दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में हर दिन की तरह उस दिन भी परचा बनवाने वालों की काफी भीड़ थी. इन में अधिकांश कैंसर मरीज के तीमारदार ही थे, इन के मरीज अंदर हाल में लगी बेंचों पर लेटे या बैठे हुए थे.
इस अस्पताल में कैंसर का इलाज कराने के लिए दिल्ली एनसीआर के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के साथसाथ नेपाल, अफ्रीका तक से मरीज आते हैं. इसलिए यह अस्पताल काफी प्रसिद्ध हो गया है.
इस भीड़ में सुधा भी थी. जवानी उस पर अभी बरकरार थी. उस की शादी हुए मुश्किल से 3 साल ही हुए थे. पति सूरज हैंडसम एक युवक था, एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क की नौकरी करता था. तनख्वाह 12 हजार रुपए थी. पिता नहीं थे, मां थी.
पिता ने अपनी प्राइवेट नौकरी से दिल्ली के अमन विहार में 50 गज जगह खरीद कर अपना मकान बना लिया था. सुधा, उस का पति सूरज और सास दयावती इन 3 लोगों के लिए यह मकान काफी था. सास घर में रह कर सिलाई वगैरह कर के इतना कमा लेती थी कि घर का खर्च पूरा हो जाता था.
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सूरज की तनख्वाह से ऊपरी खर्च चलने के बाद थोड़ी बहुत बचत हो जाती थी, जिसे वह बैंक में जोड़ता था. एक प्रकार से घर में सुधा को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं थी. हंसीखुशी से यह परिवार अपनी जिंदगी बसर कर रहा था.
अचानक एक दिन सूरज के पेट में भयंकर दर्द उठा. उसे सुधा एक प्राइवेट नर्सिंग होम में ले कर गई. दर्द का इंजेक्शन देने के बाद डाक्टर ने सुधा को पति का अल्ट्रासाउंड करवाने की राय दी.
अल्ट्रासाउंड हुआ तो मालूम चला कि सूरज के पेट में एक गांठ है. गांठ किस चीज की है, इस की जांच हुई तो डाक्टर ने सूरज के पेट में कैंसर की गांठ होने की पुष्टि कर दी. सूरज सन्न रह गया. सुधा घबरा कर रोने लगी. डाक्टर ने उसे हिम्मत रखने और राजीव गांधी कैंसर संस्थान में सूरज का इलाज करवाने की सलाह दी. बगैर समय गंवाए सुधा सूरज को ले कर कैंसर संस्थान में लाई थी.
वहां के डाक्टरों ने सूरज की जांच करवाने के बाद इलाज शुरू कर दिया था. सूरज की गांठ की कीमोथेरेपी के लिए जो इंजेक्शन लिखा गया था, वह बहुत महंगा था. इलाज के लिए एक इंजेक्शन से काम नहीं चलने वाला था. सुधा ने सूरज के बैंक अकाउंट और अपने अकाउंट को खाली करने के बाद अपने घर वालों से रुपया लेना शुरू किया. धीरेधीरे वह कर्ज में डूबती चली गई.
फिर कोई कब तक रुपया उधार देता. परिजनों ने हाथ खींचने शुरू कर दिए तो सुधा और उस की सास ने मकान गिरवी रख दिया. कब्जा प्रौपर्टी डीलर को दे कर वे किराए के मकान में आ गए. सूरज का काम पर जाना बंद हुआ तो उसे कंपनी ने भी नौकरी से निकाल दिया. सास जैसे तैसे कपड़े सिलाई कर के खर्च चला रही थीं.
सुधा को इस बात का संतोष था कि कैंसर के इलाज से सूरज धीरेधीरे ठीक हो रहा था, लेकिन अभी इलाज बंद नहीं करना था. सुधा परेशान थी कि सूरज का इलाज हो तो कैसे हो. पास का रुपया खत्म हो गया था, 2 लाख का कर्ज हो गया था और ससुर की निशानी मकान गिरवी पड़ा था. अब एक ही आसरा बचा था कि वह अपने गहने बेच दे. सुधा ने गहने भी बेच दिए और नए उत्साह से अपने पति का इलाज शुरू किया.
इस तरह फंसाते थे शिकार
एक दिन वह हौस्पिटल के हाल में पति के पास बैठी खाना खा रही थी, तभी एक युवक उस के सामने वाली बेंच पर आ कर बैठ गया. कुछ देर वह दोनों को देखता रहा, फिर उस ने बात शुरू की, ”यह भाई साहब शायद यहां कैंसर का इलाज करा रहे हैं?’’
”जी हां,’’ सुधा ने उत्तर दिया, ”6 महीने से इन का यहां इलाज चल रहा है.’’
”6 महीना… बहुत रुपया खर्च हो गया होगा बहन?’’ युवक ने हैरानी जताते हुए कहा.
”क्या करूं, इलाज भी जरूरी है. जैसे तैसे इलाज करवा रही हूं, बहुत परेशान हो गए हैं हम.’’
”कैंसर की दवा हैं भी तो बहुत महंगी. मेरा भी इलाज चल रहा है कैंसर का, लेकिन मुझे यह राहत है कि 3 लाख वाला इंजेक्शन मुझे डेढ़ लाख रुपए में मिल जाता है.’’
”अरे…’’ सुधा की आंखें हैरत से फैल गईं, ”यह कैसे संभव है भाई साहब, मैं ने तो हर बार 3 लाख रुपया ही दिया है.’’
वह युवक आगे की ओर झुका, इधरउधर देख कर उस ने जैसे तसल्ली कर ली कि उस की बात कोई तीसरा नहीं सुनेगा. फिर वह धीरे से बोला, ”मैं सच्चाई बता रहा हूं. आप को अगर इंजेक्शन लेना है तो मैं डेढ़ लाख में ही दिलवा दूंगा, लेकिन यह बात आप के और मेरे बीच ही रहनी चाहिए.’’
”ठीक है भाई साहब, मैं किसी को नहीं बताऊंगी, बोलो कब दिलवा रहे हो मुझे इंजेक्शन?’’
”पहले यह तो बताओ, कौन सा इंजेक्शन लेना है. डाक्टर ने भाई साहब की कीमोथेरेपी के लिए इंजेक्शन लिखा ही होगा.’’
सुधा ने डाक्टर द्वारा लिखी गई परची बटुए में से निकाल कर उस युवक को दिखाई. उस पर क्कश्वक्रछ्वश्वञ्ज्र लिखा था, जो विदेश में निर्मित इंजेक्शन था. इस की कीमत लगभग 3 लाख रुपए थी.
”मैं आप को यह इंजेक्शन डेढ़ लाख में दिलवा देता हूं, आप रुपए का इंतजाम कर के कल मुझे यहां मिलें. मेरा नाम नीरज है, यह मेरा फोन नंबर रख लीजिए, मैं इधरउधर हुआ तो आप फोन कर लेना.’’
सुधा ने उस से फोन नंबर ले लिया.
”मैं कल ही आप को फोन करूंगी भाई साहब, इस से मेरे लिए बहुत हेल्प हो जाएगी.’’
”कोई बात नहीं, इंसान ही इंसान के काम आता है.’’ वह युवक बोला और उठ कर चला गया.
सुधा और सूरज इस बात से खुश थे कि अब उन्हें सस्ते में कीमोथेरेपी का इंजेक्शन मिल जाएगा. वे नहीं जानते थे कि वह युवक नकली दवा का सौदागर है, जिस के चंगुल में फंस कर सुधा अपने पति की मौत सुनिश्चित कर रही है.
सुधा दूसरे दिन घर से डेढ़ लाख रुपए ले कर आ गई. नीरज उसे हाल में नजर नहीं आया तो उस ने पति से उस युवक का नंबर मिलाने को कहा. सूरज ने अपने मोबाइल में बीते कल नीरज द्वारा दिया गया नंबर सेव कर लिया था.
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सूरज ने उस का नंबर मिला कर घंटी बजने पर मोबाइल पत्नी को दे दिया. दूसरी ओर से कुछ ही सेकेंड बाद उस युवक की आवाज सुनाई दी, ”मैं नीरज बोल रहा हूं…आप?’’
”मैं सुधा हूं भाई साहब, कल आप से दवा लेने की बात राजीव गांधी संस्थान में हुई थी न, मैं उस के लिए रुपए ले कर आ गई हूं.’’
”ओह! सुधाजी, मैं पहचान गया. आप इस वक्त कहां हैं? मैं राजीव गांधी संस्थान के हाल में हूं. आप बैठिए, मैं 10 मिनट में वहां आ रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.
सुधा अपने पति के साथ हाल की बेंच पर बैठ गई. लगभग 7 मिनट में ही नीरज एक अन्य युवक के साथ वहां आ गया. नमस्कार के आदानप्रदान के बाद उस युवक ने एक इंजेक्शन साथ आए व्यक्ति से ले कर सुधा को दे दिया. सुधा ने पर्स में रखे डेढ़ लाख रुपए नीरज को दे कर कहा, ”आप रुपए गिन लीजिए.’’
साथ आए व्यक्ति ने मुसकरा कर कहा, ”आप गिन कर लाई हैं तो मुझे गिनने की जरूरत नहीं हैं. नीरज के कहने पर मैं 3 लाख की दवा आप को डेढ़ लाख में दे रहा हूं. हां, यह इंजेक्शन खाली हो जाने पर आप मुझे शीशी वापस देंगी तो मैं 5 हजार रुपए और कम कर दूंगा.’’
”यह तो फायदे वाली बात है,’’ सुधा मुसकराई, ”आप को मैं यह शीशी वापस कर दूंगी. भला यह मेरे किस काम की?’’
इस के बाद उन के रास्ते अलग हो गए.
पुलिस को ऐसे मिली जानकारी
सुधा ने कई बार नीरज की मदद से कीमोथेरेपी की यह दवा खरीदी. डाक्टर यही दवा का इंजेक्शन कीमोथेरेपी के वक्त सूरज को देते रहे थे. मगर उन्हें हैरानी थी कि सूरज की तबियत ठीक होने के बजाय अब बिगडऩे लगी थी.
आरोपी नीरज चौहान
‘क्कद्गह्म्द्भद्गह्लड्ड’ इंजेक्शन स्पेन की एक दवा कंपनी द्वारा तैयार किया जाता है, इस की कीमत ज्यादा जरूर थी, लेकिन इस का परिणाम बेहतरीन था. सूरज का कैंसर फैलना नहीं चाहिए था, किंतु इंजेक्शन लगने के बावजूद कैंसर की जड़ें फैलने लगी थीं. डाक्टर के अच्छे इलाज के बावजूद सूरज 8 महीनों में ही मौत के मुंह में चला गया.
सुधा की जिंदगी पति बिना नीरस और बेजान हो गई. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस का सब कुछ लुट गया था. उधर नीरज उस व्यक्ति के साथ इसी विश्वविख्यात राजीव गांधी कैंसर संस्थान की कैंटीन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था.
”तूने सुना अभिनव, सूरज नाम के उस मरीज की डैथ हो गई है, जिस की पत्नी सुधा को मैं ने परजेटा का इंजेक्शन डेढ़ लाख में कई बार बेचा था.’’ नीरज ने चाय का लंबा घूंट भर कर बताया.
अभिनव मुसकराया, ”मरने दे यार, हम ने 9 लाख रुपया तो कमा लिया इन 6 महीने में.’’
”हां, यह बात तो है.’’ नीरज ने सिर हिलाया, ”लेकिन पता नहीं मुझे कभीकभी क्यों ऐसे मरीजों से सहानुभूति होने लगती है जो हमारी दवा नहीं खाता तो बच सकता था.’’
”इमोशनल मत हो भाई, जिस की जितनी सांसें लिखी हैं, वह इस धरती पर उतनी ही सांसें लेगा. इस में हमारी दवा का क्या दोष?’’
”फिर भी…’’
नीरज की बात अभिनव ने काट दी, ”चल छोड़ यह टौपिक. आ, परवेज को रिसीव करते हैं, वह माल ले कर आने वाला है.’’
नीरज कप में शेष बची चाय एक घूंट में पी गया और खड़ा हो गया. दोनों कैंटीन से बाहर निकल गए. दोनों ने नहीं देखा, उन की मेज के पास वाली दूसरी मेज के सामने एक पतला सा व्यक्ति बैठा धीरेधीरे चाय की चुस्कियां ले रहा था और कान लगा कर उन की बातें सुन रहा था. दोनों के जाने के बाद वह व्यक्ति जल्दी से अपनी चाय खत्म कर के बाहर लपका.
उस ने इध रउधर नजरें दौड़ाईं, लेकिन उसे नीरज और अभिनव नाम के वे दोनों व्यक्ति बाहर नजर नहीं आए. कुछ सोच कर उस व्यक्ति ने जेब से मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर निकाला और धीरेधीरे बात करने लगा.
”गुल्लू, तुम उन दोनों के पीछे लग जाओ, उन का पता ठिकाना मालूम करो. देखो, ये दोनों हाथ से निकलने नहीं चाहिए.’’
”ठीक है साहब, मैं तलाश करता हूं दोनों को.’’ गुल्लू ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर वह हाल की तरफ बढ़ गया.
दरअसल, गुल्लू पुलिस का मुखबिर था. उस ने उस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी अमित गोयल से बात की थी. यह बात 9 मार्च, 2024 की है.
क्राइम ब्रांच की स्पैशल सीपी शालिनी सिंह को डीसीपी अमित गोयल (क्राइम ब्रांच) की ओर से फोन कर के बताया गया कि कैंसर की नकली दवा बनाने वाला एक गैंग दिल्ली और एनसीआर में सक्रिय है. इस के पीछे मेरा एक मुखबिर लगा हुआ है, जो करीब महीना भर से इस गैंग की गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए है. यदि आप कहें तो रेड डाली जाए.
”अगर ऐसी जानकारी है तो आप क्राइम ब्रांच के कुछ खास इंसपेक्टर्स को इन की टोह में लगा कर पक्की जानकारी जुटाइए, ताकि जब इस गैंग पर हाथ डाला जाए तो हमें नाकामयाबी का मुंह न देखना पड़े.’’ सीपी (स्पैशल) क्राइम ब्रांच शालिनी सिंह ने अपना सुझाव दिया.
”ठीक है, पहले मैं इस गैंग की सही स्थिति मालूम कर लेता हूं. बहुत जल्द आप को सूचना दूंगा.’’ डीसीपी अमित गोयल ने कहा.
उन्होंने क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार 3-4 इंसपेक्टर्स अपने मुखबिर गुल्लू के साथ लगा दिए. इस नकली दवा बनाने वाले गिरोह की टोह लेने और असलियत मालूम करने के लिए.
12 आरोपी चढ़े पुलिस के हत्थे
एक सप्ताह के अंदर ही उन्हें अपने खास इंसपेक्टर्स की ओर से कैंसर की नकली दवा बनाने वाले गैंग की पूरी जानकारी और उन के पते ठिकाने मालूम हो गए. उन्होंने यह जानकारी स्पैशल सीपी शालिनी सिंह को दे दी.
शालिनी सिंह ने क्राइम ब्रांच की एक टीम का गठन कर दिया. इन में इंसपेक्टर कमल, पवन, महिपाल, एसआई आशीष, गुलाब, अंकित, गौरव, यतेंद्र मलिक, राकेश और समय सिंह. एएसआई राकेश, जफरुद्ïदीन, शैलेंद्र के अलावा हैडकांस्टेबल नवीन, रामकेश, वरुण, शक्ति, सुरेंद्र, सुनील, ललित, राजबीर और कांस्टेबल नवीन को शामिल किया गया. इस टीम को 4 भागों में बांट दिया गया. पूरी टीम का नेतृत्व एसीपी सतेंद्र मोहन तथा एसीपी रमेशचंद्र लांबा को सौंपा गया.
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4 भाग में बांटी गई इस क्राइम ब्रांच टीम को एक साथ एक ही समय में 4 अलगअलग जगहों पर छापे डालने थे. शालिनी सिंह चाहती थीं कि इस गैंग के किसी भी व्यक्ति को भाग निकलने का मौका न मिले.
क्राइम ब्रांच की टीम ने 11 मार्च, 2024 को एक साथ दिल्ली के यमुना विहार, मोती नगर का डीएलएफ कैपिटल ग्रीन, गुरुग्राम के साउथ सिटी में एक साथ छापे मारे तो उन्हें भारी सफलता मिली. इन जगहों पर छापेमारी में कैंसर की नकली दवा बनाने वाले गैंग के 7 लोग पकड़े गए. इन के नाम इस प्रकार हैं— कोमल तिवारी, अभिनव कोहली, विफिल जैन, तुषार चौहान, सूरज शत, परवेज, नीरज चौहान.
मूलरूप से बागपत का रहने वाला नीरज चौहान गुरुग्राम के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन मैनेजर था. 2022 में वह इंडिया मार्ट के जरिए विफिल जैन के संपर्क में आया. विफिल जैन ने उसे एंटी कैंसर के नकली इंजेक्शन के जरिए मोटी रकम कमाने का आइडिया बताया. नीरज को उस का आइडिया पसंद आया और फिर नीरज ने गैंग बनाना शुरू कर दिया.
इंजेक्शन की खाली शीशियां
विफिल जैन भी बागपत का रहने वाला था, लेकिन उस का बचपन दिल्ली के सीलमपुर में बीता. हाईस्कूल पास विफिल सीलमपुर के ही एक मैडिकल स्टोर पर काम करने लगा था. बाद में वह लोकल मार्केट में दवाएं सप्लाई करने लगा. उसी दौरान 2-3 साल पहले उस के दिमाग में कैंसर के नकली इंजेक्शन बनाने का आइडिया आया. फिर उस ने कैंसर अस्पतालों से इंजेक्शन की खाली शीशियां जुटा कर धंधा शुरू कर दिया.
आरोपी विफिल जैन
कोमल तिवारी तथा अभिनव कोहली दिल्ली के रोहिणी में स्थित राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं नुसंधान केंद्र में काम करते थे. दोनों कीमोथेरेपी विभाग में नियुक्त थे. कोमल तिवारी बुध विहार (दिल्ली) का रहने वाला है. उस ने बी.फार्मा किया हुआ है. सन 2013 में उस ने राजीव गांधी कैंसर संस्थान व अनुसंधान केंद्र में जौइन किया था.
आरोपी कोमल तिवारी
कोमल तिवारी यहां कीमोथेरेपी विभाग का इंचार्ज था, जबकि अभिनव मरीजों को कीमोथेरेपी देने वाली ग्लूकोज में कीमोथेरेपी की दवा मिलाने का काम करता था. नीरज चौहान पहले धर्मशिला, पारस, बीएलके जैसे नामी कैंसर अस्पतालों में काम कर चुका है. इस गैंग का सरगना वही था. इस का काम नकली दवा के इंजेक्शन बनाने के बाद इन्हें बेचने का था.
ये सभी किसी न किसी अस्पताल से जुड़े हुए होने के कारण एकदूसरे के संपर्क में आ गए थे. यहीं से इन के मन में कैंसर की नकली दवा बनाने का आइडिया पनपा.
चूंकि अभिनव व कोमल तिवारी सीधे कैंसर अस्पताल से जुड़े हुए थे, अत: उन्हें मालूम था कि कैंसर जैसे जानलेवा रोग से लड़ रहे मरीज को बचाने के लिए उन के परिजन हर कीमत देने को तैयार रहते हैं.
चूंकि कैंसर की दवाएं बहुत महंगी होती हैं. इस के द्वारा सीधेसीधे कोरा मुनाफा कमाने के लालच में अभिनव व कोमल तिवारी ने कीमोथेरेपी में दी जाने वाले इंजेक्शन की खाली शीशी बेचने का धंधा शुरू कर दिया. दोनों इसी कीमोथेरेपी विभाग से जुड़े थे, इसलिए इन्हें कीमोथेरेपी में इस्तेमाल इंजेक्शन की खाली शीशियां आसानी से उपलब्ध हो जाती थीं.
आरोपी परवेज
वे यह खाली शीशियां 5,000 रुपए प्रत्येक के हिसाब से परवेज को बेच देते थे. परवेज ये शीशियां नीरज चौहान तक पहुंचाने का काम करता था. नीरज इस गैंग का मुखिया था.
नामी अस्पतालों के कर्मचारी थे गैंग में
वह इन नामी देशीविदेशी इंजेक्शन की खाली शीशियों में 100 रुपए कीमत का एंटी फंगल भरते थे, जो एक तरह का पानी जैसा होता है. इस से मरीज को कोई लाभ नहीं होता और न ही कोई नुकसान होता है. हां, मरीज इस नकली दवा को असली समझ कर इस्तेमाल करता रहता है.
रोग ठीक कैसे होगा, धीरेधीरे कैंसर फैलता है और मरीज की मौत हो जाती है. वह इन नकली दवाओं पर लाखों रुपए खर्च कर के भी बच नहीं पाता और ये लोभी लोग उस मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ कर के अपनी तिजोरी भर रहे थे. कीमोथेरेपी दवा चारों स्टेज के कैंसर मरीज को दी जाती है.
नीरज गुरुग्राम में रहता था, बाकी 6 लोग दिल्ली के हैं. मोती नगर के डीएलएफ कैपिटल ग्रीन की 11वीं मंजिल पर बने ईडब्ल्यूएस फ्लैट से पुलिस को 140 नकली दवा की शीशियां मिलीं. यहां से 89 लाख रुपए कैश, 18 हजार अमरीकी डालर, दवाओं की शीशियों की कैप को सील करने वाली 3 मशीनें, एक हीट गन मशीन, 197 खाली शीशियां व पैकेजिंग के अन्य सामान भी जब्त किए गए. भरी हुई शीशियों की कीमत 1 करोड़ 75 लाख रुपए आंकी गई.
गुरुग्राम के ठिकाने से पुलिस ने 137 भरी हुई शीशियां, 519 खाली शीशियां और 864 खाली पैकेजिंग बौक्स बरामद किए. भरी शीशियों की कीमत 2 करोड़ 15 लाख रुपए के करीब है.
ये शीशियां भारतीय ब्रांड और 2 विदेशी ब्रांड की थीं. इन में ओपडाटा, कीटूडा, डेक्सट्रोज, फ्लूकोना जोल, केटरुडा, एनफिंजी, परजेटा, डारजालेक्स और एरबिटेक्ल नामी दवा के लेबल लगे थे.
पुलिस ने इन गिरफ्तार किए गए 7 आरोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर लिया गया तो इन की निशानदेही पर एक अन्य दवा विक्रेता बिहार के मुजफ्फरपुर से पकड़ा गया. इस का नाम आदित्य कृष्णा है.
32 साल के आदित्य ने बीटेक कर रखा है. मुजफ्फरपुर में यह कैमिस्ट शौप चलाता था. शौप पर यह बेचता था. नीरज से यह नकली कैंसर दवा खरीद कर पुणे और एनसीआर में वह बेचता था.
यह गैंग दिल्ली एनसीआर के अलावा हरियाणा, यूपी, बिहार में भी दवा सप्लाई करता था. अफ्रीकी देशों, नेपाल, व अन्य पड़ोस से आने वाले देशों के कैंसर पीडि़तों को झांसे में ले कर ये लोग कैंसर की नकली दवाएं बेचते थे. उन्हें यह कह कर फांसा जाता था कि कैमिस्ट स्टोर से बहुत सस्ती दवा वह देते हैं.
इन्हें यह कह कर बरगलाया जाता था कि वह मरीज की मदद करने के लिए सस्ती दवा बेचते हैं, एक प्रकार से वह पुण्य कमा रहे हैं. जबकि दौलत के लालची ये नकली दवा के सौदागर उस कैंसर मरीज की मौत का सामान बेचते थे.
इंचार्ज रोहित सिंह बिष्ट
इस के अलावा पुलिस ने द्वारका स्थित वेंकटेश्वर अस्पताल के कीमोथेरेपी इंचार्ज रोहित सिंह बिष्ट को भी गिरफ्तार किया. यह पैसों के लालच में इंजेक्शन की खाली शीशियां नीरज को सप्लाई करता था.
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पुलिस के सामने इस गैंग से जुड़े नएनए लोगों के नाम सामने आते जा रहे थे. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने गुरुग्राम के सेक्टर-44 में स्थित फोर्टिस अस्पताल में कार्यरत जितेंद्र, गुरुग्राम के ही मिलेनियम अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ साजिद और गुरुग्राम के एक नामी अस्पताल में कार्यरत सीनियर स्टाफ नर्स माजिद हसन को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
ये सभी लोग इस गैंग से जुड़े थे. पुलिस ने इन सभी के बैंक खातों के कुल एक करोड़ 20 लाख 79 हजार रुपए फ्रीज करा दिए हैं.
सभी आरोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं.