सन 2018 के आखिरी महीने में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री कमलनाथ, तभी से डाकुओं के बुरे दिन शुरू हो गए थे, लेकिन बीहड़ों से डाकुओं को एकदम उखाड़ फेंकना कोई हंसीखेल नहीं है. चंबल में दस्युओं का आतंक कुछ थमा, लेकिन विंध्य में सिर उठाता दिखाई दिया. विंध्य का आतंक पुलिस महकमे के लिए खासी चुनौती और सिरदर्द बना हुआ था. सरकार की हरी झंडी मिलते ही पुलिस महकमे ने इस साल बारिश के बाद डकैतों के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो उसे हैरतअंगेज तरीके से सफलताएं भी मिलीं.

रीवा, सतना ओर धार्मिक नगरी चित्रकूट में आए दिन जघन्य वारदातों को अंजाम देने वाले कुख्यात दस्यु सरगना बबुली कौल को बीती 15 सितंबर को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार गिराया. उस के मारे जाने से मध्य प्रदेश के साथ साथ उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी चैन की सांस ली थी.

बबुली कौल गैंग का सफाया कोई मामूली काम नहीं था, लेकिन पुलिस वालों ने उसे अंजाम दिया तो एक बार लग रहा था कि विंध्य भी अब दस्युओं से आजाद हो गया है. लेकिन पुलिस के आला अफसर पूरी तरह निश्चिंत नहीं थे. अब उन्हें जंगल की शेरनी के खिताब से नवाजी गई साधना पटेल की तलाश थी.

किसी भी डाकू और उस के गिरोह के खौफ का पैमाना केवल यह नहीं होता कि उस ने कितनी हत्याएं और अपहरण किए या लूट की कितनी वारदातों को अंजाम दिया, बल्कि यह होता है कि पुलिस ने उस के सिर पर इनाम कितने का रखा है.

बबुली कौल इस लिहाज से सब से ऊपर था, जिस पर पुलिस ने 7 लाख रुपए इनाम घोषित किया हुआ था और उस का भरोसेमंद साथी लवकेश, जो उस का साला भी था, के सिर पर 1.80 लाख का इनाम था. लंबी कवायद और मशक्कत के बाद ये दोनों एक मुठभेड़ में मारे गए. तबखासी चर्चा यह भी हुई थी कि डकैतों को पुलिस ने नहीं मारा, बल्कि ये तो लूट के पैसों के बंटवारे की आपसी लड़ाई में मारे गए हैं. सच कुछ भी हो लेकिन कामयाबी का सेहरा पुलिस के सिर ही बंधा.

बबुली कौल के खात्मे से उत्साहित पुलिस वालों ने अब महज 21 वर्षीय साधना पटेल को निशाने पर ले लिया था, जो अब तक भले ही छोटीमोटी वारदातों को अंजाम देती रही हो, लेकिन भविष्य में वह भी बड़ा खतरा बन सकती है. इस तरह की आशंका को कोई भी खारिज नहीं कर रहा था.

बबुली कौल गिरोह के इनामी और गैरइनामी डाकू एकएक कर पुलिस के हत्थे चढ़ने लगे तो पुलिस काररवाई से घबराई साधना पटेल नाम की यह कमसिन शेरनी शहर की तरफ भाग गई. साधना को समझ आ गया था कि अगर बीहड़ छोड़ कर नहीं भागी तो पुलिस कभी भी उसे धर लेगी.

लिहाजा उसे बेहतर यही लगा कि स्थिति शांत होने तक झांसी या दिगी में जा कर रहा जाए, जहां उसे कोई नहीं पहचानता और न ही पुलिस वहां तक पहुंचेगी.

हमेशा जींस का टाइट पैंट और शर्ट पहनने वाली खूबसूरत साधना पटेल अपने वर्तमान प्रेमी छोटू पटेल के साथ पहले झांसी गई और फिर दिगी. अगस्त का पहला सप्ताह था, जब साधना ने आम औरतों की तरह साड़ी पहनी और शहर की भीड़ में कहीं गुम हो गई.

इधर पूरे विंध्य इलाके खासतौर से चित्रकूट में पुलिस की रैकी और मुखबिरी किसी काम नहीं आ रही थी. पुलिस की भाषा में साधना अंडरग्राउंड तो थी लेकिन वह है कहां, उस ने इस की हवा किसी को नहीं लगने दी थी.

बबुली कौल के मारे जाने और साधना के यूं एकाएक लापता होने से इलाके में वारदातें तो नहीं हुई थीं, लेकिन पुलिस को डर था कि साधना बीहड़ों में ही कहीं छिपी हो सकती है. संभव है, वह किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रही हो.

दिगी और झांसी में उस की तलाश में पुलिस ने छापेमारी की थी, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी. हालांकि पुलिस ने साधना के गैंग के 5 नामी और इनामी डकैतों दीपक शिवहरे, मूरत कौल, रिंकू शिवहरे, धनपत उर्फ धन्नू और दादू सिंह उर्फ पट्टीदार सिंह को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल कर ली थी.

लेकिन साधना की लोकेशन के बाबत ये लोग कुछ खास नहीं बता पाए थे. और जो बता पाए थे उसे पुलिस ने अपनी जानकारियों से जोड़ा तो साधना की कहानी कुछ इस तरह आकार लेती नजर आई.

चित्रकूट का एक गांव है रामपुर पालदेव, जो भरतपुर इलाके में आता है. इस गांव के बुद्धिविलास पटेल की 3 संतानें हैं, जिन में साधना सब से बड़ी है, उस से छोटे 2 भाई हैं.

बुद्धिविलास का याराना इस इलाके के एक खूंखार डाकू चुन्नीलाल पटेल से था, जो जबतब उन के घर देखा जाता था. साधना चुन्नीलाल को चाचा कह कर बुलाती थी और जब भी वह आता था तो उस की नाजुक अंगुलियां उस की बंदूक पर थिरकने लगती थीं.

पूतनी के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं, लिहाजा साधना के रंगढंग और तेवर देख कर एक दिन चुन्नीलाल ने साधना के बारे में यह भविष्यवाणी कर दी कि देखना एक दिन यह पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

साधना हालांकि पढ़ाईलिखाई में ठीकठाक थी, लेकिन उस का मकसद कुछ और था, जो उस की उम्र को देख कर हैरान कर देने वाला इस लिहाज से नहीं था कि डकैती की पाठशाला तो उस के घर में ही लगती थी और साधना हर बार उस की चश्मदीद गवाह होती थी. सीधेसीधे कहा जाए तो डाकू बनने के संस्कार उसे बचपन में ही मिल गए थे.

बुद्धिविलास की चिंता जवान होती बेटी का भविष्य कम, बल्कि उस का वर्तमान ज्यादा था. दरअसल, साधना को कम उम्र में ही सैक्स का चस्का लग चुका था. गांव के कई युवकों से वह सैक्स संबंध बना चुकी थी. जाहिर है, गांवों में इस तरह की बातें दबीछिपी नहीं रहतीं. ये बातें जब बुद्धिविलास के कानों में पड़ीं, तो वह घबरा उठा. यह बात भी उसे समझ आ गई थी कि साधना अब उस के रोके से नहीं रुकने वाली.

एक दिन उन्होंने बेटी को अपनी बहन यानी उस की बुआ के पास भागड़ा गांव भेज दिया. शुरू में तो इस गांव में उस का मन नहीं लगा, लेकिन जल्द ही आदत के मुताबिक वह एक युवक से दिल लगा बैठी. कोई शक न करे, इसलिए उसे अपना भाई बना लिया.

गांवों में अभी भी ऐसे मुंहबोले रिश्तों की अहमियत होती है, इसलिए साधना की बुआ उस की तरफ से लापरवाह हो गई. वैसे भी उसे साधना से कोई खास लेनादेना नहीं था.

एक दिन साधना यह जान कर हैरान रह गई कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी था. यह जान कर तो उस की आंखें फटी रह गईं कि चुन्नी चाचा और बुआ के नाजायज संबंध हैं और चुन्नी चाचा इसी जरूरत के लिए आता है.

सैक्सी साधना ने डाकू बनने की ठानी

साधना के लिए मर्द का यह रूप एक अलग अनुभव था कि चुन्नीलाल पटेल नाम के जिस डाकू के नाम से ही विंध्य इलाके के लोग थरथर कांपते थे, वह उस की बुआ के आगे गुलामों की तरह सिर झुकाए सैक्स के लिए मनुहार करता था.

काफी कुछ समझ चुकी साधना चुप रही और अपने प्रेमी के साथ बदस्तूर सैक्स संबंध बनाती रही, जिस के घर आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी. लेकिन ऐसे संबंध छिपाए नहीं छिपते वाली बात सच निकली. एक दिन बुआ ने उसे प्रेमी के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

पकड़े जाने पर साधना यह सोच कर घबरा उठी कि अब बुआ चुन्नी चाचा से शिकायत करेगी, जो उसे व उस के प्रेमी को गोली से उड़ा देने में सेकंड भर नहीं लगाएगा. इसी घबराहट में वह बीहड़ों में कूद गई.

यह तो आखिर एक दिन होना ही था कि आज नहीं तो कल डाकू बनने की ठाने बैठी साधना बीहड़ों की शरण लेगी, लेकिन इस तरह लेगी, इस की उम्मीद शायद उस ने भी कभी नहीं की होगी. कुछ दिन उस का आशिक या भैया जो भी कह लें, उस के साथ बीहड़ों में रहा.

इसी दौरान साधना की मुलाकात एक डाकू नवल धोबी से हुई, जिस के नाम और धौंस का सिक्का चुन्नीलाल पटेल के बराबर ही चलता था. चुन्नीलाल पटेल औरतों के मामले में जितना कमजोर और अय्याश था, नवल धोबी उतना ही सख्त और उसूल वाला था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों को बरबाद कर देती हैं. इसलिए वह न तो औरतों को गिरोह में शामिल करता था और न ही उन्हें पास फटकने देता था.

साधना का गदराया बदन और उफनती जवानी देख नवल धोबी के सारे उसूल चटचट कर टूट गए और उस ने साधना को न केवल अपने गिरोह में बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

साधना अब उस की रखैल बन चुकी थी. इस नाते नवल के गिरोह में उस का खासा दबदबा था. आखिरकार वह सरदार की ‘वो’ भी थी. नवल के साथ साधना ने सिर्फ सैक्स सुख ही नहीं लिया बल्कि हथियार चलाने की बाकायदा ट्रेनिंग भी उसे यहीं मिली. वह कई वारदातों में गिरोह के साथ रही.

उस ने डकैती के तमाम गुर बहुत जल्द सीख लिए, लेकिन इस दौरान उस ने नवल के अलावा किसी और मर्द की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा. साधना समझ गई थी कि खूंखार नवल उस की बदचलनी बरदाश्त नहीं करेगा.

तकरीबन डेढ़ साल का अरसा मौजमस्ती और वारदातों में सुकून से गुजरा, लेकिन कुछ दिन बाद ही नवल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. साधना अघोषित तौर पर उस के गिरोह की वारिस घोषित हो चुकी थी, लिहाजा उस ने इस गिरोह को तितरबितर होने से बचाया और खुद सरदार बन कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सदस्य उसे इज्जत से साधना जीजी कहते थे. लेकिन अपनी मरजी और जरूरत के मुताबिक साधना उन में से किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेती थी.

ऐसे हुई चर्चित

गिरोह और अपने गुजारे के लिए साधना छोटीमोटी वारदातों को ही अंजाम देती थी. ऐसा नहीं कि वह डरपोक थी या किसी बड़ी वारदात का मौका उसे नहीं मिल रहा था. इस की अहम वजह यह थी कि साधना के पास सीमित विकल्प थे और पुलिसिया दखल बीहड़ों में बढ़ता जा रहा था.

फिर भी उस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह ऐसी किसी वारदात को अंजाम दे जिस से दौलत के साथ साथ शोहरत भी मिले. उस ने अब तक जितनी भी वारदातों को अंजाम दिया था, उन में से किसी में भी उस के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हुआ था.

साल 2018 में साधना ने पहला बड़ा कदम तब उठाया, जब उस ने नयागांव थाने के तहत आने वाले गांव पालदेव के छोटकू सेन नाम के आदमी को अगवा कर लिया. साधना को लगता था कि छोटकू गड़े धन के बारे में जानता है लेकिन उस का यह अंदाजा गलत निकला. जब छोटकू कुछ नहीं बता पाया तो उस ने उस की दसों अंगुलियां बेरहमी से काट डालीं.

छोटकू जैसेतैसे इस गिरोह की गिरफ्त से छूटा तो सीधे थाने जा पहुंचा. इस तरह पहली एफआईआर साधना के नाम दर्ज हुई, जिस से इलाके में उस की चर्चा उम्मीद के मुताबिक हुई. इस के बाद साल भर में साधना के खिलाफ आधा दर्जन और मामले दर्ज हुए, जिन्होंने उसे जंगल की शेरनी और बैंडिट क्वीन जैसे खिताबों से नवाज दिया.

एक और बड़ी वारदात को अंजाम देने की गरज से साधना ने पालदेव गांव के ही एक युवक छोटू पटेल को उठवा लिया. छोटू के पिता ने 6 अगस्त, 2019 को नयागांव थाने में बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए उस के अगवा हो जाने का शक जताया था.

लेकिन ऐसा कुछ था नहीं, छोटू साधना का एक और आशिक था, जिस के साथ वह जंगल में देह सुख लेती थी. 2-4 घंटे के मिलन के बाद छोटू गांव वापस चला जाता था. पुलिस की जानकारी में यह बात आई तो उस ने उसे भी डाकू घोषित कर के उस के सिर पर 10 हजार रुपए का इनाम रख दिया.

इस से घबराया छोटू हमेशा के लिए साधना के साथ बीहड़ों में चला गया और बाकायदा डकैत बन गया. डकैतों की दुनिया में अब छोटू पटेल और साधना पटेल के इश्क के चर्चे चटखारे ले कर सुनाए जाने लगे. यही वह वक्त था जब पुलिस ने बबुली कौल को एनकाउंटर में मार गिराया था.

डकैतियां डालतेडालते साधना अभी थकी नहीं थी क्योंकि इस पेशे में आए उसे 4 साल भी पूरे नहीं हुए थे. लेकिन वह समझने लगी थी कि न जाने पुलिस की किस गोली पर उस का भी नाम लिखा हो.

लगता ऐसा है कि कई युवकों से सैक्स संबंध बनाने के बाद वह छोटू से शादी कर घर बसाने की बात सोचने लगी थी, इसलिए अहतियात भी बरतने लगी थी. उस ने चुन्नी चाचा से ले कर बबुली कौल तक का हश्र देखा था.

50 हजार की ईनामी बनी साधना

पुलिस की बढ़ती गतिविधियां देख वह छोटू के साथ दिगी चली गई, लेकिन 3 महीनों में ही जमापूंजी खर्च हो गई तो उसे लगा एक जोखिम और उठाया जाए. यह साधना की जिंदगी की पहली बड़ी भूल साबित हुई.

सतना के पुलिस अधीक्षक रियाज इकबाल साधना को ले कर संजीदा थे. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. जैसे ही नवंबर के महीने में वह चित्रकूट आई तो यह खबर एसपी औफिस तक जा पहुंची.

17 नवंबर को पुख्ता तैयारियों के साथ पुलिस टीम ने साधना को कडियन मोड़ के जंगल में हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया. इस टीम में रियाज इकबाल के अलावा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गौतम सोलंकी सहित आसपास के थानों के थानाप्रभारी शामिल थे.

भागने के बजाय साधना ने जान बचाने के लिए गिरफ्तार होना बेहतर समझा. इस तरह बड़ी आसानी से 50 हजार की इनामी डकैत सुंदरी साधना पटेल भी पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी 30 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था. हालांकि वहां उस के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था, लेकिन साधना की दहशत सीमाओं की मोहताज नहीं थी.

अब पुलिस बेफिक्र है कि विंध्य से डकैतों का सफाया हो चुका है लेकिन यह उस की गलतफहमी भी साबित हो सकती है. वजह पुलिस को यह नहीं मालूम रहता कि घने बीहड़ों में कब कोई नवल, चुन्नी, बबुली या साधना डकैत बनने कूद पड़े और धीरेधीरे एक संगठित गिरोह बना कर वारदातों को अंजाम देने लगे.

आमतौर पर लोग डकैतों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बजाय खामोश रहना पसंद करते हैं, क्योंकि उन से उन की जान को हमेशा खतरा बना रहता है और पुलिस हर वक्त उन की हिफाजत के लिए साथ नहीं रह सकती.

साधना अब जेल में है. साफ दिख रहा है कि उसे सजा कम होगी, क्योंकि उस के खिलाफ दर्ज मामले छोटे हैं और अधिकांश में कोई गवाह या सबूत भी नहीं मिलने वाला. साधना एक बहुत बड़ा खतरा बनने से पहले गिरफ्तार हो गई तो जरूरत उस के सुधार की संभावना भी है.

उस के डाकू बनने का जिम्मा पिता बुद्धिविलास पर थोपा जा सकता है, लेकिन खुद साधना सैक्स की लत का शिकार कम उम्र में हो गई थी और बीहड़ चुनने का उस का मकसद डकैती कम बल्कि स्वेच्छा से किसी भी मर्द के साथ सैक्स संबंध बनाना ज्यादा लगता है. शायद इसीलिए वह बैंडिट क्वीन के बजाय सैक्सी क्वीन बन कर रह गई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...