उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बिछवां के गांव मधुपुरी के रहने वाले परशुराम का परिवार बढ़ने से खर्च तो बढ़ गया था, लेकिन कमाई उतनी की उतनी ही थी. पतिपत्नी थे ही, 3-3 बच्चों की पढ़ाईलिखाई, कपड़ेलत्ते और खानाखर्च अब खेती की कमाई से पूरा नहीं होता था. गांव में हर कोशिश कर के जब इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो उस ने किसी शहर जाने की सोची.

गांव के तमाम लोग दिल्ली में रहते थे. उन की माली हालत परशुराम को ठीकठाक लगती थी, इसलिए उस ने सोचा कि वह भी दिल्ली चला जाएगा. उस ने अपने एक दोस्त से बात की और दिल्ली आ गया. यह करीब 10 साल पहले की बात है. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने वह नौकरी छोड़ दी और अपने एक परिचित के यहां गाजियाबाद चला गया. क्योंकि वहां ज्यादा पैसे की नौकरी मिल रही थी.

गाजियाबाद की जिस कंपनी में परशुराम नौकरी करता था, उसी में खोड़ा गांव का रहने वाला भारत सिंह भी नौकरी करता था. एक साथ नौकरी करने की वजह से दोनों की अक्सर मुलाकात हो जाती थी. कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई. भारत सिंह की शादी नहीं हुई थी, इसलिए उसे कोई चिंताफिक्र नहीं रहती थी. वह मौज से रहता था.

परशुराम की बीवी और बच्चे गांव में रहते थे, इसलिए उन्हें ले कर वह परेशान रहता था. उस ने सोचा कि अगर बीवीबच्चे साथ रहें तो उसे खानापानी भी समय से मिल जाएगा और वह निश्चिंत भी रहेगा. शहर में रह कर बच्चे भी ठीक से पढ़ लेंगे. उस ने भारत सिंह से किराए का मकान दिलाने को कहा तो उस ने अपने पड़ोस में उसे मकान दिला दिया.

मकान मिल गया तो परशुराम अपना परिवार ले आया. भारत सिंह परशुराम का दोस्त था, दूसरे उसी ने उसे मकान दिलाया था, इसलिए परशुराम ने उसे एक दिन अपने घर खाने पर बुलाया. खाना खाने के बाद भारत सिंह खाने की तारीफ करने लगा तो परशुराम की पत्नी शारदा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप मेरे खाने की इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं?’’

‘‘क्यों…?’’ भारत सिंह ने पूछा.

‘‘कहते हैं, खाने वाला खाने की तारीफ इसलिए करता है कि उसे फिर से खाने पर बुलाया जाए.’’

‘‘लेकिन मैं तो बिना बुलाए ही आने वालों में हूं. आप को एक बात बताऊं भाभीजी, आदमी बड़ा चटोरा होता है. जहां का खाना उस के मुंह लग जाता है, वह वहां बारबार जाता है. मेरे मुंह आप का बनाया खाना लग गया है, इसलिए जब मन होगा, मैं यहां आ जाऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

शारदा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी तो आप का ही घर है. जब मन हो, आ जाना.’’

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं, मैं अकेला आदमी हूं. ज्यादातर बाहर ही खाता हूं. घर का खाना इसी तरह कभीकभार ही नसीब होता है. इसलिए जब कभी इस तरह का खाना मिलता है तो इच्छा तृप्त हो जाती है.’’ भारत सिंह ने थोड़ा उदास हो कर कहा.

‘‘मैं तो कहूंगी, तुम भी शादी कर लो. रोज दोनों जून घर का खाना खाओ. इच्छा भी तृप्त होगी और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. अपने दोस्त को देखो और खुद को देखो. खैर, जब तक खाना बनाने वाली नहीं आती, तब तक जब कभी घर का खाना खाने का मन हो, अपने दोस्त के साथ चले आना. इतने लोगों का खाना बनाती ही हूं, तुम्हारा भी बना दूंगी.’’ शारदा ने कहा.

उस दिन के बाद भारत सिंह परशुराम के यहां अक्सर जाने लगा. अकेले होने की वजह से भारत सिंह के ऊपर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं, इसलिए वह ठाठ से रहता था. कभीकभार पार्टी भी कर लेता था. उस पार्टी में परशुराम को भी शामिल करता था. पीनेपिलाने के बाद खाने की बात आती तो परशुराम कहता, ‘‘अब बाहर खाना खाने कहां जाओगे. चलो तुम्हारी भाभी ने खाना बनाया ही होगा, वहीं खा लेना.’’

इसी तरह आनेजाने में स्त्रीसुख से वंचित भारत सिंह को शारदा अच्छी लगने लगी. इस के बाद वह कुछ ज्यादा ही परशुराम के यहां आनेजाने लगा. वह जब भी परशुराम के यहां आता, खाली हाथ नहीं आता. खानेपीने की ढेर सारी चीजें ले कर आता. वह बातें तो अच्छीअच्छी करता ही था, शारदा पर दिल आ जाने की वजह से उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगा था, इसलिए शारदा को उस का आना अच्छा लगने लगा था.

परशुराम में एक आदत यह थी कि वह शराब देख कर पागल हो जाता था. अगर उसे शराब मिल जाए तो वह तब तक पीता रहता था, जब तक बेहोश नहीं हो जाता था. उस स्थिति में भारत शारदा से कहता, ‘‘भाभी, मैं इसे मना करता हूं कि तू इतनी मत पिया कर, लेकिन यह मानता ही नहीं. पहली बात तो इसे पीनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि यह बालबच्चों वाला है, इस के ऊपर तमाम जिम्मेदारियां हैं. रही बात मेरी तो मेरे ऊपर कौन जिम्मेदारी है. फिर मेरा कोई मन बहलाने वाला भी तो नहीं है. अकेले में घुटन सी होने लगती है तो पी लेता हूं. शराब पीने से जल्दी नींद आ जाती है.’’

‘‘अगर कोई मन बहलाने वाला मिल जाए तो आप पीना छोड़ दोगे? क्योंकि आप नहीं पिएंगे तो यह भी नहीं पिएंगे. यह पीते तो आप के साथ ही हैं,’’ शारदा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं रोज कहां पीता हूं. मैं तो साथ मिलने पर ही पीता हूं. अगर आप कह दें तो मैं बिलकुल शराब नहीं पीऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

‘‘शराब कोई अच्छी चीज तो है नहीं, मैं तो यही चाहूंगी कि न आप पिएं और न अपने दोस्त को पिलाएं. यही पैसा किसी और चीज में खर्च करें, जो आप लोगों के काम आए.’’ शरदा ने समझाते हुए कहा.

शारदा को प्रभावित करने के लिए भारत सिंह ने सचमुच शराब पीना छोड़ दिया. लेकिन परशुराम नहीं माना. एक दिन शराब पी कर परशुराम लुढ़का पड़ा था तो भारत सिंह ने कहा, ‘‘भाभी, ऐसे पति से क्या फायदा, जो पत्नी के सुखदुख, हंसीखुशी का खयाल न रखे.’’

‘‘क्या करूं भइया, सब भाग्य की बात है. मेरे भाग्य में ऐसा ही पति लिखा था. एक आप हैं. मैं आप की कोई नहीं, फिर भी आप मेरा इतना खयाल रखते हैं. जिस की खयाल रखने की जिम्मेदारी है, वह शराब पी कर लुढ़का पड़ा है.’’

‘‘भाभी, ऐसा मत कहो कि मैं आप का कोई नहीं. कुछ रिश्ते बनाए जाते हैं तो कुछ अपनेआप बन जाते हैं. अपने आप बने रिश्ते भी कम मजबूत नहीं होते. बात तो मन से मानने वाली है. आप भले ही मुझे अपना न मानें, लेकिन मैं आप को अपनी मानता हूं. आप मुझे कितना मानती हैं, यह आप जानें,’’ भारत सिंह ने शारदा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘आप को क्या लगता है? मैं भी आप को उतना ही मानती हूं, जितना आप मानते हैं. अब आप समझ न पाएं तो मैं क्या करूं.’’ शारदा ने नजरें नीची कर के कहा.

शारदा का इतना कहना था कि भारत सिंह ने उस का एक हाथ थाम लिया. उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘आज लगा कि मेरा भी कोई है. अब मैं अकेला नहीं रहा. भाभी, सही बात तो यह है कि मैं आप को अपनी समझने लगा हूं. इधर कुछ दिनों से आप हर पल मेरे खयालों में बसी रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि आप मेरे दिल की बात समझेंगी.’’

‘‘मैं आप के दोस्त की पत्नी हूं,’’ शारदा ने अपना हाथ छुड़ाए बगैर कहा, ‘‘क्या यह सब अच्छा लगेगा.’’

‘‘भाभी, अच्छा लगे या खराब, अब मैं आप के बिना नहीं रह सकता. अगर आप ने मना कर दिया तो कल से मेरा भी वही हाल होगा, जो परशुराम का है. क्योंकि आप नहीं मिलीं तो मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा. इस के बाद बेचैनी दूर करने के लिए शराब का ही सहारा लेना होगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

भारत सिंह के स्पर्श ने शारदा की धड़कन बढ़ा दी थी. इन बातों से लगा कि अब उस का खुद पर काबू नहीं रह गया है. वह विरोध तो पहले ही नहीं कर रही थी, भारत सिंह की बातें सुन कर नजरें झुका लीं. उस की इस अदा से उसे समझते देर नहीं लगी कि शारदा भी वही चाहती है जो वह चाहता है.

दरअसल, शारदा का दिल भारत सिंह पर तभी डोल गया था, जब उसे पता चला था कि उस ने शादी नहीं की. वह अच्छाखासा कमाता था, जबकि खाने वाला कोई नहीं था. शारदा ने सोचा था कि अगर इसे वह फांस ले तो वह अपनी कमाई उस पर लुटाने लगेगा. और सचमुच उस ने उसे अपने रूप के जादू से फांस लिया था.

भारत सिंह ने शारदा से कहा था कि वह उन लोगों में नहीं है, जो मजा ले कर चले जाते हैं. वह उस के हर सुखदुख में उस का साथ देगा. भारत सिंह की इन्हीं कसमों और वादों पर विश्वास कर के शारदा ने उसे अपनी देह सौंप दी थी.

भारत सिंह से संबंध बनाने के बाद उदास और परेशान रहने वाली शारदा में अपनेआप बदलाव आने लगे थे. उस का रहनसहन भी काफी बदल गया था. भारत सिंह उसे ढंग के कपड़ेलत्ते तो ला कर देता ही था, खर्च के लिए पैसे भी देता था. इसलिए उस ने परशुराम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया था. अब वह उस से कुछ मांगती भी नहीं थी.

पत्नी में आए बदलाव से परशुराम हैरान तो था, लेकिन वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. जब बदलाव कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगे तो उस ने पत्नी पर नजर रखनी शुरू की. तब उस ने देखा कि पत्नी उस के दोस्त से कुछ ज्यादा घुलमिल ही नहीं गई, बल्कि उस का खयाल भी उस से ज्यादा रखने लगी है.

परशुराम इतना भी बेवकूफ नहीं था, जो इस का मतलब न समझता. बदलाव का मतलब समझते ही उस ने शारदा से कहा, ‘‘इधर भारत सिंह कुछ ज्यादा ही हमारे घर नहीं आने लगा है?’’

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है, तुम्हीं उसे घर लाते हो. अगर कभी तुम्हारे न रहने पर आ जाता है तो उसे घर में बैठाना ही नहीं पड़ेगा, बल्कि चायपानी भी पिलानी पड़ेगी. अब इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ शारदा ने तुनक कर कहा.

शारदा ने पति से बहाना तो बना दिया, लेकिन इस के बाद वह खुद भी सतर्क हो गई और भारत सिंह को भी सतर्क कर दिया. पर ऐसे संबंध कितने भी छिपाए जाएं, छिपते नहीं हैं. कुछ पड़ोसियों ने भी जब उस की अनुपस्थिति में भारत सिंह के घर आने की शिकायत की तो परशुराम छुट्टी ले कर पत्नी की चौकीदारी करने लगा.

भारत सिंह से भी उस ने कई बार कहा कि वह जो कर रहा है, वह ठीक नहीं है. तब भारत सिंह ने हंस कर यही कहा कि जैसा वह सोच रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है. वह बेकार ही शक करता है. शारदा को वह भाभी कहता ही नहीं है, बल्कि उसी तरह सम्मान भी देता है.

पत्नी भी कसम खा रही थी और दोस्त भी. जबकि परशुराम को अब तक पूरा विश्वास हो गया था कि दोनों के बीच गलत संबंध है. लेकिन उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं था कि वह दोनों के सामने दावे के साथ कह सकता. लेकिन जब एक दिन उस ने शारदा के बक्से में नईनई साडि़यां देखी तो हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी साडि़यां तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘तुम ने तो ला कर दीं नहीं, फिर क्यों पूछ रहे हो?’’ शारदा ने कहा.

‘‘मैं यही तो जानना चाहता हूं कि तुम्हें ये साडि़यां किस ने ला कर दी हैं?’’

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो. यही न कि ये साडि़यां भारत सिंह ने ला कर दी हैं?’’ शारदा थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘अगर उसी ने ला कर दी हैं तो तुम क्या कर लोगे?’’

परशुराम सन्न रह गया. वह समझ गया कि यह लेनेदेने का खेल इस तरह चल रहा है. उस ने पहले तो शारदा की जम कर पिटाई की, उस के बाद घर का सामान समेटने लगा. शारदा ने पूछा, ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘हम गांव चल रहे हैं.’’ परशुराम ने कहा.

परशुराम ने कहा ही नहीं, बल्कि जहां नौकरी करता था, वहां से अपना हिसाबकिताब करा कर गांव चला गया. गांव में परशुराम तो अपने कामधाम में लग गया, लेकिन शारदा भारत सिंह के लिए बेचैन रहने लगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने उसे फोन किया कि वह उस के बिना नहीं रह सकती.

भारत सिंह भी उस के लिए उसी की तरह तड़प रहा था, इसलिए उस ने उसे आने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि उस से मिलने उस के गांव पहुंच भी गया. परशुराम से मिल कर उस ने कहा कि उस से जो गलती हुई है, उस के लिए वह माफी मांगने आया है.  इस तरह होशियारी से एक बार फिर भारत सिंह ने परशुराम की सहानुभूति प्राप्त कर ली. इस के बाद उस का जब मन होता, वह परशुराम से मिलने के बहाने गांव पहुंच जाता.

शुरूशुरू में तो परशुराम सतर्क रहा, लेकिन जब उसे लगा कि भारत सिंह सचमुच सुधर गया है तो वह उस की ओर से लापरवाह हो गया. इस के बाद शारदा और भारत सिंह फिर मिलने लगे.  गांव वालों को शक हुआ तो उन्हें भारत सिंह का आना खराब लगने लगा. लोगों ने परशुराम को टोका तो उसे होश आया. भारत सिंह को ले कर गांव में लोग परशुराम के बेटों का भी मजाक उड़ाते थे. इन सब बातों से दुखी हो कर परशुराम ने गुस्से से कहा, ‘‘भारत, तुम क्यों हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ गए हो. क्यों आते हो हमारे घर, आखिर हमारा तुम्हारा रिश्ता क्या है?’’

भारत सिंह तो कुछ नहीं बोला, पर पति की इस बात पर शारदा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘घर आए मेहमान से कोई इस तरह बात करता है. अगर यह हमारे यहां आता है तो क्या गलत करता है. कान खोल कर सुन लो, यह इसी तरह आता रहेगा, देखती हूं कौन रोकता है.’’

शारदा के तेवर देख कर परशुराम डर गया, लेकिन दोनों की यह बातचीत सुन कर पड़ोसी आ गए. उन्होंने भारत सिंह को लताड़ा तो उस ने वहां से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन परेशानी यह थी कि शारदा उस के बिना रह नहीं सकती थी, इसलिए जब उसे पता चला कि 15 मई को परशुराम किसी शादी में जाने वाला है तो उस ने फोन कर के यह बात भारत सिंह को बता दी.

15 मई को परशुराम दोनों बेटों के साथ शादी में चला गया. उस के जाते ही भारत सिंह गांव वालों की नजरें बचा कर शाम को उस के घर जा पहुंचा. प्रेमी के लिए शारदा ने बढि़या खाना पहले से ही बना कर रख लिया था. पहले दोनों ने खाना खाया, उस के बाद मौजमस्ती में लग गए.

दोनों मस्ती में इस तरह डूब गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला. रात 1 बजे के करीब परशुराम लौटा तो दोनों बेटे घेर में सोने चले गए, जबकि परशुराम ने हाथ डाल कर बाहर से दरवाजे की कुंडी खोली और घर के अंदर आ गया. अंदर आंगन में पड़ी चारपाई पर शारदा और भारत सिंह रंगरलियां मना रहे थे.

पत्नी और दोस्त को उस हालत में देख कर परशुराम का खून खौल उठा. कोने में रखी लाठी उठा कर वह दोनों को पीटने लगा. उस की इस पिटाई से दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी आ गए. मामला गंभीर होते देख परशुराम भाग खड़ा हुआ.

शारदा और भारत सिंह की हालत गंभीर थी. गांव वालों ने दोनों को जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सैफई रैफर कर दिया.

18 मई को शारदा ने दम तोड़ दिया. गांव वालों के अनुसार शारदा की मौत की सूचना उन्होंने थाना बिछवां पुलिस को दे दी थी. लेकिन शाम तक पुलिस नहीं आई तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.  जब कहीं से शारदा की मौत की जानकारी पुलिस अधीक्षक श्रीकांत को हुई तो उन्होंने थाना बिछवां के थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर को फटकार लगा कर इस मामले की तत्परता से जांच करने को कहा.

थाना बिछवां पुलिस गांव मधुपुरी पहुंची तो शारदा की चिता ठंडी पड़ चुकी थी. इस के बाद चौकीदार की ओर से परशुराम के खिलाफ अपराध संख्या 119/2014 पर भादंवि की धारा 308, 304, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में जगहजगह छापेमारी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप परशुराम बसअड्डे से पकड़ में आ गया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि शारदा मर गई अच्छा ही हुआ. भारत सिंह भी मर जाता तो और अच्छा होता. उस ने जो किया है, उस से बदचलन बीवियों और धोखेबाज दोस्तों को सबक मिलेगा.

पूछताछ के बाद पुलिस ने परशुराम को मैनपुरी की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. भारत सिंह का इलाज चल रहा था. थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर का तबादला हो चुका था. अब इस मामले की जांच नए थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह कर रहे थे.

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