दीपक कई दिनों से घरवालों से पहले की तरह ज्यादा बात नहीं कर रहा था. इस बात को उस की मां राजबाला अच्छे से समझ रही थीं. उन्होंने उस से कई बार  परेशानी की वजह जाननी भी चाही लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता था.

एक दिन दोपहर के समय दीपक घर लौटा तो राजबाला ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, मैं कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तू किसी से ज्यादा बात भी नहीं करता और खोयाखोया सा रहता है.’’

‘‘नहीं मां, कोई खास बात नहीं है.’’ दीपक ने टालने वाले अंदाज में कहा. फिर वह विषय को बदलते हुए बोला, ‘‘मां मुझे तेज भूख लगी है. खाना लगा दो.’’

राजबाला ने भी सोचा कि जब यह खाना खा लेगा उस के बाद परेशानी की वजह बूझेगी. बेटे को खाना लाने के लिए रसोई में चली गईं और खाना परोस कर उसे दे दिया. दीपक ने खाना खाना अभी शुरू ही किया था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. दीपक ने मोबाइल स्क्रीन पर देखा तो वह नंबर उसे अनजाना लगा. इसलिए काल रिसीव करने के बजाय काट दी.

उस ने एकदो निवाले ही खाए थे कि फोन की घंटी फिर बजी. फोन उसी नंबर से था जिस से कुछ पल पहले आया था. दीपक झुंझला रहा था कि पता नहीं कौन है, जो ठीक से खाना भी नहीं खाने दे रहा. झुंझलाहट में उस ने काल रिसीव की.

दूसरी ओर से न मालूम किस की आवाज आई कि उसे सुनने के बाद उस का गुस्सा उड़न छू हो गया और बोला, ठीक है, मैं थोड़ी देर बाद पहुुंचता हूं.’’ कह कर फोन काट दिया.

उस समय राजबाला वहीं बैठी थीं. उन्होंने बेटे से मालूम भी किया कि किस का फोन था लेकिन दीपक ने नहीं बताया. फोन पर बात करने के बाद दीपक ने फटाफट खाना खाया और घर से बाहर की ओर निकल गया.

‘‘तू, मेरा मोबाइल लाने वाला था, क्या हुआ?’’ जाते समय मां ने पीछे से आवाज लगाई.

‘‘मम्मी, मुझे ध्यान है. आज वो भी ले लूंगा. पैसे मेरे पास ही हैं.’’ कह कर दीपक चला गया. यह बात 11 फरवरी की है.

दोपहर को घर से निकला दीपक जब देर शाम तक घर नहीं लौटा, तो राजबाला को चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया तो वह भी बंद आ रहा था, उन का बड़ा बेटा नितिन उस समय अपने काम पर गया हुआ था. राजबाला ने फोन कर के सारी बात नितिन को बता दी.

कुछ देर बाद वह भी घर आ गया. घर पहुंच कर नितिन ने सभी संभावित जगहों पर दीपक की तलाश की, लेकिन देर रात तक भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. जवान बेटे के गायब हो जाने पर घर के सभी लोग परेशान थे. पिता जसवंत अग्रवाल थाना मुरादनगर पहुंचे और थानाप्रभारी को 25 वर्षीय बेटे दीपक अग्रवाल के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस ने भी सोचा कि दीपक कोई नासमझ तो है नहीं जो कहीं खो जाएगा. यारदोस्तों के साथ कहीं चला गया होगा और 2-4 दिन में घूमघाम कर लौट आएगा. यही सोच कर पुलिस ने उस की गुमशुदगी को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन दीपक के मांबाप के दिलों पर क्या गुजर रही थी. इस बात को केवल वे ही महसूस कर रहे थे. बेटे की चिंता में एकएक दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था.

जसवंत अग्रवाल थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो रहे थे मगर पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी. इस के 3 दिन बाद 14 फरवरी को मुरादनगर पुलिस को सूचना मिली कि एनटीपीसी के जंगलों के पास खुर्रमपुर गांव के रहने वाले टीटू के गन्ने के खेत में एक लाश पड़ी है. यह इलाका थाना मुरादनगर क्षेत्र में ही आता है इसलिए खबर मिलते ही थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद उस जगह पर पहुंच गए जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

उन्होंने देखा कि खेत में 25-30 साल के युवक की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जितनी तादाद में वहां खून फैल कर जम चुका था, उस से लग रहा था कि उस की हत्या वहीं पर की होगी. उस के गले पर गोली का निशान दिख रहा था.

निरीक्षण में पता चला कि हत्यारों ने उस की पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे और लिंग को जला दिया था. इस से ऐसा लगा कि मारने वालों को उस से गहरी खुन्नस रही होगी. लाश विकृत अवस्था में थी, थानाप्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

चूंकि मामला मर्डर का था इसलिए थानाप्रभारी ने जिले के आलाअधिकारियों को भी यह सूचना दे दी, तो जिले से एसएसपी और एसपी (आरए) भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से बात की और थानाप्रभारी को कुछ निर्देश दे कर चले आए. थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद में हिंडन स्थित मोर्चरी भेज दिया.

हत्या के इस मामले की जांच थाना प्रभारी अवधेश प्रसाद ने शुरू कर दी. थानाप्रभारी के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि लाश की शिनाख्त न होने की वजह से उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिल पा रहा था, जिस से जांच आगे बढ़ सके. फिर उन्होंने इस काम में मुखबिरों को भी लगा दिया. इस से पहले कि उन्हें अज्ञात लाश के बारे में कहीं से कोई क्लू मिलता उन का वहां से तबादला हो गया.

इधर जसवंत अग्रवाल अपने लापता बेटे का पता लगवाने के लिए थाने के चक्कर लगाते रहे. पुलिस ने टीटू के गन्ने के खेत से जिस अज्ञात युवक की लाश बरामद की थी उस के बारे में भी जसवंत को कुछ नहीं बताया. जबकि अज्ञात लाश का हुलिया जसवंत के गायब बेटे दीपक से मिलताजुलता था.

जसवंत अग्रवाल ने भी हिम्मत नहीं हारी. उस ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने अपना दुखड़ा रोया. इस का नतीजा यह निकला कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के आदेश पर मुरादनगर के नए थानाप्रभारी ने 19 फरवरी को दीपक की गुमशुदगी के मामले को भांदंवि की धारा 364 के तहत दर्ज कर लिया और इस मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई राजेश शर्मा, कांस्टेबल पुष्पेंद्र, कुंवर पाल, अवश्री आदि को शामिल किया गया.

सबइंस्पेक्टर राजेश शर्मा ने सब से पहले दीपक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि दीपक के मोबाइल पर आखिरी काल जिस नंबर से आई थी, वह नंबर एक पीसीओ का था. पुलिस ने उस पीसीओ के मालिक का पता लगा कर उसे पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.

उस से पूछा गया कि 11 फरवरी को दोपहर के समय उस के यहां से किस ने काल की थी. उस के पीसीओ पर रोजाना तमाम लोग काल करने आते हैं. उन में से कुछ परिचित होते हैं, कुछ अपरिचित. अब 8-10 दिन पहले दोपहर को किनकिन लोगों ने बात की. उस के लिए यह बताना आसान नहीं था. उस से पूछताछ में कोई सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

पुलिस को गन्ने के खेत से मिली लाश के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. हत्या के इस केस की तरह पुलिस टीम को दीपक के अपहरण के बारे में भी कोई सुराग न मिला तो पुलिस ने इस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया. थाने के चक्कर लगातेलगाते जसवंत भी थकहार गए.

7-8 महीने बीत गए पुलिस न तो उस अज्ञात लाश की ही शिनाख्त करा पाई और न ही दीपक के बारे में पता लगा पाई. इसी दौरान नए थानाप्रभारी रामप्रकाश शर्मा से जसवंत अग्रवाल ने मुलाकात की और बेटे का पता लगाने की अपील की.

थानाप्रभारी दीपक ने फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया. जांच करने पर उन्हें यह पता चला कि दीपक की दोस्ती मोहित शर्मा नाम के एक युवक से थी. वह कृष्णा कालोनी में रहता था. वह एक अपराधी किस्म का व्यक्ति था. उस से खिलाफ थाना मुरादनगर में ही हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत 2 मुकदमे दर्ज थे. जबकि दीपक एक शरीफ लड़का था.

अब थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात घूम गई कि एक अपराधी के साथ दीपक का क्या रिश्ता हो सकता है? उन्हें लग रहा था कि तफ्तीश अब कुछ आगे बढ़ सकती है. उन्होंने मोहित शर्मा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस का अध्ययन करने पर पता चला कि मोहित 2 और फोन नंबरों पर ज्यादा बातें करता था. जिन नंबरों पर उस की ज्यादा बातें होती थीं. जांच में वह शशि और लक्ष्मण नाम के शख्स के पाए गए, जोकि मुरादनगर में ही रहते थे. उन दोनों के खिलाफ भी थाना मुरादनगर में कई मुकदमे दर्ज थे.

पुलिस ने मोहित शर्मा, शशि और लक्ष्मण को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. तीनों से दीपक के बारे में मालूमात की तो उन्होंने दीपक के बारे मे अनभिज्ञता जताई. जिस दिन मोहित गायब हुआ था उस दिन की इन तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन जांची तो वह कहीं और की पाई गईं. इस से पुलिस को वे बेकुसूर लगे. उन के खिलाफ कोई सुबूत न मिला तो पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया.

थानाप्रभारी ने दीपक के फोन की काल डिटेल्स का फिर से अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जिन नंबरों पर दीपक की अकसर बात होती थी उन में से एक नंबर दीपक के गुम होने के बाद से लगातार बंद आ रहा था. अब पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश की कि जिस फोन में वह नंबर चल रहा था. उस में अब कौन सा नंबर चल रहा है.

फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे थानाप्रभारी को इस काम में सफलता मिल गई. उस फोन में जो नंबर चल रहा था वह कनक नाम की एक लड़की की आईडी पर लिया गया था. पुलिस ने कनक को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.पू छताछ में पता चला कि वह दीपक की दोस्त है लेकिन उस ने दीपक के बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार कर दिया. जब सिम बदलने की वजह पूछी तो वह कोई उचित जवाब ना दे सकी और घबराहट में इधरउधर देखने लगी.

थानाप्रभारी को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है, इसलिए उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह अधिक देर ना टिक सकी और बोली कि दीपक अब इस दुनिया में नहीं है. उस के दोस्तों मोहित, लक्ष्मण और शशि ने उस की हत्या कर दी है.

कनक ने जिन लोगों के नाम बताए थे पुलिस ने उन के ठिकानों पर दविशें डालीं लेकिन वे फरार हो चुके थे और उन्होंने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे. फिर पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 29 दिसंबर को तीनों को पाइपलाइन रोड से हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर ऐसे 2 मामलों का खुलासा हो गया जो पिछले 9 महीने से पुलिस के गले की फांस बने हुए थे. उन से पूछताछ के बाद दीपक की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का एक थाना है मुरादनगर. मुरादनगर की ही कृष्णा कालोनी में जसवंत अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी राजबाला के अलावा 4 बच्चे थे. 2 बेटे व 2 बेटियां. बेटियों की शादी वह अपनी नौकरी के दौरान ही कर चुके थे. बेटा नितिन फरीदाबाद में स्थित प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. जबकि छोटे बेटे दीपक को फरीदाबाद में जूतों की दुकान खुलवा दी थी.

कुछ समय बाद ही दीपक का मन इस दुकान से उचट गया, तो अपने घर वालों से बात कर के वह औनेपौने दामों में दुकान का सारा सामान बेच कर अपने घर मुरादनगर आ गया. दीपक मुरादनगर में ही रह कर कोई ऐसा काम करना चाहता था जिस से अच्छी आमदनी हो. मुरादनगर में ही कनक नाम की एक लड़की रहती थी उसी से जफर और लक्ष्मण के अवैध संबंध थे.

दीपक की लक्ष्मण और जफर से दोस्ती थी. इसलिए उसे कनक के अवैध संबंधों की जानकारी थी. चूंकि कनक के कदम बहक चुके थे, इसलिए उस ने दीपक से भी नजदीकी बना ली थी. बाद में उस ने लक्ष्मण और जफर को किनारे कर के 25 वर्षीय दीपक से अवैध संबंध बना लिए.

लक्ष्मण और जफर ने जब प्रेमिका की तरफ से बेरुखी महसूस की तो उन्होंने इस की वजह खोजनी शुरू कर दी. तब उन्हें पता चला कि इस की असली वजह दीपक है. यानी दीपक ने उन के प्यार में सेंध लगा दी है. ऐसे विश्वासघाती दोस्त को उन्होंने सबक सिखाने की योजना बना ली और तय कर लिया कि वह उसे ठिकाने लगा कर ही रहेंगे, इस योजना में उन्होंने अपने एक और दोस्त शशि को भी शामिल कर लिया.

फरीदाबाद की जूतों की दुकान बंद कर के दीपक बेरोजगार हो गया था. घर का खर्चा उस का बड़ा भाई नितिन ही चला रहा था. दीपक अकसर अपने कामधंधे को ले कर तनाव में रहने लगा था. इस बात को घर वाले भी महसूस कर रहे थे.

योजनानुसार 11 फरवरी को मोहित ने पीसीओ से दीपक को फोन किया और एक जरूरी काम का बहाना कह कर घर से बुला लिया. बाइक पर बिठा कर वह उसे एनटीपीसी के जंगल में ले गया. वहां पहले से ही लक्ष्मण, शशि के साथ जफर भी मौजूद था. इन सभी ने पहले वहां बैठ कर जम कर शराब पी. जब दीपक को अधिक नशा हो गया तो वे उसे पास ही के गन्ने के खेत में ले गए.

वहां पहुंचते ही जफर ने उस की गरदन पर  तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही दीपक नीचे गिर गया. कुछ देर बाद उस की मौत हो गई. पहचान मिटाने के लिए उन्होंने उस के चेहरे और गुप्तांग पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी और वहां से चले गए. इस से पहले उन्होंने उस की जेब में रखे 10 हजार रुपए निकाल लिए. वह पैसे उस की मां ने फोन खरीदने के लिए दिए थे.

दीपक की हत्या के बाद जफर और शशि ने बिजनौर के पास दिल्ली के एक कार ड्राइवर से 2 लाख रुपए लूट लिए. विरोध करने पर उन्होंने उस की हत्या कर दी. बाद में जब यह मामला खुला तो बिजनौर पुलिस ने जफर और शशि को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

कुछ समय बाद शशि जमानत पर बाहर आ गया. जबकि जफर की जमानत नहीं हो सकी. उन से पूछताछ के बाद पता चला कि पुलिस ने 14 फरवरी को खुर्रमपुर के टीटू के खेत से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, वह दीपक अग्रवाल की ही थी.

हत्याकांड की हर बिखरी कड़ी अब जुड़ चुकी थी. सो सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34, 120बी के तहत गिरफ्तार कर गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

पुलिस हत्या में शामिल चौथे अभियुक्त जफर को अदालत में प्रार्थना पत्र दे कर, ट्रांजिट रिमांड पर लाने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित. कनक परिवर्तित नाम है

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