उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की एक अदालत में 23 मार्च, 2023 को काफी गहमागहमी थी. उस रोज एक बहुचर्चित मामले की सुनवाई होने वाली थी. केस आगरा से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘स्वराज्य टाइम्स’के संपादक विजय शर्मा की पत्नी नीलम शर्मा की हत्या और उन के घर में लूटपाट का था. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद के जरिए उस बहुचर्चित केस का फैसला सुनाया जाना था.
दोनों आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जा चुका था. पीडित पक्ष के लोग पहले ही आ चुके थे. कोर्टरूम के बाहर बड़ी तादात में मीडिया की निगाहें भी उन पर टिकी हुई थीं. न्यायाधीश मोहम्मद राशिद कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ चुके थे.
अखबार के संपादक के घर हुई वारदात
जिस मामले की सुनवाई होनी थी, वह वारदात दरअसल 9 साल पुरानी 20 फरवरी, 2014 की थी. उस रोज गंगे गौरीबाग, बल्केश्वर क्षेत्र के रहने वाले ‘स्वराज्य टाइम्स’ के संपादक विजय शर्मा अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए फिरोजाबाद गए हुए थे. अपने साथ बेटी निवेदिता और बेटे अंजेश को भी ले गए थे.
घर पर उन की 48 वर्षीया पत्नी नीलम शर्मा और वृद्ध पिता आनंद शर्मा रह गए थे. शर्मा को अपने बच्चों समेत उसी रोज आधी रात तक वापस लौट आना था. तय कार्यक्रम के अनुसार शर्मा बच्चों समेत लौट आए. घर का दरवाजा खटखटाते ही वह अपनेआप खुल गया. अंदर दाखिल हुए तो भीतर का दृश्य देख कर सन्न रह गए. सामने जो दिखा, उसे देख उन के होश उड़ गए. घर का सामान जहांतहां बिखरा पड़ा था. पत्नी नीलम के कमरे का दरवाजा भी खुला था. कमरे की लाइट जल रही थी.
शर्मा और बच्चे जैसे ही दरवाजे पर पहुंचे, बेटी निवेदिता और बेटे की चीख निकल गई. शर्मा कमरे घुसे. वहां पालतू जरमन शैफर्ड डौग ‘टफी’ भी खून से लथपथ पड़ा था. वहीं नीलम भी पास में ही मृत पड़ी थीं. उन के शरीर से बहुत सारा खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था.
मां की लाश देख कर दोनों भाईबहन रोने लगे. शर्मा तो जड़वत बन गए थे. वे समझ नहीं पा रहे कि यह सब कैसे हो गया? ऐसा किस ने किया? पिता आनंद शर्मा का ख्याल आते ही उन के कमरे की ओर गए. उन के कमरे की बाहर से कुंडी लगी थी. कुंडी खोली तो भीतर अंधेरा था. संभवत: वह सो रहे थे. आनंद शर्मा बेसुध सोए हुए थे. सांस चलने की आवाज आ रही थी.
दोबारा अपने कमरे में आ कर ध्यान से देखा तो पाया कि पत्नी की धारदार हथियार से हत्या की गई थी. कुत्ते पर भी कई हमले की जाने का निशान था. अलमारी की तिजोरी के खुले होने पर गहने, नकदी आदि लूट के भी सबूत मिले. कमरे से बाहर पालतू तोते ‘हीरा’का पिंजरा शाल से ढंका हुआ था. बच्चों के द्वारा शाल हटाते ही तोता जोरजोर से पंख फडफ़ड़ाता हुआ चीखने लगा.
वारदातके मिटा दिए थे सबूत
शर्मा परिवार ने इधरउधर नजर दौड़ाई. उन्होंने पाया कि वारदात के सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी. दीवारों, फर्श आदि पर खून के दागधब्बे मिटाए जाने के निशान दिख रहे थे. फर्श की सफाई की गई थी. विजय शर्मा के घर से बच्चों के रोने और शोरशराबे की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी आ गए थे. वे भी घर का दृश्य देख कर दंग रह गए.
शर्मा ने इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया. संपादक की पत्नी के मर्डर की सूचना पा कर कुछ मिनटों में ही थाना न्यू आगरा से पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. शर्मा ने उन्हें अज्ञात बदमाशों द्वारा पत्नी और पालतू कुत्ते की हत्या के साथसाथ ज्वैलरी, नकदी, घड़ी व अन्य सामान लूट की आशंका जताई.
इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम ने गहन जांच की, लेकिन फिंगरप्रिंट्स मिटाए जाने और दूसरे साक्ष्य खत्म किए जाने के चलते वारदात की तह तक जाने के सबूत नहीं मिले. हालांकि फोरैंसिक टीम को कुछ सबूत जमा करने में सफलता मिल गई थी
पुलिस के सामने हत्या और लूट की जांच एक बड़ी चुनौती थी. वे उलझन में पड़ गए थे कि हमलावर कितने लोग होंगे? घर में कैसे घुसे होंगे? इस के पीछे लूटपाट के अलावा और क्या कारण हो सकता है? इस पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभव है नीलम या उस वक्त घर में मौजूद परिवार के दूसरे किसी ने सोने से पहले दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया होगा. यह भी आशंका जताई गई कि पूरी वारदात को अंजाम देने वाला कोई परिचित भी हो सकता है.
पुलिस जांच टीम पालूत कुत्ते को धारदार हथियार से बेरहमी से मार दिए जाने को ले कर हैरान थी. नीलम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी हत्या संबंधी कुछ जानकारियां मिल गई थीं. कुत्ते के शव का पोस्टमार्टम करवा कर उस की रिपोर्ट जुटा ली गई थी. पड़ोसियों ने कुत्ते के बारबार भौंकने की आवाजें सुनी थीं, लेकिन उन्होंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. कारण पालतु कुत्ता बीचबीच में अकसर भौंकता रहता था. उन्होंने पुलिस को घटना के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.
पुलिस को नहीं मिला सुराग
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नीलम के शरीर पर धारदार हथियार से 14 और पालतू कुत्ते ‘टफी’ पर 9 वार किए गए थे. गहरी चोटें और अत्यधिक खून बहने से दोनों की मौत हो गई थी. इस संबंध में थाना न्यू आगरा में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ लूट व हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
नीलम शर्मा मर्डर केस के सबूत जुटाने और सुराग के लिए जांच टीम ने विजय शर्मा के घर को 3 दिनों तक सील कर दिया था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस को 3 लोगों पर संदेह हुआ था, लेकिन सबूत के बिना उन के खिलाफ काररवाई नहीं हो पाई थी. विजय शर्मा ने भी अपने बयान में उन्हीं 3 लोगों पर शक जताया था, जिन पर पुलिस को संदेह था.
संदिग्धों में से एक व्यक्ति का संबंध जमीन खरीद को ले कर था. इस सिलसिले में उस के साथ रुपए के लेनदेन में कुछ ज्यादा ही विवाद हो गया था. उस से पूछताछ करने पर उस ने हत्या से इनकार कर दिया, लेकिन पैसे को ले कर शर्मा के साथ विवाद की बात मान ली.
कई दिन बीत जाने के बावजूद मामले को सुलझाया नहीं जा सका था. मामला एक अखबार के संपादक से जुड़ा हुआ था. इस कारण मीडिया में जांच की देरी को ले कर कई सवाल उठने और पुलिस पर दबाव भी बनने लगा था. तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने पुलिस की टीमें बनाईं और जल्द से जल्द इस घटना का परदाफाश करने के निर्देश दिए.
तोता ‘हीरा’ने दिया हत्यारे का सुराग
शर्मा परिवार को अपने पालतु कुत्ते ‘टफी’ और तोते ‘हीरा’ से काफी प्यार था. दोनों ही परिवार के सभी सदस्यों को अच्छी तरह पहचानते थे. तोता तो घर वालों की बातों को समझता भी था. श्रीमती शर्मा खुद और उन के दोनों बच्चे तोते से बातें भी किया करते थे. वह तुरंत बोल देता था.
नीलम शर्मा तोते को अपने हाथों से छोटाछोटा निवाला दिया करती थीं. तोता पिंजरे से नुकीली चोंच बाहर निकाल कर निवाला मुंह में ले लेता था. तुरंत गटकने के बाद खुशी से पंख फडफ़ड़ा देता था. नीलम शर्मा भी खुशी से बोल देती थीं, ‘‘चलो हो गया! बस बस!!’’
यही हाल टफी का भी था. उसे भी परिवार के सदस्यों के हाथों से परोसा गया उस का खाना या उस के लिए बाजार से मंगवाया गया खाना ही पसंद था. घटना को हुए 3 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस अभियुक्तों को पकडऩा तो दूर, उन का सुराग तक नहीं लगा पाई थी.
उधर मालकिन की मौत के बाद तोता ‘हीरा’ सुस्त हो गया था. उस ने खानापीना छोड़ दिया था. कारण उस से बात करने वाला कोई नहीं था. हत्यारे ने तोते के पिंजरे पर शाल डाल दी थी. पुलिस ने जांच के सिलसिले इस बात पर भी गौर किया. मतलब निकाला गया कि बदमाशों ने टफी की तो हत्या कर दी, लेकिन तोते ने भी शोर मचाया होगा, इस कारण उस के पिंजरे को शाल से ढंक दिया होगा.
पूछताछ में शर्मा ने जब किसी परिचित पर संदेह जताया तब उन्हें एक पड़ोसी ने तोते से बात करने की सलाह दी. शायद उस से कोई सुराग मिल सके. शर्मा और उन के बच्चों को यह बात सही लगी और वे पिंजरे के पास जा कर तोते से बात करते हुए कहा, ‘‘हीरा, हीरा! घर में मालकिन का कत्ल हो गया और तुम देखते रहे! बताओ, क्यों नहीं बचाया?’’
यह सुनते ही तोता अपना पंख तेजी से फडफ़ड़ाने लगा. पिंजरे में ही इधरउधर, ऊपरनीचे करने लगा. इस हालत से उस की बेचैनी साफ झलक रही थी. उस के शांत होने पर बेटी प्यार से बोली, ‘‘मेरे मिट्ठू! मेरे हीरा!! मम्मी को किस ने मारा? आशु ने मारा?’’
यह नाम सुनते ही तोता ‘आशु आशु’ कह कर तेजी से गरदन हिला कर चीखने लगा. ऐसा कई बार हुआ. आशुतोष उर्फ आशु विजय शर्मा का भांजा था. इस की जानकारी विजय शर्मा ने पुलिस को दी. यह भी बताया कि पत्नी के अंतिम संस्कार के दिन आशु घर आया था. उस के बाद वह एक बार भी घर नहीं आया. शर्मा के कहने पर पुलिस ने भी घर आ कर इस बात को देखा कि तोता आशु के नाम पर अपना गरदन ऊपर नीचे हिला कर ‘आशुआशु’ चीखने लगता था.
तोते की गवाही पर आशु हुआ गिरफ्तार
पुलिस ने 25 फरवरी, 2014 को अर्जुन नगर, थाना शाहगंज निवासी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने इस घटना से इनकार किया, किंतु पूछताछ के दौरान उस के दाएं हाथ पर कई जख्म दिखाई दिए. इस पर पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए उन जख्मों के बारे में जानना चाहा. इस पर आशु सकपका गया. चोट के संबंध में पुलिस के सवालों के आगे आशु टिक नहीं पाया. उस ने इस अपराध को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस के सामने जो कुछ बताया उस से काफी चौंकाने वाला सच सामने आया.
उस ने बताया कि इस घटना में उस का दोस्त रोनी मैसी भी शामिल था. उस की भी तुरंत गिरफ्तारी हो गई. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कटार (चाकू), हत्या के दौरान लूटे गए गहने, नकदी व घड़ी समेत वारदात में प्रयोग किया गया स्कूटर बरामद कर लिया गया. हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने माल बरामदगी के साथ पूरा क्राइम सीन रीक्रिएट कर साक्ष्य जुटाए. आशु ने बताया कि उस ने अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ मिल कर ही इस घटना को अंजाम दिया था. पहले वह मामामामी के घर में ही रहता था.
दरअसल, विजय शर्मा का बेटा अजेश मानसिक रूप से बीमार रहता था. तब उन्होंने अपने सगे भांजे आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को बेटे की तरह पाला था, लेकिन उस के गलत आचरण की वजह से उन्होंने उसे अलग रहने को कह दिया. तब वह अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ अर्जुन नगर में रहने लगा. लेकिन उस का अपने मामा के यहां आनाजाना लगा रहता था. उसे उन के घर की हर चीज की जानकारी थी.
आशु को मामा के पास घर में काफी गहने व नकदी मौजूद होने की जानकारी थी. उसे वारदात वाली रात को मामा के फिरोजाबाद में शादी में जाने और मामी के घर में अकेले होने की जानकारी थी. उसे रुपयों की जरूरत थी. इसी लूट के इरादे से उस ने अपनी योजना में दोस्त रोनी मैसी को भी शामिल कर लिया.
भांजा बना आस्तीन का सांप
योजना के अनुसार दोनों रात को स्कूटर से मामा के घर पहुंचे. आशु ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. आवाज पहचान कर मामी नीलम शर्मा ने दरवाजा खोल दिया. दोनों घर में घुस आए. पालतू कुत्ता टफी भौंका, लेकिन आशु ने उसे पुचकार कर शांत कर दिया. वह आशु को पहचानता था. रोनी मैसी नकाब में था. उस ने नीलम शर्मा को कमरे में ले जा कर उन्हें धमकाते हुए कहा कि यदि अपनी जान की खैर चाहती हो तो कैश और गहने निकाल कर दे दो.
पीछे से आशु भी कमरे में पहुंच गया. इस पर नीलम की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने आशु से नाराज हो कर ऐसा करने से मना किया. इस पर आशु भी गुस्से में आ गया और साथ लाए तेज धार वाले कटार (चाकू) से नीलम शर्मा के ऊपर ताबड़तोड़ हमले कर दिए. वह तुरंत जमीन पर गिर पड़ीं.
नीलम पर हमला होते देख पालतू कुत्ता ‘टफी’ आशु पर झपट पड़ा. अपने बचाव में आशु ने कटार से कुत्ते पर भी तेजी से लगातार वार कर दिया. उसे भी वहीं मार डाला. यह देख कर पिंजरे में बंद तोते ने शोर मचाया तो उन्होंने पिंजरा वहां पड़े शाल से ढक दिया. मामी और कुत्ते की हत्या के बाद गहने, नकदी आदि लूट कर दोनों फरार हो गए. फरार होने से पहले दोनों ने सारे सबूत भी मिटा दिए.
आशु और रोनी के इन बयानों के आधार पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 394, 302, 429, 411, 4/25 आम्र्स ऐक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश कर दिया. कोर्ट में सुनवाई के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया.
9 साल बाद मिला न्याय
इस सनसनीखेज केस की सुनवाई आगरा जिले के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद की कोर्ट में 9 साल तक चली. पुलिस ने जो चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी, उस में जुटाए गए साक्ष्य ज्यादा ठोस नहीं थे, लेकिन अभियोजन टीम ने इन को मजबूत साक्ष्यों के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस मामले में फोरैंसिक टीम जांच के बाद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी.
अभियोजन पक्ष के पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा गवाह भी थे, लेकिन वह बहुत अधिक मजबूत नहीं लग रहे थे. ऐसे में अभियोजन पक्ष के सामने उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर दोषियों का दोष सिद्ध कर उन्हें सजा दिलाने की कड़ी चुनौती थी.
अभियोजन टीम ने इस संबंध में आगरा के संयुक्त निदेशक अभियोजन महेंद्र कुमार दीक्षित से सलाहमशविरा किया. अभियोजन पक्ष, जिस में वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी जय नारायण गुप्ता, अभियोजन अधिकारी मनीष कुमार तथा एडीजीसी (क्राइम) आदर्श चौधरी शामिल थे, ने ठोस साक्ष्यों के अभाव के बावजूद अथक परिश्रम कर मौजूद साक्ष्यों की छोटी से छोटी कडिय़ों को जोड़ कर दमदार पैरवी की.
दोषियों को हुई उम्रकैद
9 साल तक केस का ट्रायल चला. बहस के दौरान अभियोजन टीम ने अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस केस में वादी संपादक विजय शर्मा की कोरोना के दौरान 2021 में मृत्यु हो चुकी थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाह पेश किए गए. इन में वादी की बेटी निवेदिता तथा 3 अन्य गवाह लोकेश शर्मा, हरेश पचौरी व सुनील शर्मा के बयानों को आधार बनाया.
अभियोजन टीम ने बहस के दौरान कहा कि गवाह लोकेश शर्मा ने आरोपी आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त रोनी मैसी को स्कूटर पर विजय शर्मा के घर की ओर जाते देखा था. वहीं हरेश पचौरी ने उसी स्कूटर पर आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त को निकलते देखा था. जबकि गवाह सुनील शर्मा ने घटना के बाद जब मृतका नीलम शर्मा की डैडबौडी पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए घर पर आई तो उस समय आरोपी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु, जिसे वे पहले से जानते थे, को वहां देखा. आशुतोष के हाथ पर चोट के निशान थे, जो मृतका नीलम की हत्या के समय उन के पालतू डौगी द्वारा आशुतोष पर हमला किए जाने के दौरान आए थे.
बहस के दौरान अभियोजन अधिकारियों ने कहा कि उस के बाद आरोपी आशुतोष व उस का दोस्त रोनी मैसी फरार हो गए. बाद में पुलिस ने दोनों को उसी स्कूटर सहित गिरफ्तार कर लिया और उन की निशानदेही पर मृतका नीलम के घर से लूटे गए आभूषण, नकदी तथा हत्या में प्रयुक्त (आलाकत्ल) कटार को बरामद कर लिया गया.
घटना के समय नीलम शर्मा के वफादार पालतू जरमन शैफर्ड डौग टफी तथा तोते ने अपनी अपनी तरह से आरोपियों का प्रतिरोध किया था. इस दौरान आशुतोष के शरीर पर चोटें आई थीं. इस पर आशुतोष ने डौग टफी को मार दिया गया व तोते के शोर मचाने पर पिंजरे को शाल से ढंक दिया गया था. इस के बाद हत्या व लूट को अंजाम दिया. इन आरोपियों के अलावा यह अपराध अन्य किसी ने नहीं किया है. अभियुक्तों की ओर से एक गवाह पेश किया गया. जिस की गवाही न्यायालय ने नहीं मानी. वहीं बचाव पक्ष की दलीलों को भी नकार दिया गया.
कोर्ट में पेश किए गए गवाहों, सबूतों और दोनों ओर के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश मोहम्मद राशिद ने दोनों आरोपियों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और रोनी मैसी को दोषी मानते हुए उम्रकैद व 72 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई.
दोनों आरोपियों को 4 मामलों में सजा सुनाई गई. आशुतोष और रोनी मैसी को धारा 394 भादंवि लूट के मामले में 10 वर्ष के कठिन कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाने की सजा मिली, वहीं धारा 302 आईपीसी में आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए जुरमाना था. धारा 429 आईपीसी में 4 वर्ष कारावास, 3 हजार रुपए जुरमाना, धारा 411 आईपीसी में लूटा गया माल बरामदगी में 3 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए का जुरमाना तथा आशुतोष को धारा 4/25 आयुध अधिनियम में 2 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने कहा कि सभी सजाएं साथसाथ चलेंगी.
दोनों अभियुक्तों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और उस के दोस्त रोनी मैसी जमानत पर थे. वे दोनों कोर्ट में मौजूद थे. पुलिस ने फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.
एडीजीसी आदर्श चौधरी ने बताया कि इस केस में तोता ‘हीरा’ पुलिस की विवेचना का हिस्सा रहा था, लेकिन वह साक्ष्य का हिस्सा नहीं हो सका, क्योंकि कोर्ट में पक्षी की गवाही के लिए कोई कानूनन विधि नहीं है.
ऐसे अपराधी सोचते हैं कि वे मौके से साक्ष्य मिटा कर के अपना गला बचा लेंगे. सजा मिलने से ऐसे अपराधियों को खौफ होगा और न्याय की देवी पर लोगों का भरोसा कायम रहेगा.