महाराष्ट्र के कोल्हापुर की सीरियल किलर बहनों के नाम से कुख्यात सीरियल किलर्स रेणुका शिंदे और सीमा गावित अपनी मां अंजनाबाई गावित के कहने पर अपराध करती थीं. मां ही अपनी बेटियों से मासूम बच्चों का अपहरण कर उन से अपराध करवाती थी. वह दोनों बेटियों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करती थी. जब मकसद पूरा हो जाता था, तब बच्चों की बेरहमी से हत्या कर देती थीं. उन 3 सीरियल किलर मां बेटियों ने कोई 2-4 नहीं, बल्कि कुल 42 मासूम बच्चों को तड़पा तड़पा कर मार डाला.
सनसनीखेज हत्याओं की शृंखला ने कोल्हापुर और आसपास के इलाकों को सालों तक आतंकित रखा. लोगों ने अपने बच्चों को शाम के बाद अकेले बाहर निकलने से पूरी तरह से रोक दिया था.
उन का भयानक कृत्य 3 दशक के बाद एक बार फिर लोगों के सामने आया. 3 दशक पहले भी यह केस बहुत चर्चा का विषय बना था. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार दोनों बहनों ने 13 बच्चों का किडनैप किया, 9 बच्चों की हत्या कर दी. वे बेरहमी से बच्चों को मारने के बाद बच्चों के शव पर डिजाइन बनातीं, फिर जश्न मनाती थीं. इन सीरियल किलर बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर हैवानियत की हद पार कर दी थी.
आइए बताते हैं कि इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर किस तरह अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत छोटे अपराधों से कर बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या तक के रास्ते को तय किया.
कोल्हापुर निवासी अंजनाबाई एक ड्राइवर शिंदे के प्यार में पड़ गई और अपने घर से निकल गई. उस ने ड्राइवर से शादी कर ली. उस से 1973 में एक बेटी रेणुका शिंदे हुई. बेटी पैदा होने के बाद ड्राइवर पति ने अंजनाबाई को छोड़ दिया. तब वह अपनी बेटी को ले कर पुणे आ गई. यहां उस ने पूर्व सैनिक मोहन गावित से दूसरी शादी कर ली. अंजनाबाई को उस से 1975 में दूसरी बेटी सीमा गावित पैदा हुई, लेकिन दूसरे पति मोहन ने भी अंजनाबाई को छोड़ दिया.
ऐसे हुई अपराध की शुरुआत
मोहन ने प्रतिमा नाम की दूसरी महिला से शादी कर ली. अब अंजनाबाई के सामने अपना व बेटियों के पेट भरने की समस्या सामने आ गई. अपनी आजीविका चलाने के लिए उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. इस में उस ने दोनों बेटियों और बड़ी बेटी रेणुका के पति किरण को भी शामिल कर लिया. रेणुका के एक बेटा सुधीर हुआ.
एक दिन रेणुका ने मंदिर में चोरी की और जब पकड़ी गई तो बेटे को आगे कर उस पर सारा इलजाम डाल दिया. लोगों ने रहम कर बेटे और मां को छोड़ दिया. यहीं से रेणुका और उस की मां व बहन को बच्चों के सहारे अपराध करने का आइडिया मिला. तब अंजनाबाई अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल कर चोरियां और झपटमारी करने लगी.
ये लोग भीड़भाड़ वाले स्थानों, मंदिरों से 5 साल से कम उम्र के बच्चों को चुरा लिया करतीं और फिर इन्हीं बच्चों को गोद में ले कर चोरी और झपटमारी के काम में निकल जाती थीं, लेकिन जैसे ही कोई इन्हें ऐसा करते रंगे हाथों पकड़ता, ये फौरन अपने पास मौजूद बच्चे को जमीन पर पूरी ताकत से पटक देतीं.
इस से लोगों का ध्यान चोरी से हट कर बच्चे पर चला जाता और बस उसी समय मौके का फायदा उठा कर ये भीड़ के चंगुल से बच निकलती थीं. ये इसी तरह बच्चों के सहारे छोटीमोटी चोरी, पाकेट काटना, चेन स्नैचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देती थीं.
ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा. ये तीनों इसी तरह बच्चों के सहारे गुनाहों को अंजाम देतीं और मौका मिलते ही उन्हें मौत की नींद सुला देती थीं. ये तीनों बच्चों को मारने और उन पर जुल्म ढाने के मामले में इतनी आगे निकल गईं कि अच्छेअच्छों का दिल कांप जाए.
रेणुका शिंदे और सीमा गावित इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर जून, 1990 से अक्तूबर 1996 के बीच इन 6 सालों में पुणे, ठाणे, कोल्हापुर, नासिक जैसे शहरों सेे दरजन भर बच्चों का अपहरण किया. वे 5 साल से छोटे बच्चों का अपहरण करती थीं. बच्चों के अपहरण के बाद उन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर ले जाती थीं, जहां तीनों में से कोई एक लोगों का सामान चुराने की कोशिश करती, अगर चोरी के समय पकड़ी जाती तो वे या तो बच्चे के माध्यम से सहानुभूति जगाने की कोशिश करतीं या बच्चे को चोट पहुंचा कर लोगों का ध्यान भटका देती थीं.
ये अपहृत किए बच्चों से भी चोरी करवाती थीं. जब बच्चा इन के काम का नहीं रहता तो अपहृत बच्चे की बाद में नृशंस तरीके से हत्या कर देती थीं. इन में से 9 बच्चों को दोनों बहनों व उन की मां ने रोंगटे खड़ी कर देने वाली दर्दनाक मौत की नींद सुलाया. उन्होंने मारने के ऐसे तरीके अपनाए, जिन्हें सुन कर ही दिल दहल जाए.
125 आपराधिक मामले थे दर्ज
मां और बेटियों पर करीब 125 आपराधिक मामले दर्ज थे. इन में छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाएं तो शामिल थीं, लेकिन ये इन महिलाओं की खौफनाक कहानी का बहुत छोटा सा हिस्सा था. 90 के दशक में इन्होंने चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा. तब बड़ी बेटी रेणुका की उम्र 17 साल और छोटी बेटी सीमा की उम्र 15 साल थी, जब इन्होंने अपनी मां के साथ मिल कर पहले बच्चे की हत्या की थी.
दूसरे पति की बेटी को भी बनाया निशाना
पति मोहन की दूसरी पत्नी प्रतिमा से 2 बेटियां थीं. अंजनाबाई प्रतिमा से दिल ही दिल बेहद नफरत करती थी. लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए अंजनाबाई व दोनों बहनों ने उस से दोस्ती का नाटक कर उस के घर में घुसपैठ कर ली. इस के चलते उस ने प्रतिभा की 9 साल की बेटी क्रांति को निशाना बनाया. उन्होंने उस का अपहरण कर हत्या कर दी और लाश गन्ने के एक खेत में दबा दी. इस का शक प्रतिमा को अंजनाबाई और उस की दोनों बेटियों पर था, इसलिए उस ने तीनों के खिलाफ पुलिस में बेटी के किडनैपिंग की शिकायत दर्ज कराई.
इन तीनों महिलाओं का इरादा प्रतिमा की दूसरी बेटी का अपहरण करना भी था, लेकिन पुलिस ने इन के मनसूबों को नाकाम कर दिया. ये महिलाएं 14वें बच्चे को अपना शिकार बनातीं, इस से पहले ही पुलिस इन तक पहुंच गई थी.
पुलिस ने नवंबर, 1996 में तीनों महिलाओं को एक बच्चे के अपहरण के आरोप में नासिक से गिरफ्तार कर लिया. उन के घर पर छापे मारे गए तो कई बच्चों के कपड़े और खिलौने मिले. इस के बाद ही कोल्हापुर पुलिस ने इन हत्यारिनों के घिनौने खेल का परदाफाश कर दिया. पूरे 6 साल तक महाराष्ट्र और गुजरात में घूमघूम कर ये बच्चों को मारती रहीं. अनगिनत मासूमों के मांबाप अपने कलेजे के टुकड़ों के लापता होने पर रोते रहे.
अपहरण के बाद हत्या
पकड़े जाने के बाद जब छानबीन शुरू की तो पुलिस के सामने रोंगटे खड़ी करने वाली जानकारी के साथ ही हैरतअंगेज कारनामे सामने आए. दोनों बहनों ने जब राज उगलने शुरू किए तो हर कोई दंग रह गया. इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने कई शहरों से 13 बच्चों का अपहरण किया था, जिन में से 9 की निर्मम हत्या कर दी गई थी. जबकि छोटी बहन सीमा ने पुलिस को पूरी सच्चाई बताई कि उन्होंने अब तक 42 बच्चों की हत्या की है.
गरीब बच्चों के मांबाप ने बच्चा गायब होने पर पुलिस से शिकायत नहीं की थी, इस के चलते इन पर केवल 13 बच्चों का अपहरण और 9 की हत्या का आरोप लगा. दोनों बहनों के गिरफ्त में आने के बाद रेणुका के पति किरण शिंदे ने सरकारी गवाह बन कर पुलिस की मदद की. वह इन लोगों के क्राइम में शामिल नहीं था, लेकिन इन की हकीकत भलीभांति जानता था. बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया.
मुंबई के अलगअलग हिस्सों से बच्चों के अपहरण व हत्या के मामले में दोनों बहनों समेत मां अंजनाबाई को मास्टरमाइंड बताया गया था.
क्रूरता की हुई इंतहा
महाराष्ट्र में 90 के दशक में दोनों बहनें रेणुका व सीमा अपनी मां अंजनाबाई के साथ मिल कर मासूम बच्चों का अपहरण करती थीं. फिर उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता था. इन बच्चों से भीख मंगवाने, चोरी कराने जैसे काम कराती थीं. मकसद पूरा हो जाने, अपराध की दुनिया में पुराने हो जाने और लोग जब उन बच्चों को पहचानने लगते थे तो ये महिलाएं उन की हत्या कर देती थीं. 13 बच्चों के अपहरण व उन की हत्या करने का आरोप इन पर लगा था.
बच्चों की हत्या की दर्दनाक कहानी
इन महिलाओं ने 2 साल के एक बच्चे का अपहरण कर के पहले तो कई दिनों तक उसे भूखा रखा. मासूम अपनी मां को याद कर बहुत रोता था. इस के चलते उस बच्चे को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई.
संतोष नाम के एक बच्चे का भी इन्होंने अपहरण कर लिया. वह मात्र डेढ़ साल का था. एक शाम जब ये महिलाएं कहीं जा रही थीं तब बच्चा रोने लगा. बच्चे के रोने से लोगों का ध्यान उन पर जाएगा, इस डर से उन्होंने बच्चे का सिर जमीन और लोहे की रौड पर तब तक पटका, जब तक कि बच्चे ने उन की गोद में ही दम नहीं तोड़ दिया. इस के बाद बच्चे के शव को सुनसान जगह में फेंक दिया.
ऐसे ही 18 महीने के एक बच्चे की भी इन महिलाओं ने बेरहमी से हत्या की थी. पहले बच्चे का गला घोंट दिया गया. उस के शव को एक पर्स में ठूंसा और उस पर्स को एक सिनेमाहाल के टायलेट की शेल्फ में छोड़ दिया. इतना ही नहीं हत्या के बाद इन बहनों ने भेलपूरी खाते हुए मूवी का आनंद भी लिया.
अपहरण किया गया 3 साल का पंकज नाम का एक बच्चा इन महिलाओं के साथ रह रहा था. पंकज घर के आसपास के लोगों से बात करने की हिम्मत करने लगा था, ताकि वह उन महिलाओं के चंगुल से बाहर निकल सके. इस बात की जानकारी होते ही इन्होंने पंकज को पंखे से उलटा लटका दिया और दीवार में तब तक उस का सिर पटका, जब तक उस की मौत नहीं हो गई.
ये महिलाएं गरीबों के बच्चों की आड़ में चोरी को अंजाम देतीं और पकड़े जाने पर इमोशनल तरीका अपना कर बच जाती थीं.
जेल में हुई मां की मौत
नवंबर 1996 में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. तीनों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. रेणुका का पति किरण इन मामलों में मुख्य गवाह बन गया तो उस के खिलाफ सारे मामले हटा दिए गए. गिरफ्तारी के एक साल बाद ही दिसंबर 1997 में अंजनीबाई की जेल में ही मौत हो गई.
156 गवाह कोर्ट में हुए पेश
मांबेटियों को काननू की नजर में गुनहगार ठहराया जाना पुलिस के लिए कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए सीआईडी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. उस ने कई अहम परिस्थितिजन्य साक्ष्य एकत्र ही नहीं किए बल्कि 156 गवाह अदालत के समक्ष पेश किए. इन गवाहों में सब से अहम गवाह एक मासूम भी था, जो इन के चंगुल से भागने में सफल हो गया था.
पुलिस ने इन के खिलाफ 12 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की थी. लिहाजा इतने ही मामलों में उन के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई.
राज्यपाल ने 2013 में खारिज की दया याचिका
कोल्हापुर के सत्र न्यायालय ने 2001 में दोनों बहनों शिंदे और गावित को मौत की सजा सुनाई थी. बौंबे हाईकोर्ट ने 2004 में और सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2006 में सजा बरकरार रखी. दोनों बहनों ने 2008 में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल को दया याचिका भेजी, जो 2012-13 में खारिज हो गई. फिर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने दया की गुहार लगाई. राष्ट्रपति ने भी 2014 में इन की दया की अरजी ठुकरा दी.
सरकार की देरी से मौलिक अधिकार का हनन
साल 1996 से पुणे की यरवडा जेल में बंद दोनों बहनों रेणुका और सीमा ने बौंबे हाईकोर्ट में फांसी देने की सजा पर देरी से अमल होने पर एक अपील दायर की थी, जिस में दोनों बहनों ने दया याचिकाओं के निपटान में बिना वजह देरी किया जाना जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन बताया. वे 25 सालों से कस्टडी में हैं और लगातार मौत के भय में जी रही हैं. ऐसी देरी जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हनन करती है.
हाईकोर्ट के मौत की सजा पर मुहर लगाने के बाद हम 13 सालों से भी ज्यादा समय से पलपल मौत के डर में जी रही हैं. इतना लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे बिताना उम्रकैद काटने जैसा है. लिहाजा अदालत हमारी रिहाई का आदेश दे.
फाइल को खिसकने में लगे 7 साल
कोर्ट ने कहा कि एक ओर केस फाइलें इलैक्ट्रौनिक माध्यमों से भेजी जा रही हैं, लेकिन इस मामले में दया याचिका की फाइल राज्य से केंद्र तक पहुंचने में 7 साल लग गए. कानूनन अगर दया याचिका पर बिना कारण देरी की जाती है तो मौत की सजा कम की जा सकती है. अपराधियों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो किया ही, इन के अपराधों से पीडि़तों के साथ भी अन्याय हुआ.
केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उस की ओर से देरी नहीं हुई. राज्य सरकार से मिली दया याचिका को बिना देरी किए राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेज दिया था. राष्ट्रपति ने इस दया याचिका को 10 महीने में खारिज कर दिया था.
फांसी की सजा बदली उम्रकैद में
18 जनवरी, 2022 को उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया. जस्टिस नितिन जामदार व जस्टिस सारंग कोटवाल ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्रपति ने भी दया याचिका 2014 में नकार दी थी. फिर भी उन्हें 7 साल तक फांसी पर न चढ़ाना शर्मनाक और सरकारी मशीनरी का अपने कर्तव्य का परित्याग करने समान है. व्यवस्था लापरवाही से भरी रही है. इसीलिए हमें फांसी को उम्रकैद में बदलना पड़ रहा है.
2 जजों की बेंच ने इन दोनों बहनों की रिहाई का फैसला महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ दिया है. कहा है कि 25 साल से वे जेल में बंद हैं. इन दोनों बहनों को छोड़ दिया जाए या नहीं, इस पर राज्य सरकार फैसला ले. सरकार व अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभा सके. ढीला व धीमा सिस्टम पीडि़तों को पूरा न्याय नहीं दिला पाया.
ऐसी महिलाओं को फांसी की सजा मिलने पर भी फांसी के फंदे पर न लटकाया जाना उन गरीबों की बदकिस्मती ही कहेंगे, जिन के बच्चों को इन महिलाओं ने दर्दनाक मौत दी.
यदि दिल दहलाने वाली इन सीरियल किलर बहनों को साल 2001 में कोर्ट ने जब फांसी की सजा दी थी. इस फांसी की सजा को साल 2014 में राष्ट्रपति ने माफी देने से इंकार कर दिया था. इस के बावजूद महाराष्ट्र राज्य व केंद्र सरकार ने इन कलयुगी पूतनाओं को फांसी पर नहीं चढ़ाया. यदि सजा के बाद फंदे पर लटका दिया जाता तो भारतीय इतिहास में पहला अवसर होता जब किसी महिला को फांसी पर लटकाया गया होता.
सीरियल किलिंग का यह केस भारत ही नहीं, दुनिया के सब से खतरनाक एवं दर्दनाक मामलों में एक था. इस समय दोनों बहनें रेणुका और सीमा पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं.