संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) एक मंझा हुआ निर्माता, निर्देशक और संगीतकार है. उस ने एक दरजन से अधिक फिल्में बनाई हैं या उन में निर्देशक की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उस की पिछले दिनों नेटफ्लिक्स (Netflix) पर पहली (Web Series) वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ (Heeramandi) प्रदर्शित हुई.

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, मनीषा कोइराला, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शर्मिन सहगल, संजीदा शेख, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन, फरदीन खान, ताहा शाह बदुशा

निर्देशक: संजय लीला भंसाली

संवाद: दिव्य निधि

कहानी: मोइन बेग

छायांकन: सुदीप चटर्जी

ओटीटी: नेटफ्लिक्स

एपिसोड: 8

8 एपिसोड में आई यह वेब सीरीज एक दरजन से अधिक फिल्मी कलाकारों और 2 दरजन से अधिक सहयोगी पात्रों से भरी हुई है. इस कारण कई जगह वेब सीरीज पर भटकाव देखने को मिला है.

पहले एपिसोड से ले कर उस के  क्लाईमैक्स तक पूरी वेब सीरीज महिला प्रधान रही है. इस में तवायफों की लाइफस्टाइल दिखाई गई है. यह वेब सीरीज मुंबई के भायखला में रहने वाले मोइन बेग (Moin Beg) की किताब ‘हीरामंडी’ से प्रभावित हो कर बनाई गई है.

किताब में आजादी से पूर्व वेश्यालयों में रहने वाली महिलाओं के अंगरेजों के खिलाफ बगावत के पैटर्न पर उसे बताया गया है. आजादी के बाद हुए विभाजन में मोइन बेग का परिवार लाहौर में जा कर बस गया है. बहरहाल, भंसाली ने डिसक्लेमर में यह बता दिया है कि यह फिक्शन हो सकता है.

यह वेब सीरीज कई भाषाओं में प्रदर्शित की गई है. लेकिन, भंसाली ने इसे मुसलिम प्रधान बनाने की भरसक कोशिश की है. जबकि वास्तविकता में अखंड भारत में हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई सभी रहते थे. वेब सीरीज अच्छे संगीत, संवाद और अभिनय की कमी से जूझती दिखी.

ओटीटी में अपने साथसाथ संजय लीला भंसाली ने अपनी भांजी की बौलीवुड में लौंचिंग की है. इस के अलावा भंसाली ने बौलीवुड में हाशिए पर चल रहे 3 कलाकारों शेखर सुमन, मनीषा कोइराला (Manisha Koirala) और फरीदा जलाल को मौका दिया है.

पूरी वेब सीरीज काफी धीमी है, इस कारण वह दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सकी. ओटीटी का दर्शक फूहड़ संवाद और अश्लीलता देखने का आदी हो चुका है. इन्हीं कमजोरियों से भरी यह वेब सीरीज ओटीटी के नियमित दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई.

एपिसोड-1

नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित हीरामंडी वेब सीरीज ख्वाबगाह और शाही महल के आसपास केंद्रित है. इस की शुरुआत सोनाक्षी सिन्हा से होती है. इस में उन्हें रिहाना आपा के नाम से जाना जाता है. सोनाक्षी सिन्हा वेब सीरीज में उर्दू के भारी शब्दों के उच्चारण में कमजोर साबित हुई. वह मल्लिका जान का बेटा बेच देती है. यह बेटा नवाब जुल्फिकार और मल्लिका जान का होता है. इस बात से नाराज मल्लिका जान विरोध करते हुए रिहाना आपा के पास जाती है.

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इस दृश्य के बाद निर्मातानिर्देशक वेब सीरीज को अचानक 25 साल आगे ले जाते हैं. जहां मल्लिका जान और जुल्फिकार का पात्र बदल जाता है. इस कारण ओटीटी का दर्शक कुछ देर के लिए भ्रम की स्थिति में रहता है. पहले एपिसोड में हुए इस धोखे से दर्शकों को निराशा हाथ लगती है. मल्लिका जान का अभिनय मनीषा कोइराला और जुल्फिकार का किरदार शेखर सुमन निभाने लगते हैं.

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संजय लीला भंसाली ने पहले ही एपिसोड में पूरी वेब सीरीज के लगभग सारे पात्र दिखा दिए हैं. इस में मल्लिका की बेटी आलमजेब है. यह भूमिका संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सेगल ने निभाई है. मल्लिका जान की दूसरी बेटी बिबो जान है. इस की भूमिका अदिति राव हैदरी कर रही है.

वेब सीरीज में मल्लिका की बहन वहीदा बनी है, जिस के रोल में संजीदा शेख है. ख्वाबगाह में काम करने वाली तवायफ लज्जो है, जिस का किरदार रिचा चड्ढा ने निभाया है. उस के प्रेमी के रूप में जोरावर है, यह रोल आद्यान सुमन ने किया है. बिबो जान के प्रेमी वली साहब फरीदन खान बने हैं. आलमजेब के प्रेमी ताजदार, ताजदार की मां कुदेसिया बेगम की भूमिका में फरीदा जलाल हैं.

इस के अलावा आधा दरजन अन्य कलाकारों को एकएक कर के संजय लीला भंसाली ने ओटीटी के दर्शकों के सामने परोस दिया है. धीमा संगीत, डायलौग की कमी, थ्रिलर और सस्पेंस की कमी से जूझ रही वेब सीरीज का पहला एपिसोड काफी लंबा बना दिया गया है. इस कारण ओटीटी के दर्शकों को दूसरे एपिसोड में भी वह आगे ले जा पाने में कामयाब होती नहीं नजर आई.

कई जगहों पर स्टोरी को कनेक्ट करने में संजय लीला भंसाली की चूक दिखाई दी. ब्रिटिश एसपी कार्टराइट यह भूमिका जासन शाह ने निभाई है, उस ने मल्लिका जान के जलसे के आमंत्रण को ठुकराने से नाराज हो कर उस के साथ समलैंगिक संबंध भी बनाए. उस्ताद की भूमिका में इंद्रेश मलिक है.

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डायरेक्टर संजय लीला भंसाली दूसरे एपिसोड में एक बार फिर सोनाक्षी सिन्हा यानी रिहाना आपा के पास पहुंचता है. यह पहले एपिसोड में अचानक गायब होती है. उसे मनीषा कोइराला जो पहले एपिसोड में मल्लिका होती है, वह उस का तकिए से मुंह दबा कर कत्ल कर देती है.

उस के बाद वह जुल्फिकार की मदद से रिहाना आपा को फांसी के फंदे पर लटका देती है. ऐसा करते हुए रिहाना आपा की बेटी खिड़की से देख लेती है. वह बच्ची कहां भेजी गई, यह पहले और दूसरे एपिसोड में साफ नहीं होता.

इधर, नवाब जुल्फिकार ब्रिटिश पुलिस से सौदा कर के रिहाना आपा के खिलाफ मिले सबूतों की फाइल को खरीद लेता है. शाही महल से ख्वाहगाह में रिहाना आपा की बरसी से शुरू हुई वेब सीरीज ताजदार के अधूरे प्यार जो हीरामंडी के आलमजेब से होता है, उस को दिखाया गया है.

‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘गोलियों की रासलीला राम लीला’, ‘सांवरिया’ जैसी रोमांटिक फिल्में बना चुके भंसाली ताजदार और आलमजेब के प्यार को प्रदर्शित करने में बेहद नाकाम साबित हुआ है. मल्लिका की बहन वहीदा की बेटी का रोल जबरिया दूसरे वेब सीरीज में डाला गया. इसी तरह नवाब के बेटे जोरावर और लज्जो के प्यार की तड़प भी संजय लीला भंसाली प्रदर्शित करने में नाकाम साबित हुआ है.

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लज्जो नवाब के बेटे की शादी से नाराज रहती है. जोरावर अली खान की शादी में लज्जो को मुजरे के लिए बुलाया जाता है. यहां उस को गाल पर तमाचा मार देता है. तब वहां उस के पिता के सामने मल्लिका जान बताती है कि वह उस का बेटा है. यह एक बेहतरीन सीन बनाया जा सकता था. लेकिन, संगीत, संवाद की कमी और खासतौर पर कैमरे के मूवमेंट की कमी यहां साफ दिखाई दी.

दूसरे एपिसोड का यह सर्वाधिक चर्चित पल था, जिस को भंसाली ने बहुत हलके में बना दिया. मुजरे के बाद लज्जो की मौत हो जाती है. उस ने कब जहर पिया, यह भंसाली दिखा ही नहीं पाए. यहां सरप्राइज बोलें या फिर दर्शकों के साथ फिर धोखा करने वाली बात भंसाली ने की है. वह सोनाक्षी सिन्हा के दूसरे रोल के रूप में फरीदन की एंट्री कर देता है, जो रिहाना आपा की बेटी होती है.

एपिसोड-3

वेब सीरीज का तीसरा एपिसोड जुल्फिकार और मल्लिका के प्रेम से शुरू होता है. उस की बहन वहीदा उस से ख्वाहगाह चाहिए होता है, जिसे रिहाना आपा को नवाब सामी ने उसे दिया था. जिस के कब्जे को ले कर उस की पत्नी और बेटे कोर्ट में केस लड़ते हैं.

संजय लीला भंसाली जो सेट बनाने के लिए काफी चर्चित है, वह यहां पर कोर्ट रूम बनाने में चूक गया. यहां की लोकेशन को भी उस ने झूमर लगा कर कोठा बनाने की कोशिश कर दी. वेब सीरीज में कई जगह सस्पेंस को सही तरीके से प्रस्तुत करने में वह कामयाब नहीं हो सका.

संजय लीला भंसाली ने सेट, ड्रैस, कौस्ट्यूम और मेकअप में भारी खर्च किया. लेकिन वह स्टोरी कंटेंट को मजबूत बनाने में सफल नहीं हो सका.

इस एपिसोड में संजय लीला भंसाली जैसा चर्चित निर्देशक टीवी सीरियल जैसा नजर आया. उस ने मल्लिका, फरीदन, आलस्टेयर कार्टराइज, उस्ताद, आलमजेब, ताजदार और जुल्फिकार की आड़ में एकता कपूर के सीरियल जैसा अहसास कराया. यह एपिसोड ओटीटी पर प्रदर्शित होने वाली वेब सीरीज का अहसास ही नहीं करा सका.

तीसरे एपिसोड में मल्लिका की फरीदन से रंजिश, मल्लिका और कार्टराइट की दुश्मनी के किस्से काफी बिखरे हुए दिखाए हैं. ओटीटी का दर्शक फूहड़ता देखने का आदी हो चुका है, लेकिन कोठा कल्चर दिखाने में संजय लीला भंसाली कामयाब नहीं हो सका. यह दिखाने के नाम पर सिर्फ डबल मीनिंग शब्द परोस कर दर्शकों को काफी भटकाया.

मौजूदा दौर में फूहड़ता आम फिल्मों में देखने मिलती है. यह बात भूल कर भंसाली ने थिएटर वाली सोच के साथ बनाई वेब सीरीज को ओटीटी पर परोस दिया. तीसरा एपिसोड पुरुष किरदारों से दूर सिर्फ महिला किरदारों के आसपास ही फोकस रहा.

एपिसोड-4

वेब सीरीज का चौथा एपिसोड वली से शुरू होता है, जो बिबो जान के मुजरा बंद करने का ऐलान करने के बाद फरीदन के पास जाना शुरू कर देता है. फरीदन के ख्वाबगाह के सामने मल्लिका का शाही महल होता है. यहां अकसर मुजरा होता है, उस के बावजूद संगीत की वेब सीरीज में काफी कमी नजर आई.

वेब सीरीज में मल्लिका के बग्घी चलाने वाले इकबाल और उस के घर में खाना बनाने वाले फत्तो की बेटी सायमा के बीच प्रेम प्रसंग चलता है. वह उस को वाजिद अली को बेचने के लिए पेशगी ले लेती है, जिस को चुकाने के लिए इकबाल जुआ खेलने लग जाता है. उसे ब्रिटिश पुलिस एक रेड में पकड़ लेती है. उस को छुड़ाने के लिए मल्लिका से उस की बेटी आलमजेब सौदा करती है.

वहीं एसपी कार्टराइट उसे मल्लिका जान के खिलाफ गवाही देने के लिए बोलता है. दूसरी तरफ वहीदा की बेटी शमा के पास आने वाले नवाब उस के मुरीद हो जाते हैं. इधर, बिबो जान की आड़ में संजय लीला भंसाली ने देशभक्ति को परोसने की बहुत कमजोर कड़ी पेश की है.

पूरी वेब सीरीज के हर एपिसोड में अंगरेज तो दिखे लेकिन उन के खिलाफ होने वाली बगावत की कहानी दिखाई नहीं दी. इस के अलावा अंगरेजों के जुल्मों को संजय लीला भंसाली पेश नहीं कर सका. बिबो जान अंगरेजों के खिलाफ मुखबिरी करती है. सिर्फ यह बात पेश कर के हीरामंडी की लड़ाई को साबित करने का प्रयास किया गया.

बिबो जान ब्रिटिश पुलिस के आईजी एंडरसन को ट्रैप कर लेती है. वह उस के जरिए मुखबिरी करने का काम करती है. चौथे एपिसोड में आलमजेब, एंडरसन, सायमा, कार्टराइट, मल्लिका, फरीदन, बिबो जान के आसपास कई हिस्सों में बिखरी वेब सीरीज की कहानी दर्शकों को भटकाने का काम करती है.

एपिसोड- 5

वेब सीरीज के पांचवें एपिसोड में मल्लिका जान का शाही महल सूना हो जाता है. इधर, ख्वाबगाह में फरीदन के जरिए अंगरेज और नवाब एकजुट होने लगते हैं. ऐसा करने के पहले आलमजेब को ताजदार के पास फरीदन भेज देती है. उसे यह पता होता है कि शाही महल के भीतर क्या चल रहा है.

आलमजेब को अपने यहां पा कर ताजदार उसे अपने दूसरे ठिकाने पर ले जाता है. उधर, मल्लिका की बहन वहीदा उस फाइल का राज फरीदन से उजागर कर देती है, जो उस ने जमीन में दफना कर सुरक्षित रखा था. उस के बदले में वह फरीदन से सौदा करती है. फरीदन चाहती है कि वह लाहौर के एसपी कार्टराइट को सौंप कर उसे गिरफ्तार करा दे.

वेब सीरीज कई जगह भटकती है, उस में मल्लिका ईद के दिन नवाब अशफाक के बेटे ताजदार की बहू, जो हीरामंडी की रानी मल्लिका की बेटी आलमजेब है, बता देती है. आलमजेब और ताजदार के रिश्तों के चलते अंगरेजों के खिलाफ चलाया जा रहा स्वदेशी आंदोलन प्रभावित होने लगता है. वहीं नवाब जुल्फिकार फरीदन के खिलाफ सबूत जुटा कर मल्लिका को देती है, जिसे ले कर वह फरीदन के पास जाती है.

इस के बाद फरीदन वह फाइल कार्टराइट को नहीं देती है. मल्लिका की बग्घी चलाने वाले इकबाल को कार्टराइट छोड़ देता है. आईजी के कहने पर हथियारों का एक जखीरा रखा जाता है, जिस को आंदोलनकारी उठा ले जाते हैं.

यह सब कुछ उस दिन होता है, जिस दिन नवाब अशफाक के यहां आयोजित पार्टी में सारे अंगरेज अफसर जुटे रहते हैं. यह बात उस पार्टी में पहुंची फरीदन को पता चल जाती है. जानकारी को वह कार्टराइज के जरिए फरीदन लीक कर देती है.

जब पुलिस रेड मारती है, तब उसे छिपाते हुए आलमजेब पकड़ी जाती है. उसे पता होता है कि ताजदार अंगरेजों के खिलाफ आंदोलन में बहुत बड़े नेटवर्क में काम करता है. इस के बावजूद वह इल्जाम अपने सिर पर ले लेती है.

वेब सीरीज के इस एपिसोड में कई जगह सस्पेंस बनाया जा सकता था. इस के अलावा यहां कई जगह अच्छे डायलौग की कमी भी दर्शकों को खली. वेब सीरीज में कोई तड़का मसाला दर्शकों को नहीं मिला.

एपिसोड-6 और 7

वेब सीरीज के 6वें-7वें एपिसोड में आलमजेब को छुड़ाने के लिए मल्लिका पहुंचती है. वह कार्टराइट के कार्यालय में जा कर प्रस्ताव रखती है. वह उस की टेबल पर सो जाती है. फिर अंगरेज मिल कर मल्लिका के साथ गैंगरेप करते हैं.

यहां संजय लीला भंसाली की कमजोरी साफ दिखती है. वह दर्शकों को रोमांच और कामुकता वाले भाव ही पैदा नहीं कर सका. अलबत्ता पूरी वेब सीरीज में महंगे लहंगे और उर्दू के शब्दों में तवायफ और जान जैसे शब्दों को भारी मात्रा में परोसा गया है. फिल्म परिवार के साथ देखी जा सकती है.

लेकिन उस के साइड इफेक्ट के लिए भी परिवार को तैयार रहना चाहिए क्योंकि वेब सीरीज देखने के बाद हो सकता है कि आप का बच्चा आप से बोले, ”मल्लिका जान, आपा को समझाइए वह तवायफों की रवायतें तोड़ रही हैं.’’

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कल तक मम्मी बोलने वाला बच्चा आप से अम्मीजान, फूफी और आपा न बोलने लग जाए. इसलिए वेब सीरीज को पारिवारिक नहीं कहा जा सकता. वेब सीरीज में महिलाओं के प्रति बहुत ज्यादा घृणा का भाव पैदा किया गया है. कई जगह महिलाओं को सिर्फ शारीरिक उपभोग वाला सामान ही दर्शाया गया है.

जब फरीदन को पता चलता है कि एसपी कार्टराइट ने अपने 4 साथियों की मदद से गैंगरेप किया है तो वह मल्लिका का साथ देने लगती है. इधर, ताजदार और आलमजेब का निकाह करने को उस की दादी कुदेसिया तैयार हो जाती है.

वहीं इस बात से नाराज उस का पिता अशफाक बलूच एसपी कार्टराइट से मुखबिरी कर देता है. वह बता देता है कि उस का बेटा अंगरेजों के खिलाफ चल रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है. जिस कारण उसे शादी वाले दिन पुलिस आ कर उठा ले जाती है. वहां थर्ड डिग्री पूछताछ में उस की मौत हो जाती है.

एपिसोड-8

वेब सीरीज का अंतिम एपिसोड बिबोजान और आलमजेब से शुरू होता है. बिबोजान अंगरेजों की पिटाई में मारे गए ताजदार की कब्र में आलमजेब को ले जाती है.

इधर अंगरेज बताते हैं कि ताजदार की मौत के पीछे मल्लिका जान का हाथ है. वह नवाबों के बेटे को बिगाडऩे के लिए ब्रिटिश के खिलाफ आंदोलन करने वाले लोगों को पैसा मुहैया करा रही है.

उधर, फरीदन और मल्लिका के बीच शाही महल पर कब्जा करने के लिए चल रही जंग का डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने बेहद सामान्य तरीके से पटाक्षेप करा दिया.

मल्लिका शाही महल की चाबी फरीदन को सौंप देती है. लेकिन वह लेने के लिए तैयार नहीं होती. वहीं बिबो जान शाही महल में अंगरेजों के खिलाफ आंदोलन करने वाले सत्याग्रहियों को छिपाने के लिए ले कर आती है, जिसे मल्लिका देख लेती है और उसे छिपाने नहीं खुल कर मदद करने का ऐलान कर देती है.

दूसरी तरफ फरीदन के पास जाने वाले वली साहब अंगरेजों के खिलाफ बगावत के लिए तैयार नहीं होते. उधर अंगरेजों के खिलाफ लडऩे और बोलने से बचने के लिए लाहौर समेत अन्य प्रांतों के नवाब हीरामंडी से किनारा कर लेते हैं. इस कारण हीरामंडी में आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक होती है.

संजय लीला भंसाली इस पीड़ा को दर्शकों को समझाने में नाकाम साबित हुए. इतना ही नहीं अंगरेजों की साजिश का भी नहीं बता सका. अलबत्ता आईजी को हनीट्रैप करने वाली बिबो जान उन्हें गोली मार देती है. जिस के बाद उसे अंगरेज गिरफ्तार कर लेते हैं. उसे अंगरेज गोली मारने की सजा देते हैं.

वेब सीरीज में अंगरेजों की यातनाओं से संबंधित किस्सों की कमी दर्शकों को आगे खलेगी. वेब सीरीज में यह साफ नहीं हो सका कि आलमजेब जो गर्भवती हुई, उस का क्या हुआ. हीरामंडी में आगे क्या हुआ.

आलमजेब के जरिए डायरेक्टर भंसाली ने अचानक वेब सीरीज के विलेन एसपी कार्टराइट की हत्या की अचानक योजना बना दी. ओटीटी पर मारधाड़, सैक्स, फूहड़ डायलौग के बजाय अंतिम पटाक्षेप आजादी के नाम पर बने गीत से होती है, जिस से यह तो साफ है कि दूसरा सीजन आएगा, लेकिन उसे ओटीटी के नियमित दर्शक शायद नहीं मिलेंगे.

संजय लीला भंसाली

पद्मश्री सम्मानित 61 वर्षीय संजय लीला भंसाली बौलीवुड का जाना माना डायरेक्टर है. साल 1996 में ‘खामोशी’ फिल्म के जरिए बौलीवुड में उस की एंट्री हुई थी. भंसाली का नाम फिल्म डायरेक्टर के अलावा अच्छे संगीतकार के लिए भी लिया जाता है. हालांकि इस से पहले विधु विनोद चोपड़ा के साथ सहायक निर्देशक की भूमिका में 1989 में प्रदर्शित फिल्म ‘परिंदा’ में काम किया था.

इस के बाद ‘1942 ए लव स्टोरी’ फिल्म लिख कर उस में असिस्टेंट कोरियाग्राफर का महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. इस फिल्म ने गीत के कारण काफी चर्चा बटोरी थी. यह फिल्म 1994 में प्रदर्शित हुई थी. उस के भंसाली प्रोडक्शन जिस में बौलीवुड का हर छोटाबड़ा कलाकर उन के साथ काम करने का मौका चाहता है.

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भंसाली को बौलीवुड में तब बहुत ज्यादा पहचान मिली, जब उस ने सलमान खान और ऐशवर्या राय अभिनीत फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ बनाई. यह फिल्म 1999 में बनी थी, जिस में उस ने हर वर्ग के दर्शकों का दिल जीता था.

इसी फिल्म के बाद संजय लीला भंसाली भारत के बौलीवुड का चमकता सितारा बन गया. उस ने नैशनल फिल्म अवार्ड के अलावा एक दरजन से अधिक फिल्म संगीत के क्षेत्र से जुड़े अवार्ड हासिल किए.

भंसाली का परिवार गुजरात से महाराष्ट्र में आ कर रहने लगा था. संजय लीला भंसाली जैन समाज से है और वह अपनी मां को बेहद प्यार करता है. इस कारण उस ने अपनी मां का नाम लीला अपने नाम और सरनेम के बीच रखना शुरू किया. भंसाली ने महिलाओं की भावनाओं पर केंद्रित कई फिल्में बनाई हैं. संजय लीला भंसाली ने कोठा कल्चर पर केंद्रित ‘हीरामंडी’ पहली फिल्म नहीं बनाई है.

इस से पहले वह फेमस उपन्यास ‘देवदास’ पर भी वर्ष 2002 में फिल्म बना चुका है. इस फिल्म से भंसाली को विश्व पटल पर ख्याति मिली थी. खासतौर पर कोठा कल्चर को ले कर कई बौलीवुड डायरेक्टरों ने फिल्में बनाई हैं, जिस में भारत की सब से चर्चित मूवी ‘पाकीजा’ रही है. उस के गीत और उस में किए गए प्रयोगों की मिसाल को अब तक तोडऩे में कोई कामयाब नहीं हो सका है. लेकिन कोठा कल्चर पर सर्वाधिक फिल्में बनाने का रिकौर्ड अब तक संजय लीला भंसाली के पास ही है.

उस ने ‘देवदास’ के बाद ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ भी बनाई है. ये दोनों फिल्में सिनेमाघरों, मल्टीप्लेक्स में चर्चित हुई थी. अब कोठा कल्चर पर ही भंसाली की ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ आई है.

ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित और काल्पनिक कहानी के जरिए संजय लीला भंसाली ‘पद्मावत’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म बना कर कई बार विवादों में आ चुका है. इन दोनों फिल्मों को ले कर उसे अलगअलग सामाजिक संगठनों का भारी विरोध भी झेलना पड़ा था.

शर्मिन सहगल

नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ में एक पात्र है आलमजेब, वह फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सहगल है. यह नाम कोई बड़ा नहीं है, जिस कारण इसे नेपोटिज्म यानी भाई भतीजावाद कहा जा सकता है. जबकि इसी वेब सीरीज में आलमजेब की सहेली सायमा का चेहरा और उस का अभिनय अच्छा होने के बावजूद वेब सीरीज में उसे अचानक गायब किया गया.

संजय लीला भंसाली नेपोटिज्म को ले कर पहले भी सुर्खियों में आ चुका है. उस की बहन बेला भंसाली सहगल को निर्देशक बनाने के लिए शिरीन फरहाद की फिल्म की स्क्रिप्ट संजय लीला भंसाली ने लिखी थी. यह फिल्म 2012 में प्रदर्शित हुई थी. यह फिल्म शर्लिन सहगल को डेब्यू करने के लिए ही बनाई थी.

शर्मिन सहगल का जन्म सितंबर, 1995 में मुंबई में हुआ है. उस की शादी अमन मेहता के साथ 2023 में हुई थी. बोस्टन यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने वाला अमन मेहता टोरेंट फार्मास्युटिक्ल्स कंपनी में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है. उस के पिता सुधीर मेहता और चाचा समीर मेहता हैं.

इस कंपनी को ब्लूमबर्ग मीडिया हाउस ने 2024 में 53 हजार 800 करोड़ रुपए की कंपनी लांभाश बताया था. पिता दीपक सहगल और मां बेला सहगल हैं.

शर्मिन सहगल अपने मामा की एक अन्य 2015 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में भी उन का साथ दे चुकी है. नेपोटिज्म पर घिरने पर ‘हीरामंडी’ फिल्म में ब्रिटिश एसपी एलेक्स कार्टराइट की भूमिका निभाने वाले कलाकार जेसन शाह बचाव करता नजर आया, जबकि शर्मिन सहगल की बायोपिक से वह एक्सपोज हो रही है.

अदिति राव हैदरी

वेब सीरीज में तीसरी महत्त्वपूर्ण भूमिका फिल्म अभिनेत्री अदिति राव हैदरी ने निभाई है. वह बिबो जान का किरदार निभा रही है. तेलंगाना के हैदराबाद में जन्मी अदिति राव भरत नाट्यम की नृत्यांगना भी है. इस कारण उसे ‘हीरामंडी’ में भंसाली प्रोडक्शन ने अवसर दिया है. पिता एहसान हैदरी और मां विद्या राव हैं.

दोनों मातापिता ठुमरी और दादरा शैलियों के लिए काफी लोकप्रिय हैं. पिता का निधन 2013 में हुआ था. पिता शाही वंश से ताल्लुकात रखते थे. उस का जन्म 28 अक्टूबर, 1986 को हुआ है. इस से पहले अदिति राव हैदरी ने 2016 में प्रदर्शित ‘वजीर’ और ‘मर्डर’ फिल्म में भूमिका निभाई है.

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संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ फिल्म में भी वह काम कर चुकी है. जिस कारण दोनों को काम करने में कोई कठिनाई सामने नहीं आई. इस के अलावा ‘हीरामंडी’ में ठुमरी, दादरा प्रस्तुति देने में उसे कोई दिक्कत भी नहीं हुई.

उस की ‘हीरामंडी’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद उस का किरदार काफी सीमित रखा गया. अदिति राव हैदरी की पहले सत्यदीप मिश्रा के साथ शादी हुई थी. शादी 21 साल की उम्र में हुई थी. पति सिविल सर्वेंट और पेशे से वकील भी था. हालांकि यह रिश्ता लंबे समय तक बरकरार नहीं रह सका. अब उस की दक्षिण भारत के कलाकार सिद्धार्थ के साथ रिश्तों की खबर चल रही है. वह अदिति राव हैदरी से उम्र में 7 साल बड़ा भी है.

मनीषा कोइराला

संजय लीला भंसाली के होम प्रोडक्शन में बनी ‘हीरामंडी’ वेब सीरीज में मुख्य किरदार नेपाली मूल की अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने निभाई है. वह इस वेब सीरीज में मल्लिका जान का रोल निभा रही है. वह तवायफों के गिरोह की मुखिया होती है. मनीषा कोइराला अभिनय के क्षेत्र में काफी रसूख रखती है. लेकिन कैंसर के कारण वह कई सालों से बौलीवुड से दूर हो गई थी.

इतना ही नहीं, उस ने बीच में अध्यात्म का रास्ता भी अपना लिया था. मनीषा कोइराला के पिता प्रकाश कोइराला हैं जोकि नेपाली राजनीति में सक्रिय थे. उस के दादा नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. कोइराला काफी चर्चित रहे थे. मनीषा का जन्म 16 अगस्त, 1970 को हुआ था.

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पारिवारिक बैकग्राउंड मजबूत होने के बावजूद मनीषा कोइराला ने अपनी पहचान कलाकार के रूप में खुद बनाई है. मनीषा की शादी नेपाली कारोबारी सम्राट दहल के साथ 2010 में हुई थी. हालांकि यह रिश्ता सिर्फ 2 साल रह सका और 2012 में तलाक हो गया.

मनीषा कोइराला की पहली फिल्म सुभाष घई के बैनर तले बनी ‘सौदागर’ थी. यह फिल्म 1991 में बनी थी. इस से पहले कोइराला ने 1989 में नेपाली फिल्म इंडस्ट्री में ‘फेरी भेटौला’ में काम किया था. मनीषा कोइराला 2020 के बाद बौलीवुड में दिखाई नहीं दे रही थी. वह 50 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी है. इस के अलावा 2 दरजन से अधिक फिल्मों में उन का अपरोक्ष रूप से सहयोग भी रहा है.

संजय लीला भंसाली ने मनीषा कोइराला को ओटीटी के जरिए लांच करने का प्रयास किया. उस के साथ एसपी औफिस में गैंगरेप भी फिल्माया गया. अब तक ऐसे दृश्य से कोइराला ने कोई समझौता नहीं किया था. लेकिन, उम्र के इस पड़ाव में आ कर अब उसे हालात के अनुसार समझौता करना पड़ा है.

हीरामंडी वेब सीरीज में 2 दरजन से अधिक कलाकार हैं. इस में कई कलाकारों को एक बार फिर फिल्म जगत की मुख्यधारा में लाने का प्रयास संजय लीला भंसाली की तरफ से किया गया है. वेब सीरीज में फरदीन खान, शेखर सुमन के अलावा फरीदा जलाल को मौका दिया गया है.

इन तीनों कलाकारों में से फरीदा जलाल के अलावा कोई अन्य पात्र दर्शक की नजर में खरा नहीं उतरा है. शेखर सुमन ने बग्घी के भीतर मल्लिका जान के साथ इंटीमेंट होने का सीन दिया है. यह काफी सतही होने के चलते ओटीटी के दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका.

इसी तरह फरदीन खान जो वली साहब का किरदार निभा रहा है, उस ने भी इंटीमेट वाले सीन तो फिल्माए, लेकिन वह दूरदूर तक ओटीटी के दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका. जबकि पूरी वेब सीरीज कोठा कल्चर पर बनी है.

हीरामंडी आखिर क्यों है प्रसिद्ध

संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज आने के बाद कलाकारों से ज्यादा लोग हीरामंडी के बारे में सर्च कर रहे हैं. हीरामंडी इस वक्त पाकिस्तान के लाहौर शहर में स्थित है और यह इलाका वेश्यावृत्ति के लिए जाना जाता है. यह पहले अखंड भारत का हिस्सा थी. दशकों से यहां महिलाओं का राज रहा है.

पहले यहां से जुड़ी महिलाओं ने इस को संगीत शिक्षा केंद्र बनाने का निर्णय लिया था, जिस के लिए नवाबों ने कई तरह की पहल भी की थी. यहां बाकायदा हर काम की एक रिवायत थी, जिस का पालन नवाब करते थे.

यह रिवायत कई बार समाज और लोगों के बीच चर्चा का विषय भी बनती थी. जिस कारण यहां 15वीं और 16वीं शताब्दी में महिलाओं को पाश्चात्य संगीत सिखाने के लिए मुगल अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से ले कर आते थे. जिन्हें हीरामंडी के उस्ताद प्रशिक्षित करने का काम करते थे. यह पूरी तरह से संगठित हो कर किया जाता था.

हीरामंडी को बाजार बनाने के लिए अंगरेजों ने कई तरह की चालाकियां भी की थी. क्योंकि अंगरेज हर हिस्से पर अपना नियंत्रण चाहते थे. लेकिन वेश्यालय उन के काबू में नहीं आ पा रहे थे. यहां अमूमन ठुमरी, गजल और मुजरा होता था. जिस कारण अंगरेजों ने यह पेश करने वाली तवायफों से गीत रिकौर्ड कर के उन की आवाज को विश्व स्तर पर ले जाने का लालच दिया था.

बहरहाल, इस चालाकी में हीरामंडी की कोई भी तवायफ नहीं फंसी. 5 शताब्दी बीत जाने के बावजूद आज भी यह परंपरा यहां बनी हुई है. अब यहां पर संगीत सामग्रियों जैसे गिटार, तबला जैसे कई अन्य साज के सामान बेचने की दुकाने हैं.

हीरामंडी को ले कर ब्रिटेन के कई अखबारों में भी स्टोरी आ चुकी है. अखंड भारत में 1843 से 1844 के बीच इस का नाम हीरामंडी पड़ा. इस के पीछे भी बहुत रोचक कहानी है. वह यह है कि 1843 में हीरा सिंह डोगरा यहां के प्रधान बने. यह डोगरा जाति अभी भी पाकिस्तान और भारत में मौजूद है.

हीरा सिंह डोगरा ने यहां अनाजों की मंडी खुलवाई थी. उस वक्त अनाज व्यापारियों को कारोबार के लिए जगह की आवश्यकता थी. जब वह खुली तो उसे अंगरेज हीरा सिंह दी मंडी बोलते थे.

हीरा सिंह डोगरा सुनियोजित तरीके से काम कर रहे थे. इस कारण अंगरेजों ने उन का तख्तापलट भी करा दिया था. यहां कई देशों के कारोबारी आतेजाते थे. दिन में वे कारोबार करते थे और रात को उन का मन बहलाने के लिए तवायफें गीतसंगीत प्रस्तुत करती थीं. अहमद शाह अब्दाली ने जब लाहौर पर कब्जा किया तो उसे वेश्यावृत्ति का अड्डा बना दिया. यह आज भी बदस्तूर जारी है.

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