प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी, मेरे न रहने पर मेरी करोड़ों की प्रौपर्टी उसी की थी, फिर भी उस की ससुराल वालों ने पैसे के लिए ही उसे मार डाला था. कोई मैं ही अकेला बेटी का बाप नहीं हूं. मेरी तरह यह पूरी दुनिया बेटी के बापों से भरी  पड़ी है. कम ही लोग हैं, जिन्हें बेटी नहीं है. लेकिन बेटी को ले कर जो दुख मुझे मिला है, वैसा दुख बहुत कम लोगों को मिलता है. यह दुख झेलने के बाद मुझे पता चला कि बेटी होना कितना बड़ा जुर्म है और उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

अपनी मेहनत की कमाई खाने वाला मैं एक साधारण आदमी हूं. मैं ने सारी उम्र सच्चाई की राह पर चलने की कोशिश की. हेराफेरी, चालाकी, ठगी या गैरकानूनी कामों से हमेशा दूर रहा. कभी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिस से दूसरों को तकलीफ पहुंचती. ईमानदारी और मेहनत की कमाई का जो रूखासूखा मिला, उसी में संतोष किया और उसी में अपनी जिम्मेदारियां निभाईं.

प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी. वह बहुत ही सुंदर, समझदार और संस्कारवान बेटियों में थी. वह दयालु भी बहुत थी. सीमित साधनों की वजह से सादगी में रहते हुए उस ने लगन से अपनी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी होते ही उसे बढि़या नौकरी भी मिल गई. नौकरी लगते ही मैं उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया.

जल्दी ही मेरी तलाश खत्म हुई और मुझे उस के लायक बढि़या लड़का मिल गया. बेटी की खुशी और सुख के लिए मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर के धूमधाम से उस की शादी की. हालांकि लड़के वालों का कहना था कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए. उन्हें जिस तरह की पढ़ीलिखी और गुणवान लड़की चाहिए थी, प्रीति ठीक वैसी है. इसलिए उसे एक साड़ी में विदा कर दें.

लेकिन मैं बेटी का बाप था. मैं अपनी बेटी को खाली हाथ कैसे भेज सकता था. मैं ने अपनी लाडली बेटी को हैसियत से ज्यादा गहने, कपड़ा लत्ता और घरेलू उपयोग का सामान दे कर विदा किया. बारातियों की आवभगत में भी अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया, जिस से कोई बाराती कभी मेरी बेटी को ताना न मार सके.

शादी होने के बाद प्रीति ने नौकरी छोड़ दी थी. उस का ससुराल में पहला साल बहुत अच्छे से बीता. अपनी लाडली को खुश देख कर हम सभी बहुत खुश थे. उसी बीच प्रीति को एक कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी मिल गई. उस का पति पहले से बढि़या नौकरी कर रहा था.

सब कुछ बहुत बढि़या चल रहा था. अचानक न जाने क्या हुआ कि प्रीति के पति के सिर पर नौकरी छोड़ कर अपना कारोबार करने का भूत सवार हो गया. वह कारोबार कर के करोड़पति बनने के सपने देखने लगा. कारोबार के लिए उसे जितनी बड़ी रकम की जरूरत थी, उतने पैसे उस के पास नहीं थे. तब उस ने प्रीति से मदद करने को कहा.

प्रीति के पास पैसे कहां थे. उस से मदद मांगने का मतलब था, वह मायके से मोटी रकम मांग कर लाए. इस तरह प्रीति की ससुराल वाले बहाने से दहेज में मोटी रकम मांगने लगे. प्रीति हमारी बेटी थी, उसे हमारी औकात अच्छी तरह पता थी. फिर वह उसूलों पर चलने वाली लड़की थी. उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं अपने मांबाप से एक कौड़ी भी नहीं मांगूंगी, क्योंकि यह एक तरह से दहेज है और दहेज लेना तथा देना दोनों ही गैरकानूनी है.’’

प्रीति सीधीसादी लड़की थी. उस का कहना था कि पतिपत्नी जितना कमाते हैं, उस में वे आराम से अपना गुजरबसर कर लेंगे. परिवार बढ़ेगा तो तरक्की के साथ वेतन भी बढ़ेगा. इसलिए उन्हें इसी में संतुष्ट रहना चाहिए.

लेकिन प्रीति के पति के मन में करोड़ों की कमाई का भूत सवार हो चुका था. इसलिए वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं था. बस फिर क्या था, पतिपत्नी के रिश्तों में खटास आने लगी. उन के बीच दरार पड़ गई, जो दिनोंदिन चौड़ी होती चली गई. उन के बीच प्यार तो उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन प्रीति ने मुझ से पैसा मांगने से मना कर दिया था.

फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब प्रीति के पति ने उस पर हाथ उठा दिया. एक बार हाथ उठा तो सिलसिला सा चल पड़ा. फिर तो पति ही नहीं, उस के घर के जिस भी व्यक्ति का मन होता, वही मेरी बेटी को अपमानित ही नहीं करता, बल्कि जब मन होता, पीट देता.

मैं ने जिंदगी में कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था. लेकिन जब मुझे बेटी की प्रताड़ना का पता चला तो मैं बेचैन हो उठा. इंसान बच्चों के लिए ही कमाता है. अपनी सारी जिंदगी उन्हीं की खुशी में होम कर देता है. जिंदगी में वह जो बचाता है, उन्हीं के लिए छोड़ जाता है.

मेरे पास इतनी रकम नहीं थी कि मैं प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर देता. मैं ने पत्नी से सलाह की. पत्नी ही मुझे क्या सलाह देती. उस ने बस यही कहा, ‘‘हमारे पास पुश्तैनी जमीन के अलावा कुछ नहीं है. इसे बेच कर उन लोगों की मांग पूरी कर दो. जब बेटी ही नहीं रहेगी तो हम इस का क्या करेंगे. आखिर यह सब सुखदुख के लिए ही तो है. दुख की इस घड़ी में इसे बेच कर झंझट खत्म कर दो.’’

किसी किसान के लिए जमीन सब कुछ होती है. उसे मांबाप कह लो या रोजीरोटी, वही उस के लिए सब कुछ है, उस से उस के परिवार का ही गुजरबसर नहीं होता, बल्कि उसी की बदौलत और न जाने कितने अन्य लोग पलते हैं. लेकिन अब अपनी खुशी या जिंदगी की चिंता कहां रह गई थी. अब चिंता बेटी की खुशी और जिंदगी की थी.

मैं ने तय कर लिया था कि जितनी जल्दी हो सकेगा, अपनी बिटिया की खुशी के लिए यानी उस पर होने वाले जुल्मों को बंद करवाने के लिए अपनी जमीन बेच कर उस की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा. क्योंकि मुझे लगने लगा था कि उस की ससुराल वाले अब उस की जान ले कर ही मानेंगे.

मैं ने निश्चय किया था कि जमीन बेच कर प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा, उसी के अनुसार मैं ने जैसे ही जमीन बेचने की घोषणा की, लेने वालों की लाइन लग गई. लोग मुंहमांगी कीमत देने को तैयार थे. इस की वजह यह थी कि मेरी जमीन मुख्य सड़क के किनारे थी.

लेकिन मेरी वह जमीन बिकतेबिकते रह गई. दरअसल, प्रीति के दुख से हम पतिपत्नी काफी दुखी थे. हम दोनों मानसिक रूप से काफी परेशान थे. परेशानी से निजात पाने के लिए इंसान ऐसी जगहों पर जाना चाहता है, जहां किसी बात की चिंता न हो. चिंता से निजात पाने और उस का हल ढूंढ़ने के लिए मैं भी पत्नी को ले कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़ा.

एक बस उत्तराखंड के लिए जा रही थी. मेरे मोहल्ले के भी कई लोग उस बस से जा रहे थे. मैं भी पत्नी के साथ उसी में सवार हो गया. लेकिन कुदरत ने वहां ऐसा तांडव मचाया कि हम लोगों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा. लेकिन सेना के जवानों ने हम सभी को बचा लिया. हम सभी को मौत के मुंह से बाहर खींच लाए. हमें तो सेना के जवानों ने बचा लिया, लेकिन दूसरी ओर प्रीति को कोई नहीं बचा सका.

दरअसल, प्रीति की ससुराल वालों को पता था कि मैं पत्नी के साथ उत्तराखंड घूमने गया हूं. जब उन्हें पता चला कि वहां भीषण प्राकृतिक आपदा आई है और उस में हम लोग फंस गए हैं तो उसी बीच उन लोगों ने प्रीति को इस तरह प्रताडि़त किया यानी मारा पीटा कि वह मर गई.

हम लोग आपदा में फंसे थे. फोन भी नहीं मिल रहा था, इसलिए प्रीति की ससुराल वालों ने हत्या को कुदरती मौत बता कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. पड़ोसियों में खुसुरफुसुर जरूर हुई, लेकिन किसी ने बात का बतंगड़ नहीं बनाया. उन्होंने अपना काम आसानी से कर डाला. प्रीति अपनी मौत मरी है, यह साबित करने के लिए उन्होंने उस की एक सहेली को बुला लिया था. सहेली को क्या पड़ी थी कि वह किसी तरह की कानूनी काररवाई करती. फिर उसे कुछ पता भी नहीं था.

हां, तो इस तरह मेरी बेटी प्रीति को मार दिया गया. एक सीधेसादे कत्ल को कुदरती मौत बता कर उन्होंने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया. मेरे घर लौट कर आतेआते उस के सारे कामधाम कर दिए गए थे. मैं ने थाने में प्रीति की हत्या की रिपोर्ट तो दर्ज करा दी, लेकिन मेरे पास उन के खिलाफ ऐसा कोई भी सुबूत नहीं है कि मैं दावे के साथ कह सकूं कि उन लोगों ने प्रीति की हत्या की है.

सुबूत न होने की वजह से पुलिस भी इस मामले की जांच आगे नहीं बढ़ा पा रही है. बहरहाल मैं कानून पर भरोसा करने वालों में हूं, इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि उन लोगों को उन के किए की सजा जरूर मिलेगी.

प्रीति ही मेरी एकलौती बेटी थी. मेरे पास करोड़ों की प्रौपर्टी है, अब वह मेरे किस काम की. प्रीति की ससुराल वालों को सोचना चाहिए था कि हमारे न रहने पर वैसे भी सब कुछ उन्हें ही मिलने वाला था. फिर वे उस का चाहे जैसे उपयोग करते. लेकिन उन्हें संतोष नहीं था.

अब मुझे लगता है कि बेटी सचमुच पराई होती है. अपनी होते हुए भी हम उसे अपनी नहीं कह सकते. तमाम नियमकानून हैं, अधिकार हैं, लेकिन लगता है कि वे सब सिर्फ कहनेसुनने के लिए हैं. अगर नियमकानून ही होते तो लोग उन से डरते. जिस तरह प्रीति मारी गई, शायद उस तरह बेटियां न मारी जातीं. अब मुझे लगता है कि बेटी का पैदा होना ही जुर्म है, उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

—कथा सत्य घटना पर आधारित

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...