इंग्लैंड में रहने वाली एनआरआई महिला निशा करावद्रा भारत आई हुई थीं. घर पर बैठी वह एक दैनिक अखबार पढ़ रही थीं, तभी उन की नजर अखबार में छपे एक विज्ञापन  पर गई. वह विज्ञापन एक कार का था, रेनोल्ट डस्टर नाम की उस एसयूवी कार का नंबर वीआईपी था. निशा को भारत में एक लग्जरी कार की जरूरी थी. उन्हें वीआईपी नंबर की वह कार पसंद आ गई. विज्ञापन में जो फोन नंबर दिया हुआ था, निशा ने उस नंबर पर बात की.

दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति ने अपना नाम लार्ड मुकुल पौल तनेजा बताते हुए खुद को यूके का नामी शख्स बताया. उस ने निशा को बताया, ‘‘मैडम, नई दिल्ली के हौजखास इलाके में अगस्त क्रांति मार्ग पर, मेफेयर गार्डन में बी-20 नंबर का मेरा बंगला है. आप बंगले पर आ कर कार देख सकती हैं.’’

निशा उसी दिन उस बंगले पर पहुंच गईं. उस बंगले में औडी सहित अन्य कई महंगी गाडि़यां खड़ी थीं. यह सब देख कर उन्हें यकीन हो गया कि मुकुल पौल तनेजा ने अपने बारे में उसे जो बताया था, वह सही होगा. निशा ने वह कार वीआईपी नंबर की वजह से खरीदने का मूड बनाया था. उस का नंबर था—यूके07एएक्स-0999. काले रंग की वह कार उन्हें अच्छी कंडीशन में दिखी.

कार को चकाचक हालत में देख कर उन्होंने उसे खरीदने का फैसला कर लिया. उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से जब कार खरीदने के बारे में बात की तो साढ़े 10 लाख रुपए में उस का सौदा हो गया. बाद में कुछ फौरमैलिटी पूरी करने के बाद निशा ने मुकुल पौल तनेजा को साढ़े 10 लाख रुपए दे दिए.

अब केवल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) ट्रांसफर करने का काम बचा था. मुकुल पौल तनेजा ने उन्हें आश्वासन दिया कि हफ्ता भर में आरसी ट्रांसफर हो जाने के बाद गाड़ी उन्हें सौंप देगा. हफ्ते भर बाद कार सौंपने की बात पर निशा को भी कोई ऐतराज नहीं था.

निशा ने भी सोचा कि अब केवल आरटीओ औफिस से कागज ट्रांसफर होने रह गए हैं. यह काम होते ही गाड़ी उन्हें मिल जाएगी. हफ्ते भर बाद भी जब उन्हें कार की आरसी नहीं मिली तो उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से फोन पर फिर बात की. तब उस ने बताया कि देहरादून आरटीओ औफिस में कागज ट्रांसफर होने की प्रक्रिया चल रही है, जैसे ही यह काम हो जाएगा, गाड़ी उन्हें सौंप देगा.

इसी तरह कई महीने बीत गए, लेकिन न तो उन्हें खरीदी गई कार के कागजात मिले और न ही कार. जब वह कुछ कहतीं तो तनेजा कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता. बार बार टालने पर उन्हें मुकुल की बातों पर शक होने लगा. तब उन्होंने देहरादून के आरटीओ औफिस में संपर्क किया.

वहां से उन्हें पता चला कि जो कार उन्होंने मुकुल पौल से खरीदी है, वह पंजाब नैशनल बैंक, मोतीबाग, नई दिल्ली से फाइनैंस कराई गई थी. फाइनैंस कराने के बाद कार की किस्तें जमा नहीं की गई थीं. इसलिए वह कार लोन चुकाए बिना किसी और के नाम नहीं की जा सकती. यानी बैंक से एनओसी लिए बिना कार की आरसी किसी दूसरे के नाम ट्रांसफर नहीं हो सकती थी.

यह जानकारी मिलते ही निशा के जैसे होश उड़ गए. क्योंकि तनेजा ने उन से यह बात नहीं बताई थी. निशा ने इस बारे में मुकुल पौल से बात की तो उस ने कहा, ‘‘बैंक का जो भी लोन था, मैं ने चुका दिया है. बैंक से एनओसी ले कर मैं अथौरिटी में जमा करा दूंगा. अब तक मैं किसी दूसरे काम में बिजी था, जिस की वजह से लेट हो गया. अब आप चिंता न करें, जल्द ही कागज तैयार करा दूंगा.’’

निशा को लग रहा था कि मुकुल उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है. फिर भी उन्होंने उस पर एक बार फिर से विश्वास कर लिया. काफी दिन बीत जाने के बावजूद भी निशा को आरसी नहीं मिली. अब निशा को लगने लगा कि मुकुल चीटर है. वह बारबार टाल कर उन्हें बेवकूफ बना रहा है. लिहाजा उन्होंने उस से अपने साढ़े 10 लाख रुपए वापस मांगे. तब उस ने पैसे लौटाने से मना कर दिया.

इतनी मोटी रकम भला वह कैसे छोड़ सकती थीं, इसलिए वह सख्त हो गईं. तब मुकुल पौल ने अपने राजनैतिक संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें धमकाने की कोशिश की.

निशा चुप रहने वालों में नहीं थीं. उन्होंने ठान लिया कि वह धोखाधड़ी करने वाले इस शख्स को सबक जरूर सिखाएंगी. इंग्लैंड के एक सांसद जिन से निशा के अच्छे संबंध थे, से उन्होंने बात की और अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बारे में बताया. उस सांसद ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से बात कर निशा करावद्रा की हेल्प करने की गुजारिश की.

इस के बाद निशा दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी.एस. बस्सी से मिलीं और धोखाधड़ी करने वाले लार्ड मुकुल पौल तनेजा के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए.

क्राइम ब्रांच के संयुक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने धोखाधड़ी के इस मामले की जांच के लिए एंटी एक्सटोर्शन सेल के एसीपी होशियार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल राजकुमार, संजीव, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम आरोपी लार्ड मुकुल पौल तनेजा की तलाश में जुट गई. पुलिस को दिल्ली में हौजखास के अलावा उस के देहरादून स्थित बंगले का पता भी मिल गया. दोनों ही जगहों पर पुलिस ने दबिश डाली. लेकिन वह नहीं मिला. शायद उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी, इसलिए वह इधरउधर घूमता रहा.

अपने सूत्रों से पुलिस ने यह पता लगा लिया था कि मुकुल पौल एक ठग है. इस दौरान वह किसी और को अपना शिकार न बना ले, यह आशंका पुलिस को हो रही थी. उस का सुराग लगाने के लिए टीम ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. इस का नतीजा जल्द ही सामने आ गया. एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने आखिरकार 1 मई, 2014 को उसे दिल्ली की मुनीरका मार्र्केट के पास से हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लिए जाने पर मुकुल पौल बौखला कर बोला, ‘‘लगता है, आप लोगों को कोई गलतफहमी हुई है. मैं ने किसी के साथ कोई चीटिंग नहीं की है. मैं एक हाईसोसायटी से हूं. मेरा संबंध राजनीति में रसूख रखने वाले लोगों से है, इसलिए आप लोग मुझे छोड़ दीजिए, वरना परेशानी में पड़ सकते हो.’’

पुलिस धमकी में न आ कर उसे पूछताछ के लिए अपने दफ्तर ले आई. 50 वर्षीय लार्ड मुकुल पौल तनेजा से जब क्राइम ब्रांच औफिस में पूछताछ शुरू हुई तो वह खुद को बेकुसूर बताता रहा. लेकिन पुलिस के पास इस बात के सुबूत थे कि उस ने निशा से साढ़े 10 लाख रुपए हड़प लिए थे. उन सुबूतों के आधार पर जब मुकुल पौल से पूछताछ की गई तो आखिर उसे निशा के साथ चीटिंग करने की बात स्वीकारनी पड़ी.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा वास्तव में कोई आम आदमी नहीं था. पता चला कि वह एक उच्चशिक्षित लेखक, मैनेजमेंट गुरु और फिल्म प्रोड्यूसर था. उस से की गई पूछताछ के बाद ठगी का कारनामा करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मुकुल पौल तनेजा दक्षिणी दिल्ली के हौजखास इलाके में मेफेयर गार्डन के रहने वाले अर्जुन कुमार तनेजा का बेटा था. अर्जुन कुमार एक निजी कंपनी में उच्च पद पर नौकरी करते थे.

मुकुल पौल की मां निर्मल तनेजा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निदेशक थीं, जो 1989 में रिटायर हो चुकी थीं. मुकुल पौल ने सन 1983 में वसंतकुंज के मौडर्न स्कूल से 12वीं कक्षा पास की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली के ही शेख सराय स्थित कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज से सन 1987 में मार्केटिंग में बीबीए किया.

मुकुल पौल पढ़ाई में बहुत होशियार था. पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से उसे स्कौलरशिप मिलती रही. जिस से उस ने विश्व के कई देशों में जा कर पढ़ाई की. सन 1989 में उस ने लंदन के कार्डिफ बिजनैस स्कूल से एमबीए किया और उस के बाद एलएलएम की डिग्री हासिल की.

इस के बाद उस ने भारत और ब्रिटेन के विभिन्न प्रतिष्ठित स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में एमबीए में लेक्चर देने शुरू कर दिए. उस के लेक्चर पसंद किए जाने लगे. जिस के बाद उसे मैनेजमेंट गुरु के नाम से जाना जाने लगा.

बताया जाता है कि उस ने मैनेजमेंट पर कई किताबें भी लिखीं. उस की काबिलियत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे लार्ड की उपाधि से सम्मानित किया.

मैनेजमेंट गुरु के रूप में लार्ड मुकुल पौल तनेजा की अब अच्छी पहचान बन चुकी थी. इसी बीच 1992 में वह भारत आ गया. यहां आ कर उसे जयप्रकाश ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई. सन 1992 से 1995 तक उस ने इस ग्रुप में नौकरी की. नौकरी में उसे एक निश्चित पगार मिलती थी, जबकि उस की चाहत उस से कहीं ज्यादा थी. इसलिए उस ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया.

वह अपना कोई ऐसा बिजनैस करना चाहता था, जिस में उसे अच्छी आमदनी हो. एक साल बाद उस ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट के बिजनैस में हाथ आजमाया. एमजीए एक्सपोर्ट नाम से उस ने एक एक्सपोर्ट फर्म खोली. इसी दौरान 1998 में राजस्थान के धौलपुर जिले के एक अमीर घराने की लड़की के साथ उस ने शादी कर ली.

लार्ड मुकुल पौल ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट का जो बिजनैस शुरू किया था, उस में जब उसे घाटा होने लगा तो उस ने वह बिजनैस बंद कर दिया. फिर उस ने जम्मूकश्मीर विकास प्राधिकरण के साथ मिल कर होटल और रेस्तरां का बिजनैस शुरू किया. यह उस की बड़ी सोच थी. पूरे भारत में होटल और रेस्तरां खोलने की उस की योजना थी. लेकिन इस धंधे में भी उसे घाटा उठाना पड़ा तो उस ने सन 2001 में यह बिजनैस भी बंद कर दिया.

मुकुल पौल एक हाईक्लास फैमिली से ताल्लुक रखता था, उस का रहनसहन शानोशौकत वाला था. जबकि आमदनी उस की जरूरत से कम थी. बताया जाता है कि होटल का बिजनैस करते समय उसे जब जम्मूकश्मीर में रहना पड़ा तो उसी दौरान उसे आतंकी संगठन जेकेएलएफ की तरफ से धमकियां भी मिली थीं.

इस के बाद मुकुल पौल ने कमोडिटी ट्रेडिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाया. उस ने यह धंधा बड़े पैमाने पर शुरू किया. इस के लिए उस ने नई दिल्ली के हौजखास और इंग्लैंड में औफिस खोले.  ब बिजनैस बड़े पैमाने पर शुरू किया तो उसे इस में मोटी रकम भी इनवैस्ट करनी पड़ी. कुछ दिनों बाद इस बिजनैस का भी वही हाल हुआ जो उस के दूसरे बिजनैसों का हुआ था. यानी इस में भी उसे मोटा घाटा हुआ.

लार्ड मुकुल पौल जिस बिजनैस में भी हाथ डाल रहा था, उसी में उसे घाटा उठाना पड़ रहा था. इस की एक वजह शायद यह थी कि काम शुरू करने से पहले उसे उन कामों की नालेज नहीं था. जिस का खामियाजा उसे बिजनैस के घाटे के रूप में देखने को मिल रहा था. लगातार घाटे से उबरने का उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

बौलीवुड की कई हस्तियों से उस के अच्छे संबंध थे. मोटी कमाई के लिए उस ने बौलीवुड की कई आर्ट फिल्मों में पैसा लगाया. फिल्म फाइनैंस करने के अलावा उस ने फिल्में भी बनाईं, लेकिन फिल्में फ्लौप हो जाने से उसे बहुत इस में भी उठाना पड़ा. जिस से उस ने इस क्षेत्र में बढ़ाए अपने कदम भी खींच लिए. लेकिन अभिनेता शाहिद कपूर की मां नीलिमा अजीम से कानूनी विवाद होने की वजह से मुकुल पौल की फिल्म ‘नवाब नौटंकी’ पूरी नहीं हो सकी. नीलिमा अजीम ने भी मुकुल पौल को ठग बताया.

अपना सामाजिक स्तर बनाए रखने और शानोशौकत दिखाने के लिए मुकुल पौल ने औडी ए-6, सुजुकी किजाशी, फोक्सवैगन पोलो, फोर्ड इको स्पोर्ट्स, स्विफ्ट डिजायर, रेनोल्ट डस्टर आदि कारें खरीद रखी थीं. इन में से अधिकांश कारें विभिन्न बैंकों से लोन पर खरीदी गई थीं.

उस की शानोशौकत देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह कितना कर्जदार है. बल्कि उस के व्यक्तित्व को देख कर उस से पहली बार मिलने वाला व्यक्ति उस से प्रभावित हो जाता था.

गाडि़यों पर ही नहीं, उस ने अपने बंगले पर भी 70 लाख का लोन ले रखा था. उस ने विभिन्न बैंकों से लोन तो ले लिया था, लेकिन आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से वह लोन की किस्तें भी नहीं चुका पा रहा था.

दिल्ली के मोतीबाग स्थित पंजाब नैशनल बैंक की शाखा से उस ने रेनोल्ट डस्टर और सुजुकी किजाशी कारें खरीदने के लिए लगभग 20 लाख रुपए का लोन लिया था. लोन की अदायगी न करने पर बैंक ने लार्ड मुकुल पौल तनेजा को डिफाल्टर घोषित कर कर के  इस का विज्ञापन विभिन्न अखबारों में भी छपवा दिया था.

मुकुल पौल की इनकम बंद थी और उस के खर्चे जस के तस थे. उस ने कई बैंकों से पहले ही मोटा कर्ज ले रखा था, किस्त अदायगी न होने की वजह से पंजाब नैशनल बैंक उसे डिफाल्टर घोषित कर चुकी थी, जिस की वजह से बैंकों से कर्ज लेना उस के लिए अब आसान नहीं था. कोई दूसरा धंधा शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. पैसे कमाने के लिए वह क्या करे, यही सोच कर वह परेशान रहने लगा.

उस के पास जो लग्जरी कारें थीं, वे वीआईपी रजिस्टे्रशन नंबरों की थीं. उस ने उन्हीं लग्जरी कारों के जरिए धोखाधड़ी करने की योजना बनाई. उस ने विभिन्न अखबारों में वीआईपी नंबरों की लग्जरी कारों को बेचने के विज्ञापन देने शुरू कर दिए.  कोई व्यक्ति जब उस से कार खरीदने की बात करता तो वह गाड़ी का सौदा करने के बाद रकम ले लेता और गाड़ी व उस के रजिस्टे्रशन के कागज बाद में देने को कह देता.

कुछ दिनों बाद भी जब रजिस्टे्रशन सर्टिफिकेट उस व्यक्ति के नाम ट्रांसफर नहीं हो पाता तो वह व्यक्ति मुकुल पौल से शिकायत करता. मुकुल पौल उस व्यक्ति को कोई न कोई बहाना बना कर टालता रहता. फिर अंत में परेशान हो कर वह व्यक्ति मुकुल से अपने पैसे लौटाने की बात करता तो वह अपनी ऊंची राजनैतिक पहुंच होने की धमकी दे कर उसे चुप करा देता.

एनआरआई महिला निशा करावद्रा के साथ भी मुकुल पौल ने ऐसा ही किया. लेकिन निशा भी ऊंची पहुंच वाली महिला थीं, इसलिए वह उस की धमकी में नहीं आईं और ऐसे धोखेबाज आदमी को सबक सिखाने के लिए पुलिस का सहारा लिया. इस का नतीजा यह निकला कि लार्ड मुकुल पौल तनेजा पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की वीआईपी नंबर की रेनोल्ट डस्टर कार भी बरामद कर ली. फिर उसे 2 मई, 2014 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. अब मामले की जांच सबइंसपेक्टर विनय त्यागी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

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