डिब्रूगढ़ का असम मैडिकल कालेज अस्पताल असम राज्य का जानामाना सरकारी मैडिकल कालेज और अस्पताल है. 24 वर्षीय डाक्टर सरिता तोषनीवाल इसी मैडिकल कालेज की अंतिम वर्ष की छात्रा थीं. अस्पताल के महिला रोग विभाग में बतौर जूनियर डाक्टर उन की अकसर ड्यूटी लगती रहती थी. 8 मई, 2014 की रात भी वह अपनी ड्यूटी पर थीं. उस रात उन्होंने महिला वार्ड में सुबह 4 बजे तक ड्यूटी की. इस के बाद वह डाक्टर विश्रामगृह में आराम करने चली गईं.
सुबह 7 बजे ड्यूटी पर आई एक नर्स को जब डा. सरिता तोषनीवाल दिखाई नहीं दीं, तो वह यह सोच कर डाक्टर विश्रामगृह में चली गई कि रात की थकीहारी डा. सरिता शायद गहरी नींद सो गई होंगी. उस समय महिला वार्ड में लेडी डाक्टर की जरूरत थी. डा. सरिता विश्रामगृह में बेड पर कंबल ओढ़े लेटी थीं. नर्स ने उन्हें उठाने के लिए कई आवाजें दीं, लेकिन उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई.
संदेह हुआ तो नर्स ने डा. सरिता के शरीर पर पड़ा कंबल हटा कर देखा. कंबल हटाते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. डा. सरिता का शरीर खून से लथपथ था और उन के गले में चाकू घुसा हुआ था. यह देख कर नर्स चीखते हुए बाहर भागी. वह बदहवासी की स्थिति में थी और रोने चीखने के अलावा किसी को कुछ नहीं बता पा रही थी.
नर्स का इशारा समझ कर कई डाक्टर, नर्स, वार्डबौय और अन्य कर्मचारी दौड़ कर विश्राम गृह में पहुंचे. डा. सरिता की हालत देख कर सभी हतप्रभ रह गए. निस्संदेह उन की मौत हो चुकी थी. अस्पताल में हत्या जैसा बड़ा हादसा हुआ था, इसलिए तुरंत इस की सूचना स्थानीय थाने को दी गई.
सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई. डा. सरिता की हत्या औपरेशन में इस्तेमाल होने वाले सर्जिकल चाकू से की गई थी और हत्या के बाद चाकू को गले में ही छोड़ दिया गया था.
मृतका के शरीर के कपड़े उतारे गए थे, इस से लगा कि डा. सरिता के साथ दुष्कर्म करने की भी चेष्टा की गई थी. डैड बौडी और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद पुलिस ने डा. सरिता का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. साथ ही रात्रि ड्यूटी पर मौजूद डाक्टरों, नर्सों और वार्डबौय से भी पूछताछ की गई. इस बीच इस घटना की सूचना डा. सरिता के घर वालों को भी दे दी गई थी.
डा. सरिता का परिवार डिबू्रगढ़ से 470 किलोमीटर दूर जिला शिवसागर के अमोला पट्टी में रहता था. उन के पिता किशनलाल तोषनीवाल का सेंट्रल मार्केट में अपना व्यवसाय था, जबकि मां कृष्णा तोषनीवाल गृहिणी थीं. यह परिवार मूलत: राजस्थान का रहने वाला था, जो सालों पहले असम जा कर बस गया था. घटना वाले दिन सरिता की मां कृष्णा राजस्थान गई हुई थीं, उन्हें वहीं सूचना दी गई.
डा. सरिता तोषनीवाल की उसी अस्पताल में हत्या कर दी गई थी, जहां वह काम करती थीं. अंगे्रजों के जमाने में बने असम मैडिकल कालेज अस्पताल की गिनती प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में होती है. वहां के अस्पताल में एक डाक्टर की हत्या हो जाना कोई मामूली बात नहीं थी. इस घटना से राजधानी डिबू्रगढ़ में तहलका सा मच गया था.
असम मैडिकल कालेज अस्पताल का पूरा स्टाफ और स्टूडेंट घबराए हुए थे. स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय एसपी राणा भुईंया ने इस मामले की जांच की कमान खुद संभाली. उन्होंने अपनी टीम के साथ सब से पहले उन लोगों से पूछताछ करने का निर्णय लिया, जो उस रात ड्यूटी पर थे.
पुलिस टीम ने तत्काल पूरे स्टाफ को एकत्र कर लिया. जब सब लोगों से पूछताछ की जा रही थी तो एक पुलिस अफसर की निगाह वार्डबौय किरु मैक के चेहरे पर ठहर गई. उस के चेहरे पर किसी के नाखूनों के ताजा निशान थे. पुलिस अफसर को शक हुआ तो उस ने किरु मैक से तीखे स्वर में सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने डा. सरिता की हत्या क्यों की? बलात्कार करना चाहते थे क्या?’’
पल भर के लिए किरु के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे. फिर भी वह जैसे तैसे खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘सर, आप को गलतफहमी हो रही है, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं तो ड्यूटी पर था, मुझे कुछ पता नहीं है.’’
‘‘ठीक है, थाने चल कर गलतफहमी दूर कर लेते हैं.’’ कह कर अफसर ने किरु का हाथ पकड़ा तो उस के शरीर की कंपकंपाहट अफसर से छिपी न रह सकी. अफसर ने एसपी राणा भुईंया को बता दिया कि हत्यारा किरु मैक है. पुलिस उसे साथ ले कर थाने लौट आई.
थाने में किरु मैक से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या उसी ने की थी, लेकिन अकेले नहीं. इस हत्या में डा. सरिता का बैचमेट डा. दीपमणि सैकिया भी शामिल था. डा. दीपमणि का नाम सामने आने से पुलिस भी हैरान रह गई.
किरु मैक से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और डा. दीपमणि सैकिया के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/34 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस ने मुर्दाघर में रखी डा. सरिता की डैडबौडी के नाखूनों के अंदर फंसी खाल के कण भी प्राप्त कर लिए, ताकि उन कणों का मिलान लेबोरेटरी में किरु मैक की स्किन से कराया जा सके.
एक ओर पुलिस ने डा. दीपमणि की खोजबीन शुरू की तो दूसरी ओर किरु मैक का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने इकबालिया बयान दर्ज कराया. इस के साथ ही उसे 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर भी ले लिया गया.
डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या को ले कर असम मैडिकल कालेज अस्पताल में ही नहीं, बल्कि पूरे डिब्रूगढ़ में असंतोष फैला हुआ था. लोग तुरंत डा. दीपमणि की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. देर शाम तक डा. सरिता के घर वाले भी डिबू्रगढ़ पहुंच गए. बेटी की लाश देख कर वे होश खो बैठे. राजस्थान में होने की वजह से डा. सरिता की मां कृष्णा उस दिन डिब्रूगढ़ नहीं पहुंच पाई थीं.
पुलिस ने डा. दीपमणि को पकड़ने की काफी कोशिश की, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद डा. सरिता की लाश उन के घर वालों के हवाले कर दी गई. मैडिकल कालेज और अस्पताल का पूरा स्टाफ ही नहीं, बल्कि डिब्रूगढ़ के हजारों लोग भी डा. सरिता के परिवार के साथ थे और हत्यारे डाक्टर को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.
लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद भी जब डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार नहीं किया जा सका तो असम मैडिकल कालेज अस्पताल के डाक्टरों ने हड़ताल कर दी. उन्होंने ऐलान किया कि जब तक हत्यारा नहीं पकड़ा जाता और हकीकत सामने नहीं आती हड़ताल जारी रहेगी. डाक्टरों के दबाव की वजह से पुलिस डा. दीपमणि को गिरफ्तार करने की पूरी कोशिश कर रही थी.
डा. सरिता के घर वालों और सहकर्मियों से पता चला कि उन का और उन के बैचमेट डा. रोशन अग्रवाल का विवाह तय हो गया था. दोनों की शादी. 7 जुलाई, 2014 को होनी थी और इस के लिए दोनों परिवार तैयारियों में लगे थे. यह उन दोनों का प्रेमविवाह था, जो दोनों के परिवारों की सहमति से हो रहा था.
डा. सरिता और डा. रोशन के बीच पढ़ाई के दौरान ही प्यार हुआ था. 2013 में दोनों ने अपनी शादी की इच्छा अपनेअपने घर वालों से जाहिर कर दी थी. इस के बाद आपसी बातचीत कर के दोनों परिवार उन की शादी के लिए तैयार हो गए थे. लेकिन डा. सरिता की हत्या ने दोनों परिवारों की खुशियां लील लीं.
काफी भागदौड़ के बाद पुलिस ने आखिर 14 मई को डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार कर लिया. इस बीच वह समझ चुका था कि अब किसी तरह भी बचना संभव नहीं है. इसलिए पुलिस पूछताछ में उस ने डा. सरिता की हत्या की पूरी कहानी बता दी. हत्या की योजना डा. सैकिया की खुद की थी, जबकि किरु को उस ने लालच दे कर इस पाप में शामिल किया था.
दरअसल, सरिता, रोशन और दीपमणि असम मैडिकल कालेज में साथसाथ पढ़ रहे थे. हंसमुख स्वभाव की खूबसूरत सरिता सभी साथियों को पसंद थी. पढ़ाईलिखाई में भी वह होशियार थी. सरिता के दीपमणि से भी अच्छे संबंध थे और रोशन अग्रवाल से भी. तीनों के बीच खूब बातें होती थीं, आमने सामने भी और फोन पर भी. इसी सब के चलते दीपमणि सैकिया सरिता से एकतरफा प्यार करने लगा था. अपने मन की बात वह सरिता से कह नहीं पाया, यह अलग बात थी.
डाक्टरी की पढ़ाई के आखिरी साल में सरिता और उन के बैचमेट्स डा. दीपमणि की ड्यूटी बतौर जूनियर डाक्टर असम मैडिकल कालेज के अस्पताल में लगा दी गई. सरिता और दीपमणि चूंकि महिला रोग चिकित्सक के रूप में ग्रैजुएशन कर रहे थे, इसलिए दोनों की ड्यूटी महिला रोग एवम प्रसूति विभाग में लगाई गई. जबकि डा. रोशन अग्रवाल का विषय अलग था, सो उन की ड्यूटी दूसरे विभाग में लगी.
डा. रोशन अग्रवाल और डा. सरिता तोषनीवाल पिछले 2 सालों से एकदूसरे को पसंद करते थे. इसी बीच दोनों में प्यार हुआ और दोनों के परिवारों की सहमति से शादी तय हो गई थी. डा. रोशन अग्रवाल नगांव कठिया तुली के रहने वाले थे.
डा. सरिता और डा. दीपमणि एक विभाग में तैनात होने की वजह से एकदूसरे से मोबाइल पर बात भी करते रहते थे और यदाकदा मैसेज भी भेजते रहते थे. डा. सरिता समझदार लड़की थीं. जब उन्होंने देखा कि डा. दीपमणि उन के साथ कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बनाने की कोशिश कर रहा है तो उन्होंने उस से बात करना बंद कर दिया. इस की वजह यह थी कि उन की शादी तय हो चुकी थी और वह कतई नहीं चाहती थीं कि किसी के मन में कोई गलतफहमी पैदा हो.
एक लड़की के रूप में लिया गया उन का यह फैसला बिलकुल सही था. लेकिन डा. सरिता का बातचीत बंद करना डा. दीपमणि सैकिया को बहुत बुरा लगा. उस ने डा. सरिता को कई मैसेज भेजे, ताकि वह उस की भावनाओं को समझ सकें, लेकिन उन्होंने उस के किसी मैसेज का जवाब देने के बजाय उसे लताड़ दिया.
डा. दीपमणि को यह बात बहुत बुरी लगी और उस ने मन ही मन डा. सरिता को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. यह काम चूंकि वह स्वयं नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने वार्डबौय किरु मैक की मदद लेने का फैसला किया. किरु मैक डिब्रूगढ़ के गांव लाहोवाल का रहने वाला था. वह कई अपराधों में शामिल रह चुका था. इस के बावजूद किसी की सिफारिश पर उसे असम मैडिकल कालेज अस्पताल में अस्थाई वार्डबौय की नौकरी मिल गई थी.
डा. दीपमणि किरु मैक को पसंद करता था और उस की ड्यूटी अपनी ड्यूटी के समय ही लगवाता था. जब डा. सरिता ने डा. दीपमणि से बातें करना बंद कर दिया तो एक दिन उस ने किरु मैक से कहा, ‘‘अगर तुम एक काम में मेरी मदद करोगे तो मैं अस्पताल के अध्यक्ष महेंद्र पटवारी से कह कर तुम्हारी नौकरी स्थाई करा दूंगा. वह मेरे काफी करीबी हैं.’’
किरु लालच में आ गया तो डा. दीपमणि ने उसे बता दिया कि डा. सरिता को ठिकाने लगाना है. सुन कर पहले तो वह हिचका, लेकिन जब दीपमणि ने उसे लालच दे कर अपनी योजना समझाई तो वह मान गया. दोनों ने तय किया कि वे 24 अप्रैल को अपनी योजना को अंजाम देंगे. लेकिन 24 अप्रैल को मरीजों की संख्या अधिक थी, जिस की वजह से डा. सरिता की व्यस्तता बढ़ गई थी. फलस्वरूप उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी.
पहली नाकामयाबी के बाद इन दोनों ने अपनी योजना के लिए अगली तारीख 9 मई तय की. 8 मई की शाम को डा. सरिता समय पर अस्पताल आईं और अपनी ड्यूटी पर लग गईं. उस वक्त वह बहुत खुश थीं. डा. दीपमणि की भी उस दिन नाइट ड्यूटी थी, लेकिन उस ने अपनी तबीयत खराब बता कर छुट्टी ले ली थी. इस के बावजूद वह अस्पताल में ही छिप कर बैठ गया था. उस ने ड्यूटी पर तैनात किरु मैक से कह दिया था कि जब मौका मिले उसे बता दे. हर हालत में आज काम हो जाना चाहिए.
डा. सरिता ने रात भर ड्यूटी की और करीब 4 बजे डाक्टर विश्रामगृह में जा कर सो गईं. रात्रि ड्यूटी वाली एक नर्स वहां पहले ही सोई हुई थी. 9 मई की सुबह साढ़े 5 बजे वार्डबौय किरु मैक रोजाना की तरह अस्पताल का रजिस्टर वार्ड में जमा कराने जा रहा था, तभी ब्लड बैंक के पास छिपे डा. दीपमणि ने उस से पूछा कि रात की ड्यूटी वाली नर्स गई क्या? इस पर उस ने बताया कि नर्स अभी सो रही है. डा. दीपमणि ने उस से कहा, ‘‘उसे कहो कि ड्यूटी का समय खत्म हो चुका है, इसलिए अब घर जाए.’’
रजिस्टर जमा कराने के बाद किरु मैक विश्रामगृह में पहुंचा और नर्स को जगा कर कहा, ‘‘7 बज गए हैं, घर नहीं जाना क्या?’’
उस समय साढ़े 5 बजे थे. नर्स नींद में थी. उसे लगा किरु कह रहा है तो 7 ही बजे होंगे. वक्त पर ध्यान न दे कर वह बाहर निकल गई. उस के जाने के 10 मिनट बाद डा. दीपमणि और किरु मैक पिछले दरवाजे से आईसीयू के पास स्थित डाक्टर विश्रामगृह में जा पहुंचे.
डा. दीपमणि सैकिया पहले ही सोच कर आया था कि उसे क्या करना है. इस के लिए वह एक सर्जिकल चाकू और फिनाइल की बोतल साथ लाया था. उस ने हाथों में डाक्टरों द्वारा ड्यूटी के समय इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लव्ज पहन रखे थे. ये तीनों चीजें उस ने अस्पताल से ही हासिल की थीं. विश्रामगृह में आ कर डा. दीपमणि ने दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद कर दी.
डा. सरिता उस समय गहरी नींद में थीं. किरु और दीपमणि ने मिल कर सरिता का गला दबाना शुरू कर दिया. इस से उन की आंख खुल गईं और अपना बचाव करने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ा कर किरु मैक का चेहरा पकड़ने की कोशिश की. इसी चक्कर में उस के गालों पर डा. सरिता के नाखूनों के निशान बन गए.
हालांकि गला दबाने से डा. सरिता अधमरी हो गई थीं, लेकिन डा. दीपमणि उन्हें किसी भी तरह जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने साथ लाई फिनाइल की बोतल खोल कर डा. सरिता के मुंह में उड़ेल दी. इतना सब करने के बाद भी दीपमणि को चैन नहीं मिला तो उस ने साथ लाए सर्जिकल चाकू से डा. सरिता के गले की नस काट कर चाकू गले में ही छोड़ दिया.
इस तरह डा. सरिता को ठिकाने लगा कर डा. दीपमणि और किरु मैक ने मिल कर डा. सरिता के कपड़े उतार दिए और उन की लाश पर कंबल डाल कर पिछले दरवाजे से अस्पताल के बाहर चले गए.
विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने किरु मैक की निशानदेही पर उस के कमरे से डा. सरिता का मोबाइल बरामद कर लिया. उस की जांच से पता चला कि उन्होंने रात में आखिरी काल अपने मंगेतर डा. रोशन अग्रवाल को की थी. अपनी जांच में पुलिस ने डा. दीपमणि सैकिया और किरु मैक के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की भी जांच की.
पता चला कि डा. सरिता ने पिछले एक महीने से डा. दीपमणि को न तो कोई फोन किया था और न कोई मैसेज भेजा था. अलबत्ता दीपमणि और किरु मैक के बीच बातें जरूर हुई थीं. पुलिस हिरासत में किरु मैक चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि डा. सरिता की हत्या के लिए वह दोषी जरूर है, लेकिन उस से बड़ा गुनाहगार डा. दीपमणि सैकिया है. इसलिए फांसी की सजा दोनों को मिलनी चाहिए.
बहरहाल, विस्तृत पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वैसे इस मामले में डा. दीपमणि सैकिया के मातापिता का कहना है कि उन के बेटे को साजिशन फंसाया गया है. शेष सच विस्तृत जांच के बाद ही सामने आएगा.