आगरा का एक छोटा सा गांव है नगला लालजीत, जिस की आबादी मुश्किल से 5 सौ होगी. इस में कुशवाहा ज्यादा हैं, जबकि ठाकुरों के सिर्फ 4 घर हैं. इन में एक घर है हुकुम सिंह का. उन के परिवार में पत्नी शांति के अलावा 5 बेटे और एक बेटी थी. उन का सब से छोटा बेटा था नरेश, जो किसी मोबाइल कंपनी में सेल्समैन था.
इसी गांव का रहने वाला गिरिराज कुशवाहा शादीब्याह में खाना बनाने का ठेका लेता था. उस के परिवार में पत्नी जलदेवी के अलावा 3 बेटियां सीमा, रोशनी, भारती और 2 बेटे देवेश तथा योगेश थे. सीमा की शादी उस ने देवी रोड निवासी शैलेंद्र के साथ की थी तो उस से छोटी रोशनी की शादी आगरा के रहने वाले बंटू से. तीसरी बेटी भारती का अभी विवाह नहीं हुआ था. यह कहानी गिरिराज की इसी तीसरी बेटी भारती की है.
एक साल पहले तक हुकुम सिंह और गिरिराज कुशवाहा सुखशांति से रह रहे थे. उन के घरों के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी. छोटा सा गांव है, इसलिए गांव का हर कोई एकदूसरे को जानता ही नहीं था, बल्कि सभी रिश्ते की डोर से बंधे थे, चाहे वह किसी भी जाति के हों.
भारती मात्र आठवीं तक पढ़ी थी, क्योंकि इस से आगे वह न पढऩा चाहती थी और न ही गिरिराज उसे पढ़ाना चाहता था. लेकिन एक पढ़ाई वह मांबाप से छिपछिप कर जरूर पढ़ रही थी. और वह थी इश्क की. इस पढ़ाई में उस के साथ था हुकुम सिंह का सब से छोटा बेटा नरेश.
किसी दिन नरेश और भारती की नजरें टकराईं तो उन के दिलों की धडक़नें बढ़ गईं. दोनों अलगअलग जाति के थे, लेकिन इश्क करने वाले कहां इस की परवाह करते हैं. प्यार दोनों को करीब ले आया और वे लुकछिप कर मिलने लगे. उन्हें मिलने में परेशानी भी नहीं होती थी, क्योंकि आजकल लगभग सभी के पास मोबाइल फोन है ही. यही मोबाइल फोन उन की भी मिलने में मदद कर रहा था. उन्हें जब मिलना होता, फोन कर के समय और जगह तय करते, उस के बाद तय समय और जगह पर मिल लेते.
भारती और नरेश प्यार ही नहीं कर बैठे, साथ जीने और मरने की कसमें भी खा लीं, लेकिन उन की जाति अलगअलग थी, इसलिए उन्हें पता था कि उन का यह सपना आसानी से पूरा नहीं होगा. इसलिए कभीकभी भारती नरेश से पूछती भी थी कि समाज के डर से कहीं वह उसे छोड़ तो नहीं देगा?
तब नरेश कहता, “भारती, मैं अपने घर वालों को छोड़ सकता हूं, पर तुम्हें नहीं छोड़ सकता.”
नरेश भले ही भारती को हर तरह से साथ देने का आश्वासन देता था, पर वह जानता था कि यह सब इतना आसान नहीं है. गांव में, वह भी दूसरे जाति की लडक़ी से शादी करना बहुत ही मुश्किल काम है. लेकिन उस का प्यार दीवानगी की हद तक पहुंच चुका था, इसलिए उस की अच्छाबुरा सोचने की समझ ही खत्म हो चुकी थी. न उसे घरपरिवार दिखाई दे रहा था और न समाज. उसे परिणाम की भी चिंता नहीं थी.
नरेश और भारती भले ही लुकछिप कर मिल रहे थे, लेकिन उन का यह प्यार गांव वालों की नजरों से छिपा नहीं रह सका. फिर एक दिन वही हुआ, जिस का डर था. भारती फोन पर नरेश से बातें कर रही थी, तभी गिरिराज ने उस की कुछ बातें सुन लीं. उस ने पूछा, “किस से बातें कर रही है?”
जवाब में भारती कुछ कहती, गिरिराज ने उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. उस में नरेश की फोटो लगी देख कर उस ने अपना सिर पीट लिया. उसे समझते देर नहीं लगी कि बेटी आशिकी में फंस गई है.
“यह सब क्या है?” गिरिराज ने फोटो दिखाते हुए पूछा, “तू नरेश से क्यों बातें करती है?”
भारती अंजान बनते हुए बोली, “पापा मैं तो अपनी सहेली से बातें कर रही थी, कभीकभी नेटवर्क की गड़बड़ी की वजह से किसी दूसरे को फोन ही नहीं लग जाता, बल्कि उस का फोटो भी आ जाता है.”
गिरिराज इतना बेवकूफ नहीं था, जितना भारती समझ रही थी. उस ने पूछा, “पहले तो यह बता, नरेश का नंबर तेरे मोबाइल में कैसे आया?”
“पड़ोसी है, अब पड़ोसी का नंबर मोबाइल में नहीं आएगा तो क्या दूसरे गांव वालों का आएगा?” भारती रुआंसी हो कर बोली.
गिरिराज को लगा कि वह बेटी के साथ ज्यादती कर रहा है. जब मोबाइल है तो उस में नंबर तो होंगे ही. रही बात नरेश की तो वह गांव का ही नहीं है, पड़ोसी भी है. मोबाइल का काम भी करता है. इसलिए उस का नंबर भारती के पास है तो बुरा क्या है. वह चुप हो गया.
गिरिराज भले ही चुप हो गया, लेकिन भारती कहां चुप होने वाली थी. वह उसी दिन नरेश से मिली और पूरी बात बता कर बोली, “आज तो किसी तरह बच गई, लेकिन इस तरह कब तक चलेगा. जो कुछ भी करना है, जल्दी करो.”
नरेश ने कहा, “पहले तो हम घर वालों से कहेंगे कि वे हमारी शादी कर दें. नहीं करेंगे तो मैं तुम्हें ले कर कहीं दूर चला जाऊंगा, जहां घर वाले पहुंच ही नहीं पाएंगे.”
भारती को नरेश पर पूरा विश्वास था, वह उस से अलग होना भी नहीं चाहती थी, इसलिए वह उस के साथ भागने को तैयार थी. लेकिन जब एक दिन गिरिराज ने बेटी को नरेश के साथ देख लिया तो उसे ममझते देर नहीं लगी कि बेटी ने उस से झूठ बोला था.
उस ने पत्नी से कहा, “भारती पर नजर रखो, उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दो, वरना यह हमारी नाक कटवाने वाली है.”
इस के बाद भारती पर नजरों के पहरे लग गए. उस का बाहर आनाजाना बंद कर दिया गया. यही नहीं, सोचविचार कर गिरिराज ने बड़े दामाद शैलेंद्र को फोन कर के बुलाया और पूरी बात बता दी. इस पर शैलेंद्र ने कहा, “आप नरेश के पिता से मिलें और उन से कहें कि वह बेटे को समझाएं.”
गिरिराज ने हुकुम सिंह से शिकायत की तो उन्होंने नरेश को समझाने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि समझाया भी. लेकिन नरेश को तो जैसे ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने कहा, “पापा, मैं भारती से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.”
“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है,” हुकुम सिंह ने उसे डांटा, “ऐसा कतई नहीं हो सकता. एक तो वह गांव की है, दूसरे दूसरी जाति की है. तुम जानते हो गांव में ठाकुरों के सिर्फ 4 ही घर हैं. कुशवाहा ज्यादा हैं. अगर कुछ उल्टासीधा किया तो इस का खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा.”
बाप की इस बात से नरेश की समझ में आ गया कि भारती को भगा कर ले जाना ठीक नहीं है. क्योंकि अगर वह उसे भगा कर ले गया तो गांव के कुशवाहा उस के घर वालों का जीना हराम कर देंगे. अब उसे गांव में ही रह कर अपने और भारती के घर वालों को मनाना होगा.
नरेश ने गिरिराज को संदेश भिजवाया कि वह भारती से प्यार करता है और शादी करना चाहता है. वह वादा करता है कि भारती को खुश रखेगा. लेकिन जब यह संदेश गिरिराज को मिला तो वह उबल पड़ा. उस ने नरेश को तो कुछ नहीं कहा, लेकिन भारती की जम कर पिटाई कर दी. उस का कहना था कि उसी की वजह से आज उसे यह दिन देखना पड़ा है.
भारती की बहनों और बहनोइयों ने भी उसे समझाया. लेकिन उस ने साफ कह दिया कि वह शादी करेगी तो नरेश से, वरना पूरी जिंदगी कुंवारी रहेगी. हुकुम सिंह और उन की पत्नी शांति भी नरेश को समझा रहे थे कि वह ऐसा कोई काम न करे, जिस से परिवार को परेशानी हो.
इस आशिकी की वजह से दोनों परिवारों में काफी तनाव था. गांव भी इस आशिकी से अंजान नहीं था. गिरिराज ने बदनामी से बचने के लिए दिसंबर के पहले सप्ताह में गांव की पंचायत बुलाई. पंचायत में दोनों ही बिरादरी के लोग शामिल थे. सभी इस शादी के खिलाफ थे, इसलिए सभी ने नरेश और भारती को समझाया कि वे ऐसा न करें. उन के ऐसा करने से गांव की बदनामी तो होगी ही, आने वाली पीढ़ी पर भी इस का बुरा असर पड़ेगा.
लेकिन नरेश और भारती उन की बातों से सहमत नहीं थे. उन का कहना था कि वे नए जमाने के लोग हैं. वे अपनी खुशी देखते हैं, परंपरा नहीं. इस पर बुजुर्गों ने उन्हें डांट कर चुप करा दिया और कहा कि वे जो चाहते हैं, वैसा कतई संभव नहीं है.
“तो फिर ठीक है, आप सभी हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए. हम अपनीअपनी दुनिया में एकदूसरे की यादों के सहारे जी लेंगे.” भारती ने कहा.
इस पर कुशवाहा नाराज हो गए. उन का कहना था कि बेटी को अविवाहित कैसे रखा जा सकता है. लेकिन भारती का बागी सुर मुखर हो उठा, “कुछ भी हो, मैं नरेश के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती.”
दोनों की जिद को देखते हुए पंचायत ने फैसला किया कि इन्हें गांव से बाहर रिश्तेदारियों में भेज दिया जाए. गिरिराज को लगा कि बेटी ने उस का सिर झुका दिया है, इसलिए उस ने पंचायत के सामने कहा, “अगर ऐसा कुछ हुआ तो वह दोनों को काट कर रख देगा.”
ठाकुरों ने कोई जवाब नहीं दिया. उन का सोचना था कि कुछ दिन दोनों अलग रहेंगे तो सब ठीक हो जाएगा. उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि गिरिराज ने जो कहा है, वह सचमुच ही वैसा कर डालेगा.
जो छिपा था, इस पंचायत के बाद पूरी तरह खुल गया. नरेश और भारती जो अब तक लुकछिप कर मिलते थे, वे खुलेआम मिलने लगे. शांति को बेटे की जान खतरे में लगी तो उस ने उसे बेटी के पास दिल्ली भेज दिया.
लेकिन पंचायत में जो हुआ था, उस से गिरिराज को लग रहा था कि उस की मूंछें नीची हो गई हैं. मूंछें उठाने के लिए उसे कुछ करना ही होगा. उस ने अपनी जाति के कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि बेटी को खत्म कर दो, सारा झंझट खत्म हो जाएगा. इज्जत भी बच जाएगी.
गिरिराज ने भारती को खत्म करने का इरादा तो बना लिया, लेकिन उसे लगा कि भारती की हत्या पर नरेश चुप नहीं बैठेगा. क्योंकि वह उसे जान से ज्यादा प्यार करता है. भारती की मौत का संदेह होते ही वह पुलिस के पास पहुंच जाएगा. जब इस बात पर गहराई से विचार किया गया तो उस के बड़े दामाद शैलेंद्र ने कहा, “दोनों को खत्म कर देते हैं. किसी ठाकुर में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह पुलिस के पास जा कर शिकायत करेगा.”
दामाद की बात गिरिराज को भी उचित लगी. लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था. गांव में कत्ल करने पर वे पकड़े जा सकते थे. इसलिए योजना बनी कि कहीं दूर ले जा कर दोनों को मारा जाए. इस के लिए भारती को विश्वास में लेना जरूरी था. घर वालों ने कोशिश भी शुरू कर दी. लेकिन भारती को विश्वास नहीं हो रहा था. उसे विश्वास तब हुआ, जब जलदेवी उस के लिए शादी का जोड़ा खरीद कर ले आई. इस के बाद भारती को लगा कि उस के घर वाले सचमुच शादी को तैयार हैं.
मां ने ही नहीं, पिता ने भी कहा, “हमारी समझ में आ गया है कि तू सचमुच नरेश को बहुत प्यार करती है. फिर इस में बुराई ही क्या है. नरेश है भी तो ऊंची जाति का. मुझे पहले लगता था कि वह धोखा दे देगा. लेकिन अब हमें उस पर भी विश्वास हो गया है. वह तुझ से शादी कर के तुझे सुखी रखेगा.”
भारती को पिता की बातों पर विश्वास तो नहीं हो रहा था, लेकिन उसे उस की बातों में कोई साजिश भी नजर नहीं आ रही थी. वह कुछ नहीं बोली तो गिरिराज ने कहा, “गांव में तो हम तेरी शादी करा नहीं सकते, क्योंकि गांव वाले यह शादी कतई नहीं होने देंगे. तू ऐसा कर, नरेश को प्रिंस के ढाबे पर बुला ले. हम उसे ले कर ग्वालियर के किसी मंदिर चलते हैं और वहीं तुम दोनों की शादी करा देते हैं.
नगला लालजीत गांव ग्वालियर के लिए जाने वाले हाईवे के किनारे बसा है. भारती जानती थी कि गांव वाले उस की शादी का विरोध कर रहे हैं. इसीलिए मम्मीपापा उस की शादी गांव से बाहर किसी मंदिर में करना चाहते हैं. उस ने नरेश को फोन कर के सारी बात बताई तो वह बहुत खुश हुआ.
किसी को कुछ बताए बगैर वह उसी रात प्रिंस के ढाबे पर पहुंच गया. गिरिराज पत्नी और भारती के साथ वहां पहले से मौजूद था. उस ने उसे गाड़ी में बैठाया और चल पड़ा. भारती और नरेश पिछली सीट पर एक साथ बैठे थे. वे सुनहरे भविष्य की कल्पनाओं में इस तरह खोए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब गाड़ी मौजपुरा के जंगल में पहुंच गई.
वहां पहुंचते ही नरेश समझ गया कि ये लोग उस की शादी कराने नहीं, उन्हें मारने लाए हैं. क्योंकि पीछे से भारती का बहनोई शैलेंद्र मोटरसाइकिल से भी वहां पहुंच गया था. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन भारती फट पड़ी, “तुम लोग इतने बड़े धोखेबाज निकलोगे, मैं ने सोचा भी नहीं था. इस से अच्छा तो तुम लोगों ने पैदा होते ही मेरा गला घोंट दिया होता. “
नरेश और भारती ने जिंदगी के लिए संघर्ष तो बहुत किया, लेकिन उन लोगों ने नरेश को उस के मफलर तथा भारती को उस की शाल से गला घोंट कर मार दिया. दोनों लाशें वहीं छोड़ कर सभी लौट आए. भारती के पास शिनाख्त लायक वैसे भी कुछ नहीं था, नरेश की जेबों से भी सब कुछ निकाल लिया गया था. सभी यह सोच कर निश्चिन्त थे कि पुलिस उन तक पहुंच नहीं पाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
अगले दिन राजस्थान के जिला धौलपुर के थाना मनियां के थानाप्रभारी रतन सिंह को जंगल में 2 लाशें पड़ी होने की सूचना मिली तो सहयोगियों के साथ वह वहां पहुंच गए. उन्होंने शिनाख्त के लिए दोनों लाशों की तलाशी ली तो लड़की के पास से तो कुछ नहीं मिला, लेकिन लड़के की जेब से परिचय पत्र मिल गया, जिस से पता चला कि वह आगरा के गांव नगला लालजीत का रहने वाला है.
लाशों पर चोटों के निशान के अलावा लड़के के गले पर मफलर और लड़की के गले पर शाल कसा हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि इन्हें गला घोंट कर मारा गया है. हमउम्र लडक़ा-लड़की की लाशें होने की वजह से यह भी अंदाजा लगाया गया कि यह प्रेमी जोड़ा रहा होगा और घर वालों ने ही इन की हत्याएं की हैं.
राजस्थान पुलिस लाशों की खबर ले कर नगला लालजीत स्थित हुकुम सिंह के घर पहुंची तो हडक़ंप मच गया. वहीं पूछताछ में पता चला कि दूसरी लाश गांव के गिरिराज कुशवाहा की बेटी भारती की थी.
गांव में तो किसी ने कुछ नहीं बताया, लेकिन जब हाईवे पर बने टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज चेक की गई तो उस में गिरिराज और जलदेवी के साथ गाड़ी में बैठे नरेश और भारती दिख गए. इसी के आधार पर थाना मनियां पुलिस ने पतिपत्नी को हिरासत में ले लिया. पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें घर वालों को सौंप दी गई थीं. गांव ला कर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
थाने ला कर गिरिराज और जलदेवी से पूछताछ शुरू हुई. वे कोई पेशेवर अपराधी तो थे नहीं, जल्दी ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जानती थी कि केवल ये दोनों नरेश और भारती की हत्या नहीं कर सकते. इस के बाद पुलिस ने उन से शैलेंद्र का भी नाम उगलवा लिया.
लेकिन शैलेंद्र डर के मारे फरार हो चुका था. पुलिस ने गिरिराज की निशानदेही पर नरेश का सामान, वह गाड़ी, जिस से भारती और नरेश को ले जाया गया था, बरामद कर ली थी. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया था.
कथा लिखे जाने तक शैलेंद्र को भी गिरफ्तार कर के पुलिस ने जेल भेज दिया था. सभी जेल में बंद थे, किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित