उस युवती की उम्र कोई ज्यादा नहीं होगी. 20-22 साल के आसपास की थी वह. एकएक अंग सांचे में ढला हुआ था. ऐसा लग रहा था कि किसी मूर्तिकार ने बहुत फुरसत से उसे तराशा है. उस की हिरणी सी आंखों में गजब का आकर्षण था, उस के संतरे की फांक जैसे पतले और रसीले होंठों की मुसकान बरबस मन को मोह लेती थी. यौवन रस से भरपूर उस की जवानी उफान पर थी.

सुलतान की नजरें उस हसीन युवती पर से हट ही नहीं रही थीं. हटतीं भी कैसे. पार्टी के जश्न में आई हुई अनेक युवतियों में एक वह ही हसीन और बला की खूबसूरत नजर आ रही थी.

वह हसीना लाल रंग की शार्ट कुरती और मखमली शरारा पहने हुई थी. वक्ष पर गुलाबी रंग का सितारों जड़ा दुपट्टा था, जो उस के कंधे से बारबार फिसल रहा था. जब उस का दुपट्टा फिसलता था, उस के उन्नत उभारों की झलक मिल जाती थी, जो दिल की धड़कनें बढ़ा देती थीं.

वह हसीन युवती अपनी सहेली से बातें कर रही थी, किंतु तिरछी नजर से वह सुलतान को भी घूर रही थी. शायद उसे यह अहसास हो गया था कि वह युवक उसे बहुत देर से देख रहा है.

सुलतान को जैसे उस का कोई खौफ नहीं था. होता भी क्यों, भला उस की आंखों का क्या दोष, वह हसीन चीजों को तो ताकेंगी ही. वह अपनी आंखों से उस युवती की खूबसूरती को अपलक ताक रहा था.

एकाएक वह हसीन युवती अपनी जगह से हिली. उस ने सुलतान को फाड़ खाने वाली नजरों से देखा, फिर उस की तरफ बढ़ गई. सुलतान संभल कर खड़ा हो गया. उस की आंखें अब भी उस युवती के ऊपर जमी हुई थीं.

वह युवती पास आ कर रुकी और नागिन की तरह फुंफकार कर बोली, ”ऐ मिस्टर, यह क्या बदतमीजी है.’’

सुलतान ने चौंकने का शानदार अभिनय किया, ”क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

”नहीं,’’ युवती ने उसे घूरा, ”यहां आप का जिन्न खड़ा है, मैं उसी से कह रही हूं.’’

”तो कहिए, आप को किस ने रोका है.’’

”ऐ मिस्टर, मैं आप से कह रही हूं.’’

”मेरा नाम सुलतान है मिस हसीना.’’ सुलतान ने मुसकरा कर कहा.

”मेरा नाम भी हसीना नहीं, शमा है.’’ युवती ने झुंझला कर कहा, ”मैं काफी देर से देख रही हूं, आप मुझे घूर रहे हैं.’’

”आप बेहद हसीन हैं इसलिए. हसीन चीज को देखना गुनाह नहीं हो सकता.’’ सुलतान ने सादगी से कहा.

”मैं इसे गुस्ताखी कहूंगी. यहां पार्टी में मैं अकेली तो नहीं हूं, जो मुझे ही देखा जाए.’’

”कमाल हो तुम.’’ सुलतान तुरंत तुम पर उतर आया, ”कभी आईना देखना. इस महफिल में तुम से हसीन कोई भी नहीं है.’’

”तुम बातूनी और चालाक हो.’’ शमा झुंझला कर बोली.

”शुक्रिया मेरी तारीफ के लिए.’’

”मुझे तुम से हसीन युवती यहां नजर आती तो मैं उसे देखता, लेकिन सच कह रहा हूं, तुम्हारे मुकाबले में एक भी लड़की यहां नहीं है.’’

”लेकिन मिस्टर सुलतान, इस तरह युवतियों को घूरना अच्छे इंसान को शोभा नहीं देता. मैं काफी देर से देख रही थी, तुम एकटक मुझे ही देखे जा रहे थे, इसलिए मुझे यहां आना पड़ा.’’ इस बार शमा कुछ नरम लहजे में बोली.

सुलतान ने आह भरी, ”मशविरे के लिए शुक्रिया. वैसे इतनी गुस्ताखी कर चुका हूं तो एक गुस्ताखी और कर लेता हूं. क्या मुझे बताओगी, तुम कहां रहती हो?’’

”क्या करोगे जान कर?’’ शमा ने उसे घूरा.

”तुम्हारे घर आऊंगा और तुम्हारे अब्बा से तुम्हारा हाथ मागूंगा.’’

”शक्ल देखी है आईने में?’’ शमा ने मुंह बिगाड़ा, ”लंगूर जैसे लगते हो तुम.’’

सुलतान हंसा, ”निकाह के बाद तुम्हें अपनी उछलकूद से खूब हंसाऊंगा. इस लंगूर के साथ तुम्हारी जिंदगी हंसीखुशी से गुजर जाएगी.’’

”ख्वाब देखते रहो. मेरे लिए एक से एक खूबसूरत लड़कों की लाइन लगी हुई है. मैं तुम्हें घास नहीं डालने वाली.’’

”देखूंगा.’’ सुलतान इस बार गंभीर हो गया, ”तुम मुझे घास भी डालोगी और प्यार से मुझ से गले भी मिलोगी.’’

”इतना कौंफीडेंस है तुम्हें.’’ शमा ने उसे घूरा.

”हां, मेरी जिंदगी भी अब रोशन इसी शमा से होगी. यह याद रखना.’’ सुलतान दृढ़ स्वर में बोला.

”मुंह धो लेना किसी गटर के पानी से. तुम्हारी यह हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’ शमा ने कहा और पांव पटकती हुई अपनी सहेली की तरफ बढ़ गई.

सुलतान मुसकरा कर उस ओर बढ़ गया जहां कोल्ड ड्रिंक सर्व की जा रही थी. शमा उस के जज्बात भड़का गई थी. सुलतान ठंडा पी कर उन जज्बातों को शांत करना चाहता था.

आज मौसम बहुत सर्द था. नवंबर महीने का बेहद ठंडा दिन कह सकते है इसे. मंसूर ऊपर से नीचे तक गरम कपड़े पहन कर काम पर आया था. वह दिल्ली के विश्वास नगर में स्थित एक मकान के फस्र्ट फ्लोर पर आ कर बंद दरवाजे के पास बैठ गया था, क्योंकि शानू अभी तक नहीं आया था. इस फ्लोर की चाबी शानू के पास ही रहती थी.

इस फ्लोर पर मोहम्मद सुलतान ने फ्लिपकार्ट के डिलीवरी होने वाले सामानों का गोदाम बना रखा था. शानू और मंसूर वहीं पर पैकिंग का काम करते थे.

पौलीथिन में पैक मिली लड़की की लाश

सर्दी से मंसूर कांप रहा था. वह चाहता था कि शानू जल्दी से आ जाए ताकि दरवाजा खोल कर वह इत्मीनान से कमरे में बैठ सके. दोपहर 2 बजे शानू आया. वह भी गरम जैकेट, टोपी पहने था.

”कितनी देर से बैठे हो?’’ उस ने मंसूर से पूछा.

”बाद में पूछना यार. जल्दी से दरवाजा खोल, मेरी कुल्फी जम रही है.’’

शानू ने जेब से चाबी निकाल कर दरवाजे पर लटक रहा ताला खोलते हुए कहा, ”आज कल से ज्यादा ठंड है.’’

मंसूर बोला नहीं. शानू ने जैसे ही ताला खोला, मंसूर दरवाजे को धकेल कर अंदर आ गया.

शानू भी अंदर आ गया. उस ने लाइट जलाई और दरवाजा बंद कर के कुरसी की तरफ बढ़ा तो सामने दीवार से टिके एक बड़े से पौलीथिन बैग को देख चौंक पड़ा.

”इतना बड़ा बैग यहां कहां से आ गया, हमारे यहां से तो छोटे बंडल पैक होते हैं.’’

”सुलतान ने माल मंगवाया होगा. यह तो सुलतान ही बताएगा कि उस ने फ्लिपकार्ट से क्या आइटम मंगवाया है.’’ मंसूर ने बैग पर एक सरसरी नजर डाल कर कहा और कुरसी सरका कर बैठ गया. शानू भी बैठ गया.

यह सुलतान का औफिसनुमा गोदाम था. वह यहां ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का माल मंगवा कर औनलाइन बेचता था. मंसूर और शानू उस के इस काम में हैल्पर थे. सुलतान ने इन्हें अच्छी तनख्वाह पर काम पर लगा रखा था.

दोनों बहुत भरोसे के आदमी थे. सुलतान के इस औफिस की एक चाबी शानू के पास रहती थी, एक सुलतान अपने पास रखता था. सुलतान की गैरमौजूदगी में औफिस खोल लेता था. उन की ड्यूटी डेढ़ बजे से रात 9 बजे तक की थी.

दोनों अपने काम में लग गए. जो माल का और्डर सुलतान ने रजिस्टर में दर्ज किया हुआ था, उस की वह पैकिंग बनाने में लग गए. वे काम में इस कदर मशगूल हुए कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चला.

शाम के साढ़े 6 बजे मंसूर उठा और बाथरूम की ओर वह गया. जब वह वापस आया तो उस ने दीवार से सटे बैग की ओर देखा. उस में से हलकी बदबू आ रही थी.

नथुनों को सिकोड़ कर उस ने लंबी सांस खींची तो उस का जी खराब हो गया. तेज बदबू आ कर नाक में समा गई थी.

”यार शानू, तुझे कुछ बदबू सी आ रही है क्या?’’ मंसूर ने पूछा.

”हां. मैं काफी समय से महसूस कर रहा हूं कि कमरे में अजीब सी बदबू भरी है ऐसी जैसे कोई चीज सड़ रही हो यहां. तू खामोशी से काम कर रहा था, इसलिए मैं ने कुछ नहीं बोला. यह बदबू इस पौलीथिन बैग से आ रही है. मैं ने अभी जोर से सांस ली तो मुझे यह महसूस हुई है. जरा देख तो इस में क्या चीज है.’’ मंसूर ने कहा.

शानू अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. पौलीथिन बैग के पास आ कर उस ने उस की रस्सी खोली तो उस के मुंह से दहशत भरी चीख निकल गई.

”लाऽऽश…’’

लाश का नाम सुनते ही मंसूर घबरा गया. वह लपक कर पास आ गया. उस ने बैग के खुले मुंह से अंदर झांका तो उस के हाथपांव कांप गए. वह घबरा कर पीछे हट गया.

”शानू, इस में किसी युवती की लाश है. यहां से भाग चलते हैं.’’

”भागने से तो हम ही फंस जाएंगे.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला, ”सभी जानते हैं हम यहां दोपहर की ड्यूटी में काम करने आते हैं.’’

”तो क्या करें?’’ मंसूर ने पूछा.

”पुलिस को फोन करते हैं. ऐसा करने से हमारी जिम्मेदारी पुलिस महसूस करेगी और हम लपेटे में नहीं आएंगे.’’

”चल, तू जैसा ठीक समझे. नीचे पब्लिक बूथ से हम पुलिस को यहां लाश मिलने की जानकारी दे देते हैं.’’

शानू ने सिर हिलाया और मंसूर के साथ वह पहली मंजिल से नीचे गली में आ गया. नीचे पब्लिक बूथ से शानू ने उसी समय फर्श बाजार थाने की पुलिस को विश्वास नगर की गली नंबर-10 के मकान नंबर डी-510 में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी. दोनों इस वक्त काफी डरे हुए थे.

मंसूर ने कांपती हुई आवाज में शानू से कहा, ”तुम सुलतान को भी फोन कर दो. वह यहां आ जाएगा.’’

शमा की किस ने की थी हत्या

शानू ने अपने मोबाइल से सुलतान को फोन मिलाया तो दूसरी ओर से स्विच्ड औफ होने की सूचना मिली. काफी समय तक वह सुलतान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ ही बताता रहा.

इसी बीच वहां पर पुलिस जीप आ गई. पुलिस जिप्सी से इंसपेक्टर बाबूलाल उतरे. उन के साथ 3 पुलिसकर्मी भी थे.

शानू और मंसूर उन के पास आ गए. बाबूलाल ने दोनों को सिर से पांव तक देखा और पूछा, ”क्या तुम ने ही पुलिस को फोन किया था?’’

”हां सर!’’

”लाश कहां है?’’

”आप साथ आइए.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला और सीढिय़ों से उन को ऊपर ले आया. कमरे में ला कर उस ने पौलीथिन बैग दिखा दिया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने आगे बढ़ कर पौलीथिन बैग को टटोला. अंदर युवती की लाश देख कर उन्होंने सब से पहले इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. फोरैंसिक टीम को भी उन्होंने इत्तला दे दी. उन्होंने उच्चाधिकारियों के आने तक कमरे का निरीक्षण किया और शानू तथा मंसूर से पूछताछ करते रहे.

”यहां क्या काम होता है?’’

”साहब हमारे मालिक का नाम मोहम्मद सुलतान है. यहां पर वह ईकामर्स फ्लिपकार्ट से माल मंगवा कर औनलाइन सप्लाई करते हैं. मैं और मंसूर उन के पास काम करते हैं.’’

”यह लाश यहां गोदाम में किस ने ला कर रखी?’’

”मालूम नहीं साहब. मैं शानू और मेरा साथी मंसूर दोपहर 2 बजे काम पर आए थे. एक चाबी मेरे पास रहती है. मैं ने ताला खोला था. यह पौलीथिन बैग मुझे और मंसूर को कमरे में घुसते ही नजर आ गया था. हम ने सोचा सुलतान ने माल मंगवाया होगा. ज्यादा इस पर ध्यान न दे कर हम काम करने में व्यस्त हो गए. 2-ढाई घंटे बाद मंसूर और मुझे बदबू महसूस हुई तो मैं ने बैग देखने की इच्छा से इस का मुंह खोल दिया. अंदर नजर पड़ी तो दहशत से मेरी चीख निकल गई. अंदर युवती की लाश देख कर हम घबरा गए. हम ने पब्लिक बूथ से फोन कर के थाने में इत्तला दे दी.’’

”मोहम्मद सुलतान आज नहीं आया क्या?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”वह सुबह आते हैं. किसी दिन नहीं आते तो फोन से हमारी बात हो जाती है. आज वह यहां आए थे या नहीं, मालूम नहीं. उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.’’

”सुलतान का नंबर लिखवा दो मुझे.’’

शानू ने सुलतान का नंबर बता दिया. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह नंबर अपने फोन से मिलाया तो उन्हें भी स्विच्ड औफ होने का संदेश सुनाई दिया.

नीचे डीसीपी रोहित मीणा, एडीशनल डीसीपी राजीव कुमार, एसीपी विजय नागर (शाहदरा) और एसीपी गुरुदेव आ गए थे. वह सब ऊपर कमरे में आ गए. फोरैंसिक टीम भी उन के साथ आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने डीसीपी रोहित मीणा के इशारे पर अपना काम शुरू कर दिया. पौलीथिन बैग के ऊपर से फिंगरप्रिंट्स उठाने के बाद उस की फोटोग्राफी की गई, फिर उस में से लाश को बाहर निकाला गया.

यह 20-22 साल की जवान युवती की लाश थी. उस के हाथपांव रस्सी से बंधे हुए थे और गले में चुन्नी लिपटी हुई थी. चुन्नी से उस का गला घोंटा लगता था, क्योंकि युवती की आंखें दम घुटने से फट पड़ी थीं. वह छरहरे जिस्म वाली खूबसूरत युवती थी.

शानू और मंसूर उस युवती की लाश देख कर हैरत में आ गए थे. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह बात महसूस की तो शानू के पास आ गए.

”कौन है यह युवती?’’ शानू के चेहरे पर नजरें जमा कर उन्होंने धीरे से पूछा.

”इस का नाम शमा है साहब, यह हमारे मालिक की मंगेतर है.’’

”ओह!’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने होंठ सिकोड़े, ”तुम्हारा मालिक सुलतान मोबाइल स्विच्ड औफ कर के बैठा है. जाहिर है उस ने अपनी मंगेतर की गला घोंट कर हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

”ऐसा नहीं है साहब. हमारे मालिक सुलतान तो शमा भाभी को दिल से प्यार करते रहे हैं.’’ शानू ने अपनी बात कही तो इंसपेक्टर बाबूलाल मुसकरा दिए, ”ऐसी बात है तो वह फोन स्विच्ड औफ क्यों कर के बैठा है.’’

”यह तो मैं नहीं बता सकता, साहब.’’

”शमा कहां रहती है और तुम्हारे मालिक सुलतान का ठिकाना कहां है, सब सहीसही हमें नोट करवा दो. झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हें अंदर कर दूंगा.’’

शानू ने शमा और सुलतान के एड्रैस इंसपेक्टर बाबूलाल को बता दिए.

मंगेतर सुलतान पर हुआ शक

डीसीपी रोहित मीणा और एडिशनल डीसीपी राजीव कुमार ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. यह युवती का गला घोंट कर हत्या किए जाने का मामला था. फोरैंसिक टीम ने अपनी ओर से सारे सबूत एकत्र कर लिए थे.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने अधिकारियों को शानू द्वारा पूछताछ में मिली सारी जानकारी दे दी.

पुलिस को मृतका का नाम और पता मालूम हो गया था. उन का पूरापूरा संदेह सुलतान पर जा रहा था. उन्होंने इंसपेक्टर बाबूलाल को निर्देश दिया कि वह मोहम्मद सुलतान को दोषी मान कर अपनी जांच करें. इस के बाद उच्चाधिकारी वहां से चले गए.

लाश की कागजी काररवाई निपटाने के बाद उसे पोस्टमार्टम हेतु सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने सुलतान का फोन फिर मिलाया, किंतु वह अभी भी स्विच औफ ही आ रहा था. थाने आ कर उन्होंने मुकदमा संख्या 548/23, आईपीसी की धारा 302/201 के अंतर्गत मामला रजिस्टर में दर्ज कर लिया.

उसी दिन 25 नवंबर, 2023 की रात करीब 10 बजे शमा के परिजन थाना फर्श बाजार (शाहदरा) पहुंचे. उन्होंने थाने में शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाई. उस वक्त इंसपेक्टर बाबूलाल थाने में ही मौजूद थे.

पुलिस की 2 टीमें जुटीं जांच में

शमा की हत्या का केस डीसीपी रोहित मीणा ने उन्हें ही देखने के लिए कहा था और इस सिलसिले में वह फर्श बाजार के एसएचओ अमूल त्यागी के साथ बैठ कर विचारविमर्श कर रहे थे. तभी एक सिपाही ने यह सूचना दी कि शमा नाम की लड़की की गुमशुदगी दर्ज करवाने उस के परिजन आए हैं. इंसपेक्टर बाबूलाल और एसएचओ अमूल त्यागी उठ कर अपने कक्ष से बाहर आ गए. वहां बाहर शमा की अम्मी और चाचा खड़े थे.

”आप ही शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाने आई हैं?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”जी साहब, मेरी बच्ची सुबह अपने काम पर गई थी, वह अभी तक वापस नहीं आई है. हम यहां उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने आए हैं. आप मेरी बच्ची को ढूंढ दीजिए.’’ शमा की अम्मी गिड़गिड़ाते हुए बोली.

”शमा कहां काम करती थी?’’

”जी हेडगेवार हौस्पिटल के पास ब्यूटी पार्लर है, वह वहीं काम करने जाती थी.’’

”आप को किसी पर संदेह है क्या?’’

”मुझे सुलतान पर शक है, साहब. मेरी बेटी शमा उस से प्यार करती है. उसी के साथ शमा की शादी हम लोगों ने तय कर दी है लेकिन…’’

”लेकिन क्या?’’ बाबूलाल ने शमा की अम्मी के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

”सुलतान चालाक है, वह मेरी बेटी के लायक नहीं है, लेकिन शमा की खातिर हमें सुलतान की मम्मी के आगे झुकना पड़ा है. अब देखें आप, हम दोपहर से सुलतान को फोन लगा रहे हैं, लेकिन वह फोन उठा ही नहीं रहा है. अब तो उस का फोन भी बंद हो गया है.’’

”वह फोन उठाएगा भी नहीं,’’ इंसपेक्टर बाबूलाल गंभीर हो गए, ”क्योंकि वह शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.’’

इंसपेक्टर बाबूलाल के मुंह से यह सुनते ही शमा की मां दहाड़े मार कर रोने लगी. अन्य परिजन भी गमगीन हो गए. कुछ देर तक वहां पर गम का माहौल बना रहा. फिर शमा की मां ने सिसकते हुए पूछा, ”यह आप किस आधार पर कह रहे हैं कि मेरी बेटी शमा की हत्या हो गई है.’’

”हम ने शाम को विश्वास नगर की गली नंबर 10 से शमा की लाश बरामद की है. उस को गला घोंट कर मारा गया है. अब उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल में है, आप लोग वहां जा कर पोस्टमार्टम के बाद लाश को अपने कब्जे में ले कर उस का क्रियाकर्म करवाइए. मैं आप लोगों के साथ सिपाही यतेंद्र को भेज रहा हूं.’’

”साहब, मेरी बेटी का कातिल सुलतान ही है. विश्वास नगर में गली नंबर-10 में उसी का गोदाम है. मेरी बेटी उसी से मिलने उस के गोदाम पर गई होगी, जहां उस ने शमा की हत्या कर दी.’’ शमा की मां ने भर्राए गले से कहा.

”हमें भी सुलतान पर शक है. उस की तलाश की जा रही है.’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने कहा फिर कांस्टेबल यतेंद्र को समझा कर उन लोगों को जिला अस्पताल के लिए भेज दिया.

मामला दिल्ली ईस्टर्न रेंज के एडिशनल सीपी सागर कलसी की जानकारी में आ चुका था, इसलिए डीसीपी रोहित मीणा ने शमा की हत्या में संदिग्ध मोहम्मद सुलतान को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस और स्पैशल स्टाफ की एक टीम गठित कर दी.

टीम में थाना फर्श बाजार (शाहदरा) के इंसपेक्टर बाबूलाल, एएसआई दीपक (टेक्नीकल सर्विस) डा. विजय खोखर, एसआई सुनील (स्पैशल स्टाफ शाहदरा), हैडकांस्टेबल शशांक (फर्श बाजार थाना), कांस्टेबल यतेंद्र, एसआई पंकज कसाना और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर विकास कुमार को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व विकास कुमार को सौंपा गया था.

इस टीम ने विश्वास नगर की गली नंबर 10 को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. सुलतान के घर दबिश दी गई, लेकिन वह घर नहीं मिला. उस की मां नूरजहां ने पुलिस पर आरोप मढ़ा कि वह उस के बेटे सुलतान को फंसाना चाहती है. वह तो खुद 25 नवंबर से लापता है.

नूरजहां ने 26 नवंबर को फर्श बाजार थाने में जा कर सुलतान के गुम होने की सूचना लिखवा दी. उस ने कहा कि वह कल 25 नवंबर को सुबह ही शमा के घर न्यू संजय अमर कालोनी में जा कर सुलतान का रिश्ता शमा से तय कर आई है. ऐसे में सुलतान अपनी मंगेतर शमा की हत्या क्यों करेगा. सुलतान से चिढऩे वाले किसी व्यक्ति ने सुलतान का अपहरण कर लिया है.

पुलिस उस के किसी तर्क को मानने को तैयार नहीं थी. चूंकि सुलतान कल से ही लापता था और उस ने फोन भी औफ कर लिया था, शक उसी पर जा रहा था कि वह अपनी मंगेतर शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.

पुलिस टीम ने सुलतान के फोन की लोकेशन मालूम करने के लिए उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर 27 नवंबर, 2023 को पुलिस को सफलता मिली. सर्विलांस टीम को उस के फोन की लोकेशन मुंबई की मिली.

तुरंत एक टीम मुंबई भेज दी गई. उस ने सर्विलांस की मदद से आखिर में मुंबई के मुलुंद इलाके से सुलतान को दबोच लिया. वहां पुलिस औपचारिकता पूरी करने के बाद टीम 28 नवंबर को सुलतान को दिल्ली ले कर चल दी. दिल्ली पहुंच कर उसे कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

सुलतान ने क्यों की मंगेतर शमा की हत्या

रिमांड में पूछताछ हुई तो सुलतान ने चुपचाप स्वीकार कर लिया कि उस ने 25 नवंबर, 2023 की शाम को अपने विश्वास नगर वाले औफिस में शमा का उसी की चुन्नी से गला घोंट कर हत्या कर दी थी. शव छिपाने के उद्ïदेश्य से उस ने शमा की लाश बड़े पौलीथिन बैग में हाथपांव बांध कर ठूंस दी थी. वह उसे ठिकाने नहीं लगा सका. डर की वजह से वह लाश औफिस में छोड़ कर ताला बंद कर के भाग गया था.

उस ने नई दिल्ली से रात 10 बजे मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ ली थी. रास्ते में उस ने शमा का फोन फेंक दिया था. उस ने शमा को क्यों मारा, इस सवाल पर उस ने बताया, ”3 साल पहले शमा को मैं ने एक पार्टी में देखा था, तभी उस के लिए मेरे दिल में प्यार जाग गया था. शमा गुरूर से भरी थी, वह मुझ से शुरू में दोस्ती नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैं उसे बारबार फोन करता रहा तो वह पिघल गई और मुझ से मिलने आने लगी. मैं और शमा 3 साल से गहरे अटूट प्यार में बंधे खुशीखुशी जी रहे थे. मैं शमा को अपनी पत्नी बनाना चाहता था.

”मेरे पिता मोहम्मद सलाउद्दीन गांव चिरइया, जिला मोतिहारी (बिहार) में रहते है. मेरी मां नूरजहां दिल्ली में मेरी बड़ी बहन के पास रहती है. मैं भी फर्श बाजार में बहन के साथ रहता हूं. मेरी 5 बहनें हैं. 3 की शादी हो गई है. 2 कुंवारी हैं. मैं फ्लिपकार्ट कंपनी के माल को औनलाइन बेचने का खुद का काम करता हूं. विश्वास नगर में राजीव शर्मा के फ्लैट में मैं ने फस्र्ट फ्लोर पर अपना औफिस बना रखा है. यह फ्लैट गली नंबर 10 में है. मेरे साथ मंसूर और शानू भी काम करते थे.

”मैं शमा को दिल से चाहता था, लेकिन मैं ने उसे किसी दूसरे युवक से बातें करते देख लिया था. शमा का मेरी तरफ झुकाव भी कम होने लगा था. मैं परेशान था, इसलिए मैं ने फोन कर के शमा को 25 नवंबर को विश्वास नगर बुलाया. वह ब्यूटी पार्लर में नौकरी करती है. मेरी उम्र 19 साल है, जबकि 4 साल बड़ी शमा 23 साल की है. शमा काम पर नहीं गई, वह सुबह मेरे औफिस में आ गई थी. शानू और मंसूर 2 बजे औफिस में आते थे.

”शमा को मैं ने प्यार से समझाया कि वह मुझ से प्यार करती है, शादी करना चाहती है तो दूसरे युवक से बात न करे. शमा ने कहा कि मैं उसे दूसरे युवक से बातें करने से नहीं रोकूंगा. मेरा मन जहां चाहेगा, मैं वहां हंसूंगी बोलूंगी. शादी के बाद भी यही होगा.

”साहब, बहुत समझाने पर भी शमा नहीं मानी तो मैं ने गुस्से में उसे नीचे पटक दिया और चुन्नी से उस का गला घोंट कर मार दिया. मुझे उस की हत्या करने का दुख है, लेकिन वह जिद्दी थी, इसलिए मैं ने उसे मार दिया.’’

सुलतान ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. पुलिस ने उसे फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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