उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कोतवाली मोहनलालगंज के कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर कमरुद्दीन सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे हेडमुहर्रिर को दिशानिर्देश दे रहे थे, तभी पास के गांव का ग्रामप्रधान रमाशंकर वहां पहुंचा. ग्रामप्रधान होने के नाते वह अक्सर कोतवाली आताजाता रहता था, इसलिए कोतवाली के सारे पुलिसकर्मी उसे पहचानते थे.
रमाशंकर ग्रामप्रधान होने के साथसाथ जमीन की खरीदफरोख्त यानी प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था, इसलिए इलाके में उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. सुबहसुबह उसे कोतवाली में देख कर पहरे पर तैनात संतरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी आज सुबहसुबह ही आ गए? कोई खास काम पड़ गया क्या?’’
‘‘हां, थोड़ी परेशानी वाली बात है, कोतवाल साहब बैठे हैं क्या?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूछा.
‘‘आप तो जानते हैं, कोतवाल साहब सुबहसुबह ही बैठ जाते हैं. जाइए, साहब बैठे हैं.’’ संतरी ने कहा.
रमाशंकर कोतवाली प्रभारी के औफिस की ओर बढ़ गया. कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन सिपाहियों को उस दिन का काम समझा रहे थे. तभी ग्रामप्रधान रमाशंकर ने उन्हें नमस्कार किया तो उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.
वह कुर्सी पर बैठ तो गया, लेकिन बारबार करवट बदलता रहा. उसे उस तरह करवट बदलते देख कोतवाली प्रभारी को लगा कि किसी वजह से यह कुछ ज्यादा ही परेशान है. उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी, आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रहे हो?’’
‘‘कोतवाल साहब, बात ही कुछ ऐसी है कि समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कहूं?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने कहा.
‘‘जो भी परेशानी हो, बताइए. इस में सोचनेसमझने की क्या बात है.’’ कोतवाली प्रभारी ने कहा.
‘‘साहब, मेरी पत्नी कल शाम से गायब है. पहले तो मैं ने सोचा था कि वह मायके गई होगी. लेकिन जब वहां फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं है.’’
‘‘आप पूरी बात बताइए कि यह सब कैसे और कब हुआ? उसी के बाद हम किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे.’’
‘‘कल शाम को मेरी पत्नी मंजूलता हमारे ड्राइवर रामकरन के साथ टाटा सफारी कार से खरीदारी के लिए मोहनलालगंज बाजार गई थी. बाजार पहुंच कर उस ने ड्राइवर से कार वापस ले जाने के लिए कहा. उस ने कहा था कि वहां से वह मायके जाना चाहती है. ड्राइवर लौट गया. रात को मैं ने ससुराल फोन किया कि अब तक वह वहां पहुंच गई होगी. लेकिन पता चला कि वह वहां नहीं पहुंची है.
‘‘इस के बाद मैं परेशान हो गया. इधरउधर पता किया. जब कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आप के पास चला आया.’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूरी बताई.
ग्रामप्रधान रमाशंकर की पत्नी मंजूलता का इस तरह अचानक गायब हो जाना हैरान करने वाली बात थी. वह कहीं बाहर की भी रहने वाली नहीं थी कि भटक गई हो. कोतवाली प्रभारी ने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘प्रधानजी, आप रिपोर्ट लिखा दीजिए. हम उस की तलाश करते हैं. आप भी तलाश करते रहिए. आप दोनों में लड़ाईझगड़ा तो नहीं हुआ था कि नाराज हो कर वह बिना बताए किसी रिश्तेदार के यहां चली गई हों. मोहनलालगंज बाजार से उन्हें कोई जबरदस्ती तो ले नहीं जा सकता.’’
पुलिस और रमाशंकर अपनेअपने हिसाब से मंजूलता की खोजबीन करते रहे. जब शाम तक उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो रमाशंकर के दोनों साले यानी मंजूलता के भाई त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश कोतवाली मोहनलालगंज पहुंचे. उन्होंने कोतवाली प्रभारी से अपने बहनोई रमाशंकर और ड्राइवर रामकरन के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा. उन का कहना था कि रमाशंकर और उस के ड्राइवर को पता है कि मंजू कहां है?
त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश का गांव शिवधर भी मोहनलालगंज कोतवाली के अंतर्गत आता था, जो मोहनलालगंज कस्बे से मात्र 3 किलोमीटर दूर था. उन्होंने अपनी बहन की शादी परसैनी गांव के मजरा रानीखेड़ा के रहने वाले रमाशंकर रावत के साथ सन 2002 में की थी.
इन 12 सालों में रमाशंकर ने खूब तरक्की कर ली थी. ग्रामप्रधान बनने के साथ ही उस ने जमीन की खरीदफरोख्त का काम शुरू कर दिया था, जिस से उस ने खूब पैसा कमाया था. इस की वजह यह थी कि लखनऊ से सटे होने की वजह से यहां की जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं.
रमाशंकर और मंजूलता के 3 बच्चे थे. सब से बड़ी बेटी शैली 10 साल की है, जो स्कूल जाती है. उस से छोटा बेटा शिवम 7 साल का है तो उस से छोटी बेटी राशि ढाई साल की. मंजू अपनी गृहस्थी में पूरी तरह से खुश थी. उसे इस बात की खुशी थी कि उस के अच्छे दिन आ गए थे.
ग्रामप्रधान बनने के साथ ही पति बड़ा आदमी बन गया था. लेकिन वह घर में कम समय दे पा रहा था. इस से मंजूलता को लगने लगा था कि वह पैसे के पीछे कुछ ज्यादा ही भाग रहा है. इस बात को ले कर दोनों में अक्सर कहासुनी भी होती रहती थी. इस की खास वजह यह थी कि मंजू को लगने लगा था कि उस के पति के संबंध कुछ अन्य औरतों से बन गए हैं.
मंजूलता के काम और बातव्यवहार से ससुराल के बाकी लोग बहुत खुश रहते थे. उस के ससुर पूर्णमासी रावत उसे बहुत मानते थे. उन का बेटा रमाशंकर तो अपने काम में व्यस्त रहता था, इसलिए घर की सारी जरूरतों का खयाल मंजूलता ही रखती थी. वह सासससुर की खूब सेवा करती थी, इसलिए उस के गायब होने से पतिपत्नी बहुत परेशान थे.
मंजूलता के भाइयों को रमाशंकर पर ही संदेह था. लेकिन कोई सुबूत न होने की वजह वे कुछ कर नहीं पा रहे थे. वे सिर्फ ड्राइवर रामकरन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे थे, जबकि कोतवाली प्रभारी इस के लिए तैयार नहीं थे.
जब कोतवाली प्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो सत्यप्रकाश क्षेत्राधिकारी राजेश यादव, एसपी (देहात) सौमित्र यादव तथा एसएसपी प्रवीण कुमार से मिला. उस का कहना था कि अगर रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन पर शिकंजा कसा जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. सत्यप्रकाश के कहने पर क्षेत्राधिकारी राजेश यादव ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.
आखिर जब कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मंजूलता की हत्या कर दी गई है और उस की लाश को मऊ गांव के एक पुराने कुएं में डाल कर उसे पटवा दिया गया है.
ड्राइवर रामकरन के बयान के आधार पर लाश बरामद करने के लिए पुलिस को कुएं की खुदाई कराना जरूरी था. इस के लिए जेसीबी मशीन मंगाई गई. पूछताछ में रामकरन ने बताया था कि इस वारदात में मृतका मंजूलता का पति रमाशंकर और मऊ का रहने वाला केतन भी शामिल था.
केतन के घर के बगल में ही मुन्ना वाजपेई का पुराना मकान था. वह लखनऊ में रहते थे और एचएएल में नौकरी करते थे. उन्होंने अपना यह मकान बेच दिया था, जो अब पूरी तरह से खंडहर हो चुका था. उसी मकान के आंगन में एक कुआं था, जिस का उपयोग न होने की वजह से वह लगभग सूख चुका था.
रामकरन ने पुलिस को बताया था कि मंजूलता की हत्या कर के उस की लाश को उसी कुएं में फेंक कर ऊपर से मकान का मलबा डाल कर कुएं को पाट दिया गया था. लाश बरामद करने के लिए कोतवाली पुलिस ने मंजूलता के भाई और अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति में कुएं की खुदाई शुरू कराई.
रामकरन के बयान के आधार पर पुलिस को रमाशंकर को गिरफ्तार कर लेना चाहिए था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. दरअसल पुलिस मंजूलता की लाश बरामद कर के सुबूत के आधार पर उसे गिरफ्तार करना चाहती थी. क्योंकि वह ग्रामप्रधान था. उस की गिरफ्तारी पर गांव वाले बवाल कर सकते थे, इसलिए पुलिस सोचसमझ कर कदम उठा रही थी. अगर लाश कुएं से बरामद न होती तो रामकरन की बात झूठी भी हो सकती थी.
पुलिस ने 23 जून की रात एक बजे के आसपास कुएं की खुदाई शुरू कराई. जेसीबी कुएं को लगातार खोदती रही. कुएं का मलबा हटाने में करीब 15 घंटे का समय लगा. अब तक दूसरे दिन यानी 24 जून की दोपहर हो गई थी. कुएं की तली दिखाई देने लगी थी, लेकिन मंजूलता की लाश का कुछ अतापता नहीं था.
तमाशा देखने के लिए वहां गांव वाले इकट्ठा थे. जब उन्होंने देखा कि इतनी खुदाई होने पर भी लाश नहीं मिल रही है तो उन्हें लगा कि पुलिस ग्रामप्रधान को फंसाने के लिए नाटक कर रही है. उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने मोहनलालगंज कोतवाली के सामने एकत्र हो कर लखनऊरायबरेली रोड और मोहनलालगंज-गोसाईगंज रोड पर जाम लगाना शुरू कर दिया.
अब पुलिस दोहरी मुसीबत में फंस गई. एक ओर उसे मंजूलता की लाश बरामद करनी थी तो दूसरी ओर जाम लगा रहे गांव वालों को रोकना था.
जेसीबी का काम खत्म हो गया था. अब कुएं की खुदाई मजदूरों से कराई जा रही थी. मजदूर कुएं का मलबा बाल्टी से निकाल रहे थे. कुएं से जो कीचड़ निकल रहा था, उस से भयंकर बदबू आ रही थी, जिस की वजह से वहां खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. गरमी और धूप का भी बुरा हाल था. इस के बावजूद गांव वाले वहां जमा थे. 4 फुट चौड़े और करीब 40 फुट गहरे कुएं का जब सारा कीचड़ निकल गया तो मंजूलता की लाश दिखाई दे गई. लाश देख कर पुलिस की जान में जान आई.
लाश निकलते ही मंजूलता के मायके वाले ही नहीं, सासससुर और बच्चे बिलखने लगे. पुलिस ने घटनास्थल की अपनी काररवाई निबटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने मंजूलता के पति रमाशंकर को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद थाने आ कर रामकरन, रमाशंकर और केतन के खिलाफ मंजूलता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
केतन को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. थाने ला कर तीनों से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह पतिपत्नी के बीच भरोसा टूटने वाली थी…
रमाशंकर को लगने लगा था कि उस की पत्नी के कुछ बाहरी लोगों से संबंध बन गए हैं, इसलिए वह उस की बात नहीं मानती. दूसरी ओर मंजूलता को लगता था कि रमाशंकर के संबंध अन्य औरतों से हो गए हैं, इसलिए वह उस की उपेक्षा करता है.
मंजूलता की हत्या की एक बड़ी वजह यह भी थी कि उस के नाम मऊ में 12 बिसवा जमीन थी, जो सड़क के किनारे थी. रमाशंकर उस जमीन को बेचना चाहता था, जबकि मंजू उस जमीन को बेचने को बिलकुल तैयार नहीं थी. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में अक्सर लड़ाईझगड़ा होता रहता था.
रमाशंकर जमीन बेचने के लिए जब मंजू पर ज्यादा दबाव बनाने लगा तो मंजू गुस्से से बोली, ‘‘तुम यह क्यों नहीं सोचते कि वह जमीन मेरे पिता ने मुझे दी है. वह मेरे लिए बहुत कीमती है. उसे मैं अपने जीते जी बिलकुल नहीं बेच सकती.’’
‘‘वह जमीन बड़ी अच्छी जगह पर है. अभी उस की कीमत ठीकठाक मिल जाएगी. उसी पैसे से हम तुम्हारे लिए दूसरी जगह जमीन खरीद देंगे.’’ रमाशंकर ने मंजूलता को समझाया.
‘‘तुम कुछ भी कहो, मैं ने कह दिया कि वह जमीन मैं नहीं बेचूंगी तो नहीं बेचूंगी.’’ मंजूलता गुस्से में बोली.
रमाशंकर जमीन की खरीदफरोख्त से ही गरीब से अमीर बना था, इसलिए उसे आदमी से ज्यादा जमीन की कीमत महत्व रखती थी. जबकि मंजू जमीन बेच कर पैसा कमाने के बजाय जमीन से जुड़ी अपनी भावनाओं को महत्व दे रही थी. जमीन की वजह से पतिपत्नी के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही थी. मंजू जिस तरह जिद पर अड़ी थी, उस से रमाशंकर को लगने लगा कि उस के पीछे कोई लगा है, जो उसे भड़का रहा है.
रमाशंकर को पत्नी के चरित्र पर संदेह हुआ तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. यह काम वह खुद तो कर नहीं सकता था, इसलिए उस ने मऊ गांव के रहने वाले केतन से बात की और 50 हजार रुपए में पत्नी की हत्या का ठेका दे दिया. इस के बाद 20 हजार नकद और 10 हजार का चेक एडवांस में दे दिया. 20 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा किया.
18 जून को रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन ने मंजू से कहा, ‘‘भाभीजी कुछ काम से मैं मोहनलालगंज बाजार जा रहा हूं. अगर आप को चलना हो तो आप भी चल सकती हैं.’’
घर के लड़ाईझगड़ों से परेशान मंजू ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए वह बाजार चली जाए तो मन बहल जाएगा. वैसे जाते हुए बाजार से कुछ खरीदारी भी कर लेगी, इसलिए वह उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को लौटते समय उस की कार में केतन भी बैठ गया. माधवखेड़ा गांव के मोड़ के पास जब कार पहुंची तो वहां सन्नाटा देख कर केतन और रामकरन ने गला दबा कर मंजूलता की हत्या कर दी. इस के बाद रामकरन ने फोन कर के इस बात की जानकारी रमाशंकर को दे दी.
इस के बाद लाश को डिग्गी में रख कर केतन कार ले कर अपने गांव मऊ चला गया. रात 2 बजे केतन ने लाश को अपने मकान के बगल खंडहर हो चुके मुन्ना वाजपेयी के मकान में बने पुराने कुएं में डाल दिया. अगले दिन सुबह रमाशंकर ने केतन की मदद से उस कुएं को खंडहर हो चुके मकान के मलबे से पटवा दिया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या करने से पहले मंजू को बेहोश किया गया था. उसे कोल्डड्रिंक में बेहोश होने की दवा पिलाई गई थी. उस के बाद उस का गला घोंटा गया था.
पोस्टमार्टम के बाद जब मंजूलता की लाश घर आई तो मायके वाले ही नहीं, उस के ससुर पूर्णमासी अपनी पत्नी कौशल्या और मंजू के बच्चों को ले कर लाश के पास पहुंचे. बहू की लाश देख कर वह फफक पड़े. उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘मंजू बहुत अच्छी बहू थी. जिस दिन से इस ने हमारे घर में कदम रखा था, हमारे दिन बदल गए थे. मेरे बेटे ने बहू की हत्या कर के मासूम बच्चों को बिना मां के कर दिया. ऐसे पापी को फांसी की सजा होनी चाहिए.’’
शायद यह पहला मौका रहा होगा, जब पिता ही अपने बेटे को फांसी की सजा देने की बात कर रहा था. बहू की लाश को मुखाग्नि देते हुए पूर्णमासी ने कहा, ‘‘मैं अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं करूंगा.’’
पूछताछ में रमाशंकर ने पुलिस को बताया था कि मंजू उस पर शक करती थी. उसे घर आने में देर हो जाती हो तो वह उस से तरहतरह के सवाल करती थी. उस का कहना था कि अगर वह उस की हत्या न करवाता तो वह उसे मरवा देती. क्योंकि उस के कुछ अन्य लोगों से संबंध हो गए थे.
कुछ भी रहा हो, रमाशंकर ने जो भी किया, वह ठीक नहीं था. शायद उसे पैसे और पहुंच का घमंड हो गया था. उस की पहुंच कुछ हद तक काम भी कर रही थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों की दखल ने उस का सारा काम बिगाड़ दिया. अब शायद उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा होगा. लेकिन इस से कुछ भी फायदा नहीं होगा. शक में उस ने अपना ही घर बरबाद कर दिया है.