एडवोकेट मनमोहन कुमार की पंचकूला अदालत में अच्छी प्रैक्टिस चलती थी. परिवार में उस की पत्नी रजनी के अलावा 2 बेटे,  9 वर्षीय निखिल और 7 वर्षीय तन्मय थे. मनमोहन कुमार पंचकूला के सेक्टर-19 में रहता था, उस के मातापिता भी साथ ही रहते थे.

सब कुछ ठीक चल रहा था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. लेकिन उस दिन एक अलग सी चिंता वाली बात हो गई.

16 जनवरी, 2018 की सुबह मनमोहन रोजाना की तरह तैयार हो कर घर से अदालत के लिए निकला. रजनी घर पर ही थी, उस ने अपने दोनों बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. बड़े बेटे ने कहा था कि आज वह पनीर की सब्जी खाएगा तो रजनी ने भी पलट कर कह दिया था कि वह उस की मनपसंद सब्जी बना कर रखेगी.

लेकिन दोपहर बाद पौने 3 बजे जब बच्चे स्कूल से घर लौटे तो उन की मां घर पर नहीं थी. बच्चों के दादा ने उन से कहा कि रजनी बाजार गई होगी, थोड़ी देर में लौट आएगी. इसी बीच बड़े बेटे निखिल ने पिता को फोन कर के इस बारे में बताया. मनमोहन ने भी सहज भाव से कह दिया कि किसी काम से गई होगी, लौट आएगी.

एक घंटे बाद मनमोहन ने घर पर फोन कर के पत्नी के बारे में पूछा. पता चला कि रजनी अभी तक वापस नहीं लौटी थी. यह जानने के बाद वह अपना काम छोड़ कर लौट आया. उस ने इस बारे में पहले पिता से बात की, फिर कई जगह फोन करने के अलावा यहांवहां पत्नी की तलाश की. लेकिन रजनी के बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं मिली.

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अंतत: मनमोहन ने रात में थाना सेक्टर-20 जा कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. वह बहुत ज्यादा परेशान नजर आ रहा था. बातबात पर उस की आंखें भर आती थीं.

शिकायत एक वकील की ओर से की गई थी. पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज कर गुमशुदा की फोटो फ्लैश कर के काररवाई शुरू कर दी. रजनी की तलाश में तमाम संभावित जगहों पर पुलिस पार्टियां भेज दी गई थीं.

पुलिस ने भागदौड़ में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन पुलिस भी रजनी का कोई सुराग हासिल करने में कामयाब नहीं हुई.

देखतेदेखते रजनी को गायब हुए 4 दिन गुजर गए. पुलिस को उसे ढूंढने में कोई कामयाबी नहीं मिली. मनमोहन भी पत्नी को तलाशता रहा, लेकिन उस की भागदौड़ किसी काम नहीं आ रही थी. इस से वह हताशा का शिकार होने लगा था. बात करते हुए लगता था, जैसे अभी रो देगा.

20 जनवरी को पुलिस को आंशिक सफलता तब मिली, जब पंचकूला के सेक्टर-25 स्थित डंपिंग ग्राउंड के पास से रजनी की एक जूती बरामद हुई. मनमोहन को बुलवा कर जूती की शिनाख्त करवाई गई तो यह संदेह पुख्ता होने लगा कि संभवत: रजनी की हत्या कर के उस के शव को डंपिंग ग्राउंड में दफना दिया गया है.

आननफानन में पंचकूला पुलिस की एक टीम और फोरैंसिक टीम ने वहां संभावित जगह की खुदाई करवानी शुरू कर दी. यह खुदाई शिकायतकर्ता मनमोहन के सामने ही शुरू की गई. अपने कुछ कनिष्ठ अधिकारियों के साथ पंचकूला के डीसीपी मनवीर सिंह भी मौके पर मौजूद रहे.

खुदाई के लिए जेसीबी मशीन लाई गई थी. 3 फुट गहरी खुदाई होने पर कपड़े में लपेट कर दबाया गया एक शव दिखाई दिया. सब को लगा कि वह शव वकील मनमोहन की गुमशुदा बीवी रजनी का होगा. इस से अजीब किस्म की सनसनी सी फैलने लगी. मनमोहन ने शव देखने से पहले ही फफकफफक कर रोना शुरू कर दिया.

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मृतका रजनी

लेकिन कुछ देर बाद इस रहस्य पर से परदा उठ गया. रहस्य यह था कि वह शव किसी महिला का न हो कर एक कुत्ते का था. इस बात से वहां सनसनी में और इजाफा हो गया. इस की वजह यह थी कि कुत्ते के शव को जिस कपड़े में लपेट कर दफनाया गया था, वह रजनी का दुपट्टा था.

मनमोहन परेशान तो पहले से ही था, यह सब सामने आने पर वह बदहवास सा हो गया. पहले तो वह फूटफूट कर रोया. फिर चीखचीख कर कहने लगा कि किसी ने षडयंत्र रच कर उस की रजनी को गायब कर दिया है.

पुलिस ने अपनी कारवाई के लिए कुत्ते का शव कब्जे में ले कर खोदी गई जगह पर मिट्टी भरवा दी. दूसरी ओर पुलिस रजनी के मोबाइल नंबर से जुड़ी काल डिटेल्स खंगालने का प्रयास कर रही थी. इस प्रयास में पुलिस के सामने यह बात आई कि उस के नंबर पर जिस नंबर से ज्यादा काल्स आई थीं, वह मोनिका के नाम से सेव था. मनमोहन ने इस बारे में बताया कि मोनिका उस की पत्नी रजनी की सहेली है और अलीगढ़ की रहने वाली है. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बातें करती रहती थीं.

पुलिस ने इस नंबर पर फोन कर के मोनिका से बात की. उस ने बताया कि वह मूलरूप से अलीगढ़ की रहने वाली है लेकिन इन दिनों चंडीगढ़ के कस्बे मनीमाजरा में रह कर अपना ब्यूटीपार्लर चला रही है. उस ने बेझिझक पुलिस को अपना पता भी दे दिया. पुलिस ने उस के ब्यूटीपार्लर पर पहुंच कर उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की.

पूछताछ में मोनिका जरा भी नहीं घबराई. उस ने पूरे आत्मविश्वास से पुलिस को बताया, ‘‘मेरी बहन की अपने पति संदीप के साथ बिलकुल नहीं बनती थी, जबकि संदीप निहायत भला आदमी है. आखिर मेरी बहन और जीजा के बीच तलाक लेने की नौबत आ गई. मेरे जीजा ने अपना केस लड़ने के लिए वकील मनमोहन कुमार को नियुक्त किया था.

‘‘मनमोहनजी बहुत भले और मिलनसार व्यक्ति ही नहीं निकले, बल्कि उन की पत्नी इस सब में उन से भी बढ़ कर थीं. अपने जीजा के साथ मैं भी उन के यहां चली जाती थी. इस वजह से मेरी उन से पहचान हुई और फिर रजनी दीदी से पक्की दोस्ती हो गई.

‘‘हम दोनों एकदूसरे से फोन पर बातें करती रहती थीं. अब दीदी के गायब होने का पता चला है. मैं तो खुद नहीं समझ पा रही हूं कि इस तरह अचानक वह कहां चली गईं. इन लोगों की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. दोनों खूब हंसमुख हैं. पतिपत्नी के बीच कभी कोई मनमुटाव हुआ हो, ऐसी भी कोई बात सामने नहीं आई. दोनों का अपने बच्चों से भी बहुत लगाव है.’’ मोनिका ने पुलिस को बताया.

यह बताने के बावजूद मोनिका खुद पुलिस के संदेह के दायरे में आ गई. वजह यह कि उस से इतना कुछ पूछा नहीं गया था, जितना वह बता गई थी.

लेकिन एक बात उस के हक में जा रही थी. रजनी के गायब होने से पहले उस के मोबाइल नंबर पर जो अंतिम काल आई थी, वह मोनिका की नहीं थी. यह काल किसी अज्ञात नंबर से आई थी. रजनी ने यह नंबर सेव नहीं कर रखा था. पुलिस ने उस नंबर का पता लगा लिया.

वह नंबर एक रिक्शाचालक का था. पूछताछ करने पर उस ने पुलिस को बताया कि 16 जनवरी को दिन के 10 से साढ़े 10 बजे वह अपना रिक्शा ले कर कहीं जा रहा था. तभी उसे रास्ते में रोक कर एक युवती ने उस से पूछा था कि क्या उस के पास मोबाइल है. उस के हां कहने पर युवती ने कहा कि वह अपना मोबाइल घर भूल आई है.

फिर उस ने पैसों का लालच दे कर उस के फोन से एक काल कर लेने को कहा. उस ने अपना मोबाइल युवती को दे दिया. वह नहीं जानता कि उस युवती ने उस के फोन पर किस से क्या बात की थी.

रिक्शाचालक को ले जा कर जब मोनिका के सामने खड़ा किया गया तो उस ने उसे पहचानते हुए बोल दिया, ‘‘जी हां, यही मेमसाहब थीं, जिन्होंने मेरे फोन से बात की थी.’’

इस पर पुलिस मोनिका को संदिग्ध मानते हुए थाने ले आई. वहीं उस के मोबाइल पर उस के जीजा संदीप का फोन आ गया. उस वक्त वह सेक्टर-20 पुलिस स्टेशन के प्रभारी विकास कुमार के औफिस में बैठी थी. उस से मनोवैज्ञानिक पूछताछ का सिलसिला शुरू होने ही जा रहा था कि उस के जीजा का फोन आ गया तो मोनिका के जरिए संदीप की लोकेशन मालूम कर ली गई.

उस वक्त वह पंचकूला में ही था. एक पुलिस पार्टी जा कर उसे भी राउंडअप कर लाई. थाने में दोनों से पूछताछ शुरू ही हुई थी कि दोनों ने रजनी का कत्ल करने की बात मानते हुए सीधेसीधे कह दिया कि भले ही रजनी को मौत के घाट उन दोनों ने उतारा था, लेकिन उस की लाश को अंतिम रूप से ठिकाने लगाने का काम खुद रजनी के पति एडवोकेट मनमोहन कुमार ने ही किया था. यहां तक कि इस खूनी साजिश को रचा भी मनमोहन ने ही था.

27 जनवरी, 2016 की बात है. मोनिका और संदीप की थाने में विधिवत गिरफ्तारी दिखाने के बाद उसी दिन पंचकूला के सूरज थिएटर के पास से वकील मनमोहन को भी पकड़ लिया गया. तीनों को एक सप्ताह के कस्टडी रिमांड में ले कर गहन पूछताछ की गई.

इस पूछताछ में इन लोगों ने पुलिस को जो कुछ बताया, उस से रजनी के गायब होने से ले कर उस के कत्ल तक की सिलसिलेवार गाथा कुछ इस तरह सामने आई—

मोनिका का जीजा पेशे से ट्रक ड्राइवर था. पत्नी की अपेक्षा वह अपनी साली को ज्यादा पसंद करता था. इसी वजह से पतिपत्नी के रिश्तों में खटास आ गई थी और मामला तलाक तक जा पहुंचा था. इसी सिलसिले में संदीप की मुलाकात पंचकूला के वकील मनमोहन कुमार से हुई थी.

चूंकि संदीप पंचकूला में रहता था और मोनिका मनीमाजरा में, इसलिए दोनों की अकसर मुलाकात होती रहती थी. वैसे भी पंचकूला और चंडीगढ़ का कस्बा मनीमाजरा एकदूसरे से सटे हुए हैं. संदीप मोनिका को बहुत सुलझी हुई और समझदार मानता था. इसी वजह से वह वकील मनमोहन के पास जाते वक्त अकसर उसे भी साथ ले जाया करता था. मोनिका भी उन की बातों में दिलचस्पी लेते हुए कभीकभार अपनी राय दे देती थी, जिस से वकील मनमोहन अकसर सहमत हो जाता था.

एक रोज मोनिका और मनमोहन की कुछ इस अंदाज में आंखें चार हुईं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे. मेल मुलाकातें होने लगीं. आखिर एक ऐसी स्टेज आ गई जब यह तय हो गया कि मनमोहन अपनी पत्नी को तलाक दे कर मोनिका से शादी कर लेगा. मोनिका पहले ही कुंवारी थी.

रजनी किसी पतिव्रता नारी से कम नहीं थी. उसे कितना भी परेशान कर लिया जाता, वह तलाक के लिए कभी राजी न होती. इस सिलसिले में मनमोहन ने हर तरह के हथकंडे अपना लिए थे, मगर बात बनती नजर नहीं आई.

आखिर रजनी को रास्ते से हटाने के लिए उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई गई. मोनिका और मनमोहन तो इस योजना का हिस्सा थे ही, संदीप को भी डेढ़ लाख रुपयों का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया गया.

योजना के तहत मोनिका किसी न किसी काम के बहाने मनमोहन के घर जाने लगी, जहां उस की मुलाकात रजनी से हो गई. उस ने रजनी से घनिष्ठता बढ़ाने में देर नहीं लगाई. जल्दी ही दोनों पक्की सहेलियां बन गईं. दोनों फोन पर भी आपस में खूब बतियाने लगी थीं.

कई बार एक साथ शौपिंग करने भी चली जाती थीं. मोनिका रजनी की खूब खातिरदारी भी करती थी. वह उसे अच्छेअच्छे रेस्टोरेंट्स में ले जा कर ऐसीऐसी चीजें खिलाया करती थी, जिन से रजनी की तबीयत खुश हो जाए. फलस्वरूप उसे मोनिका बहुत अच्छी और अपनी हितैषी लगने लगी थी.

एक बार रजनी ने बताया कि उस के पास एक साड़ी है, जिस से मैच करता पेटीकोट ब्लाउज नहीं मिल पा रहा है. उस की बात सुन मोनिका ने छूटते ही कहा, ‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हें ऐसी दुकान पर ले जाऊंगी, जहां सब कुछ आसानी से मिल जाएगा. जब भी उस तरफ जाना हुआ, मैं तुम्हें साथ ले चलूंगी.’’

योजना के तहत जिस मौके का मोनिका को इंतजार था, वह उस के सामने था. उस ने इस बारे में संदीप और मनमोहन से बात की. मनमोहन शुरू से ही उन्हें कहता आया था कि उस की बनाई योजना के चलते रजनी को मौत के घाट उतार देने पर भी वे कभी नहीं फंसेंगे.

और अगर बुरी किस्मत के चलते फंस भी गए तो भूल कर भी पुलिस के सामने मेरा नाम नहीं लेना. आखिर तुम लोगों को बचाना तो मुझे ही है. वैसे तुम लोगों को यह भी बता दूं कि अगर तुम अपने काम में सफल हो गए तो मैं रजनी की लाश को वहां पहुंचा दूंगा, जहां उसे कभी कोई ढूंढ ही नहीं पाएगा.

                                                           अभियुक्त संदीप

संदीप और मोनिका तो पहले ही से वकील मनमोहन से प्रभावित थे. उन की नजर में उस जैसा चतुर दूसरा कोई नहीं हो सकता था. योजना को अंतिम रूप देते हुए 16 जनवरी को दिन के साढ़े 10 बजे मोनिका ने एक रिक्शाचालक से उस का फोन ले कर रजनी को काल कर के सेक्टर-21६ में एक जगह बुलवाया.

बनाई गई योजना के तहत मोनिका अपना मोबाइल फोन पहले ही चंडीगढ़ में किसी के पास छोड़ आई थी. ऐसा उस ने इसलिए किया था ताकि अगर पुलिस उस पर शक करने भी लगे तो घटना के वक्त के उस की फोन लोकेशन चंडीगढ़ की आए.

खैर, करीब घंटे डेढ़ घंटे बाद रजनी उस जगह पहुंच गई, जहां पहुंचने के लिए मोनिका ने कहा था.

मोनिका उस वक्त अपनी कार में थी, जिसे संदीप चला रहा था. रजनी के आने पर मोनिका ने उसे कार की पिछली सीट पर बिठाया और खुद भी अगली सीट से उठ कर पीछे उस की बगल में बैठ गई.

बैठते ही रजनी ने साथ लाए लिफाफे में से साड़ी निकाल कर मोनिका को दिखानी शुरू कर दी, जिस ने उसे उलटपलट कर देखते ही कहा, ‘‘इस साड़ी से मैच करता पेटीकोट ब्लाउज तो उस दुकान से बड़े आराम से मिल जाएगा.’’

इस के बाद दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गईं, जबकि संदीप कार को एक वीराने में ले गया. वहां पहुंच कर मोनिका ने रजनी की नजर बचाते हुए पहले तो उस का सेलफोन उठा कर स्विच औफ कर दिया. फिर कार के शीशे से बाहर की ओर देखते हुए चिल्ला कर कहा, ‘‘वो देखो कितना खूबसूरत बंदरों का जोड़ा.’’

उस वक्त रजनी का चेहरा सामने की तरफ था. मोनिका की बात सुन कर उत्सुकतावश वह भी अपना चेहरा घुमा कर खिड़की से बाहर देखने लगी. तभी मोनिका ने बड़ी तेजी से अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी रजनी के गले में लपेटते हुए कस दी.

रजनी छटपटाने लगी तो संदीप ने कार रोक कर वहीं से पीछे घूम कर उस के घुटने दबा दिए.

कुछ देर छटपटाने के बाद रजनी शांत हो गई, उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. वहीं पास में डंपिंग ग्राउंड था, जहां उन्होंने शव को गिरा कर उस पर कचरा डाल दिया.

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अभियुक्त वकील मनमोहन कुमार

इस के बाद इन्होंने इस बारे में मनमोहन को बताया, जिस ने 2 लाख में सौदा कर के मध्य प्रदेश से 2 बदमाश बुलाए जो रजनी का शव निकाल कर अपने साथ ले गए. उस की जगह उन्होंने एक कुत्ता मार कर रजनी के दुपट्टे में लपेटा और वहां थोड़ी ज्यादा गहराई में दफना दिया. वहीं पास ही में रजनी की एक जूती गिरा दी गई.

एक जबरदस्त योजना के तहत इस अपराध को पूरी सफाई से अंजाम दिया गया था. तीनों को अपने पकड़े जाने का अंदेशा नहीं था. मगर तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए और पूछताछ के वक्त की गई सख्ती के आगे सच्चाई को छिपा नहीं पाए.

कथा तैयार करने तक तीनों अभियुक्त न्यायिक हिरासत में अंबाला की सेंट्रल जेल में बंद थे. रजनी का शव बरामद करना तो दूर, पुलिस शव को पंचकूला के डंपिंग ग्राउंड से निकाल कर ले जाने वाले बदमाशों तक का पता लगाने में असफल रही.

पंचकूला पुलिस के इतिहास का यह पहला केस माना जा रहा है, जिस में कत्ल हुआ, कातिल भी पकड़े गए और पुलिस के सामने उन्होंने अपराध भी स्वीकार कर लिया. लेकिन मकतूल की लाश बरामद नहीं की जा सकी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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