28 लाख छात्रों के भविष्य निर्धारित करने वाले 10वीं और 12वीं के प्रश्नपत्र लीक होना कोई छोटी बात नहीं है. गलती सरकार भी मान रही है और सीबीएसई भी. लेकिन न तो अभी पेपर लीक करने वाला मास्टरमाइंड सामने आया और न ही इस बात का खुलासा हुआ कि ऐसा हुआ कैसे?
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक से डाटा लीक होने की खबर के बाद भारत सरकार ने फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को एक नोटिस भेजा था. आईटी मंत्रालय के इस नोटिस के जवाब में जकरबर्ग ने 7 दिन की मियाद खत्म होने का इंतजार न कर के 3 अप्रैल को ही जवाब दे दिया था. यह जवाब था— मोदी सेठ, जिन के घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. पहले अपने यहां के सीबीएसई पेपर संभाल लो, फिर मुझ से डाटा लीक पर जवाब लेना.
हर कोई जानता है कि बी.आर. चोपड़ा निर्देशित अपने वक्त की हिट फिल्म ‘वक्त’ में यह डायलौग अक्खड़ स्वभाव के अभिनेता राजकुमार ने खलनायक रहमान के सामने बोला था. दरअसल, यह सोशल मीडिया पर हुआ अभिजात्य किस्म का हंसीमजाक था, जिस ने एक गंभीर संदेश दिया था कि लीक के मामले में हम पहले खुद के गिरहबान में झांक लें फिर किसी और पर अंगुली उठाना सही है.
सीबीएसई पेपर लीक मामले को फिल्मी अंदाज में ही समझने की कोशिश करें तो 70 के दशक के हिंदी फिल्मों के बैंक डकैती के वे दृश्य सहज याद हो आते हैं, जिन में खलनायक बैंक लूटने के लिए बैंक में घुस कर धांयधांय नहीं करता था, बल्कि वह उस वैन के नीचे छिप जाता था, जिस में नकदी ले जाई जाती थी.
जैसे ही वैन स्टार्ट होती थी, खलनायक नीचे से सेंध लगा कर तिजोरी तक पहुंचता था और वैन में रखी तिजोरी पर ऐसे हाथ साफ करता था कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती थी. वैन का ड्राइवर वैन चलाता रहता था और सिक्योरिटी गार्ड हाथ में राइफल लिए यूं ही इधरउधर ताकते हुए सतर्कता दिखाने की एक्टिंग करते रहते थे. फिर कोई पुल या रेलवे फाटक आता था, जहां वैन के रुकते ही खलनायक नीचे के रास्ते से ही छूमंतर हो जाता था.
वैन के मुकाम पर पहुंचने के बाद डकैती का हल्ला मचता. पुलिस आ कर जांच करती थी और मीटिंग में आला अफसर झल्लाते हुए कड़क आवाज में हिदायत देता रहता था कि दिनदहाड़े कैश वैन लुट गई. यह हमारे डिपार्टमेंट के लिए शरम की बात है. जल्दी से जैसे भी हो डकैतों को पकड़ो. आम पब्लिक और मीडिया वाले हमारी हंसी उड़ा रहे हैं.
रहस्य बनती लीक डकैती फिल्मों में विलेन को पकड़ना मजबूरी होती थी, इसलिए लुटेरे किसी तरह धर लिए जाते थे. लेकिन सीबीएसई पेपर लीक मामले की बात जरा अलग है. यह एक ऐसा अहिंसक अपराध है, जिस में शक की सुई कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घूम रही है लेकिन वह खलनायक पकड़ में नहीं आ रहा है, जिस ने पेपर उड़ाने में सेंधमारी की थी. देश भर की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां इधरउधर छापे मार कर तथाकथित पेपर लीक करने वालों को खोज रही हैं, लेकिन यह पता नहीं कर पा रही हैं कि आखिर पेपर लीक कब, कैसे और कहां से हुआ था.
सेंट्रल बोर्ड औफ सेकेंडरी एजूकेशन यानी सीबीएसई हर साल 10वीं और 12वीं बोर्ड के इम्तहान आयोजित करता है. इस साल यह परीक्षा 8 मार्च से शुरू हुई थी. 1952 से इस बोर्ड की स्थापना का एक खास मकसद एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को आकार देना था, जिस से उन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सहूलियत रहे जिन के तबादले होते रहते हैं.
राज्यों के माध्यमिक शिक्षा मंडलों और सीबीएसई में काफी अंतर होता है. सीबीएसई सिलेबस से पढ़ना प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है, इसलिए बीते 2 दशकों से बड़ी तादाद में प्राइवेट स्कूलों ने इस से संबंद्धता लेनी शुरू कर दी थी.
एफिलिएशन मिलने के बाद प्राइवेट स्कूल वाले बड़ी शान से लिखने और बताने लगे कि उन का स्कूल सीबीएसई से संबद्ध या मान्यताप्राप्त है. इन स्कूलों में पढ़ना फैशन की बात हो चली है. देखते ही देखते अभिभावकों में भी होड़ लगने लगी कि बच्चे को सीबीएसई वाले स्कूल में पढ़ाएं. नर्सरी क्लास से ही बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाने लगा जिन में सीबीएसई का पाठ्यक्रम हो.
जब काम बढ़ने लगा और छात्रों की संख्या भी लाखों की तादाद में जाने लगी तो सीबीएसई को 4 जोनों में बांट दिया गया. इस से कार्यालयीय और दीगर कामों में सहूलियत होने लगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सीबीएसई की साख और पूछपरख दिनोंदिन बढ़ने लगी.
हर साल की तरह इस साल भी सीबीएसई ने बोर्ड परीक्षाओं का टाइमटेबल वक्त रहते घोषित कर दिया था. देश भर के केंद्रों पर इम्तहान परंपरागत ढंग से शुरू हुए और शुरुआत ठीकठाक रही. हालांकि इस साल बोर्ड ने अपनी कार्यशैली में कई अहम बदलाव किए थे, लेकिन इन की जानकारी हर किसी को नहीं थी.
शिक्षा जगत से जुड़े लोग ही इन बदलावों से वाकिफ थे. आम लोगों को इतना जरूर मालूम था कि कुछ राजनैतिक वजहों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्मृति ईरानी से छीन कर प्रकाश जावड़ेकर को दे दिया था और पिछले साल दिसंबर में सीबीएसई का चेयरमैन अनीता करवाल को बनाया था, जो गुजरात कैडर की 1988 बैच की तेजतर्रार और खूबसूरत आईएएस अधिकारी हैं.
अनीता करवाल के बारे में भी हर कोई जानता है कि वह नरेंद्र मोदी की पसंदीदा अधिकारी हैं, लिहाजा उन की नियुक्ति पर किसी को हैरानी नहीं हुई थी. क्योंकि हर एक प्रधानमंत्री अहम पदों पर अपने पसंद और भरोसे के अधिकारियों की नियुक्ति करता है.
परीक्षाएं सुचारू रूप से शुरू हुई थीं लेकिन 23 मार्च, 2018 को एक अफवाह दिल्ली से उड़ी कि 12वीं कक्षा का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो गया है. इस खबर या अफवाह पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि खुद सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग जानतेसमझते हैं कि यह अफवाहों और गपशप का अड्डा है. दूसरे अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 को होनी थी और भरोसा न करने की तीसरी खास वजह यह थी कि इस के साथ कोई प्रमाण नहीं थे. लिहाजा यह पोस्ट तूल नहीं पकड़़ पाई, लोगों ने इसे शरारत समझ कर खारिज कर दिया.
पर यह अफवाह या शरारत नहीं थी. यह बात 26 मार्च को अर्थशास्त्र की परीक्षा के दिन ही उजागर हुई, जब वाकई यह पुष्टि हो गई कि सोशल मीडिया पर ही 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो कर लाखों मोबाइल फोनों में कैद है. कई वाट्सऐप ग्रुप में इस परचे के स्क्रीन शौट और हाथ से लिखी आंसरशीट तक वायरल हुई थी.
पेपर लीक हो जाने के बाद भी लोग इस पर यकीन नहीं कर रहे थे तो इस की वजह लोगों का यह मानना था कि सीबीएसई एक विश्वसनीय संस्था है और मुमकिन है पेपर हो जाने के बाद इसे महज तूल पकड़ाने की गरज से वायरल किया गया हो, जिस से बेवजह का हड़कंप मचे. न्यूज चैनल्स ने इस खबर को चलाना शुरू किया तो लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि बात में सच्चाई है. और यह कोई मामूली बात नहीं है.
26 मार्च की शाम होतेहोते देश की राजधानी दिल्ली गरमा उठी थी और अब तरहतरह की नईनई बातें सामने आने लगी थीं, जिन का सार यह था कि वाकई अर्थशास्त्र का पेपर परीक्षा से पहले बाजार में आ चुका था. लेकिन इस गोरखधंधे की जड़ें कहां हैं, यह अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सीबीएसई की तरफ से यह बयान आया कि अर्थशास्त्र का पेपर लीक नहीं हुआ है, यह अफवाह भर है. यह दावा भी बोर्ड ने किया कि उस ने सभी परीक्षा केंद्रों की जांच कराई है और कहीं से पेपर लीक होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. इस के बाद लोग एक बार फिर असमंजस में घिरते नजर आए.
प्रधानमंत्री का दखल जो लोग पेपर लीक होने के प्रति आश्वस्त थे, वे धीरेधीरे गुस्साने लगे थे. ये वे अभिभावक थे, जिन के बच्चों ने यह परीक्षा दी थी. यह दिन खासतौर से दिल्ली और एनसीआर में काफी गहमागहमी वाला था.
हरियाणा और पंजाब की तरफ से भी पेपर लीक होने की बातें सामने आने लगी थीं. अब तक सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कोई बयान सामने नहीं आया था. इसी गफलत में 28 मार्च, 2018 को 10वीं का गणित पेपर भी लीक हो गया. और इस तरह हुआ कि इस कड़वी सच्चाई को हर किसी को हजम करना पड़ा कि देश में बोर्ड के वे पेपर भी लीक होने लगे हैं जिन के लीक होने से छात्रों का भविष्य, मेहनत और कैरियर प्रभावित होता है.
28 मार्च की शाम होतेहोते यह बात आम हो गई थी कि पेपर लीक हुए हैं और भाजीतरकारी के भाव बिके भी हैं. 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लगभग 8 लाख छात्रों ने और 10वीं गणित का इम्तहान 16.38 लाख छात्रों ने दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड पेपर लीक जैसे गंभीर मसले पर खामोश बैठे मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की जम कर क्लास लगाई तो प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों में खासी हलचल मच गई. नरेंद्र मोदी ने सख्त नाराजगी दिखाते हुए प्रकाश जावड़ेकर से न केवल सफाई मांगी बल्कि उचित काररवाई करने को भी कहा.
दरअसल, नरेंद्र मोदी की नाराजगी की वजह जायज थी. बीती 25 फरवरी, 2018 को वह अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में बोर्ड के छात्रों से रूबरू हुए थे. दूसरी कई बातों के साथ उन्होंने उन्हें परीक्षा के बाबत तनावमुक्त और बेफिक्र रहने को भी कहा था.
यह वाकई अफसोस की बात थी कि जिस देश में प्रधानमंत्री छात्रों को चिंतामुक्त रहने का आश्वासन दें, उस में ही परीक्षा के पेपर कुछ इस तरह लीक हो जाएं कि छात्रों की चिंता कई गुना बढ़ जाए. इस के अलावा वे तरहतरह की अनिश्चितताओं से घिर जाएं. नरेंद्र मोदी की दूसरी चिंता सरकार की गिरती साख है. यह उन के कार्यकाल में पहला उजागर मामला था, जिस का दोष वे किसी और पार्टी खासतौर से कांग्रेस के सर नहीं मढ़ सकते थे.
इस फटकार से हड़बड़ाए प्रकाश जावडे़कर ने सब से पहले तो पेपर लीक होने की बाबत खेद व्यक्त किया और फिर परंपरागत ढर्रे वाली बातें कह डालीं कि जांच होगी, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मैं भी अभिभावक हूं, इसलिए अभिभावकों का दर्द समझता हूं और लीक हुए दोनों पेपर रद्द किए जाते हैं. जल्द ही दूसरी तारीखों का ऐलान भी किया जाएगा वगैरहवगैरह.
इधर छात्रों और अभिभावकों ने जगहजगह विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के जंतर मंतर, सीबीएसई के औफिस और प्रकाश जावडे़कर के घर से हुई. जैसे ही दोबारा परीक्षा का ऐलान किया गया तो छात्रों और अभिभावकों का गुस्सा और बढ़ गया कि अब नए सिरे से सारी कवायद करनी पड़ेगी. ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं के माने क्या रह गए और सीबीएसई इस की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा.
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि प्रश्नपत्र लीक कैसे और कहां से हुए, लेकिन मीडिया के जरिए ये बातें जरूर सामने आने लगी थीं कि लीक हुए पेपर 35 हजार रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिके थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के बवाना इलाके के एक स्कूल से हुई थी. इन सच्चाइयों या खबरों से छात्रों का गुस्सा और बढ़ने लगा था. अब पहली बार सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल सामने आईं और वही रटेरटाए बयान दे कर गायब हो गईं कि जांच होगी, दोषी जेल जाएंगे.
शक की सुई सीबीएसई की तरफ मुड़ना स्वाभाविक बात थी, क्योंकि पेपर सेट करने से ले कर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उस की ही होती है. इन परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता अगर भंग हुई थी तो इस की जिम्मेदारी भी सीबीएसई की ही बनती थी, जिस से वह बचने और मुकरने की कोशिश तब से ले कर अब तक कर रहा है.
कहां से लीक सीबीएसई को पाकसाफ बताने में प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इन दोनों ने पेपर लीक होने को दिल्ली के कुछ कोचिंग सेंटरों को दोषी ठहराया, इस से इन की जगहंसाई ही हुई. क्योंकि मामूली सी अक्ल रखने वाला भी इस बात को समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो उसे कोई कोचिंग वाला कैसे लीक कर सकता है. हां, वह अपना धंधा चमकाने के लिए इन्हें बेच जरूर सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि सीबीएसई का कोई अफसर उसे पेपर बेचे.
कोई भी अपराध तब तक अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि पुलिस एफआईआर दर्ज न कर ले. चूंकि कुछ करना था इसलिए सीबीएसई की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 420, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. जल्द ही एक एसआईटी (स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम) का भी गठन कर डाला, जिस की कमान पुलिस अधिकारी आर.पी. उपाध्याय को सौंप दी गई.
इधर 29 मार्च, 2018 को पेपर लीक होने के विरोध में देश भर में प्रदर्शन होने लगे थे. दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आरोप लगाया कि अकेले अर्थशास्त्र या गणित का ही नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के सारे पेपर लीक हुए हैं. लिहाजा पूरी परीक्षा दोबारा होनी चाहिए.
जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों में से एक छात्र राहुल ने बताया कि पेपर सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत से लीक हुए हैं और 2-2 हजार रुपए में बिके हैं. यह हमारे भविष्य से खिलवाड़ है. हरकत में आई पुलिस काररवाई के नाम पर दिल्ली के कोचिंग सेंटरों पर ही छापामारी कर के यह जताने की कोशिश कर रही थी कि पेपर यहीं से लीक हुए हैं. पुलिस ने दिल्ली के द्वारका, रोहिणी और राजेंद्रनगर इलाकों के कोचिंग सेंटरों पर छापे मारे और कोचिंग सेंटर संचालकों सहित छात्रों से भी पूछताछ की.
पुलिस वाले छात्रों और कोचिंग संचालकों के मोबाइल फोन खंगाल रहे थे जैसे लीक का राज उन्हीं में छिपा हो. हो यह रहा था कि पुलिस वाले उन छात्रों को तंग कर रहे थे, जिन्हें कहीं से लीक पेपर मिला था. एक के बाद एक कइयों के मोबाइल खंगाले गए, लेकिन लीक सोर्स पुलिस को नहीं मिलना था सो नहीं मिला.
प्रकाश जावड़ेकर जोर इस बात पर दे रहे थे कि लीक सोर्स ढूंढा जा रहा है. छात्रों और अभिभावकों का बढ़ता विरोध प्रदर्शन देख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौका ताड़ कर हमलावर हो उठे. उन्होंने ताना मारा ‘कितने लीक, डाटा लीक, आधार लीक, चुनाव की तारीखें लीक, एसएससी के पेपर लीक और अब सीबीएसई के पेपर लीक. लेकिन हमारा चौकीदार वीक.’
छात्रों की परेशानियों को कम करने के बजाय और बढ़ाते सीबीएसई की तरफ से कहा गया कि लीक हुए पेपरों की परीक्षा दोबारा होगी, जिन की तारीखों की घोषणा जल्द कर दी जाएगी.
दिल्ली के एक अभिभावक पेशे से वकील अलख श्रीवास्तव ने तुक की बात यह कही कि लीक प्रभावित छात्रों को एकएक लाख रुपए का मुआवजा दिलाया जाए.
31 मार्च को एक सनसनी भरी खबर यह आई कि दरअसल सीबीएसई के पेपर दिल्ली से नहीं बल्कि पटना से लीक हुए थे. झारखंड के चतरा जिले के एसपी ए.बी. वारियार ने दावा किया कि लीक हुआ प्रश्नपत्र पटना से चतरा आया था. इस बाबत बिहार और झारखंड से कोई दरजन भर लोगों को गिरफ्तार किया गया है. एसआईटी ने पटना के कृष्णनगर से गया स्थित शेरधारी निवासी अमित कुमार व छपरा के आकाश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.
पेपर लीक के तार जुड़े थे दिल्ली से बताया यह गया कि इन दोनों के तार दिल्ली से जुड़े हैं और ये दिल्ली के शिक्षा माफिया की मदद से सीबीएसई के पेपर लीक कर पैसों के बदले छात्रों को प्रश्नपत्र मुहैया कराते हैं. पुलिस ने चतरा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट स्टडी विजन के संचालक सतीश पांडेय सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया.
सतीश पांडेय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जिला संयोजक भी है. इन कथित आरोपियों ने 28 मार्च का पेपर 27 मार्च को ही उपलब्ध करा दिया था. इस दिन एसआईटी ने 9 नाबालिग छात्रों को भी गिरफ्तार कर उन्हें हजारीबाग स्थित बाल सुधार गृह भेजा.
यह निहायत ही हास्यास्पद और बचकानी बात थी. पुलिस जड़ तक पहुंचने के बजाय पत्तियां तोड़ रही थी. पेपर अगर पटना में लीक हुए थे तो आरोपियों तक कहां से और कैसे आए, इस बात का कोई संतोषजनक जवाब पुलिस के पास नहीं था. सुधार गृह भेजे गए जब नाबालिग कोई पेशेवर या आदतन मुजरिम नहीं थे तो उन्हें सुधार गृह क्यों भेजा गया?
पेपर लीक होने की बात अब गंभीर चिंता के बजाय मजाक का विषय बन गई, यह बात एक बार फिर 7 अप्रैल, 2018 को साबित हुई. इस दिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमाचल प्रदेश के ऊना के डीएवी स्कूल के एक शिक्षक राकेश कुमार को लीक मामले का आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.
डीएवी स्कूल ऊना की अपनी साख है. यह सीबीएसई का परीक्षा केंद्र नहीं था, बल्कि इस बार वहां के जवाहर नवोदय विद्यालय को परीक्षा केंद्र बनाया गया था. सीबीएसई ने डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल अमित महाजन को परीक्षा के लिए अधीक्षक बनाया था. अमित महाजन ने परीक्षा की जिम्मेदारी एक शिक्षक राकेश कुमार को सौंप दी थी.
राकेश कुमार दूसरे कई लाख शिक्षकों की तरह पढ़ाने के साथसाथ कोचिंग सेंटर भी चलाता था. सीबीएसई के प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे जाते हैं. 23 मार्च को जब राकेश कुमार 12वीं का कंप्यूटर साइंस का पेपर निकाल कर केंद्र तक पहुंचाने बैंक गया तो उस ने वहां रखा 28 मार्च को होने वाले अर्थशास्त्र के पेपर का बंडल भी उठा लिया. फिर उसे गायब कर लीक कर दिया. इस काम में उस का साथ देने वाले अमित और अशोक भी धर लिए गए. दरअसल राकेश की कोचिंग का एक छात्र अर्थशास्त्र में कमजोर था, जिस के लिए राकेश ने यह पेपर उड़ाया था. बाद में उस ने यह पेपर चंडीगढ़ में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार को भी वाट्सऐप के जरिए भेजा था.
लीक के बाद हर कहीं से खबरें आने लगी थीं कि पेपर यहां से लीक हुआ. इन छापों की पुलिसिया काररवाई से लोग जरूर कंफ्यूज हो रहे थे कि पेपर बना कहां था और लीक कहां से हुआ. मान लिया जाए कि ऊना के राकेश कुमार ने 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक किया तो 10वीं का गणित का पेपर लीक होने का जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों का जवाब किसी को नहीं मिल रहा और न ही मिलने की उम्मीद है.
पेपर कहांकहां से और कैसे लीक हो सकते हैं, यह समझने के लिए सीबीएसई की प्रक्रिया को समझना जरूरी है. प्रक्रिया को देख कर लगता है कि सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी बात है. सीबीएसई के बारे में कहा जाता है कि प्रश्नपत्र बना कर उन्हें परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की उस की पूरी प्रक्रिया इतनी फूलप्रूफ है कि पेपर कहीं से लीक हो ही नहीं सकते. लेकिन इस के बाद भी हो गए तो जाहिर है यह वही मिलीभगत और साजिश थी, जिस ने 28 लाख छात्रों की मेहनत पर पानी फेर दिया.
सभी छात्र अब तक शक कर रहे हैं कि सारे पेपर लीक हुए थे यानी इस परीक्षा प्रणाली को अविश्सनीय बनाने का मास्टरमाइंड हिंदी फिल्मों के खलनायक जैसा है, जिस तक पुलिस कथा लिखने तक नहीं पहुंच पाई थी. ऐसा भी नहीं है कि पुलिस ने सीबीएसई को एकदम बख्श दिया हो या क्लीन चिट दे दी हो. उस ने कुछ अधिकारियों से पूछताछ की, खासतौर से परीक्षा नियंत्रक से जिन्होंने सीबीएसई की परीक्षा प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया. इस जानकारी का कोई खास उपयोग पुलिस वालों ने क्यों नहीं किया, यह जरूर शक पैदा करने वाली बात है.
प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया सामान्यत: अगस्त महीने से शुरू हो जाती है. जिस के तहत सीबीएसई देश भर के शिक्षकों में से कुछ को छांट कर उन्हें विषयवार प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी देती है. इन शिक्षकों की योग्यता के अलग पैमाने होते हैं. ये शिक्षक प्रश्नपत्रों के 3 से 4 सेट सीबीएसई को भेजते हैं.
इन में से कोई एक सेट सीबीएसई लेती है, पर यह शिक्षकों को नहीं मालूम रहता कि परीक्षा के लिए उन का बनाया प्रश्नपत्र ही लिया जाएगा. सीबीएसई यह सुनिश्चित करती है कि पेपर बनाने वाले शिक्षक कहीं कोचिंग या ट्यूशन न पढ़ाते हों और उन का कोई नजदीकी रिश्तेदार बोर्ड के इम्तहान में शामिल न हो रहा हो.
अलगअलग विषयों के प्रश्नपत्र जब छांट लिए जाते हैं तो उन्हें छपाई के लिए भेजा जाता है. इन प्रिंटिंग प्रेसों की जानकारी बेहद गोपनीय रहती है, जो देश भर में कहीं भी हो सकती है. सीबीएसई में नोटिफाइड प्रेसों में से किस प्रेस को काम दिया गया है, यह जानकारी महत्त्वपूर्ण और गिने हुए अधिकारियों को ही रहती है. जिस प्रिंटिंग प्रेस में पेपर छपते हैं, उस में सीसीटीवी कैमरे लगे होना जरूरी होता है.
कड़ी प्रक्रिया से गुजरने के बाद छात्रों तक पहुंचते हैं प्रश्नपत् पेपर उतने ही छपवाए जाते हैं, जितने छात्र परीक्षा में शामिल हो रहे होते हैं. छपाई के बाद से प्रश्नपत्र सीधे परीक्षा केंद्र नहीं पहुंचाए जाते बल्कि उन्हें परीक्षा केंद्रों के नजदीक किसी बैंक के लौकर में रखा जाता है. ऐसे बैंकों को कस्टोडियन बैंक या कलेक्शन सेंटर कहा जाता है. यह जानकारी बैंक मैनेजर के अलावा परीक्षा केंद्र अधीक्षक को ही रहती है.
जिस दिन परीक्षा होती है, उस दिन एक बैंक कर्मचारी, सीबीएसई का एक प्रतिनिधि और परीक्षा केंद्र यानी स्कूल का प्रतिनिधि मौजूद रहता है. ये तीनों जब सुनिश्चित कर लेते हैं कि रखे हुए पेपरों के बंडल सीलबंद हैं और उन से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है, इस के बाद ही पेपर के बंडल बैंक से सीधे परीक्षा केंद्र पहुंचाए जाते हैं. जिस वाहन में प्रश्नपत्र जाते हैं, उस में एक सिक्योरिटी गार्ड भी रहता है.
परीक्षा केंद्र पर प्रश्नपत्र पेपर शुरू होने के आधे घंटे पहले खोले जाते हैं और ड्यूटी दे रहे शिक्षकों को कमरों में मौजूद छात्रों की संख्या के हिसाब से दिए जाते हैं. फिर ड्यूटी दे रहे शिक्षक प्रश्नपत्र वितरित करते हैं.
देखा जाए तो प्रक्रिया वाकई फूलप्रूफ है लेकिन इस में कई छेद हैं, जिन से हो कर कोई भी प्रश्नपत्र लीक हो सकता है या किया जा सकता है. पहला झोल तो यही है कि छपाई के प्रश्नपत्र जब सीबीएसई मुख्यालय में रखे रहते हैं, तब वहां के अधिकारी ही इन्हें उड़ा सकते हैं. ऐसा साल 2004 और 2011 में हो भी चुका है.
दूसरा छेद बैंक लौकर हैं, जहां प्रश्नपत्र लंबे समय तक रखे रहते हैं. बैंक अधिकारी कभी भी ताला खोल कर प्रश्नपत्र लीक कर सकते हैं. साल 2006 में 12वीं का बिजनैस स्टडीज का पेपर बैंक से ही लीक हुआ था.
यह मामला बड़ा दिलचस्प है. हरियाणा के पानीपत शहर में पुलिस ढूंढ तो रही थी वाराणसी बम ब्लास्ट के आरोपियों को, लेकिन जगहजगह की छापेमारी में पुलिस के हाथ ये प्रश्नपत्र लग गए थे, जिन में 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन में बैंक मैनेजर व कैशियर भी शामिल थे. यानी बैंक लौकर में रखे प्रश्नपत्रों के लीक न होने की गारंटी नहीं है.
बैंक से परीक्षा केंद्र तक के रास्ते में पेपर के लीक होने की गुंजाइश काफी कम है क्योंकि उस वक्त पेपर उड़ाने का कोई खास फायदा नहीं होता. उस समय तक छात्र परीक्षा केंद्र पहुंच चुके होते हैं. दूसरे इतनी जल्द बंडल को सील पैक नहीं किया जा सकता. इस में वाहन में मौजूद तीनों लोगों की मिलीभगत जरूरी है.
इस साल के पेपर लीक से एक नई बात या तरीका यह उजागर हुआ कि पेपर लेने गया स्कूल का प्रतिनिधि अगले पेपर का भी बंडल उठा सकता है. यह जरूर चिंता वाली बात है कि सीबीएसई का कोई जोर इन बैंकों पर नहीं है और सारे पेपर एक साथ इस तरह क्यों रखे जाते हैं कि आने वाली परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का बंडल भी शिक्षक उठा ले जाए.
साफ दिख रहा है कि ऊना और पटना की सनसनी सिर्फ लीपापोती थी, जिस से लोग भ्रमित हों और ऐसा हो भी रहा है. लोग इस लीक कांड को दूसरे कांडों की तरह भूलने लगे हैं. सीबीएसई ने बवाल से बचने के लिए गणित का पेपर दोबारा कराने का फैसला ले कर कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया है, बल्कि यह संदेशा दिया है कि अगर कोई पेपर सीमित स्थान में लीक हुआ है तो उसे लीक हुआ नहीं माना जाएगा.
जाह्नवी की अनदेखी क्यों पुलिसिया काररवाई कितनी खोखली और बनावटी थी, इस बात का अंदाजा लगाने कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं. परीक्षा के 9 दिन पहले ही लुधियाना की रहने वाली एक 17 वर्षीय छात्रा जाह्नवी बहल ने इस कांड का पहले ही परदाफाश कर दिया था, पर अफसोस इस बात का है कि तब भी उस की बात पर ध्यान नहीं दिया गया था और अब भी नहीं दिया जा रहा. जाह्नवी लुधियाना के बसंत सिटी इलाके में रहती है और पक्खोवाल रोड स्थित डीएवी स्कूल की 12वीं की कौमर्स की छात्रा है. जाह्नवी के पिता अश्विनी बहल नौकरीपेशा हैं और मां नंदिनी गृहिणी हैं.
17 मार्च को ही जाह्नवी ने पेपर लीक का ब्यौरा अपनी शिकायत के साथ लुधियाना के पुलिस कमिश्नर आर.एन. ढोके को भेजा था. कमिश्नर ने जांच की जिम्मेदारी एडीसीपी रतन बराड़ को सौंप दी थी. पुलिस ने कोई जांच की हो, ऐसा लग नहीं रहा बावजूद इस के कि जाह्नवी ने पेपर लीक कराने वाले का फोन नंबर भी दिया था.
जाह्नवी ने अकेले पुलिस को ही नहीं बल्कि समझदारी दिखाते हुए उस ने शिकायत की प्रतियां सीबीएसई के औफिस और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी थीं. इस के बावजूद काररवाई न होना इस शक को यकीन में बदल रहा है कि पेपर लीक कांड के तार बहुत लंबे हैं. अगर वक्त रहते पुलिस काररवाई करती तो होता यह कि दोनों पेपर तुरंत रद्द करने पड़ते जिस में घाटा या नुकसान उन लोगों का होता जो इन का कारोबार कर रहे थे.
पेपर वक्त रहते रद्द हो जाते तो बिकते नहीं, इसलिए काररवाई का न होना बड़े घपले की तरफ इशारा कर रहा है. जिस किसी ने भी पेपर लीक किए, उसे पैसे बनाने का मुकम्मल मौका मुहैया कराया गया. पर लाख टके का सवाल यह है कि वह कौन है, जिस ने पेपर बेचे? अब जब भी वह पकड़ा जाएगा, तभी राज से परदा उठ पाएगा.
अकेली जाह्नवी ने ही नहीं बल्कि एक और अज्ञात जागरूक नागरिक जिसे व्हिसल ब्लोअर करार दिया गया, पेपर लीक होने के मामले में सीबीएसई औफिस को आगाह करता रहा था. सीबीएसई इस बात को मान चुकी है कि इस व्हिसल ब्लोअर ने मेल के जरिए पेपर लीक होने की बात बताई थी. जाने यह कोई क्यों नहीं बता रहा कि इस शिकायत या जानकारी पर समय से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया था. सांप निकल जाने के बाद अब लकीर क्यों पीटी जा रही है.
मुमकिन है देरसबेर पुलिस असल अपराधी तक पहुंच जाए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी और छात्रों के नुकसान की भरपाई तो किसी भी सूरत में नहीं हो पाएगी. साल 2018 जिन अपराधों के लिए याद किया जाएगा, उन में से एक सीबीएसई पेपर लीक मामला भी होगा. द्य