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प्रेम सिंह खेतीकिसानी के अलावा एक बैंक के एटीएम पर गार्ड की नौकरी भी करते थे. परिवार में पत्नी रमा एक बेटी रिंकी और 2 बेटे अंकित व अमित थे.

भाइयों की एकलौती बहन थी रिंकी. चंचल स्वभाव की रिंकी पढ़ाई में तेज थी. वह पढ़लिख कर पुलिस में जाना चाहती थी. पढ़ाई के बाद जब भी समय मिलता तो वह टीवी से चिपक जाती. रिंकी को फिल्म देखने का शौक था. वह टीवी पर आने वाली सभी फिल्में देखती थी. फिल्मों और फिल्मों के गानों का रिंकी पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह अपने आप को किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

चूंकि फिल्मों में प्यारमोहब्बत को हमेशा महिमामंडित किया जाता है, इसलिए रिंकी को भी किसी ऐसे युवक की तलाश थी जो फिल्मी हीरो की तरह उस के सामने प्यारमोहब्बत का प्रस्ताव रखे. उसे चाहे, उसे सराहे. उस के हुस्न की तारीफ करे और उस की याद में तड़पे.

रिंकी के घर से 200 मीटर की दूरी पर मनीष का घर था. मनीष के पिता विश्वनाथ सिंह लोधी खेतीकिसानी करते थे. मनीष का एक छोटा भाई था मंदीप जो बीए की पढ़ाई कर रहा था.

मनीष भी पढ़ाई में तेज था. वह भी पुलिस विभाग में जाना चाहता था. इसी उद्देश्य से वह अपनी पढ़ाई में जी जान से जुटा रहता था. रिंकी की तरह मनीष को भी फिल्मों का जबरदस्त शौक था. पढ़ाई के दौरान वह मनोरंजन के लिए कुछ समय निकाल लेता था.

मनीष पहनावे से संभ्रांत युवक नजर आता था. शरीर पर भी वह विशेष ध्यान देता था. हमेशा फैशनेबल कपड़े पहनता था. मनीष को भी पागलपन की हद तक फिल्में देखने का शौक था. उस के मोबाइल का मेमोरी कार्ड फिल्मों से भरा रहता था. बड़ी स्क्रीन के मोबाइल पर वह जब चाहे अपनी मनपसंद फिल्म देख लेता था. उस पर फिल्मों का असर  इस हद तक था कि उस का बात करने और चलने का स्टाइल भी फिल्मी हो गया था.

मनीष उम्र के उस मोड़ पर था, जहां स्वभाव में आशिकी अपने आप शामिल हो जाती है. मनीष भी इस का अपवाद नहीं था. लव स्टोरी वाली फिल्में देखदेख कर उस का मिजाज भी आशिकाना हो गया था.

मनीष का रिंकी के घर आनाजाना था. दोनों परिवार सजातीय थे. दोनों के घरवाले एकदूसरे के घर आतेजाते थे. रिंकी और मनीष अलगअलग कालेज में पढ़ते थे, फिर भी पढ़ाई को ले कर उन के बीच खूब बातचीत होती रहती थी.

दोनों की आदतें, शौक और विचार मेल खाते थे. पढ़ाई के साथसाथ दोनों के बीच फिल्मों को ले कर भी बातचीत होती थी. दोनों एक ही शौक के शिकार थे. दोनों घंटों बैठ कर बातें करते रहते, जिन में आधी बातें फिल्मों की होती थीं. एक जैसी रूचि के चलते दोनों काफी समय साथसाथ बिताते थे.

इंटरमीडिएट कर के दोनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लग गए. पुलिस विभाग में भरती होती तो दोनों ही फार्म भरते और साथसाथ पेपर देने जाते. साथ समय बिताने और बाहर जा कर घूमते. इसी सब के चलते दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे. वैसे भी हर मामले में दोनों के बीच समानताएं थीं. ऐसे में दोनों के दिल कब तक करीब आने से बच पाते.

समय के साथ दोनों को एकदूसरे का संग खूब भाने लगा था. दोनों साथसाथ रोमांटिक मूवी भी देखते. फिर फिल्म के कलाकारों की नकल करते, उन के डायलौग बोलते और उसी अंदाज में एकदूसरे को बांहों में भर कर आंखों में आंखें डाल कर उसी तरह बोलते जैसे फिल्म में कलाकार करते हैं. इस से दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे.

दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनों की आवाज और सांसों की सरगम को बखूबी महसूस करते थे. दोनों को नजदीकियां अच्छी लगने लगी थीं. जब वे नजदीक होते तो अलग होने की बात को दिमाग में आने ही नहीं देते थे. लेकिन मजबूर हो कर उन्हें एकदूसरे से अलग होना ही पड़ता. फिल्मी कलाकारों के लव सीन की ऐक्टिंग करतेकरते दोनों एकदूसरे से प्यार कर बैठे. अब प्यार का इजहार बाकी था.

एक दिन लव सीन की ऐक्टिंग करतेकरते मनीष ने रिंकी को अपनी बांहों में लिया तो फिल्म के डायलौग न बोल कर उस ने अपने दिल की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘रिंकी, देखता तो मैं तुम्हें बचपन से आया हूं. लेकिन जब से हम ऐक्टिंग के जरिए एकदूसरे के नजदीक आए हैं, तब से मैं ने तुम्हें बेहद करीब से देखा. अब ये नजरें तुम्हारे सिवा कुछ और देखना ही नहीं चाहतीं.

‘‘तुम्हारी झील सी आंखों की गहराइयों में डूब कर तुम्हारे दिल का हाल जाना तो लगा कि तुम्हारा दिल भी मेरे पास आना चाहता है. इस बात की गवाही तुम्हारे दिल की धड़कनें देती हैं.

‘‘मैं तो तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. मुझे अपने प्यार पर भी पूरा भरोसा है कि वह मुझे बेइंतहा चाहता है, बस देर है तो उसे तुम्हारी जुबां से कुबूल करने की.’’

रिंकी तो जैसे उस के प्रेम से सराबोर हो गई और उस की आंखों में देखती हुई फिल्मी स्टाइल में बेसाख्ता बोली, ‘‘कुबूल है…कुबूल है…कुबूल है मेरे महबूब.’’

यह सुन कर मनीष की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने रिंकी को अपने सीने से लगा लिया और बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू रिंकी.’’

उस के प्यार भरे शब्द रिंकी के कानों में रस घोल रहे थे. उसे मीठा सुखद एहसास हुआ तो उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मनीष के कंधे पर सिर रख दिया. काफी देर तक दोनों उसी स्थिति में बैठे रहे. बाद जब दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे.

इस के बाद तो रिंकी और मनीष की तूफानी मोहब्बत तेजी के साथ बुलंदियों की तरफ बढ़ने लगी.

सन 2018 में रिंकी का चयन पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर हो गया. इटावा में टे्रनिंग के बाद उस की पोस्टिंग उरई (जालौन) के थाना रमपुरा में हुई. उरई में वह शहर कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला शिवपुरी में किराए का कमरा ले कर रहने लगी.

दूसरी ओर मनीष बीसीए करने के बाद एलएलबी कर रहा था. उस ने पुलिस विभाग में भरती का फार्म भरा था, जिस का पेपर देने वह कानपुर गया. पेपर देने के बाद वह वहां से घर जाने के बजाय रिंकी के पास उरई चला गया. दोनों में फोन पर बात कर के तय कर लिया था कि मनीष पेपर दे कर कानपुर से सीधे उरई आ जाएगा. मनीष रिंकी के साथ उसी के कमरे पर रहने लगा.

रिंकी को पता था कि उस के पिता प्रेम सिंह गुस्सैल स्वभाव के है. वह उस की मरजी के बजाय उस की शादी अपनी मरजी से कराएंगे. इसलिए उन्हें बिना बताए रिंकी ने मनीष से शादी करने का फैसला कर लिया. 8 फरवरी, 2019 को 2 रिश्तेदारों की मौजूदगी में दोनों ने उरई के राधाकृष्ण मंदिर में विवाह कर लिया.

रिंकी के विवाह कर लेने की बात पिता प्रेम सिंह को लगी तो वह आगबबूला हो उठा.

उस ने मनीष के घर जा कर उस के पिता विश्वनाथ सिंह को खूब खरीखोटी सुनाई और मरनेमारने पर उतारू हो गया. उस ने मनीष के पिता विश्वनाथ से कहा कि जिस तरह उस के बेटे ने उस की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया है. उसी तरह भविष्य में एक दिन वह भी उस के परिवार की लड़की की ऐसे ही बिना मरजी के शादी करवा कर मानेगा. गांव वालों ने जैसेतैसे दोनों का बीचबचाव किया.

प्रेम सिंह को लगता था कि रिंकी ने अपनी मरजी से शादी कर के गांव में उस की नाक कटवा दी है.

इस में वह मनीष को दोषी मान रहा था कि उस ने ही रिंकी को बरगलाया होगा. जब बेटी कमाने लायक हुई तो अपनी मरजी से शादी कर के घर से दूर हो गई.

हालांकि रिंकी घर नहीं जाती थी लेकिन अपने वेतन में से कुछ रकम घर भेज दिया करती थी. जब रिंकी 7 माह की गर्भवती हुई तो उस ने मातृत्व अवकाश ले लिया, जिस से बच्चे की डिलीवरी और उस की देखभाल अच्छी तरह से हो सके.

घर में नए मेहमान के आने की खुशी में दोनों खुश थे. रिंकी ने जो चाहा था, वह उसे सब मिल रहा था. पहले पुलिस में नौकरी, जिसे चाहा उस का जीवन भर का साथ और अब उस के प्यार की निशानी जिंदगी में आने वाली थी. रिंकी मनीष को अपनी जान से भी ज्यादा चाहती थी. उस के आने से ही उस की जिंदगी में खुशी के रंग बिखरे थे.

इसी साल अपै्रल में रिंकी ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दोनों ने शिवाय रखा. समय कुछ आगे बढ़ा तो दोनों शिवाय के मुंडन संस्कार की तैयारी करने लगे. इस वजह से रिंकी ने घर पैसा भेजना बंद कर दिया.

दूसरी ओर प्रेम सिंह पहले से ही जलाभुना बैठा था. वह समय की ताक में था. माथे पर लगा बदनामी का दाग प्रेम सिंह को दिनरात चैन नहीं लेने देता था. प्रेम सिंह ने अपने साले देशराज सिंह को घर बुला कर इस मुद्दे पर बात की, उस समय प्रेम सिंह का बेटा अंकित भी मौजूद था.

देशराज फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव सुखपुर का निवासी था. करीब 6 साल पहले उस ने गौसपुर में ही मकान बनवा लिया था. वह अपनी मां के साथ रहता था. उस की पत्नी और बच्चे उस के साथ नहीं रहते थे. देशराज अपराधी किस्म का था, वह कई बार जेल भी जा चुका था.

प्रेम सिंह ने अपने बेटे अंकित और साले देशराज के साथ मिल कर मनीष और रिंकी की हत्या की योजना बनाई. प्रेम सिंह के मन में दोनों के लिए इतनी नफरत थी कि वह दोनों को जिंदा नहीं देखना चाहता था.

योजनानुसार 22 अगस्त को अंकित अपनी बहन रिंकी के घर गया. भाई अंकित को घर आया देख रिंकी बहुत खुश हुई कि वह  उस से मिलने और अपने भांजे को देखने आया है.

जबकि अंकित वहां रेकी करने आया था. सारी स्थिति का मुआयना करने के बाद चलते समय उस ने रिंकी से मोबाइल खरीदने के लिए 10 हजार रुपए मांगे. रिंकी ने उसे 4 हजार रुपए दिए और कहा कि इस समय उस के पास इस से ज्यादा पैसे नहीं है.

अंकित उन रुपयों को ले कर वहां से चला आया. आ कर उस ने अपने पिता और मामा देशराज को सारी स्थिति से अवगत करा दिया.

27 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे प्रेम सिंह, देशराज और अंकित रिंकी के शिवपुरी वाले किराए के कमरे पर पहुंचे. पिता, मामा और भाई को एक साथ घर आया देख रिंकी खुशी से फूली नहीं समाई.

वह उन के लिए खाना बनाने के लिए किचन में चली गई. उस समय मनीष बेटे शिवाय को बैड पर लिटा कर दूध पिला रहा था. रिंकी के किचन में जाते ही प्रेम सिंह ने देशराज को इशारा किया तो देशराज ने किचन में जा कर रिंकी को दबोच लिया.

इधर प्रेम सिंह ने अंकित के साथ मिल कर मनीष को दबोच लिया. साथ में लाए 2 चाकुओं से दोनों ने मनीष के पेट पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. बेदर्दी से वार करते हुए प्रेम सिंह का चाकू तक टूट गया. मनीष की चीखों से कमरा और आसपास के लोग दहल उठे.

रिंकी यह सब देख कर बदहवास हालत में चीखनेचिल्लाने लगी. शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. तब तक मनीष की हत्या की जा चुकी थी. अपने आप को लोगों से  घिरा देख कर तीनों ने भागने की कोशिश नहीं की. तीनों कमरे में ही बैठ गए. उन्हें रिंकी को मारने का मौका नहीं मिला.

इसी बीच किसी पड़ोसी ने घटना की सूचना शहर कोतवाली को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर जे.पी. पाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तीनों हत्यारों को हिरासत में लेने के बाद उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

मनीष के पेट पर लगभग 15-16 घाव थे. पास में ही 2 रक्तरंजित चाकू पड़े थे, जिन्हें इंसपेक्टर पाल ने अपने कब्जे में ले लिया. प्रेम सिंह और अंकित के चेहरे व हाथ पर खून के निशान मौजूद थे, जो उन की करनी की गवाही दे रहे थे.

आवश्यक पूछताछ के बाद इंसपेक्टर जे.पी. पाल ने बदहवास रिंकी को उस के बच्चे के साथ उरई में ही एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया और कमरे को सील कर के तीनों हत्याभियुक्तों को साथ ले कर कोतवाली आ गए.

कोतवाली आ कर उन्होंने रिंकी को वादी बना कर प्रेम सिंह लोधी, देशराज सिंह लोधी और अंकित सिंह लोधी के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अगले दिन 28 अगस्त को तीनों हत्याभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक केस से संबंधित सभी साक्ष्य पुलिस द्वारा संकलित किए जा चुके थे. जल्द ही आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर देने की बात पुलिस द्वारा कही जा रही थी.

एक ससुर द्वारा दामाद को दिया जाने वाला ‘मौत का आशीर्वाद’ की चर्चा चारों ओर फैल चुकी थी. लोग उस के कुकृत्य पर उसे कोस रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

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