उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सुभाष रोड स्थित प्रदेश पुलिस मुख्यालय में उस दिन भी रोज की ही तरह पुलिस महानिदेशक बी.एस.  सिद्धू समेत अन्य अधिकारी अपनेअपने औफिसों में बैठे कार्य में लगे थे. पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा भी अपने औफिस में जरूरी फाइलें निपटा रही थीं, तभी ड्यूटी पर तैनात उन के पीए ने इंटरकौम से सूचना दी, ‘‘मैडम, एक लड़की आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘ठीक है, उसे अंदर भेज दो.’’ ममता वोहरा ने कहा.

उन के कहने के पल भर बाद एक लड़की दरवाजे पर टंगा परदा हटा कर अंदर आ गई. लड़की को देखते ही वह पहचान गईं. उस का नाम गुडि़या था और वह एक बहुचर्चित दुराचार मामले की वादी थी. उन्हें लगा, लड़की अपने केस की प्रगति के बारे में जानने आई है, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘कहिए सब ठीक तो है? हमारी पुलिस उसे गिरफ्तार करने की कोशिश में लगी है. वह जल्दी ही पकड़ा जाएगा.’’

‘‘वह तो ठीक है मैडम, लेकिन…’’ लड़की ने इतना ही कहा था कि ममता वोहरा ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या…’’

‘‘मैडम, मैं अपना बयान दोबारा देना चाहती हूं.’’ गुडि़या ने कहा.

सवालिया नजरों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘मतलब?’’

‘‘मैडम, रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मैं ने जो बयान दिया था, अब उस में मैं कुछ बदलाव करना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’ एसपी वोहरा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम, उस समय मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. उलझन में पता नहीं मैं ने क्या कुछ कह दिया था. गफलत में जो कह गई, अब उस में सुधार करना चाहती हूं.’’

इतना कह कर गुडि़या ने एक कागज उन की ओर बढ़ा दिया. ममता वोहरा ने उसे ले कर गौर से पढ़ा. उस में उस ने अपना बयान बदलने के बारे में लिखा था. उसे पढ़ कर उन्हें हैरानी हुई कि आखिर यह ऐसा क्यों करना चाहती है. उस का मामला काफी गंभीर ही नहीं था, बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय भी बना हुआ था.

इसलिए विचारों से निकल कर उन्होंने गुडि़या से कहा, ‘‘देखो, मुझे इस मामले में अपने अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी. तुम अपना यह प्रार्थना पत्र मेरे पास छोड़ जाओ.’’

गुडि़या ने अपना वह प्रार्थना पत्र उन्हीं के पास छोड़ दिया और बाहर आ गई. यह 5 मई, 2014 की बात थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा के लिए यह हैरानी की बात थी कि लगातार न्याय की मांग करती आ रही लड़की अचानक अपनी बात से पलटना क्यों चाहती है. पीडि़त होने के नाते उस के साथ उन की शुरू से ही सहानुभूति रही थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा ने गुडि़या द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र से अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस मुद्दे पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) आर.एस. मीना और एसएसपी अजय रौतेला के साथ रायमशविरा किया.

अधिकारी गुडि़या के इस कदम से न केवल हैरान थे, बल्कि असमंजस की स्थिति में भी थे. मामला हाईप्रोफाइल था. इसलिए अधिकारियों को जब पता चला कि गुडि़या ने 2 दिन पहले अदालत में भी अपना बयान दोबारा कराने के लिए शपथ पत्र दिया है तो उन्हें चिंता हुई. यह बात अलग थी कि उस के उस शपथ पत्र पर अभी सुनवाई नहीं हुई थी.

गुडि़या के इस कदम से पुलिस को अनेक आशंकाएं हुईं. इस की वजह यह थी कि अभी अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. जबकि पुलिस की कई टीमें उस का गैरजमानती वारंट लिए अंतरराज्यीय स्तर पर उस की तलाश कर रही थीं.

अभियुक्त रसूख, राजनीतिक पहुंच और दौलत वाला था. लड़की को बयान बदलने के लिए डराया धमकाया भी जा सकता था. कहीं इसी वजह से तो गुडि़या बयान बदलने के लिए मजबूर नहीं है? अगर सचमुच में ऐसा था तो यह कानून के लिए एक बड़ी चुनौती थी. अभियुक्त के गिरफ्तार न होने से पुलिस वैसे ही सवालों के घेरे में थी.

दरअसल 18 अप्रैल, 2014 को गुडि़या ने देहरादून के थाना राजपुर में एक मुकदमा दर्ज कराया था. जिस से पूरे उत्तराखंड राज्य में सनसनी फैल गई थी. यह मुकदमा प्रदीप सांगवान के खिलाफ दर्ज कराया गया था.

सनसनी की वजह यह थी कि मूलरूप से सोनीपत का रहने वाला प्रदीप सांगवान कोई मामूली आदमी नहीं था. उस के पिता किशनचंद सांगवान भारतीय जनता पार्टी से सांसद रह चुके थे. वह खुद भी एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ा हुआ था.

उस ने देहरादून और पहाड़ों की रानी मसूरी में अपना घर बना रखा था. इस के अलावा देहरादून के सहस्रधारा स्थित पिकनिक स्थल के रूप में विकसित किए गए जौयलैंड वाटर पार्क का मालिक भी था. देहरादून में उस के रहने की यही वजहें थीं.

गुडि़या ने आरोप लगाया था कि प्रदीप सांगवान ने उस के साथ न सिर्फ दुष्कर्म किया था, बल्कि उस दौरान उस की एक वीडियो क्लिप भी बना ली थी. जिस के बल पर वह उस का यौन शोषण कर रहा था. उस वीडियो क्लिप को सार्वजनिक करने और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर डालने की धमकियां दे कर वह उस का मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था. उसे जो धमकियां दी जा रही थीं, उस के सुबूत में उस ने अपने मोबाइल फोन में पुलिस को कुछ मैसेज भी दिखाए थे.

मामला बेहद गंभीर था. ऐसे मामलों में कानून हर तरह से पीडि़ता के साथ होता है. उस की बात को गंभीरता से सुना ही नहीं जाता, बल्कि तुरंत काररवाई भी की जाती है. राजपुर के थानाप्रभारी  प्रदीप राणा ने तुरंत इस बात की उच्चाधिकारियों को जानकारी दी थी, जहां से उन्हें उचित काररवाई के निर्देश मिले थे.

गुडि़या की शिकायत व बयानों के आधार पर थानाप्रभारी ने मुकदमा अपराध संख्या 33/14 पर नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया था और मामले की जांच इंसपेक्टर अंशू चौधरी को सौंपी गई थी. चूंकि मामला रसूखदार आदमी से जुड़ा था, इसलिए यह मीडिया वालों के लिए सुर्खियां बन गया था.

मुकदमा दर्ज होते ही एसएसपी अजय रौतेला ने पुलिस अधीक्षक (नगर) नवनीत भुल्लर, होमीसाइड सेल के प्रभारी प्रदीप टमटा और स्पेशल टास्क फोर्स की टीम को भी प्रदीप सांगवान की गिरफ्तारी के लिए लगा दिया था. पुलिस उस की तलाश में निकली तो वह गायब मिला.

प्रदीप सांगवान से मिलने से ले कर दुराचार तक की जो कहानी गुडि़या ने पुलिस को बताई थी, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी. वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी, जिस में वह एक खूबसूरत जाल में उलझ कर रह गई थी.

गुडि़या उत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली थी. नौकरी व सुनहरे भविष्य की तलाश में वह साल 2012 में देहरादून आ गई थी. देहरादून में वह अपनी एक सहेली के पास रुकी थी. यहां कोई नौकरी कर के वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने नौकरी की तलाश भी शुरू कर दी. कुछ जगह उसे अवसर मिले भी, परंतु काम पसंद नहीं आया.

तब उस की उस सहेली ने कहा, ‘‘तू किसी प्लेसमेंट एजेंसी का सहारा क्यों नहीं लेती?’’

‘‘मैं खुद ही कोई बढि़या नौकरी तलाश लूंगी. अखबार रोज देख ही रही हूं, कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘अरे हां, कल मैं ने देखा था, जौयलैंड वाटर पार्क में कैशियर की जगह खाली है. वहां ज्यादा काम भी नहीं है. कोशिश करो, शायद तुम्हें वहां नौकरी मिल ही जाए.’’

अगले ही दिन गुडि़या अपना बायोडाटा ले कर जौयलैंड पार्क जा पहुंची. थोड़े इंतजार के बाद वाटर पार्क के मालिक प्रदीप सांगवान से उस की मुलाकात भी हो गई. पहली नजर में प्रदीप सांगवान गुडि़या को अच्छा आदमी लगा. गुडि़या को इस से भी ज्यादा खुशी तब हुई, जब औपचारिक बातचीत के बाद उस ने उसे नौकरी पर रख लिया.

अगले दिन यानी 24 जून, 2012 से गुडि़या अपनी नौकरी पर जाने लगी. उसे कैशियर के पद पर रखा गया था, इसलिए वाटर पार्क में आनेजाने वाले पैसों का हिसाब उसे ही रखना था. बैंक के लेनदेन का हिसाब भी उसे ही देखना था, इस के अलावा पार्क से होने वाली प्रतिदिन कमाई की एंट्री भी उसे ही करनी थी.

गुडि़या मेहनत कर के जमाने की रफ्तार के साथ आगे बढ़ना चाहती थी. सोच की इसी इमारत पर नौकरी के रूप में उस ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा. वह सुंदर भी थी और मेहनती भी. उत्तराखंड की आबोहवा उसे शुरू से ही पसंद थी. कुछ ही दिनों में अपने काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया.

जल्दी ही वह वाटर पार्क में काम करने वाले अन्य लोगों से भी घुलमिल गई थी. उस का सोचना था कि वहां नौकरी करते हुए उस के सपने पूरे होंगे. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो जिंदगी के सफर के रास्ते हर इंसान अपनी ओर से अच्छा ही चुनता है.

रास्ते सीधे भी होते हैं तो कई मोड़ से भी हो कर गुजरते हैं. मोड़ वाले रास्ते में कब, कौन, किस तरह की कड़वी हकीकत से रूबरू हो जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. कभीकभी अचानक ऐसे भी मोड़ आ जाते हैं, जब इंसान को अपना अक्स भी धुंधला नजर आने लगता है. गुडि़या के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

नौकरी के उस के 2 सप्ताह बड़ी अच्छी तरह बीते. वह बहुत खुश थी. वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था. तीसरा सप्ताह चल रहा था. एक दिन प्रदीप ने कहा, ‘‘गुडि़या आज तुम्हें मेरे साथ मसूरी चलना है.’’

‘‘क्यों सर?’’

‘‘वहां एक प्रिंसिपल हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें मार्केटिंग का बहुत अच्छा नौलेज है. मैं चाहता हूं कि तुम उन से कुछ सीख लो, जिस का तुम्हें भी लाभ होगा और हमें भी.’’

‘‘ओके सर.’’ गुडि़या ने हामी भर दी. वह प्रदीप के यहां नौकरी करती थी. मन में कोई आशंका थी नहीं, जिस की वजह से वह उस के साथ जाने से मना कर देती. वह जाने के लिए तैयार हो गई. उसे क्या पता था कि उसे बहाने से एक ऐसे खूबसूरत जाल में उलझाया जा रहा है, जिस में फंस कर वह छटपटा कर रह जाएगी.

शाम तक वह प्रदीप के साथ पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंच गई. देहरादून से वहां पहुंचने में एक घंटे से भी कम समय लगा. वहां पहुंच कर प्रदीप ने कहा, ‘‘हम तो आ गए, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या सर?’’ गुडि़या ने पूछा.

‘‘प्रिंसिपिल यहां हैं ही नहीं.’’

‘‘कब आएंगी?’’

‘‘कह नहीं सकता. क्योंकि उन का मोबाइल बंद है.’’

मसूरी में भी प्रदीप का घर था. उस ने कह उस रात गुडि़या को वहीं रुकने के लिए तैयार कर लिया. फिर वह रात गुडि़या के लिए कयामत की रात साबित हुई. गुडि़या के अनुसार प्रदीप ने शराफत का नकाब उतार कर उस रात कई बार उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस दौरान की वीडियो क्लिप भी बना ली.

सुबह उस ने गुडि़या से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या आगे उस की बात नहीं मानी तो उस की इस क्लिप को फेसबुक पर अपलोड कर दिया जाएगा, जिसे सारी दुनिया देखेगी.

सब कुछ गंवा कर गुडि़या अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह गई. इस के बाद से उस के यौन शोषण का सिलसिला चल निकला. यह सब होते धीरेधीरे एक साल से ज्यादा हो गया. वह आंसू बहा कर रह जाती थी.  वहां जब भी विरोध करती, उसे धमका दिया जाता. गुडि़या को अपनी जिंदगी दोजख सी लगने लगी. जब वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई तो इंसाफ के लिए पुलिस की दहलीज पर जा पहुंची और प्रदीप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला प्रकाश में आते ही चर्चा का विषय बन गया. इस की राजनीति के गलियारों में भी चर्चा हो रही थी. पुलिस ने गुडि़या का मैडिकल कराया. 22 अप्रैल को सिविल जज (तृतीय) के यहां धारा 164 के तहत उस का बयान दर्ज कराया. अगले दिन पुलिस ने गुडि़या का कलमबंद बयान दर्ज किया, जिस में उस ने अपने साथ हुई पूरी घटना को दोहरा दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर अंशू चौधरी ने सुबूत जुटाने के लिए घटनास्थल मसूरी के रिहाइशी इलाके और वाटर पार्क का निरीक्षण कर के नक्शा तैयार किया. पुलिस सुबूत जुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए वाटर पार्क के कर्मचारियों समेत करीब 16 लोगों के बयान दर्ज किए.

मामला पहुंच वाले आदमी से जुड़ा था, पुलिस तथ्यों के आधार पर ही आगे की काररवाई करना चाहती थी. प्रदीप की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें गठित कर दी गई थीं, जो लगातार उसे तलाश रही थीं. कई दिन बीत गए, वह हाथ नहीं आया.

3 मई को पुलिस ने उस के देहरादून स्थित आवास पर छापा मारा. वह तो फरार था, इसलिए कहां से मिलता. पुलिस ने वहां की जांचपड़ताल के दौरान मोबाइल, लैपटौप और अन्य समान बरामद किया. इस के बाद पुलिस ने अदालत से उस का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया. अदालत ने प्रदीप को भगोड़ा भी घोषित कर दिया.

प्रदीप के जहांजहां मिलने की संभावना थी, वहांवहां पुलिस टीमें छापा मार रही थीं. चंडीगढ़, दिल्ली, मेरठ में संभावित ठिकानों पर उस की तलाश की गई. मामले ने काफी तूल पकड़ा तो इस की जांच पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा को सौंप दी गई. वह बिना किसी दबाव के पीडि़ता को इंसाफ दिलाना चाहती थीं. इस के लिए तमाम सामाजिक संगठन आवाज भी उठा रहे थे.

पुलिस प्रदीप सांगवान को पकड़ने के लिए जीजान से जुटी थी, तभी गुडि़या ने अचानक बयान बदलने का शपथ पत्र दिया तो पुलिस अधिकारी अजीब उलझन में पड़ गए. इस से पुलिस को आशंका हुई कि कहीं उस की जान खतरे में तो नहीं है. किसी दबाव में तो वह ऐसा नहीं कर रही है.

पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने अधीनस्थों को निर्देश दिए कि पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि पीडि़ता की जान खतरे में तो नहीं है. इस के बाद यह पता लगाया जाए कि वह ऐसा कर क्यों रही है?

उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा देने से उस की पहचान उजागर हो सकती थी, इसलिए उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा न दे कर उस पर खुफिया नजर रखने के लिए एक टीम लगा दी गई. इसी के साथ उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया कि अगर कोई उसे डराधमका रहा होगा तो यह बात भी सामने आ जाएगी.

इतना सब कर के प्रदीप की गिरफ्तारी के प्रयासों की समीक्षा कर के कोशिश और तेज कर दी गई. अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस टीमें तेजी से काम में जुट गईं. इस में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम के सदस्यों को भी शामिल किया गया था. पुलिस ने अदालत से प्रदीप का कुर्की वारंट भी हासिल कर लिया था.

12 मई को गुडि़या द्वारा अदालत में बयान बदलने संबंधी शपथ पत्र पर सुनवाई हुई. अदालत ने उस की अपील को नामंजूर करते हुए कहा, ‘‘न ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है और न ही यह विधि सम्मत है.’’

गुडि़या की बात अदालत ने नहीं मानी थी. यह उस के लिए एक बड़ा झटका था.

अगले दिन यानी 13 मई को इस मामले में अचानक चौंकाने वाला मोड़ आ गया. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने आननफानन इस मामले को ले कर प्रेसवार्ता बुलाई तो सभी ने सोचा कि अभियुक्त गिरफ्तार हो गया होगा. लेकिन जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना नहीं की थी.

दरअसल पुलिस ने गुडि़या को ही गिरफ्तार कर लिया था. उस पर पुलिस को गुमराह करने और अभियुक्त को ब्लैकमेल कर के समझौता करने का आरोप था. यह आरोप फोरैंसिक सुबूतों के साथ था, जिस में यह आरोप किसी और ने नहीं, पुलिस ने ही लगाया था.

गोपनीय रूप से गुडि़या की निगरानी कर रही पुलिस को जांच में पता चला था कि उस ने दुराचार के मामले में समझौते के लिए एक बड़ा सौदा कर लिया था.

उसी सौदे के बाद अभियुक्त प्रदीप को बचाने के लिए वह अपना बयान बदलना चाहती थी. इज्जत का यह सौदा मामूली रकम में नहीं, आधा करोड़ रुपयों से भी ज्यादा में हुआ था. रकम से गुडि़या ने मकान और सुखसुविधा के आधुनिक साधन जुटा भी लिए थे. पुलिस ने उस के पास से लाख रुपए नकद बरामद भी किए थे.

पुलिस ने गुडि़या के साथ उस के एक दोस्त सईद को भी गिरफ्तार किया था. इस सौदेबाजी में दिल्ली निवासी अजय मान ने अपने जीजा प्रदीप सांगवान को बचाने में सईद की मार्फत गुडि़या से बात की थी.

समझौता चूंकि दोनों पक्षों की रजामंदी से हुआ था, इसलिए कोई भी एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकता था. इसलिए गुडि़या, उस के साथी और अजय के खिलाफ थाना कोतवाली में सबइंस्पेक्टर नीलम रावत की ओर से ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज किया गया था.

प्रदीप सांगवान पर दर्ज मुकदमों की धाराओं में सुबूतों को प्रभावित करने की धारा 201 बढ़ा दी गई थी. गुडि़या की गिरफ्तारी के पीछे चौंकाने वाली जो कहानी थी, वह इस प्रकार थी.

पुलिस ने गुडि़या पर नजर रखनी शुरू की तो उस की काल डिटेल्स में 2 संदिग्ध नंबर नजर आए. दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन में से एक नंबर दिल्ली के रहने वाले अजय का था तो दूसरा सईद चौधरी का.

पुलिस को लगा कि वही दोनों गुडि़या को धमका रहे हैं. इसी शक के आधार पर गुडि़या के मोबाइल की रिकौर्डिंग शुरू की गई तो मामला कुछ दूसरा ही सामने आया. अजय प्रदीप सांगवान का साला था तो सईद गुडि़या का दोस्त. सईद उत्तराखंड के ही जिला ऊधमसिंहनगर के काशीपुर के रहने वाले इफ्तिखार हुसैन का बेटा था.

गुडि़या की उस से रोज ही बातें होती थीं. मोबाइल की काल रिकौर्डिंग से पता चला कि वे उसे धमकी नहीं देते थे, बल्कि समझौते की बात करते थे. गुडि़या की समझौते की बात हो चुकी थी.

एक दिन सईद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या हाल है गुडि़या?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘उस ने पैसे दिए कि नहीं?’’

‘‘अभी उस ने पैसे कहां दिए हैं?’’ गुडि़या ने कहा तो सईद बोला, ‘‘फिर भी तुम ने कोर्ट में अर्जी लगा दी.’’

‘‘हां, अर्जी तो लगा दी है, लेकिन मैं ने यह नहीं कहा है कि मैं बयान वापस ले रही हूं. मैं ने अर्जी में लिखा है कि पहले दिए गए बयान में कुछ तथ्य छूट गए हैं, जिस की वजह से मैं दोबारा बयान देना चाहती हूं. उस हिसाब से मैं कुछ भी कह सकती हूं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि बयान बदल देने के बाद वह बाकी पैसे देने में दिक्कत करे?’’

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता. कर भी सकते हैं. इसीलिए मैं ने ऐसा लिखा है.’’

‘‘खैर, तुम दोनों तरफ से सेफ हो. मैं ने तुम्हारी हर तरह से मदद की है. पैसे के लिए क्या कह रहा था?’’

‘‘कह रहा था 5 लाख अभी ले लो, बाकी इलेक्शन के बाद दे दूंगा. मेरे नाम मकान की रजिस्ट्री तो करा दी है, कुछ पैसे भी दिए हैं, जिस से मैं ने घर का सामान खरीद लिया है.’’

‘‘वह डबल गेम तो नहीं खेल रहा?’’

‘‘मैं अजय से बात कर लूंगी. अगर वह पैसे दे देगा, तभी मैं अपना केस वापस लूंगी.’’

‘‘अभी तुम अजय से कोई बात मत करो. जब मैं कहूंगा, तभी करना. देख लेना और जैसा भी हो बता देना.’’

‘‘टेंशन मत लो, अभी गेंद मेरे ही पाले में है. ओके बाय.’’ अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कह कर गुडि़या ने फोन काट दिया.

ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई थी. समझते देर नहीं लगी कि दुराचार के इस मामले में पुलिस और कानून को तमाशा बनाया जा रहा है.

पुलिस ने गुडि़या के खिलाफ सुबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस ने अपने नाम मकान की रजिस्ट्री की बात की थी. इस के लिए दस्तावेजों की जांच जरूरी थी. पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस से एक महीने के अंदर मकानों की खरीदफरोख्त करने वाले लोगों की सूची हासिल कर ली.

लेकिन इस सूची की जांच की गई तो उस में गुडि़या का नाम नहीं था. यह हैरान करने वाली बात थी. जबकि फोन टेपिंग में उस ने स्पष्ट कहा था कि उस के नाम एक मकान की रजिस्ट्री हुई थी.

पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस जा कर जब हो चुकी रजिस्ट्री की एंट्री करने वाला रजिस्टर चेक किया तो सच्चाई का पता चल गया. क्योंकि उस रजिस्टर पर खरीदारों के फोटो चस्पा होते हैं. यह एक चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. खरीदारों की सूची में फोटो तो गुडि़या का लगा था, लेकिन उस में नाम दूसरा था. शायद ऐसा उस ने चालाकी से किया था. उस ने नाम तो बदल दिया था, परंतु चेहरा कैसे बदलती.

वह मकान मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट से 2 मई, 2014 को 17 लाख रुपए में खरीदा गया था. पुलिस के अनुसार उस मकान की वास्तविक कीमत 35 लाख रुपए थी. शायद स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए उस का बैनामा 17 लाख रुपए में कराया गया था.

अब तक प्राप्त सुबूतों में अभियुक्त को ब्लैकमेल करने की पुष्टि हो गई थी. सुबूत पक्के थे, इसलिए पुलिस ने गुडि़या की गिरफ्तारी की योजना बना कर अदालत से वारंट हासिल किया और छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग से मिली रकम से उस ने अपने लिए आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम साधन जुटा रखे थे.

ब्लैकमेलिंग में गुडि़या के दोस्त सईद ने मदद की थी, इसलिए उसे भी शिकंजे में लेना जरूरी था. गुडि़या और उस की बातचीत से पुलिस को पता चल चुका था कि अजय मान ने उसे नौकरी का औफर दिया था और साक्षात्कार के लिए देहरादून आने को कहा था. पुलिस ने इस का फायदा उठाते हुए एक कंपनी का नाम ले कर उसे नौकरी का औफर दिया और साक्षात्कार के लिए देहरादून बुलाया. नौकरी की खुशी में वह देहरादून आ गया. पुलिस पहले से उस की फिराक में ही थी. देहरादून आने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस ने गुडि़या और सईद को आमनेसामने बैठा कर विस्तारपूर्वक पूछताछ की. विश्वास करना मुश्किल था कि एक लड़की ने दुराचार को हथियार बना कर किस तरह अपनी किस्मत को बदलने की कोशिश की तो दुराचार के अभियुक्त ने खुद को बचाने की. उस ने पैसे ऐंठने की योजना मुकदमा दर्ज होने के बाद तब बनाई थी, जब उस के पास समझौते के लिए प्रस्ताव आए. लाखों की रकम और मकान का प्रस्ताव उसे पसंद आ गया था.

इस के बाद गुडि़या ने अपने दोस्त सईद से बात की तो उस ने उसे समझौता कर लेने की सलाह दी. उस समय वह यह भूल गई कि दुराचार का सख्त कानून महिलाओं और लड़कियों के हक में उन्हें न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है ना कि नाजायज इस्तेमाल कर के कमाई करने के लिए.

गुडि़या को एक ही झटके में लाखों रुपए मिलते नजर आ रहे थे. समझौते की शर्तों में उस के लिए बहुत जल्दी मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट का मकान तलाश लिया गया.

किसी को शक न हो, इस के लिए गुडि़या ने बैनामे के समय अपना वह नाम लिखवाया, जो शैक्षिक प्रमाण पत्रों में था. जबकि रिपोर्ट उस ने घरेलू नाम से लिखवाई थी. इसीलिए रजिस्ट्री औफिस की सूची में उस का नाम न देख कर पुलिस उलझ गई थी.

मकान मिल गया और कुछ नकद भी तो गुडि़या केस वापस लेने को तैयार हो गई. इसी प्रक्रिया के तहत उस ने जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा और अदालत में फिर से बयान कराने का प्रार्थना पत्र भी दे दिया. पुलिस ने उस के पत्र पर जांच शुरू कर दी और अदालत ने भी उस की बात नहीं मानी. इस तरह कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में वह अपने ही बुने जाल में फंस गई.

पुलिस ने गुडि़या और सईद से काफी लंबी पूछताछ की थी. इस पूछताछ में पुलिस ने पुख्ता सुबूत जुटा लिए. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. जेल भेजे जाने से पूर्व प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने जांच के लिए दोनों की आवाजों के सैंपल ले लिए थे, ताकि पुष्टि हो सके कि मोबाइल पर हुई बातचीत उन्हीं दोनों की थी.

इस के बाद पुलिस ने प्रदीप सांगवान के साथ उस के साले अजय की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्रदीप का पासपोर्ट जब्त कर के लुक औफ सर्कुलर जारी करा दिया है, ताकि वह विदेश न भाग सके. अजय का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया गया है. प्रदीप सांगवान पर पुलिस ने ढाई हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया.

कथा लिखे जाने तक जेल गई गुडि़या और उस के साथी सईद की जमानत नहीं हो सकी थी. प्रदीप और अजय को गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. गुडि़या ने प्रदीप पर जो आरोप लगाए थे, अब वे कितना सच साबित होंगे यह तो वक्त ही बताएगा.

लेकिन उस ने खुद की गलती से दुराचार को हथियार बना कर जिस तरह खुद को कानून के फंदे में उलझा लिया है, अब उस से निकलना मुश्किल है. ऐसे में लोग कभी खुद पर तो कभी हालात पर खीझते हैं. यह भी सच है कि कानून सुरक्षा और न्याय के लिए बने हैं, न कि मनचाहे इस्तेमाल के लिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. गुडि़या परिवर्तित नाम है.

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