चुनाव नजदीक होने की वजह से 11 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम पुलिसकर्मी दीवाली के बाद से ही दिनरात चुनावी ड्यूटी कर रहे थे. प्रचार का शोर, नेताओं की सभाएं और जनसंपर्क खत्म होने के बाद ही पुलिसवालों को थोड़ा सुकून मिल सकता था. रात 10 बजे तक चुनावी होहल्ला कम हुआ तो रोजाना की तरह पुलिस वालों ने इत्मीनान की सांस ली.
थाना पिपलानी के थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया खापी कर अगले दिन के कार्यक्रमों के बारे में सोच रहे थे कि तभी उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली कि बरखेड़ा पठानिया के एक खंडहर में एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. घटनास्थल पर जाने के लिए वह तैयार हो कर थाने से निकल ही रहे थे तो गेट पर सीएसपी कुलवंत सिंह मिल गए. उन्हें भी साथ ले कर वह बताए गए पते पर रवाना हो गए.
कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया अपनी जीप से बरखेड़ा के सेक्टर-ई स्थित एक खंडहरनुमा मकान पर पहुंच गए. फोन करने वाले ने उन्हें यहीं अधजली लाश पड़ी होने की बात बताई थी. वहां उन्हें कुछ जलने की गंध महसूस हुई, इसलिए वह समझ गए कि लाश यहीं पड़ी है. वह साथियों के साथ खंडहर के अंदर पहुंचे तो सचमुच वहां कोने में एक युवक की झुलसी लाश पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले ही वह जलाई गई थी.
पुलिस की जीप देख कर आसपास के कुछ लोग आ गए. पुलिस ने उन लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन चेहरा झुलस जाने की वजह से कोई उसे पहचान नहीं सका. लाश का चेहरा ही ज्यादा जला था. जबकि उस के कपड़े काफी हद तक जलने से बच गए थे. शायद हत्यारों ने ऐसा इसलिए किया था कि उस की शिनाख्त न हो सके. पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में 5 हजार रुपए के अलावा घरेलू गैस की एक परची मिली. वह परची प्रियंका गैस एजेंसी की थी, जिस में उपभोक्ता का नाम मनीष तख्तानी लिखा था.
परची पर पंचवटी कालोनी का पता भी था. मृतक सोने की अंगूठी पहने था. पुलिस ने सारी चीजें कब्जे में ले लीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने फोन कर के थाने से एक कांस्टेबल को मनीष तख्तानी के घर का पता बता कर वहां जाने को कहा.
मरने वाले की जेब से मिली नकदी और अंगूठी से साफ था कि यह हत्या लूटपाट के इरादे से नहीं की गई थी. हत्या के पीछे कोई दूसरी वजह थी. मरने वाले की कदकाठी ठीकठाक थी. एक आदमी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. इस का मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.
थाने से भेजा गया कांस्टेबल पंचवटी कालोनी के मकान नंबर ए-43 पर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात दिलीप तख्तानी से हुई. उस ने उन्हें बताया कि बरखेड़ा के एक खंडहर में एक लाश मिली है, जिस की पैंट की जेब से गैस की एक परची मिली है, जिस पर मनीष तख्तानी लिखा है. यह मनीष कौन है?
यह बात सुन कर दिलीप के होश उड़ गए, क्योंकि मनीष उन्हीं का बेटा था. वह बोले, ‘‘आप को धोखा हुआ है. मेरा बेटा कहीं गया हुआ है, वह थोड़ी देर में आ जाएगा.’’
दिलीप तख्तानी ने यह बात कह तो दी, लेकिन उन का मन नहीं माना. उन्होंने उसी समय घर से कार निकाली और उस कांस्टेबल के साथ उस जगह के लिए रवाना हो गए, जहां लाश पड़ी थी. कदकाठी और अधजले कपड़ों को देखते ही दिलीप तख्तानी रो पड़े. उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे मनीष की ही है.
दिलीप तख्तानी के अनुसार, मनीष दुकान से कार से निकला था. लेकिन उस खंडहर के आसपास कहीं कोई कार नजर नहीं आई. मनीष का मोबाइल फोन भी नहीं मिला था. थानाप्रभारी ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद सर्विलांस सेल के माध्यम से उन्होंने मनीष के फोन की लोकेशन का पता कराया तो उस की लोकेशन एमपीनगर (जोन-1) के पास चेतक ब्रिज की मिली.
थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया उसी समय चेतक ब्रिज पर जा पहुंचे. वहां उन्हें एक कार दिखाई दी. दिलीप तख्तानी ने कार पहचान कर बताया कि मनीष की ही कार है. कार का मुआयना किया गया तो सीटों पर खून के धब्बे नजर आए. मनीष का मोबाइल भी कार में ही पड़ा था. कार की इग्नीशन में चाबी भी लगी थी. यह सब देख कर यही लगा कि मनीष की हत्या कार में ही की गई थी. उस के बाद हत्यारे लाश को ठिकाने लगाने के लिए खंडहर में ले गए थे. पुलिस ने कार और अन्य सामान को भी कब्जे में ले लिया.
अब तक की जांच में पता चल गया था कि मनीष शहर के जानेमाने बिजनेसमैन दिलीप तख्तानी का बेटा था. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. मनीष के घर वालों के अनुसार मनीष हंसमुख स्वभाव का था. उस का पूरा ध्यान अपने बिजनेस पर रहता था.
उस की पत्नी सपना का रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज चुकी थीं. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया था कि मनीष को कई लोगों से पैसा लेना था. लगता है, उसी लेनदेन के चक्कर में उस की हत्या की गई है. पुलिस को सपना की बात में दम नजर आया, इसलिए पुलिस ने इस बात को ध्यान में रख कर आगे की जांच शुरू की. मनीष की उम्र भी 32-33 साल थी, इसलिए पुलिस जांच में लव ऐंगल को भी ध्यान में रख जांच कर रही थी.
पुलिस ने मनीष की एमपीनगर जोन-2 स्थित दुकान पर काम करने वाले नौकरों से पूछताछ की तो पता चला कि 11 नवंबर, 2013 की शाम को 4 बजे के आसपास उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद उन्होंने दुकान संभालने वाले अपने मामा विनोद तख्तानी से कहा था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह दुकान बंद कर देंगे. इतना कह कर मनीष अपनी कार से चले गए थे.
पुलिस को जब पता चला कि शाम को किसी का फोन आने के बाद मनीष दुकान से निकला था, इसलिए पुलिस मनीष के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जानने की कोशिश करने लगी कि उस के फोन पर किस का फोन आया था.
पुलिस को जल्दी ही पता चल गया कि 11 नवंबर की शाम 4 बजे मनीष की जिस नंबर से बात हुई थी, वह नंबर हर्षदीप सलूजा का था. पुलिस ने हर्षदीप सलूजा के बारे में मनीष के घरवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के एक परिचित का बेटा जिन से उन के पारिवारिक संबंध हैं. दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना है. घर वालों की इस बात से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई. वह एक बार हर्षदीप से पूछताछ करना चाहती थी.
पुलिस हर्षदीप को थाने बुला कर पूछताछ करती, उस के पहले ही पुलिस को पता चला कि मृतक मनीष की पत्नी सपना एक महीने पहले बिना बताए कहीं चली गई थी. तब मनीष ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. बाद में वह अपने आप घर आ गई तो पुलिस ने इसे घरेलू विवाद मान कर कोई तूल नहीं दिया.
हत्यारों का पता न लगने पर व्यापारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी. पुलिस ने इलाके के कई बदमाशों को उठा कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा नहीं हुआ था. इस का नतीजा यह निकला कि मनीष के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए सिंधी समुदाय आक्रोशित हो कर सड़क पर उतर आया. पुलिस अधिकारियों ने लोगों को जल्द से जल्द केस खोलने का आश्वासन दे कर आक्रोशित लोगों को शांत किया.
इस के बाद पुलिस की कई टीमें बना कर इस मामले की छानबीन में लगा दी गईं. उसी दौरान मनीष के चाचा ने हत्या का इशारा हर्षदीप की तरफ किया. पुलिस को हर्षदीप पर पहले से ही शक था, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया गया.
पूछताछ में वह पहले मनीष की हत्या से इनकार करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से पूछा कि हत्या वाले दिन उस ने सपना से 2 बार और मनीष को एक बार फोन कर के क्या बात की थी तो पुलिस की इस बात का उस के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की, वह बहुत ही चौंकाने वाली निकली.
भोपाल की पंचवटी कालोनी के ए ब्लौक में रहने वाले दिलीप तख्तानी का एक ही बेटा था मनीष तख्तानी. दिलीप तख्तानी मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे. देश विभाजन की त्रासदी झेल कर वह अकेले ही भारत आए थे और यहां उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते अपना प्लाईवुड का बिजनेस स्थापित किया. वह शहर के जानेमाने बिजनेसमैन थे. शहर के विभिन्न इलाकों में उन की प्लाईवुड की कुल 6 दुकानें थीं. करोड़ों की हैसियत रखने वाले दिलीप ने अपनी सभी दुकानें एकलौते बेटे मनीष के नाम खोली थीं. उन्होंने बेटे को बिजनेस के सारे गुण सिखा कर उसे एमपीनगर जोन-2 की दुकान सौंप दी थी.
बेटे ने बिजनेस संभाल लिया तो दिलीप ने खंडवा की रहने वाली सपना से उस की शादी कर दी. यह 6 साल पहले की बात है. शादी के वक्त मनीष का परिवार ईदगाह हिल्स में रहता था. वहीं पड़ोस में हर्ष का भी परिवार रहता था. दिलीप तख्तानी ने अपने एकलौते बेटे मनीष की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया था. पूरे हफ्ते मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा था. नाचनेगाने वालों में हर्ष अव्वल था. उस वक्त उस की उम्र महज 17 साल थी. वह मनीष को पूरा सम्मान देते हुए भइया कहता था.
मनीष की खूबसूरत बीवी सपना को देख कर किशोर हर्ष के दिलोदिमाग में कुछकुछ होने लगा था. फिर तो सपना भाभी को देखने और उस से बातें करने के लिए वह मनीष के यहां कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा था. किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी के 2 साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम इशिता रखा गया.
मनीष को अपने कारोबार में काफी समय देना पड़ता था. पारिवारिक संबंधों के चलते हर्ष के घर आनेजाने पर न तो कोई रोकटोक थी, न ही किसी को ऐतराज था. बातचीत के दौरान वे काफी करीब आ गए थे. मोहब्बत और वासना का अंकुर कब हर्ष और सपना के दिलों में फूटा और फलाफूला, इस का अहसास उन्हें शायद हद से गुजर जाने के बाद हुआ.
उसी दौरान तख्तानी परिवार पंचवटी कालोनी स्थित अपने नए मकान में रहने आ गया, जबकि हर्षदीप सलूजा के घर वाले अवधपुरी में शिफ्ट हो गए. दोनों ही परिवार अलगअलग जगहों पर रहने जरूर चले गए, लेकिन हर्ष और सपना की मेलमुलाकातों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों अब घर से बाहर खासतौर से गुरुद्वारों में मिलने लगे थे.
बाद में हर्ष ने एक अलग मकान किराए पर ले लिया, जिस में हर्ष से मिलने के लिए सपना अकसर आनेजाने लगी. वहीं वे अपनी हसरतें पूरी करते थे. कभीकभी सपना मनीष से मायके जाने की बात कह कर घर से निकल जाती. लेकिन वह मायके न जा कर हर्ष के कमरे पर पहुंच जाती. वहां 1-2 दिन रह कर वह ससुराल लौट आती.
ससुराल में भी सपना अलग कमरे में सोती थी. रात होने पर हर्ष खिड़की के रास्ते सपना के कमरे में आ जाता था और इच्छा पूरी कर के अपने घर चला जाता था. लंबे समय तक दोनों का इसी तरह मिलनाजुलना चलता रहा. मजे की बात यह थी कि हर्ष और सपना के घर वालों में से किसी को भी उन के अवैध संबंधों के बारे में भनक नहीं लगी.
एक शादीशुदा औरत के कदम बहकते हैं तो उसे तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. सपना अब दो नावों पर सवार थी. हर्ष सपना को ले कर गंभीर था. वह उस के साथ अलग दुनिया बसाने के सपने देखने लगा था. परेशानी तब शुरू हुई, जब हर्ष सपना से शादी करने की जिद करने लगा. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दे दी कि अगर उस ने शादी से मना किया तो वह आत्महत्या कर लेगा.
हर्ष की इस जिद से सपना की नींद उड़ गई. उस के सामने एक तरफ घर की इज्जत और मानमर्यादाएं थीं तो दूसरी तरफ हर्षदीप का समर्पण था. जिस की वजह से वह भंवर में फंस चुकी थी. इस बीच सपना का व्यवहार मनीष के प्रति काफी बदल गया था.
सपना के बदले व्यवहार पर मनीष को शक हुआ तो उस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से मनीष को पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातचीत हर्ष से होती थी. उस ने जब उस से पूछा कि वह हर्ष से इतनी देर क्यों बातें करती है तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. लेकिन बाद में नारमल हो कर माफी मांग प्यार जताने लगी. मनीष सपना को बहुत चाहता था, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. यही नहीं, उस ने उसे एक महंगी कार दिलाई और खर्च के लिए एटीएम कार्ड भी दे दिया.
बकौल हर्ष, वह और सपना एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए किसी भी कीमत पर शादी करना चाहते थे. लेकिन मनीष इस में आड़े आ रहा था. कई बार उस ने सपना से शादी करने को कहा. लेकिन हर बार सपना शादीशुदा होने और मनीष का बहाना बना कर उस की बात टाल गई. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि सपना को पाने के लिए वह मनीष नाम के इस अड़ंगे को अपने रास्ते से हटा देगा. इस के लिए उस ने किराए के हत्यारों का सहारा लिया. भाड़े के हत्यारे कौन थे, पुलिस के पूछने पर हर्ष ने 2 लोगों के नाम बताए थे.
उन दोनों को भी पुलिस ने धर दबोचा. लेकिन किसी की हत्या की बात से वे साफ मुकर गए. वारदात के वक्त उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दूसरी जगह की मिली थी. लेकिन अमीन नाम का तीसरा युवक, जो हर्ष का नौकर भी था और दोस्त भी, ने पूछताछ में बताया कि हर्ष अकसर उस से पूछता रहता था कि किसी की हत्या का सब से आसान और सुरक्षित तरीका कौन सा है, तब उस ने बताया था कि अगर किसी की हत्या अकेले की जाए तो पकड़े जाने की गुंजाइश कम रहती है.
भाड़े के हत्यारों की बात झूठी निकली तो अकेले हर्ष ने कैसे मनीष की हत्या की, इस सवाल का जवाब हालफिलहाल यही समझ में आ रहा है कि हर्ष ने मनीष की हत्या का पूरा मन बना कर 11 नवंबर, 2013 को मनीष को फोन कर के किसी बहाने से चेतक ब्रिज के पास बुलाया. उस ने 6 महीने पहले एक पिस्टल भी खरीद ली थी. पूरी तैयारी के साथ वह मोटरसाइकिल से चेतक ब्रिज पहुंच गया. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी कर के वह मनीष की कार में पीछे की सीट पर बैठ कर बातें करने लगा. उसी दौरान हर्ष ने पहली गोली मनीष के सिर पर मारी. उस के बाद बाहर आ कर 2 गोलियां और मारीं.
मनीष की मौत हो गई तो हर्ष ने उस की लाश को बगल वाली सीट पर इस तरह से बैठाया कि देखने में वह जीताजागता इंसान लगे. ऐसा हुआ भी. चुनाव के दौरान चल रही वाहनों की भारी चैकिंग से बचने के लिए वह मनीष की लाश सहित कार को बरखेड़ा ले गया. वहां खंडहरनुमा मकान में लाश डाल कर उस के चेहरे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगा दी. लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह फिर चेतक ब्रिज आ गया.
रास्ते से फोन कर के उस ने अपने नौकर अमीन को पानी ले कर बुलाया और खून के धब्बे धोए. कार में चाबी उस ने इस उम्मीद के साथ लगी छोड़ दी थी कि किसी और की नजर इस पर पड़ जाए और वह कार चुरा ले जाए. इस से कत्ल की गुत्थी और उलझ जाती.
बहरहाल ऐसा नहीं हो सका. मनीष की हत्या का राज खुल गया. हर्ष ने यह भी बताया कि मनीष की हत्या की बात सपना को मालूम थी. उस ने हत्या के लिए डेढ़ लाख रुपए भी देने का वादा किया था. एडवांस के रूप में उस ने 50 हजार रुपए दिए भी थे.
हर्ष से पूछताछ के बाद पुलिस ने सपना को भी थाने बुला लिया. उस से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने भी स्वीकार किया कि वह हर्ष से प्यार करती थी. लेकिन उस ने शादी की बात से इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि शादी के लिए वह मना करती थी तो हर्ष खुदकुशी कर लेने या मनीष की हत्या करने की धमकी देता था. उस की इस बात से वह डर जाती थी. अंत में उस ने कहा कि न तो उसे हत्या के बारे में कुछ मालूम था, न ही उस ने कोई पैसे दिए थे.
पुलिस ने हर्षदीप सलूजा, अमीन और सपना से विस्तार से पूछताछ कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. इस घटना में सब से बड़ा नुकसान इशिता का हुआ, जो मां के गुनाह की सजा अपनी मौसी के पास रह कर भुगत रही है.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित