दिन पर दिन साइबर क्राइम बढ़ता जा रहा है. ज्योंज्यों टेक्नोलौजी आगे बढ़ती जाएगी, साइबर क्राइम और भी बढ़ेगा. यह एक ऐसा अपराध है जो हजारों किलोमीटर दूर बैठा आदमी किसी को भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचा सकता है. पढि़ए और जानिए साइबर क्राइम के बारे में…
पु घटना -1
कपड़ों के शोरूम के मालिक प्रशांत कुमार दोपहर में ग्राहक न होने की वजह से शोरूम के सेल्समैनों से बात कर रहे थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. अनजान नंबर था, इसलिए उन्होंने लापरवाही से फोन रिसीव कर जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘जी, मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूं.’’
प्रशांत कुमार का सारा लेनदेन भारतीय स्टेट बैंक से ही होता था इसलिए उन्हें लगा कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए सचेत होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जी कहिए, क्या बात है.’’
‘‘दरअसल आप के डेबिट कार्ड का पिन ब्लौक हो गया है इसलिए आप उस का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर बता देते तो उस का नया पिन नंबर जेनरेट कर देते.’’ दूसरी ओर से कहा गया. प्रशांत कुमार को पता था कि बैंक की ओर से अकसर इस तरह के मैसेज आते रहते हैं कि ‘आप किसी को अपने डेबिट/के्रडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं, क्योंकि बैंक किसी से यह सब नहीं पूछता.’ प्रशांत कुमार तुरंत जान गए कि फोन करने वाला कोई ठग है. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘भाई साहब, बेवकूफ समझते हो क्या?’’
उनका इतना कहना था कि दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. दरअसल, फोन करने वाला ठग था. अगर प्रशांत कुमार उस के द्वारा मांगी गई जानकारी बता देते तो वह ठग समझ जाता कि यह आदमी बेवकूफ है. इसके बाद वह ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से पैसे निकाल लेता.
प्रशांत कुमार समझदार आदमी थे, इसलिए बच गए. लेकिन ये ठग इसी तरह न जाने कितने लोगों से कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नंबर, पूछ कर रोजाना ठगते हैं. लोगों को ठगी से बचने के लिए ही बैंक अब मैसेज भेजने लगे हैं कि आप किसी को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं. इस के बावजूद लोग ठगी का शिकार बन रहे हैं.
घटना-2
प्रशासनिक नौकरी की तैयारी करने वाले राजेश शर्मा को सोशल मीडिया इसलिए पसंद था, क्योंकि इस से उसे थोड़ीबहुत जानकारी तो मिलती ही थी, पढ़ाई करतेकरते थक जाने पर फेसबुक या चैट साइट खोल कर दोस्तों से थोड़ीबहुत चैट कर के मूड फ्रैश हो जाता था. राजेश युवा तो था ही कुंवारा भी था, दूसरे घर वालों से दूर अकेला रह रहा था. राजेश के ऐसे दोस्त भी थे, जिन से वह हर तरह की चैट कर लेता था. इस में अश्लील चैट भी शामिल था. इस तरह की चैट करने वालों में ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग थे.
अधेड़ लोगों से अश्लील चैट कर के राजेश अपना मूड जरूर फ्रैश कर लेता था. लेकिन इसमें उसे वह आनंद नहीं आता था, जो वह चाहता था. उस का मन करता था कि कोई लड़की हो, जिस से वह इस तरह का चैट करे. इस के लिए उस ने चैट साइट ऐप टिंडर डाउनलोड किया और लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. मैसेज का किसी ने जवाब दिया तो किसी ने टाल दिया. किसी का जवाब आता तो उसे खुशी होती कि शायद अब बात बन जाएगी. क्योंकि ज्यादातर लड़कियों के जवाब नकारात्मक होते थे.
राजेश भी हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस की कोशिश जारी थी. जो लड़कियां जवाब देतीं थीं, वे भी 2-4 दिन जवाब दे कर शांत हो जाती थीं. किसी ने बात आगे बढ़ाई भी तो बाद में कहने लगती थी कि अब बात तभी होगी, जब उस का फोन रिचार्ज कराओगे. चैट करने के लालच में राजेश ने एक बार एक लड़की का फोन रिचार्ज कराया भी. लेकिन फोन रिचार्ज होते ही उस लड़की ने राजेश को ब्लौक कर दिया. इस से राजेश को निराशा तो हुई लेकिन एक सीख यह मिल गई कि दुनिया बहुत चालाक है.
इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस का मन नहीं माना और वह फिर पहले की ही तरह लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे एक लड़की मिल गई, जो उस के मैसेज के वैसे ही जवाब देने लगी, जैसा वह चाहता था. राजेश रोज रात में उस लड़की से चैटिंग करने लगा. दोनों के मैसेज ऐसे होते थे, जिन्हें पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका ही भेज सकते थे. कुछ ही दिनों में मैसेज के आदानप्रदान के साथ एकदूसरे को फोटो भी भेजे जाने लगे. फिर एक दिन लड़की ने राजेश से अपने निर्वस्त्र यानी नग्न फोटो भेजने को कहा. राजेश को उस लड़की पर इतना भरोसा हो चुका था कि उस ने बिना कुछ सोचे लड़की को अपने नग्न फोटो भेज दिए. राजेश ने जब लड़की से उसी तरह के अपने फोटो भेजने को कहा तो उस ने बहाना बना कर फोटो भेजने से मना कर दिया. राजेश ने उस की बात पर विश्वास कर के उस पर दबाव भी नहीं डाला.
लड़की ने राजेश को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उस के कई नग्न फोटो मांग लिए. इस के बाद एक दिन लड़की ने जो रंग दिखाया, उसे देख राजेश परेशान हो उठा. लड़की ने राजेश के फोटो सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगे. राजेश को अपनी इज्जत बचानी थी, सो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया. जब वह लड़की को रुपए देने पहुंचा तो पता चला वह लड़की नहीं, 45-46 साल का आदमी था. राजेश ने अपने वे फोटो डिलीट कराने के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से रुपए तो दिए ही उसे उस की मनमानी भी सहनी पड़ी.
अच्छा यह हुआ कि वह आदमी एक बार में ही मान गया, वरना पता नहीं राजेश को कब तक उस की दुर्भावना का शिकार होना पड़ता. हो सकता है, उस ब्लैकमेलर ने सोचा हो कि जो मिलता है, लेकर किनारे हो जाओ. क्योंकि उसे यह डर भी था कि ज्यादा लालच करने पर राजेश पुलिस के पास भी जा सकता है. मजे लेने के चक्कर में राजेश ने इधरउधर से इंतजाम कर के पैसे तो दिए ही, उस आदमी की मनमानी भी झेली. उस के साथ जो हुआ शायद ही वह जीवन में इसे भूल पाए. अब वह मोबाइल देख कर डर जाता है. राजेश ही नहीं सोशल मीडिया के नाम से सुष्मिता भी घबराने लगी है क्योंकि उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन उस का मामला राजेश के मामले से कुछ अलग है.
घटना-3
सुष्मिता भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. लेकिन फेसबुक हो या चैटसाइट टिंडर, उस की फ्रैंडलिस्ट में जो भी लोग थे, सभी उस की जानपहचान वाले थे. इन में ज्यादातर उस के कालेज के मित्र थे. फालतू लोगों को न तो वह फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजती थी और न ही रिक्वेस्ट आने पर स्वीकार करती थी. चैटिंग भी वह कुछ ही दोस्तों से करती थी, जिस में पढ़ाई से संबंधित बातें ज्यादा होती थीं. किसी वजह से वह 15-20 दिन सोशल मीडिया से दूर रही. एक दिन उस ने अपनी चैट साइट खोली तो उस में एक दोस्त का मैसेज पढ़ कर दंग रह गई. उस ने दोस्त को लताड़ना चाहा तो उस ने कहा कि उसी ने तो इस तरह की फूहड़ चैटिंग की थी. उस ने तो केवल उस के मैसेज के जवाब भर दिए थे.
इस से सुष्मिता की हैरानी और बढ़ गई, क्योंकि 15-20 दिनों से उस ने किसी से चैटिंग की ही नहीं थी. उस ने दोस्त को झूठा साबित करना चाहा तो उस ने चैटिंग के स्क्रीन शौट ले कर भेज दिए. चैटिंग के फोटो देख कर सुष्मिता परेशान ही नहीं हुई बल्कि डिप्रेस हो गई. क्योंकि वह चैटिंग इतनी अश्लील थी कि उस तरह की चैटिंग करने की कौन कहे, सुष्मिता सोच भी नहीं सकती थी. इस डिप्रेशन से उबरने में उसे काफी समय लगा. सुष्मिता ने सचमुच वह चैटिंग नहीं की थी. उस के चैटरूम में घुस कर किसी ने उस के दोस्त से उस की ओर से चैटिंग की थी. पहले तो सुष्मिता के उस दोस्त को भी हैरानी हुई थी कि सुष्मिता को यह क्या हो गया है?
लेकिन उस ने सोचा कि जब वह ही इस तरह की फूहड़ चैटिंग कर रही है तो उसे क्यों परेशानी होगी. मजे लेने के लिए उस ने भी उसी तरह के जवाब देने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब असलियत खुली कि वह चैटिंग सुष्मिता ने नहीं, बल्कि उस की ओर से किसी और ने की थी तो वह काफी शर्मिंदा हुआ था.
घटना-4
ऐसा ही कुछ हुआ प्रदीप के साथ. 15 साल का प्रदीप भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था. मौका मिलते ही वह फेसबुक खोल कर बैठ जाता और यह देखता कि उस के फोटो और पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया और उस पर किस ने क्या कमेंटस लिखे. उसकी अपने कुछ दोस्तों से चैटिंग भी होती थी. प्रदीप सोशल मीडिया पर सक्रिय जरूर था. लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वह सावधानी भी बरतता था. उस की फ्रैंडलिस्ट में ज्यादा लोग नहीं थे, जो थे वे पढे़लिखे और समझदार लोग थे.
इतनी सावधानी बरतने के बावजूद प्रदीप के साथ गड़बड़ हो गई. एक दिन उस के साथ पढ़ने वाली एक लड़की अपनी मम्मी के साथ उस के घर आई और अपने फोन पर मैसेंजर में उस का मैसेज दिखाते हुए बोली, ‘‘प्रदीप, मैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का समझती थी, पर तुम ने मुझे यह कैसा मैसेज भेजा है?’’ प्रदीप उस मैसेज को देख कर हैरान रह गया, क्योंकि उस ने वैसा मैसेज भेजा ही नहीं था. उस ने लाख सफाई दी, लेकिन न तो लड़की ने उस की बात पर विश्वास किया न ही उस की मां ने. दरअसल वह मैसेज था, ‘आई लव यू’. लड़की और उस की मां इसी मैसेज से खफा थीं.
उन से जो बना, वह तो उन्होंने कहा है, जातेजाते धमकी भी दे गईं कि फिर कभी ऐसा मैसेज भेजा तो प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर देंगी. इस बार वे उसे इसलिए छोड़ रही हैं, क्योंकि उस की मां ने उन से हाथ जोड़ कर उस की गलती के लिए माफी मांगी है.
इस मामले में भी कुछ वैसा ही हुआ था, जैसे ऊपर की घटनाओं में हुआ था. प्रदीप ही नहीं उस की मां को भी इस गलती के लिए शर्मिंदा ही नहीं होना पड़ा था, बल्कि हाथ जोड़ कर माफी भी मांगनी पड़ी. दरअसल किसी और ने प्रदीप की ओर से वह मैसेज उस के साथ पढ़ने वाली उस लड़की को भेज दिया था.
इस बात को न वह लड़की समझ पाई थी, न ही उस की मां. उन्हें ही नहीं, इस बात का पता तो प्रदीप और उस की मां को भी नहीं चला था. प्रदीप सिर्फ इतना जानता था कि उस ने यह मैसेज नहीं भेजा था. यह सब कैसे हुआ, उसे पता भी नहीं था.
दरअसल, यह सब एक तरह का साइबर अपराध है, जो धीरेधीरे आम होता जा रहा है. लेकिन इस के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इंटरनेट के तेजी से हो रहे प्रचारप्रसार के साथ अब साइबर अपराध भी उसी तेजी से बढ़ रहा है. युवा और महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी औनलाइन चैटिंग, डेटिंग ऐप के चक्कर में फंस कर प्रभावित हो रहे हैं. बैंकिंग, इनफोर्मेशन, बीमा कंपनियां और शेयर मार्केट ही नहीं, सरकारें तक इस अपराध से खासा प्रभावित हैं.
एक लिंक से ठगी किसी की निजी जानकारी प्राप्त कर के धोखाधड़ी, डेबिट/के्रडिट कार्ड का ब्यौरा पता कर के चूना लगाना तो आम हो गया. लगभग रोज ही अखबारों में इस तरह की ठगी की खबरें आती रहती हैं. इस साइबर क्राइम से आम लोगों के साथसाथ कारपोरेट जगत और सरकारें भी परेशान हैं. क्योंकि इस की वजह से अन्य लोग ही नहीं, बड़ीबड़ी कंपनियों के साथ सरकारें भी लुट रही हैं.
अभी पिछले दिनों आम लोगों के लुटने की बड़ी खबर आई थी, जिस में क्लिक से पैसा कमाने की ललक ने लाखों लोगों को चूना लगा दिया. ऐसा करने वाली ‘सोशलट्रेड डौट बिज’ अकेली कंपनी नहीं थी. इसी तरह की एक कंपनी और थी ऐडकैश. दोनों ही कंपनियों के कारोबार का पैटर्न एक जैसा था. पहले इन्होंने विज्ञापन दिया कि ‘घर बैठे लाइक करें और पैसे कमाएं.’ इस तरह का विज्ञापन देख कर फटाफट पैसा कमाने की होड़ में लाखों लोग इन कंपनियों के झांसे में आ गए.
दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज में सभी चाहते हैं कि उन के फालोअर्स की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े. इसी बात को ध्यान में रखकर पहले इन कंपनियों ने नेताओं और सेलिब्रेटी को जोड़ा यानी ग्राहक बनाया. उनके साथ ईमानदारी से डील हुई. इस तरह कंपनियों ने फालोअर्स बढ़ाए और बदले में फीस ली. लेकिन असली खेल तो आम लोगों के साथ शुरू हुआ.
सेलिब्रिटी को जोड़ने के बाद कंपनियों ने लिंक्स को अपना मार्केटिंग हथियार बनाया. आम लोगों को नेता और सेलिब्रिटी के लिंक दिखा कर कंपनियों ने उन्हें जोड़ा. इस स्कीम के तहत लोगों को मेंबर बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ असली खेल. 10 हजार रुपए फीस ले कर उन्हें मेंबर बनाया गया और बिजनैस मौडल के अनुसार, उस के लिंक को बूस्ट किया गया. मेंबरशिप के लिए ग्राहक को अपना पैन नंबर देना पड़ता था.
जबकि परदे के पीछे दूसरी डील हो रही थी, जिस के तहत कंपनियां मेंबरशिप लेने वाले ग्राहक से 5 लिंक क्लिक करवाती थीं और एक क्लिक का 5 रुपए देती थीं. अगर कोई मेंबर 2 नए मेंबर जोड़ता था तो उस के लिंक डबल हो जाते थे. लिंक डबल होने का मतलब मिलने वाला पैसा भी डबल. इस तरह मेंबर जितने मेंबर जोड़ता था, उस के लिंक बढ़ते जाते थे.
ये कंपनियां खुद को कानूनी रूप से सही साबित करने के लिए 10 प्रतिशत टीडीएस काट कर पैसे देती थीं. शुरूशुरू में ये कंपनियां रोज के हिसाब से पैसे देती थीं. कंपनी के सदस्यों की संख्या लाखों में होने की वजह से बैंक सवाल उठाने लगे कि आखिर इन्हें इतने अधिक पैसे क्यों दिए जा रहे हैं. इस के बाद कंपनियां हफ्ते में, फिर महीने में पैसे देने लगीं. बैंकों ने फिर सवाल उठाया तो कंपनियां रुपए के बदले प्वाइंट देने लगीं. मेंबर जब चाहे प्वाइंट के बदले पैसे ले सकता था.
घर बैठे कमाई का मौका देख कर लोगों ने एक पैन कार्ड पर कईकई आईडी बना लीं. इस के लिए उन्हें सालाना 11 हजार रुपए की फीस देनी पड़ती थी. लेकिन बदले में उन्हें ज्यादा लिंक्स मिल रहे थे. बाद में कपंनियां सख्ती बरतते हुए एक पैन कार्ड पर एक ही मेंबर बनाने लगीं. इस पर लोगों ने अपने घर के अन्य लोगों के नाम आईडी बना डालीं. अगर ऐडकैश कंपनी की बात की जाए तो उस से करीब 6-7 लाख लोग जुड़ चुके थे. एडकैश का विज्ञापन तो व्हाट्सऐप पर भी धड़ल्ले से चल रहा था.
शुरूशुरू में वे कंपनियां वादे के अनुसार लाइक करने के लिए लिंक्स और बदले में नियमित पैसे देती रहीं. शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. इन दोनों दिन लिंक्स नहीं मिलते थे. धीरेधीरे सर्वर खराब होने का बहाना बना कर लिंक्स देना कम कर दिया गया, जिस से लोग नाराज हुए. जबकि नए मेंबर बनाने का काम उसी तरह चलता रहा. कंपनी फीस तो जमा कर लेती थी, लेकिन आईडी बनाने में आनाकानी करने लगी थी. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर कंपनियां पौइंट पर पैसे देने से आनाकानी करने लगीं. इस के बाद लोगों ने पुलिस में शिकायत की तो पता चला कि यह एक तरह की साइबर ठगी थी, जिस में इन कंपनियों ने लोगों को खरबों का चूना लगाया था. यह तो रही आम लोगों की ठगी की बात, जो यह नहीं जानते कि ऐसा भी हो सकता है.
डेबिट कार्ड के पिन की चोरी इसका सब से बड़ा उदाहरण है 4 महीने पहले हुई आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन की चोरी. बैंक को इस बात की जानकारी हो गई थी, इस के बावजूद बैंकों ने यह बात ग्राहकों को नहीं बताई. एक तरह से देखा जाए तो साइबर क्राइम से बड़ा अपराध वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन ने किया. डेबिट कार्ड की ही बात क्यों की जाए, आम आदमी के तमाम तथ्य आधार नंबर से चुराए जा चुके हैं. देश भर में करीब 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चुराए जाने की आशंका है. लेकिन संबंधित बैंकों ने अपना कारोबार बचाने की गरज से इस का खुलासा नहीं किया.
भारतीय स्टेट बैंक तो अब किसी तरह खुलासा कर रहा है. जबकि निजी बैंकों में उस से कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए जब तक संभव है, कोई जानकारी देने से बचेंगे. फिलहाल बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर पुराना कार्ड ब्लौक कर नया कार्ड देना शुरू कर दिया है. ताज्जुब की बात तो यह है कि अभी तक किसी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई है. यही नहीं, इस मामले में सरकार को भी कोई सूचना नहीं दी गई है. जबकि महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने बैंकों को पत्र लिखा है.
4 महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन चोरी हो रहे थे, बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, लेकिन वे चुप्पी साधे थे. एक तरह से देखा जाए तो यह साइबर अपराध से बड़ा अपराध हमारे वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन का है. जबकि बैंकिंग के नियमों और आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, खाताधारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्य दिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होता है. इस के लिए ग्राहक को 3 दिन के अंदर धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उस की तरफ से कोई लेनदेन नहीं किया गया और बिना उस की जानकारी के पैसा गलत तरह से गायब हुआ है.
संकट सिर्फ यही नहीं है कि 32 लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में हैं, बल्कि वीसा, मास्टर कार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वायरस संक्रमण से जमापूंजी भी खतरे में है. भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिए हैं. अन्य बैंकों ने सुरक्षित लेनदेन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन क्या एटीएम या नेट बैंकिंग से पिन बदल देने से आप की जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी है. क्योंकि पुराना पिन लीक हो सकता है तो नया पिन भी तो लीक हो सकता है.
इंटरनेट औफ थिंग्स और साइबर क्राइम इंटरनेट नित नई तरक्की कर रहा है, जिस से यह जिंदगी का एक जरूरी अंग बन गया है. इस से न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, बल्कि जीवनशैली ही बदल गई है. शिक्षा, मैडिकल, हेल्थ, मनोरंजन, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट अपने कारनामे दिखा रहा है. इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए ऐसे कारनामे करने को तैयार हैं, जिस के बारे में हम सोच भी नहीं सकते. वैसे यह कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, लेकिन स्मार्ट फोन के आने से यह धारणा खत्म हो गई है.
स्मार्ट फोन के आने से इंटरनेट के वे सारे काम अब फोन पर किए जा सकते हैं, जो पहले कंप्यूटर पर किए जाते थे. स्मार्ट फोन से कई मूलभूत बदलाव आए हैं. अब फोन ही नहीं, घर गाड़ी और किचन भी स्मार्ट होंगे. मसलन घर के बाहर रहते हुए भी घर की देखभाल की जा सकेगी. आप घर पहुंचने से पहले ही एसी चला सकते हैं. यानी जो काम पहले हम मैनुअली करते थे, अब वही काम औटो मोड पर होंगे. इस के लिए वहां किसी के मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी और यह सब होगा इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए. लेकिन जिस तरह हर मांबाप को बच्चों की अच्छाईबुराई का डर होता है, उसी तरह फादर आफ इंटरनेट कहे जाने वाले विंट सर्फ भी इंटरनेट औफ थिंग्स (आईओटी) को ले कर थोड़ा डरे हुए हैं. चूंकि आईओटी अप्लायंसेज और साफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए साफ्टवेयर को ले कर उन्हें डर है, क्योंकि साफ्टवेयर को हैक किया जा सकता है. यही एक तरह का साइबर अपराध होगा.
साइबर क्राइम आज एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है. इस में किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पता कर के धोखाधड़ी करना, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के बारे में पता कर के चूना लगाना, अहम सूचनाओं की चोरी करना, ब्लैकमेलिंग, कौपीराइट और ट्रेडमार्क फ्रौड, पोर्नोग्राफी डिटेल या अन्य एकाउंट हैक करना, वायरस भेज कर धमकी भरे मैसेज भेजना शामिल है. इस तरह के अपराध कोई अकेले नहीं, बल्कि संगठित गिरोह बना कर किए जाते हैं. पिछले साल साइबर क्राइम से लगभग एक खरब डौलर का चूना लगाया गया है. जबकि इस के शिकार हुए लोगों को पता नहीं कि वे खुद को कैसे सुरक्षित बनाएं. पुलिस के पास भी कोई ऐसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं कि वह कुछ मदद कर सकें. जबकि दिनोंदिन साइबर अपराध बढ़ता ही जा रहा है.
साइबर आतंकवाद और साइबर युद्ध साइबर आतंकवाद का मतलब आतंकवादी गतिविधियों में इंटरनेट आधारित हमले यानी कंप्यूटर वायरस जैसे साधनों के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क में जानबूझ कर बडे़ पैमाने पर किया गया व्यवधान, विशेष रूप से इंटरनेट से जुड़े निजी कंप्यूटर पर. इसी तरह साइबर युद्ध भी इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है. अनेक विकासशील देश लगातार साइबर आतंकवाद या युद्ध चलाते हैं, यही नहीं वे किसी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार भी रहते हैं. लगातार तकनीक पर बढ़ती जा रही निर्भरता के कारण अब लगभग सभी देशों को साइबर हमले की चिंता सताने लगी है. ऐसे हमलों में वायरस की मदद से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु बना दिया जाता है.
साइबर युद्ध में तकनीकी उपकरणों एवं अवसंरचना को भारी नुकसान होता है. कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग द्वारा घुस कर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है. यही नहीं, हैकर किसी कंपनी के कंप्यूटरों पर वायरस द्वारा कब्जा कर के तमाम डाटा एनक्रिप्ट (कूटरचित) कर देते हैं. बाद में डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए ये कंपनी की हैसियत के हिसाब से फिरौती वसूलते हैं. कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप फिरौती दे भी देती हैं. यह फिरौती हैकर डालर में नहीं, बल्कि बिटकौइन में लेते हैं. बिटकौइन साइबर जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी है. इंटरनेट पर लेनदेन के लिए पूरी तरह सुरिक्षत, गुप्त और अनामी रूप से रह कर लेनदेन हेतु ही इस
करेंसी को डिजाइन किया गया है. इस का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए इसे डिजिटल करेंसी कहा जाता है. इस करेंसी की कीमत मांग और सप्लाई के आधार पर रोज निर्धारित होती है. इस पर किसी का अधिकार नहीं है. एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस के पास जितनी बिटकौइन होती है, वही उस का मालिक होता है. संक्षेप में यह समझ लें कि बिटकाइन के जरिए किया गया इंटरनेटी व्यापार, खरीदबिक्री, भुगतान का किसी को पता नहीं चलता. इसीलिए हैकर बिटकौइन में भुगतान मांगते हैं, ताकि उन तक पहुंचना किसी भी सूरत में संभव न हो. हैकर पूरी दुनिया को अपना शिकार मानते हैं. इसलिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय होते हुए भी विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं. इस के लिए ये स्वचालित गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं.
दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे इंटरनेट की व्यापकता और आम लोगों तक इस की आसान पहुंच के कारण औनलाइन कारोबार या कामकाज का दायरा दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस सुगमता के साथ साइबर अपराध में आई नई चुनौती भी लगातार विकराल हो रही है. अन्य अपराधों की तरह साइबर अपराधों में अपराधी अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता.
इस में मुख्य रूप से तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत में जहां ज्यादातर इंटरनेट उपयोगकर्ता नए हैं, उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कभी लुभावने विज्ञापनों से तो कभी आकर्षक उपहारों और इनामी योजनाओं के ईमेल या वेबसाइट पर भड़कीले विज्ञापन डाल कर. चूंकि इस्तेमाल करने वाला इन की बारीकियों को ज्यादा नहीं जानता, इसलिए आसानी से शिकार बन जाता है.
छोटीछोटी कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने के लिए औनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, पर लागत खर्च को कम करने के लिए औनलाइन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में उन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है. साइबर अपराध अब सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया है, इस ने भी अपना बिजनैस बढ़ा लिया है. अब यह बिजनैस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम तक नहीं रहा, इस का भी दायरा काफी बड़ा है.
सरकारें भी शामिल हैं इस अपराध में क्योंकि इस अपराध में अब कई देशों की सरकारें, औनलाइन गैंग और बड़े अपराधी शामिल हैं, जिन का साथ दे रहे हैं औनलाइन फोरम. दरअसल, औनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है, जहां पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद या बेच सकते हैं.
भारत के किसी भी शहर से लेकर विदेशों तक साइबर क्राइम करवाने में एक कम्युनिटी मदद कर रही है. बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आप के पास हाजिर हो जाएगा. इतना ही नहीं, कई ऐसी भी साइट्स हैं, जो ऐसे कामों को अंजाम देने की ट्रेनिंग देती हैं. माना जा रहा है कि देश में चलने वाले काल सेंटर भी भीतरी धोखाधड़ी में लगे हैं. भारत समेत चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश इस साइबर अपराध से परेशान हैं.
हालांकि भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने सन 2000 में आईटी एक्ट बनाया और सन 2008 में उसे संशोधित भी किया, लेकिन साइबर अपराध पर इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए जो आईटी एक्ट बना है, उस में वेबसाइट ब्लौक करने तक का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट देश के अंदर भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है.
कानूनी प्रावधानों के बावजूद अकसर लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैं. लगातार डेबिट/क्रेडिट कार्डों से धोखाधड़ी हो रही है. नियमानुसार पुलिस आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले से पोस्ट हटाने को कहती है, अगर वह हटा लेता है तो ठीक, नहीं तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. कंप्यूटर द्वारा किया गया कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आता है. जिस में 7 साल की जेल हो सकती है. लेकिन इंटरनेट से धोखा देने और रकम उड़ाने की खबरें रोज आ रही हैं. क्योंकि यहां डेबिट/क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स को हैक करना आसान है.
भारत में साइबर क्राइम से निपटने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन साइबर अपराध से जुड़े कानून ज्यादा कारगर नहीं हैं. क्योंकि एक तो जल्दी लोग शिकायत नहीं करते, अगर करते भी हैं, तो सबूत नहीं दे पाते. फिर कड़ी सजा न होने की वजह से अपराधी डरते भी नहीं हैं. इस की एक वजह यह भी है कि इस में तुरंत जमानत मिल जाती है. इसलिए साइबर अपराध से बचने के लिए खुद ही ऐहतियात बरतें तो ज्यादा ठीक रहेगा.
इस की एक वजह यह भी है कि पुलिस वालों को खुद ही पता नहीं कि जिस अपराध की शिकायत उन से की जा रही है, वह किस धारा के अंतर्गत आता है. इस के अलावा उन के पास साइबर अपराध करने वाले तक पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है. इस के लिए उन्हें दूसरों का ही सहारा लेना पड़ता है.