नीरज को घर से गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए और उस का कुछ पता नहीं चला तो उस की पत्नी रूबी ने थाना पंतनगर जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद उस के घर से गायब होने की जानकारी अपने सभी नातेरिश्तेदारों को देने के साथसाथ ससुराल वालों को भी दे दी थी.
नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने की सूचना से उस के घर में कोहराम मच गया. नीरज के गायब होने की जानकारी उस के मामा को हुई तो वह भी परेशान हो उठे. उस समय वह गांव में थे. उन्होंने अपने बहनोई यानी नीरज के पिता रघुनाथ ठाकुर एवं उस के बड़े भाई को साथ लिया और महानगर मुंबई आ गए.
नीरज की पत्नी रूबी ने उन लोगों को बताया कि उस दिन वह घर से 250 रुपए ले कर निकले तो लौट कर नहीं आए. जब उन्हें गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने थाना पंतनगर जा कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी और सभी को उन के घर न आने की जानकारी दे दी.
नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने से उस के पिता रघुनाथ ठाकुर, बड़ा भाई और मामा रमाशंकर चौधरी परेशान हो उठे. सभी लोग मिल कर अपने तरीके से नीरज की तलाश करने लगे.
वे मुंबई में रहने वाले अपने सभी नातेरिश्तेदारों के यहां तो गए ही, उन अस्पतालों में भी गए, जहां ऐक्सीडैंट के बाद लोगों को इलाज के लिए ले जाया जाता है. आसपास के पुलिस थानों में भी पता किया, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर नीरज बिना कुछ बताए क्यों और कहां चला गया.
बेटे के अचानक गायब होने की चिंता और भागदौड़ में पिता रघुनाथ ठाकुर बीमार पड़ गए. एक दिन सभी लोग नीरज के बारे में ही चर्चा कर रहे थे, तभी रूबी ने अपने मामा ससुर रमाशंकर चौधरी से कहा, ‘‘परसों आधी रात को जब मैं शौचालय गई थी तो मुझे लगा कि वह शौचालय के गड्ढे से कह रहे हैं कि ‘रूबी मैं यहां हूं…’ उन की आवाज सुन कर मैं चौंकी.’’
मैं शौचालय के गड्ढे के पास यह सोच कर गई कि शायद वह आवाज दोबारा आए. लेकिन आवाज दोबारा नहीं आई. थोड़ी देर मैं वहां खड़ी रही, उस के बाद मुझे लगा कि शायद मुझे वहम हुआ है. मैं कमरे में आ गई.’’
अंधविश्वासों पर विश्वास करने वाले नीरज के मामा रमाशंकर चौधरी ने अपनी मौत का सच बताने वाली तमाम प्रेत आत्माओं के किस्से सुन रखे थे, इसलिए उन्हें लगा कि अपनी मौत का सच बताने के लिए नीरज की आत्मा भटक रही है. कहीं वह शौचालय के गड्ढे में तो गिर कर नहीं मर गया.
सुबह उठ कर वह शौचालय के गड्ढे के ऊपर रखे ढक्कन को देख रहे थे, तभी शौचालय की साफ सफाई करने वाला प्रशांत उर्फ ननकी फिनायल की बोतल ले कर आया और उस के आसपास फिनायल डालने लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘भई यहां फिनायल क्यों डाल रहा है?’’
‘‘आज यहां से कुछ अजीब सी बदबू आ रही है. इसलिए सोचा कि फिनायल डाल दूंगा तो बदबू खत्म हो जाएगी.’’ प्रशांत ने कहा.
प्रशांत की इस बात से रमाशंकर को लगा कि कहीं सचमुच तो नहीं नीरज इस गड्ढे में गिर गया. शायद इसी वजह से बदबू आ रही है. वह तुरंत शौचालय के गड्ढे के ढक्कन के पास पहुंच गए. उसे हटाने के लिए उन्होंने उस पर जोर से लात मारी तो संयोग से वह टूट गया.
ढक्कन के टूटते ही उस में से इतनी तेज दुर्गंध आई कि रमाशंकर चौधरी को चक्कर सा आ गया. 5 मिनट के बाद उन्होंने अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उस गड्ढे के अंदर झांका तो उन्हें सफेद कपड़े में लिपटी कोई भारी चीज दिखाई दी. उसे देख कर उन्हें यही लगा, यह भारी चीज किसी की लाश है. उन्होंने यह बात रूबी को बताने के साथसाथ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी बता दी. यह 27 मार्च, 2014 की बात थी.
इस के बाद रमाशंकर चौधरी सीधे थाना पंतनगर जा पहुंचे. उन्होंने पूरी बात ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर देवेंद्र ओव्हाल को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी.
इस के बाद वह अपने साथ हेडकांस्टेबल चंद्रकांत गोरे, किशनराव नावडकर, प्रशांत शिर्के, कांस्टेबल संतोष गुरुव और पंकज भोसले को साथ ले कर सहकारनगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पहुंच गए.
पुलिस टीम के घटनास्थल तक पहुंचने तक वहां काफी भीड़ लग चुकी थी. सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्हें भी लगा कि गड्ढे में पड़ी चीज लाश ही है तो उन्होंने उसे निकलवाले के लिए फायरब्रिगेड के कर्मचारियों को बुला लिया.
फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने जब सफेद चादर में लिपटी उस चीज को निकाला तो वह सचमुच लाश थी. लाश इस तरह सड़ चुकी थी कि उस की शिनाख्त नहीं हो सकती थी.
लेकिन लाश के हाथ में जो घड़ी बंधी थी, उसे देख कर रमाशंकर चौधरी और रूबी ने बताया कि यह घड़ी तो नीरज ठाकुर की है. नीरज कई दिनों से गायब था, इस से साफ हो गया कि वह लाश नीरज की ही थी.
सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि शौचालय के गड्ढे में लाश मिलने की सूचना पा कर परिमंडल-6 के एडिशनल पुलिस कमिश्नर महेश धुर्ये, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर विलास पाटिल, सीनियर इंसपेक्टर निर्मल, इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर सकपाल और प्रदीप दुपट्टे भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने सरसरी नजर से घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर के घटना की जांच की जिम्मेदारी सीनियर इंसपेक्टर निर्मल को सौंप दी.
सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने सहकर्मियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर स्थित राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया.
इस के बाद थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी. इस के बाद जितेंद्र आगरकर ने उन के निर्देशन में जांच की जो रूपरेखा तैयार की, उसी के अनुरूप जांच शुरू कर दी गई.
सब से पहले तो उन्होंने मृतक नीरज ठाकुर के घर वालों के साथसाथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.
नीरज के घर वालों तथा न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी ने जो बताया, जांच अधिकारी इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को मृतक की पत्नी रूबी पर संदेह हुआ. उन्होंने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी. उन्होंने देखा कि पति की मौत के बाद किसी औरत के चेहरे पर जो दुख और परेशानी दिखाई देती है, रूबी के चेहरे पर वैसा कुछ भी नहीं था.
इसी से उन्हें आशंका हुई कि किसी न किसी रूप में रूबी अपने पति की हत्या के मामले में जरूर जुड़ी है. लेकिन इतने भर से उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था. इसलिए वह उस के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने लगे.
सुबूत जुटाने के लिए उन्होंने रूबी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के आसपास रहने वालों से गुपचुप तरीके से पूछताछ की तो उन्हें रूबी के खिलाफ ऐसे तमाम सुबूत मिल गए, जो उसे थाने तक ले जाने के लिए पर्याप्त थे.
लोगों ने बताया था कि रूबी और नीरज के बीच अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था. यह लड़ाई झगड़ा शौचालय पर ही काम करने वाले संतोष झा को ले कर होता था. क्योंकि रूबी के उस से अवैध संबंध थे.
इस के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत कुमार चौधरी और मृतक नीरज ठाकुर की पत्नी रूबी को एक बार फिर पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.
इस बार दोनों काफी डरे हुए थे, इसलिए थाने आते ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. रूबी ने बताया कि उसी ने प्रेमी संतोष झा के साथ मिल कर नीरज की हत्या की थी. हत्या में प्रशांत ने भी उस की मदद की थी. इस के बाद रूबी और प्रशांत ने नीरज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.
35 वर्षीय नीरज ठाकुर मूलरूप से बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के थाना सफरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता, एक बड़ा भाई और एक बहन थी. उम्र होने पर सभी बहनभाइयों की शादी हो गई. नीरज 3 बच्चों का पिता भी बन गया. इस परिवार का गुजरबसर खेती से होता था.
जमीन ज्यादा नहीं थी, इसलिए परिवार बढ़ा तो गुजरबसर में परेशानी होने लगी. बड़ा भाई पिता रघुनाथ ठाकुर के साथ खेती कराता था, इसलिए नीरज ने सोचा कि वह घर छोड़ कर किसी शहर चला जाए, जहां वह चार पैसे कमा सके.
घर वालों को भला इस बात पर क्या ऐतराज हो सकता था. उन्होंने हामी भर दी तो 5 साल पहले घर वालों का आशीर्वाद ले कर नीरज नौकरी की तलाश में महानगर मुंबई पहुंच गया. वहां सांताक्रुज ईस्ट गोलीवार में उस के मामा रमाशंकर चौधरी रहते थे. उन का अपना स्वयं का व्यवसाय था. वह मामा के साथ रह कर छोटेमोटे काम करने लगा.
कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी से हुई तो घाटकोपर, थाना पंतनगर के सहकार नगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय की उन्होंने जिम्मेदारी उसे सौंप दी. आधुनिक रूप से बना यह शौचालय काफी बड़ा था. उसी के टैरेस पर कर्मचारियों के रहने के लिए कई कमरे बने थे, उन्हीं में से एक कमरा नीरज ठाकुर को भी मिल गया.
न्यू सुविधा सुलभ शौचालय से नीरज को ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. जब उसे लगा कि वह शौचालय की आमदनी से परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता है तो गांव जा कर वह पत्नी रूबी और बच्चों को भी ले आया. क्योंकि वह बच्चों को पढ़ालिखा कर उन का भविष्य सुधारना चाहता था.
नीरज परिवार के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के टैरेस पर बने कमरे में आराम से रह रहा था. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. लेकिन जैसे ही उस की जिंदगी में उस का दोस्त संतोष झा दाखिल हुआ, उस की सारी खुशियों में ग्रहण लग गया.
संतोष झा उसी के गांव का रहने वाला उस का बचपन का दोस्त था. वह मुंबई आया तो उस ने उसे अपने पास ही रख लिया. गांव का और दोस्त होने की वजह से संतोष नीरज के कमरे पर भी आताजाता था. वह उस की पत्नी रूबी को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की वजह से दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था.
इसी हंसीमजाक में पत्नी बच्चों से दूर रह रहा संतोष धीरे धीरे रूबी की ओर आकर्षित होने लगा. मन की बात उस के हावभाव से जाहिर होने लगी तो रूबी को भांपते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. उसे अपनी ओर आकर्षित होते देख रूबी भी उस की ओर खिंचने लगी. इस से संतोष का साहस बढ़ा और वह कुछ ज्यादा ही रूबी के कमरे पर आनेजाने लगा.
घंटों बैठा संतोष रूबी से मीठीमीठी बातें करता रहता. रूबी को उस के मन की बात पता ही थी, इसलिए वह उस से बातें भी वैसी ही करती थी.
संतोष की ओर रूबी के आकर्षित होने की सब से बड़ी वजह यह थी कि नीरज जब से उसे मुंबई लाया था, उसी छोटे से कमरे में कैद कर दिया था. उस की दुनिया उसी छोटे से कमरे में कैद हो कर रह गई थी.
नीरज अपने काम में ही व्यस्त रहता था, ऐसे में उस का कोई मिलने जुलने वाला था तो सिर्फ संतोष. वही उस के सुखदुख का भी खयाल रखता था और जरूरतें भी पूरी करता था. क्योंकि नीरज के पास उस के लिए समय ही नहीं होता था. संतोष ही उस के बेचैन मन को थोड़ा सुकून पहुंचाता था.
संतोष शादीशुदा ही नहीं था, बल्कि उस के बच्चे भी थे. उसे नारी मन की अच्छी खासी जानकारी थी. अपनी इसी जानकारी का फायदा उठाते हुए वह जल्दी ही रूबी के बेचैन मन को सुकून पहुंचाते पहुंचाते तन को भी सुकून पहुंचाने लगा.
रूबी को उस ने जो प्यार दिया, वह उस की दीवानी हो गई. अब उसे नीरज के बजाय संतोष से ज्यादा सुख और आनंद मिलने लगा, इसलिए वह नीरज को भूलती चली गई.
मर्यादा की कडि़यां बिखर चुकी थीं. दोनों को जब भी मौका मिलता, अपने अपने अरमान पूरे कर लेते. इस तरह नीरज की पीठ पीछे दोनों मौजमस्ती करते रहे. लेकिन पाप का घड़ा भरता है तो छलक ही उठता है. उसी तरह जब संतोष और रूबी ने हदें पार कर दीं तो एक दिन नीरज की नजर उन पर पड़ गई. उस ने दोनों को रंगरलियां मनाते अपनी आंखों से देख लिया.
नीरज ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सात जन्मों तक रिश्ता निभाने का वादा करने वाली पत्नी एक जन्म भी रिश्ता नहीं निभा पाएगी. संतोष तो निकल भागा था, रूबी फंस गई. नीरज ने उस की जम कर पिटाई की. पत्नी की इस बेवफाई से वह अंदर तक टूट गया. बेवफा पत्नी से उसे नफरत हो गई.
इस के बाद घर में कलह रहने लगी. नीरज ने रूबी का जीना मुहाल कर दिया. रोजरोज की मारपीट और लड़ाई झगड़े से तो रूबी परेशान थी ही, आसपड़ोस में उस की बदनामी भी हो रही थी. वह इस सब से तंग आ गई तो इस से निजात पाने के बारे में सोचने लगी. उसे लगा, इस सब से उसे तभी निजात मिलेगी, जब नीरज न रहे. फिर क्या था, ठिकाने लगाने की उस ने साजिश रच डाली.
अपनी इस साजिश में रूबी ने अपने ही शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत चौधरी को यह कह कर शामिल कर लिया कि नीरज ठाकुर के न रहने पर वह न्यू सुविधा सुलभ शौचालय को चलाने की जिम्मेदारी उसे दिलवा देगी. इस के अलावा वह उसे 50 हजार रुपए नकद भी देगी.
न्यू सुविधा सुलभ शौचालय चलाने की जिम्मेदारी और 50 हजार रुपए के लालच में प्रशांत नीरज की हत्या में साथ देने को तैयार हो गया. इस तरह रूबी ने अपने सुहाग का सौदा कर डाला.
10 मार्च, 2014 की शाम नीरज ठाकुर ढाई सौ रुपए ले कर किसी काम से 2 दिनों के लिए बाहर चला गया. 12 मार्च की रात में लौटा तो पहले से रची गई साजिश के अनुसार शौचालय के टैरेस पर गहरी नींद सो रहे नीरज के दोनों पैरों को प्रशांत ने कस कर पकड़ लिया तो संतोष उस की छाती पर बैठ गया.
नीरज अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही रूबी ने सब्जी काटने वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. कुछ देर छटपटा कर नीरज मर गया तो तीनों ने उस की लाश को सफेद चादर में पलेट कर टैरेस से नीचे फेंक दिया. इस के बाद तीनों नीचे आए और शौचालय के गड्ढे का ढक्कन खोल कर लाश उसी में डाल दी. इस के बाद ढक्कन को फिर से बंद कर दिया गया.
नीरज की हत्या कर के संतोष डोभीवली चला गया तो प्रशांत और रूबी अपने अपने कमरे पर चले गए. रूबी ने अपना अपराध छिपाने के लिए अगले दिन थाना पंतनगर जा कर पति की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस की पैनी नजरों से वह बच नहीं सकी और पकड़ी गई.
रूबी से नीरज की हत्या की पूरी कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर संतोष झा को गिरफ्तार करने पहुंचे तो पता चला वह अपने गांव भाग गया है. एक पुलिस टीम तुरंत उस के गांव के लिए रवाना हो गई. संयोग से वह गांव में मिल गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के मुंबई ले आई. मुंबई आने पर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.
इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने रूबी, संतोष झा और प्रशांत चौधरी से पूछताछ के बाद भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित