लोगों को धर्म के नाम पर बेवकूफ बना कर राजनीतिक पार्टियां और धर्मगुरु हमेशा अपना उल्लू सीधा
करते रहे हैं. स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि ने अपने सत्संग में अनुयायियों से ऐसा क्या कह दिया था
कि थोड़ी ही देर में सत्संग स्थल के पास 121 लाशें बिछ गईं.

चकाचक सफेद शर्ट, सफेद पैंट, सफेद मोजे और सफेद जूते पहने क्लीन शेव वाले शख्स को लोग भोले
बाबा के नाम से जानते थे. वह 2 जुलाई, 2024 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले के फुलराई में
आयोजित होने वाले एक सत्संग कार्यक्रम में शामिल हुआ था. वहां वह सफेद टोयोटा फोर्चुनर में सवार
हो कर आया था, जिस की सीटें भी सफेद रंग की थीं.

कार के साथ मोटरसाइकिलों और कारों का एक बड़ा काफिला भी आया था. उस की कार दूसरे वाहनों के
काफिले के साथ जैसे ही एटा की ओर जीटी रोड पर दाएं मुड़ी, हजारों की संख्या में उमड़े अनुयायी उस
ओर दौड़ पड़े.

वह शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वयंभू विश्वहरि बाबा उर्फ भोले बाबा था, जिस के सत्संग की उत्तर प्रदेश
में काफी चर्चा होती है. हजारों की संख्या में दूरदराज से आए लोगों की नजरों में वह व्यक्ति ईश्वरीय
शक्तियों वाला था. लोग अपनी गरदन उचका कर एक झलक पाने की कोशिश में लगे रहे. उन के बीच
होड़ मची रही, लेकिन उस की गाड़ी काफिले की गाडिय़ों के साथ धूल उड़ाती हुई सत्संग स्थल पर पहुंच
गई.

 


वह शख्स सारी सुरक्षाव्यवस्था के साथ भव्य सत्संग स्थल के मंच तक पहुंचा. भीतर बड़े पंडाल में हजारों
लोग पहले से बैठे थे. उन में औरतों की संख्या काफी थी. उमस भरी गरमी में कुछ लोग तेज चल रहे
पंखों की हवा में थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे, जबकि काफी लोग गरमी से बेचैन भी थे. हालांकि एक
दिन पहले बारिश हुई थी, तापमान में थोड़ी कमी होने के बावजूद वातावरण में उमस थी.

सत्संग में प्रवचन की शुरुआत उसी बड़े टेंट में होने वाली थी. इस के लिए आयोजन कमेटी बनी थी.
सत्संग आयोजित करने वाली कमेटी ने स्थानीय पुलिस से 80 हजार लोगों की परमिशन ली थी, लेकिन
वहां पर 300 फीट लंबा और 300 फीट चौड़ा टेंट लगा था, जिस में 60 हजार लोग ही समा सकते थे.

नतीजा कई बार भीड़ बेकाबू होने की हालत में हो जाती थी, जिसे वहां मौजूद वालेंटियर बड़ी मुश्किल से
संभाल पा रहे थे. करीब 2 दरजन पुलिसकर्मी भी मौजूद थे, जो टेंट के बाहर की ट्रैफिक व्यवस्था संभालने
में लगे हुए थे. भीड़ के हालात को देख कर लगता था कि मानो वहां भीड़ लाखों में थी. जो टेंट के भीतर
से ले कर बाहर तक फैली हुई थी.

सत्संग के दौरान किसी के भी आयोजन पंडाल में मोबाइल ले जाने पर पाबंदी थी. वीडियो बनाने पर भी पूरी तरह से रोक थी. फिर भी कोई चोरीछिपे वीडियो बनाने लगता तो सेवादार उसे सख्ती से मना कर देते थे. यहां तक कि उन का मोबाइल तक जब्त करने की चेतावनी देते थे.

बीते साल नवंबर से बदायूं, मैनपुरी भोगांव, धौलपुर, ग्वालियर, बिछवा और फिर हाथरस के मुगलगढ़ी में
इसी बाबा के सत्संग हो चुके थे. हर जिले के लिए बाबा ने अलग कमेटी बना रखी थी और यही कमेटी
ही सत्संग का आयोजन करती रही है.

बताया जाता है कि सत्संग के टेंट के बाहर करीब 3 लाख से ऊपर भीड़ थी. लोगों के आने का सिलसिला
जारी था. भीतर तो लोगों की संख्या 80 हजार से कहीं ज्यादा की थी. सभी वहां के इंतजाम से खुश नहीं
थे, किंतु 'भोले बाबा’ की अंधभक्ति के आगे किसी को कोई शिकायत नहीं थी.

बाबा के चरणों की धूल से कैसे लगा लाशों का ढेर 2 जुलाई, 2024 को मंगलवार का दिन था, जो हिंदू धर्मार्थियों की नजर में विशेष दिन के तौर पर माना जाता है. दोपहर के 12 बजे थे. भोले बाबा का सत्संग शुरू हो चुका था. करीब आधे घंटे बाद साढ़े 12 बजे स्वयंभू साकार नारायण हरिबाबा पंडाल में पहुंचा. उस के पहुंचते ही भीड़ भी उत्साहित हो गई. भीड़ उस का जय जयकारा करने लगी.

कुछ लोग उस के पास जाने के लिए मंच तक जाने की कोशिश करने लगे तो कुछ लोग अपनी समस्या
सुनाने के लिए अपनी जगह पर ही खड़े हो कर गुहार करने लगे. भीड़ को संभालने के लिए आयोजकों ने
निजी सिक्योरिटी गार्डों की व्यवस्था कर रखी थी.

वे फौजी की तरह ट्रैफिक संभालने से ले कर, पीने के पानी, शौचालय और दूसरे इंतजाम देख रहे थे. उन
की नजर उन लोगों पर अधिक थी, जो सत्संग में मोबाइल से वीडियो बनाने लगते थे. जो भी व्यक्ति
वीडियो बना रहा होता, उस पर बाबा के प्राइवेट सुरक्षकर्मी लाठी बरसाने से भी पीछे नहीं हटते थे.

थोड़ी देर में ही करीब 12.45 बजे बाबा का प्रवचन शुरू हुआ. उस के प्रवचन का दौर करीब एक घंटे तक
चला. इस दरम्यान बाबा ने जीवन जीने के तौरतरीके से ले कर समाज की मौजूदा हालात और देशदुनिया
की भी बातें कीं.

अंधभक्त बने अनुयायी बीचबीच में बाबा की जयजयकार लगाने से भी नहीं चूकते थे. इसी प्रवचन के
दौर में बाबा ने प्रलय की भी बात कही. रोग निदान के लिए अपने चरणों की धूल ललाट पर लगाने का
उपाय बता दिया.

बाबा पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं की नजरों के सामने था, जबकि बाहर उमड़ी भीड़ बाबा की झलक पाने को बेताब थी. जैसे ही बाहर खड़े लोग पंडाल में घुसने की कोशिश करते, सुरक्षकर्मी उन्हें धकेल देते. कुछ लोग संभलते, लेकिन कई लडख़ड़ा जाते थे.

 

आरती शुरू होते ही बाबा के अनुयायियों के बीच हलचल होने लगी. उन की गहमागहमी से पंडाल के
भीतर का माहौल थोड़ा अराजक भी हो गया. लोग अपनी जगह से उठ कर बाबा के करीब जाने की
कोशिश करने लगे. कई लोग आरती में करीब से शामिल होने की कोशिश में लग गए. उन्हें काबू में
करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने एक बार फिर से कस कर मोर्चा संभाल लिया…डंडे बरसाए.

आरती के खत्म होते ही अपराह्नï 2 बजे बाबा ने सत्संग समाप्ति की घोषणा कर दी. इस घोषणा के
साथ ही बाबा के निजी सुरक्षाकर्मियों ने कार्यक्रमस्थल की सारी व्यवस्था को पूरी तरह से अपने कब्जे में
ले लिया, लेकिन तब तक भीड़ में उतावलापन काफी बढ़ गया था. इस का एक कारण था बाबा द्वारा की
गई अंतिम घोषणा— 'आप सभी मेरी चरण धूल ले कर घर जाएं!’

इस के बाद तो भीड़ को संभालने में सुरक्षाकर्मियों को भी पसीना निकल आया. उन में कई बाबा की
सुरक्षा में जुट गए तो कुछ लाठियां भांजने लगे.

भीड़ में अफरातफरी मच गई थी. लोग बाबा की चरण धूल लेने के लिए उस की तरफ बढऩे लगे. लोगों
को संभालने के लिए न तो बाबा के निजी सुरक्षाकर्मी और न ही यूपी के पुलिसकर्मी पर्याप्त थे. बाबा के
प्रवचनों की अंतिम लाइन बाहर उतावली भीड़ ने सुनी.

इसी बीच करीब सवा 2 बजे बाबा सुरक्षित दरवाजे से अपनी गाड़ी में जा बैठा. करीब ढाई बजे बाबा का
काफिला निकल पड़ा. किंतु जैसे ही काफिला निकला, बाहर की भीड़ को रोक दिया गया. इस दौरान बाबा
के चरणों की धूल लेने के चक्कर में अनुयायी अनियंत्रित हो गए. भगदड़ मच गई.

सड़क के किनारे गड्ढे थे, जिस में बारिश का पानी और कीचड़ थी. जहां मैदानी भाग था, वहां की जमीन
भी जगहजगह गीली थी. बाबा का काफिला तेजी से बढ़ता चला गया, जबकि भीड़ में मची भगदड़ से कई
लोग वहीं गिर गए.

एक बार जो गिरा, गीली मिट्टी में फिसल गया और दोबारा उठ नहीं पाया. तब तक उस पर दूसरे लोग
गिर गए. यानी लोग गिरते रहे, मरते रहे और बाबा के कारिंदे गाडिय़ों से भागते रहे. किसी ने भी रुक
कर हालात को जानने की कोशिश नहीं की. …और मृतकों की संख्या हो गई 121 महिलाएं और पुरुषों की भीड़ एकदूसरे पर गिरने लगी.

बाबा का काफिला निकालने के दौरान सेवादारों की जबरदस्त बंदिशें थीं. जिस ने भी उन की बंदिशें तोड़ कर बाबा तक पहुंचने की कोशिश की, वह भगदड़ की मौत के ढेर में जा धंसा. कोई धक्के से गिरा तो कोई फिसल कर. किसी का सीना कुचला तो किसी का सिर.

इस हृदयविदारक हादसे की खबर कुछ मिनटों में ही सोशल साइटों के जरिए सुर्खियां बन गई.
मीडियाकर्मी सक्रिय हो गए. इस हादसे में पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही की चौतरफा चर्चा होने
लगी. इस हादसे में बड़ी संख्या में लोग घायल भी हो गए थे. उन्हें दोपहर सवा 3 बजे शव सीएचसी व
ट्रामा सेंटर पर ले जाया गया.

वहां 38 घायलों को उपचार के बजाय रेफर करने की औपचारिकता पूरी की गई. इन में से कुछ घायलों
को अलीगढ़, कुछ को हाथरस और कुछ को आगरा रेफर कर दिया गया. अस्पतालों में इमरजेंसी परिसर
में घायलों और मृतकों की लाशों का अंबार लग गया. देखते ही देखते उन की संख्या 100 को पार गई. जिन की संख्या 121 तक जा पहुंची.

इस दुखद घटना का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गूगल में सब से अधिक सर्च किए जाने
वाले विकिपीडिया पर यह '2024 उत्तर प्रदेश भगदड़’ के रूप में दर्ज हो गई. इस हादसे को ले कर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभाल लिया. यूपी पुलिस ने ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी, जिस
के अंजाम भी निकले.

घटना के 2 दिन बाद पुलिस ने 4 जुलाई को 6 अभियुक्तों की गिरफ्तारी कर ली, जिन में सत्संग
आयोजन समिति से जुड़े 4 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं. गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों में राम लडैते
यादव (मैनपुरी), मंजू यादव (हाथरस), उपेंद्र सिंह यादव (फिरोजाबाद), मंजू देवी यादव (हाथरस), मेघ सिंह
(हाथरस) और मुकेश कुमार (हाथरस) शामिल हैं. ये सभी सेवादार हैं.

इस के साथ ही पुलिस ने मुख्य आयोजक देवप्रकाश मधुकर की गिरफ्तारी पर एक लाख रुपए का इनाम
घोषित कर दिया. बाद में इस की भी दिल्ली से गिरफ्तारी हो गई.

इन पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैरइरादतन हत्या), धारा 110 (गैरइरादतन हत्या का प्रयास),
धारा 126 (2) (गलत तरीके से रोकना), धारा 223 (लोकसेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन), धारा 238
(अपराध के साक्ष्य को गायब करना) का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

जांच दर जांच, बाबा पर क्यों नहीं आई आंच
हाथरस सत्संग हादसे को ले कर न केवल ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां हुईं, बल्कि 7 दिनों के भीतर 4 तरह की
जांच पूरी कर ली गई. हालांकि कथा लिखे जाने तक सूरजपाल उर्फ भोले बाबा पर किसी तरह की गाज
नहीं गिरी. उस पर कोई आंच नहीं आई. जबकि गिरफ्तार सभी आरोपियों पर धाराएं भी बढ़ा दी गईं.
सभी आरोपियों को 16 जुलाई, 2024 को पुलिस सुरक्षा के बीच हाथरस कोर्ट में पेश किया गया. इस की
विवेचना के लिए एसआईटी गठित कर दी गई.

एसआईटी की जांच रिपोर्ट के बाद प्रशासनिक स्तर पर 6 अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित कर
दिया गया. इस में एसडीएम, सीओ, इंसपेक्टर और 2 चौकी इंचार्ज शामिल हैं. इस की जांच मुख्यमंत्री के
निर्देश पर न्यायिक आयोग के जिम्मे है.

हादसे की 4 तरह से जांच की गई. सभी में भगदड़ की वजह एक जैसी सामने आई, फिर भी सूरजपाल
(साकार विश्वहरि) उर्फ भोले बाबा को किसी ने दोषी नहीं ठहराया. सत्संग के बाद मची भगदड़ से हुई
121 मौतों के लिए प्रशासनिक अफसरों को जिम्मेदार माना गया.

उन के साथसाथ सेवादारों पर साक्ष्य छिपाने, भीड़ अधिक एकत्रित करने आदि के आरोप लगे. चरण रज
लेने के लिए लोगों का दौडऩा, सेवादारों द्वारा भीड़ रोकना, धक्कामुक्की करना, निकास के लिए एक गेट
होना आदि भी जांच का आधार बना. यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ वाली जगह
का खुद भी निरीक्षण किया है.

4 जांच रिपोर्टों में पहली रिपोर्ट पुलिस की थी, दूसरी एसडीएम की, तीसरी एसआईटी की और चौथी
न्यायिक रिपोर्ट है. एक नजर डालें कि 2 जुलाई, 2024 को जीटी रोड 91 से लगे 6-7 लोगों के 150 बीघा
खेत में आयोजन और हादसे के संबंध में कौन रिपोर्ट क्या कहती है?

पुलिस की रिपोर्ट: हादसे के बाद सिकंदराराऊ कोतवाली के अंतर्गत पोरा चौकी प्रभारी ब्रजेश पांडे की ओर से मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर व अन्य के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, 110, 126 (2), 223, 238 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, जिस में 80 हजार लोगों की अनुमति लेने और 2 लाख
से अधिक भीड़ आने, चरण रज लेने व दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ को सेवादारों द्वारा भीड़ रोकने,
धक्कामुक्की करने के चलते हादसा होने व साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया था.

यह जांच रिपोर्ट 5 जुलाई, 2024 को गिरफ्तार 6 लोगों से पूछताछ के आधार पर तैयार की गई. उन्होंने
बताया कि चरण रज के लिए बाबा के अनुयायी दौड़ पड़े थे. जांच में आपराधिक षडयंत्र की आशंका
जताई गई. 6 जुलाई को मुख्य आयोजक मधुकर सहित 3 लोग गिरफ्तार किए गए. उन से पूछताछ में
राजनीतिक फंडिंग की बात भी सामने आई. कथा लिखे जाने तक इस की अलग से जांच जारी थी.

जांच में यह भी मालूम हुआ कि साकार हरि यानी सूरजपाल की मुख्य आयोजक से घटना वाले दिन 4
बार फोन पर बात हुई. इस मामले में 7 जुलाई को 2 लोग गिरफ्तार किए गए, जबकि 65 से अधिक
निशाने पर थे. इस के लिए 12 टीमें प्रदेश के अलावा हरियाणा, दिल्ली एनसीआर, राजस्थान, मध्य प्रदेश
में लगा दी गई थीं. इन से संबंधित 200 से अधिक मोबाइल नंबर सर्विलांस पर थे.

प्रशासन की रिपोर्ट: दूसरी जांच रिपोर्ट प्रशासन की थी, जो घटना के बाद रात को ही एसडीएम रवेंद्र
कुमार द्वारा डीएम को सौंप दी गई थी. शासन तक भेजी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्संग के
पंडाल में 2 लाख से अधिक की भीड़ थी. साकार विश्वहरि दोपहर लगभग साढ़े 12 बजे पंडाल में पहुंचा
और एक घंटे तक कार्यक्रम चला.

लगभग 1.40 बजे उस का काफिला पंडाल से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग-91 (जीटी रोड) पर एटा की ओर
जाने के लिए बढ़ गया था. जिस रास्ते से वह निकल रहा था, उस रास्ते की और सत्संगी महिलापुरुष
दर्शन, चरण स्पर्श एवं आशीर्वाद के लिए दौड़ पड़े थे. वे बाबा की चरण रज को माथे पर लगाने लगे थे.

यहां तक कि डिवाइडर पर खड़े लोग कूदकूद कर बाबा के दर्शन के लिए वाहन की और दौडऩे लगे थे.
उन्हें रोकने के लिए बाबा के साथ उन के निजी सुरक्षाकर्मी (ब्लैक कमांडो) और सेवादारों ने पूरी ताकत
लगा दी थी. वे श्रद्धालुओं को बाबा के पास जाने से रोकना चाहते थे. इस के बाद उन्होंने धक्कामुक्की
शुरू कर दी, जिस से कुछ लोग नीचे गिर पड़े. तब भी भीड़ नहीं मानी और अफरातफरी का माहौल बन
गया.

कई लोग कार्यक्रम स्थल के सामने सड़क के दूसरी ओर खुले खेत की तरफ भागे. जहां सड़क से खेत की
ओर उतरने के दौरान अधिकांश लोग फिसल कर गिर गए. इस के बाद वे फिर से उठ नहीं पाए.
एसआइटी की प्रारंभिक रिपोर्ट: मुख्यमंत्री के निर्देश पर घटना वाले दिन ही एसआईटी गठित कर दी गई
थी. इस में एडीजी (आगरा जोन) अनुपम कुलश्रेष्ठ और मंडलायुक्त (अलीगढ़) चैत्रा वी. को जांच करने

की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इन्होंने पहली रिपोर्ट 24 घंटे में मुख्यमंत्री को सौंप दी थी, जिस में सेवादारों
को दोषी ठहराया गया. साथ ही किसी षडयंत्र की आशंका भी जताई गई.

इस रिपोर्ट में डीएम, एसपी सहित 100 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए गए. बयानों में चरणरज लेने
के कारण भगदड़ की बात कही गई. इस के साथ ही सेवादारों द्वारा धक्कामुक्की और निकासी के लिए
एक गेट होनेे को बड़ा कारण बताया गया.

न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट: इस हादसे की महत्त्वपूर्ण न्यायिक जांच आयोग द्वारा की गई थी. इस
के लिए आयोग 6 जुलाई को हाथरस पहुंचा था. आयोग से सदस्यों ने अधिकारियों के साथ बैठक के बाद
घटनास्थल का मुआयना भी किया था. इस के बाद एसपी, डीएम सहित अन्य अधिकारियों के बयान दर्ज
किए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में 5 घंटे तक 34 लोगों के बयान दर्ज किए गए थे. इन
में चश्मदीद, मीडियाकर्मी व अन्य लोग शामिल हुए थे. इन लोगों ने भी घटना की वजह चरण रज लेना
बताई. सेवादारों के मौके से भाग जाने और धक्कामुक्की की बात भी कही. इस के बाद दल लखनऊ
रवाना हो गया. न्यायिक जांच आयोग का गठन पूर्व न्यायाधीश बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में
किया गया था.

स्वयंभू बाबा ने दिया बेशर्मी का बयान
सभी जांच रिपोर्टों में हादसे का महत्त्वपूर्ण कारण सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के चरण रज ही बताया गया.
हादसे के करीब 3 हफ्तों के बाद सूरजपाल उर्फ भोले बाबा 17 जुलाई को वीडियो के जरिए लोगों के
सामने आया. वीडियो में उस ने हादसे के बारे में जो बातें कहीं, वह घटना को ले कर की गई बेहद
अतिसंवेदनशील टिप्पणी मानी गई.

वह वीडियो समाचार एजेंसी एएनआई की थी, जिस में उस ने कहा कि 2 जुलाई की घटना के बाद मैं
बेहद दुखी हूं, लेकिन जो होना तय है उसे कौन रोक सकता है? जो आया है उसे एक न एक दिन जाना ही
है.

इस वीडियो में भी भोले बाबा सफेद कपड़ों में लाल टीका लगाए नजर आया. उस की उम्र 60 साल से
अधिक बताई जाती है. धूप का महंगा चश्मा पहनता है और महंगी टाई के साथ सूटबूट में रहता है. उसे
उत्तर भारत और उस के बाहर अपने अनुयायियों के बीच एक पंथ का दरजा प्राप्त है.

उस के कई अनुयायी मानते हैं कि वह लाइलाज रोगों के तुरंत इलाज करने में सक्षम है और उस की एक
झलक मात्र से ही घातक बीमारियों से पीडि़त लोग स्वस्थ हो सकते हैं. साथ ही लोगों का यह भी मानना
है कि वह लोगों को आर्थिक संकट से भी बाहर निकाल सकता है. उस के प्रवचन और दर्शन मात्र से ही
पैसे की तंगी दूर हो जाती है.

देश के सब से अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कासगंज जिले के बहादुर नगर गांव में एक
दलित जाटव परिवार में सूरजपाल के रूप में उस का जन्म हुआ था. बाबा बनने से पहले वह एक पुलिस
कांस्टेबल था.

उस की पत्नी प्रेमवती को 'माताजी’ बुलाया जाता है, वह भी पति के मंच पर दिखाई देती है. वह सत्संग के सिलसिले में यात्राएं करती रहती है. बताते हैं कि बाबा के नाम पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य जगहों पर कई आश्रम खुले हैं. बाबा की देखरेख में कम से कम 24 आश्रम हैं, जिन में से
मैनपुरी का आश्रम 12 एकड़ के भूखंड पर है. यहां 6 कमरे विशेष रूप से उस के और उस की पत्नी के
लिए बनाए गए हैं.

इसी तरह के कासगंज के बहादुर नगर गांव में भी उस का एक आश्रम है. यहां भी 6 कमरे विशेष
उपयोग के लिए बनाए गए हैं. इस की देखभाल करने वाला व्यक्ति राजपाल सिंह खुद को बाबा का सेवक
बताता है.

इस आश्रम में अनुयायियों और कर्मचारियों के रहने की अच्छी व्यवस्था है. यहीं बनी बाबा के लिए बनी
भव्य इमारत में सभी के लिए प्रवेश वर्जित है. आश्रम के स्वयंसेवकों के अनुसार बाबा पिछली बार 30
मई, 2014 को सत्संग के लिए इस गांव आए थे.

स्वयंसेवकों की मानें तो बाबा जब भी यहां आता है, लोग बड़ी संख्या में आ जाते हैं. बाबा से मिलने वालों
का तांता लगा होता है. और तो और वे जब यहां नहीं होते हैं, तब भी लोग आश्रम में आते रहते हैं.
आश्रम के स्वयंसेवक का कहना है कि वह कहने को जाटव है, लेकिन यादव समुदाय से आता है.

स्वयंसेवक बाबा की तारीफ करने से जरा भी नहीं चूकता है. उस ने मीडिया के सामने उस की खूब
तारीफों के पुल बांधे. बताया कि वह विभिन्न जाति समूहों और धर्मों के अनुयायियों को आकर्षित कर
लेता है.

बाबा को उस के भक्त 'नारायण साकार हरि’ और 'प्रभुजी’ कहते हैं. एक सेवक का कहना है कि बाबा का
कोई स्थायी निवास नहीं है, इसलिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं. बाबा का एक आश्रमग्वालियर में भी है, जिस की ऊंची सफेद दीवारों के पीछे बड़े खुले स्थान हैं. भक्त एकदूसरे को 'नारायण साकार हरि’ कह कर अभिवादन करते हैं.

मैनपुरी के आश्रम में करीब 26 स्वयंसेवक रहते हैं, जो अपनाअपना गांव छोड़ कर इस गांव में आ कर
बस गए हैं. वे दूसरेदूसरे काम करते हैं, लेकिन आश्रम चलाने में भी मदद करते हैं. इन में पीलीभीत का
एक सिख किसान कुलवंत सिंह भी शामिल है, जिस ने पहली बार 2014 में बाबा को देखा था और 5 साल
बाद इस सुदूर गांव में आ कर बस गया. उस का कहना है कि आश्रम में आने के बाद से उस के परिवार
का जीवन बदल गया.

स्वयंभू बाबा ने खुद को क्यों रखा प्रचार से अलग अन्य बाबाओं की तरह सूटबूट टाई बांधने वाले भोले बाबा ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है. वह चाहे कपड़े और पहनावे से हो या फिर ईश्वर की तरह दिखने की हो. जैसे वह अपनी अंगुलियों में एक चक्र घुमाता है. ऐसा कर वह जादू के करतब दिखाता है. इस तरह से एकत्रित भीड़ का मनोरंजन भी हो जाता है.

उस की कुछ बातें अन्य धर्मगुरुओं से अलग करती हैं. जैसे वह प्रचार के लिए टेलीविजन या सोशल
मीडिया का सहारा नहीं लेता है. एक आध्यात्मिक गुरु के तौर पर, उस की औनलाइन मौजूदगी सीमित है.
उस का यूट्यूब चैनल भी है, लेकिन पिछले 2 दशकों में वह काफी हद तक मौखिक प्रचार की वजह से
लोकप्रिय हुआ है.

कासगंज में बाबा के निवास पर बड़े दरवाजे लगे हैं, जो एक किले के प्रवेश द्वार की तरह दिखता है. उस
के शिखर पर एक कमल की बड़ी प्रतिमा बनी है. हलके गुलाबी रंग की पतलून, शर्ट और टोपी पहने 3
सेवादार वहां लगाए गए हैं. वे वहां की निगरानी करते हैं और आसपास सड़क तक की सफाई करते हैं. वे
आश्रम में 7 दिनों तक स्वैच्छिक सेवा करते हैं. वहां उन्हें 2 बार सादा शाकाहारी भोजन दाल, रोटी और
एक सब्जी मिलती है.

उन में एक 50 वर्षीय किसान राम अवतार है, जो करीब 80 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने
वाला है. उस ने बाबा को पहली बार 2004 में तब सुना था जब एक समागम में शामिल हुआ था. उस के
बाद उस ने वरदी खरीदी और यहां स्वैच्छिक सेवा शुरू कर दी. इसी तरह से दूसरा सेवादार प्रताप सिंह
85 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद का है. वह आश्रम में 18 साल की उम्र से ही है.

उस का कहना है कि बाबा भक्तों से कुछ नहीं लेते. उस के आश्रम में कोई दानपात्र नहीं है. बाबा का
कहना है कि जो भी बुरा है, वह तुम्हारे अंदर है और सभी को ईश्वर से जुडऩे के लिए कहते हैं. यही बात
उन के दिमाग में बैठ गई और वह सेवादार बन गया.इसी तरह से एक अन्य सेवक राकेश कुमार महाराष्ट्र के कुर्ला का रहने वाला है. वह बाबा के सत्संग देने के लहजे से प्रभावित हो कर आश्रम का स्वैच्छिक सेवादार बन गया है.

बाबा अपनी यात्राओं के लिए जिन कारों का इस्तेमाल करता है, वे अकसर सत्संग के आयोजकों द्वारा
भेजी जाती हैं, लेकिन वह बाबा की पसंद के हिसाब से बनाई गई होती हैं, सभी सफेद रंग की होती हैं.
बाबा के आश्रम में किसी भी देवीदेवता की तसवीर या मूर्ति नहीं लगी होती है. यहां तक कि बाबा की
खुद की भी तसवीर नहीं होती है.

हालांकि बाबा ने पिछले 2 दशकों में लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता प्रचलित कहानियों के जरिए बनाई है. लोगों की बीमारियां, परेशानियां ठीक करने और अन्य चमत्कार करने के उस के ईसा मसीह जैसे कारनामे शामिल हैं. इस में कोई संदेह नहीं कि बाबा का प्रभाव बढ़ रहा है और इस का अंदाजा सत्संग में आने वाले लोगों की संख्या से चलता है.

बाबा का अपने सगे भाई से क्यों हुआ था झगड़ा
बाबा के वकील ए.पी. सिंह ने दावा किया कि हाथरस में सत्संग में हुई हालिया दुर्घटना के पीछे ऐसे लोग
और समूह जिम्मेदार हैं, जो बाबा के बढ़ते प्रभाव से नफरत करते हैं. उन का कहना है कि गुरु को
बदनाम करने के लिए बदमाशों ने वहां मौजूद लोगों पर जहरीला पदार्थ छिड़क दिया था.

हाथरस हादसे में बाबा ने ए.पी. सिंह को अपना वकील नियुक्त किया है. ए.पी. सिंह 2012 के निर्भया
गैंगरेप मामले में 2 आरोपियों के वकील थे.

सूरजपाल उर्फ बाबा भी 2000 में एक किशोरी के शव के साथ भागने के चलते मुसीबत में पड़ गया था.
तब उस ने दावा किया कि वह उसे वापस जीवित कर सकता है. तब वह बाबा नहीं, सूरजपाल था.
उस के बाद उस के भोले बाबा बनने की दिलचस्प यात्रा शुरू हो गई थी. खुद को भगवान मानने वाले
सूरजपाल ने अपने परिवार से सारे संबंध तोड़ लिए थे. बाबा के भाई उस गांव में आश्रम की दीवार से
बमुश्किल 20 मीटर की दूरी पर रहते हैं, जहां उस का जन्म हुआ था.

हाथरस में हुई मौतों के बाद बाबा ने एक वीडियो के जरिए संवेदना जताई थी. उस में यह कहते हुए
दिखाई दिया कि उसे पीडि़तों के परिजनों के लिए दुख है और वह किसी भी पूछताछ में पुलिस के साथ सहयोग करेगा.

उस के बाद 6 जुलाई को एएनआई द्वारा जारी एक वीडियो में उस ने कहा, '2 जुलाई की घटना के बाद मैं बहुत दुखी हूं. भगवान हमें इस दर्द को सहने की शक्ति दे. कृपया सरकार और प्रशासन पर भरोसा
रखें. मुझे विश्वास है कि जिस ने भी अराजकता फैलाई है, उसे बख्शा नहीं जाएगा. अपने वकील ए.पी.
सिंह के माध्यम से मैं ने समिति (ट्रस्ट) के सदस्यों से अनुरोध किया है कि वे शोकाकुल परिवारों और
घायलों के साथ खड़े रहें और जीवन भर उन की मदद करें.’

उल्लेखनीय है कि सूरजपाल उर्फ बाबा श्रीनारायण साकार हरि चैरिटेबल ट्रस्ट का अध्यक्ष है, जिसे पहले
मानव सेवा आश्रम कहा जाता था. कासगंज में उस के आश्रम से 50 मीटर से भी कम दूरी पर बाबा का
छोटा सा घर है, जिस में खुली नालियों वाली एक संकरी गली के किनारे अंधेरे कमरे हैं. यहीं वह अपने 2
भाइयों और 3 बहनों के साथ पलाबढ़ा. वहां अब केवल उस का भाई, जिस के साथ बाबा का कई साल
पहले झगड़ा हो गया था, अपने परिवार के साथ रहता है. उस की बड़ी भतीजी आरती उस के बारे में बात
करने से इनकार करती है.

बाबा के एक भाई भगवान दास की 2016 में मृत्यु हो गई, जबकि उस का छोटा भाई राकेश उस का
करीबी है और बाबा के ट्रस्ट का हिस्सा है. उस की बहन सोनकली का कहना है कि किशोरावस्था में बाबा
को जादू में रुचि थी और उन्होंने चमत्कार किए थे.

सूरजपाल 1970 में पहले पहले उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल भरती हुआ था. अगस्त 1995 में उसे आगरा में स्थानीय पुलिस खुफिया विभाग से जोड़ा गया था. जुलाई, 1994 से अगस्त 1995 तक वह इटावा में तैनात था. उस के बाद उस का तबादला आगरा कर दिया गया था.

18 साल की नौकरी के बाद उस ने वीआरएस ले लिया और और अपने गांव में ही झोपड़ी बना कर रहने लगा था. हालांकि बाबा पर भी कोई एकदो नहीं, बल्कि 5 मुकदमे चल रहे हैं. नौकरी के दौरान उस पर 1997 में यौन शोषण की एफआईआर दर्ज की गई थी. उसे जेल जाना पड़ा था. जेल से छूटने के बाद नौकरी छोड़ दी और स्वयंभू साकार विश्वहरि बन कर सत्संग करने लगा. उस पर दर्ज मुकदमे आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हैं.

सत्संग के दौरान मंच पर उस के साथ बैठी महिला को देख कर भी तरहतरह की चर्चा होती है. अधिकतर
लोग उस महिला को पत्नी बताते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि वह उस की मामी है.

लोगों में चर्चा है कि सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि के ट्रस्ट द्वारा कुछ नेताओं और पुलिस
अधिकारियों के अवैध पैसों को वैध बनाया जाता था, इसलिए पुलिस और सफेदपोश उसे बचाने में जुटे हुए
हैं.

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