अंकिता अग्रवाल उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुमार  अग्रवाल का सोनेचांदी के गहनों का कारोबार था. पिता की लाडली तो वह थी ही, मां विमला और भाई अभिषेक भी उसे बहुत प्यार करते थे. अंकिता बीए की परीक्षा दे रही थी, तभी उस के पिता ने उस की शादी की बात चला दी.

अंकिता देखने में तो सुंदर थी ही, मासूम और सुशील भी थी. पिता चाहते थे कि उस की शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो उसे जीवन भर खुश और सुखी रख सके. काफी तलाश के बाद उन्हें अंकिता के लिए अमित अग्रवाल मिला तो वह उन्हें अपनी भोलीभाली बेटी के लिए योग्य वर लगा.

अमित अग्रवाल मथुरा के गुदड़ी बाजार का रहने वाला था. उस के पिता माधवराम अग्रवाल की मथुरा में के.डी. ज्वैलर्स के नाम से सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. अमित का परिवार मथुरा का बड़ा कारोबारी घराना माना जाता था. सोनेचांदी की दुकान के साथसाथ उस के अन्य कई कारोबार थे.

अनिल कुमार अग्रवाल को अंकिता और अमित की जोड़ी हर तरह से ठीक लगी थी. यही वजह थी कि 13 जुलाई, 2005 को उन्होंने बड़े धूमधाम से अंकिता की शादी अमित से कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद अमित ने लखनऊ के चौक बाजार में अपनी सोनेचांदी की दुकान खोलने का विचार किया. अमित और अंकिता, दोनों के ही तमाम नातेरिश्तेदार लखनऊ में सोनेचांदी की दुकानें चलाते थे. उन्हीं लोगों की मदद से अमित ने मथुरा के के.डी. ज्वैलर्स की एक अन्य दुकान यानी शाखा लखनऊ के चौक बाजार के सुरंगी टोला में खोल दी.

अमित जल्द से जल्द अमीर होना चाहता था, इसलिए वह गहनों के कारोबार से जुड़े गैरकानूनी काम करने लगा. समय के साथसाथ अमित और अंकिता 2 बच्चों के मांबाप बन गए थे. बेटी वाणी बड़ी थी तो बेटा दिव्यांश छोटा था.

बच्चे स्कूल जाने लायक हुए तो उन का दाखिला लखनऊ के रेडहिल स्कूल में करा दिया गया. कारोबार को बढ़ाने के लिए अमित ने अपनी ससुराल वालों यानी अंकिता के घर वालों से भी मदद ली थी.

अंकिता के साथ अमित को जिस तरह का प्यार और व्यवहार करना चाहिए था, वह वैसा नहीं करता था. इस से अंकिता परेशान रहती थी. अंकिता ये बातें मायके वालों को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. इस की वजह यह थी कि उस के पिता अनिल कुमार अग्रवाल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. लेकिन बच्चे अपनी परेशानी या दुख कितना भी छिपाएं, मांबाप तो चेहरे के हावभाव से ही सब जान लेते हैं.

अंकिता भले ही अपने मन की बात मांबाप से नहीं कह रही थी, लेकिन मां उस की परेशानी को अच्छी तरह से समझ रही थी. लेकिन वह जब भी कुछ पूछती, अंकिता कुछ बताने के बजाए बात को टाल जाती थी.

कभी वह इतना जरूर कह देती, ‘‘मां, आप लोगों ने हमारे लिए रिश्ता बहुत अच्छा खोजा है, फिर भी मेरे साथ जो होना होगा, वह होगा ही. फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’

इसी बीच अंकिता के पिता की मौत हो गई. अंकिता की मां विमला का कहना है कि अंकिता के पिता का उस की ससुराल और पति पर काफी दबाव रहता था. इस वजह से वे लोग अंकिता के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं कर पाते थे. अमित को लगता था कि अगर कोई बात अंकिता के पिता को पता चल गई तो वह हंगामा खड़ा कर देंगे. लेकिन उस के पिता की मौत के बाद वह दबाव खत्म हो गया, जिस से अमित अंकिता को परेशान करने लगा. अंकिता हालात बेहतर होने की उम्मीद में सब सहती रही.

विमला अग्रवाल के अनुसार, 18 अगस्त, 2013 को अमित अंकिता और दोनों बच्चों को ले कर इनोवा कार से अचानक कहीं चला गया. जाने से पहले उस ने अपने घर वालों या ससुराल  वालों को कुछ बताने के बजाए अपने मैनेजर राजेश पांडे को सिर्फ एक पत्र लिखा था, ‘मैं बहुत परेशान हूं. मरने जा रहा हूं. पैसे का लेनदेन तो चलता ही रहता है, लेकिन कैलाश चाचा, रानू और मनोज ने परेशान कर रखा है. वे मुझे बहुत अपमानित करते हैं. अब जीने की इच्छा नहीं रही. इसलिए मरने जा रहा हूं. आप लेग दूसरी जगह नौकरी कर लीजिएगा.’

अगले दिन अमित की इनोवा कार इलाहाबाद के दारागंज में लावारिस हालत में खड़ी मिली. अंकिता की मां का कहना है कि अमित के गायब होने के बाद योजना के अनुसार अमित के करीबी लोगों ने अफवाह फैला दी कि अमित पर 25 करोड़ रुपए की देनदारी हो गई थी. वह बकाया चुकाने की हालत में नहीं था, इसलिए परिवार के साथ कहीं भाग गया.

अंकिता के भाई अभिषेक ने लखनऊ की चौक कोतवाली में इंसपेक्टर आई.पी. सिंह ने मिल कर अमित, बहन अंकिता और भांजेभांजी की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. इस की जांच सबइंसपेक्टर दिनेश सिंह को सौंपी गई. बकायेदारी की बात का पता चलने पर पुलिस को लगा कि कुछ दिनों बाद अमित खुद ही वापस आ जाएगा. इसलिए लखनऊ पुलिस ने अमित की खोज के लिए सर्विलांस का भी सहारा नहीं लिया. अगर पुलिस तत्काल अमित के घर और करीबी लोगों के फोन सर्विलांस पर लगा देती तो शायद कोई न केई नतीजा जरूर निकल आता.

अमित की तलाश में केवल अंकिता का परिवार जुटा था. अभिषेक का कहना है कि अमित का परिवार किसी भी तरह का सहयोग नहीं कर रहा था. इसी तरह समय गुजरता रहा. अचानक 15 दिसंबर को अंकिता के भाई अभिषेक के मोबाइल फोन पर उड़ीसा के जिला पुरी से पुलिस का फोन आया. पुरी की पुलिस ने उसे बताया कि अंकिता और उस के दोनों बच्चे वहां के होटल जमींदार पैलेस के कमरा नंबर 307 मृत पाए गए हैं.

पुरी पुलिस की इस सूचना पर अभिषेक पत्नी श्रद्धा और मां विमला अग्रवाल के साथ पुरी पहुंचा. अभिषेक के अनुसार होटल के कमरे में अंकिता और बच्चों के शव बिस्तर पर पड़े मिले थे. बिस्तर की चादर और तकिया खून से सने थे. होटल के कमरे में जहर की शीशी भी पड़ी थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि अंकिता और उस के बच्चों को जहर दे कर बेहोश किया गया था. उस के बाद उन्हें बेरहमी से पीटा गया था. फिर सब की गला दबा कर हत्या कर दी गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, अंकिता के शरीर में चोट के 5 निशान पाए गए थे. शरीर की हड्डी 4 जगह से टूटी थी. अभिषेक का कहना है कि ये लोग पहले पुरी के अन्य होटलों में ठहरे थे. 22 नवंबर को होटल जमींदार पैलेस आए थे. यह अच्छा होटल था. यहां अमित ने सी-फेसिंग कमरा लिया था, जिस का एक दिन का किराया 7500 रुपए था. घटना वाली रात होटल में पार्टी चल रही थी, इसलिए होटल का सारा स्टाफ उस में लगा था. कमरा समुद्र की ओर वाला था, इसलिए तेज हवाओं के शोर की वजह से अंकिता की चीखपुकार किसी को सुनाई नहीं दी थी.

अंकिता के भाई अभिषेक के अनुसार, लाशों के गले में तुलसी की माला और शरीर पर कालेसफेद तिल पड़े मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मरने के बाद उन के क्रियाकर्म की कोशिश की गई थी. बाद में पुलिस ने होटल का वह कमरा डुप्लीकेट चाबी से खोला था.

कमरे में कागज का एक टुकड़ा मिला था, जिस पर अभिषेक के फोन नंबर के साथ लिखा था कि इस नंबर पर घटना की सूचना दी जाए. पुलिस जांच में पता चला कि अमित ने होटल के रजिस्टर में अपना पता मथुरा वृदांवन लिखाया था. पते के साथ उस ने जो मोबाइल नंबर लिखाया था, वह पहले से ही बंद था.

अभिषेक ने अंकिता और उस के बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया था. वह अपने बहनोई अमित और उस के घर वालों के खिलाफ बहन और उस के बच्चों की हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज कराना चाहता था. उस का कहना है कि अमित के पिता माधवराम ने भाजपा के एक स्थानीय विधायक से पैरवी करा दी, जिस से पुरी पुलिस ने दबाव में आ कर हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज करने के बजाए अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू की.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि पहले तो उन्हें लग रहा था कि उड़ीसा की पुरी पुलिस अमित को खोज लेगी. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन की उम्मीद धूमिल होती गई. पुरी पुलिस ने इस मामले की जानकारी लखनऊ पुलिस को भी दी थी. दोनों ने तथ्यों का अदानप्रदान भी किया था, लेकिन मामले का कोई हल नहीं निकला.

अंकिता के भाई अभिषेक का कहना है कि अंकिता और उस के बच्चों की हत्या में उस के पति अमित का हाथ है. उस की मदद उस के घर वाले कर रहे हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उन की मदद से वह देश से बाहर चला गया हो. अगर अमित के घर वाले उस की मदद न कर रहे होते तो वह इतने लंबे समय तक पुरी के महंगे होटलों में नहीं रह सकता था.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अगर अमित सही मायने में गायब होता तो उस के घर वाले उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर देते. अमित के गायब होने से उस के घर वाले जरा भी परेशान नजर नहीं आ रहे हैं. उन्होंने उस की खोज भी नहीं की. वे चाहते तो अमित की तलाश में अखबार में उस का फोटो छपवाते, टीवी पर दिखवाते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं कराया.

विमला अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ पुलिस ने भी इस मामले में कम लापरवाही नहीं की. अमित और अंकिता के गायब होने के बाद पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धारा में बदल कर जांच करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. पुरी पुलिस के साथ मिल कर भी लखनऊ पुलिस ने कोई छानबीन नहीं की.

अंकिता के घर वालों ने न्याय पाने के लिए लखनऊ में कैंडिल मार्च निकाल कर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने की भी कोशिश की थी. पुलिस के बड़े अफसरों के अलावा फैजाबाद के सांसद एवं उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री और अयोध्या के विधायक अखिलेश सरकार के मंत्री तेजनारायण पांडेय से भी अपनी व्यथा सुनाई थी. सभी ने न्याय दिलाने और सही जांच कराने का भरोसा दिलाया था, लेकिन हकीकत में कुछ हुआ नहीं.

अंकिता के भाई अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि अमित के घर वालों की सत्ता में पहुंच है, इसलिए पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. अगर लखनऊ पुलिस ने शुरू में ही अमित के खिलाफ सख्त कदम उठाया होता तो अंकिता और उस के बच्चे आज जिंदा होते. अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अब हमें सिर्फ सीबीआई जांच पर भरोसा है. हम उसी की मांग कर रहे हैं.

कितने शर्म की बात है कि अगस्त से अब तक 8 महीने बीत जाने के बाद भी 2-2 राज्यों की पुलिस अंकिता और उस के बच्चों की हत्या का राज खोलने में पूरी तरह से नाकाम रही है. ऐसे में पुलिस की वैज्ञानिक और खोजपूर्ण जांच की बातें पूरी तरह से खोखली और बेमानी नजर आती हैं. जब तक अमित का पता नहीं चलता, तब तक हत्या की वजह और हत्यारे के बारे में नहीं जाना जा सकता.

अंकिता के करीबियों का कहना है कि अमित देश में ही कहीं छिपा है. उस के घर वालों को पता भी है. लेकिन वे बता नहीं रहे हैं. जबकि अमित के घर वाले इस बात को गलत बता रहे हैं. उन का कहना है, ‘‘हम तो चाहते हैं कि अमित जल्द से जल्द वापस आ जाए. जिस से सच्चाई का खुलासा हो सके.’’

—कथा अंकिता की मां और भाई के बयान पर आधारित

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