. इस में दोनों गुटों के कई लोग मारे जा चुके हैं.
पटना के कई थानों में उस के खिलाफ 32 मामले दर्ज हैं, जिन में से 20 संगीन हैं. साल 2015 में ठेकेदार संतोष की हत्या के मामले में पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी. तकरीबन 10 साल पहले वह पटना के अपराधी सुलतान मियां का दायां हाथ हुआ करता था. वह सुलतान मियां गैंग का शार्प शूटर था. साल 2008 में उस ने सुलतान मियां से नाता तोड़ कर अपना अलग गैंग बना लिया.
साल 2015 में शंकर राय से सुपारी ले कर दुर्गेश शर्मा ने संतोष की हत्या की थी. काम हो जाने के बाद भी शंकर ने उसे रकम नहीं दी थी. उस हत्या के मामले में शंकर को जेल हो गई थी. उस रकम को ले कर दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ चुका था.
पटना नगर निगम चुनाव के समय दुर्गेश शर्मा को पता चला कि शंकर की बीवी पटना नगर निगम के वार्ड नंबर-24 से चुनाव लड़ रही है. दुर्गेश को लगा कि अगर शंकर की बीवी चुनाव जीत गई, तो उस का राजनीतिक कद बढ़ जाएगा और वह उस पर भारी पड़ने लगेगा.शंकर की हत्या करने का उसे यही बेहतरीन मौका लगा. चुनाव प्रचार के दौरान वह शंकर को आसानी से मार सकता है. दुर्गेश पटना पहुंचा, पर शंकर की हत्या न कर सका.
दुर्गेश शर्मा पहली बार साल 2003 में पुलिस के चंगुल में फंसा था और साल 2006 में वह जमानत पर छूटा था. उस के बाद उस का खौफ इतना बढ़ गया था कि साल 2011 में राज्य सरकार ने उस की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा. उस के बाद भी वह पिछले 6 सालों तक पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहा.
दुर्गेश की बीवी कविता ने पुलिस को बताया कि वह कामाख्या पूजा के लिए जा रही थी कि रास्ते में उस के पति को गिरफ्तार कर लिया गया. पूजा से लौटने के बाद दुर्गेश कोर्ट या पुलिस के सामने सरैंडर करने का मन बना चुका था.
रविकांत की हत्या
16 फरवरी को 45 साला रविकांत पौने 10 बजे अपनी दुकान न्यू सोनाली ज्वैलर्स पहुंचे. दुकान का ताला खुलवाने के बाद साफसफाई की गई. उस के बाद 9 बज कर, 55 मिनट पर रविकांत काउंटर पर बैठ गए. काउंटर पर बैठ कर वे बहीखाता देख रहे थे कि 10 बजे 3 लड़के दुकान में घुसे.एक लड़के ने रविकांत से कहा कि वे सोने की चेन और 2 लाख रुपए तुरंत निकाल दें, नहीं तो जान से मार देंगे.
रविकांत ने कहा कि बारबार रंगदारी देने की उन की हैसियत नहीं है. लड़के ने फिर धमकाया कि रुपया निकालो, नहीं तो बुरा अंजाम होगा. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. तमतमाए लड़के ने 315 बोर के देशी कट्टे से रविकांत के सीने में कई गोलियां दाग दीं. रविकांत वहीं ढेर हो गए. रविकांत के करीबियों ने बताया कि पिछले 3 महीने से रविकांत से 10 लाख रुपए की रंगदारी मांगी जा रही थी.
अपराधी दुर्गेश शर्मा और मुनचुन गोप कई दिनों से रंगदारी मांग रहे थे.जब रविकांत ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो अपराधी सोने के गहनों की मांग करने लगे. एक बार रविकांत ने 36 ग्राम सोने की चेन का बना कर दी, पर इस के बाद भी रंगदारी की मांग जारी रही. रविकांत ने जब रंगदारी देने से मना किया, तो उन की हत्या कर दी गई. रविकांत की दिनदहाड़े हत्या में दुर्गेश शर्मा का नाम सामने आने के बाद भी पुलिस उसे दबोच न सकी. पुलिस उस के गुरगों को ही पकड़ सकी.
दुर्गेश शर्मा का करीबी पगला विक्रम उर्फ राजा समेत रंजीत उर्फ भोला, जितेंद्र कुमार और पप्पू कुमार को पकड़ लिया गया. ये लोग दुर्गेश शर्मा के इशारे पर बोरिंग रोड, राजापुर, मैनपुरा, मंदिरी और दानापुर इलाके में कारोबारियों और ठेकेदारों से रंगदारी वसूलते थे. रविकांत को गोली मारने वाले करमू राय तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच सके.
पगला विक्रम दुर्गेश शर्मा का दाहिना हाथ माना जाता है. मूल रूप से नालंदा का रहने वाला पगला विक्रम रामकृष्णा नगर इलाके में रहता है. राजापुर पुल के पास उस का अड्डा है. पिछले साल जब पगला विक्रम जेल गया, तो दुर्गेश शर्मा ही उस के घर का खर्च चलाता था.
जेल से बाहर आने के बाद पगला विक्रम उस के लिए खुल कर काम करने लगा. दुर्गेश शर्मा की गैरमौजूदगी में वही गिरोह को चलाता था. पिछले साल 12 फरवरी को मैनपुरा के राजकीय मध्य विद्यालय के पास पार्षद रह चुके रंतोष के भाई संतोष की हत्या में भी दुर्गेश शर्मा का नाम आया था. उस के कुछ दिन पहले ही राजापुर पुल के पास मधु सिंह की हत्या में भी उस का नाम उछला था.
छपरा जिले के गरखा थाने के फुलवरिया गांव के रहने वाले दुर्गेश शर्मा ने साल 2000 के आसपास पटना के मैनपुरा इलाके में अपना अड्डा बनाया था. उस के खिलाफ पहला केस 10 अक्तूबर, 2000 को बुद्धा कालोनी थाने में डकैती के लिए दर्ज किया गया था. शुरुआत में उस ने सुलतान मियां के शूटर के रूप में काम किया और सुलतान के गायब होने के बाद उस ने गिरोह की कमान थाम ली थी.
साल 2008 में उस ने आरा में बैंक डकैती की और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उसे बेऊर जेल में बंद किया गया था, पर वह हाईकोर्ट से फर्जी जमानत और्डर पर बाहर निकला था, उस के बाद वह पुलिस के लिए दूर की कौड़ी हो गया. दुर्गेश शर्मा पिछले कई सालों से आरा में रह कर अपना गैंग चला रहा था. वह अकसर अपने गिरोह के लोगों से मिलने पटना और आरा के बीच नेउरा स्टेशन पर आता था. आखिरी बार वह फरवरी, 2015 में पटना आया था.
दुर्गेश शर्मा ने कोलकाता में अपना कारोबार फैला रखा है और वह मोबाइल टावर लगाने का काम कर रहा है. राजापुर पुल के पास वह शौपिंग कौंप्लैक्स बना रहा है. उस में संतोष हत्याकांड में नामजद पप्पू, बबलू, गिरीश और गुड्डू सिंह पार्टनर हैं. एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि दुर्गेश शर्मा और उस के गिरोह के लोगों की जायदाद का पता कर उसे जब्त करने की कार्यवाही शुरू की गई है.