सुरेंद्र सिंह अच्छा ट्रैक्टर मैकेनिक था और अमृतसर के बसअड्डे के पास उस का अपना वर्कशौप था. उस का कामधाम भी ठीक था और कमाई भी बढि़या थी. वर्कशाप से  इतनी आमदनी हो जाती थी कि वह अपने परिवार का गुजरबसर आराम से कर रहा था. लेकिन वह अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं था.

दरअसल, सुरेंद्र सिंह शातिर और खुराफाती दिमाग वाला था. यही वजह थी कि वह ढेर सारी दौलत हासिल कर के बहुत जल्दी अमीर बनने के सपने देखता था. अपनी इस लालसा को पूरी करने के लिए शातिर दिमाग वाला सुरेंद्र सिंह कुछ भी करने को तैयार था. वह जानता था कि वर्कशौप की कमाई से वह कभी भी अमीर नहीं बन सकता. क्योंकि वह जो कमाता था, वह सारा का सारा खर्च हो जाता था. इसीलिए वह अमीर बनने के लिए कोई शार्टकट रास्ता ढूंढ़ने लगा था.

सुरेंद्र सिंह के 3 बेटे थे. बड़े बेटे सुखचैन सिंह की शादी हो चुकी थी. वह उस के साथ ही रहता था. बाकी के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह विदेश में रहते थे. समयसमय पर वे परिवार से मिलने भारत आते रहते थे.  मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह जब भी घर आते, वहां के बहुत से किस्से सुनाते. अमीर बनने का सपना देखने वाला सुरेंद्र सिंह उन्हीं किस्सों को सुन कर अमीर बनने के लिए तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा.

मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह ने एक बार बातचीत में बताया था कि अमेरिका और इंग्लैंड में शातिर और चालाक किस्म के लोग खुद को मरा साबित कर के बीमा कंपनियों से मोटी रकम ऐंठ लेते हैं और पूरी उम्र ऐश करते हैं.

बेटों ने तो मजा लेने के लिए यह किस्सा सुनाया था. लेकिन उन की कही बात सुरेंद्र सिंह के शैतानी दिमाग में गहरे तक बैठ गई थी. वह सोचने लगा कि जब अमेरिका और इंग्लैंड में बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठा जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं? उसे लगा कि बीमा कंपनियां उस के अमीर बनने का जरिया बन सकती हैं.

इस के बाद सुरेंद्र सिंह का शैतानी दिमाग बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठने की योजना बनाने लगा. जल्दी ही योजना का पूरा खाका तैयार कर के वह उस पर काम करने लगा. उस ने जो योजना बनाई थी, उस में परिवार के बाकी सदस्यों का सहयोग जरूरी था.

सुरेंद्र सिंह ने पूरी योजना घर वालों को तो बताई ही, विदेश में रहने वाले दोनों बेटों को भी समझा दी. वह बीमा कंपनियों को धोखा दे कर लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए ऐंठना चाहता था. उस के इरादे पर बीमा कंपनियों को शक न हो, इस के लिए उस ने अपने एक बहुत ही करीबी साहब सिंह को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

साहब सिंह उस की इस योजना में शामिल तो नहीं होना चाहता था, लेकिन मजबूरीवश शामिल हो गया था. क्योंकि उस की 2 बेटियां थीं और उस की माली हालत ठीक नहीं थी. पैसों की सख्त जरूरत होने की वजह से वह सुरेंद्र सिंह की योजना में शामिल हो गया था. सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह को भरोसा दिलाया था कि योजना के सफल होने पर बीमा कंपनियों से जो पैसे मिलेंगे, उस में से एक बड़ा हिस्सा वह उसे भी देगा.

अपने परिवार और साहब सिंह को योजना में शामिल करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अलगअलग बीमा कंपनियों में अपने और साहब सिंह के नाम से लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का बीमा करवा डाला. उस ने साहब सिंह का जो बीमा करवाया था, उस की किश्तें भी उसी ने अपने पास से जमा कराई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को तो अपनी योजना के बारे में बता दिया था, लेकिन साहब सिंह ने ऐसा कुछ नहीं किया था. उसे आशंका थी कि उस की पत्नी सुनंदा इस गलत काम में उस का साथ नहीं देगी. इसलिए इस योजना को उस ने अपने तक ही सीमित रखा था.

सुरेंद्र सिंह बीमा पालिसियों की किश्तें सही समय पर चुकाने के साथ अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी भी करता रहा.

जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब योजना को अंजाम देने का समय आ गया है तो उस ने एक नई कार खरीद ली. 21 जनवरी, 2014 को वह उसी कार से साहब सिंह के साथ निकला. वह क्या करने जा रहा है, यह उस ने साहब सिंह को भी नहीं बताया था. लेकिन जब साहब सिंह बारबार पूछने लगा तो उस ने खतरनाक मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हमें अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 2 शिकार ढूंढने हैं.’’

‘‘शिकार का मतलब?’’ साहब सिंह ने पूछा.

‘‘शिकार का मतलब है, ऐसे 2 आदमी जो हमें बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपए दिलाएंगे.’’

बात साहब सिंह की समझ में आ गई. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘इस का मतलब रुपयों के लिए हमें 2 बेगुनाहों की हत्या करनी पड़ेगी?’’

‘‘इस के अलावा हमारे पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अगर करोड़ों रुपए पाने हैं तो पहले हम दोनों को मरना पडे़गा. लेकिन हम सचमुच में मरने नहीं जा रहे हैं. हम दोनों जिंदा ही रहेंगे, हमारी जगह किसी दूसरे को मरना होगा. हम उन्हीं की तलाश में चल रहे हैं.’’

सुरेंद्र सिंह ने कुछ आगे जा कर अमृतसर की सब्जीमंडी के पास एक जगह अपनी कार रोक दी. सुबह का समय था, इसलिए दिहाड़ी पर काम करने वाले कुछ आप्रवासी मजदूर काम की तलाश में सड़क के किनारे खड़े थे. कार में से उतर कर सुरेंद्र सिंह मजदूरों के पास पहुंचा तो कुछ मजदूरों ने उसे घेर लिया.

कुछ ही देर में 2 मजदूरों को साथ ले कर सुरेंद्र सिंह वापस आ गया. काम मिलने की वजह से दोनों मजदूर काफी खुश नजर आ रहे थे. उन्हें कार में बैठा कर सुरेंद्र सिंह अपने वर्कशौप पर पहुंचा. काम का तो बहाना था. दोनों मजदूरों को शाम तक रोकना था, इसलिए वह उन से छोटेमोटे काम कराता रहा.

शाम को मजदूरों के जाने का समय हुआ तो सुरेंद्र सिंह ने शराब की बोतल खोल दी. साहब सिंह साथ ही था. शराब देख कर मजदूरों के मन में लालच आ गया. सुरेंद्र सिंह ने इस बात को भांप लिया. उस ने उन से भी शराब पीने को कहा. सुरेंद्र सिंह के इरादों से बेखबर दोनों मजदूर पीने बैठ गए.

दोनों मजदूरों ने शराब पीनी शुरू की तो पीते ही चले गए. सुरेंद्र सिंह उन्हें ज्यादा से ज्यादा शराब पिलाना चाहता था. इसलिए बोतल खत्म हुई तो उस ने दूसरी मंगा ली. क्योंकि यही शराब उस के काम को आसान बना सकती थी.

मजदूर शराब पीते गए और सुरेंद्र सिंह उन्हें पिलाता गया. शराब पीतेपीते मजदूर इस हालत में पहुंच गए कि उन का खुद पर नियंत्रण नहीं रह गया. एक तरह से वे बेहोशी वाली हालत में पहुंच गए. जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं तो उस ने साहब सिंह के साथ मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी.

उन की हत्या करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को इस बात की सूचना दे कर समझाया कि अब आगे वह क्या करेगा और उस के बाद उन लोगों को क्या करना है.

आधी रात के बाद सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह के साथ मिल कर दोनों मजदूरों की लाशों को कार में डाला और जालंधर जाने वाले राजमार्ग पर चल पड़ा. दोनों लाशों को ज्यादा दूर ले जाना ठीक नहीं था. क्योंकि अगर कहीं पुलिस चैकिंग मिल जाती तो वे पकड़े जा सकते थे.

लगभग 8-10 किलामीटर दूर जा कर सुरेंद्र ने कस्बा मानावालां के पास एक सुनसान जगह पर कार रोक दी. उस समय हलकीहलकी बरसात हो रही थी. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह ने अपने शरीर से कुछ चीजें उतार कर मजदूरों को पहना दीं, जिस से शिनाख्त में पता चले कि वे लाशें सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की थीं. इस के बाद कार की डिकी से मिट्टी के तेल से भरा डिब्बा निकाल कर दोनों ने कार के अंदर और बाहर डाल कर आग लगा दी.

कार के साथसाथ 2 बेगुनाहों की लाशें धूधू कर के जलने लगीं. उस समय हो रही बरसात को देख कर यही लग रहा था कि सुरेंद्र और साहिब सिंह के इस गुनाह पर आसमान रो रहा है.

22 जनवरी की सुबह कुछ लोगों ने मानावालां कस्बे के पास सड़क किनारे एक कार को जली हुई हालत में देखा तो इस की जानकारी पुलिस को दी. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची तो देखा, कार लगभग पूरी तरह से जल चुकी थी. गौर से देखने पर पता चला, कार के साथ 2 आदमी भी जल गए थे.

बड़ा ही खौफनाक मंजर था. कार भले ही पूरी तरह जल गई थी, लेकिन उस की नंबर प्लेट काफी हद तक सुरक्षित थी. कार के नंबर से पुलिस ने जली कार के मालिक का पता लगा लिया. पुलिस को पता चल गया कि कार बसअड्डे के पास ट्रैक्टर का वर्कशौप चलाने वाले सुरेंद्र सिंह की थी.

पुलिस ने तत्काल इस की सूचना सुरेंद्र सिंह के घर वालों को दी. इस के बाद पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार नाटक शुरू हुआ. जली हुई कार और उस के साथ जले लोगों की शिनाख्त के लिए सुरेंद्र सिंह का भाई अवतार सिंह, अपने भांजे रंजीत सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. जली हुई कार और लाशें देख कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाशों की शिनाख्त सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह के रूप में कर दी.

इस के बाद मृतक सुरेंद्र सिंह के भाई अवतार सिंह ने पुलिस को बताया कि सुरेंद्र सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार रहता था. उस ने स्थानीय डाक्टरों से काफी इलाज कराया, लेकिन यहां के डाक्टर उस की बीमारी को समझ नहीं सके. इसलिए चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में दिखाने के लिए वह 22 जनवरी की सुबह 4 बजे के करीब अपने दोस्त साहब सिंह के साथ घर से निकला था.

अवतार सिंह ने पुलिस को यह भी बताया था कि सुरेंद्र सिंह ने जो नई कार खरीदी थी, उस में ईंधन रिस रहा था. कई बार डीलर से इस की शिकायत भी की गई थी. यह बताने का उन का मकसद था कि पुलिस इस हादसे को कार की तकनीकी खराबी की वजह से हुआ हादसा समझे.

कार से बरामद लाशों की हालत इतनी बुरी थी कि किसी भी हालत में पहचाना नहीं जा सकता था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र सिंह के भाई और भांजे की बात मान ली. पुलिस ने तकनीकी खराबी की वजह से कार में आग लगने और उस में सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जल कर मरने की बात को हादसा मानते हुए रिपोर्ट तैयार कर के फाइल बंद कर दी.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के घर वालों ने सब के सामने ऐसा नाटक किया, जैसे दोनों सचमुच मर गए हैं. उन के मरने के बाद की सारी रस्में पूरी की गईं. उन की आत्मा की शांति के लिए अखंड पाठ करवा कर भोग भी डाला गया. यह सब होने के बाद सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की मौत को ले कर किसी भी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह गई.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह अपना हुलिया बदल कर अलगअलग ठिकानों पर छिप कर रहे रहे थे. सुरेंद्र सिंह लगातार घर वालों के संपर्क में था. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी बीमा की रकम घर वालों को मिल जाए तो वह हमेशा के लिए अमृतसर छोड़ कर किसी दूसरे शहर में बस जाए. बीमा की रकम 2 करोड़ के आसपास थी.

2 हत्याएं करने के बाद भी सुरेंद्र सिंह पूरी तरह निश्चिंत था. अब उसे केवल बीमा कंपनियों से मिलने वाले पैसे की चिंता थी. उस का दुस्साहस ही था कि जिस शहर (अमृतसर) के लोगों की नजरों में वह और उस का साथी साहब सिंह मर चुका था, उसी शहर के शराबखानों में बैठ कर दोनों शराब पीते थे. बदले हुलिए की वजह से उन्हें भ्रम था कि कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं था. कुछ लोगों ने बदले हुए हुलिए के बावजूद सुरेंद्र सिंह को पहचान लिया था. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के कार में जल कर मरने की कहानी उन लोगों को पता थी. जब उन लोगों ने दोनों को जिंदा देखा तो उन्हें हैरानी हुई. धीरेधीरे उन के जिंदा होने की अफवाह फैलने लगी. जबकि दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह छिप कर अपने घर वालों के माध्यम से बीमा कंपनियों से रुपए ऐंठने की कागजी काररवाई करवाने में लगा था.

साहब सिंह के प्रति भी सुरेंद्र सिंह की नीयत ठीक नहीं थी. उस ने उस का जो बीमा करवाया था, उस रकम को वह पूरा का पूरा हड़प जाना चाहता था. साहब सिंह के नाम से 40 लाख की पालिसी थी. कायदे से साहब सिंह के मरने के बाद वह रकम उस की पत्नी सुनंदा को मिलनी चाहिए थी. जबकि सुनंदा को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी.

यही वजह थी कि साहब सिंह के नाम जो 40 लाख की पालिसी थी, उस रकम को लेने के लिए सुरेंद्र सिंह के घर वालों ने किसी दूसरी औरत को सुनंदा बना कर बीमा कंपनी के अधिकारियों के सामने पेश कर दिया. बाद में उस की यह धोखेबाजी उसी के लिए घातक साबित हुई.

40 लाख की रकम कोई मामूली रकम तो थी नहीं, इसलिए बीमा कंपनी रकम अदा करने से पहले हर तरह का संदेह दूर कर लेना चाहती थी. इस की जांच के लिए बीमा कंपनी की एक टीम मुंबई से अमृतसर आई. जब यह टीम साहब सिंह के घर पहुंची और सुनंदा से बात की तो पता चला कि उसे तो इस बीमा पालिसी के बारे में कुछ पता ही नहीं था.

साहब सिंह की पत्नी सुनंदा ने जब इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की तो जांच करने आए बीमा कंपनी के अधिकारियों को लगा कि किसी साजिश के तहत बीमा कंपनी से ठगी की कोशिश की जा रही थी. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जानकारी पुलिस को देने का फैसला किया.

दूसरी ओर अब तक सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जिंदा होने की खबरें काफी जोर पकड़ चुकी थीं. किसी ने यह जानकारी पंजाब ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अजीत सिंह बैंस, जो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस भी रह चुके थे, को दी तो उन्हें यह सारा मामला रहस्यमय लगा. उन्होंने आर्गेनाइजेशन के मुख्य जांच अधिकारी सरबजीत सिंह को सच्चाई का पता लगाने को कहा.

सरबजीत सिंह कई लोगों से तो मिले ही, साथ ही सुरेंद्र सिंह के घर वालों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी. इस से जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह मरे नहीं, जिंदा हैं. जब उन्होंने यह बात अजीत सिंह बैंस को बताई तो उन्हें यह मामला काफी गंभीर लगा, क्योंकि अगर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह जिंदा थे तो कार में जल कर मरने वाले 2 लोग कौन थे?

अब इस मामले की जानकारी पुलिस को देनी जरूरी था. कार मानावालां कस्बे के पास जली थी. यह इलाका अमृतसर देहात के अंतर्गत आता था. अजीत सिंह बैंस ने इस पूरे मामले की जानकारी अमृतसर (देहात) के एसएसपी गुरप्रीत सिंह गिल को दी तो उन्हें यह मामला सनसनीखेज और बेहद संगीन लगा. उन्होंने तत्काल इस की जांच कराने की जिम्मेदारी एसपी (डिटेक्टिव) राजेश्वर सिंह को सौंप दी.

एसपी राजेश्वर सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रछपाल सिंह को सौंपी. उन्होंने जांच शुरू की तो साजिश की परतें एकएक कर के खुलने लगीं. जांच शुरू करते ही उन्हें पता चल गया कि इस खौफनाक साजिश में कई लोग शामिल थे, लेकिन पुलिस पहले इस साजिश के सूत्रधार सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह को दबोचना चाहती थी, जो मर कर भी जिंदा घूम रहे थे.

इंसपेक्टर रछपाल सिंह ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू कर दिए. इस से सुरेंद्र सिंह को पुलिस काररवाई की भनक लग गई. पुलिस उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह गायब हो गया. लेकिन साहब सिंह पुलिस के हाथ लग गया. पुलिस ने उसे गग्गोबुआ गांव से उस के भांजे रंजीत सिंह के घर से पकड़ा था.

साहब सिंह को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रोंगटे खड़े कर देने वाली खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने भादंवि की धाराओं 302, 364, 420, 436, 115, 120बी और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर के सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के अलावा अन्य लोगों को नामजद किया. ये लोग थे सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, तीनों बेटे मुख्तयार सिंह, सुखचैन सिंह और सुखवंत सिंह, बहू सरबजीत कौर, भाई अवतार सिंह, भांजा रंजीत सिंह और सुरेंद्र सिंह का साला सुरेंद्र सिंह.

सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, बेटे सुखचैन सिंह और सरबजीत कौर को पुलिस ने 16 मार्च को ही गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह को पनाह देने वाले निशान सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक नामजद लोगों में से 7 लोग गिरफ्तार हो चुके थे. मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर था. साजिश में शामिल सुरेंद्र सिंह के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह आस्ट्रेलिया में थे. पुलिस ने उन्हें भारत लाने की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

पुलिस को उम्मीद है कि एक न एक दिन सभी अभियुक्त पकड़े जाएंगे. लेकिन उन के पकड़े जाने पर भी उन दोनों बेगुनाहों के बारे में पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन थे और कहां से आए थे, जो बेमौत मारे गए. जबकि उन के घर वाले उन के आने की राह देख रहे होंगे.

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