इस फरवाड़े का जन्म 1998 में हुआ, जिस की नींव आगरा के लोटस इंस्टीट्यूट में पड़ी थी. लोमड़ी से भी शातिर दिमाग वाले पंकज पोरवाल ने मैडिकल लाइन में अपना पहला कदम रखा और आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की नींव रखी. पंकज पोरवाल ने सन 2013 में दिल्ली के एनसीबी चिट फंड संस्थान से अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का रजिस्ट्रैशन कराया.
अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल की फ्रेंचाइजी लेने के लिए लोगों का तांता लगने लगा. एक फ्रेंचाइजी के लिए 3 से 4 लाख रुपए तय हुआ था. रेवड़ी की तरह फ्रेंचाइजी बांटने का काम उत्तर प्रदेश से शुरू किया गया था. जांचपड़ताल में पता चला कि फरजी पैरामैडिकल बोर्ड के जरिए उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि बिहार, उत्तराखंड और पंजाब समेत कुल 427 फरजी कालेज खोले गए. फ्रेंचाइजी के नाम पर मोटी रकम वसूली गई.
उस दिन 10 सितंबर, 2023 की तारीख थी. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने कैंट सर्किल के एएसपी (ट्रेनी) मानुष पारिख की अगुवाई में एक टीम को इस गोरखधंधे के मुख्य आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए आगरा के शाहगंज थाने रवाना किया था.
दरअसल, गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के रहने वाले विजय प्रताप सिंह ने जुलाई 2023 में अदालत में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के अंतर्गत एक वाद दाखिल किया था.
कोर्ट में दाखिल वाद में उन्होंने आरोप लगाया था कि साल 2020 में उस ने पंकज पोरवाल को करीब साढ़े 3 लाख रुपए दे कर अब्दुल कलाम पैरामैडिकल इंस्टीट्यूट की फ्रेंचाइजी ली थी और कुशीनगर जिले के हाटा कस्बे में जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस कालेज के नाम पर उसे संचालित करता रहा.
बाद के दिनों में पता चला कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. उस ने जो फ्रेंचाइजी पंकज पोरवाल से ली थी, वो फरजी निकला. फिर उस ने कसया थाने में डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ एक तहरीर दी, जिस का परिणाम यह निकला था कि पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज करने के बजाय उसे ही जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया था.
जेल से जमानत पर छूटने के बाद विजय प्रताप सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था और कोर्ट के माध्यम से चौरीचौरा थाने में डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.
उसी मुकदमे के आधार पर एसएसपी ग्रोवर ने मामले की जांच करवाई तो घटना सच पाई गई और आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस की टीम 10 सितंबर, 2023 को आगरा भेजी थी. इस मामले की जांच गोरखपुर जिले के गुलरिहा थाने के एसएचओ अतुल कुमार को सौंपी गई थी.
एसएचओ अतुल कुमार पुलिस टीम के साथ 10 सितंबर, 2023 को आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए रवाना हो गए थे. अगले दिन वह पुलिस टीम के साथ आगरा के शाहगंज थाने पहुंचे और वहां के थानेदार समीर सिंह से पूरी बात बता कर अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल के डायरेक्टर आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा तो वह सहर्ष तैयार हो गए.
अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का औफिस 15 गणेश नगर, सुचेता, आगरा में स्थित था. संयुक्त पुलिस टीम ने अपनी कार्यशैली अति गोपनीय रखी ताकि भ्रष्ट पुलिस को किसी बात का पता न चले और वह सीधे तौर पर आरोपी को कोई लाभ न पहुंचा सके. इसी के बाद इंस्टीट्यूट पर दबिश डालने की योजना बनी थी.
यह मात्र संयोग ही था. डायरेक्टर पंकज पोरवाल को औफिस आ कर बैठे मुश्किल से 20 मिनट ही बीते होंगे कि पुलिस टीम आ धमकी और पंकज पोरवाल को गिरफ्तार कर लिया. उस के औफिस को पूरी तरह से खंगाला. औफिस में रखे उस के लैपटाप और ड्राअर में रखे समस्त डाक्यूमेंट्स अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद पुलिस आगरा से गोरखपुर के लिए रवाना हो गई.
12 सितंबर, 2023 को गुलरिहा पुलिस आरोपी पंकज पोरवाल को गुलरिहा थाने ले कर पहुंची और इस की जानकारी इंसपेक्टर ने एएसपी मानुष पारिख को दे दी.
कौन था इस गोरखधंधे का मास्टरमाइंड
सूचना पा कर एएसपी मानुष पारिख गुलरिहा थाने पहुंच गए. सामने एक कुरसी पर खुद बैठे और दूसरी कुरसी पर पंकज को बैठा दिया. फिर उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. एएसपी पारिख के तीखे सवालों से पंकज बुरी तरह कांपने लगा था. वह समझ गया कि उस का बचना अब मुश्किल है. बेहतर यही होगा कि उन के सवालों का जवाब बिना किसी हीलाहवाली के दे दे.
आखिरकार, पंकज पोरवाल एएसपी के सामने टूट गया और अपना जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ”हां सर, ये सच है कि फरजी पैरामैडिकल का बड़ा कारोबार मैं ने साथियों के साथ मिल कर चलाया था. मेरे इस कारोबार में मेरे कई लोग बराबर के भागीदार थे. मैं ने और मेरे साथियों ने मिल कर 3 से 4 लाख रुपए ले कर प्रदेश के कई जिलों में 14 फरजी कालेजों की फ्रेंचाइजी दी है.’’
इस के बाद वह एकएक कर सारी कहानी विस्तारपूर्वक बताता चला गया. जिसे सुन कर पुलिस अधिकारियों के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. समाज में कैसेकैसे शातिर लोग छिपे हुए हैं, जिन्हें देख कर कोई कह नहीं सकता है कि इन समाज के खतरनाक जालसाजों से कैसे पेश आना चाहिए? जो अपने निजी स्वार्थ के चलते हजारों विद्यार्थियों के जीवन को गर्त में झोंकने में तनिक भी नहीं झिझके.
खैर, एएसपी पारिख ने आरोपी पंकज से पूछताछ करने के बाद पूरी जानकारी पुलिस कप्तान डा. गौरव ग्रोवर को दी. एसएसपी ग्रोवर ने भी अपने स्तर से पूछताछ की. आरोपी का बयान सुन कर वे भी चौंके बिना नहीं रह सके. अगले दिन 13 सितंबर को एसएसपी ग्रोवर ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की.
पत्रकारवार्ता के दौरान एसएसपी गौरव ग्रोवर ने पत्रकारों को पंकज पोरवाल के गोरखधंधे की जानकारी दी. आरोपी पोरवाल ने निर्भीक हो कर पत्रकारों के सवालों का जबाव दिया. बाद में पुलिस ने आरोपी को अदालत में पेश कर केंद्रीय जेल बिछिया, गोरखपुर भेज दिया.
इस के बाद पुलिस उस के अन्य सहयोगियों सुरेंद्र बाबू गुप्ता (पिता), इंदीवर पोरवाल (भाई), कंचन पोरवाल (पत्नी), जयवीर प्रसाद पोरवाल (चाचा), दोस्तों नरेश कुमार, कमल कांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा और प्रेमचंद और महिला मित्र रुचि गुप्ता की तलाश में जुट गई, जिस में कंचन पोरवाल को छोड़ कर सभी आरोपी सलाखों के पीछे भेज दिए गए थे.
पुलिस पूछताछ में आरोपी पंकज पोरवाल द्वारा दिए गए बयान से कहानी कुछ ऐसे सामने आई—
55 वर्षीय पंकज पोरवाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के शाहगंज थानाक्षेत्र के सुचेता गांव का रहने वाला था. सुरेंद्र बाबू गुप्ता के 2 बेटों में पंकज बड़ा था. वह बेहद होशियार और उतना ही परिश्रमी भी था. यही नहीं वह पढ़ालिखा भी था.
वह अपने जीवन में अपनी मेहनत से इतना पैसा कमाना चाहता था कि लोग उस की गिनती देश के एक धनाढ्य के रूप में करें. पर कैसे? इसी जद््दोजेहद में वह दिनरात जुटा रहा. आखिरकार उस ने रास्ता निकाल ही लिया, वह रास्ता अपराध की डगर से हो कर जाता था.
पंकज ने कैसे रखी जुर्म की बुनियाद
पंकज ने आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंस्टीट्यूट की स्थापना की. यह मैडिकल के क्षेत्र में उस का पहला संस्थान था. इस पैरामैडिकल के जरिए उस ने मध्यमवर्गीय बच्चों को शिकार बनाना शुरू किया था.
उस ने छात्रों को होम्योपैथ, योगासन आदि की डिग्रियां बांटनी शुरू की और हर छात्र से 2 से 3 लाख रुपए वसूले थे. धीरेधीरे उस की यह धोखे की दुकान चल पड़ी और उस ने संस्थान के कारोबार को विस्तार देने के लिए अपने पिता सुरेंद्र बाबू गुप्ता, भाई इंदीवर पोरवाल और पत्नी कंचन पोरवाल को बोर्ड औफ डायरेक्टर में जोड़ लिया और संस्थान को बढ़ाने लगा.
आयुष पैरामैडिकल कांउसिल औफ इंस्टीट्यूट की स्थापना के डायरेक्टर पंकज पोरवाल ने सन 2013 में दिल्ली के एनसीबी चिट फंड संस्थान से अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट का रजिस्ट्रैशन कराया.
संस्थान ने उसे रजिस्ट्रैशन नंबर- 8901190 आवंटित किया था और साल 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से रजिस्ट्रैशन कराया. इस के तहत उस ने छात्रों को एएनएम, जीडीए, मैडिकल ड्रेसर, सीएमएस, डीएमआईटी, डीएमआरटी, एक्सरे, ईसीजी, सीएमएलटी, सीसीसीई, डेंटल नर्सिंग, डेंटल हाइजीनिस्ट, डीओटीटी, डायलिसिस टेक्नीशियन, डिप्लोमा इन हैल्थ सेनेटरी, औप्थलैमिक असिस्टैंट, डीपीटी और एचडीएचएचएम कोर्स पढ़ाने का फैसला लिया और बदले में छात्रों से मोटी रकम वसूलने की भी योजना बनाई.
इस के बाद संस्थान को और विस्तार करते हुए उस ने अपने दोस्तों नरेश कुमार, कमलकांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा, प्रेमचंद और महिला मित्र रुचि गुप्ता को संस्थान का दायित्व सौंप दिया था.
इस के बाद शातिर दिमाग पंकज पोरवाल के घर में जैसे लक्ष्मीजी स्थाई रूप से बैठ ही गई थीं. घर में नोटों की बारिश होने लगी थी. अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूट के दाखिले में कोर्स के हिसाब से प्रति छात्र ढाई से 3 लाख रुपए की रकम वसूली जा रही थी. संस्थान का नाम बड़ा हुआ और देश के कई राज्यों में नाम फैलने लगा तो उस ने इसे कैश करने का मन बना लिया. उस ने इस की फ्रेंचाइजी देनी शुरू कर दीं.
पूरे देश में कैसे बांटीं 427 फ्रेंचाइजी
अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का फ्रेंचाइजी लेने के लिए लोगों का तांता लगने लगा. एक फ्रेंचाइजी के लिए 3 से 4 लाख रुपए तय हुआ था. रेवड़ी की तरह फ्रेंचाइजी बांटने का काम उत्तर प्रदेश से शुरू किया गया.
पहली फ्रेंचाइजी की नींव जीवन छवि पैरामैडिकल कालेज, प्रयागराज में पड़ी और संचालनकर्ता थे निरंकार त्रिपाठी. इन्होंने फ्रेंचाइजी लेने के लिए 4 लाख रुपए दिए. इस के साथ शंभुनाथ तिवारी कालेज औफ नर्सिंग गंगौली, अयोध्या, संचालक चंद्रदेव तिवारी, छत्रपति शिवाजी कालेज औफ साइंस एंड पैरामैडिकल देवरिया, संचालक प्रशांत कुमार कुशवाहा ने फ्रेंचाइजी ली.
इस के अलावा वंश पैरामैडिकल कालेज सिरसागंज, जिला फिरोजपुर, संचालक कमल किशोर, प्रतिभा पैरामैडिकल एंड नर्सिंग कालेज ट्रस्ट, देवरिया, संचालक प्रतिभा सिंह, जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस, पालिका परिषद, कुशीनगर, संचालक विजय प्रताप सिंह, सौय शाक्य पैरामैडिकल देवरिया, संचालक रमाकांत कुशवाहा, मां विंध्यवासिनी पैरामैडिकल कालेज, गोरखपुर, संचालिका गिरिजा त्रिपाठी, अपमूर्णानंद पैरामैडिकल, बलिया, संचालक गुप्तेश्वर पांडेय ने भी उस से फ्रेंचाइजी ली.
रुद्रा पैरामैडिकल कालेज, वाराणसी, संचालक डा. पवन साहनी, आल इंडिया पैरामैडिकल, सीतापुर, राजीव विश्वास, सतीशचंद्र इंस्टीट्यूट, शाहजहांपुर, संचालक मुकेश शुक्ला, सान हौस्पिटल, बरेली, संचालक डा. फहीम खान, वासु पैरामैडिकल, बुलंदशहर, संचालिका रुचि गुप्ता को भी फ्रेंचाइजी दी गई. ये आंकड़े कोरोना काल के पहले तक के हैं, जिन में किसी ने 3 लाख तो किसी ने 4 लाख रुपए दिए. कोरोना काल खत्म होने के बाद उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में फ्रेंचाइजी दी गई.
पंकज पोरवाल की जालसाजी का यह कारोबार उत्तर प्रदेश के साथसाथ बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में तेजी से पांव पसारने लगा. और जहांजहां पैरामैडिकल की फ्रेंचाइजी ली गई, वहांवहां बच्चों ने अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना लिए लाखों रुपए खर्च कर उस में दाखिला लिया.
18 जनवरी, 2022 को राष्ट्रीय खबर टीवी चैनल पर अपने 14 मिनट 21 सेकेंड के साक्षात्कार में पंकज पोरवाल ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने देश भर में कुल 427 फ्रेंचाइजी खोली हैं.
सनद रहे, एक सेंटर खोलने के एवज में 4 लाख रुपए के हिसाब से यह कुल रकम 17 करोड़ 8 लाख रुपए की बनती है और इस दौरान तकरीबन 4 हजार विद्यार्थियों ने अपना भविष्य दांव पर लगा कोर्स के हिसाब से प्रति छात्र से ढाई से 3 लाख रुपए लिए जाते थे. इस हिसाब से यह रकम भी करोड़ों के आसपास पहुंचती है, लेकिन यह लोग बच्चों को उज्जवल भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर धोखे की चाबी से अपनी तिजोरियां भर रहे थे.
शिकायतकर्ता को ही क्यों जाना पड़ा जेल
जुर्म की जिस खोखली बुनियाद पर करीब 24 साल से वह अपराध की फसल काट रहा था, वह बुनियाद पूरी तरह ढह चुकी थी. आयुष पैरामैडिकल के प्रमाणपत्र और मार्कशीट पर तो छात्रों को होम्योपैथिक विभागों में सरकारी नौकरियां तो मिल जाती थीं, लेकिन जब वे अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल के प्रमाणपत्रों और मार्कशीटों को ले कर सीएमओ औफिस में रजिस्ट्रैशन करवाने जाते थे तो उन्हें अपने ठगे जाने की जानकारी मिलती थी.
ऐसी ही एक घटना कुशीनगर जिले में सामने आई. जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस, कुशीनगर, संचालक विजय प्रताप सिंह को उन के छात्रों ने अपने ठगे जाने की जानकारी दे कर जब हंगामा किया तो वह सक्रिय हुए और अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ एक लिखित शिकायत कोतवाली हाटा को दी.
संचालक विजय प्रताप सिंह के शिकायत पत्र सौंपने से पहले ही कुछ पीड़ित छात्र अपने साथ हुई धोखाधड़ी के संबंध में शिकायत दर्ज करा चुके थे. पुलिस उस कंप्लेंट की जांच कर रही थी, उसी दौरान संस्थान के संचालक विजय प्रताप भी अपनी शिकायत ले कर थाने पहुंच गए थे. फिर क्या था पुलिस ने विजय की शिकायत दर्ज करने से पहले ही छात्रों की शिकायत पर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ये जनवरी 2013 की बात थी.
भले ही पुलिस ने विजय सिंह को गिरफ्तार कर के जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था, लेकिन उस के दिल में अभीअभी छात्रों के साथ हुए धोखे का मलाल कुलांचे भर रहा था. वह पछतावे की आग में जल रहा था और ठान लिया था कि छात्रों के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ का जब तक वह बदला नहीं ले लेगा, तब तक वह चुप बैठने वाला नहीं है.
डिप्लोमा और मार्कशीटों ने कैसे खोली पोल
करीब 6 महीने बाद जमानत पर विजय जेल से छूट कर बाहर आया. बाहर आते ही उस ने जुलाई 2020 में अदालत का दरवाजा खटखटाया और अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ पैरामैडिकल के नाम पर छात्रों के साथ की गई धोखाधड़ी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत गोरखपुर सेशन कोर्ट में एक रिट दाखिल करवाई.
मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद यह मामला एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर के संज्ञान में आया तो उन्होंने छात्रों के भविष्य से जुड़े इस गंभीर मामले की जांच के लिए सीओ (कैंट सर्किल) ट्रेनी आईपीएस मनीष पारिख को पुटअप
किया. उन्होंने अपनी जांच में पाया कि अब्दुल कलाम ग्रुप औफ एजुकेशन बोर्ड (इंस्टीट्यूट) आगरा को कानूनी मान्यता नहीं है. अब्दुल कलाम ग्रुप औफ एजुकेशन बोर्ड का खाता आगरा के एचडीएफसी बैंक में था. खाते का संचालन संयुक्त रूप से पंकज पोरवाल और उस की पत्नी कंचन पोरवाल के नाम से किया जाता था.
109 फ्रेंचाइजी उत्तर प्रदेश के 40 जिलों सहित बिहार, उत्तराखंड, पंजाब में होने का खुलासा हो चुका था. फ्रेंचाइजी देने के नाम पर 3 से 4 लाख रुपए संचालक पंकज पोरवाल वसूल करता था. पैरामैडिकल से संबंधित कोर्स कराने के लिए ढाई से 3 लाख वसूली होती थी.
यही नहीं, संचालित बोर्ड में मार्कशीट व प्रमाणपत्रों पर पंकज पोरवाल द्वारा एग्जाम कंट्रोलर के स्थान पर सगे भाई इंदीवर पोरवाल और आयुष पैरामैडिकल के प्रमाणपत्र पर उस के पिता सुरेंद्र बाबू गुप्ता के हस्ताक्षर होते थे. और तो और रजिस्ट्रैशन के बाद अवैध तरीके से शिक्षण संस्थान बनाए गए थे.
जांच में एक ऐसी चौंकाने वाली बात पता चली थी कि एएसपी मानुष के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. जांच में यह पता चला कि विद्यार्थियों को दी जाने वाली डिग्री पर अंगरेजी में साफसाफ लिखा जाता था कि किसी भी सरकारी या प्राइवेट नौकरी में यह डिग्री इस्तेमाल नहीं की जा सकती है. अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूट और आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंस्टीट्यूट के नाम से अंकपत्र और प्रमाणपत्र देते थे, यह सब फरजी होते थे.
एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने बताया कि नियमानुसार संस्था को खोलने के लिए उत्तर प्रदेश स्टेट पैरामैडिकल या अटल बिहारी बाजपेयी मैडिकल यूनिवर्सिटी में पंजीकरण कराना होता है. मगर इस संस्था का पंजीकरण नहीं था. डीजीएसई और सीएसओ दफ्तर में कोई प्रमाण नहीं मिला, इसी से संस्था के फरजी होने का पता चला.
करोड़ों रुपए की संपत्ति हुई बरामद
पुलिस ने जब आरोपी का औफिस खंगाला तो वहां 2 कंप्यूटरों में फ्रेंचाइजी का विवरण मिला. 109 फ्रेंचाइजी से संबंधित फार्म में मूल प्रति उपलब्ध थे.
पैरामैडिकल से संबंधित किताबें, पैरामैडिकल से संबंधित मार्कशीट का प्रमाणपत्र, विभिन्न कोर्स से संबंधित किताबें, फ्रेंचाइजी के नाम पर ली गई धनराशि की रसीदें, दंपति का अपराध से अर्जित 1400 स्क्वायर फीट संपत्ति, पंकज पोरवाल का मकान थाना अंतर्गत शाहगंज, आगरा, 3 बीएचके फ्लैट और अर्द्धनिर्मित मकान के कागजात आगरा के मिले, 1200 स्क्वायर फीट का एक प्लौट के कागजात जो शाहगंज, आगरा में मौजूद है, मिला और एक और प्लौट आगरा में होने की बात भी सामने आई है.
उसी औफिस से एचडीएफसी बैंक के संयुक्त खाते में मौजूद राशि 90467.68 रुपए, एसबीआई शाहगंज के खाते में पंकज पोरवाल की राशि 41171. 55 रुपए, एसबीआई शाखा जयपुर हाउस में पत्नी कंचन पोरवाल की राशि 5 लाख 77 हजार रुपए, केनरा बैंक साकेत कालोनी, आगरा में कंचन का खाता, सैंट्रल बैंक अछल्दा इटावा में कल्पना पोरवाल (साली) और कंचन पोरवाल के खाते में 16 लाख रुपए के बैंक पासबुक मिले, जो पुलिस ने अपने कब्जे में ले लीं और उन के तमाम अकांउट को फ्रीज करा दिया, ताकि वो न तो रुपए निकाल सके.
खैर, कथा लिखे जाने तक डायरेक्टर पंकज पोरवाल, सुरेंद्र बाबू गुप्ता (पिता), इंदीवर पोरवाल (भाई), कंचन पोरवाल (पत्नी), जयवीर प्रसाद पोरवाल (चाचा), दोस्तों नरेश कुमार, कमलकांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा और प्रेमचंद गिरफ्तार हो चुके थे और महिला मित्र रुचि गुप्ता फरार थी. सभी आरोपी जेल के सलाखों के पीछे कैद थे.
कंचन पोरवाल अभी भी फरार चल रही है. इतने बड़े पैमाने पर फरजीवाड़े से देश भर में हड़कंप मचा हुआ है. आखिर इस के लिए दोषी कौन है? क्यों नहीं किसी भी राज्य के सरकारों को इस फरजीवाड़े का पता चला? कैसे कई सालों तक फरजीवाड़े की दुकान बेखौफ चलती रही? समाज के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा है.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित