कलाकार: आशुतोष गोवारिकर, मोना सिंह, आरुषि शर्मा, अमेय वाघ, विकास कुमार, पूर्णिमा इंद्रजीत, सुकांत गोयल, राधिका मेहरोत्रा, चिन्मय मंडलेकर

निर्देशक: समीर सक्सेना, अमित गोलान,

लेखक: बिश्वपति सरकार, निमिषा मिश्रा, संदीप साकेत, अमित गोलानी,

संगीतकार: रचिता अरोड़ा,

संपादन: देव राव जाधव,

कार्यकारी निर्माता: केतन शाह,

छायांकन: इवान मुलिगन, बार्नी क्राकर, धनंजय नवग्रह,

निर्माता: समीर सक्सेना,

प्लेटफार्म: नेटफ्लिक्स

18 अक्तूबर, 2023 को रिलीज हुई ‘काला पानी’ वेब सीरीज (Kala Pani Web Series) देश के अंदर फैली संक्रामक बीमारी कोरोना को मद्देनजर रखते हुए निर्माता समीर सक्सेना (Producer Sameer Saxena) ने अमित गोलानी (Amit Golani) के निर्देशन में बनाई है. सीरीज में संक्रामक हालात के भयावही दृश्यों का फिल्मांकन करते हुए दर्शकों को रूबरू कराया है. सीरीज में लगभग एकएक घंटे के 7 एपिसोड फिल्माए गए हैं.

पहला एपीसोड

वेब सीरीज की कहानी के दृश्यांकन में दिखाया गया है कि अंडमान और निकोबार द्वीप (Andaman & Nikobar) में सालाना जलसा होने वाला है, जिस में देश दुनिया से हजारों पर्यटक वहां पहुंचते है. वहां पर एक रहस्यमय बीमारी पर्यटकों के पहुंचने से पहले ही अपने पैर पसार रही है. यह रहस्यमय बीमारी वहां पर पहुंचने वाले लोगों को धीरेधीरे अपनी चपेट में ले लेती है.

शुरुआत में लोगों की गरदन पर काले चकत्ते हो रहे हैं. इस के अलावा वे खांसी से भी बहुत पीडि़त हैं. इसी के चलते लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं.

इस बीच द्वीप पर एक टूरिस्ट फेस्टिवल होना है, जो वास्तव में अमीर कारपोरेट फर्म एटम की एक और भयावह साजिश है. प्रतिवर्ष होने वाले फेस्टिवल में शामिल होने के लिए हजारों पर्यटकों का द्वीप समूह में आने का सिलसिला शुरू होता है.

विशाल त्योहार के आयोजक निर्देशक की पहल पर फिल्म की सार्थकता बनाने के लिए प्रकृति को अनदेखा करते हुए अपना मिशन जारी रखते हैं. किंतु बेरहम प्रकृति भी पूरी तरह पंख फैला लेती है और जनसमूह को अपनी चपेट में लेने लगती है. इस का जीता जागता उदाहरण इस पहले एपीसोड में मिलता है.

इस एपिसोड में डा. सौदामिनी (मोना सिंह) क्षेत्र में फैली बीमारी को समझने की कोशिश करती है, लेकिन वह बीमारी को जांच करते करते काबू पाने में असमर्थ सी होती दिखाई देती है.

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कई पर्यटक प्रकृति की गोद में आए आनंद की चाह में मौत के मुंह में समा जाते हैं.  त्योहार के विशाल पर्व के दौरान महामारी से प्रभावित लोग विवश हो कर वहां पर बदहाल जिंदगी जीने के लिए विवश हो जाते हैं इस प्रकार निर्मातानिर्देशक ने इस बोगस फिल्म का दृश्यांकन कर के वाहवाही लूटने की कोशिश की है.

सीरीज का निर्देशन कोई खास नहीं रहा, निर्देशकों ने यहां पर अपनी सोच के अनुसार जरूरत से ज्यादा लंबे सीन कर दिए हैं.

ऐसे सरवाइवल ड्रामा की पहली चुनौती दर्शकों के मर्म के साथ मौजूदा हालात में डरावने दृश्यों से भावनात्मक रूप से दर्शकों को जोडऩा और फिर उन्हें बेचैनी महसूस कराना ही मुख्य दृष्टिकोण है.

वेब सीरीज काला पानी में कलाकार नामचीन कुछ गिनती के ही हैं और बाकी तमाम कलाकार ऐसे हैं, जो सिर्फ अपने काम से अपना नाम और छवि बनाते नजर आए हैं.  उपराज्यपाल की भूमिका के तौर पर आशुतोष गोवारिकर की वापसी सीरीज का एक मजबूत आधार बनाने का काम करती है. वह एक ऐसे प्रशंसक हैं, उन्हें चिकित्सकों पर विश्वास तो है ही किंतु वो कारपोरेट लौबी से भी घिरा हुआ पाते हैं.

मुख्य सचिव उन का वैसा ही अफसर है, जो हर हाल में खुद को इस प्राकृतिक मार से खुद को सेफ रखना चाहता है. और वापस दिल्ली जाने को बेकरार पुलिस अफसर के रूप में कलाकार अभय वाघ का काम देखने लायक है. वह एक थिएटर का कलाकार है.

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दूसरा एपिसोड

दूसरे एपिसोड में यह दिखाया गया है कि जब कोई संकट सामने आता है तो उचित कदम उठाने में चूक हो जाती है. ऐसा ही एलजी से हुआ. एलजी एडमिरल जिब्रान कादरी को मालूम पड़ता है तो वह उस बीमारी पर काबू करने के लिए कदम उठाते हैं, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है. जनता को सचेत हिफाजत करने में वह विफल रहते हैं. ज्योत्सना (आरुषि शर्मा) अपने अतीत की दर्दनाक यादों से नहीं निकल पाती है.

‘काला पानी’ की सीरीज में फिल्माए गए दृश्यों में दिखाया गया है कि वीरान रास्ते बीमारियों का फैलना लोगों के मन में दहशत भर देता है. पीडि़तों की जान बचाने की जद्दोजहद को बखूबी दिखाया गया है. निकोबार में मौजूद आदिवासी प्रजाति के समूह ओराकस की मौजूगी उत्सुकता बढ़ाने के साथ और देखने में दिलचस्प लगती है.

तीसरा एपिसोड

इस एपीसोड में गार्जियन की भूमिका को प्रदर्शित कराने का प्रयास किया है. संक्रामक रोगों के फैलने के कारण द्वीप के सार्वजनिक स्थानों पर ताले पड़े दिखाई दे रहे हैं और चारों तरफ सन्नाटा छा जाता है.

संक्रामक बीमारी की वजह से आईलैंड पर लौकडाउन लगा हुआ है. ऐसे में संतोष अपने बच्चों से मिलने की कोशिश करता है. वह बच्चों से मिलने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा देता है. वहीं बीमार गार्गी उन के अभिभावक के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों को ले कर बहुत ज्यादा चिंता करती है.

चौथा एपिसोड

महामारी के कारण क्वारंटाइन करने की कोशिश में विफल होने के कारण इस का सीधा बुरा प्रभाव दर्शकों पर पड़ता है और सुरक्षा की चूक डायरेक्टरों की विफलता दिखाए गए उदाहरणों से प्रतीक बन कर रह गई है. और वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते हैं.

पांचवां एपिसोड

इस एपिसोड में अमर प्राणी त्रासदी के क्रोध से दुखी चिरंजीवी को भस्म कर देता है. केवल उस के लिए एक स्वदेशी जनजाति के साथ एक चौंकाने वाले संबंध को उजागर करना इस एपिसोड का मुख्य मकसद रहा है. अभिनेता रितू और केतन एक दुर्लभ पौधा खोजने के लिए अपनी टीम के साथ निकल पड़ते हैं जिस से कि संक्रामक रोगों की जांच हो सके.

संक्रामक रोगों की जांच के लिए मरीजों में जांच के लक्षण मिलने के बाद चीफ मैडिकल औफिसर डा. सौदामिनी सिंह जांच में जुटी हुई है. हालातों को मद्ïदेनजर रखते हुए डा. सौदामिनी इस त्योहार के पूर्णत: खिलाफ हैं मगर पर्यटकों और वहां के रोजीरोटी के साधन सुलभ कराने वाले जनसमूह फायदे को देखते हुए एलजी जिब्रान कादरी को उन्हें मना देते और होने वाले फेस्टिवल के आयोजन में बढ़चढ़ कर अपना योगदान देते हैं. डा. सौदामिनी के मन में उपजी डर की भावना सही साबित होती है.

जिब्रान कादरी जनता को समय रहते सूचित करने में चूक जाते हैं और महामारी विकराल रूप धारण कर के पूरे द्वीप पर फैल जाती है. दीप पर पर्यटकों और वहां के निवासी दहशत में आए लोग किसी तरह से आईलैंड से निकलने की कोशिश करने का प्रयास करते हैं.

छठा एपिसोड

इस एपिसोड में पूर्वजों के बारे में एक चौंकाने वाली खोज करने के बाद डा. ऋतु (राधिका मेहरोत्रा) को संभावित इलाज खोजने के लिए डा. सौदामिनी सिंह का भारी सामना करना पड़ता है. लेकिन वह अपने अतीत से आगे निकल जाती है और भटकती है.

अंत में हम इस कथा के कथानक का चित्रण करने के बाद अंतिम पायदान की ओर बढेेंगे. फिल्म के छायांकन के दौरान कर्ण को पता चलता है कि इस के पिता शंकरलाल जेल में हैं और उस की मां बचपन में ही यह दिखावा करती रही कि इस के पिता की मृत्यु हो गई है.

अपने पिता से मिलने पर करण को पता चलता है कि उसे एक ऐसी हत्या के लिए जेल में डाल दिया गया है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में काला पानी कहा जाता है, जो उस ने नहीं की थी. करण  के पिता की बेगुनाही का सबूत इकट्ठा करने के लिए निकलता है, ताकि वह उस के खिलाफ दायर मामले में फिर से अदालत में दस्तक दे सके और उन्हें मुक्त करा सके.

करण उन गवाहों से मिलने जाता है जिस में अदालत में उस के पिता के लिए बात की थी. जो उसे जांच अधिकारी इंसपेक्टर मेहता के बारे में बताता है. करण बतौर पेइंग गेस्ट रहता है, जिस की मालकिन आशा है और वह एक पत्रकार भी है. इंसपेक्टर मेहता से करण को अन्य गवाहों और जुम्मन को एक पत्र के बारे में जिक्र करते हुए सुना, जब पता चलता है तो इंसपेक्टर ने स्वीकार किया कि अभियोजक जसवंत राय ने उसे चुप करा दिया. यद्यपि उसे संदेह की गंध आ गई थी.

इंसपेक्टर मेहता करण को यह भी बताता है कि उस ने किशोरी और जुम्मन को एक पत्र के बारे में बात करते हुए सुना था और शंकर लाल की बेगुनाही का एक शक्तिशाली सबूत और सूत्र साबित हो सकता है. करण किशोरी को लुभाने की कोशिश करता है, ताकि वह उस के पास मौजूद सबूत के तौर पर उस पत्र को हासिल कर सके.

इसी बीच करण और आशा के बीच रोमांटिक भावनाएं एकदूसरों के दिलों में उपज जाती हैं. करण जसवंत राय से भी संपर्क करता है और वह बेगुनाही साबित करने के लिए मामले को फिर से खोलना चाहता है और वह यह भी पूछता है कि किशोरी से पत्र प्राप्त करना उस के लिए पर्याप्त होगा. अभियोजक ने उसे पहले पत्र प्राप्त करने के लिए कहा था ताकि वह यह देख सके इस से क्या निष्कर्ष निकलता है.

अभियोजक खलनायक निकला, वह सरदारी लाल को चेतावनी देता है, जिस ने वास्तव में हत्या की थी कि करण इस पत्र के पीछे लगा हुआ है.  जो किशोरी के पास मौजूद है.

सरदारी लाल बदले में जुम्मन को किशोरी से इस बारे में चेतावनी देने के लिए कहता है. किशोरी करण से कहती है कि उस ने उसे धोखा दिया है. वह उस पर किसी और मंशा को ले कर उस से झूठा प्यार दिखा रहा है, किंतु करण जबाब देता है कि उस के निर्दोष पिता को जेल भेजने का कारण रहा है. वह उसे झूठ बोलने की शिकायत नहीं कर सकता और सच्चाई जानने पर किशोरी को पश्चाताप होता है और वह करण पर प्रभावित हो कर वह पत्र करण को दे देती है.

करण ने अपने पिता के खिलाफ मामले को फिर खुलवाने के लिए सबमिट अपील की है. अभियोजक जसवंत राय ने अदालत में अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहानी में शंकर लाल के जेल से छूटने और करण मेहरा की आशा से शादी करने के साथ ही सीरीज समाप्ति के पायदान की ओर बढऩे लगती है.

सातवां एपिसोड

इस एपिसोड में मानवीय संवेदनाएं जगाए रखने की जिम्मेदारी देखने में आई है. अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर में है. अंगे्रजों के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों की इस मूक गवाह जेल की नींव 1897 में रखी गई थी और लगभग 9 साल के बाद 1906 में यह बन कर तैयार हुई.

काला पानी नामक जेल इतिहास की बहुचर्चित जेलों में से रही थी और काला पानी की सजा बीते जमाने में एक ऐसी सजा हुआ करती थी, जिस के नाम से कैदी कांपने लगते थे. इसे सेल्युलर जेल के नाम से भी विश्व में जाना जाता था और आज भी इसे इसी नाम से जाना जाता है.

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