उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कैंट क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और पौश कालोनी है, जिसे राम प्रसाद बिस्मिल पार्क के नाम से जाना जाता है. अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल का इस कालोनी से गहरा संबंध था. उन्होंने यहीं छिप कर अंग्रेजों से लोहा लिया था.

इस वीआईपी कालोनी में विभिन्न रोगों के कई विख्यात चिकित्सकों के अपने निजी नर्सिंगहोम हैं. इसी पौश कालोनी में मनोरोगियों के पूर्वांचल के जानेमाने चिकित्सक 65 वर्षीय रामशरण दास उर्फ रामशरण श्रीवास्तव रहते हैं. उन का आवास और नर्सिंगहोम दोनों ही बिस्मिल पार्क रोड पर स्थित हैं.

रोज की तरह 16 मई, 2019 की सुबह निर्धारित समय पर डा. रामशरण दास अपने क्लीनिक पर जा कर बैठे और मरीजों को देखने लगे. 4 घंटे मरीजों को देखने के बाद दोपहर करीब 2 बजे वह लंच करने घर जाने के लिए  उठे ही थे कि उन के मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर डिस्पले हो रहे नंबर को ध्यान को देखा.

नंबर किसी अपरिचित का था. उन्होंने काल रिसीव नहीं की. फोन कमीज की जेब में रख कर वह घर की ओर बढ़ गए. उन्होंने सोचा कोई परिचित होगा तो दोबारा काल करेगा. क्लीनिक से निकल कर जैसे ही वह घर की तरफ बढे़ तभी दोबारा फोन की घंटी बजने लगी.

डा. रामशरण दास ने कमीज की जेब से फोन निकाल कर देखा तो उस पर डिस्पले हो रहा नंबर पहले वाला ही था. उन्होंने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी ओर से रोबीली सी आवाज आई, ‘‘क्या मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव से बात कर रहा हूं?’’

‘‘हां, मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव ही बोल रहा हूं.’’ अपना नाम सुन कर वे चौंके. दरअसल, लोग डाक्टर को रामशरण दास के नाम से जानते थे. लेकिन फोन करने वाले ने उन्हें रामशरण श्रीवास्तव कह कर संबोधित किया तो वह चौंके, क्योंकि ये नाम उन के करीबी ही जानते थे. उन्होंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी से चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने अपना परिचय दिया.

‘‘जी, बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं.’’ परिचय जानने के बाद डा. रामशरण ने सम्मानपूर्वक सवाल किया.

‘‘डाक्टर साहब, आप शाम को ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी पर आ कर मुझ से मिल लीजिए. ज्योति सिंह नाम की एक महिला ने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.’’ यह सुन कर डाक्टर दास हतप्रभ रह गए. उन्होंने बुझे मन से पूछा, ‘‘महिला ने मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन मैं तो ऐसी किसी महिला को नहीं जानता जिसे मुझ से कोई शिकायत हो.’’

‘‘शाम को जब आप चौकी पर आएंगे तो पता चल जाएगा.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

एक पल के लिए डा. रामशरण दास को ये बात मजाक लगी. उन्होंने सोचा कि किसी परिचित को उन का मोबाइल नंबर मिल गया  होगा और वह मजाक कर रहा होगा. लेकिन मन ही मन वे परेशान भी थे.

आखिर कौन ऐसी महिला है जिस ने उन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचे और जल्दी ही लंच कर के क्लीनिक लौट आए. उन का घर नर्सिंगहोम परिसर में द्वितीय तल पर था.

उन के मन में बारबार फोन करने वाले व्यक्ति की बातें गूंज रही थीं. क्लीनिक आने के बाद वे कुछ देर वहां बैठे और फिर सच्चाई जानने के लिए शाम 6 बजे के करीब ड्राइवर को ले कर कार से ट्रांसपोर्टनगर चौकी जा पहुंचे.

चौकी पहुंच कर उन्होंने पहरे पर तैनात संतरी से चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलने की बात कही. संतरी ने उन्हें चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलवा दिया. खाकी वरदी पहने शिवप्रकाश सिंह रिवाल्विंग चेयर पर बैठे थे. डा. रामशरण दास ने उन्हें अपना परिचय दिया तो उन्होंने डाक्टर दास का गर्मजोशी से स्वागत किया. डाक्टर सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

चौकी इंचार्ज का यह एटिट्यूड देख कर डा. रामशरण दास को थोड़ा अजीब महसूस हुआ. फिर भी उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया था. उन से थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद शिव प्रकाश उन्हें ले कर विजिटर रूम में चले गए. कमरे में 2 अलगअलग कुरसियां पड़ी थीं. एक कुरसी पर चौकी इंचार्ज खुद बैठ गए और दूसरी पर डाक्टर दास.

शिवप्रकाश ने एक फाइल से शिकायती पत्र निकाला और डाक्टर की ओर बढ़ा दिया. शिकायती पत्र किसी ज्योति सिंह नाम की युवती ने दिया था. उस में लिखा था कि 6 मार्च, 2019 की शाम को वह डाक्टर दास के क्लीनिक पर गई थी. वह अंतिम मरीज थी और क्लीनिक में सन्नाटा था.

रात हो गई थी. डाक्टर दास ने कहा कि रात में अकेली कैसे जाओगी, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा. उन्होंने उसे कार में बैठाया और ट्रांसपोर्टनगर स्थित अमरुतानी (अमरुद का बगीचा) ले गए. जहां उन्होंने उस के साथ रेप किया. चीखने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी. बाद में उसे कुछ रुपए दे कर भगा दिया.

पत्र दिखा कर चौकी इंचार्ज सिंह ने डाक्टर दास से कहा कि यह पत्र स्पीडपोस्ट के जरिए 12 मार्च, 2019 को मिला था, लेकिन चुनावी  व्यस्तता की वजह से वह इस शिकायत की जांच नहीं कर सके.

शिकायती पत्र में महिला द्वारा रेप की बात का जिक्र देख कर डाक्टर दास के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. पत्र पढ़ कर उन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले. उन के चेहरे पर खुद ब खुद परेशानी और डर के मिलेजुले भाव उभर आए.

शिकायती पत्र फाइल में रखते हुए चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह ने डाक्टर दास से कहा, ‘‘रेप के मामलों में बड़ेबड़े बर्बाद हो जाते हैं. इसी शहर के डाक्टर डी.पी. सिंह, विधायक कुलदीप सेंगर या फिर मंत्री गायत्री प्रसाद को देखें, आज तक जेल में सड़ रहे हैं. सोच लो, मैं मदद करने की कोशिश करूंगा.’’

रेप के हश्र की जो तसवीर चौकी इंचार्ज ने डाक्टर दास के सामने पेश की थी, उसे सुन कर वह एक बार फिर पसीना पसीना हो गए. लेकिन उन्हें चौकी इंचार्ज की मदद करने वाली बात खटकी. उस समय डाक्टर दास वापस क्लीनिक लौट आए.

वह अपने क्लीनिक पर लौट तो जरूर आए लेकिन उन का हाल बेहाल था. वे इस सोच में डूबे थे कि उन की किसी ज्योति सिंह से कभी मुलाकात हुई थी या नहीं. आखिर वह उन पर ऐसा घिनौना आरोप क्यों लगा रही है. फिर उन्होंने दूसरे नजरिए से सोचना शुरू कर दिया. यानी कहीं उन्हें फंसाने के लिए उन के विरुद्ध कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही.

उन्होंने जब से शिकायती पत्र पढ़ा था, परेशान होते हुए भी इस बात को किसी से बता नहीं पा रहे थे. वजह यही कि लोग सुन कर उन के बारे में क्या सोचेंगे. बात मीडिया तक पहुंच गई तो उन की इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी.

काफी सोचविचार के बाद डाक्टर दास को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने इस बारे में अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया. बात सुन कर पत्नी भी परेशान हो गईं. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि सोचने से कुछ नहीं होगा. इस मुसीबत से निकलने के लिए उन्हें कोई कारगर रास्ता तलाश करना होगा.

उसी रात 10 बजे के करीब उन के मोबाइल पर एक फोन और आया. डिसप्ले नंबर देख कर उन का चेहरा खुशी से खिल उठा. वह नंबर एक परिचित का था, जो शहर के न्यूज चैनल सिटी वन का पत्रकार था. उस का नाम प्रणव त्रिपाठी था. उसे डाक्टर दास बेटे की तरह मानते थे और स्नेह भी करते थे.

डा. रामशरण दास ने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘कैसे हो बेटा?’’

‘‘फर्स्टक्लास डाक्टर अंकल,’’ उत्तर दे कर प्रणव ने उन से पूछा, ‘‘और आप कैसे हैं अंकल?’’

‘‘क्या बताऊं बेटा, ठीक भी हूं और नहीं भी.’’ डाक्टर दास ने नर्वस हो कर कहा.

‘‘बात क्या है, अंकल. ऐसी बात तो आप ने कभी नहीं की. मेरे लायक सेवा हो बताइए, मैं आप की पूरी मदद करूंगा.’’

‘‘नहीं बेटा, तुम ने मेरे लिए इतना सोचा, यही मेरे लिए काफी है. आज के जमाने में कोई कहां दूसरे के लिए सोचता है. एक बात है, जिस में तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’ सकुचाते हुए डाक्टर दास बोेले.

‘‘हां…हां… अंकल बताइए. मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘तुम तो न्यूज चैनल के रिपोर्टर हो और पुलिस विभाग में तुम्हारी अच्छी पकड़ भी है.’’

‘‘हां, अंकल है, पुलिस अधिकारियों से मेरे अच्छे संबंध हैं. पर बात क्या है?’’

इस के बाद डा. रामशरण दास ने प्रणव त्रिपाठी को पूरी बात बता दी. उन की बात सुन कर उस ने मदद करने की हामी भी भर दी. प्रणव से बात करने के बाद डाक्टर दास को थोड़ी शांति मिली. मन का बोझ कुछ कम हो गया. उस रात उन्होंने आराम की भरपूर नींद ली.

अगली सुबह वह उठे तो खुद को तरोताजा महसूस कर रहे थे. दिन भर वे अपने क्लीनिक में व्यस्त रहे. फिर रात को वे खा पी कर सो गए. रात एक बजे ट्रांसपोर्ट नगर के चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह अकेले ही डा. दास के रामप्रसाद बिस्मिल पार्क स्थित आवास पर पहुंच गए. उस समय डा. दास गहरी नींद में थे.

डाक्टर दास के आवास पर पहुंच कर शिवप्रकाश ने डोरबेल बजाई तो उन की नींद खुल गई. उन्होंने दरवाजा खोला तो चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को देख कर अवाक रह गए. उन्होंने उसे ड्राइंगरूम में ले जा कर बैठा दिया और खुद कपड़े चेंज कर के उस के पास जा बैठे.

करीब 2 घंटे तक शिवप्रकाश सिंह वहीं बैठा रहा और रेप के शिकायत वाले लेटर को मुद्दा बना कर उन से पूछताछ करता रहा. बाद में उस ने कहा, ‘‘देखो डाक्टर, शिकायत करने वाली लड़की ज्योति और मुझे 5-5 लाख रुपए दे दो, वरना जेल भेज दूंगा. उस के बाद क्या होगा तुम समझना.’’

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की बात और आवाज में बदतमीजी और रुआब आ गया था. उस की धमकी सुन कर डाक्टर दास बुरी तरह परेशान हो गए. कोई रास्ता न देख उन्होंने शिवप्रकाश से अगले दिन दोपहर तक का समय मांग लिया.

चौकी इंचार्ज के वहां से जाने के बाद डाक्टर दास ने थोड़ी राहत की सांस ली. वह समझ गए कि ये पूरी साजिश पैसों के लिए रची गई है. इस खेल में उन का कोई परिचित भी है, जो उन से संबंधित पूरी जानकारी चौकी इंचार्ज को दे रहा है. ऐसा कौन है यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. यह बीती 17 मई की बात है.

खैर, अगले दिन 18 मई, 2019 की दोपहर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह डाक्टर रामशरण दास के क्लीनिक पर पहुंच गए. उस समय डाक्टर दास मरीजों की जांच करने में व्यस्त थे. क्लीनिक पहुंचते ही शिवप्रकाश सिंह ने कंपाउंडर से अपने आने की सूचना उन्हें भेजवा दी.

चौकी इंचार्ज के आने की सूचना मिलते ही डाक्टर साहब परेशान हो गए. वे समझ गए कि बिना पैसे लिए उस से पीछा छूटने वाला नहीं है. उन्होंने सफेद रंग के बैग में 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों के बंडल बना कर 8 लाख रुपए जमा कर लिए थे. उन्होंने कंपाउंडर से कह कर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को अपने चैंबर मे बुलवा लिया.

कंपाउंडर की सूचना मिलते ही शिवप्रकाश डा. दास के चैंबर में जा पहुंचा. चैंबर में डा. दास अकेले थे. शिवप्रकाश को देखते ही उन का खून खौल उठा, लेकिन वे अपने गुस्से को पी गए. वे उसे एक पल के लिए भी बरदास्त नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रुपए से भरा बैग उसे दे दिया.

रुपए मिलते ही चौकी इंचार्ज के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई. जैसे ही रुपए से भरा बैग ले कर चौकी इंचार्ज क्लीनिक से जाने लगा, वैसे ही डा. दास ने चौकी इंचार्ज के सामने उस महिला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, जिस ने उन पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. रामशरण दास की बात सुन कर चौकी इंचार्ज शिवप्रसाद नहीं कुछ बोला और वहां से रुपयों से भरा बैग ले कर चला गया.

शिवप्रकाश सिंह के क्लीनिक से जाने के बाद रामशरण दास पत्नी को साथ ले कर सीधे इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता के घर जा पहुंचे और अपने साथ हुई शरमनाक घटना के बारे में उन्हें विस्तार से बता कर उन से मदद की मांग की.

बात काफी गंभीर थी. आईएमए के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता ने सचिव राजेश गुप्ता को तुरंत अपने आवास पर बुलाया. साथ ही संगठन के सभी पदाधिकारियों को भी बुलवा लिया. आईएमए के पदाधिकारी डाक्टर दास को ले कर एसएसपी के औफिस गए. चूंकि उस दिन चुनाव था, इसलिए डाक्टर सुनील गुप्ता की एसएसपी से मुलाकात नहीं हो पाई.

डा. दास को ले कर सभी पदाधिकारी शिकायत करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीआरओ द्वारिका तिवारी से मिलने गोरखनाथ मंदिर जा पहुंचे. इन लोगों ने पीआरओ द्वारिका प्रसाद से मुलाकात कर के उन्हें लिखित शिकायत दे दी.

पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.

मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.

एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.

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                       आरोपी पत्रकार प्रणव और एसआई शिवप्रकाश सिंह 

ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.

वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.

एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.

राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.

खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.

30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.

शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.

शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.

यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.

शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.

चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.

शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’

प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’

‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’

‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’

इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.

इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.

डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.

उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.

प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.

दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.

इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.

इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.

व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.

बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.

इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे. ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.

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