‘‘साहब, मैं बरबाद हो गई, मुझे रिपोर्ट लिखानी है, उन दरिंदों के खिलाफ, जिन्होंने मेरी इज्जत को तारतार कर दिया, मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’ थाने में मुंशी के पास जा कर शाहीन ने बिना सांस लिए एक बार में ही अपनी बात कह दी. मुंशीजी तजुर्बेकार थे, सो उन्हें समझने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि मामला क्या है.
‘‘आप का नाम क्या है?’’ मुंशीजी ने बडे़ धैर्य से पूछा. शाहीन ने अपना नाम बता दिया.
‘‘आप कहां रहती हैं?’’
‘‘जी, भोपाल के ऐशबाग इलाके में रहती हूं.’’ शाहीन ने जल्दी से जवाब दिया.
मुंशीजी ने सवाल किया, ‘‘आप के साथ हुआ क्या है? सचसच बताइए. कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है.’’
शाहीन ने सिर झुका कर हामी भर दी. फिर एकएक कर सारी बात उन्हें बताते हुए कहा, ‘‘हमीदा, मेरी बचपन की सहेली है. हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़े हैं. 6 महीने पहले उस की शादी फैजान के साथ हुई थी, वो दोनों अपनी शादी से बहुत खुश थे. बचपन की दोस्त होने के नाते हमीदा ने मुझे खासतौर पर दावत दी थी. हम लोगों ने शादी में खूब मस्ती की. कुछ दिनों पहले उस ने मुझे दावत पर बुलाया. साथ ही उस ने कहा भी कि फैजान तुम से मिलना चाहते हैं.’’
तयशुदा वक्त पर मैं हमीदा के घर पहुंच गई. उस ने और फैजान ने मेरी बहुत खातिरदारी की. खाने में चिकन, कबाब, बिरयानी के साथ खीर थी. हमीदा को मालूम था कि मुझे खीर बहुत पसंद है. हम सब ने मिल कर हंसीमजाक करते हुए लजीज खाने का लुत्फ उठाया. खाने के बाद सोफे पर बैठ कर सब ने कोल्डड्रिंक पी और इधरउधर की बातें करने लगे. वही पुरानी बातें, शादी विवाह और रस्मोंरिवाज की बातें.
खाने के बाद हमीदा किचन में जा कर बरतन धोने लगी. जाते हुए उस ने मुझ से कहा था, ‘‘शाहीन, तुम फैजान से बात करो.’’
मैं फैजान से इधरउधर की बात करती रही, फिर थोड़ी देर बाद हमीदा ने मुझे आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘यार, तू कैसी दोस्त है. मैं अकेले बरतन धो रही हूं और तू है कि मेरे शौहर के साथ गपबाजी कर रही है. जल्दी से आ कर मेरी मदद करो.’’
मैं फैजान के पास से उठ कर किचन में चली गई, जहां हमीदा बरतन साफ कर रही थी.
जैसे ही मैं किचन में जा कर बरतन धुलवाने में उस की मदद करने लगी, वैसे ही वह बाथरूम जाने को कह कर बाहर आ गई. मैं किचन में अकेली रह गई और चुपचाप बरतन साफ करती रही.
‘‘सर,’’ शाहीन मुंशीजी के सामने ही फफक फफक कर रोने लगी.
‘‘देखिए शाहीनजी, आप रोएंगी तो हम आप की रिपोर्ट कैसे लिखेंगे. आप अपने आप को संभालिए और हमें सारी बात खुल कर बताइए.’’ मुंशीजी बोले.
इस के बाद शाहीन ने आंसू पोंछते हुए एकएक कर सारी बात विस्तार से मुंशीजी को बता दी. उस ने कहा कि फिर अचानक किचन का दरवाजा जोरदार आवाज के साथ बंद हो गया. मैं इस तरह अचानक दरवाजा बंद होने से एकदम सिहर उठी.
लेकिन मैं ने सोचा कि हमीदा मेरे साथ इस तरह का मजाक पहले भी करती रही है. मैं ने हमीदा को अंदर से ही आवाज दी, ‘हमीदा, मैं तुम्हारी ऐसी बचकाना हरकतों से डरने वाली नहीं हूं.’ कह कर मैं फिर से बरतन धोने में लग गई.
मैं अकेली थी और मन ही मन गाना गुनगुना रही थी. तभी पीछे से अचानक आ कर किसी ने मेरी कमर को मजबूती से जकड़ लिया. उस की गिरफ्त से निकलना नामुमकिन सा था. मेरी घबराहट की वजह से सांस फूलने लगी और मैं बुरी तरह डर गई थी. मेरे मुंह से जोरों की चीख निकली, जो पूरे घर में गूंज गई. लेकिन मेरी चीख सुन ने वाला शायद कोई नहीं था.
काफी जद्दोजहद के बाद जब थक कर मैं ने हार मान ली तो फैजान कान के एकदम पास होंठ कर के बोला, ‘‘मोहतरमा, आप किसी अंजान शख्स की बाहों में नहीं हैं. हमें अपना ही समझें.’’ फैजान ने मुझे एक झटके से पलटा कर सीने में भींच लिया और मैं बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी.
‘‘फैजान छोडि़ए मुझे, इस तरह के मजाक मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. आप को अपनी हद मालूम होनी चाहिए.’’ मैं ने विरोध करते हुए कहा.
‘‘शाहीन, हम कोई गैर थोड़े ही हैं, जो आप हम से इस तरह से खुद को आजाद कराने की कोशिश कर रही हैं.’’
‘‘देखिए फैजान, मैं आप से फिर कहे देती हूं, मुझे छोडि़ए, वरना मैं हमीदा से आप की इस घटिया हरकत की शिकायत कर दूंगी. मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं, जो आप की इस हरकत पर खामोश रहूं.’’ कहते हुए मैं ने हमीदा को जोर से आवाज लगाई, ‘‘हमीदा, हमीदा…’’
‘‘शाहीन मैं तो यही हूं.’’ दरवाजे की ओट में झांकती हमीदा के होंठों पर एक कातिलना मुसकराहट तैर गई. लेकिन शाहीन को देख कर नहीं, बल्कि फैजान से नजर मिलने पर.
शाहीन एक लम्हे के लिए बुत बन गई, जैसे उस में जान ही नहीं हो. शाहीन की हालत मजलूमों जैसी हो गई थी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस के साथ यह सब क्या हो रहा था.
‘‘हमीदा, तुम ऐसा क्यों कर रही हो? खुदा के लिए मुझ पर रहम करो, मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी. प्लीज हमीदा, रुक जाओ, ऐसा मत करो. मुझ पर रहम करो.’’ शाहीन गिड़गिड़ा रही थी, लेकिन हमीदा को शाहीन की इस स्थिति पर मजा आ रहा था.
फैजान जब शाहीन के साथ हैवानियत का खुला खेल खेल रहा था, तभी हमीदा, किचन की खिड़की से शाहीन की नीलाम होती इज्जत की वीडियो क्लिप बना रही थी.
शाहीन के आंसू उस के नर्म नाजुक गालों से लुढ़कते हुए उस के दामन को भिगो रहे थे.
‘‘फिर क्या हुआ?’’ मुंशीजी ने खामोशी तोड़ी.
लेकिन शाहीन के मुंह से एक लफ्ज भी नहीं निकला, क्योंकि उस की हिचकियां बंध गई थीं. एक कांस्टेबल ने गिलास में पानी दिया, जिसे शाहीन बिना सांस लिए एक बार में ही पी गई. दुपट्टे से मुंह पोछने के बाद उस ने एक गहरी सांस ली, फिर अपनी बरबादी के सफर का किस्सा सुनाने लगी, ‘‘सर, उन्होंने मेरी अश्लील वीडियो बना ली थी.’’
‘‘एक मिनट, आप ये बताइए कि हमीदा तो आप के बचपन की दोस्त थी, फिर उस ने ऐसा क्यों किया? क्या तुम्हारी उस से कोई पुरानी अदावत थी?’’
‘‘नहीं सर, ऐसा कुछ भी नहीं था.’’ शाहीन ने मुंशीजी को बीच में ही टोका. हमारा तो कभी झगड़ा भी नहीं हुआ, पता नहीं मुझ से किस बात का बदला लिया गया था. मुंशीजी को शाहीन की बात पच नही रही थी. जरूर कोई बात होगी, तभी उस ने इतना बड़ा कदम उठाया है.
शाहीन खामोशी से उन के सवालों को सुन रह थी. आखिर में उस ने बताया कि हम दोनों कक्षा 6 से ग्रैजुएशन तक एक साथ पढ़े हैं. हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी. मैं हमीदा से पढ़ने में अव्वल थी और हमेशा उस से अच्छे नंबर लाती थी. शुरू में कोई बात नहीं थी, लेकिन जब हम ने 10वीं का इम्तेहान दिया और मैं ने एक बार फिर टौप किया, तब हमीदा ने पहली बार मुझे ताना मारा था कि तुम्हीं क्यों हमेशा टौप करती हो? मेरे नंबर हमेशा से तुम से कम रहे हैं.
‘‘सर, तभी पहली बार हमीदा मुझ से चिढ़ी थी. लेकिन मैं ने उस की बातों का बुरा नहीं माना.’’
इसी तरह मैं ने 12वीं भी टौप किया और ग्रैजुएशन के लिए हम दोनों ने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी में बीए में एडमिशन ले लिया. हम लोग रोजाना सिटी बस से आतेजाते थे. हम लोग अब कालेज के बंद माहौल से एकदम खुली फिजा में उड़ने लगे थे.
हमें वहां का माहौल बहुत अच्छा लगता था. पहली बार गर्ल्स कालेज से निकल कर लड़कों से घुलने मिलने का मौका मिला. हमारे ग्रुप में रेशमा, शबा, पूजा, दानिश और राहुल थे. दानिश के साथ मेरी अच्छी बनती थी और हम लोग बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे.
जिंदगी के हसीन पल इसी तरह गुजरते रहे. इसी सिलसिले में वैलेंटाइंस डे आ गया और दोस्तों के सामने ही दानिश ने मुझे प्रपोज कर दिया. मैं उसे इनकार नहीं कर सकी. शायद उस के लिए मेरे दिल में कहीं न कहीं कुछ था. जो मुझे उस के वजूद का हमेशा एहसास दिलाता रहता था.
ये बात और थी कि मैं ने उसे कभी अपने दिल के हाल से आगाह नहीं किया था. उस के लिए मेरे दिल में जो चाहत थी, वो अब मोहब्बत बन कर मेरे वजूद का एक हिस्सा बन चुकी थी. मैं ने उस के गुलाब को ले कर अपनी मोहब्बत का इकरार कर लिया था.
हमीदा भी दानिश को चाहती थी, ये बात, मुझे काफी बाद में पता चली. उस ने शायद इसी बात का मुझ से बदला लिया हो.
मेरी इज्जत तारतार करने के बाद फैजान और हमीदा मुझे धमकी देने लगे, ‘‘अगर किसी के सामने अपना मुंह खोला तो इस वीडियो को वायरल कर देंगे, जिस से तुम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह पाओगी. कोई भी लड़का तुम से शादी नहीं करेगा. शाहीन इसे सिर्फ धमकी नहीं समझना.’’ हमीदा अपने होंठ भींच कर बोली.
‘‘सर,’’ शाहीन ने आंखें उठा कर कहा, ‘‘मेरी आंखों में जैसे खून उतर आया था और गुस्सा भी बहुत था. इस के बावजूद हमीदा के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून दिख रहा था, जैसे उस ने अपना बदला ले लिया हो.’’
मैं घर पहुंची तो मां ने तमाम दुआएं दीं, फिर हमीदा और उस के शौहर के बारे में मुझ से पूछा कि दावत में क्याक्या था.
‘‘अम्मी, सब ठीक था.’’ उखड़ा सा जवाब दे कर मैं अंदर चली गई और कमरा बंद कर के सिसक सिसक कर रोने लगी. रात को अम्मी ने खाना खाने को बुलाया पर मैं नहीं गई.
रात 11 बजे के बाद मेरे मोबाइल की रिंगटोन बजी, लेकिन मैं ने काल रिसीव नहीं की. पता नहीं कौन फोन कर रहा है. आखिर मैं ने मोबाइल उठा कर देखा. देखते ही मेरा खून खौल उठा, क्योंकि हमीदा इस वक्त फोन कर के जख्म को कुरेदने का काम कर रही थी.
‘‘अब क्या है?’’ मैं गुस्से से बोली.
मेरे गुस्से से बेपरवाह हमीदा ने बड़े सुकून से कहा,‘‘शाहीन बड़ी देर कर दी काल रिसीव करने में, क्या गहरी नींद में सो रही थी.’’ हमीदा फोन पर ही हंसी. उस का एकएक लफ्ज मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ रहा था. लेकिन वह मजबूर थी, चाह कर भी कुछ बोल नहीं सकती थी.
फिर मैं ने सिसकते हुए भर्राई आवाज में पूछा, ‘‘अब क्या, जो इतनी रात को परेशान करने के लिए फोन कर रही है?’’
हमीदा बड़े इत्मीनान के साथ बोली, ‘‘शाहीन, अपने घर पर तो कुछ बताया नहीं होगा. हम सब के लिए फायदे का सौदा यही है कि इस से तुम्हारी बदनामी नहीं होगी और न ही हमें पुलिस के झमेले में पड़ना पड़ेगा, है ना शाहीन.’’
मैं क्या बोलती, मैं तो पहले ही लुट चुकी थी.
‘‘अच्छा सुनो शाहीन, ऐसा करो कि तुम 2 दिन बाद घर आ जाना, ठीक है ना.’’ हमीदा मुझे फोन पर ही लेक्चर देने लगी.
‘‘अब किसलिए आऊं और किस मुंह से आऊं. आप लोगों ने मुझे कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है? सुनो हमीदा अब मुझे माफ करो, मैं नहीं आ सकती. वैसे भी अब घर में क्या कह कर आऊंगी.’’ रोते हुए मैं ने रहम की भीख मांगी.
‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ हमीदा चीखी, ‘‘तुम्हें 2 दिन बाद हर हाल में मेरे घर आना ही होगा, वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो. मैं फैजान से कह कर तुम्हारा एमएमएस नेट पर डलवा दूंगी. ये धमकी नहीं है शाहीन, पिक्चर अभी बाकी है.’’ इस के साथ ही फोन डिस्कनेक्ट हो गया. मैं हैलो, हैलो… करती रही, फिर बुत बन कर बैठ गई.
सुबह 10 बजे के बाद मेरी अम्मी रजिया ने मुझे जगाया, तब जा कर आंखें खुलीं.
‘‘क्या बात है शाहीन, तुम्हारी आंखें लाल हैं, किसी बात की परेशानी है क्या?’’
‘‘नहीं अम्मी, कोई बात नहीं है. असल में काफी देर रात तक एक फ्रैंड से बात करती रही. इसलिए देर से उठी हूं.’’
‘‘अच्छा मुंहहाथ धो कर नाश्ता कर लो, सभी लोगों ने नाश्ता कर लिया है, सिवाए तुम्हारे.’’
मैं ने उठ कर ना चाहते हुए भी जैसेतैसे नाश्ता किया. फिर सारा दिन अपने कमरे में गुमसुम बैठी रही. मेरा छोटा सा रूम ही दुनिया थी.
पूरे दिन और रात में मैं इसी उधेड़बुन में रही कि क्या मुझे दोबारा हमीदा के घर जाना चाहिए या नहीं, फिर जो होगा उसे देखा जाएगा. लेकिन अश्लील वीडियो की बात सोच कर मैं सिहर उठी थी. अगर हमीदा ने ऐसा सच में कर दिया तब क्या होगा. अम्मी अब्बू पर क्या गुजरेगी, उन के सिर हमेशा के लिए समाज के सामने झुक जाएंगे. घर पर छोटी बहन नाजनीन का रिश्ता नहीं आएगा. इसी उधेड़बुन में मुझे नींद आ गई.
तमाम पहलुओं पर काफी सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची कि घर वालों की इज्जत की खातिर मुझे वहां जाना ही होगा. बस यहीं पर मैं ने ऐसी गलती की, जिस से मैं दलदल में फंसती गई. अगर मैं यहीं पर जरा अक्ल और हिम्मत से काम लेती तो शायद आने वाले बदतर दिन देखने को नहीं मिलते.
जमाने का एक उसूल है जो डर गया वो जीते जी मर गया. औरों की तरह मेरा भी वही हाल हुआ जो अकसर ऐसी स्थिति में लड़कियों का होता है.
तयशुदा वक्त पर मैं हमीदा के घर पहुंच गई. मुझे आया देख कर हमीदा की बांछें खिल उठीं. मुझे ये समझना मुश्किल हो रहा था कि हमीदा मेरी शिकस्त पर मचल रही है या अपनी जीत पर. हमीदा ने मुझ से अदब से पूछा, ‘‘मैडम, आप क्या लेंगी?’’
‘‘कुछ नहीं.’’ मैं ने बेरुखी से जवाब दिया.
‘‘खैर आप की मरजी, ये मेजबान का हक है कि वो मेहमान की खिदमत में कोई कमी न रखे.’’ हमीदा ने मुझे सोफे पर बैठने के लिए कहा तो मैं खामोशी से बिना कुछ कहे बैठ गई.
‘‘सलाम अर्ज है मोहतरमा.’’ फैजान मुसकरा कर बोला. मैं ने जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा. मैं खामोशी की चादर ओढ़े बैठी रही. अब ये लोग क्या चाहते हैं? क्या मुझे फिर से जलील करने के लिए बुलाया गया है. कई तरह के बातें मेरे जेहन को बेकरार कर रही थीं.
अगर फैजान ने मेरे साथ फिर से ज्यादती की तो… इस गुमान से ही मेरी रूह कांप गई. दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं और सांसें ऊपरनीचे होने लगीं.
‘‘अरे शाहीन, आप को बहुत पसीना आ रहा है. आप मेरे रूम में चलिए. वहां एसी लगा है, आप को राहत मिलेगी.’’ फैजान मेरे नाजुक हाथों को पकड़ कर अपने रूम की तरफ बढ़ गया. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैरों में बहुत भारी बेडि़यां पड़ी हों.
फैजान मुझे तकरीबन जबरदस्ती खींचते हुए ले गया. उस ने फ्रीज से एक बोतल पानी निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया, जिसे मैं ने देखा तक नहीं. थोड़ी देर में हमीदा भी अंदर आ गई. उस ने घूरते हुए कहा, ‘‘मेरे शौहर जो जो कहते जाएं, वैसा ही तुम करती जाना, और हां, नखरा तो बिलकुल भी नहीं करना.’’ फिर फैजान अचानक से मुझ पर दरिंदों की तरह टूट पड़ा.
वह मेरे जिस्म को चीलकौवों की तरह नोचता रहा और मैं दर्द से बैड पर तड़पती रही. हद तो तब हुई, जब हमीदा मेरी नीलाम होती आबरू की मोबाइल से वीडियो बनाती रही. उसे जरा भी शर्म नहीं आई थी, जो खुद ही अपने शौहर से उस की इज्जत लुटवा रही थी. इस से बड़ा धक्का तब लगा, जब थोड़ी देर बाद एक और लड़का वहां आ धमका. वह मुझे प्यासी नजरों से घूर रहा था. मैं उसे देख कर सहम गई और बेड के दूसरी तरफ एक कोने में कपड़ों की गठरी की तरह सिकुड़ कर बैठ गई.
फैजान ने उस का नाम मलिक बताते हुए कहा, ‘‘ये मेरा दोस्त है और तुम्हें इसे भी खुश करना है.’’
इतना सुनते ही मुझे पूरा कमरा गोलमोल घूमता नजर आने लगा. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ये सब क्या हो रहा है. मुझ से किस बात का बदला लिया जा रहा है. मैं ने उस से कहा, ‘‘सुनो फैजान, अब बहुत हो गया, मुझे क्या समझ रखा है तुम ने. मैं तुम्हारी ये घटिया बात कभी नहीं मानूंगी, चाहे जो भी हो.’’
मेरे सख्त तेवर के खिलाफ हमीदा मैदान में दम दिखाने आ गई. वह बोली, ‘‘ठीक है शाहीन, हमारी बात मत मानो. फैजान, अभी इस कमीनी का वीडियो इंटरनेट पर वायरल कर दो. तब इसे समझ आएगा कि हम जो कहते हैं, उसे करते भी हैं.’’
इस के बाद हमीदा से मोबाइल मांगते हुए फैजान मोबाइल पर मुझे वीडियो दिखाते हुए बोला, ‘‘अभी भी वक्त है, ठंडे दिमाग से सोच लो, वरना समाज में मुंह नहीं दिखाओगी.’’
मैं उस के सामने हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाई कि मेरे साथ ऐसा मत करो, मैं बर्बाद हो जाऊंगी, मुझ पर रहम करो. लेकिन मेरे गिड़गिड़ाने का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. मानो वे लोग इंसान की शक्ल में भेडि़ए हों.
कोई रास्ता न मिलता देख मैं ने गुनाहों में खुद को धकेल दिया. ये सिलसिला इसी तरह चलता रहा और मुझे नएनए लोगों के सामने परोसा जाने लगा. कई बार खुदकुशी की सोची, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई.
एक बार फैजान ने मुझे दूसरे शहर के लड़के के सामने पेश कर दिया और मुझ से बोला कि इस से तुम्हारी शादी करा देंगे. लेकिन जब वो बंदा निकाह के वायदे से मुकर गया. तब जा कर मैं ने अपने दिल में ठान लिया कि अब और बरदाश्त नहीं करूंगी. जिन्होनें मेरी आबरू से खिलवाड़ किया है, उन कमीनों को सजा जरूर दिलवाऊंगी इसलिए रिपोर्ट लिखवाने आयी हूं.
‘मोहतरमा आप फ़िक्र न करें, आपको इंसाफ जरूर मिलेगा उन लोगों को किसी हालत में बक्शा नहीं जायेगा’, मुंशी जी ने शाहीन से कहा.
रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस ने उन सभी गुनहगारों को गिरफ्तार कर लिया. शाहीन की अश्लील वीडियो भी उनके फ़ोन से बरामद कर ली गयी और तीनो आरोपियों को जेल भेज दिया गया. शाहीन के दिल में इंसाफ की उम्मीद जाग उठी थी.