8 अक्तूबर 2020 की सुबह 8 बजे बबेरू कस्बे के कुछ लोगों ने एक ऐसा खौफनाक मंजर देखा, जिस से उन की रूह कांप उठी. एक आदमी सड़क पर बेखौफ पैदल आगे बढ़ता जा रहा था. उस के एक हाथ में फरसा तथा दूसरे हाथ में कटा हुआ सिर था. सिर किसी महिला का था, जिसे वह सिर के बालों से पकड़े था.

कटे सिर से खून भी टपक रहा था, जिस से आभास हो रहा था कि कुछ देर पहले ही उस ने सिर को धड़ से अलग किया होगा. देखने वाले अनुमान लगा रहे थे कि कटा सिर या तो उस आदमी की प्रेमिका का है, या फिर पत्नी का. क्योंकि ऐसा जघन्य काम आदमी तभी करता है, जब या तो प्रेमिका धोखा दे या फिर पत्नी बेवफाई करे.

दिल कंपा देने वाला मंजर बिखेरता हुआ, वह आदमी बाजार चौराहा पार कर के थाना बबेरू के गेट पर जा कर रुका. पहरे पर तैनात सिपाही की नजर जब उस पर पड़ी तो वह घबरा गया, फिर हिम्मत जुटा कर अपनी ड्यूटी निभाने के लिए पूछा, ‘‘कौन हो तुम. और तुम्हारे हाथ में ये कटा सिर किस का है?’’ ‘‘यह सब बातें हम बड़े दरोगा साहब को बताएंगे. उन्हें बुलाओ.’’ उस रौद्र रूपधारी आदमी ने जवाब दिया.‘‘ठीक है, तुम इस कुर्सी पर बैठो. मैं दरोगा साहब को बुला कर लाता हूं.’’

उस आदमी ने कटा सिर जमीन पर रखा फिर कंधा से फरसा टिका कर इत्मीनान से कुर्सी पर बैठ गया. पहरे वाला सिपाही बदहवास हालत में थाना इंचार्ज जयश्याम शुक्ला के कक्ष में पहुंचा, ‘‘सर एक आदमी आया है. उस के हाथ में फरसा और महिला का कटा सिर है.’’‘‘क्या?’’ शुक्लाजी चौंके. फिर वह रामसिंह व कुछ अन्य सिपाहियों के साथ थाना परिसर आए, जहां वह आदमी कुरसी पर बैठा था. उसे देख वह भी कांप उठे. कहीं वह पागल तो नहीं, उस स्थिति में वह पुलिस पर भी हमला कर सकता था. उन्होंने उस आदमी से कहा, ‘‘देखो, पहले अपना फरसा और कटा सिर चंद कदम दूर रख दो. फिर मैं तुम्हारी बात सुनूंगा.’’

जय श्याम शुक्ला की बात मान कर उस आदमी ने फरसा और कटा सिर चंद कदम दूर रख दिया. जिसे एक सिपाही ने संभाल लिया. इस के बाद शुक्ला ने उस आदमी को हिरासत में ले कर पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम कौन हो, कहां रहते हो और कटा सिर किस का है?’’

‘‘दरोगा बाबू, मेरा नाम किन्नर यादव है. मैं अतर्रा रोड, नेता नगर में रहता हूं. कटा सिर मेरी पत्नी विमला का है. मैं ने ही फरसे से उस का सिर काटा है. मैं हत्या का जुर्म कबूल करता हूं. आप मुझे गिरफ्तार कर लो.’’

‘‘तुम ने अपनी पत्नी विमला की हत्या क्यों की?’’ जय श्याम शुक्ला ने पूछा.

‘‘साहब, वह बदचलन औरत थी. पड़ोसी रवि उर्फ बंका के साथ रंगरेलियां मनाती थी. कई बार मना किया, बच्चों की कसम खिलाई, इज्जत की दुहाई दी, लेकिन वह नहीं मानी. आज मुझ से बर्दाश्त नहीं हुआ. मैं ने बंका पर फरसा से हमला किया तो वह उसे बचाने आ गई. इस पर मैं ने उस की गर्दन काट दी और ले कर थाने आ गया.’’

‘‘बंका कहां है?’’ शुक्लाजी ने पूछा.

‘‘बंका घर में तड़प रहा होगा. उस की किस्मत अच्छी थी, बच गया.’’

मंजर देख पुलिस भी हैरान थी

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक जय श्याम शुक्ला ने कातिल किन्नर यादव को हवालात में बंद कराया, फिर इस दिल कंपा देने वाली घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. इस के बाद कटा सिर साथ में ले कर पुलिस बल के साथ नेता नगर स्थिति किन्नर यादव के मकान पर पहुंच गए.

उस समय वहां भारी भीड़ जुटी थी. मृतका विमला की सिरविहीन लाश सड़क पर पड़ी थी. उस की गर्दन बड़ी बेरहमी से काटी गई थी. पैर पर भी वार किया गया था, जिस से पैर पर जख्म लगा था. मृतका की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. रंग साफ और शरीर स्वस्थ था. उस के शव के पास बच्चे तथा महिलाएं बिलख रही थी.

पड़ोस में सूरजभान सविता का मकान था. उस का बेटा रवि उर्फ बंका घायल पड़ा तड़प रहा था. किन्नर यादव ने उस पर भी फरसे से हमला किया था, जिस से उस का एक कान तथा गर्दन कट गई थी. जय श्याम शुक्ला ने उसे इलाज के लिए स्वास्थ केंद्र भिजवा दिया.

जय श्याम शुक्ला अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ शंकर मीणा, अपर पुलिस अधीक्षक महेंद्र प्रताप सिंह चौहान तथा डीएसपी आनंद कुमार पांडेय भी वहां आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पासपड़ोस के लोगों तथा मृतका के पिता रामशरण यादव से घटना के बारे में जानकारी हासिल की.

पड़ोस में रहने वाली ननकी ने बताया कि विमला जान बचाने के लिए उस के घर में घुस आई थी. लेकिन पीछा करते हुए उस का पति किन्नर यादव घर में आ गया था. वह विमला  के बाल पकड़ कर घसीटते हुए घर के बाहर सड़क पर ले गया. फिर उस ने फरसे से विमला की गर्दन धड़ से अलग कर दी. वह चाह कर भी उस की कोई मदद नहीं कर पाई थी.

रामदत्त की बेटी अंतिमा ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि वह घर के बाहर साफसफाई कर रही थी तभी किन्नर चाचा फरसा ले कर आए और बंका पर हमला कर दिया. उस का कान तथा गर्दन कट गई. विमला चाची बंका को बचाने आई तो चाचा ने बंका को छोड़ कर विमला चाची पर हमला कर दिया. वह जान बचा कर ननकी काकी के घर घुस गई. लेकिन उन की जान नहीं बच सकी.

थाने लौट कर पुलिस अधिकारियों ने हवालात में बंद किन्नर यादव को बाहर निकलवा कर बंद कमरे में पूछताछ की. पूछताछ में उस ने सहजता से पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अपर पुलिस अधीक्षक महेंद्र सिंह चौहान ने स्वास्थ केंद्र पहुंच कर घायल रवि उर्फ बंका से जानकारी हासिल की. बंका ने विमला से अवैध रिश्तों की बात स्वीकार की.

इधर पुलिस अधिकारियों के आदेश पर प्रभारी निरीक्षक जयश्याम शुक्ला ने मृतका विमला के सिर और धड़ को एक साथ पोस्टमार्टम के लिए बांदा के जिला अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने उसी दिन मुक्तिधाम में उस का दाह संस्कार करा दिया.

चूंकि कातिल किन्नर यादव ने स्वयं थाने जा कर आत्मसमर्पण किया था और आलाकत्ल फरसा भी पुलिस को सौंप दिया था. इसलिए प्रभारी निरीक्षक जय श्याम शुक्ला ने मृतका के पिता रामशरण यादव को वादी बना कर धारा 302/324 आईपीसी के तहत किन्नर यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में अवैध रिश्तों की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

किन्नर यादव बांदा जनपद के कस्बा बबेरू नेता नगर में रहता था. 12 साल पहले उस का विवाह मरका क्षेत्र के सिरिया ताला गांव निवासी रामशरण सिंह यादव की बेटी विमला के साथ हुआ था. विमला सरल स्वभाव की महिला थी. किन्नर यादव उसे बहुत प्यार करता था. कालांतर में विमला 2 बेटों संदीप व कुलदीप की मां बनी.

परिवार के लिए हाड़तोड़ मेहनत

किन्नर यादव पटाखा, आतिशबाजी बनाने का बेहतरीन कारीगर था. वह बबेरू के एक लाइसेंस होल्डर के यहां काम करता था. उसे पगार तो मिलती ही थी, साथ में वह अवैध रूप से भी पटाखे बना लेता था. इस से भी उसे ठीकठाक कमाई हो जाती थी. उस के परिवार के भरणपोषण के लिए इतना काफी था. यह काम करने वाले और भी थे.

लेकिन अवैध काम तो अवैध ही होता है. बबेरू पुलिस को भनक पड़ी तो उस ने धरपकड़ शुरू की, लेकिन किन्नर यादव किसी तरह बच गया. इस के बाद पत्नी विमला के समझाने पर उस ने अवैध काम को बंद कर दिया और कस्बे की एक आढ़त पर पल्लेदारी का काम करने लगा.

रवि उर्फ बंका किन्नर यादव के पड़ोस में रहता था. उस के पिता सूरजभान सविता गांव मरका में रहते थे. अविवाहित बंका अपनी मां गोमती के साथ रहता था. वह बिजली विभाग में संविदा कर्मचारी था. वेतन के अलावा उस की ऊपरी कमाई भी थी, सो वह ठाटबाट से रहता था.

बंका और किन्नर यादव हमउम्र थे. दोनो के बीच दोस्ती थी. लेकिन एकदूसरे के घर ज्यादा आना जाना नहीं था. एक बार बंका किसी काम से किन्नर यादव के घर आया. उस ने किन्नर की पत्नी विमला को देखा, तो उस की नियत खराब हो गई.

अब वह विमला को पाने के जतन करने लगा.

किन्नर के 2 बेटे थे संदीप व कुलदीप. दोनों स्कूल जाते थे. बच्चों की परवरिश और पढ़ाईलिखाई से खर्चे बढ़ गए थे, जबकि आमदनी उतनी ही थी. जरूरत होती तो किन्नर बंका से ब्याज पर पैसे ले लेता था. इसी सिलसिले मे एक रोज बंका, किन्नर यादव के घर आया था. दोनों घर से निकलने लगे, तो विमला ने पति को टोका, ‘‘सुनिए, बच्चों की फीस देनी है, 500 रुपए दे जाओ.’’

‘‘अभी पैसे नहीं है. शाम को बात करते है.’’ किन्नर ने लापरवाही से कहा, तो बंका ने जेब से पर्स निकाला और पांचपांच सौ के 2 नोट निकाल कर विमला की हथेली पर रख दिए, ‘‘ये लो भाभी, बच्चों की फीस दे देना.’’ फिर वह किन्नर की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘यार बच्चों की जरूरतों के मामले में भाभी को परेशान मत किया करो. तुम्हारा यह दोस्त है तो..’’ कहने के साथ ही उस ने मुसकरा कर विमला की ओर देखा, ‘‘भाभी, आप संकोच मत करना. जब भी जरूरत हो, कह देना.’’

बंका के पर्स में नोटों की झलक देख विमला हसरत से उस के पर्स को देखती रह गई. बंका समझ गया कि विमला की दुखती रग पैसे की जरूरत है. उस रोज के बाद वह गाहेबगाहे विमला की आर्थिक मदद करने लगा. अब दोनों एकदूसरे को देख मुसकराने लगे थे.

बंका की नजरें विमला के सीने पर पड़ती, तो वह जानबूझ कर आंचल गिरा देती, जिस से बंका अपनी आंखें सेंक सके. दरअसल बंका विमला को पाने के लिए लालायित था, तो विमला भी कुंवारे बंका को अपने रूप जाल में फंसाने को उतावली थी.

घर के बढ़ते खर्चों के कारण किन्नर यादव की व्यस्तता बढ़ गई थी. वह ज्यादा से ज्यादा समय आढ़त पर बिताता था ताकि पल्लेदारी कर ज्यादा पैसा कमा सके. वह सुबह घर से निकलता तो देर रात थकामांदा लौटता था. उस का पूरा दिन और आधी रात आढ़त पर ही बीत जाती थी. घर आता तो खाना खा कर सो जाता था. कभी मन हुआ तो बेमन से विमला को बांहों में लेता फिर अपनी थकान उतार कर एक ओर लुढ़क जाता. इस से विमला का मन भटकने लगा. वह रवि बंका के हसीन जाल में फंसने को उतावली हो उठी.

पहले तो बंका किन्नर यादव की उपस्थिति में ही आता था, बाद में वह उस की गैरमौजूदगी में भी आने लगा. विमला से उस का हंसीमजाक व नैनमटक्का पहले ही दिन से शुरू हो गया था. गुजरते दिनों के साथ दोनों नजदीक भी आते गए. उस के बाद एक दोपहर को वह सब हो गया, जिस की चाहत दोनों के मन में थी.

चाहत में पतिता बन गई विमला

विमला और बंका के सामने एक बार पतन का रास्ता खुला, तो वे उस पर लगातार फिसलते चले गए. दिन में विमला घर में अकेली रहती थी. किन्नर यादव आढ़त चला जाता था और दोनों बच्चे स्कूल. विमला फोन कर के बंका को बुला लेती. बच्चों के स्कूल लौटने से पहले ही बंका अपने अरमान पूरे कर चला जाता था.

दोनों के बीच प्रीत बढ़ी, तो विमला को दिन का उजाला उलझन देने लगा. हर समय किसी के आने का डर भी बना रहता था. इसलिए हसरतों का पूरा खेल उन्हें जल्दीजल्दी निपटाना पड़ता था. दोनों ही इस हड़बड़ी और जल्दबाजी से संतुष्ट नहीं थे.

वे दोनों देह का पूरा खेल सुकून व इत्मीनान से खेलना चाहते थे. जिस दिन किन्नर आढ़त से घर नहीं आ पाता, उस दिन बच्चों के सो जाने के बाद विमला चुपके से उसे घर में बुला लेती.

बंका का किन्नर यादव की गैरमौजूदगी में चुपके से आना और उस के आने से पहले ही चले जाना पड़ोसियों की नजरों से छुपा नहीं रह सका. लिहाजा उन दोनों को ले कर तरहतरह की बातें होने लगीं. फैलतेफैलते ये बातें किन्नर यादव के कानों तक पहुंची तो उस ने विमला से जवाब तलब किया.

रंगे हाथ पकड़े बगैर औरतें हो या पुरुष, अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करते. विमला ने भी मोहल्ले वालों को झूठा और जलने वाला कह कर पल्ला झाड़ लिया. लेकिन किन्नर को इस से संतुष्टि नहीं हुई. उस ने दोनों की निगरानी शुरू कर दी और एक दिन उन्हें आपत्तिजनक हालत में पकड़ लिया.

किन्नर ने विमला को पीटा और बंका को अपमानित कर के घर से निकाल दिया. इस के बावजूद भी दोनों नहीं सुधरे. विमला, बंका को बुलाती रही और वह उस की देह को सुख देने आता रहा.

कुछ समय बाद एक रोज किन्नर ने दोनों को फिर रंगे हाथ पकड़ लिया. उस दिन उस की बंका से मारपीट भी हुई. यह तमाशा पूरे मोहल्ले ने देखा. किन्नर यादव ने बंका को धमकी भी दी, ‘‘तुझ से तो मैं अपने तरीके से निपटूंगा. ऐसा सबक सिखाऊंगा कि पराई औरत के पास जाने से डरेगा.’’

इस घटना के बाद बंका और विमला का मिलन बंद हो गया. किन्नर ने विमला को समझाया, बच्चों की दुहाई दी, इज्जत की भीख मांगी. लेकिन बंका के इश्क में अंधी विमला नहीं मानी. पकड़े जाने के बाद वह कुछ समय तक बंका से दूर रही, उस के बाद फिर से उसे बुलाने लगी.

अक्तूबर के पहले हफ्ते में विमला के दोनों बच्चे संदीप व कुलदीप अपनी नानी के घर सिरिया ताला गांव चले गए. बच्चे नानी के घर गए तो विमला और भी निश्चिंत हो गई.

वह प्रेमी बंका को मिलन के लिए दिन में बुलाने लगी. 8 अक्तूबर, 2020 की सुबह 6 बजे किन्नर किसी काम से घर से निकल गया. उस के जाने के बाद बंका उस के घर आ गया. वह विमला को बाहों में भर कर प्रणय निवेदन करने लगा. विमला ने किसी तरह अपने को मुक्त किया और कहा कि किन्नर किसी भी समय घर आ सकता है. वह वापस चला जाए. खतरा भांप कर बंका ने बात मान ली.

बंका घर से बाहर निकल ही रहा था कि किन्नर यादव आ गया. उस ने बंका को घर से बाहर निकलते देख लिया था, उसे शक हुआ कि बंका विमला के शरीर से खेल कर निकला है. शक पैदा होते ही किन्नर को बहुत गुस्सा आया. उस ने घर में रखा फरसा उठाया और पड़ोसी बंका के घर पहुंच गया.

बंका कुछ समझ पाता उस के पहले ही उस ने उस पर फरसे से प्रहार कर दिया. बंका का कान कट गया और खून बहने लगा. वह बचाओ… बचाओ… की गुहार लगाने लगा, तभी उस ने उस पर दूसरा प्रहार कर दिया, जिस से उस की गर्दन कट गई और वह जमीन पर गिर गया.

इधर बंका की चीख सुन कर विमला उसे बचाने पहुंच गई. विमला को देख किन्नर का गुस्सा और भड़क गया. उस ने बंका को छोड़ विमला पर फरसे से हमला कर दिया. फरसा विमला के पैर में लगा और वह जान बचा कर भागी.

सामने ननकी का घर था, वह उसी घर में घुस गई. पीछा करता हुआ किन्नर भी आ गया. वह विमला के बाल पकड़ कर घर के बाहर लाया और सड़क पर फरसे से उस की गर्दन धड़ से अलग कर दी. ननकी तथा कई अन्य लोगों ने देखा, पर उसे बचाने कोई नहीं आया.

पत्नी की गर्दन काटने के बावजूद किन्नर का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उस ने एक हाथ में विमला का कटा सिर पकड़ा और दूसरे हाथ में फरसा ले कर थाने की ओर चल दिया. लगभग डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल तय कर के किन्नर थाना बबेरू पहुंचा और पुलिस के सामने आत्म समर्पण कर दिया.

9 अक्तूबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त किन्नर यादव को बांदा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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