पूजा के नजदीक कंबल में लिपटे नवजात पर एक नजर डालते ही सुषमा खुशी से चहकी, “तेरा बेटा चांद जैसा है बेटी.”
“नजर लगाओगी क्या मम्मी अपने पोते को?” पास में खड़े जगबीर ने प्यार से अपनी सास को टोका.
“नहीं, मेरी नजर तो दुश्मन को भी नहीं लगती, यह तो मेरे घर का चिराग है.” सुषमा हंस कर बोली, “बताओ, क्या नाम रखोगे अपने लाल का?”
“मैं ने अक्षय नाम सोचा है मम्मी.” जगबीर ने प्यार भरी नजर से अपने बेटे की ओर देख कर पत्नी से पूछा, “क्यों, तुम्हें अक्षय नाम कैसा लग रहा है पूजा?”
“आप नाम रख रहे हैं तो अच्छा ही है.” पूजा मुसकरा कर बोली.
वहीं पर जगबीर की बड़ी साली गीता भी अपने 4 महीने के बेटे आयुष के साथ थी. वह पूजा की देखभाल के लिए आई थी. वह भी बोली, “अक्षय नाम तो बहुत अच्छा है.”
जगबीर कुछ कहता, तभी गार्ड ने वहां आ कर कहा, “आप लोग अब बाहर जाइए, मिलने का वक्त समाप्त हो गया है, चलिए बाहर…”
“अपना और मुन्ने का ध्यान रखना पूजा.” जगबीर ने कहा, “हम बाहर यहीं बरामदे में हैं. किसी चीज की जरूरत पड़े तो बुलवा लेना.”
“ठीक है.” पूजा ने धीरे से कहा.
पूजा की बहन गीता, मां सुषमा और पति जगबीर उस वार्ड से निकल कर बाहर बरामदे में आ गए. यहां पर अंदर वार्ड में अपने मरीज की तीमारदारी के लिए आए हुए घर वालों ने अपनीअपनी चादर दरी बिछा रखी थी. सुषमा और जगबीर ने एक खाली जगह पर चादर बिछा ली और बैठ गए.
“चाय लाऊं मम्मी?” जगबीर ने पूछा.
“चाय रहने दो बेटा, मन नहीं कर रहा.”
जगबीर, उस की सास और बड़ी साली गीता अस्पताल के बरामदे में ही लेट गए. इस दौरान उन के पास एक युवक आया था, जिस ने उन से मेलजोल बढ़ा लिया था. वह युवक सुबह भी वहीं था. गीता के 4 वर्षीय बेटे आयुष को वह बहुत दुलार कर रहा था. उसे वह खिलाता, इधरउधर घुमाता, फिर वहीं छोड़ जाता था. आयुष भी उस से काफी घुलमिल गया था. उस युवक ने गीता को मुंहबोली बहन बना लिया था. यानी उस युवक ने गीता और उस के बेटे का विश्वास जीत लिया था. गीता का भाई विजय भी अस्पताल पहुंचा तो उस युवक ने विजय से भी दोस्ती सी कर ली.
कुछ समय बाद जगबीर अपनी सास को छोडऩे के लिए अस्पताल से बाहर आया तो उस समय गीता अपने 4 वर्षीय बेटे आयुष को दूध पिलाने लगी. उसी समय गीता के मोाबइल पर छोटी बहन पूजा ने फोन किया. वह बोली, “दीदी, मुझे भूख लगी है, मुझे आ कर खाना खिला दो.”
उस समय गीता का भाई विजय वहीं था. गीता अपने बेटे को विजय के पास छोड़ कर पूजा को खाना खिलाने के लिए वार्ड में चली गई. तभी वह युवक भी विजय के पास पहुंचा. वह आयुष को खिलाने के बहाने से ले गया. विजय ने यही सोचा कि हर बार की तरह वह आयुष को थोड़ी देर में घुमाफिरा कर ले आएगा.
थोड़ी देर बाद वार्ड से गीता वापस आई तो उस ने आते ही विजय से आयुष के बारे में पूछा. कुछ देर तक जब वह युवक आयुष को ले कर नहीं लौटा तो दोनों भाईबहन ने उसे अस्पताल में इधरउधर खोजा लेकिन न तो आयुष दिखा और न ही वह युवक. इस के बाद उन्होंने पुलिस को बच्चा चोरी की सूचना दे दी.
पुलिस आ गई हरकत में
दिल्ली के थाना नार्थ रोहिणी के एसएचओ भूपेश कुमार को कंट्रोल रूम से सूचना दी गई कि अंबेडकर अस्पताल से एक बच्चे को चुरा लिया गया है. अस्पताल से बच्चा चोरी की खबर सुनते ही एसएचओ भूपेश कुमार तुरंत रजिस्टर में अपनी रवानगी दर्ज करा दी और अपनी टीम के साथ अंबेडकर अस्पताल पहुंच गए.
6 फरवरी, 2023 और दिन सोमवार था. भूपेश कुमार सोमवार को अपने लिए शुभ मानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह चोरी हुए बच्चे को अवश्य ही तलाश कर लेंगे. वह चोरी हुए बच्चे की मां गीता के पास पंहुचे. गीता अभी भी रो रही थी. जगबीर बड़ी साली को दिलासा दे रहा था. एसएचओ भूपेश कुमार ने उस के चेहरे पर नजरें डाल कर सहानुभूति से पूछा, “क्या तुम्हारा ही बच्चा चोरी किया गया है.”
“जी,” गीता ने सिर हिलाया.
“तुम कहां रहते हो?”
“जी, हम भलस्वा जेजे कालोनी से आए हैं. यह मेरी बड़ी साली गीता है. इन्हीं के 4 वर्षीय बेटे आयुष को चुरा लिया है. यह वार्ड में भरती बेटी पत्नी की देखरेख के लिए आई थीं.”
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“जी जगबीर.” जगबीर ने बताया, “साहब, आप देख लीजिए इन की हालत, दोपहर से रो रही हैं.”
“देखो जगबीर, मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि इन के बच्चे को सकुशल वापस ले कर आऊंगा और चोर को जेल में डलवा दूंगा. तुम मुझ पर विश्वास करो. तुम अपने घर का पता और मोबाइल नंबर मुझे नोट करवा दो.”
जगबीर ने अपना घर का एड्रैस और मोबाइल नंबर एसएचओ भूपेश की लिखवा दिया. एसएचओ भूपेश कुमार जगबीर और गीता को ले कर थाने लौट आए. उन्होंने गीता को वादी बना कर उस के बच्चे के चोरी हो जाने की घटना की रिपोर्ट दर्ज कर ली.
जगबीर के जाने के बाद एसएचओ भूपेश कुमार ने इस बच्चा चोरी की घटना की जानकारी रोहिणी जिले के डीसीपी को दे कर उन से राय मांगी. डीसीपी अमृता गोगुलोथ ने एसएचओ के निर्देशन में एक टीम का गठन कर दिया, जिस में एसआई पवन, हैडकांस्टेबल अमित, योगेंद्र और सोनू को शामिल किया गया. उन्होंने एसएचओ भूपेश कुमार को अस्पताल और आसपास के इलाकों के सीसीटीवी खंगालने के निर्देश दिए.
एसएचओ भूपेश कुमार ने अपनी टीम के साथ अंबेडकर अस्पताल जा कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. अस्पताल के मेनगेट पर भी एक कैमरा लगा हुआ था, उस की फुटेज निकलवा कर देखी गई. दोपहर 3-सवा 3 बजे के आसपास पुलिस टीम को उस फुटेज में 2 महिलाएं और एक पुरुष संदिग्ध अवस्था में नजर आए. उन में से एक महिला के पास बच्चा दिखाई दे रहा था. बच्चे को उस महिला ने अपनी गोद में बैठा रखा था.
ईरिक्शा से दिखी उम्मीद की किरण
दोनों महिलाएं सडक़ पर एक बैटरी रिक्शा में बैठती नजर आईं. उस बैटरी रिक्शा पर कोई नंबर नहीं था. उस पर ‘ठुकराल’लिखा था. पुलिस टीम ने बैटरी रिक्शा के रंग और ‘लोगो’ को अपनी जांच के लिए नोट कर लिया. पुलिस जानती थी, दिल्ली में लाखों बैटरी रिक्शा चल रहे थे. इसी रोहिणी क्षेत्र में भी ऐसे हजारों रिक्शा हो सकते थे, इन में से वह संदिग्ध बैटरी रिक्शा तलाश करना आसान काम नहीं था, लेकिन पुलिस टीम उस रिक्शे की तलाश में जी जान से लगी रही.
अंबेडकर अस्पताल के सामने पचासों रिक्शा सवारी उतारते और चढ़ाते थे, वहां पर खास नजर रखी गई. एसएचओ भूपेश कुमार को विश्वास था कि वह बैटरी रिक्शा उसी इलाके में चलता है, वह उस अस्पताल के सामने फिर आ सकता है. अंबेडकर अस्पताल के सामने हैडकांस्टेबल अमित और सोनू की ड्यूटी लगाई गई. एसआई पवन अपने साथ हैडकांस्टेबल योगेंद्र को ले कर रोहिणी के मेन चौराहों, बस स्टैंड और सडक़ों पर उस बैटरी रिक्शे की तलाश कर रहे थे. चौराहों पर बैटरी रिक्शा की बहुत अधिक संख्या रहती है, वहां ज्यादा नजर रखी गई.
4 दिन की कड़ी मेहनत के बाद पुलिस टीम को सफलता मिल गई. वह बैटरी रिक्शा जो पुलिस की नजर में संदिग्ध था, पकड़ में आ गया. उस रिक्शे का चालक 25 वर्षीय सुनील कुमार था. उसे पकड़ कर उस के बैटरी रिक्शा सहित थाने में लाया गया. सुनील काफी डरा हुआ था. वह बारबार पूछ रहा था, “मैं ने किया क्या है साहब, मुझे क्यों गिरफ्तार किया गया है?”
एसएचओ भूपेश कुमार ने उसे कुरसी पर बिठा कर उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, “तुम ने 6 फरवरी की दोपहर 3 बजे के आसपास अपने रिक्शे में 2 महिलाओं को बिठाया था. उन की गोद में एक बच्चा था.”
“साहब, मेरा काम ही सवारी ढोना है. दिन भर में कितनी ही महिलाएं मेरे रिक्शे में बैठतीउतरती रहती हैं. उन के पास बच्चे भी होते हैं.”
“मैं 6 फरवरी की बात कर रहा हूं. दिमाग पर जोर डालो और बताओ वे दोनों महिलाएं अस्पताल के पास से तुम्हारे रिक्शे में बैठने के बाद कहां उतरी थीं?”
सुनील सोच में पड़ गया. थोड़ी ही देर में वह उतावले स्वर में बोला, “उन में से एक महिला की गोद में बच्चा था साहब… आप उन्हीं के विषय में तो नहीं पूछ रहे हैं?”
“मैं उन्हीं महिलाओं के विषय में पूछ रहा हूं. वह 2 महिलाएं थीं.”
“हां साहब, वह 2 थीं. उन्होंने अस्पताल के सामने से मेरा रिक्शा सिर्फ अपने लिए बुक किया था. मुझे इसलिए याद है कि उन्होंने मेरा 100 रुपए किराया औनलाइन पेमेंट के जरिए दिया था. मैं ने उन्हें सैक्टर-18 रोहिणी में उतारा था.”
“ओह! फिर तो तुम्हारे मोबाइल में उस महिला का मोबाइल नंबर आ गया होगा, जरा देखो तो?” भूपेश कुमार उत्साह में भर कर बोले.
औनलाइन पेमेंट से पकड़े गए बच्चा चोर
सुनील ने किराए का औनलाइन पेमेंट करने वाली महिला के मोबाइल नंबर को ढूंढ कर एसएचओ साहब को नोट करवा दिया. एसएचओ भूपेश कुमार ने वह नंबर एक कागज पर नोट कर लिया.
“वह बच्चा अंबेडकर अस्पताल से चुराया गया है. तुम ने उन महिलाओं का इस काम में साथ दिया, इसलिए तुम्हें गिरफ्तार किया जा रहा है.” भूपेश कुमार ने रिक्शा चालक सुनील से कहा तो वह रोने लगा.
एसएचओ भूपेश कुमार ने एसआई पवन को उस महिला से बात करने के लिए कहा. पवन ने उस रिक्शे वाले से प्राप्त मोबाइल नंबर को अपने मोबाइल से मिलाया तो दूसरी और घंटी बजने के बाद काल रिसीव कर के पूछा गया, “आप कौन हैं और किस से मिलना है?” आवाज किसी महिला की थी.
“जी, मैं रोहिणी पोस्ट औफिस से डाकिया दुलीचंद बोल रहा हूं. आप की एक रजिस्ट्री आई है, उस पर पता ठीक से नहीं लिखा गया है, आप अपना पता नोट करवा दें, जिस से मैं वह रजिस्ट्री सही जगह पर पहुंचा सकूं.” दूसरी ओर से बात करने वाली महिला ने अपना नाम रीना बताया, उस ने अपने घर का पता भी नोट करवा दिया. एसआई पवन मुसकराए. उन के द्वारा फेंका गया तीर सही निशाने पर जा कर लगा था.
पुलिस टीम ने एसआई पवन के नेतृत्व में उसी वक्त रीना के घर रेड डाली. इस टीम में 2 महिला कांस्टेबल भी शामिल की गई थीं.
साढ़े 3 लाख रुपए में चुराया था बच्चा
दरवाजा खोलने वाली महिला स्वयं रीना थी. पुलिस को देख कर वह डर कर अंदर की तरफ भागी. महिला कांस्टेबल ने अंदर प्रवेश कर के उसे पकड़ लिया. उसी कमरे में 2 महिलाएं और बैठी थीं. उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया. पुलिस को देख कर तीनों के चेहरों के रंग उड़ गए थे. कमरे में चोरी हुआ आयुष सो रहा था. उसे हैडकांस्टेबल योगेंद्र ने अपने कब्जे में ले लिया.
पता चला कि बच्चा आलोक ने अस्पताल से चुरा कर इन महिलाओं को दिया था. पुलिस ने सीमा की निशानदेही पर आलोक को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस टीम बच्चा चोरों को ले कर थाने में आ गई. उन से वहां पूछताछ की गई तो एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ, जिसे सुन कर पुलिस दंग रह गई. अंबेडकर अस्पताल से आयुष की चोरी करने वाली सीमा और रानी थीं. रीना, रानी की बहन थी. आयुष को रीना की बेटे की चाह वाली सनक के कारण चुराया गया था.
रीना को शादी के बाद 3 बेटियां पैदा हुई थीं. वह बेटे की कामना में तड़प रही थी, चौथी बार गर्भधारण करने में उस को फिर से बेटी पैदा न हो जाए, रीना इस बात से डर रही थी. वह फिर से गर्भाधारण नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटे के लिए एक रास्ता खोज निकाला. रीना ने अपनी बहन को साढ़े 3 लाख रुपए दे कर एक बच्चा कहीं से खरीद कर या चोरी कर के लाने को कहा.
रीना की बहन ने अपनी पक्की सहेली सीमा को अपनी बहन की इच्छा बता कर रुपयों का लालच दिया तो उस ने रानी का साथ देने के लिए हां कर दी. फिर इन दोनों ने अपने जानकार आलोक से संपर्क किया. उस से लडक़ा उपलब्ध कराने का साढ़े 3 लाख रुपए में सौदा हुआ था. तब आलोक ने ही गीता के बेटे आयुष को गायब कर सीमा के हवाले कर दिया था.
एसएचओ भूपेश कुमार ने जगबीर और गीता को फोन कर के थाने बुला लिया और उस के बेटे को उस के हवाले कर दिया. यह जानकारी भूपेश कुमार ने डीसीपी को भी दे दी. उन्होंने 5 दिन में गीता के 4 वर्षीय बेटे आयुष को सकुशल ढूंढ निकालने के लिए पुलिस टीम की पीठ थपथपा कर शाबाशी दी.
आयुष की चोरी में शामिल आलोक, रीना, सीमा और रानी को रोहिणी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कोख से जनी एक बेटी भी बेटे के समान होती है यदि रीना इस बात को समझती तो वह बेटे की चाह वाला गुनाह नहीं करती.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण है.