कभी कभी मांबाप भी ऐसे काम कर जाते हैं जिस से बच्चों का सिर समाज में शर्म से झुक जाता है, नन्हकी और सुरेंद्र ने भी कुछ ऐसा ही किया. फिर मां नन्हकी को सजा देने के चक्कर में मिथलेश एक ऐसा अपराध कर बैठा कि…

बा त 15 अक्तूबर, 2017 की है. हलिया के थानाप्रभारी विनोद दुबे कहीं जाने के लिए औफिस से निकलने वाले थे, उसी समय इलाके का चौकीदार उन के पास पहुंचा. उस ने बताया, ‘‘सर, मटिहारी जंगल
के पनिहरवा नाले में 2 लाशें पड़ी हैं, जिस में एक लाश किसी महिला की और दूसरी किसी आदमी की है.’’

2-2 लाशें मिलने की बात सुनते ही थानाप्रभारी के कदम वहीं के वहीं रुक गए. वह तुरंत जीप से उतर कर चौकीदार से लाशों के बारे में कुछ और जानकारी लेने लगे. इस के बाद थानाप्रभारी जिस जगह के लिए रवाना होने वाले थे, वहां जाने का कार्यक्रम उन्होंने स्थगित कर दिया और पुलिस टीम के साथ उस जगह की तरफ निकल पड़े, जहां लाशें पड़ी थीं. चौकीदार को भी उन्होंने जीप में बैठा लिया.

कुछ ही देर में उन की जीप पनिहरवा नाले के पास पहुंच गई. चौकीदार जंगली झाडि़यों के बीच पथरीली राहों से होता हुआ जंगलों, पहाड़ों से हो कर बहने वाले नाले के उस स्थान पर पहुंच गया, जहां से वे लाशें साफसाफ दिख रही थीं.

चौकीदार अंगुली से इशारा करते हुए बोला, ‘‘देखिए साहब, वे हैं दोनों ही लाशें.’’
थानाप्रभारी विनोद दुबे ने देखा तो नाले के किनारे झाडि़यों से लगी 2 अर्धनग्न लाशें पानी पर तैर रही थीं, जिन में से एक के शरीर पर कपड़े के नाम पर ब्लाउज और पेटीकोट तथा दूसरे पर बनियान व लंगोट था.

दोनों का चेहरा भी झुलसा हुआ दिख रहा था. तब तक वहां कुछ चरवाहे भी आ गए थे. उन की मदद से थानाप्रभारी ने दोनों लाशों को नाले से बाहर निकलवाया. फिर लाश मिलने की सूचना उच्चाधिकारियों को देते हुए आवश्यक काररवाई में जुट गए.

जंगल के नाले में 2 लाशें मिलने की सूचना आसपास के गांव वालों को हुई तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुटने लगी. लाशों का निरीक्षण करने के बाद पता चला कि उन पर किसी धारदार हथियार से वार करने के बाद उन्हें जलाने की कोशिश की गई थी. इस से उन का चेहरा झुलस गया था. इसीलिए वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति उन की शिनाख्त नहीं कर सका.

लाश देख कर लग रहा था कि दोनों की हत्या शायद 2-3 दिन पहले की गई होगी. लाशें नाले में इसलिए फेंकी होंगीं ताकि बह कर कहीं दूर चली जाएं, लेकिन वे नाले के किनारे झाड़ी में फंस गईं. पुलिस ने उन चरवाहों से भी पूछताछ की लेकिन वह भी कुछ नहीं बता पाए.

बहरहाल, पुलिस के सामने एक बड़ा सवाल यह था कि वे दोनों कौन और कहां के रहने वाले थे तथा किन
परिस्थितियों में उन की हत्या की गई थी. इन तमाम सवालों का जवाब पाने के लिए थानाप्रभारी ने आसपास का गहनता से निरीक्षण किया तो नाले से कुछ ही दूरी पर बरगद के पेड़ के नीचे एक चूल्हा मिला.

चूल्हे के पास में ही तेल ही शीशी और शराब की खाली बोतलें मिलीं. वहां रखे एक भगौने में पके हुए कुछ चावल भी थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि वहां पर खानापीना भी हुआ था. पास में ही झाडि़यों के बीच एक साइकिल पड़ी दिखी, जहां साइकिल पड़ी थी, उस के आसपास की मिट्टी खून से सनी हुई थी. कुछ मीटर की दूरी पर इंसानी कलेजा दिखाई दिया, जिसे देख पुलिस भी सिहर उठी.

घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद पुलिस ने कयास लगाया कि इन दोनों की हत्या के पीछे शायद प्रतिशोध की भावना रही होगी. पुलिस इसी दृष्टिकोण पर आगे बढ़ने की सोच ही रही थी कि तभी एक युवक हांफता हुआ वहां आया और आदमी के शव को देखते ही दहाड़ें मार कर रोने लगा. बाद में उस ने बताया कि वह लाश उस के चाचा सुरेंद्र बहादुर सिंह की है. वह हलिया वन रेंज के कंपार्टमेंट-3 में बतौर वनरक्षक तैनात थे.

उस ने बताया कि 13 अक्तूबर से ही चाचा का कोई पता नहीं चल पा रहा था. युवक ने यह भी बताया कि जिस महिला की लाश मिली है, वह हलिया थाने के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी उर्फ घिरजिया है. यह वन विभाग में ही दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थी.

दोनों शवों की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी विनोद दुबे ने थोड़ी राहत की सांस ली. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी दिन संजय सिंह की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस आगे की काररवाई में जुट गई.

एसपी आशीष तिवारी ने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए थानाप्रभारी विनोद दुबे के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में अदलहाट के थानाप्रभारी विजय प्रताप सिंह, इंटेलिजेंस विंग के प्रभारी रामस्वरूप वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी मनोज कुमार ठाकुर, एसआई रामजी यादव, कांस्टेबल बृजेश सिंह, वीरेंद्र कुमार सरोज, संदीप राय, रजनीश सिंह, संतोष कुमार यादव आदि को शामिल किया गया.

इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. वनकर्मियों में भय व्याप्त हो गया था. पुलिस जहां दोनों की हत्या के खुलासे में जुटी थी, वहीं दोनों की हत्या को ले कर क्षेत्र में तरहतरह की चर्चाएं भी होने लगी थीं. आशंका जताई जा रही थी कि दोनों की हत्या कहीं प्रेमप्रपंच को ले कर तो नहीं की गई.

वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना था कि वनरक्षक सुरेंद्र जंगल में काफी लंबे समय से काम कर रहा था. उसे अवैध खनन, वन भूमि पर कब्जा करने, तेंदू पत्ता तोड़ने वालों या जंगली जानवरों का शिकार करने वालों के बारे में अच्छीखासी जानकारी थी, सो कहीं ऐसा तो नहीं कि उस की हत्या इन्हीं में से किसी ने कराई हो.

पुलिस टीम इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए कदम बढ़ा रही थी, लेकिन एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस टीम के हाथ कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लग पाया, जिस से जांच आगे बढ़ सके. करीब डेढ़ महीना बीतने के बाद भी पुलिस को निराशा ही मिली थी.

पुलिस ने दिनरात एक कर के हरेक छोटे बड़े पहलू पर गौर किया. इतना ही नहीं पुलिस जंगलों की हर एक गतिविधि पर भी ध्यान गड़ाए हुए थी. घटनास्थल के पास मिले खाने पीने आदि के सामान से पुलिस को यही आशंका थी कि हत्या में किसी खास करीबी का हाथ हो सकता है. इसी बीच पुलिस टीम को कुछ अहम सुराग मिल गए, जिस से उसे आगे बढ़ने की कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दे गई.

हत्याकांड की छानबीन में जुटी पुलिस टीम को सर्विलांस के जरिए पता चला कि घटना वाले दिन मौके पर 2
मोबाइल नंबरों की लोकेशन साथ साथ थी. पुलिस टीम ने जब उन नंबरों पर काम करना शुरू किया तो पता चला कि एक नंबर तो मृतक सुरेंद्र का था, जबकि दूसरा नंबर मृतका नन्हकी देवी के बेटे मिथलेश का था. पुलिस ने मिथलेश की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि उस की लक्ष्मण कोल नाम के व्यक्ति से भी बात हुई थी.

इस के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि लक्ष्मण कोल नन्ही देवी का समधी (बेटी का ससुर) था, जो हलिया थाने के ही गांव पोखड़ौर में रहता था. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने बिना देर किए दोनों के घरों पर दबिश दी. मिथलेश तो नहीं मिला लेकिन पुलिस ने 25 दिसंबर, 2017 को लक्ष्मण कोली को पोखड़ौर के हर्रा जंगल की नहर पुलिया के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो पुलिस के डर से उस ने स्वीकार कर लिया कि सुरेंद्र और नन्हकी की हत्या में उस के अलावा नन्हकी का बेटा मिथलेश भी शामिल था. उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार रही—

उत्तर प्रदेश का मीरजापुर जिला मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. इस जिले का हलिया थाना मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है. यह क्षेत्र दूरदूर तक फैले घने जंगलों, पहाड़ों से घिरा हुआ है. मध्य प्रदेश के रीवा जिले का हनुमना थाना भी मीरजापुर जिले की सीमा से लगा हुआ है.

हनुमना थानाक्षेत्र भी घने जंगलों से घिरा है. दोनों ही राज्यों के इन वन रेंज क्षेत्रों के अलग अलग कंपार्टमेंट में
वनरक्षकों की तैनाती की गई है, ये वनरक्षक वन्यजीवों से ले कर वनों की रखवाली करने के साथ हर छोटी बड़ी सूचनाओं से विभाग को अवगत कराते रहते हैं.

हलिया थाना क्षेत्र का पूरा इलाका घने जंगलों, पहाड़ों के साथ जंगली जीवजंतुओं से भी पटा है. इसी के साथ तेंदू पत्तों का भी यहां तुड़ान होता है, जिस से सरकार को भारीभरकम राजस्व की प्राप्ति होती है. इस क्षेत्र के गांव भटवारी कलां का रहने वाला 53 वर्षीय सुरेंद्र बहादुर सिंह भी वनरक्षक के पद पर तैनात था. इसी रेंज में क्षेत्र के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी भी दिहाड़ी मजदूर के रूप में तेंदू पत्ते तोड़ती थी.

बेटेबहू वाली नन्हकी देवी कुछ अरसा पहले पति की मौत हो जाने के बाद नीरस जिंदगी जी रही थी. भरापूरा परिवार होने के बाद भी उसे अकेलापन महसूस होता था. कुछ यही हाल सुरेंद्र का भी था. भले ही नन्हकी देवी 48 साल की थी, लेकिन उस के गठीले शरीर को देख कर नहीं लगता था कि वो 48 साल की है. जंगलों में काम करने के दौरान वह सुरेंद्र सिंह के काफी करीब आ गई थी.

इस में सहायक बना जंगलों का एकांत, जहां कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. दोनों में नजदीकियां बढ़ीं तो दिलों के साथ देह का भी मिलन होते देर नहीं लगी.

दोनों का दैहिक मिलन हुआ तो अकसर जंगल में ही उन का खानापीना भी होने लगा था. यह बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. गांव वालों के जरिए यह बात नन्हकी के बेटे मिथलेश के कानों तक भी पहुंच गई.
पहले तो उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ कि उस की मां ऐसा कर सकती है. लेकिन बाद में मिथलेश ने अपनी मां के बारे में उड़ रही अफवाहों पर ध्यान देना शुरू किया तो कानों सुनी बातों में उसे सच्चाई नजर आने लगी.

मां की वजह से पूरे गांव में परिवार की बदनामी हो रही थी. मिथलेश ने इस बारे में मां को समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी तो मिथलेश ने एक योजना बना ली. अपनी और परिवार की इज्जत का वास्ता देते हुए उस ने अपनी बहन के ससुर लक्ष्मण कोल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. लक्ष्मण गांव पोखड़ौर में रहते थे.

योजना के मुताबिक मिथलेश ने 13 अक्तूबर, 2017 को जंगल में बहन के ससुर के साथ मिल कर दावत के बहाने अपनी मां के अलावा सुरेंद्र सिंह को भी बुला लिया. अपनी मां से मिथलेश ने मछली पकवाई. वह शराब पहले से ही ले आया था. मिथलेश की मां भी शराब पीती थी. लक्ष्मण ने अपनी समधिन नन्हकी और उस के प्रेमी सुरेंद्र को खूब शराब पिलवाई जबकि खुद कम पी.

नन्हकी और सुरेंद्र जब नशे में हो गए तो सुरेंद्र पनिहरवा नाले के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे लेट गया. उसे पेड़ के नीचे लेटा देख मिथलेश ने पीछे से फावड़े से उस की गरदन पर वार किया. एक ही वार में उस का काम तमाम हो गया. उस की चीख सुन कर नन्हकी वहां से चिल्लाते हुए जान बचाने की गरज से भागने को हुई तो मिथलेश और लक्ष्मण ने उसे पकड़ कर गिरा दिया. फिर फावड़े से प्रहार कर के उसे भी मौत के घाट उतार दिया.

दोनों की सांसें जब थम गईं तो मिथलेश ने फावड़े से सुरेंद्र के सीने पर वार कर के उस का कलेजा निकाल लिया और उसे काट कर फेंक दिया. कोई उन दोनों लाशों को पहचान न सके, इसलिए उन के कपड़े उतार कर मुंह पर रख कर आग लगा दी.

हत्या करने के बाद दोनों शव वहीं नाले में फेंक दिए. सुरेंद्र की साइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त दोनों फावड़े कुछ दूर पर झाडि़यों में छिपा कर वे दोनों वहां से भाग निकले.

पुलिस के अनुसार, घटना के दूसरे दिन जब सुरेंद्र अपने घर नहीं पहुंचा तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की लेकिन कोई पता न चलने पर वे लोग नन्हकी के घर भी गए, क्योंकि कई बार देर हो जाने पर सुरेंद्र नन्हकी के घर जा कर रुक जाता था. लेकिन वहां दोनों के न मिलने से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

नातेरिश्तेदारों के यहां भी घर सुरेंद्र को तलाशा पर उस का कोई पता नहीं चल पाया तो घर वाले थाना हलिया जा कर उस की गुमशुदगी लिखवाने वाले ही थे कि नाले में लाश मिलने की खबर पा कर सुरेंद्र का भतीजा संजय वहां पहुंच गया. उस ने अपने चाचा के अलावा नन्हकी की लाश भी पहचान ली.

पुलिस ने लक्ष्मण को गिरफ्तार करने के बाद उसे 25 दिसंबर, 2017 को पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के मीडिया के समक्ष पेश किया. लक्ष्मण द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दूसरी ओर एसपी मीरजापुर आशीष तिवारी ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को शाबाशी देते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की. दूसरा फरार अभियुक्त मिथलेश पुलिस को चकमा देता फिर रहा था, लेकिन पुलिस के बढ़ते दबाव को देखते हुए उस ने भी अंतत: न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

कहानी लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों की जमानत नहीं हो सकी थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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