ग्रेटर नोएडा की बीटा-2 कोतवाली के प्रभारी सुरजीत उपाध्याय शाम 8 बजे खाना खाने के बाद अपने औफिस में पहुंचे. वह वहां से गश्त के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे, तभी पीसीआर द्वारा उन्हें सूचना मिली कि मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट पर बदमाशों ने एक महिला की गोली मार कर हत्या कर दी है. महिला को उस के साथी कैलाश अस्पताल ले कर गए हैं.
हत्या जैसी वारदात किसी भी अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला कर देती है. बावजूद इस के सुरजीत उपाध्याय ने देर नहीं की. उन्होंने एसआई अनूप के नेतृत्व में एक टीम मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी की तरफ रवाना कर दी और खुद एसआई संदीप कालखंडे, हेडकांस्टेबल किशोरीलाल, कांस्टेबल अंशुल, दीपक, राशिद और सुमित को ले कर कैलाश अस्पताल पहुंच गए.
वहां पता चला कि जिस महिला को गोली लगी है, वह रागिनी व लोकगीतों की मशहूर गायिका सुषमा है. अस्पताल में सुषमा के परिवार और जानपहचान वालों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही डाक्टरों ने सुषमा को मृत घोषित कर दिया था. जिस कारण अस्पताल में सुषमा के परिजनों का विलाप शुरू हो गया था.
चूंकि अब यह वारदात हत्या की हो चुकी थी, इसलिए परिजनों से पूछताछ करने से पहले थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने इस घटना की जानकारी ग्रेटर नोएडा की सीओ (प्रथम) तनु उपाध्याय के साथ एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण को दे दी. कुछ ही देर में ये तीनों अधिकारी भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.
सुषमा की बहन सोनू ने घटना के बारे में विस्तार से पुलिस को सारी बात बता दी.
सोनू ने बताया कि उस रात यानी पहली अक्तूबर की रात के करीब 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा, सहेली वैशाली और ड्राइवर सचिन के साथ अपनी ब्रेजा कार से ग्रेटर नोएडा स्थित मित्रा सोसायटी के बाहर पहुंची थी. उस की बहन सुषमा दूध लेने के लिए सोसाइटी के बाहर ही कार से नीचे उतर गई थी.
ठीक उसी वक्त मित्रा सोसाइटी के गेट से एक पल्सर बाइक बाहर निकली, जिस पर चालक समेत 2 लोग सवार थे. दोनों ने ही हेलमेट पहने हुए थे. एक क्षण के लिए उन की बाइक सोसाइटी के बाहर सुषमा की कार के समीप आ कर रुकी. तब तक सुषमा अपनी कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतर चुकी थी.
अचानक रुकी बाइक की पिछली सीट पर बैठा युवक बाइक से नीचे उतर कर सुषमा के बेहद करीब पहुंच गया. फुरती के साथ उस ने जेब से पिस्टल निकाली और सुषमा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.
सुषमा को 4 गोलियां लगीं, जिस में से एक सिर में, दूसरी सीने में और बाकी 2 गोलियां शरीर के दूसरे हिस्सों में लगीं. एक के बाद एक 4 गोलियां लगने के बाद सुषमा लहरा कर वहीं गिर पड़ी. अचानक सुषमा पर हुए इस हमले को जब तक वे तीनों समझते और कार से नीचे उतर कर सुषमा की मदद करते, तब तक गोलीबारी करने वाले बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए थे.
जिस समय यह वारदात हुई थी, उस वक्त सोसाइटी में चहलपहल थोड़ी कम थी. लेकिन इस के बावजूद मुख्य द्वार पर बने गार्ड रूम से सिक्योरिटी गार्ड बाहर निकल आए और गोलियों की आवाज सुन कर सोसाइटी में इधरउधर टहल रहे लोग भी दरवाजे पर आ गए.
किसी की समझ में नहीं आया कि अचानक यह हमला कैसे हुआ और हमलावर कौन थे. वे सोसाइटी के भीतर कैसे पहुंचे. सुषमा की बहन सोनू मदद के लिए चीखने चिल्लाने लगी तब तक वहां लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी. किसी ने सुषमा को जल्द हौस्पिटल ले जाने की बात कही, तो सोनू ने सचिन की मदद से खून से लथपथ सुषमा को दोबारा अपनी गाड़ी में डाला.
कुछ ही देर में उन की कार समीप के कैलाश हौस्पिटल पहुंची, जहां तत्काल सुषमा को आईसीयू में भरती कर के उस का उपचार शुरू कर दिया गया. तब तक सोनू ने अपने परिचितों और परिवार वालों को फोन कर के सुषमा पर हुए हमले की जानकारी दे दी और उन से अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. इस दौरान किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को भी गोलीबारी से हुए इस हमले की सूचना दे दी थी.
जिस के बाद पीसीआर की गाड़ी जब मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी पर पहुंची तो पता चला कि इस हमले में रागिनी गायिका सुषमा गंभीर रूप से घायल हुई है और उसे कैलाश अस्पताल ले जाया गया है.
जिस जगह यह वारदात हुई थी, वह क्षेत्र बीटा-2 कोतवाली क्षेत्र में आता है. पीसीआर ने बीटा-2 कोतवाली को पूरी वारदात की जानकारी दे कर आगे की काररवाई के लिए कैलाश अस्पताल पहुंचने को कहा था.
थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने सुषमा की बहन सोनू के साथ कार में सवार वैशाली और कार चालक सचिन के बयान भी दर्ज किए. सोनू के बयान के आधार पर थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह को निर्देश दिया कि वह अपनी निगरानी में जल्द से जल्द हत्या की इस वारदात का खुलासा करें. इसीलिए एसपी रणविजय सिंह ने बीटा-2 थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय को इस केस की जांच का जिम्मा सौंप कर उन की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की स्टार-2 टीम के इंचार्ज यतेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल सत्येंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, प्रवीण मलिक, अमित शर्मा और उदयवीर को तैनात कर दिया. सीओ तनु उपाध्याय को पूरे मामले की मौनिटरिंग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
मरने वाली सुषमा उसी मित्रा एन्क्लेव सोसायटी के फ्लैट नंबर सी-104 में रहती थी. जिस वक्त अपार्टमेंट के बाहर सुषमा को गोली मारी गई थी, उस वक्त सुषमा का पति गजेंद्र भाटी अपने 2 बच्चों के साथ घर में ही मौजूद था. जैसे ही उसे पत्नी को गोली मारे जाने की सूचना मिली तो उस के होशोहवास उड़ गए और वह तत्काल कैलाश हौस्पिटल पहुंच गया.
मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच का काम तेजी से शुरू कर दिया. पुलिस की टीमें प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करने लगीं. पुलिस ने सुषमा के फोन की काल डिटेल्स खंगाली. मित्रा सोसाइटी के गेट और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को देखा जाने लगा, सुषमा की जिंदगी के हर पन्ने को पुलिस बारीकी से पढ़ने लगी.
सुषमा से दोस्ती और दुश्मनी रखने वाले तमाम लोगों को पुलिस ने जांच के केंद्र में ले लिया और धीरेधीरे पुलिस कातिलों के करीब पहुंचने लगी.
6 अक्तूबर, 2019 की शाम करीब 7 बजे का वक्त था. एक अहम सूचना के बाद थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की स्टार-2 की टीम ने सिग्मा-4 सैक्टर के समीप सर्विस रोड पर बदमाशों को पकड़ने के लिए घेराबंदी की हुई थी. तभी तेजी से आती एक फौर्च्युनर कार को पुलिस ने वहां रोकने का प्रयास किया. लेकिन कार चालकों ने कार को रोकने के बजाए पुलिस पर गोली चला दी.
इस के बाद दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. 10 मिनट बाद कार से उतर कर भाग रहे 2 बदमाशों के पैरों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिस से वे घायल हो गए. पुलिस ने जब उन्हें काबू कर के पूछताछ की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.
दोनों कुख्यात अपराधी थे. इन में से एक मुकेश पड़ोसी जिले बुलंदशहर के थाना अगौता के गांव जोलीगढ़ का और दूसरा संदीप गौतमबुद्ध नगर के थाना जेवर इलाके में स्थित गांव थोरा का रहने वाला था.
दोनों बदमाशों के पैर में गोली लगी थी, इसलिए उन्हें तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया. पुलिस की एक टीम जहां उन से पूछताछ का काम कर रही थी तो दूसरी टीम उन से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर छापेमारी करने में जुट गई. संदीप और मुकेश जिस फौर्च्युनर गाड़ी में सवार थे, पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से एक 30 एमएम का पिस्टल और .315 बोर का तमंचा बरामद हुआ था.
बुलंदशहर के रहने वाले मुकेश के बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि उस के खिलाफ लूट, डकैती जैसे गंभीर अपराधों के 22 मुकदमे पहले से दर्ज हैं, जबकि संदीप के खिलाफ भी लूट के 2 मुकदमे दर्ज होने की जानकारी सामने आई.
पुलिस की टीम ने जब इलाज के दौरान दोनों से पूछताछ की तो अचानक रागिनी गायिका सुषमा की हत्या की गुत्थी सुलझती चली गई. संदीप और मुकेश से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस की 2 अलगअलग टीमों ने छापेमारी शुरू कर दी.
पुलिस ने उसी रात सुषमा के पति गजेंद्र भाटी, गजेंद्र के ड्राइवर अमित, गजेंद्र के गांव बिलासपुर में रहने अमित के तयेरे भाई अजब सिंह, बुलंदशहर के मेहसाना गांव में रहने वाले अजब सिंह के दोस्त प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
जब इन सभी आरोपियों से पूछताछ हुई, तो सुषमा हत्याकांड की हैरान कर देने वाली कहानी सामने आई-
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहांगीरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है नेकपुर. इसी गांव में रहने वाले जाट परिवार में सुषमा का जन्म हुआ था. 26 साल की सुषमा अपने मातापिता की 6 संतानों में सब से बड़ी थी. सुषमा की 5 बहनें और एक भाई है. भाई तीसरे नंबर का है. 3 छोटी बहनों को छोड़ कर सभी का विवाह हो चुका था.
सुषमा जब स्कूल में पढ़ती थी और उस की उम्र 13 साल थी, उसी समय से उसे रागिनी और लोकगीत गाने का ऐसा शौक लगा कि वह जल्द ही रागिनी गायकों की मंडली में जा कर गाने लगी.
16 साल की उम्र तक आतेआते सुषमा इलाके की जानीमानी युवा रागिनी गायिका बन गई. सुषमा को उस के गांव के नाम नेकपुर के नाम से पुकारा जाने लगा. धीरेधीरे उस की पहचान रागिनी गायिका सुषमा नेकपुर के रूप में कायम हो गई.
सुषमा की कला को देख कर उस की तीसरे नंबर की बहन सोनू को भी स्कूली समय से ही गानेबजाने का शौक लग गया और वह भी बाद में अपनी बहन सुषमा की तरह न सिर्फ स्टेज पर रागिनी गायिका की तरह परफौर्म करने लगी, बल्कि रागिनी पर होने वाले ग्रुप डांस में भी शामिल होने लगी. सोनू को बचपन से ही मर्दाना लिबास और मर्दाना रूपरंग में रहने का शौक था. इसलिए वह ज्यादातर पैंटशर्ट पहनती. उस के हेयरस्टाइल भी मर्दों जैसे ही थे.
धीरेधीरे सोनू के साथ एक उपनाम भी जुड़ गया सम्राट और लोग उसे सोनू सम्राट के नाम से जानने लगे.
सुषमा ने छोटी बहन सोनू के हुनर को देख कर उसे भी अपने साथ जोड़ लिया. सुषमा और सोनू की मंडली का ग्रेटर नोएडा की सिसौदिया म्यूजिक कंपनी से करार था. सुषमा के स्टेज शो को सिसौदिया म्यूजिक कंपनी ही रिकौर्ड कर के उस की सीडी बाजार में बेचती थी. साथ ही सुषमा के स्टेज शो और रागिनी के वीडियो यूट्यूब पर भी डाले जाते थे, जिस पर सिसौदिया म्यूजिक कंपनी का ही अधिकार था.
सुषमा और सोनू सम्राट कुछ ही सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोग जागरण से ले कर स्टेज शो कराने के लिए उन्हें मुंहमांगी रकम दे कर बुलाने लगे.
गांव देहात में रहने वाले लोगों को जवान होती बेटी के हाथ पीले करने की बहुत जल्दबाजी होती है. सुषमा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस के मातापिता ने उस के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए. लेकिन इसी दौरान सुषमा को गाजियाबाद में रहने वाला एक युवक संदीप कौशिक पसंद आ गया.
जब परिवार वालों ने सुषमा के लिए लड़कों की खोजबीन शुरू की, तो सुषमा ने उन्हें अपनी पसंद के बारे में बताया. सुषमा अपने पैरों पर खड़ी थी, वह बालिग थी और साथ ही परिवार की मदद भी करती थी. इसलिए मातापिता ने विजातीय होने के बावजूद सुषमा को संदीप कौशिक से शादी करने की मंजूरी इसलिए दे दी, क्योंकि वह ब्राह्मण जैसी उच्च जाति का लड़का था.
संदीप एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था. संयुक्त परिवार में रहता था और विजातीय होने के कारण उस के परिवार के रस्मोरिवाज और संस्कार भी सुषमा से अलग थे.
सुषमा ज्यादातर जागरण की पार्टियों और शादी समारोह के फंक्शन में अपने ग्रुप के साथ जाती थी. इन सब कारणों से सुषमा समय बेसमय अपनी ससुराल आतीजाती थी, जिस के चलते जल्द ही अपने पति संदीप कौशिक और उस के परिवार वालों से सुषमा की अनबन शुरू हो गई.
7-8 महीने भी नहीं बीते थे कि सुषमा और संदीप का मनमुटाव इस मुकाम तक पहुंच गया कि उस ने सुषमा से अलग होने का फैसला कर लिया.
सुषमा और संदीप अलगअलग तो रहने लगे, लेकिन उन का संबंध इतनी आसानी से खत्म नहीं हुआ. परिवार वालों के कहने पर सुषमा ने गाजियाबाद कोर्ट में अपने पति संदीप के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.
यह मामला 2-3 साल तक अदालत में चलता रहा. इस दौरान सुषमा अपनी बहन सोनू के साथ पूरी तरह रागिनी गायन के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने लगी. सुषमा ने अब अपने गांव नेकपुर की जगह ग्रेटर नोएडा में ही फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया था. क्योंकि गांव से आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी.
सुषमा दिनोंदिन लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही थी. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले रागिनी के शौकीनों में उस की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी. इधर 4 साल पहले अदालत में चल रहे दहेज उत्पीड़न के मुकदमे से परेशान हो कर संदीप कौशिक ने सुषमा से अदालत से बाहर उसे 10 लाख रुपए का हरजाना दे कर समझौता कर लिया और दोनों के बीच रजामंदी से तलाक हो गया.
पति से तलाक के बाद सुषमा एक बार फिर आजाद हो गई. सुषमा अब अपने रागिनी गायन के काम में पूरी तरह खो गई थी. अब ग्रामीण क्षेत्र की बहुत सी लड़कियां भी सुषमा की शिष्या बन कर उस से रागिनी की कला और गायन विद्या सीखने लगी थीं.
जिन दिनों अदालत में सुषमा का अपने पति से तलाक का मुकदमा चल रहा था, उन्हीं दिनों सुषमा की जिंदगी में गजेंद्र भाटी ने प्रवेश किया. गौतमुद्धनगर के बिलासपुर का रहने वाला गजेंद्र भाटी (30) एक जमींदार परिवार का नौजवान था.
परिवार में पत्नी रीना के अलावा 3 बच्चे भी थे. गजेंद्र भाटी को उस के दोस्त गज्जी के नाम से पुकारते थे. उस के बिलासपुर और दनकौर में 2 ईंट भट्ठे थे. इस के अलावा गांव में उस की खेती की कई बीघा जमीन थी. उस ने ग्रेटर नोएडा में साईं प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस भी खोल रखा था. ग्रेटर नोएडा की कई सोसाइटियों में उस ने फ्लैट खरीद कर पैसे का निवेश भी किया हुआ था.
हत्यारोपी गजेंद्र भाटी
कहते हैं जब इंसान के पास दौलत आती है तो साथ में बुरी आदतें भी आनी शुरू हो जाती हैं. गजेंद्र को भी अमीरी के साथ शराब पीने और लड़कियों के साथ अय्याशी की लत लग गई थी. वह अकसर दोस्तों के साथ अपने औफिस और फार्महाउसों में शराब की पार्टियां करता था. कभीकभी इन पार्टियों में कालगर्ल भी बुलाई जाती थी.
गज्जी की पत्नी रीना गांव की एक सीधीसादी और साधारण शक्लसूरत वाली थी, इसलिए वह घर से बाहर खूबसूरत लड़कियों में अपने लिए खुशी तलाशता था. करीब 5 साल पहले गज्जी की सुषमा से पहली मुलाकात नोएडा की सिसौदिया कैसेट कंपनी के औफिस में हुई थी. गजेंद्र भाटी वहां सुषमा की आवाज में एक भजन की कैसेट रिकौर्ड करवाने के लिए आया था.
अमूमन सोनू और सुषमा साथ ही परफौर्म करती थीं, पर उस भजन कैसेट में सुषमा ने अकेले ही परफौर्म किया था, क्योंकि ये भाटी की डिमांड थी. गजेंद्र पहली मुलाकात में ही सुषमा पर फिदा हो गया. उस ने सुषमा को उस भजन के लिए मुंहमांगी रकम दी थी, जिस से सुषमा भी पहली ही बार में उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी.
सुषमा और गजेंद्र की मुलाकात जल्द ही दोस्ती में बदल गई. सुषमा की लोकप्रियता के चर्चे गजेंद्र ने पहले भी सुने थे. जब सुषमा हकीकत में गजेंद्र की दोस्त बन गई तो गजेंद्र उसे अपने साथ इधरउधर घुमाने लगा.
गजेंद्र के पास पैसे की कमी नहीं थी. लिहाजा सुषमा को प्रभावित करने के लिए वह उसे महंगे तोहफे देता था. इस सब का असर यह हुआ कि दोनों के बीच एकदूसरे के लिए प्यार और अपनत्व के भाव पैदा हो गए.
हर औरत को एक मर्द के सहारे की जरूरत होती है. लिहाजा जब गजेंद्र जैसा अमीर और जवान दोस्त सुषमा के प्यार में डूबा तो सुषमा भी उस के प्यार में डूबने से बच न सकी. दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबध भी कायम हो गए.
एक बार दोनों के बीच रिश्ते कायम हुए तो फिर अकसर ही ऐसा होने लगा. इस के बाद जल्द ही गजेंद्र ने सुषमा के सारे खर्चे भी उठाने शुरू कर दिए. जिस फ्लैट में सुषमा अपनी बहन सोनू सम्राट के साथ रहती थी, उस के किराए से ले कर घर के तमाम खर्चे भी गजेंद्र ही उठाने लगा. एक तरह से गजेंद्र और सुषमा बिना शादी के पतिपत्नी के तौर पर साथ रहने लगे थे.
चूंकि तब तक सुषमा का संदीप के साथ कानूनी तलाक नहीं हुआ था, इसलिए सुषमा और गजेंद्र ने लिवइन रिलेशन में रहने के बावजूद अपने संबंधों को दुनिया से छिपा रखा था. लेकिन जब 4 साल पहले सुषमा का तलाक हो गया तो सुषमा ने अपने परिवार के सामने गजेंद्र के साथ अपने प्रेम संबधों का इजहार कर दिया.
चूंकि गजेंद्र ने सुषमा से वायदा किया था कि वह जल्द ही उस के साथ शादी कर लेगा, इसलिए सुषमा के परिजनों ने गजेंद्र के साथ भी उस के संबधों को कबूल कर लिया.
इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सुषमा की जिद पर गजेंद्र ने एक मंदिर में जा कर पुजारी के सामने सुषमा के गले में माला डाल कर मांग में सिंदूर भर कर उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. लेकिन उस ने वायदा किया कि अपने परिवार को मनाने और पत्नी को तलाक देने के बाद वह उस के साथ विधिवत रूप से शादी कर लेगा. सुषमा ने उस वक्त गजेंद्र की इस बात पर पूरी तरह भरोसा कर लिया.
गुपचुप ढंग से की गई शादी के कुछ दिन बाद सुषमा को पहले पति से हरजाने के रूप में जो 10 लाख रुपए मिले थे, उस में से 7 लाख रुपए गजेंद्र ने सुषमा से ये कह कर ले लिए थे कि उस के सारे खाते इनकम टैक्स विभाग ने सीज कर दिए हैं और उसे पैसों की जरूरत है.
सुषमा से लिए हुए पैसों से भाटी ने ब्रेजा कार खरीदी, लेकिन उसे भी उस ने अपने नाम करा लिया था. ये कार उस ने किसी ब्रजपाल नाम के व्यक्ति के नाम पर ली, जिस के बारे में सुषमा को जरा सा भी इल्म नहीं हुआ. यही कार उस ने सुषमा को इस्तेमाल करने के लिए दी हुई थी.
इधर वक्त बीतने के साथ सुषमा बीचबीच में अकसर पूरे समाज के सामने गजेंद्र को शादी करने का वचन याद दिलाने लगी. वक्त इसी तरह तेजी से बीतने लगा. इस दौरान उस ने गजेंद्र के 2 बच्चों के रूप में साढे़ 3 साल पहले एक बेटी और उस के डेढ़ साल बाद एक बेटे को जन्म दिया. हालांकि गजेंद्र अब समाज में सुषमा को एक पत्नी की हैसियत से अपने साथ ले कर आताजाता था. लेकिन उस ने अपने परिवार के बीच अभी भी उसे वह दरजा नहीं दिया था.
गजेंद्र ने जब सुषमा से संबध बनाए थे, तभी उस ने वायदा किया था कि वह उस के और बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए एक फ्लैट खरीद कर देगा. 2 साल पहले उस ने ग्रेटर नोएडा के बीटा-2 सेक्टर की मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में सी-104 नंबर का 3 बैडरूम का फ्लैट खरीदा और तभी से सुषमा अपनी बहन और बच्चों के साथ वहां जा कर रहने लगी थी. लेकिन गजेंद्र ने इस मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराई थी.
इस फ्लैट को भाटी ने यह बोल कर खरीदा था कि वो सुषमा के लिए है. इसीलिए सुषमा ने कहा कि मेरे नाम मत खरीदो, इसे बेटे के नाम कर दो. लेकिन उस ने दोनों के नाम न कर के रजिस्ट्री खुद के नाम करा ली. इस से सुषमा को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी.
इन वजहों से अब गजेंद्र और सुषमा के बीच अकसर विवाद होने लगा था. पहला तो यह कि सुषमा पूरे समाज के सामने गजेंद्र से अपने संबधों की मान्यता चाहती थी, दूसरे वह अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए मित्रा सोसाइटी के फ्लैट को अपने नाम कराने की जिद करने लगी थी.
यह विवाद वक्त के साथसाथ इस तरह बढ़ने लगा कि अकसर कईकई दिन तक दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो जाती थी. मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराने का विवाद धीरेधीरे इस कदर बढ़ता चला गया कि सुषमा अब गजेंद्र से अपना और अपने बच्चों का हक भी मांगने लगी थी.
तब गजेंद्र को लगने लगा कि उस ने अपने गले में मुसीबत डाल ली है. वह कभीकभी इतना परेशान हो जाता कि खुद को खत्म करने की बात सोचने लगता, तो कभी उस के मन में सुषमा से पीछा छुड़ाने के खयाल आने लगते.
13 फरवरी, 2018 को तो सुषमा और गजेंद्र के बीच इसी बात को ले कर विवाद इतना बढ़ गया कि गजेंद्र ने सुषमा को अपनी जान देने की धमकी देनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने सुषमा को डराने के लिए आत्महत्या का नाटक भी किया. उस ने स्टूल पर चढ़ कर फांसी लगाने का नाटक किया था. लेकिन बाद में उस का ये नाटक हकीकत में बदल गया. उस का पैर स्टूल से ऐसे फिसला कि वो वहीं लटक गया.
उस दिन घर में मौजूद सुषमा व सोनू ने किसी तरह उसे रस्सी के फंदे से उतार कर अस्पताल पहुंचाया और उसे बचा लिया. ठीक होने के बाद कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा. लेकिन बाद में सुषमा अपने बच्चों के लिए जमीन में हिस्सेदारी और अन्य तरह की मांगें फिर करने लगी.
रोजरोज की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए गजेंद्र ने आखिर फैसला किया कि अपनी जान देने से अच्छा है कि सुषमा नाम के कांटे को ही अपनी जिंदगी से निकाल दिया जाए. इसीलिए करीब 7 महीने पहले से ही गजेंद्र ने सुषमा की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया.
इस के लिए पहले गजेंद्र ने सुषमा के मोबाइल फोन पर कुछ ऐेसे संदिग्ध फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी देनी शुरू कर दी, जिस से लोगों को लगे कि सुषमा को पहले से ही धमकियां दी जा रही थीं. बाद में उस ने अपने लोगों के जरिए सुषमा के फेसबुक व सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणियां करवानी शुरू कर दीं, ताकि वह बदनाम हो जाए.
जब यह बात सुषमा ने गजेंद्र को बतानी शुरू की तो गजेंद्र ने सुषमा को ये विश्वास दिलाना शुरू कर दिया कि शायद सुषमा का पहला पति संदीप उसे परेशान कर रहा है. दरअसल अब गजेंद्र को सुषमा पर यह भी शक होने लगा था कि सुषमा का उस के अलावा किसी अन्य के साथ भी संबध बना हुआ है. क्योंकि वह अब ज्यादातर घर से बाहर रहने लगी थी.
जब गजेंद्र उर्फ गज्जी समझ गया कि सुषमा को रास्ते से हटाने की पृष्ठभूमि तैयार है तो उस ने अपने ड्राइवर अमित से एक दिन कहा कि यार ये सुषमा आजकल बहुत परेशान कर रही है. कोई ऐसा आदमी बता, जो सफाई से इस का काम कर दे और मेरे ऊपर भी कोई शक न जाए. गजेंद्र ने ये भी कहा कि इस काम के लिए वो कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार है.
अमित गजेंद्र का बहुत पुराना ड्राइवर था. उस के हर सुखदुख के साथ उस के हर राज में भागीदार रहता था. जब उस ने देखा कि गजेंद्र भैया बहुत परेशान हैं, तो उस ने इस बारे में अपने गांव बिलासपुर में रहने अपने चाचा अजब सिंह से बात की. अजब सिंह कुंवारा था. क्योंकि बचपन से ही वह अपराधियों की सोहबत में रहा था, इसलिए उस ने शादी भी नहीं की थी.
अजब सिंह ने अमित और गजेंद्र से इस बारे में विस्तार से बात की. जब वह उन का मकसद समझ गया तो अजब सिंह ने बुलंदशहर के मेहसाणा गांव में रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद को एक दिन ग्रेटर नोएडा बुलवा लिया.
प्रमोद ने जब पूरी बात जान ली तो उस ने गजेंद्र से सुषमा की हत्या करने के लिए 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन जब गजेंद्र ने इतने रुपए देने से मना किया तो सौदेबाजी होने लगी. आखिर में 8 लाख रुपए में प्रमोद से सुषमा की हत्या का सौदा तय हो गया.
गजेंद्र ने तय रकम में से आधे यानी 4 लाख एडवांस दे दिए थे, जबकि बाकी काम होने के बाद देने तय हुए. लेकिन गजेंद्र ने शर्त रखी थी कि काम इस तरह होना चाहिए कि उस के ऊपर कोई आंच न आए. लिहाजा इस के लिए एक योजना तैयार की गई.
प्रमोद ने इस के लिए एक क्लाइंट बन कर सुषमा से मुलाकात की और अपने गांव मेहसाणा में 19 अगस्त, 2019 को एक रागिनी कार्यक्रम के लिए उसे 15 हजार रुपए में आमंत्रित कर लिया. इस के अलावा प्रमोद ने अपने गांव में भी समारोह के लिए टैंट आदि लगवाए और उस में लोगों को आमंत्रित कर लिया. इस काम में भी जो खर्चा हुआ, वह गजेंद्र ने ही वहन किया था.
19 अगस्त, 2019 को सुषमा सोनू व एक शिष्या वैशाली और ड्राइवर को ले कर मेहसाणा गांव पहुंच गई. उस के ग्रुप के बाकी लोगों को सीधे अपने साधन से वहीं पहुंचना था. लेकिन वहां जा कर एक अजीब सा हादसा हो गया.
सुषमा को तो लगा था कि गांव में पहुंच कर उस का भव्य स्वागत होगा. हालांकि वह तय समय पर ही समारोह में पहुंच गई थी, लेकिन वहां पहंचते ही समारोह के आयोजक प्रमोद के अलावा कई लोगों ने उन के साथ इस बात को ले कर झगड़ा करना शुरू कर दिया कि वे समारोह में 2 घंटे देर से पहुंचे हैं और उन के बहुत से मेहमान वापस लौट गए. सुषमा ने जब उन्हें समझाना चाहा कि वे समय पर पहुंचे हैं तो प्रमोद व उस के साथी भड़क गए.
कई लोग उन से हाथापाई करने लगे. कुछ लोगों ने अचानक उस की गाड़ी पर लाठियों से हमला बोल दिया, जिस से उस की गाड़ी के शीशे टूट गए.
1-2 लोगों ने जब लाठियों का रुख सुषमा की तरफ किया तो सुषमा मौके की नजाकत को समझ कर तत्काल गाड़ी में बैठ गई. इस से पहले कि कोई कुछ समझता, ड्राइवर सचिन ने गाड़ी वहां से दौड़ा दी. लेकिन इस आपाधापी में सुषमा को कुछ चोटें जरूर लगीं.
इस घटना में सुषमा के साथ उस की बहन और साथी जान बचा कर भाग निकलने में कामयाब रहे थे. सुषमा के कहने पर सचिन ने गाड़ी का रुख बुलंदशहर कोतवाली देहात की तरफ मोड़ दिया. उस ने वहां जा कर कार्यक्रम के संचालक प्रमोद के अलावा अंजान लोगों के खिलाफ जानलेवा हमले का मुकदमा दर्ज करवा दिया.
इधर जब ग्रेटर नोएडा वापस लौटने के बाद सुषमा ने गजेंद्र को अपने ऊपर हुए हमले की जानकारी दी तो उस ने सुषमा को बताया कि हो न हो, इस हमले के पीछे भी संदीप के लोगों का ही हाथ है. हालांकि उस दिन सुषमा का खात्मा नहीं होने के कारण गजेंद्र को अजब सिंह, अमित और प्रमोद पर गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन उस ने किसी तरह खुद को संभाल लिया.
गजेंद्र ने उस दिन सुषमा के साथ ऐसा बर्ताव किया मानो उसे ही सुषमा की सब से ज्यादा फिक्र हो और उस के लिए बेहद चिंतित है. गजेंद्र ने सुषमा को तमाम मतभेदों के बाद इस बात की सख्त हिदायत दी कि अब वह जहां भी जाएगी, अपने बारे सारी जानकारी उसे जरूर देगी ताकि उसे पता तो रहे कि वह कहां है और क्या कर रही है.
मेहसाणा गांव में सुषमा की हत्या करने की योजना के नाकाम होने से सुषमा की हत्या की सुपारी लेने वाला प्रमोद, अजब सिंह और अमित हतोत्साहित जरूर हुए थे. लेकिन इस के बावजूद उन्होंने गजेंद्र भाटी से वायदा किया कि हर हाल में वे अब की बार शिकार का कत्ल कर के ही उसे अपना मुंह दिखाएंगे.
इस के बाद अजब सिंह और प्रमोद ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने परिचित जेवर के एक अपराधी संदीप और अगौता के रहने वाले मुकेश को इस योजना में शामिल कर लिया. प्रमोद ने सुपारी की रकम में से 2 लाख रुपए भी उन दोनों को दिए साथ ही उन्हें अलीगढ़ से एक पिस्टल व तमंचा खरीद कर उन दोनों को ला कर दे दिया.
इधर, बुलंदशहर कोतवाली देहात पुलिस ने प्रमोद के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया था, उस में उन्होंने प्रमोद की तलाश शुरू की दी थी, लेकिन वह अपने घर से फरार था. लिहाजा पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया. इस दौरान सुषमा लगातार बुलंदशहर पुलिस के अधिकारियों से संपर्क कर के खुद पर जानलेवा हमला करने वालों की गिरफ्तारी का दबाव बनाती रही.
दूसरी तरफ गजेंद्र भी सुषमा की हत्या के लिए फाइनल साजिश तैयार करने में जुटा था. उस ने एक दिन इस साजिश में शामिल लोगों को ग्रेटर नोएडा बुला कर उन्हें पूरी रणनीति समझा दी. उस ने सभी आरोपियों को वारदात करने के लिए नए सिमकार्ड खरीद कर दिए और हिदायत दी कि इस काम के संबध में सभी लोग नए सिम का ही प्रयोग करेंगे.
इस के अलावा गजेंद्र ने संदीप, मुकेश, प्रमोद, अजब सिंह और अमित को 15 सिंतबर को मित्रा सोसायटी के सामने बनी अंसल सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले कर दिया और सभी बदमाशों ने उस फ्लैट में डेरा डाल दिया. इस फ्लैट में गजेंद्र भी जाता रहता था.
घटना वाली सुबह गजेंद्र सुषमा के साथ ही घर में था. सुषमा अपनी बहन और वैशाली को साथ ले कर उसे यह बता कर बुलंदशहर गई थी कि वह शाम तक लौट आएगी.
गजेंद्र ने उसी दिन सुषमा की हत्या का फैसला कर लिया. क्योंकि सुषमा उसे बता चुकी थी कि वह 1-2 दिन में बीजेपी जौइन करने वाली है. गजेंद्र जानता था कि कि अगर सुषमा ने सत्ताधारी पार्टी को जौइन कर लिया तो उसे मारना भी मुश्किल हो जाएगा और बुलंदशहर में हमले का राज भी खुल सकता है. क्योंकि पुलिस उस की छानबीन फिर तेज कर सकती है.
गजेंद्र जानता था कि सुषमा ने बतौर कलाकार के तौर पर तो बहुत नाम कमा लिया था. लेकिन वह अब राजनीति में जा कर कोई मुकाम हासिल करना चाहती थी. हालांकि उस ने कई साल पहले ही बीएसपी जौइन कर ली थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर के किसी विधानसभा क्षेत्र से वह पार्टी का टिकट चाहती थी. लेकिन पार्टी ने उसे टिकट नहीं दिया था.
सुषमा ने उस वक्त कई मौकों पर खुद को बतौर बीएसपी की भावी विधानसभा प्रत्याशी के तौर पर प्रचारित करते हुए उस के पोस्टर व होर्डिंग भी लगवाए थे. इसीलिए निराश हो कर अब उस ने भाजपा नेताओं के साथ अपनी जानपहचान बढ़ानी शुरू कर दी थी और जल्द ही पार्टी में शामिल होने वाली थी.
उस दिन सुषमा इसी मकसद से बुलंदशहर गई थी, जहां वह बुलंदशहर भाजपा जिला अध्यक्ष हिमांशु मित्तल से जिला कैंप कार्यालय पर मिली थी. मित्तल ने उसे 1-2 दिन में ही किसी कार्यक्रम में पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराने का आश्वासन दिया था. राजनीति में आने के बाद सुषमा अपनी पकड़ मजबूत कर के जल्द ही चुनाव लड़ने का सपना देख रही थी.
राजनीतिक रूप से मजबूत होने के बाद सुषमा उस के लिए और ज्यादा घातक और बड़ी मुसीबत बन सकती है, इसलिए उस दिन दोपहर बाद से ही गजेंद्र सुषमा से लगातार फोन पर बात करते हुए उस की लोकेशन की पलपल की जानकारी ले कर अपने साथियों को देता रहा. उस ने उन्हें हिदायत दी कि सुषमा का आज ही काम तमाम होना है.
शाम 6 बजे गजेंद्र की सुषमा से हुई बात से यह पता चल गया कि अगले 2 घंटे के भीतर सुषमा घर लौट आएगी तो मुकेश व संदीप अपनी बाइक ले कर हैलमेट लगा कर पहले ही सोसाइटी में आ कर छिप गए. संयोग से किसी ने उन्हें भीतर आने से नहीं रोका, न ही उन की गाड़ी का नंबर नोट किया गया.
वारदात को अंजाम देने के बाद मुकेश व संदीप को बैकअप देने के लिए सोसाइटी से कुछ ही दूर गजेंद्र की फौर्च्युनर कार में अमित, प्रमोद व अजब सिंह भी बैठे थे. वारदात से आधा घंटा पहले संदीप और मुकेश ने अपने मोबाइल बंद कर दिए थे. क्योंकि गजेंद्र उन्हें बता चुका था कि किसी भी वक्त सुषमा अपनी ब्रेजा कार से सोसायटी के गेट पर आ कर रुकने वाली है.
गजेंद्र ने उन्हें यह भी बता दिया था सुषमा गेट पर ही गाड़ी से उतर जाएगी क्योंकि उस ने सोसाइटी के बाहर एक स्टाल से दूध लाने के लिए उसे बोला है. बस मुकेश और संदीप सोसाइटी के भीतर बाइक पर सवार हो कर मुख्यद्वार की तरफ देखने लगे ताकि जैसे ही सुषमा गेट पर उतरे, वे उस का काम तमाम कर दें. वैसा ही हुआ जैसी योजना तैयार हुई थी.
सोसाइटी के मुख्य द्वार पर सुषमा ने गाड़ी रुकवाई और वह नीचे उतर गई. ठीक उसी समय दोनों शूटर संदीप और मुकेश ने बाइक स्टार्ट की और ठीक मुख्यद्वार के पास सुषमा के समीप जा कर रोक दी. बाइक पर पीछे बैठे मुकेश ने नीचे उतर कर पिस्टल निकाल कर सुषमा पर ताबड़तोड़ 4 गोलियां चला दीं. मुश्किल से 2 से 3 मिनट में संदीप और मुकेश ने अपने काम को अंजाम दे दिया और उस के बाद बाइक से फरार हो गए.
करीब 2 किलोमीटर दूर जाने के बाद मुकेश ने अपने मोबाइल में से नया सिम निकाल कर उस में अपना पुराना सिम डाला और उस से गजेंद्र के पर्सनल नंबर पर फोन कर के सूचना दी कि उन्होंने अपना काम कर दिया है. बस यहीं पर उन से चूक हो गई.
पुलिस ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने ऐसा महसूस किया कि सुषमा की हत्या के बाद गजेंद्र और उस का चालक अमित सब से ज्यादा ड्रामा कर रहे हैं. दोनों ही अस्पताल में सब से ज्यादा रो रहे थे. ऐसा आमतौर पर वही लोग करते हैं जो ऐसा जताना चाहते हैं कि उन पर किसी को शक न हो.
हालांकि गजेंद्र पोस्टमार्टम आदि कराने के बाद नेकपुर स्थित सुषमा के गांव भी पहुंचा था और उस ने ही सुषमा के शव को मुखाग्नि भी दी थी. यही कारण था कि सुषमा के परिवारजनों को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ था.
मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को सुषमा की बहन सोनू ने सिर्फ यही बताया था कि वारदात वाली रात 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा के साथ बुलंदशहर जिले से लौटी थी. वहां वे किसी काम से भाजपा कार्यालय गए थे. इस के बाद सुषमा कोतवाली देहात थाने में अपने ऊपर हमले के पुराने केस के सिलसिले में भी प्रगति जानने के लिए पहुंची थी.
वारदात वाले दिन सुषमा की कार खुर्जा के कलेना गांव निवासी उस का ड्राइवर सचिन चला रहा था. साथ में उस की शिष्या वैशाली भी थी. वारदात वाली रात को सोनू ने किसी पर भी शक नहीं जताया था. लेकिन अगली सुबह उस ने पुलिस को जो शिकायत लिख कर दी, उस में सोनू ने लिख कर दिया था कि हैलमेट लगाने वाले हमलावर मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में रहने वाले बृजेश की बाइक पर सवार थे. इस शिकायत में बाइक का नंबर भी लिखा गया था.
पुलिस ने जब सोसाइटी में रहने वाले बृजेश से पूछताछ की तो पता चला उस के पास तो बाइक है ही नहीं. यह भी पता चला कि न तो वह सुषमा को जानता है और न ही सुषमा से उस का कोई लेनादेना है. साथ ही छानबीन में पता चला कि जो नंबर सोनू ने शिकायत में लिख कर दिया था, उस नंबर की कोई बाइक पंजीकृत ही नहीं थी.
जब जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने सोनू से इस बारे में बात की तो उस ने बताया कि यह शिकायत उस के जीजा गजेंद्र भाटी ने लिख कर उसे दी थी. बस इसी के बाद गजेंद्र भाटी जांच अधिकारी के शक के दायरे में आ गया.
गजेंद्र भाटी पर पुलिस का शक तब यकीन में बदल गया, जब अगले दिन सोनू ने जांच अधिकारी के सामने एक नया खुलासा किया.
दरअसल, सोनू इस बात से भलीभांति वाकिफ थी कि सुषमा और गजेंद्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसीलिए सोनू ने वारदात के बाद ही गजेंद्र से पूछ लिया था कि गजेंद्र सच बताओ इस के पीछे किस का हाथ है.
गजेंद्र जानता था कि सोनू बहुत कुछ जानती है और वह सुषमा और उस के बारे में पुलिस को काफी कुछ बता सकती है. इसलिए उस ने सुषमा का अंतिम संस्कार करने के बाद सोनू से कहा, ‘‘सोनू, तुम तो जानती ही हो कि सुषमा ने किस तरह मेरी जिंदगी को नरक कर के रख दिया था, इसलिए मजबूरी में मुझे ही सुषमा का काम तमाम कराना पड़ा.’’
चूंकि गजेंद्र जानता था सुषमा की मौत के बाद अब उस के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रह जाएगी. इसलिए उस ने सोनू को लालच दिया कि वह किसी तरह पुलिस को बरगला कर इस मामले को शांत करवा दे इस के बदले वह उसे 50 लाख रुपया दे देगा ताकि उस की आगे की जिंदगी संवर सके.
लेकिन सोनू ने अगले ही दिन यह बात जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को बता दी, जिस के बाद गजेंद्र पूरी तरह पुलिस की नजर में चढ़ गया. इसी के बाद पुलिस ने गजेंद्र और सुषमा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. इस की जांचपड़ताल के बाद पता चला कि वारदात वाले दिन गजेंद्र ने सुषमा से अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा बात की थी.
साथ ही यह बात भी पता चली कि गजेंद्र सुषमा से बात होने के बाद हर बार अलगअलग नंबरों पर कुछ देर बात करता था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि जिस वक्त सुषमा को गोली लगी, उस के कुछ देर बाद गजेंद्र के मोबाइल पर एक अलग नंबर से काल आई थी.
क्राइम ब्रांच की टीम के प्रभारी यतेंद्र ने जब उस नंबर की जांच की तो पता चला कि यह नंबर उसी मोबाइल फोन में चल रहा था, जिस पर सुषमा की हत्या होने से पहले एक दूसरा सिम लगा था और गजेंद्र उस नंबर पर बात कर रहा था.
इस जांच के बाद कडि़यों से कडि़यां जुड़ती चली गईं और पुलिस की दोनों जांच टीमों ने गजेंद्र, उस के ड्राइवर अमित, अमित के चाचा अजब सिंह, प्रमोद, संदीप और मुकेश को संदेह के दायरे में रख कर जांच आगे बढ़ानी शुरू कर दी.
तब तक पुलिस ने गजेंद्र को ये आभास नहीं होने दिया कि वह शक के दायरे में है. इन सभी के मोबाइल की निगरानी शुरू की गई तो पता चला 6 अगस्त की शाम को इन सभी की लोकेशन एक ही जगह पर है.
इसी के आधार पर पुलिस ने अपनी घेराबंदी शुरू कर दी और शाम को मुकेश और संदीप के साथ पुलिस की मुठभेड़ हो गई, जिस में घायल होने के बाद संदीप और मुकेश पुलिस के चंगुल में फंस गए.
बस इस के बाद पुलिस को जांच के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और इस के बाद गजेंद्र, अमित, अजब सिंह और प्रमोद सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.
सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट से कब्जे में ली गई सीसीटीवी फुटेज से भी सुषमा पर गोली चलाने वाले संदीप और मुकेश के हुलिए का मिलान कराया तो उन का हुलिया मेल खा गया.
पुलिस ने वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिसे हत्या को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया था.
पूछताछ में पता चला कि गजेंद्र पिछले कई महीनों से सुषमा से छुटकारा पाने की साजिश बनाने में जुटा था. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने वारदात के बाद सुषमा के पूर्व पति संदीप कौशिक के खिलाफ सुषमा के मन में जहर भरना शुरू कर दिया था. ताकि सुषमा की हत्या के बाद पुलिस पूरी तरह संदीप कौशिक को शक के दायरे में रख कर जांचपड़ताल में उलझ जाए.
इस के लिए सुषमा ने गजेंद्र के कहने पर अपनी हत्या से कुछ माह पहले बीटा-2 थाने में और व एसएसपी कार्यालय में शिकायत दी थी कि उस का पहला पति उसे इसलिए परेशान करता है, क्योंकि उस ने दूसरी शादी कर ली है.
सुषमा ने संदीप कौशिक के खिलाफ फेसबुक समेत सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने की शिकायत पुलिस से की थी. लेकिन पुलिस ने इस शिकायत को उस वक्त गंभीरता से नहीं लिया था.
इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने वाली बीटा-2 थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम को गौतमबुद्धनगर के एसएसपी वैभव कृष्ण ने 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.
—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों और परिजनों से हुई पूछताछ पर आधारित