आज का युग कंप्यूटर और इंटरनेट का युग है. कंप्यूटर की मदद के बिना किसी बड़े काम की कल्पना करना भी मुश्किल है. ऐसे में अपराधी भी तकनीक के सहारे हाईटेक हो रहे हैं. वे जुर्म करने के लिए कंप्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज और वल्र्ड वाइड वेब आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं.
औनलाइन ठगी या चोरी भी इसी श्रेणी का अहम गुनाह होता है. किसी की वेबसाइट को हैक करना या सिस्टम डेटा को चुराना ये सभी तरीके साइबर क्राइम की श्रेणी में आते हैं. साइबर क्राइम सुरक्षा और जांच एजेंसियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. इसलिए आप को समझना होगा कि साइबर अपराध क्या है, इस की रोकथाम के लिए क्या कानून हैं और उस में सजा के क्या प्रावधान हैं?
साइबर क्राइम को ले कर सख्त कानून
भारत में साइबर क्राइम के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है. सरकार ऐसे मामलों को ले कर बहुत गंभीर है. भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं. मगर इसी श्रेणी के कई मामलों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कापीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी काररवाई की जा सकती है.
कई मामलों में लागू होता है आईटी कानून
साइबर क्राइम के कुछ मामलों में आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आईटी नियम 2011 के तहत भी काररवाई की जाती है. इस कानून में निर्दोष लोगों को साजिशों से बचाने के इतंजाम भी हैं. लेकिन कंप्यूटर, इंटरनेट और दूरसंचार इस्तेमाल करने वालों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि उन से जानेअनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है.
हैकिंग: धाराएं और सजा
किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफार्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना हैकिंग कहलाता है. यह उस सिस्टम की फिजिकल एक्सेस और रिमोट एक्सेस के जरिए भी हो सकती है. जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के दौरान उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो. अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है तो भी घुसपैठ करना साइबर क्राइम के तहत आता है, जिस के लिए सजा का प्रावधान है. आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66, आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत अपराध साबित होने पर 3 साल तक की जेल या 5 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.
जानकारी या डेटा चोरी
किसी व्यक्ति, संस्थान या संगठन आदि के किसी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा या सूचनाओं की चोरी करना भी साइबर क्राइम है. अगर किसी संस्थान या संगठन के अंदरूनी डेटा तक आप की पहुंच है, लेकिन आप अपनी उस जायज पहुंच का इस्तेमाल संगठन की इजाजत के बिना, उस के नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं तो वह भी इसी अपराध के दायरे में आएगा.
काल सेंटर्स या लोगों की जानकारी रखने वाले संगठनों में इस तरह की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं. ऐसे मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी), आईपीसी की धारा 379, 405, 420 और कापीराइट कानून के तहत दोष साबित होने पर अपराध की गंभीरता के हिसाब से 3 साल तक की जेल या 2 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.
वायरस, स्पाईवेयर फैलाना
अकसर कंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर को हटाने पर लोग ध्यान नहीं देते हैं. उन के सिस्टम से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं. हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाईफाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैल जाते हैं. वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी एक इंडस्ट्री है, जिन के खिलाफ वक्तवक्त पर कड़ी काररवाई होती रही है.
लेकिन आम लोग भी कानून के दायरे में आ सकते हैं. अगर उन की लापरवाही से किसी के सिस्टम में कोई खतरनाक वायरस पहुंच जाए और बड़ा नुकसान कर दे. इस तरह के केस में आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66, आईपीसी की धारा 268 और देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरस पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लगाई जाती है. दोष सिद्ध होने पर साइबर वार और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्रकैद का प्रावधान है. जबकि अन्य मामलों में 3 साल तक की जेल या जुरमाना हो सकता है.
पहचान की चोरी
किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं वगैरह का इस्तेमाल करना भी साइबर अपराध है. यदि कोई इंसान दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ईकामर्स ट्रांजैक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रौनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करके शौपिंग या धन की निकासी करता है तो वह इस अपराध में शामिल हो जाता है. जब आप किसी दूसरे शख्स के नाम पर या उस की पहचान का आभास देते हुए कोई जुर्म करते हैं या उस का नाजायज फायदा उठाते हैं तो यह जुर्म आइडेंटिटी थेफ्ट के दायरे में आता है. ऐसा करने वाले पर आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी), आईपीसी की धारा 419 लगाए जाने का प्रावधान है. जिस में दोष साबित होने पर 3 साल तक की जेल या एक लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.
ईमेल स्पूफिंग और फ्रौड
अकसर आप के इनबौक्स या स्पैम बौक्स में कई तरह के ईनाम देने वाले या बिजनैस पार्टनर बनाने वाले या फिर लौटरी निकलने वाले मेल आते हैं. ये सभी मेल किसी दूसरे शख्स के ईमेल या फरजी ईमेल आईडी के जरिए किए जाते हैं. किसी दूसरे के ईमेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ईमेल भेजना इसी अपराध की श्रेणी में आता है.
हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस, स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फरजी ईमेल का इस्तेमाल अधिक होता है. ऐसा काम करने वाले अपराधियों का मकसद ईमेल पाने वाले को धोखा दे कर उस की गोपनीय जानकारी हासिल करना होता है. ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ईकामर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं. इस तरह के मामलों में आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी, आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी, आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465 लगाए जाने का प्रावधान है. दोष साबित होने पर 3 साल तक की जेल या जुरमाना हो सकता है.
इंटरनेट के माध्यम से अश्लीलता का व्यापार भी खूब फलफूल रहा है. ऐसे में पोर्नोग्राफी एक बड़ा कारोबार बन गई है. जिस के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, औडियो और सामग्री आती है, जो यौन, यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो. ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रौनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिए प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है.
दूसरों के नग्न या अश्लील वीडियो तैयार करने वाले या ऐसा एमएमएस बनाने वाले या इलेक्ट्रौनिक माध्यमों से इन्हें दूसरों तक पहुंचाने वाले और किसी को उस की मरजी के खिलाफ अश्लील संदेश भेजने वाले लोग इसी कानून के दायरे में आते हैं.
पोर्नोग्राफी प्रकाशित करना और इलेक्ट्रौनिक जरियों से दूसरों तक पहुंचाना अवैध है, लेकिन उसे देखना, पढऩा या सुनना अवैध नहीं माना जाता. जबकि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध माना जाता है.
इस के तहत आने वाले मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 67 (ए), आईपीसी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509 के तहत सजा का प्रावधान है. जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर 5 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है लेकिन दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा 7 साल तक बढ़ सकती है.
चाइल्ड पोर्नोग्राफी
बच्चों के साथ पेश आने वाले मामलों पर कानून और भी ज्यादा सख्त है. बच्चों को सैक्सुअल एक्ट में शामिल करना या नग्न दिखाना या इलेक्ट्रौनिक फार्मेट में कोई सामग्री प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना भी इसी कानून के तहत आता है. बल्कि भारतीय कानून के मुताबिक जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह भी गैरकानूनी माना जाता है.
बच्चों को बहलाफुसला कर संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उन के साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकौर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसी के तहत आते हैं. इस कानून में 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चों की श्रेणी में माना जाता है.
ऐसे मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 67 (बी), आईपीसी की धाराएं 292, 293, 294, 500, 506 और 509 के तहत सजा का प्रावधान है. पहले अपराध पर 5 साल की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है. लेकिन दूसरे अपराध पर 7 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.
बच्चों और महिलाओं को तंग करना
आज के दौर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स खूब चलन में हैं. ऐसे में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ईमेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले अकसर सामने आते हैं. इन आधुनिक तरीकों से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर अपराध के दायरे में ही आता है. किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना, नफरत फैलाना या बदनाम करना भी इसी श्रेणी का अपराध है.
इस तरह के केस में आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए) के तहत सजा का प्रावधान है. दोष साबित होने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है.
-डा. रामअवतार शर्मा
एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट औफ इंडिया