अंधविश्वास हमारे समाज में अमरवेल की तरह फल फूल रहा है.और इसको खाद पानी देने का काम धर्म के ठेकेदार पंडो , पुजारियों के द्वारा बखूबी किया जा रहा है. समाज में फैले तरह-तरह के अंधविश्वास लोगों की जेब से रुपए पैसे तो ऐंठते ही हैं, साथ ही जरा सी असावधानी की वजह से जान माल का नुक़सान भी कर रहे हैं.अंधविश्वास के शिकार दलित, पिछड़ों के साथ पढ़े लिखे नौकरी पेशा लोग भी हो रहे हैं.
एक ऐसा ही ताजा मामला मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में देखने को मिला है. लोगों को न्याय देने जज की कुर्सी पर बैठने वाले एक अंधविश्वासी शख्स की नासमझी ने अपने साथ अपने पुत्र की जान भी गंवा दी. बताया जा रहा है कि जज के एक महिला मित्र से संबंधों की बजह से परिवार में कलह चल रही थी, जिससे छुटकारा पाने जज साहब तंत्र मंत्र के चक्कर में पड़ गये.
बैतूल जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश महेन्द्र कुमार त्रिपाठी और इसके दो बेटे अभियान राज त्रिपाठी, और छोटा बेटा आशीष राज त्रिपाठी ने 20 जुलाई 2020 को रात्रि 10.30 बजे के लगभग एक साथ बैठकर डायनिंग टेबल पर खाना खाया. कुछ समय बाद अचानक वे तीनों उल्टीयां करने लगे . जिस भोजन में परोसी गई रोटियों की बजह से तीनों की तबीयत खराब हुई ,वह जज साहब की पत्नी श्रीमती भाग्य त्रिपाठी ने तैयार की थी.
जज साहब की पत्नी ने दोपहर की बची रोटियां खाई थी, इस कारण उन्हें कुछ नहीं हुआ. 21 एवं 22 जुलाई तक जज साहब और इनके बेटो का इलाज न्यायाधीश आवास परिसर बैतूल में ही चलता रहा. 23 जुलाई को जिला चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ. आनद मालवीय की सलाह पर जज साहब व इनके दोनो बेटों को पाढर अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया.
छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी की तबीयत में सुधार होने के कारण वह घर पर ही रहे .25 जुलाई को शाम के समय जज साहब एवं इनके बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की तबीयत अचानक ज्यादा खराब होने से इन्हे नागपुर के प्रतिष्ठित एलेक्सिसी अस्पताल ले जाया गया . जहां अस्पताल के चिकित्सको ने अभियान राज त्रिपाठी को मृत घोषित किया. और जज श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी का ईलाज चलता रह . 26 जुलाई को प्रातः 04.30 बजे के लगभग जज महेन्द्र त्रिपाठी की भी मौत हो गई.
दोनो पिता पुत्र की मृत्यु के बाद नागपुर के मानकापुर पुलिस थाने में एफआईआर जज के छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी ने दर्ज कराते हुए पुलिस को बताया कि नागपुर आते समय उसके पिता महेन्द्र त्रिपाठी ने रास्ते में उसे बताया था कि उनकी किसी परिचित महिला संध्या सिह ने उन्हें किसी पंडित से पूजा पाठ करवा कर गेहूं का आटा दिया था और कहा था कि आटा घर के आटे में मिलाकर खाना बनाना . उसी आटे से तैयार रोटी खाने के बाद फुड पाईजनिग से उसके पापा और भाई की मौत हो गई.
न्यायिक क्षेत्र का मामला होने से पुलिस अधीक्षक द्वारा सम्पूर्ण जांच पड़ताल हेतु विशेष कार्य दल का गठन किया गया . इसी संदर्भ में जज महेन्द्र कुमार त्रिपाठी के घर से 20 जुलाई को प्रयुक्त शेष आटे के पैकेट को जप्त कर जांज के लिए लैब भेजा गया. लैब से आई रिपोर्ट में आटे में जहर मिले होने की पुष्टि हुई. पुलिस की जांच में जो कहानी सामने आई वह चौकाने वाली थी.
मूलतः रीवा निवासी श्रीमति संध्या सिंह विगत कई वर्षों से छिन्दवाडा में रहकर एन.जी.ओ चलाती है . महिलाओं को कानूनी सलाह देने जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की वजह से जज महेन्द्र त्रिपाठी से नजदीकियां हो गई थी . चूंकि जज बैतूल में अकेले रहते थे, तो अक्सर दोनों की मेल मुलाकात होती रहती थी संध्या जज साहब से रूपए पैसों की मांग भी करने लगी थी.
लाक डाउन की बजह से जज साहब की पत्नी व वेटों के बैतूल आ जाने के कारण से संध्या विगत चार माह से जज से नहीं मिल पा रही थी. परेशान होकर उसने छिन्दवाड़ा में अपने ड्रायवर संजू , संजू के फूफा देवीलाल चन्द्रवशी और बाबा रामदयाल के साथ मिलकर एक योजना बनाई. योजना के अनुसार श्रीमति संध्या सिंह ने बैतूल आकर जज साहब से उनके घर से आटा मंगवाया और वही आटा पन्नी में भरकर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया गया .
दो दिन बाद बाबा उर्फ रामदयाल ने आटे में जहर मिला कर संध्या को दे दिया. 20 जुलाई को सर्किट हाउस बैतूल में संध्या और जज ने एकांत में मुलाकात की. संध्या सिंह ने बाबा की पूजा वाला जहरीला आटा जज साहब को देते हुए कहा-
“बाबा ने इस आटे को तंत्र मंत्र से सिद्ध किया है, इसकी रोटी खाने से सारी परेशानियां दूर हो जायेगी और हमारा मिलना जुलना आसान हो जाएगा.”
घर आकर इसी तंत्र मंत्र वाले आटे को जज साहब ने घर में रखे आटे के डिब्बे में मिला दिया. इसी आटे की रोटी खाने के बाद जज साहब और इनके दोनो बेटो की तबीयत खराब हुई और अंत में जज महेन्द्र कुमार त्रिपाठी और इनके बड़े बेटे श्री अभियान राज त्रिपाठी की मौत हो गई .
एक पढ़ें लिखे उच्च पद पर काम करने वाले जज की यह कहानी बताती है कि हम किस तरह आंख मूंदकर तंत्र मंत्र और चमत्कारों पर विश्वास करने लगते हैं. अपनी गर्लफ्रेंड के प्यार में अंधे कानूनी पढाई वाले जज ने कैसे विश्वास कर लिया कि बाबा द्वारा दिए गए इस आटे के टोटके से घर की परेशानियां दूर हो जायेगी.
आज भी विज्ञान के युग में भले ही हम आधुनिक तकनीक का उपयोग कर अपने आपको माडर्न समझने लगे हैं, परन्तु हमारे समाज में वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई है. जब हमारे देश के वैज्ञानिक चंद्रयान की सफलता के लिए पूजा पाठ और हवन करते हो, देश के रक्षा मंत्री राफेल विमान की नारियल और नींबू से पूजा करते हों,तो फिर समाज के दूसरे वर्ग से क्या उम्मीद की जा सकती हैं.
अंधविश्वास का आलम ये है रोज सोशल मीडिया पर देवी देवताओं की पोस्ट वाले मेसैज 5 ग्रुप में फारवर्ड करने की अपील पर हम बिना सोचे समझे भेड़ चाल चलने लगते हैं. ज्ञान विज्ञान और समाज को जागरूक करने वाली पत्रिकाओं को पढ़ने की रूचि लोगों की खत्म होती जा रही है.
ऐसे में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएं सरिता, सरस सलिल, मुक्ता, गृहशोभा समाज में फैले पाखंड और अंधविश्वास के प्रति समाज को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इसी तरह सत्यकथा और मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित अपराध कथाओं में यह सीख प्रमुखता से दी जाती है कि अपराध का अंजाम सुखद नहीं होता. नशा, अंधविश्वास, धार्मिक आडंबर और अपराध पैसे से तंगहाली लाकर हमें बर्बाद की ओर ले जाते हैं.