अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से इंदौर में 3 दिनों के लिए ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट का आयोजन था. इस आयोजन में करीब 2500 देसी विदेशी उद्योगपति, व्यवसाई आने थे. मीट का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना था. इस की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही थी. हर उस रास्ते को सजाया गया था, जहांजहां से मेहमानों का आवागमन होने वाला था. आईजी पुलिस से ले कर सिपाही तक समयसमय पर रातदिन इन रास्तों पर गश्त करते रहते थे.
23 सितंबर को दिन के 10 बजे एरोड्रम थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी इसी सिलसिले में क्षेत्र की गश्त पर थे. सुपर कारिडोर से गुजरते समय उन्होंने सर्विस रोड पर भीड़ देखी तो फौरन अपनी जीप भीड़ के पास ले गए. वहां एक 40 वर्षीय व्यक्ति का शव पड़ा था. पास ही एक बाइक भी पड़ी थी. आधा शव घास पर था तो पैरों की ओर वाला आधा हिस्सा वही गिरी पड़ी बाइक पर था. ऐसा लग रहा था जैसे दुर्घटना हुई हो.
कन्हैयालाल ने थाना एरोड्रम फोन कर के कुछ सिपाही बुला लिए. साथ ही फोरेंसिक एक्सपर्ट और पुलिस के बड़े अधिकारियों को भी सूचित कर दिया.
घटनास्थल पर आ कर लाश देखने के बाद फोरेंसिंक एक्सपर्ट ने बताया कि मृतक की मौत दुर्घटना से नहीं हुई है. लाश को घसीटने के भी निशान नहीं थे. अलबत्ता मृतक के शरीर पर चोट के निशान जरूर थे. लाश को इस तरह रख कर यह दर्शाने की कोशिश की गई थी, जैसे मृतक दुर्घटना में मरा हो. जबकि हकीकत में उस की हत्या की गई थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में ऐसी एक भी चीज नहीं मिली, जिस से पता चल पाता कि वह कौन था.
प्राथमिक जांच के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. हालांकि यह ब्लाइंड मर्डर था, पर गनीमत यही थी कि रोशनी की एक किरण के रूप में मृतक की बाइक मौजूद थी. बाइक के नंबर से पता लगाया जा सकता था कि मृतक कौन है.
अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी ने मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने बाइक के नंबर के आधार पर आरटीओ औफिस से बाइक मालिक का पता लगाया. वह बाइक देवास जिले के बदरका गांव निवासी सादिक पटेल के नाम पर रजिस्टर्ड थी.
पुलिस ने बदरका गांव के सादिक पटेल से संपर्क किया तो उस ने बताया कि बाइक उसी की है, पर उसे उज्जैन के गांव मलानाकलां का रहने वाला अरमान पटेल ले गया था. इस पर पुलिस ने सादिक को बताया कि अरमान पटेल की लाश इंदौर के थाना एरोड्रम क्षेत्र में मिली है. सादिक से अरमान के पिता इब्राहीम पटेल का मोबाइल नंबर मिल गया. थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने इब्राहीम पटेल को यह दुखद सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.
सूचना मिलते ही इब्राहीम पटेल कार से अपने परिवार के साथ इंदौर आ गए.
थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने उन्हें अस्पताल लेजा कर लाश दिखाई तो पूरा परिवार बिलखने लगा. लाश उन के बेटे अरमान की ही थी. पुलिस ने लिखापढ़ी कर के अरमान की लाश उस के घरवालों को सौंप दी, जिसे वे उज्जैन ले गए.
पूछताछ में इब्राहीम पटेल ने यह बात साफ कर दी थी कि अरमान की किसी से रंजिश थी या नहीं, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. कन्हैयालाल दांगी ने उन से अरमान का मोबाइल नंबर ले लिया.
मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए कन्हैयालाल दांगी ने अरमान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं.
उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो वह धार के पास स्थित गुनावदा गांव की एक महिला सलमा का निकला. अरमान की हत्या से पहले सलमा की अरमान से लंबी बातें हुई थीं. खास बात यह कि इस बातचीत के वक्त सलमा के नंबर की लोकेशन धार में थी. दांगी ने सलमा के नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. उस की और अरमान की काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर भी मिले, जिन पर दांगी को संदेह हुआ.
जिन नंबरों पर संदेह हुआ, घटना के दिन उन की भी लोकेशन धार की ही थी. जिन नंबरों पर शक था, कन्हैयालाल दांगी ने उन नंबरों की सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से उन के धारकोें के नामपते निकलवाए. उन में 2 नंबर अल्लाहनूर और अमजद के थे, एक रईस का और एक देवीलाल कुमावत का. इन में अल्लाहनूर और अमजद के पिता का नाम मुराद और पता एक ही था. इस का मतलब वे दोनों सगे भाई थे.
चूंकि ये सब लोग धार के ही रहने वाले थे, इसलिए इमरान की हत्या का शक इन्हीं लोगों पर गया. दांगी ने अल्लाहनूर, अमजद, आई एफ रईस और देवीलाल कुमावत तक पहुंचने के लिए एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर पवार, सिपाही जीतू सरदार, कमलेश रविंद्र और दीनदयाल को शामिल किया गया.
इस पुलिस टीम को सब के पते दे कर धार रवाना कर दिया गया. पुलिस टीम ने मुराद के घर पर छापा मारा तो उस का 23 वर्षीय बेटा अल्लाहनूर घर पर ही मिल गया. जबकि अमजद फरार था. रईस अल्लाहनूर के मामा का लड़का था, वह भी घर पर ही मिल गया. पुलिस ने पूछताछ के लिए दोनों को हिरासत में ले लिया.
देवीलाल गांव कोटा मिडोला, थाना सरदारपुर जिला धार का रहने वाला था. पुलिस उस के घर गई तो वह भी फरार मिला. इस पर पुलिस टीम रईस और अल्लाहनूर को ले कर इंदौर लौट आई. थाने ला कर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि वे लोग इस बारे में कुछ नहीं जानते.
लेकिन जब पुलिस ने उन के साथ सख्ती बरतते हुए उन्हें बताया कि उन के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चल गया है कि उन दोनों के अलावा उन के साथी अमजद और देवीलाल के नंबर न केवल अरमान की काल डिटेल्स में पाए गए हैं, बल्कि घटना के समय उन के नंबरों की लोकेशन भी इंदौर में थी तो वे टूट गए.
अल्लाहनूर और रईस से पूछताछ के बाद पता चला कि यह मामला प्रेमप्रसंग का था. इस के पीछे की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.
करीब 5 साल पहले सन 2010 में देवास के पास एक गांव में शादी समारोह था. इस शादी में मुराद के घर वाले भी शामिल हुए और जिला उज्जैन के गांव मलानाकलां के इब्राहीम पटेल के घर वाले भी. यहीं पर अरमान की मुलाकात धार निवासी मुराद की बेटी सलमा से हुई.
अरमान और सलमा दोनों ही न केवल शादीशुदा थे, बल्कि मांबाप भी थे. अरमान के 4 बच्चे थे तो सलमा 2 बच्चों की मां थी. अरमान लंबे कद का आकर्षक व्यक्तित्व वाला आदमी था. सलमा भी कम खूबसूरत नहीं थी. सलमा और अरमान को शादी के समारोह में 4 दिन रुकना पड़ा. इन 4 दिनों में वे एकदूसरे से खूब घुलमिल गए.
शादी समारोह के बाद अरमान अपने गांव मलानाकलां चला गया और सलमा जिला धार स्थित अपनी ससुराल गुनावदा. सलमा का मायका धार में था. समारोह के दौरान ही सलमा और अरमान ने अपने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए थे. इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला जुड़ गया.
जब सलमा का पति अंसार पटेल काम पर चला जाता था और बच्चे स्कूल तो फ्री हो कर वह अरमान से बात करती थी. लंबीलंबी बातें होने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे से खुलने लगे. सलमा को पति की वजह से एहतियात बरतनी पड़ती थी, इसलिए उस ने अरमान से कह रखा था कि अगर उसे खतरा महसूस हुआ तो वह कभी भी मोबाइल स्विच्ड औफ कर सकती है.
अगर बात करतेकरते कभी खतरा महसूस होता था तो सलमा फोन काट देती थी. इस के बाद अरमान दोबारा फोन नहीं मिलाता था. यह बात दोनों के बीच तय थी.
एक दिन अरमान ने फोन कर के सलमा से कहा कि वह धार आ रहा है. वह भी मायके जाने की बात कह कर गुनावदा से धार आ जाए. अरमान ने उस से यह भी कहा था कि वह धार के जिस होटल में ठहरेगा, फोन कर के उसे बता देगा. वह बुरका पहन कर वहां आ जाए, ताकि किसी की नजर न पड़े.
धार पहुंचने के बाद अरमान ने फोन कर के सलमा को सूचना दे दी कि वह कौन से होटल के किस कमरे में ठहरा है. अरमान का गांव मलानाकलां धार से करीब 125 किलोमीटर दूर था. वह बाइक से धार पहुंचा था. उस का फोन मिलने पर सलमा बस पकड़ कर गुनावदा से 20-22 किलोमीटर दूर धार आ गई. वह पति से मायके जाने की बात कह कर आई थी.
धार आ कर उस ने बुरका पहना और सीधे होटल पहुंच गई. वहां दोनों ने खुल कर अपने अरमान पूरे किए. इस के बाद सलमा ने फिर बुरका पहना और अपने मायके चली गई. मायके में थोड़ी देर रुक कर वह अपनी ससुराल गुनावदा चली गई.
इस के बाद बुरके की आड़ में यह सिलसिला चल पड़ा. जब भी मन होता अरमान धार जा कर उसी होटल में ठहर जाता और सलमा मायके जाने के बहाने वहां आ जाती. मौजमस्ती के बाद दोनों अपनीअपनी राह चले जाते.
सब ठीकठाक चल रहा था कि एक बार सलमा का पति अंसार किसी काम से जल्दी घर आ गया. सलमा उस वक्त फोन पर अरमान से बातें कर रही थी. उस की बातों के कुछ आपत्तिजनक अंश अंसार ने सुन लिए.
सलमा ने अंसार को सामने देखा तो जल्दी से फोन काट दिया. उस के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी. अंसार समझ तो बहुत कुछ गया था, पर बोला कुछ नहीं. अलबत्ता उस के मन में शक की बुनियाद पड़ गई.
अब की बार सलमा जब मायके जाने के बहाने धार गई तो उस के जाने के घंटा भर बाद अंसार भी बाइक ले कर घर से निकल गया. वह सीधा अपनी ससुराल पहुंचा, लेकिन सलमा वहां नहीं थी. अंसार ने किसी से कुछ कहासुना नहीं. वह एकडेढ़ घंटा ससुराल में रुक कर अपने घर लौट आया. तब तक सलमा लौट आई थी.
अंसार ने उस से पूछा, ‘‘हो आईं मायके?’’
‘‘हां, वहां सब ठीकठाक हैं. तुम्हें पूछ रहे थे.’’ सलमा ने कहा तो अंसार के तनबदन में आग लग गई. इस के बावजूद उस ने सलमा से न कुछ कहा और न पूछा. अलबत्ता वह समझ जरूर गया कि सलमा कुछ गड़बड़ घोटाला कर रही है.
करीब 15 दिनों बाद सलमा जब फिर मायके जाने के बहाने धार के लिए रवाना हुई तो पहले से तैयार अंसार के एक दोस्त ने फोन कर के उसे बता दिया कि सलमा बस से निकल गई है. इस पर अंसार ने उस दोस्त से कहा कि वह सीधा धार बस स्टैंड पहुंचे, वह वहीं आ रहा है.
दोनों दोस्त धार बस स्टैंड पहुंच गए. इस के थोड़ी देर बाद गुनावदा की बस आ गई. अंसार और उस का दोस्त दूर खड़े देख रहे थे. तभी बुरका पहने चेहरा ढंके एक महिला बस से उतरी. अंसार ने बुरके के डिजाइन से पहचान लिया कि वह सलमा ही है. अंसार और उस के दोस्त ने थोड़ा फासला रख कर सलमा का पीछा किया. वे उस समय आश्चर्य में रह गए, जब सलमा मायके जाने के बजाय एक होटल में चली गई.
वे दोनों भी उस के पीछे पीछे होटल पहुंच गए. अंसार ने अपने दोस्त को अंदर भेज दिया और खुद बाहर ही खड़ा रहा. दोस्त ने लौट कर बताया कि होटल के एक कमरे के बाहर एक गोराचिट्टा आदमी खड़ा था, सलमा उस के साथ कमरे में चली गई. इस के बाद दोनों उस कमरे में गए.
उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक व्यक्ति की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’ इस पर अंसार के दोस्त ने कहा, ‘‘साहब, नाश्ता.’’
अरमान ने दरवाजा खोला तो दोनों अंदर घुस गए. अरमान ने उन्हें अंदर आया देख कहा कि यह क्या बदतमीजी है.
अंसार जो देखना चाहता था, देख चुका था. सलमा का बुरका और ओढ़नी कमरे में पड़ी टेबल पर रखे थे. वह कमरे में डबल बेड पर बैठी थी. अंसार को देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. अरमान चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था. वह समझ गया था कि आगंतुक कौन है. न तो अरमान के मुंह से एक शब्द निकला और न ही सलमा के मुंह से. दोनों रंगेहाथ पकड़े गए थे.
अंसार ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आज से हमारे सारे रिश्ते खत्म हो गए. मैं अभी इसी समय तुम्हें तलाक देता हूं, तलाक तलाक तलाक.’’
अपनी बात कह कर अंसार तेजी से कमरे के बाहर चला गया. उस ने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि सलमा को अपने दिल से, अपनी जिंदगी से निकालने का फैसला भी कर लिया. उस ने घर आते ही सलमा का सारा सामान पैक किया और बच्चों को ले कर उस के मायके छोड़ आया. यह देख कर सलमा के अब्बा और भाई सन्न रह गए. सलमा कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.
बाद में मुराद अपने बेटे अल्लाहनूर और अमजद को ले कर अंसार के गांव गुनावदा गए. उन्होंने उस से सलमा को इस तरह छोड़ आने का कारण पूछा तो अंसार गुस्से में बोला, ‘‘बेहतर होगा, यह बात आप अपनी बेटी से ही पूछें. बस इतना समझ लीजिए कि अब मैं उस औरत को बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकता.’’
‘‘हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’ मुराद ने कहा तो अंसार बोला, ‘‘आप की बेटी के उज्जैन के अरमान से नाजायज संबंध हैं, मैं ने होटल में दोनों को रंगेहाथों पकड़ा है. ऐसी बदचलन औरत से मैं अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.’’
जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो आदमी क्या कर सकता है? मुराद अपनी बेइज्जती को बरदाश्त कर के बेटों के साथ धार लौट गए. घर लौट कर उन्होंने सलमा को खूब लताड़ा. इस के बाद बाप होने के नाते मुराद ने काफी कोशिश की कि अंसार सलमा को ले जाए. लेकिन वह पत्नी को किसी भी कीमत पर साथ ले जाने को तैयार नहीं हुआ.
मजबूरी में मुराद को बेटी को अपने ही घर में पनाह देनी पड़ी, पर इस हिदायत के साथ कि आइंदा वह कोई भी ऐसीवैसी हरकत नहीं करेगी. अगर उस ने कुछ भी ऐसावैसा किया तो वे उसे घर से निकाल देंगे.
समय के साथ सब कुछ सामान्य हो गया. देखते देखते एक वर्ष बीत गया. इस बीच सलमा और अरमान का संपर्क चूंकि पूरी तरह टूटा रहा, इसलिए बात आई गई हो गई. चूंकि दोनों के ही परिवार इज्जतदार थे, सो इस नाजायज रिश्ते की बात दब सी गई.
कहावत है कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. इस मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ. अरमान ने एक मोबाइल खरीद कर अपने एक परिचित के माध्यम से सलमा के पास भिजवा दिया. सलमा ने उस के भेजे मोबाइल को घर वालों से छिपा कर रखा. वह उस फोन की हिफाजत अपनी जान से भी ज्यादा करती थी.
घर वालों की वजह से सलमा और अरमान के बीच बातचीत तो कम ही हो पाती थी, पर मैसेजबाजी खूब होती थी. अरमान टाइल्स कटिंग और फिटिंग का कुशल कारीगर था. इस काम से उसे अच्छी आय होती थी. इस बीच सलमा चूंकि घर से बाहर आनेजाने लगी थी, इसलिए होटलों में फिर से दोनों का मिलना होने लगा था.
सब कुछ ठीक चल रहा था. अरमान और सलमा फिर से मिलने लगे हैं, इस बात की किसी को भनक तक नहीं थी. लेकिन यह बात छिप नहीं सकी. हुआ यह कि एक दिन सलमा बाथरूम में नहाने गई तो मोबाइल बेड पर रखा छोड़ गई.
इत्तफाक से तभी अल्लाहनूर घर आ गया. वह किसी काम से सलमा के कमरे में गया तो बेड पर मोबाइल रखा देख चौंका. उसी वक्त मोबाइल पर एक मैसेज आ गया. मैसेज अरमान का था. उस ने लिखा था कि वह 12-1 बजे के आसपास आएगा. मैसेज देखने के बाद अल्लाहनूर ने मोबाइल उसी जगह रख दिया. यह 22 सितंबर, 2014 की बात है.
इस से यह बात खुल गई कि सलमा के पास मोबाइल है और वह अभी भी अरमान के संपर्क में है. अल्लाहनूर ने सलमा के पास मोबाइल होने और उसे अरमान का मैसेज आने की बात अमजद को बताई. अमजद ने सुना तो उस के भी तनबदन में आग लग गई.
दोनों भाइयों ने मिल कर तय किया कि जिस अरमान की वजह से उन की बहन का घर टूटा है और जो अब भी उसे बरबादी की ओर ले जा रहा है, उसे सबक जरूर सिखाएंगे. लेकिन दोनों ने इस मुद्दे पर जब गंभीरता से बात की तो उन्हें लगा कि इस काम के लिए एकदो साथी और होने चाहिए.
इस के लिए अल्लाहनूर और अमजद ने अपने मामा इशाक पटेल के बेटे रईस से बात की. रईस भी उन दोनों का हमउम्र था. अल्लाहनूर और अमजद ने परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रईस को सारी बातें बता दीं. शुरू में तो रईस डर रहा था, लेकिन परिवार की इज्जत के नाम पर वह साथ देने को तैयार हो गया. लेकिन इस शर्त पर कि अरमान को जान से नहीं मारा जाएगा.
रईस का दोस्त था देवीलाल कुमावत. वह गांव कोटा मिडोला का रहने वाला था. रईस ने उस से बात की तो दोस्ती के नाम पर वह भी साथ देने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद चारों ने मिल कर योजना बनाई. तय हुआ कि अल्लाहनूर और अमजद फोन पर बात कर अरमान से मिलने की बात करेंगे.
इस के बाद लेबड़ गांव के थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर उस के लौटने का इंतजार करेंगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो जाएंगे. जब अरमान आएगा तो दोनों बातचीत के बहाने उसे रोक लेंगे. सब मिल कर उसे समझाएंगे और थोड़ा धमकाएंगे भी. जिस रास्ते पर मिलने की बात हुई थी, वह इंदौर से धार की ओर आने का शार्टकट रास्ता था.
योजनानुसार 23 सितंबर को अल्लाहनूर और अमजद लेबड़ गांव से थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर अरमान के आने का इंतजार करने लगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो गए. दिन के करीब एक बजे अरमान बाइक से आता दिखाई दिया. उस वक्त दोपहर का समय था और उस रास्ते पर आवाजाही बिलकुल नहीं थी. जब अरमान पास आया तो अल्लाहनूर और अमजद ने बात करने के बहाने उसे रोक लिया.
अरमान के रुकते ही अल्लाहनूर बोला, ‘‘अरमान भाई, हम आप से जरूरी बात करना चाहते हैं. यहां सड़क पर बात करना ठीक नहीं है. अगर आप को परेशानी न हो तो आप हमारे साथ चलिए, पास ही हमारा खेत है, वहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.’’
अरमान को किसी तरह का कोई शक तो था नहीं, सो उस ने अल्लाहनूर को अपनी बाइक पर बैठा लिया. वह उसे रास्ता बताने लगा. अमजद इन दोनों के साथ अपनी अलग बाइक पर चल रहा था.
रईस और देवीलाल के पास भी बाइक थी. वे दोनों कुछ फासले से उन के पीछे चल दिए. करीब 10 किलोमीटर चलने के बाद वे एक खेत में रुके, जहां एक झोपड़ी बनी हुई थी. जब अल्लाहनूर, अमजद और अरमान वहां पहुंचे तो पीछे से रईस और देवीलाल भी आ गए. इस के बाद चारों ने मिल कर अरमान को दबोच लिया.
वहां दूरदूर तक इन पांचों के अलावा कोई नहीं था. इन लोगों ने अरमान को एक पेड़ से बांध कर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और फिर सब ने लातघूंसों और बेल्ट से उस की जम कर पिटाई की. पिटते पिटते अरमान बेहोश हो गया. अल्लाहनूर, अमजद, रईस और देवीलाल जब उसे पीटते पीटते थक गए तो वहीं बैठ कर अपनी थकान उतारने लगे.
थोड़ी देर बाद अल्लाहनूर ने अरमान को झंझोड़ कर जगाना चाहा, लेकिन वह मर चुका था. यह देख कर चारों घबरा गए. जल्दबाजी में कुछ नहीं सूझा तो वे उसे खोल कर घसीटते हुए झोपड़े में ले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें, क्योंकि वह खेत उन के एक रिश्तेदार का था. लाश को वहां छोड़ना ठीक नहीं था. इसलिए सब ने मिल कर तय किया कि रात हो जाने पर लाश को कहीं दूर फेंक आएंगे.
रात 8 बजे के बाद इन लोगों ने अरमान की लाश को जैसेतैसे बाइक पर बीच में बिठाया और अपनेअपने चेहरे पर रूमाल बांध लिए. उन्होंने अरमान की लाश के मुंह पर भी रूमाल बांध दिया. एक बाइक देवीलाल ने तो दूसरी रईस ने संभाली. अल्लाहनूर और अमजद ने अरमान की बाइक पर बीच में उस की लाश रख ली.
इस के बाद ये लोग वहां से करीब 60 किलोमीटर दूर इंदौर के एरोड्रम थानाक्षेत्र में बने 8 लेन मार्ग सुपर कारीडोर तक आए. तब तक रात गहरा गई थी. इन लोगों ने अरमान की लाश को एक जगह सुपर कारीडोर की सर्विस रोड पर घास पर लिटा दिया. उस की बाइक भी इन्होंने वहीं डाल कर, उस का एक पैर बाइक पर इस तरह रख दिया जैसे हादसा हुआ हो और उसी की वजह से उस की मौत हो गई हो.
23 सितंबर को थानाप्रभारी श्री दांगी ने गश्त के वक्त अरमान की लाश देखी थी. पोस्टमार्टम में पता चला कि अरमान की मौत बहुत ज्यादा मारपीट के कारण हुई थी. अल्लाहनूर और रईस पकड़े जा चुके थे. अगले 24 घंटे में देवीलाल भी पकड़ा गया.
अल्लाहनूर ने रोते हुए अपने बयान में बताया कि उन लोगों ने अरमान को कई बार समझाया था कि वह सलमा से मिलना छोड़ दे. उन्होंने अरमान की पत्नी को भी उस की करतूत बता दी थी. पर वह बाज नहीं आ रहा था. उन लोगों का इरादा उसे जान से मारने का बिलकुल नहीं था. देवीलाल ने भी यही बयान दिया.
विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस तरह सलमा और अरमान के नाजायज रिश्ते की वजह से दो हंसते खेलते परिवार बरबाद हो गए. अमजद अभी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. पुलिस उसे खोज रही है.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.