सुबह के लगभग 9 बजे थाना गोरेगांव पश्चिम में ड्यूटी पर तैनात पुलिस उपनिरीक्षक कादवाने को सूचना मिली कि  गोरेगांव के प्रेमनगर के विश्वकर्मा रोड की अंकुर बिल्डिंग के पास हाइपर सिटी मौल के पीछे से बहने वाले नाले में एक लाश पड़ी है. मामला हत्या का लगता है. यह सूचना उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से मिली थी. उन्होंने तुरंत यह जानकारी थाने में उपस्थित पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को दी.

भाई माहाडेश्वर सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाना से लगभग 1 किलोमीटर दूर था. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने देखा, प्लास्टिक की एक बड़ी सी थैली में लाश भरी थी, जिस का मुंह मजबूत रस्सी से बंधा हुआ था. पुलिस ने थैली को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया. लाश निकाल कर उस का निरीक्षण शुरू हुआ.

मृतक की उम्र 35 से 40 साल के बीच थी. उस की हत्या जिस बेरहमी से की गई थी, इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे को मृतक से गहरी नफरत थी. उस के गले, पेट, सीने और सिर पर काफी बड़ेबड़े घाव थे. लाश मोटी सी चादर में लपेट कर थैली में भरी गई थी. पूरी चादर खून से भीगी हुई थी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर थाना गोरेगांव के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव भी आ पहुंचे. वह भी शव का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. निरीक्षण के बाद शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की जा रही थी कि पुलिस उपायुक्त महेश पाटिल और सहायक पुलिस आयुक्त उत्तम खैर भोड़े भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी शव और घटनास्थल का निरीक्षण किया.

पुलिस अधिकारी शव एवं घटनास्थल का निरीक्षण कर के चले गए. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव ने घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कीं और शव को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. न तो लाश की शिनाख्त हुई थी, न घटनास्थल से ऐसी कोई चीज मिली थी, जिस से मामले की जांच में उन्हें मदद मिलती. उन्होंने इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को सौंप दी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश जाधव, पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर, सिपाही प्रमोद तावड़े, मंगेश घोमणे, शिवराज सावंत, किरण लंगड़े और रामचंद्र सारंग को शामिल किया. पुलिस टीम यह पता लगाने में जुट गई कि मृतक कौन था, क्योंकि जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती, जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी.

पहले तो इस टीम ने मृतक का हुलिया बता कर शहर के सभी पुलिस थानों से यह जानने की कोशिश की इस तरह के आदमी की कहीं गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब इस पुलिस टीम को शहर के किसी थाने में कोई गुमशुदगी न दर्ज होने की सूचना मिली तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने मुंबई से निकलने वाले सभी दैनिक समाचार पत्रों में शव की तसवीरें छपवा कर शिनाख्त की अपील की. मगर इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ.

जब पुलिस टीम को कोई रास्ता नहीं सूझा तो टीम में शामिल पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर ने मृतक की फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो भेज कर यह जानने की कोशिश की कि उस के बारे में कोई जानकारी तो नहीं दर्ज है.  आखिर सप्ताह भर बाद फिंगरप्रिंट ब्यूरो से मृतक के बारे में जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो के रिकौर्ड के अनुसार मृतक का नाम मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला था. वह मालाड पूर्व के मातंगगढ़ की स्लम बस्ती की पिपली पाड़ा पानी की टंकी के पास रहता था.

वह अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था. 2002 में उसे थाना मालाड कुराद विलेज पुलिस ने दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा था. इस मामले में उसे सन 2003 में 7 साल की सजा हुई थी. लेकिन उस ने यह सजा पूरी नहीं की. 2005 में वह पैरोल पर बाहर आया तो वापस जेल नहीं गया.

मृतक की शिनाख्त हो गई तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर उस के बारे में पता लगाने लगे. वह फिंगरप्रिंट ब्यूरो द्वारा मिले पते पर पहुंचे तो वहां उस की पूर्व पत्नी रेहाना चौधरी मिली. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस का और बाबू लाईटवाले का वैवाहिक संबंध 2001 में उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन वह दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा गया था. उस के जेल जाने के बाद उस ने अजीत पटेल से विवाह कर के अपनी अलग गृहस्थी बसा ली थी. उस के बाद बाबू लाईटवाला का उस से कोई संबंध नहीं रह गया था.

रेहाना चौधरी के इस बयान से पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया था. लेकिन पुलिस निराश नहीं हुई. रेहाना चौधरी को विश्वास में ले कर बाबू लाईटवाला के दोस्तों के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘उस के दोस्तों के बारे में मुझे अधिक तो नहीं मालूम, लेकिन 3 महीने पहले उस का एक दोस्त मेरे पास पैसों के लिए आया था. उस ने फोन कर के कहा था कि उसे पैसों की बहुत जरूरत है, इसलिए वह अपने एक दोस्त को भेज रहा है. उसे एक हजार रुपए दे देना.’’

रेहाना चौधरी की इस बात से पुलिस टीम को आशा की एक किरण दिखाई दी. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेहाना चौधरी से वह मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से बाबू लाईटवाला ने फोन कर के 1 हजार रुपए मंगाए थे. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में एक नंबर ऐसा था, जिस पर उस नंबर से सब से ज्यादा बात हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद था. तब पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नीलेश का था. लेकिन उस की आईडी में जो पता लिखा था, उस पर वह नहीं मिला. तब पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में भी एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह चल रहा था. बातचीत में पता चला कि वह नंबर नीलेश की प्रेमिका का था.

पुलिस नीलेश के बारे में पता करने उस की प्रेमिका के पास पहुंची तो पूछताछ में उस ने बताया कि कुछ दिनों पहले नीलेश ने उसे फोन कर के बताया था कि उस पर लाईटवाला की हत्या का आरोप है, इसलिए इन दिनों वह उस से मिलने नहीं आ सकता. उस ने यह भी कहा था कि वह उसे भूल जाए और किसी दूसरे से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ले. प्रेमी की इस बात से वह काफी परेशान थी.

इस बात से साफ हो गया था कि बाबू लाईटवाला की हत्या नीलेश ने की थी. अब पुलिस उसे गिरफ्तार करने की फिराक में लग गई थी. प्रेमिका से पुलिस को नीलेश का पता मिल ही गया था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. लेकिन बड़ी आसानी से वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

दरअसल पुलिस टीम उसे पहचानती तो थी नहीं, इसलिए उस के घर पहुंच कर जब पुलिस वालों ने उसी से नीलेश के बारे में पूछा तो उस ने पुलिस से कह दिया कि वह शूटिंग पर गया है, शाम को मिलेगा. पुलिस टीम वापस चली गई तो वह फरार हो गया.   बाद में जब पुलिस टीम को इस बात की जानकारी हुई तो वह हाथ मल कर रह गई. लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. वह नीलेश की तलाश में तेजी से लग गई. आखिर अपने मुखबिरों की मदद से पुलिस ने नीलेश को ढूंढ़ निकाला.

10 अक्तूबर, 2013 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि नीलेश अपने किसी रिश्तेदार से मिलने गोरेगांव राम मंदिर रोड़ पर स्थित एमएमआरडी में आने वाला है. इसी सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेर कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

तमिलनाडु का रहने वाला 30 वर्षीय नीलेश गोडसे लगभग 10 साल पहले मुंबई आया तो गोरेगांव पूर्व चरण देव पाड़ा आदर्श नगर आरे कालोनी में रह रहे अपने 2 भाइयों संतोष गोडसे, शंकर गोडसे और भाभी सविता के साथ रहने लगा. नीलेश सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. गांव से 10वीं पास कर के कामधाम की तलाश में वह मुंबई में रहने वाले अपने भाइयों और भाभी के पास आया था. यहां वह फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करने लगा.

मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद वापस नहीं गया तो अपने रहने और छिपने के लिए स्थाई ठिकाना ढूंढ़ने लगा. क्योंकि पुलिस से बचने के लिए उसे इधरउधर भागना पड़ रहा था. इस बीच वह अपने खर्च के लिए फिल्मों के सेटों पर जा कर छोटामोटा लाईट का काम कर लेता था. उसी दौरान किसी फिल्म की शूटिंग के सेट पर बाबू लाईटवाला की मुलाकात नीलेश से हुई तो दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती होने के बाद बाबू लाईटवाला ने अपनी परेशानी नीलेश को बताई तो आंख बंद कर के वह उस की मदद को तैयार हो गया. उस ने अपने पड़ोस में ही बाबू लाईटवाला को एक कमरा किराए पर दिला दिया. यही नहीं, उस ने कामधाम के लिए बाबू लाईटवाला को 80 हजार रुपए उधार भी दिए. इन पैसों से बाबू लाईटवाला अवैध झोपड़े बना कर बेचने लगा.

जैसा कि कहा जाता है, सांप को कितना भी दूध पिलाओ, मौका मिलने पर वह डंसने से नहीं चूकता. कुछ ऐसा ही हाल बाबू लाईटवाला का भी था. उस की नजर नीलेश की खूबसूरत भाभी पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. उसे जब भी मौका मिलता, नीलेश की भाभी सविता से गंदेगंदे मजाक करने लगता.

कुछ दिनों तक सविता ने बाबू लाईटवाला की इस हंसीमजाक पर ध्यान नहीं दिया. इस से उस का साहस बढ़ता गया और वह शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. सविता को जब बाबू लाईटवाला के बुरे इरादे का अहसास हुआ तो उस ने यह बात अपने पति संतोष तथा देवरों नीलेश और शंकर को बताई.

बाबू लाईटवाला की गंदी नीयत का पता जब तीनों भाइयों को चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने उसे सबक सिखाने का क्रूर फैसला ले लिया और इस में नीलेश गोडसे ने अपने एक दोस्त सतीश यादव को भी शामिल कर लिया.

अपने उसी फैसले के अनुसार 9 अक्तूबर, 2013 की शाम को बाबू लाईटवाला जब अपने कमरे पर आया तो नीलेश ने पार्टी के बहाने उसे अपने घर बुला लिया. उस बस्ती में नीलेश के 3 कमरे थे, जिन में से एक में नीलेश अकेला ही रहता था. नीलेश गोडसे ने पहले बाबू लाईटवाला को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तो तीनों भाइयों ने सतीश यादव की मदद से उसे मौत के घाट उतार दिया. बाबू लाईटवाला की हत्या करते समय सतीश यादव जख्मी भी हो गया.

बाबू लाईटवाला की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश को मोटी चादर में लपेटी और एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में भर कर उस का मुंह मजबूत रस्सी से बांध दिया. लाश ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. रात गहरी होने पर वे लाश को ले जा कर आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंक देना चाहते थे. लेकिन इस के लिए नीलेश तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे संदेह था कि अगर लाश आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंकी गई तो बरामद होने पर पुलिस और बस्ती वालों को उसी पर शक होगा.

क्योंकि बाबू लाईटवाला और नीलेश की दोस्ती के बारे में वहां सभी को पता था. इसलिए वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां उसे कोई न पहचान सके. रात होने पर नीलेश अपने एक दोस्त की एसेंट कार यह कह कर मांग लाया कि उस की मां को दिल का दौरा पड़ा है, जिसे उसे अस्पताल ले जाना है.

उसी कार की डिग्गी में बाबू लाईटवाला की लाश रख कर चारों ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़े. घूमतेफिरते वे गोरेगांव (पश्चिम) हाइपर सिटी मौल के पीछे पहुंचे तो उन्हें नाला दिखाई दिया. सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश को उसी नाले में फेंक दी और चलते बने.

बाबू लाईटवाला हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त नीलेश पुलिस टीम के हाथ लग गया था. लेकिन अभी 3 लोगों को गिरफ्तार करना था. पुलिस टीम उन की तलाश में लग गई. पुलिस को सभी के मोबाइल नंबर मिल ही गए थे. उन्हीं से पुलिस उन लोगों की लोकेशन पता करने लगी.

संतोष और शंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन उन के घर की ही मिल रही थी. पुलिस टीम उन के घर पहुंची तो घर के बाहर ताला लगा था. यह देख कर पुलिस पशोपेश में पड़ गई, क्योंकि मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उन्हें घर पर ही होना चाहिए था. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो वे भी कुछ नहीं बता सके. अंत में मोहल्ले वालों की उपस्थिति में घर का ताला तोड़ा गया तो दोनों भाई घर के अंदर ही छिपे मिल गए.

अब पुलिस को सतीश यादव को गिरफ्तार करना था. उस के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो वह मुंबई के जे.जे. अस्पताल की मिली. पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई. लेकिन जब पुलिस वहां पहुंची तो पता चला कि जब वे लोग बाबू लाईटवाला की चापड़ से हत्या कर रहे थे तो सतीश को चोट लग गई थी. सतीश वहां भरती हो कर उसी का इलाज करा रहा था.

अस्पताल पहुंच कर भी सतीश को  गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को काफी परेशान होना पड़ा था. क्योंकि वहां वह नाम बदल कर वहां भरती था. इस वजह से पुलिस को अस्पताल का एकएक बेड चैक करना पड़ा था. इस के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या करने वाले चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के पुलिस ने महानगर मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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