प्रियंका को जल्दीजल्दी तैयार होता देख उस की मां चित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज कहीं जल्दी जाना है क्या, जो इतनी  जल्दी उठ कर तैयार हो गई?’’

‘‘हां मम्मी, परसों जो मैडम आई थीं, जिन्हें मैं ने अपने फोटो, आई कार्ड और सीवी दिया था, उन्होंने बुलाया है. कह रही थीं कि उन्होंने अपने अखबार में मेरी नौकरी की बात कर रखी है. इसलिए मुझे टाइम से पहुंचना है.’’

प्रियंका ने कहा तो चित्रा ने टिफिन में खाना पैक कर के उसे दे दिया. प्रियंका ने टिफिन अपने बैग में रखा और शाम को जल्दी लौट आने की बात कह कर बाहर निकल गई.   कुछ देर बाद प्रियंका के पापा जगवीर भी अपने क्लीनिक पर चले गए तो चित्रा घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन शाम को करीब साढ़े 5 बजे जगवीर सिंह के मोबाइल पर उन के साले ओमदत्त का फोन आया.

ओमदत्त ने उन्हें बताया, ‘‘जीजाजी, मेरे फोन पर कुछ देर पहले प्रियंका का फोन आया था. वह कह रही थी कि बच्चू सिंह ने अपने बेटे राहुल और कुछ बदमाशों की मदद से उस का अपहरण करवा लिया है और वह अलीगढ़ के पास खैर इलाके के वरौला गांव में है.’’

ओमदत्त की बात सुन कर जगवीर सिंह की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और क्लीनिक बंद कर के घर आ गए. तब तक उन का साला ओमदत्त भी उन के घर पहुंच गया था. मामला गंभीर था. विचारविमर्श के बाद दोनों गाजियाबाद के थाना कविनगर पहुंचे और लिखित तहरीर दे कर 25 वर्षीया प्रियंका के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जगवीर सिंह सपरिवार गोविंदपुरम गाजियाबाद में किराए के मकान में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चित्रा के अलावा 3 बच्चे थे—बेटी प्रियंका और 2 बेटे पंकज व तितेंद्र. उन का बड़ा बेटा पंकज एक टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की गाड़ी चलाता था, जबकि छोटा तितेंद्र सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था.

जगवीर सिंह ने 7 साल पहले प्रियंका की शादी गुलावठी के धर्मेंद्र चौधरी के साथ कर दी थी. धर्मेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में काम करता था. शादी के 1 साल बाद प्रियंका एक बेटे की मां बन गई थी, जो अब 6 साल का है. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से जगवीर अपने बच्चों को अधिक पढ़ालिखा नहीं सके. उन का छोटा सा क्लीनिक था, जहां वह बतौर आरएमपी प्रैक्टिस करते थे. यही क्लीनिक उन की आय का एकमात्र साधन था.

प्रियंका शहर में पलीबढ़ी महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. शादी के बाद गांव उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा. इसी को ले कर जब पतिपत्नी में अनबन रहने लगी तो प्रियंका ने पति से अलग रहने का निर्णय ले लिया और बेटे सहित धर्मेंद्र का घर छोड़ कर मातापिता के पास गाजियाबाद आ गई. जगवीर सिंह की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब थी. बेटे सहित प्रियंका के मायके आ जाने से उन के पारिवारिक खर्चे और भी बढ़ गए.

किसी भी मांबाप के लिए यह किसी विडंबना से कम नहीं होता कि उन की बेटी शादी के बाद भी उन के साथ रहे. इस बात को प्रियंका अच्छी तरह समझती थी. इसलिए वह अपने स्तर पर नौकरी की तलाश में लग गई. काफी खोजबीन के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मोबाइल शौप पर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.

मोबाइल शौप पर काम करते हुए प्रियंका की मुलाकात तरुण से हुई. तरुण चढ़ती उम्र का अच्छे परिवार का लड़का था. पहली ही मुलाकात में तरुण आंखों के रास्ते प्रियंका के दिल में उतर गया. बातचीत हुई तो दोनों ने अपनाअपना मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिया. इस के बाद दोनों प्राय: रोज ही एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे. जल्दी ही मिलनेमिलाने का सिलसिला भी शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे को दिन में कई बार फोन और एसएमएस करने लगे. जब समय मिलता तो दोनों साथसाथ घूमते और रेस्टोरेंट वगैरह में जाते. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं.

तरुण के पिता बच्चू सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और गाजियाबाद के थाना मसूरी में तैनात थे. जब तरुण और प्रियंका के संबंध गहराए तो उन दोनों की प्रेम कहानी का पता बच्चू सिंह को भी लग गया.   उन्होंने जब इस बारे में तरुण से पूछा तो उस ने बेहिचक सारी बातें पिता को बता दीं. प्रियंका के बारे में भी सब कुछ और यह भी कि वह उस से शादी की इच्छा रखता है. उधर प्रियंका भी तरुण से शादी का सपना देखने लगी थी.

बेटे की प्रेमकहानी सुन कर बच्चू सिंह बहुत नाराज हुए. उन्होंने तरुण से साफसाफ कह दिया कि वह प्रियंका से दूर रहे, क्योंकि एक तलाकशुदा और एक बच्चे की मां कभी भी उन के परिवार की बहू नहीं बन सकती. इतना ही नहीं, उन्होंने प्रियंका को भी आगे न बढ़ने की सख्त चेतावनी दी. प्रियंका और अपने बेटे की प्रेम कहानी को ले कर वह तनाव में रहने लगे.

बच्चू सिंह ने प्रियंका और तरुण को चेतावनी भले ही दे दी थी, पर वे जानते थे कि ऐसी स्थिति में न लड़का समझेगा न लड़की. इसी वजह से उन्हें इस समस्या का कोई आसान हल नहीं सूझ रहा था. आखिर काफी सोचविचार कर उन्होंने प्रियंका को समझाने का फैसला किया.

बच्चू सिंह ने प्रियंका को समझाया भी, लेकिन वह शादी की जिद पर अड़ी रही. इतना ही नहीं, ऐसा न होने पर उस ने बच्चू सिंह को परिवार सहित अंजाम भुगतने की धमकी तक दे डाली. अपनी इस धमकी को उस ने सच भी कर दिखाया.

1 मार्च, 2013 को उस ने थाना कविनगर में बच्चू सिंह, उन की पत्नी, बेटे राहुल, नरेंद्र, प्रशांत और रोबिन के खिलाफ धारा 376, 452, 323, 506 व 406 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में उस ने घर में घुस कर मारपीट, बलात्कार और 70 हजार रुपए लूटने का आरोप लगाया. बलात्कार का आरोप लगने से बच्चू सिंह के परिवार की बड़ी बदनामी हुई.

इस मामले में बच्चू सिंह का नाम आने पर उन का तबादला मेरठ के जिला बागपत कर दिया गया. मामला चूंकि एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, सो इस सिलसिले में गंभीर जांच करने के बजाय विभागीय जांच के नाम पर इसे लंबे समय तक लटकाए रखा गया.

जबकि दूसरे आरोपियों के खिलाफ कानूनी काररवाई की गई. उधर बच्चू सिंह के खिलाफ कोई विशेष काररवाई न होते देख प्रियंका ने उन के बड़े बेटे राहुल और उस के दोस्त के खिलाफ 17 जून, 2013 को छेड़खानी व मारपीट का एक और मुकदमा दर्ज करा दिया. इस से बच्चू सिंह का परिवार काफी दबाव में आ गया.

2-2 मुकदमों में फंसने से बच्चू सिंह और उन के परिवार को रोजरोज कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे थे. इसी सब के चलते 31 नवंबर, 2013 को प्रियंका घर से गायब हो गई. प्रियंका के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने पर थानाप्रभारी कविनगर ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर शिवराज सिंह को सौंप दी. शिवराज सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए पिछले 2 केसों की भी जांच कर रहे थे. उन्होंने पिछले दोनों केसों की तरह इस मामले में भी कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली.

दूसरी ओर प्रियंका के मातापिता लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे. उन्होंने डीआईजी, आईजी और गाजियाबाद के एसपी, एसएसपी तक सभी अधिकारियों को अपनी परेशानी बताई . लेकिन किसी भी स्तर पर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच अचानक थानाप्रभारी कविनगर का तबादला हो गया. उन की जगह नए थानाप्रभारी आए अरुण कुमार सिंह.

अरुण कुमार सिंह ने प्रियंका के अपहरण के मामले में विशेष दिलचस्पी लेते हुए इस की जांच का जिम्मा बरेली से तबादला हो कर आए तेजतर्रार एसएसआई पवन चौधरी को सौंप कर कड़ी जांच के आदेश दिए. पवन चौधरी ने जांच में तेजी लाते हुए इस मामले में उस अज्ञात नामजद महिला पत्रकार के बारे में पता किया, जिस ने लापता होने वाले दिन प्रियंका को नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था.

छानबीन में यह भी पता चला कि उस महिला का नाम रश्मि है और वह अपने पति के साथ केशवपुरम में किराए के मकान में रहती है. यह भी पता चला कि वह खुद को किसी अखबार की पत्रकार बताती है. पवन चौधरी ने रश्मि का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात साफ हो गई कि 31 नवंबर को उसी ने प्रियंका को फोन किया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने 18 फरवरी, 2014 को रात साढ़े 12 बजे रश्मि और उस के पति अमरपाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो पहले तो पतिपत्नी ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन जब उन के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वे टूट गए. मजबूर हो कर उन दोनों ने सारा राज खोल दिया. पता चला कि प्रियंका की हत्या हो चुकी है.

रश्मि और उस के पति अमरपाल के बयानों के आधार पर 19 फरवरी को सब से पहले सिपाही विनेश कुमार को गाजियाबाद पुलिस लाइन से गिरफ्तार किया गया. इस के बाद उसी दिन इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड बच्चू सिंह को टटीरी पुलिस चौकी, बागपत से गिरफ्तार कर गाजियाबाद लाया गया.

थाने पर जब सब से पूछताछ की गई तो पता चला कि बच्चू सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमों से बहुत परेशान रहने लगे थे. इसी चक्कर में उन का तबादला भी बागपत कर दिया गया था. यहीं पर बच्चू सिंह की मुलाकात उन के साथ काम करने वाले सिपाही राहुल से हुई.

राहुल अलीगढ़ का रहने वाला था. बच्चू सिंह ने अपनी समस्या के बारे में उसे बताया. राहुल पर भी अलीगढ़ में एक मुकदमा चल रहा था, जिस के सिलसिले में वह पेशी पर अलीगढ़ आताजाता रहता था. राहुल का एक दोस्त विनेश कुमार भी पुलिस में था और गाजियाबाद में तैनात था. विनेश जब एक मामले में अलीगढ़ जेल में था तो उस की मुलाकात एक बदमाश अमरपाल से हुई थी.

विनेश ने अमरपाल की जमानत में मदद की थी. इस के लिए वह विनेश का एहसान मानता था. बच्चू सिंह ने राहुल और विनेश कुमार के माध्यम से अमरपाल से प्रियंका की हत्या का सौदा 2 लाख रुपए में तय कर लिया. योजना के अनुसार अमरपाल ने इस काम के लिए अपनी पत्नी रश्मि की मदद ली. उस ने रश्मि को प्रियंका से दोस्ती करने को कहा.  उस ने प्रियंका से दोस्ती गांठ कर उसे विश्वास में ले लिया.

रश्मि को जब यह पता चला कि प्रियंका को नौकरी की जरूरत है तो उस ने खुद को एक अखबार की पत्रकार बता कर प्रियंका को 30 नवंबर, 2013 की सुबह फोन कर के घर से बाहर बुलाया और बसअड्डे ले जा कर उसे अमरपाल को यह कह कर सौंप दिया कि वह अखबार का सीनियर रिपोर्टर है और अब आगे उस की मदद वही करेगा.

अमरपाल प्रियंका को बस से लालकुआं तक लाया, जहां पर रितेश नाम का एक और व्यक्ति मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार कर रहा था. तीनों उसी बाइक से ले कर देर शाम अलीगढ़ पहुंचे.वहां से वे लोग खैर के पास गांव बरौला गए. तब तक प्रियंका को शक हो गया था कि वह गलत हाथों में पहुंच गई है. जब एक जगह बाइक रुकी तो प्रियंका ने बाथरूम जाने के बहाने अलग जा कर अपने मामा को फोन कर के अपनी स्थिति बता दी.

बाद में जब इन लोगों ने एक नहर के पास बाइक रोकी तो प्रियंका ने भागने की कोशिश भी की. लेकिन वह गिर पड़ी. यह देख अमरपाल और रितेश ने उसे पकड़ लिया और उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या के बाद इन लोगों ने प्रियंका की लाश नहर में फेंक दी और अलीगढ़ स्थित अपने घर चले गए. इस हत्याकांड में बच्चू सिंह के बेटे राहुल की भी संलिप्तता पाए जाने पर पुलिस ने अगले दिन उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड में नाम आने पर सिपाही राहुल फरार हो गया था, जिसे पुलिस गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी. पूछताछ के बाद सभी गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन गाजियाबाद अदालत में पेश किया गया, जहां से रश्मि, बच्चू सिंह, विनेश कुमार और तरुण को जेल भेज दिया गया. जबकि अमरपाल को रिमांड पर ले कर प्रियंका की लाश की तलाश में खैर इलाके का चक्कर लगाया गया.

लेकिन वहां पर लाश का कोई अवशेष नहीं मिला. पुलिस ने उस इलाके की पूरी नहर छान मारी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. रिमांड अवधि पूरी होने पर अमरपाल को भी डासना जेल भेज दिया गया. फिलहाल सभी अभियुक्त डासना जेल में बंद हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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