यह घटना है उत्तर प्रदेश के फैजाबाद से लगे जिला अंबेडकर नगर की. कभी अंबेडकर नगर फैजाबाद की अकबरपुर नाम से एक तहसील थी, लेकिन मायावती ने इसे फैजाबाद से अलग कर के जिला बना दिया और नाम रख दिया अंबेडकर नगर. यहां से उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा है.

हां तो इसी अंबेडकरनगर में 11 जून, 2023 को थाना बेवाना के अंतर्गत आने वाले गांव भीतरीडीह से करीब 500 मीटर दूर रत्नेश पाठक का कक्षा 8 तक ए.के. पब्लिक स्कूल है, जो 2 साल से बंद है. जिस से यह स्कूल खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

स्कूल से करीब 100 मीटरदूर रविवार की सुबह रेस लगाने आए कुछ लडक़ों ने धुआं उठते देखा. उस बंद पड़े स्कूल से धुआं उठते देख लडक़ों को हैरानी हुई. क्योंकि ठंड का महीना तो था नहीं कि कोई आग जला कर हाथ सेंक रहा हो.

यह धुआं क्यों उठ रहा है, यह देखने के लिए वे लडक़े वहां जा पहुंचे. जब वे लडक़े वहां पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर सन्न रह गए. क्योंकि वह आग ऐसे ही नहीं जल रही थी. उस आग में एक मानव शरीर जल रहा था, जो अब तक इतना जल चुका था कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था.

घटनास्थल पर मिला केवल कंडोम का पैकेट

लडक़ों ने इस बात की सूचना गांव वालों को दी तो लाश देखने के लिए लगभग पूरा गांव ही उमड़ पड़ा. लाश और घटनास्थल की स्थिति देख कर ही लग रहा था कि मामला हत्या का है, इसलिए गांव के कोटेदार अमित पांडेय ने तुरंत थाना बेवाना पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही थाना बेवाना एसएचओ अभय मौर्य फोरैंसिक टीम के प्रभारी गौरव सिंह के साथ घटनास्थल भीतरीडीह गांव पहुंच गए. सूचना मिलने पर थोड़ी ही देर में सीओ (सिटी) सुरेश कुमार मिश्र भी वहां आ गए. सभी ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. यह शव कमरा नंबर 7 में जलता मिला था.

लाश की स्थिति ऐसी थी कि वह पहचानी नहीं जा सकती थी. वह 90 फीसदी जल चुकी थी. इसलिए पुलिस ने आसपास की तलाशी लेनी शुरू की कि शायद ऐसी कोई चीज मिल जाए, जिससे मरने वाले की पहचान हो सके. इस तलाशी में पुलिस को वहां से खून सनी मिट्टी, कुछ बाल, जो शायद मरने वाले के थे, नशीली दवा सेंट्रोन और टाइमैक्स कंडोम का एक पैकेट मिला.

इन चीजों में ऐसी कोई चीज नहीं थी, जिससे मरने वाले की पहचान हो सकती. फोरैंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो एसएचओ अभय मौर्य ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए अंबेडकर नगर के जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद सभी पुलिस अधिकारी और थाना पुलिस वापस चली गई.

किसी भी हत्या जैसे मामले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए मरने वाले की पहचान बहुत जरूरी होती है. थाना बेवाना पुलिस ने मरने वाले की पहचान की कोशिश शुरू की. लाश की फोटो से पहचान हो नहीं सकती थी. जिले के ही नहीं, आसपास के जिलों के सभी थानों से भी पता किया गया कि किसी थाने में किसी की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

पता चला कि कहीं कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं है. थाना पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस मामले की जांच को कैसे आगे बढ़ाया जाए, क्योंकि उस के पास एक कंडोम के पैकेट के अलावा और कुछ नहीं था. एसपी अजीत कुमार सिन्हा को लगा कि शायद थाना पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाएगी तो उन्होंने इस मामले की जांच जिले की स्वाट टीम यानी स्पैशल वेपंस एंड टैक्टिक्स टीम को सौंप दी.

जांच टीम ने किया कंडोम कंपनी से संपर्क

हत्या के इस मामले की जिम्मेदारी मिलते ही स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र बहादुर सिंह अपनी टीम एसआई अजय यादव, हैडकांस्टेबल प्रभात मौर्य, कांस्टेबल अबु हमजा, उमेश, पुनीत गुप्ता, अमरेश, विकास, सुनील, मोहित, कुलदीप और विजेंद्र यादव के साथ जांच में लग गए.

वीरेंद्र बहादुर सिंह को भी टाइमैक्स कंपनी के कंडोम का वह पैकेट सौंप दिया गया. उन के दिमाग में आया कि वह आसपास के मैडिकल स्टोरों में पता कराएं कि यह किस के यहां से खरीदा गया है. शायद इस से कोई सुराग मिल ही जाए. लेकिन उन्हें पता चला कि इस ब्रांड का कंडोम यहां मिलता ही नहीं है. तब उन्होंने टाइमैक्स कंपनी से पता किया कि उन की कंपनी का कंडोम कहां कहां बिकता है.

कंपनी से पता चला कि उन की कंपनी के ये कंडोम दिल्ली के आसपास और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक बिकता है. इस के बाद वीरेंद्र बहादुर सिंह को लगा कि मरने वाले का संबंध पश्चिमी उत्तर प्रदेश या दिल्ली के आसपास से तो नहीं है? आजकल जांच में मोबाइल नंबर भी पुलिस की बहुत मदद कर रहा है. लेकिन मोबाइल नंबर तो तब मिलता, जब कोई सुराग मिलता.

इसी क्रम में स्वाट प्रभारी वीरेंद्र बहादुर सिंह ने 10 जून और 11 जून को भीतरीडीह गांव में जितने भी मोबाइल नंबर ऐक्टिव थे, सभी की डिटेल्स यानी डंप डाटा निकलवाया. इस में इतने नंबर थे कि सभी की जांच तो की नहीं जा सकती थी. इस के अलावा ऐसे भी नंबर थे, जो आ रहे थे और जा रहे थे.

चूंकि उन्हें पता चला था कि टाइमैक्स कंडोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा बिकता है, इसलिए उन के दिमाग में आया कि सब से पहले यह पता किया जाए कि इन नंबरों में कोई पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नंबर तो नहीं है. इसलिए उन्होंने इन नंबरों में से उन नंबरों के बारे में पता लगाने का निश्चय किया, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हों. क्योंकि कंडोम कंपनी ने बताया था कि उस का टाइमैक्स कंडोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक बिकता है.

12 फोन नंबर आए शक के दायरे में

प्राप्त नंबरों में से 12 नंबर ऐसे मिले, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे. इन में 4 नंबर ऐसे थे, जो जिला सहारनपुर के थे. जिस तरह हत्या कर के लाश को जलाया गया था, उस से पुलिस को लगा था कि हत्यारे एक से अधिक थे. इसलिए जब सहारनपुर के 4 नंबर एक साथ मिले तो पुलिस को लगा कि कहीं हत्या का संबंध इन्हीं लोगों से न हो. इसलिए अब पुलिस का पूरा ध्यान इन्हीं नंबरों पर जम गया.

स्वाट टीम ने एक नंबर पर फोन किया तो उसे किसी महिला ने उठाया. पूछने पर उस ने बताया कि सहारनपुर से 4 लोग अंबेडकर नगर सरकस देखने गए थे. अब पुलिस ने उन 4 फोन नंबरों को रडार पर ले लिया, जो हत्या के समय भीतरीडीह में थे. इन 4 नंबरों में से एक नंबर तो बंद हो चुका था. अब बचे 3 नंबर. पुलिस को अब इन्हीं 3 नंबरों के बारे में पता करना था.

पुलिस ने नंबर देने वाली यानी ये जिन कंपनियों के सिम थे, उन कंपनियों से सभी के पते निकलवाए तो ये सभी सहारनपुर के रहने वाले थे. पता मिल जाने के बाद वीरेंद्र बहादुर सिंह इन नंबर वालों को गिरफ्तार करने के लिए अपनी टीम के साथ सहारनपुर के लिए रवाना हो गए.

सहारनपुर पहुंच कर वीरेंद्र बहादुर सिंह की टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से 3 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन के नाम थे इमरान, फरमान और इरफान. तीनों को गिरफ्तार कर के अंबेडकर नगर लाया गया, जहां तीनों से पूछताछ शुरू हुई.

पहले तो तीनों पुलिस को चकमा देते रहे, पर पुलिस के पास तो इस बात के सबूत थे कि हत्या वाली रात ये तीनों अंबेडकर नगर में मौजूद थे. इसलिए पुलिस ने जब सख्ती से पूछा कि वे लोग सहारनपुर से इतनी दूर यहां क्या करने आए थे और आए  4 लोग थे, जबकि चौथे का फोन बंद है.

तीनों के पास पुलिस के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. तब मजबूर हो कर इन्हें सच्चाई उगलनी पड़ी. तीनों ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि मारा गया व्यक्ति इन का साथी अजब सिंह था. तीनों ने मिल कर उस की हत्या की थी और स्कूल के फरनीचर से जलाने की कोशिश की थी. इस के बाद तीनों ने हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मृतक निकला सरकस कलाकार

जिस की हत्या हुई थी, उस का नाम अजब सिंह रंगीला (25 वर्ष) था. वह सरकस का कलाकार था यानी सरकस में करतब दिखाने का काम करता था. उसी के सरकस में इमरान, फरमान और इरफान भी काम करते थे.

एक साथ काम करने की वजह से इन सभी का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. अजब सिंह इमरान के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. इसी आनेजाने में अजब सिंह को इमरान की बहन से प्यार हो गया. इमरान की बहन को भी अजब सिंह अच्छा लगता था, इसलिए वह भी अकसर अजब सिंह से मिलने उस का सरकस देखने के बहाने जाती रहती थी.

जब आग दोनों ओर लगी हो तो मिलन होने में कहां देर लगती है. अजब सिंह और इमरान की बहन एकांत में मिलने लगे. जब इस की जानकारी इमरान को हुई तो भला यह बात वह कैसे सहन कर सकता था. उस ने बहन को भी रोका और अजब सिंह को भी, लेकिन न अजब सिंह माना और न ही उस की बहन. तब इमरान ने बहन के बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया. अब प्रेमी से मिलना तो मुश्किल हो गया, पर फोन पर दोनों की बातें लगातार होती रहीं.

इमरान को पता था कि अजब सिंह का प्रेम प्रसंग सरकस में ही काम करने वाली एक लडक़ी से भी है, जो पहले उस के साथ सरकस में काम करती थी. वह लडक़ी कोई और नहीं, सरकस में ही काम करने वाले और हत्या में शामिल इरफान की बहन थी.

इसीलिए वह अजब सिंह से और नाराज था. क्योंकि एक ओर तो वह अंबेडकर नगर में इरफान की बहन से संबंध बनाए था, दूसरी ओर उस की बहन को भी बरगला रहा था. इमरान को जब पता चला कि उस की बहन अजब सिंह से भले नहीं मिल पा रही है, पर फोन पर उस से बातें करती रहती है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने बहन को भी रोका और अजब सिंह को भी. पर दोनों नहीं माने.

बहन से कुछ कहता तो वह कह देती कि अजब सिंह उसे फोन करता है, वह क्या करे. दूसरी ओर अजब से कुछ कहता तो वह कह देता कि वह अपनी बहन को क्यों नहीं रोकता. इन बातों से इमरान अजब सिंह बुरी तरह नाराज रहने लगा. वह मन ही मन सोच रहा था कि अजब सिंह का कुछ करना पड़ेगा. उसी बीच अजब सिंह ने एक और गलती कर दी, जिस से इमरान ही नहीं, उस के अन्य साथी फरमान और इरफान भी नाराज हो गए.

2 दोस्तों की बहनों से थे संबंध

इमरान तो ऐसे मौके की तलाश में था ही, उस ने अपने भाई फरमान को तो अजब सिंह को सबक सिखाने के लिए तैयार किया ही, साथ ही इरफान को भी तैयार कर लिया. सभी ने मिल कर योजना बनाई कि अजब सिंह को सरकस लगाने के बहाने आरती के यहां अंबेडकर नगर ले कर चला जाए और वहीं इसे सबक सिखाया जाए.

आरती की इन लोगों से जानपहचान थी. उस ने अपने भाई फरमान को तो बता दिया था कि अजब सिंह की हत्या करनी है, पर इरफान को यह पता नहीं था. वह तो सिर्फ यही जानता था कि अजब सिंह के साथ मारपीट करनी है, जिस से आगे से वह इस तरह की कोई हरकत न करे कि उन लोगों का नुकसान हो.

10 जून, 2023 की सुबह ये सभी लोग सरकस लगाने के लिए अंबेडकर नगर के थाना बेवाना के गांव भीतरीडीह आ गए और आरती के यहां रुके. क्योंकि आरती इन की परिचित थी और इन लोगों के साथ काम कर चुकी थी. पूरा दिन इन लोगों ने आराम किया. शाम को खाने में इन लोगों ने मछली बनवाई. खाना खाने के पहले इन लोगों ने शराब पीने का प्रोग्राम बनाया.

इमरान अजब सिंह की बाइक ले कर गया और 4 बोतल शराब ले आया. इस के बाद सभी ने सलाह की कि आरती के घर में बैठ कर शराब पीना ठीक नहीं होगा. उस के घर वाले बुरा मान सकते हैं, इसलिए चलो गांव के बाहर कहीं बैठ कर शराब पी जाए.

यह सलाह कर के सभी गांव के बाहर आए तो अजब सिंह ने ही कहा, “गांव के बाहर ए.के. पब्लिक स्कूल है, जो सालों से बंद पड़ा है. चलो, उसी स्कूल में बैठ कर पीते हैं. वहां कोई आएगा भी नहीं और वहां बैठने के लिए पुरानी कुरसी मेज भी हैं.”

इमरान ऐसी ही जगह चाहता था. यह तो वही हाल हुआ कि रोगी को जो भाए, वही वैद्य बताए. उस ने कहा, “चलो, वहीं बैठ कर पीते हैं.”

दोस्तों ने ही बताया हत्या का प्लान

अजब सिंह अकसर इरफान की बहन से मिलने आता रहता था, इसलिए उसे उस स्कूल के बारे में पता था. अजब सिंह सभी को स्कूल तक ले आया. सभी स्कूल के अंदर बरामदे में बैठ कर शराब पीने लगे. योजना के अनुसार सभी ने अजब सिंह को ज्यादा शराब पिलाई और खुद कम पी.

जब अजब सिंह शराब के नशे में खूब धुत हो गया यानी विरोध करने लायक नहीं रहा तो इमरान ने भाई फरमान से कहा, “पकड़ कर गला दबा दे इस का. हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए इस से, वरना यह हमारी इज्जत को दाग लगा कर ही छोड़ेगा.”

“क्या… तुम लोग इसे मारना चाहते हो क्या?” इरफान ने पूछा.

“और किसलिए इसे यहां लाए हैं. अगर यह जिंदा रहा तो हमें सुकून से जीने नहीं देगा. तुम्हें तो पता ही है कि यह मेरी बहन के ही नहीं, तुम्हारी बहन के भी पीछे पड़ा है. कब से समझा रहा हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दे. पर मेरी बात इस के भेजे में उतर ही नहीं रही है. अब मैं खुद इस से बहन का पीछा छुड़वाऊंगा. जब जिंदा ही नहीं रहेगा तो पीछा कैसे करेगा.” इमरान ने कहा.

“यह ठीक नहीं है, इस की हत्या कर दी और हम सभी पकड़े गए तो पूरी जिंदगी जेल में बीतेगी.” इरफान ने समझाया.

“जेल तो हम तब जाएंगे, जब पकड़े जाएंगे. पकड़े न जाएं, इसीलिए तो इसे यहां ले आए हैं.” इमरान ने कहा.

इरफान उसे रोकता, उस के पहले ही इमरान ने एक ईंट उठा कर अजब सिंह के सिर पर दे मारी. इरफान उस का हाथ पकड़ता, तब तक उस ने दूसरा वार कर दिया. इस दूसरे वार मे अजब सिंह चल बसा.

स्कूल के फरनीचर से जलाई लाश

अजब सिंह का खेल खत्म करने के बाद जब बात आई उस की लाश को ठिकाने लगाने की तो स्कूल के कमरा नंबर 7 में लाश ले गए और जो टूटाफूटा फरनीचर पड़ा था, तीनों ने मिल कर उसे इकट्ठा किया और उसी पर लाश को रख कर आग लगा दी. घटनास्थल पर कंडोम का जो पैकेट मिला था, उसे वे लोग पुलिस को भ्रम में डालने के लिए साथ लाए थे.

उन का सोचना था कि कंडोम का पैकेट देख कर पुलिस यही समझेगी कि कोई यहां अवैध संबंध बनाने आया था और मारा गया. इन लोगों का दुर्भाग्य देखिए कि जिस कंडोम के पैकेट को ये लोग पुलिस को भ्रम में डालने के लिए लाए थे, उसी ने पुलिस को इन लोगों तक पहुंचा दिया.

अजब सिंह की हत्या करने के बाद तीनों आरती के घर गए और वहां खाना खा कर अजब सिंह की बाइक ले कर मऊ चले गए. बाइक वहां इन्होंने एक कबाड़ी के यहां 3 हजार रुपए में गिरवी रख दी और लखनऊ होते हुए सहारनपुर चले गए.

पूरी कहानी सुनने के बाद एसपी अजीत कुमार सिन्हा की मौजूदगी में तीनों हत्यारों इमरान, फरमान और इरफान को पुलिस ने पत्रकारों के सामने पेश किया तो सभी ने पत्रकारों के सामने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को पुलिस ने उसी दिन अदालत मे पेश किया, जहां से 2 दिन के रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान अजब सिंह की वह बाइक मऊ से बरामद कर ली गई, जो इन्होंने कबाड़ी के यहां 3 हजार रुपए में गिरवी रख दी थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर इन्हें दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

जब उच्च अधिकारियों को पता चला कि अंबेडकर नगर पुलिस ने कंडोम के पैकेट से जिस तरह ब्लाइंड मर्डर का खुलासा किया है, वह काबिले तारीफ है. उन्होंने अंबेडकरनगर पुलिस की प्रशंसा करते हुए कहा कि हत्याकांड की केस स्टडी अब यूपी पुलिस के मुरादाबाद में स्थित पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेजी जाएगी, जहां ट्रेनी अफसर और पुलिस जवान ट्रेनिंग के दौरान इस का अध्ययन करेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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