अखबार पढ़तेपढ़ते राजनाथ की नजर उस विज्ञापन पर पड़ी, जिस में दिया था ‘चेहरा पहचानो इनाम पाओ’. उस में एक फिल्मी कलाकार का बिगड़ा हुआ चेहरा दिया था, जिस के नीचे लिखा था कि चेहरा पहचान कर फोन करो और लाखों इनाम पाओ.
राजनाथ ने विज्ञापन में दिए चेहरे को पहचान लिया तो लाखों का इनाम पाने के लालच में मोबाइल फोन उठा कर विज्ञापन में दिए नंबर पर फोन मिला दिया.
घंटी बजी और दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया. फोन रिसीव करने वाले ने कहा, ‘‘कहिए, कैसे फोन किया?’’
‘‘जी, आप ने अखबार में विज्ञापन दिया है…’’
‘‘अच्छा, आप ‘चेहरा पहचानो, इनाम पाओ’ वाले विज्ञापन की बात कर रहे हैं?’’ दूसरी ओर से कहा गया.
‘‘जी,’’ राजनाथ के इतना कहते ही दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘तो क्या आप ने चेहरा पहचान लिया है?’’
‘‘जी, पहचान लिया है.’’ राजनाथ ने कहा.
‘‘तो बताइए, किस का चेहरा है?’’ दूसरी ओर से पूछा गया.
राजनाथ ने जैसे ही पहचाना हुआ चेहरा बताया, फोन रिसीव करने वाले ने कहा, ‘‘भाईसाहब, आप पूरे 10 लाख रुपए जीत गए हैं. आप बोल कहां से रहे हैं?’’
‘‘मैं असम से बोल रहा हूं.’’
‘‘अब तो आप को पता चल ही गया है कि आप इनाम के 10 लाख रुपए जीत गए हैं. आप खुश हैं न इनाम जीत कर?’’ फोन रिसीव करने वाले ने पूछा.
‘‘10 लाख रुपए कम नहीं होते. इतनी बड़ी रकम जीतने के बाद खुशी तो होगी ही. अच्छा, आप यह बताइए कि आप हमें इनाम की यह रकम देंगे कैसे?’’ राजनाथ ने पूछा.
‘‘इनाम की रकम का हम आप को चैक भेजेंगे, लेकिन उस के पहले आप को एक काम करना होगा.’’
‘‘क्या?’’ राजनाथ ने पूछा.
‘‘इनाम की रकम पर जो इनकम टैक्स लगेगा, वह आप को पहले जमा कराना होगा.’’
‘‘कैसे और कितना?’’ राजनाथ ने पूछा.
‘‘आप ने जो रकम इनाम में जीती है, आप को उस का 10 प्रतिशत हमारे बैंक एकाउंट में जमा कराना होगा. आप ने 10 लाख रुपए जीते हैं. इस का 10 प्रतिशत का मतलब 10 हजार रुपए आप को हमारे खाते में जमा कराने होंगे. ऐसा कीजिए, आप अपना पूरा पता हमें मैसेज कर दीजिए. मैं अपना खाता नंबर आप को मैसेज किए देता हूं. आप जितनी जल्दी इनकम टैक्स की रकम जमा करा देंगे, उतनी जल्दी ही हम आप को इनाम की रकम का चैक भेज देंगे.’’ फोन रिसीव करने वाले ने कहा.
‘‘ठीक है, आप खाता नंबर मैसेज कर दीजिए. मैं इनकम टैक्स की रकम जमा कराता हूं.’’ राजनाथ ने कहा.
इस के बाद फोन कट गया. 10 लाख का मामला था, इसलिए राजनाथ असम में जहां रहते थे, वहीं की स्थानीय भारतीय स्टेट बैंक की शाखा के माध्यम से फोन पर बताए गए खाता नंबर में 10 हजार रुपए तुरंत जमा करा दिए. जिस खाता नंबर में उन्होंने रुपए जमा कराए थे, वह नोएडा स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा का खाता नंबर था.
इनकम टैक्स की रकम जमा करा कर राजनाथ इनाम की राशि के चैक का इंतजार करने लगे. जब कई दिनों तक उन की इनामी राशि का चैक उन्हें नहीं मिला तो उन्होंने फोन किया. लेकिन अब उन का फोन यह बताने लगा कि वह फोन नंबर बंद हो चुका है. उन्हें हैरानी हुई. क्योंकि पहले इसी नंबर पर उन की बात हुई थी और इसी नंबर से मैसेज भी आया था, अब वह नंबर बंद कैसे हो गया.
पहले तो उन्हें लगा कि नेटवर्क की प्रौब्लम होगी, इसलिए ऐसा हो रहा होगा. वह लगातार उस नंबर पर फोन करते रहे. लेकिन जब उस नंबर के लगातार बंद होने की सूचना आती रही तो वह थोड़ा परेशान हुए कि कहीं वह 10 लाख रुपए के लालच में 10 हजार रुपए जमा करा कर बेवकूफ तो नहीं बन गए. जब काफी कोशिश के बाद भी फोन नहीं मिला तो राजनाथ को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ.
जब राजनाथ को पूरा विश्वास हो गया कि वह ठगी का शिकार हो गए हैं तो वह काफी विचलित हो उठे. उन के विचलित होने की सब से बड़ी वजह यह थी कि वह पढ़ेलिखे थे. इस के बावजूद वह रुपयों के लालच में मूर्ख बन गए थे. यह बात उन्हें कचोट रही थी. उन्हें मूर्ख बनाने वालों पर तो गुस्सा आ ही रहा था, उस से कहीं ज्यादा गुस्सा खुद पर आ रहा था.
हफ्ता, 10 दिनों तक उन्हें मूर्ख बनने और ठगे जाने का काफी मलाल रहा. लेकिन धीरेधीरे उन का गुस्सा थोड़ा कम हुआ तो वह इस बात पर विचार करने लगे कि ठगने वाले को सबक कैसे सिखाया जाए. उन्हें अंदाजा हो गया था कि जिस तरह लालच में आ कर वह मूर्ख बने हैं, उसी तरह वह ठग न जाने कितने लोगों को मूर्ख बना रहा होगा.
लेकिन ठग तक पहुंचना उन के लिए संभव नहीं था, क्योंकि वह असम में रहते थे. जिस फोन नंबर पर उन की बात हुई थी, वह बंद हो चुका था. उन के पास ठगों का वह खाता नंबर जरूर था, जिस में उन्होंने 10 हजार रुपए जमा कराए थे. रुपए जमा कराते समय उन्हें इतनी जानकारी जरूर मिल गई थी कि वह जिस खाता नंबर में पैसा जमा करा रहे हैं, वह नोएडा स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा का है.
राजनाथ अपनी गलती से ठगे गए थे, इसलिए पुलिस के पास जाने में शरमा रहे थे. उन्हें लगता था कि पूरी बात जानने के बाद पुलिस उन्हें ही जलील करेगी कि पढ़ेलिखे हो कर भी इस तरह मूर्ख बन गए. इस के बावजूद वह उस ठग को पकड़वाना चाहते थे, जिस से उन की तरह अन्य लोग मूर्ख न बनें. उन्होंने काफी सोचाविचारा तो उन्हें लगा कि शायद बैंक मैनेजर से मिल कर कोई सही राह मिल जाए.
इस के बाद राजनाथ भारतीय स्टेट बैंक की उस ब्रांच के मैनेजर से मिले, जहां उन्होंने पैसे जमा कराए थे. उन्होंने पूरी बात बैंक मैनेजर को बताई तो वह भी हैरान रह गया. उस के पास नोएडा की उस ब्रांच का फोन नंबर था, जिस ब्रांच में उस ठग का खाता था. उस ने तुरंत नोएडा स्थित उस भारतीय स्टेट बैंक को फोन कर के मैनेजर से बात की. ठग का नोएडा स्थित जिस भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में खाता था, वह नोएडा के सेक्टर-44 में थी. वहां के मैनेजर थे अमर श्रीवास्तव.
ब्रांच मैनेजर अमर श्रीवास्तव ने पूरी बात सुन कर आश्वासन दिया कि वह उस खाते को अभी चैक कराते हैं और अगर खाताधारक कोई गलत काम कर रहा है तो उसे पकड़वाने की पूरी कोशिश करेंगे.
इस के बाद उन्होंने उस खाते को चैक कराया तो पता चला कि 6 महीने पहले ही वह खाता खुला था. उस में जब भी रुपए जमा हुए थे, 5 हजार, 10 हजार या साढ़े 12 हजार रुपए ही जमा कराए गए थे और ये रुपए बाहर से ही उस खाते में जमा कराए गए थे. रुपए जमा होने के थोड़ी देर बाद ही सारी की सारी रकम एटीएम से निकाल ली गई थी.
खाते की स्थिति से ही पता चल गया कि इस खाते में निश्चित रूप से कोई खेल चल रहा है. उन्होंने खाताधारक की डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स में दिए फोन नंबर पर फोन किया गया तो वह बंद था. फोन बंद होने से वह समझ गए कि इस में आईडी भी फरजी लगी होगी. इसलिए उन्होंने तुरंत उस का एटीएम बंद करा दिया, जिस से वह एटीएम से पैसे न निकाल सके.
इस के बाद ब्रांच मैनेजर ने बैंक के सभी कर्मचारियों को उस खाताधारक का फोटो दिखा कर उस के बारे में बता दिया कि यह आदमी जब भी बैंक में आए, इसे पकड़ कर पुलिस के हवाले करना है.
बैंक कर्मचारियों को उस आदमी का ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. 28 अक्तूबर, 2014 को बैंक कर्मचारी अपने काम में लगे थे. उसी बीच एक आदमी अपने एक साथी के साथ बैंक मैनेजर के सामने आ खड़ा हुआ.
मैनेजर ने उन्हें सवालिया नजरों से देखा तो दोनों में से एक ने कहा, ‘‘सर, मेरे एटीएम से पैसे नहीं निकल रहे हैं. मैं ने कस्टमर केयर को फोन किया तो वहां से आप से मिलने को कहा गया.’’
उस आदमी का इतना कहना था कि ब्रांच मैनेजर अमर श्रीवास्तव तुरंत पहचान गए कि यह वही आदमी है, जिस की उन्हें तलाश है. उन्होंने उसे और उस के साथी को बैठा कर बैंक के अन्य कर्मचारियों को बुला लिया. जब दोनों पूरी तरह से घिर गए तो बैंक मैनेजर ने पुलिस चौकी सेक्टर-44 को फोन किया. सूचना मिलते ही चौकीप्रभारी सबंइसपेक्टर हरिओम सिंह, हेडकांस्टेबल हरिभान सिंह और कांस्टेबल सुरेशचंद्र शर्मा के साथ बैंक पहुंच गए.
बैंक मैनेजर अमर श्रीवास्तव ने उन दोनों युवकों को सबइंसपेक्टर हरिओम सिंह के हवाले करते हुए उन के बारे में अब तक प्राप्त जानकारी दे दी. मैनेजर के बताए अनुसार, वे ठगी करते थे, इसलिए पुलिस उन्हें ले कर चौकी आ गई.
चौकी में की गई पूछताछ के अनुसार उन में से एक का नाम समुल्लाह अंसारी और दूसरे का नाम रंजन था. इस पूछताछ में उन्होंने जो खुलासा किया, वह काफी हैरान करने वाला था. पता चला कि अब तक वे राजनाथ की तरह सैकड़ों लोगों को करोड़ों का चूना लगा चुके थे. रंजन और समुल्लाह का गुरु था धर्मेंद्र, जो दोनों के पकड़े जाते ही फरार हो चुका था.
चौकीप्रभारी ने इसी पूछताछ के आधार पर बैंक मैनेजर अमर श्रीवास्तव की ओर से थाना कोतवाली सेक्टर-49 में धर्मेंद्र समुल्लाह अंसारी और रंजन के खिलाफ अपराध संख्या 662/2014 पर भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ की. इस पूछताछ में ठगी की जो अनोखी कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.
बिहार के जिला नवादा के थाना बारसलीगंज के गांव चकवाड़ा का रहने वाला धर्मेंद्र रोजीरोटी की तलाश में नोएडा आया तो यहां वह सेक्टर-45 स्थित गांव सदरपुर की खजूरपुर कालोनी की गली नंबर-10 में रहते हुए छोटामोटा काम करने लगा. इस के कुछ दिनों बाद ही उस के गांव का रंजन भी उस के पास आ कर रहने लगा.
रंजन भी उसी की तरह छोटामोटा काम करने लगा. दोनों ही ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे. लेकिन इन के सपने बड़े ऊंचे थे. हर आदमी की जिंदगी में सपने बहुत अहमियत रखते हैं. सपने ही जिंदगी को मकसद देने के साथसाथ उम्मीदें जगाते हैं और उम्मीदें ही कोशिश करने को मजबूर करती हैं. इस के बाद कोशिश से ही मंजिल मिलती है.
लेकिन कभीकभी सपनों की मंजिल पाने के लिए लोग गलत राह पकड़ लेते हैं, जिस का अंजाम बहुत भयानक और शर्मसार करने वाला होता है. ऐसा ही धर्मेंद्र, रंजन और समुल्लाह के साथ हुआ.
तीनों ही गरीबी और मुफलिसी में पलेबढ़े थे. घर में खाने के लाले थे तो पढ़ाईलिखाई कहां से होती. धर्मेंद्र हाईस्कूल पास था, जबकि रंजन सातवीं और समुल्लाह तो मात्र चौथी तक ही पढ़ा था. जिंदगी को बेहतर बनाने की चाह में धर्मेंद्र और रंजन नोएडा आए थे. यहीं उन की मुलाकात उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के रहने वाले समुल्लाह से हुई. समुल्लाह घूमघूम कर कबाड़ खरीदता था और किसी बड़े कबाड़ी को बेच देता था.
समुल्लाह से मुलाकात होने के बाद धर्मेंद्र और रंजन भी उसी की मदद से कबाड़ी का काम करने लगे थे. इस काम में मुश्किल से पेट भरता था. वे जो सपना ले क र इतनी दूर आए थे, वह पूरा होता दिखाई नहीं देता था. ऊंचीऊंची इमारतें और आलीशान शहरी जिंदगी उन्हें कचोटती रहती थी.
तीनों को पढ़ना आता था, इसलिए अखबार जरूर पढ़ते थे. किसी अखबार में धर्मेंद्र ने एक विज्ञापन देखा, जिस में एक फिल्मी कलाकार का चेहरा बिगाड़ कर छपा हुआ था. उस के नीचे लिखा था कि जो चेहरा पहचान कर बताएगा, उसे लाखों रुपए इनाम दिया जाएगा.
धर्मेंद्र थोड़ी देर उस विज्ञापन को देखता रहा. उस के बाद कुछ सोचते हुए उस ने अपने रंजन और समुल्लाह से कहा, ‘‘यारो, पैसे कमाने का आइडिया मिल गया. अब हम जल्दी ही लखपति बन जाएंगे.’’
‘‘वह कैसे?’’ समुल्लाह ने पूछा.
‘‘सब कुछ ऐसे ही नहीं बता दिया जाता. अभी तो तुम लोगों को वही करना होगा, जैसा मैं कहूंगा. धीरेधीरे तुम्हें पता चल जाएगा कि हम कैसे पैसे कमा रहे हैं.’’ धर्मेंद्र ने कहा तो समुल्लाह ने कहा, ‘‘ठीक है, आइडिया मत बताओ, लेकिन यह तो बताओ कि हमें करना क्या होगा?’’
‘‘पहले तो किसी भी तरह हमें किसी बैंक में खाता खुलवाना होगा. खाता खुल जाए तो उस के बाद बताऊंगा कि आगे क्या करना है.’’ धर्मेंद्र ने कहा.
‘‘लेकिन खाता खुलवाना आसान है क्या?’’ समुल्लाह ने कहा.
‘‘आसान तो कोई काम नहीं है, लेकिन कोशिश की जाए तो कोई काम मुश्किल भी नहीं है.’’ धर्मेंद्र ने कहा.
धर्मेंद्र के मन में पैसे कमाने का जो आइडिया आया था, उस में वह अपने पते पर खाता नहीं खुलवा सकता था. इसलिए उस ने फरजी पते के कागज तैयार कराए और खाता खुलवाने की कोशिश शुरू कर दी. लेकिन यह इतना आसान काम नहीं था. इस के बावजूद धर्मेंद्र कोशिश करता रहा. अंत में वह नोएडा के सेक्टर-44 स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में खाता खुलवाने में कामयाब हो गया.
खाता खुल गया तो उस ने लाखों की इनाम की राशि के साथ किसी फिल्मी हस्ती के बिगड़े चेहरे के साथ ‘चेहरा पहचानो, लाखों इनाम पाओ’ का विज्ञापन छपवा दिया. जवाब देने के लिए उस ने फोन नंबर छपवाए थे. इन नंबरों के सिम भी उस ने फरजी आईडी से लिए थे. विज्ञापन छपने के बाद फोन आने लगे तो वह फोन पर ही इनाम की घोषणा कर के इनकम टैक्स के नाम पर 10 प्रतिशत अपने खाते में जमा कराने लगा.
फोन करने वाले जैसे ही पैसा जमा कराते, वह एटीएम से पैसे निकलवा लेता और आपस में पैसे बांट लेता. इस में सब से ज्यादा हिस्सा धर्मेंद्र लेता था. इस के बाद वह पुराने नंबर बंद कर के फरजी आईडी पर नए नंबर ले लेता. इस तरह उस का धंधा चल निकला तो उस ने फरजी आईडी से ही लोगों को इसी तरह ठगने के लिए पंजाब नेशनल बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक औफ बड़ौदा में खाते खुलवा लिए.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सेक्टर-44 स्थित भारतीय स्टेट बैंक से जून, 2014 से अब तक ये 540 बार और पंजाब नेशनल बैंक से 55 बार रुपए निकाल चुके हैं, बाकी बैंकों के बारे में पुलिस पता कर रही है.
चंद महीनों में ही इन का गोरखधंधा फलनेफूलने लगा था. दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में इन का धंधा चल निकला तो ये देश के अन्य राज्यों में इसी तरह के विज्ञापन छपवाने लगे. चूंकि ये कोई बड़ी रकम की मांग नहीं करते थे, इसलिए कोई भी इन पर शक नहीं करता था और आसानी से रुपए जमा करा देता था.
ठगा गया आदमी पुलिस के पास भी नहीं जाता था. इस की वजह यह होती थी कि ठगी का शिकार हुए व्यक्ति की ज्यादा रकम नहीं गई होती थी. फिर पुलिस भी इतनी रकम के मामले में कहां ध्यान देती है. इस के अलावा उसे शरम भी लगती थी कि पुलिस के पास जा कर वह क्या कहेगा. इसलिए इन ठगों की कोई शिकायत नहीं कर रहा था और इन का ठगी का धंधा आराम से चल रहा था.
लेकिन बुराई का एक न एक दिन अंत होता ही है. असम के राजनाथ भले ही पुलिस के पास नहीं गए थे, लेकिन अपनी व्यथा शाखा प्रबंधक को बताई तो उस ने नोएडा के शाखा प्रबंधक को फोन कर के समुल्लाह और रंजन को पुलिस तक पहुंचा दिया, जहां से इन के खेल का परदाफाश हो गया.
पूछताछ के बाद थाना कोतवाली सेक्टर-49 पुलिस ने समुल्लाह अंसारी और रंजन को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इस ठगी के खेल के मास्टरमाइंड धर्मेंद्र को पुलिस पकड़ नहीं सकी थी. अब सवाल यह उठता है कि 2 लोगों के पकड़े जाने से क्या ठगी के इस तरह के चल रहे खेल बंद हो जाएंगे? कतई नहीं. इस तरह ठगी करने वाले फिर कोई नया तरीका खोज लेंगे और लालची लोगों को अपने जाल में फांस कर मौज करते रहेंगे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राजनाथ बदला हुआ नाम है.