भोपाल के करोंद इलाके में रहने वाली 20 वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के पिता की मौत एक साल पहले हुई थी. पिता के साथसाथ आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया तो घर में फांकों की नौबत आ गई. खुद रानी ही नहीं बल्कि उस के 8 भाईबहन भी एक वक्त भूखे सोने को मजबूर हो गए. बड़े भाई ने प्राइवेट नौकरी कर ली पर उसे इतनी पगार नहीं मिलती थी कि घर के सभी सदस्य भर पेट खाना खा सकें.
ऐसे में रानी को लगा कि उसे भी कुछ काम करना चाहिए. सोचविचार कर वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकली. रानी खूबसूरत भी थी और जवान भी, लेकिन नामसमझ नहीं थी. नौकरी के नाम पर हर किसी ने उस से जो चाहा, वह थी उस की जवानी. जहां भी वह काम मांगने जाती, मर्दों की निगाह उस के गठीले जिस्म पर रेंगने लगती थी. कम पढ़ीलिखी रानी को पहली बार समझ आया कि किसी भी अकेली जरूरतमंद लड़की के लिए सफेदपोश लोगों से अपनी आबरू सलामत रख पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.
काम की तलाश में दरबदर घूमने के बाद जब वह शाम को थकीहारी घर लौटती तो भाईबहनों के लटके, भूखे और मुरझाए चेहरे उस की चाल देख कर ही नाउम्मीद हो उठते थे. वे समझ जाते थे कि आज भी खाली पेट पानी पी कर सोना पड़ेगा. भाई की पगार से मुश्किल से 10-12 दिन का ही राशन आ पाता था. घर के दीगर खर्चे भी खींचतान कर चलते थे.
नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों ने तो पिता की मौत के साथ ही नाता तोड़ लिया था. रानी अब उन लोगों की ज्यादा गलती नहीं मानती, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पैसा ही सब कुछ है. जबकि पैसा उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितना आसान सोच कर लगता है. यह दुनिया बड़ी हिसाब किताब वाली है, जो पैसे देता है वह बदले में कुछ न कुछ चाहता भी है.
एक असहाय बेसहारा लड़की के पास देने के लिए जो कुछ होता है, वह रानी ने अपनी कीमत पर देना शुरू किया तो उस पर पैसा बरसने लगा.
भूख से बिलबिलाते जिन भाईबहनों को देख रानी का कलेजा मुंह को आ जाता था, उन के पेट उस की कमाई से भरने लगे तो रानी को सुकून देने वाला अहसास हुआ. घर में अब खानेपीने की कमी नहीं थी.
न तो बड़े भाई ने पूछा, न ही किसी और ने. फिर भी समझ हर किसी ने लिया कि रानी कैसे और कहां से इतना पैसा लाती है कि उस के पास महंगे कपड़े और मेकअप का सामान आने लगा है.
काम की तलाश के दौरान रानी को कई तरह के तजुरबे हुए थे. तमाम नए लोगों से उस की जानपहचान भी हो गई थी. उन में से एक था कपिल नाम का शख्स, जिस ने बहुत अपनेपन से उसे यह समझाने में कामयाबी पा ली थी कि यूं अकेली काम की तलाश में दरदर भटकोगी तो लोग नोच खाएंगे. इस से तो बेहतर है कि लोग जो चाहते हैं, उसे बेचना शुरू कर दो. इस से जल्द ही मालामाल हो जाओगी.
कपिल उसे भरोसे का और समझदार आदमी लगा तो उस ने मरती क्या न करती की तर्ज पर देह व्यापार के लिए हामी भर दी. कपिल अपने वादे पर खरा उतरा और देखते ही देखते वह हजारों में खेलने लगी.
बीती 29 दिसंबर को कपिल ने उसे बताया कि टीकमगढ़ से उस के कुछ दोस्त आने वाले हैं और एक दिन रात के एवज में उसे इतनी रकम देंगे, जितनी वह महीने भर में कमा पाती है.
सौदा 14 हजार रुपए में तय हुआ. हालांकि कपिल और उस के दोस्तों की बेताबी देख रानी ज्यादा पैसे मांग रही थी. लेकिन कपिल इस से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ तो वह इतने में ही मान गई. उस के लिए यह सौदा घाटे का नहीं था.
साल की दूसरी आखिरी शाम यानी 30 दिसंबर को जब पूरी दुनिया नए साल के जश्न की तैयारियों में लगी थी, तब रानी कपिल के बताए मिसरोद इलाके के शीतलधाम अपार्टमेंट के फ्लैट पर पहुंच गई, जहां कपिल सहित 3 और मर्द बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. रानी तो यही सोचसोच कर खुश थी कि एक झटके में 14 हजार रुपए मिल जाएं तो वह 2-4 दिन घर पर आराम करेगी और भाईबहनों के साथ वक्त बिताएगी.
रात भर चारों ने जैसेजैसे चाहा, वैसेवैसे उस ने उन्हें खुश किया, पर साल की आखिरी सुबह रानी पर भारी पड़ी. सुबहसुबह ही मिसरोद पुलिस ने दबिश दे कर देह व्यापार के इलजाम में उन पांचों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
ऐसे पुलिस छापों के बारे में रानी ने काफी कुछ सुन रखा था पर वास्ता पहली बार पड़ा था. थाने में जैसे ही उसे मीडिया वालों से बात करने का मौका मिला तो उस ने अपनी गरीबी और बदहाली की दास्तां बयां कर दी, जिस से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई.
रानी कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं थी जो अपनी मजबूरियों के चलते अपना और अपने घर वालों का पेट पालने के लिए देह व्यापार की दलदल में उतरी थी. ऐसी लड़कियों की तादाद अकेले भोपाल में 25 हजार से ऊपर आंकी जाती है, जो पार्टटाइम या फुलटाइम यह धंधा करती हैं.
पिछले साल अक्तूबर में भोपाल के ही एक मसाजपार्लर में पड़े छापे में 2 और लड़कियों की आपबीती रानी से ज्यादा जुदा नहीं है. 24 वर्षीय मधु (बदला नाम) इस मसाजपार्लर में ग्राहकों की मालिश करती थी. सच यह भी है कि ग्राहक खुद पहल करता था तो वाजिब दाम पर वह जिस्म बेचने को भी तैयार हो जाती थी.
मधु छापे वाले दिन थाने में खड़ी थरथर कांप रही थी. उसे चिंता अपनी कम अपने अपाहिज पिता की ज्यादा थी, जिन्हें रोजाना शाम को दवा और खाना वही देती थी. रानी की तरह ही झोपड़ेनुमा मकान में रहने वाली मधु अपने अपाहिज पिता के इलाज और पेट भरने के लिए इस धंधे में आई थी, जिसे अपने धंधे की बाबत किसी से न कोई गिलाशिकवा था और न ही वह इसे गलत मानती थी.
इसी छापे में पकड़ी गई 26 वर्षीय सुचित्रा (बदला नाम) को उस के शौहर ने छोड़ दिया था. मायके वालों ने कुछ दिन तो उसे रखा पर शौहर से सुलह की गुंजाइश खत्म होते देख उसे आए दिन ताने दिए जाने लगे.
खुद सुचित्रा को भी लग रहा था कि उसे किसी दूसरे पर बोझ नहीं बनना चाहिए. लिहाजा वह भी रानी और मधु की तरह जोशजोश में काम की तलाश में निकल पड़ी. 4 हजार रुपए महीने की पगार पर एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी मिली, पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि नौकरी तो कहने भर की है. अगर वक्त पर पैसा चाहिए तो जैसा ब्यूटीपार्लर चलाने वाली कह रही है, वैसा करना पड़ेगा. इस के बाद उस ने नौकरी छोड़ दी.
इस पर घर वालों ने फिर ऐतराज जताया तो उस ने भी मसाजपार्लर में नौकरी कर ली, जहां उसे 15 हजार रुपए देने की बात कही गई थी. 15 हजार रुपए के एवज में क्याक्या करना है, यह बात सुचित्रा से छिपी नहीं थी. लिहाजा वह मालिश के साथसाथ बाकी सब भी करने लगी, जिस से उसे 10-12 हजार रुपए मिलने लगे थे. अब घर वालों की शिकायतें दूर हो गई थीं, पर जब छापे में वह पकड़ी गई तो उन्होंने उस से कन्नी काट ली.
मधु और सुचित्रा को थाने में पुलिस अफसर लताड़ती रहीं कि ऐसी ही लड़कियों ने औरतों को बदनाम कर रखा है, जो दूसरे कामधंधों के बजाय देहव्यापार करने लगती हैं.
उस वक्त तो दोनों चुप रहीं पर बाद में बताया कि ये लोग हमारा दर्द नहीं समझेंगी. हम ने पहले ईमानदारी से ही कोशिश की थी. इज्जत से नौकरी करना चाहा था, लेकिन हर जगह हम पर सैक्स के लिए या तो दबाव बनाया गया था या फिर लालच दिया गया.
सुचित्रा बताती है कि कोई लड़की नहीं चाहती कि वह इस पेशे में आए लेकिन समाज मर्दों का है और वे एक ही चीज चाहते हैं. हर कोई हमारी मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है और हम उन की मंशा पूरी न करें तो नौकरी से निकाल दिया जाता है. कोई हमें बहनबेटियों की तरह इज्जत नहीं देता, जिस की हम उम्मीद भी नहीं करतीं.
मधु और सुचित्रा को मसाजपार्लर महफूज लगा, जहां देहव्यापार करना मजबूरी या दबाव की बात नहीं थी बल्कि मरजी की बात थी. यहां मालिश कराने काफी बड़ी हस्तियां आती हैं और थोड़ी देर की मौजमस्ती के एवज में 2-4 हजार रुपए ऐसे दे जाती हैं, जैसे पैसा वाकई हाथ का मैल हो.
ये तीनों फिर पुराने धंधे में आ गई हैं. पैसा इन की जरूरत भी है और मजबूरी भी. दूसरी तरफ ये मर्दों की जरूरत हैं जो इन पर पैसा न्यौछावर करने को तैयार बैठे रहते हैं.
देहव्यापार को बुरी नजर से क्यों देखा जाता है और इसे सिर्फ बुरी नजर से क्यों नहीं देखा जाना चाहिए, इस पर आए दिन बहस होती रहती हैं और आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मधु, रानी और सुचित्रा का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता. अगर वे इस पेशे में नहीं आतीं तो मुफ्त में लुटतीं और इस के बाद भी खाली पेट रहतीं.
रानी अपने भाईबहनों को भूख से तिलमिलाते नहीं देख पा रही थी तो इस में उस का कोई कसूर नहीं. मधु अपने पिता के लिए मसाजपार्लर में काम कर रही थी और सुचित्रा के निकम्मे और नशेड़ी पति को कोई दोषी नहीं ठहरा रहा था, जिस ने धक्के दे कर बीवी को घर से बाहर कर के दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया था. ऐसे में तय कर पाना मुश्किल है कि ये लड़कियां फिर और क्या करतीं?