परीक्षाएं प्रतियोगी हों या सामान्य, नकल कराने और करने वाले नकल के रास्ते निकाल ही लेते हैं. अब चूंकि बाजार में कंप्यूटर इंटरनेट के जरिए नकल करने के तरहतरह के साधन उपलब्ध हैं, इसलिए नकल कराने वाले गिरोहों ने इन साधनों का उपयोग शुरू कर दिया है. राजस्थान में पुलिस कांस्टेबल भरती में भी यही हुआ था, जिस की वजह से…
मार्च के दूसरे सप्ताह की बात है. राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी के
आईजी दिनेश एम.एन. को मिली एक सूचना ने उन्हें चिंता में डाल दिया. दरअसल, सूचना ही ऐसी थी कि आईजी साहब का चिंतित होना स्वाभाविक था. उन्हें सूचना मिली कि पुलिस कांस्टेबल भरती की औनलाइन परीक्षा में हाईटेक गिरोह परीक्षा केंद्रों के कंप्यूटर हैक कर दूसरी जगह से अभ्यार्थियों को नकल करा रहा है. भरती की प्रक्रिया के तहत सब से पहले औनलाइन परीक्षा होनी थी. इसके लिए पुलिस मुख्यालय ने परीक्षा कार्यक्रम जारी कर दिया था.
यह औनलाइन परीक्षा पहले चरण में 7 मार्च को प्रारंभ हो गई थी जो 45 दिनों तक अलगअलग तारीखों को आयोजित की जानी थी. परीक्षा के लिए प्रदेश में 10 जिलों जयपुर, जोधपुर, अजमेर, अलवर, बीकानेर, झुंझनूं, कोटा, सीकर, गंगानगर व उदयपुर में 34 विभिन्न इंस्टीट्यूट में केंद्र बनाए गए थे. इन में 19 परीक्षा केंद्र जयपुर में थे. आईजी दिनेश एम.एन. जानते थे कि बौलीवुड फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस की तर्ज पर देश में होने वाली प्रत्येकॉ बड़ी परीक्षा में आजकल बडे़ पैमाने पर नकल होने लगी है और तो और शिक्षा व कालेजों की परीक्षा में भी बड़े स्तर पर नकल होती है.
सरकारी नौकरियों के लिए भरती और औल इंडिया तथा राज्य स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षाओं में नकल कराने वाले अनेक गिरोह सक्रिय हो गए हैं. ये गिरोह पैसे लेकर अत्याधुनिक उपकरणों से अभ्यर्थी को दूर बैठ कर नकल कराते हैं. चिंता की वजह से आईजी ने जांच का काम सौंपा एसओजी को आईजी साहब के सामने चिंता की बात यही थी कि लोग कहेंगे कि पुलिस अपनी ही भरती परीक्षा में फेल हो गई.
उन्होंने अपने आला अफसरों को सूचना की जानकारी दी. फिर एसओजी के 5-6 तेजतर्रार अफसरों को बुलाया. इन पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर आईजी साहब ने कांस्टेबल भरती परीक्षा में हाईटेक गिरोह की ओर से नकल कराने की सूचना की सच्चाई का पता लगाने को कहा.
एसओजी के अफसर अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गए. प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आ गई कि सूचना सही है. इतना पता लगने पर पुलिस अधिकारी गिरोह के सदस्यों की तलाश और उस की कार्यप्रणाली का पता लगाने में जुट गए. सभी जरूरी जानकारियां और सबूत जुटाने के बाद 12 मार्च, 2018 को एसओजी ने जयपुर के मालवीय नगर स्थित सरस्वती इंफोटैक सेंटर पर छापा मारा. पुलिस ने यहां से 5 लोगों और इंफोटैक सेंटर के एक पार्टनर को हिरासत में ले लिया.
ये लोग दिल्ली, हरियाणा व महाराष्ट्र के रहने वाले थे. पता चला कि ये अभ्यर्थियों के कंप्यूटर हैक कर पेपर हल करते थे. सरस्वती इंफोटैक पुलिस कांस्टेबल भरती परीक्षा का एक औनलाइन परीक्षा केंद्र था. इस केंद्र पर एक पारी में 300 अभ्यर्थियों के बैठने की व्यवस्था थी. इन के लिए 300 कंप्यूटर लगाए गए थे. इन से पूछताछ के आधार पर एसओजी ने दूसरे ही दिन एक परीक्षार्थी और दिल्ली निवासी एक दलाल को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी इस मामले में गिरोह के अन्य सदस्यों को पकड़ने और नकल से पेपर देने वाले अभ्यथियों की तलाश में जुटी हुई थी.
गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों को पुलिस ने रिमांड पर ले रखा था. उन से की गई पूछताछ में 13 मार्च को पता चला कि जयपुर के ही हरमाड़ा स्थित डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में गिरोह ने कंप्यूटर सिस्टम को रिमोट एक्सेस के जरिए हैक कर जयपुर से 300 किलोमीटर दूर हरियाणा के भिवानी शहर में औपरेट कर के पुलिस कांस्टेबल भरती के पेपर हल कर दिए थे. डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में प्रत्येक
पारी में 200 अभ्यर्थी परीक्षा दे रहे थे.
यह जानकारी मिलने पर एसओजी की टीम ने उसी रात दबिश दे कर इस स्कूल के संचालक सहित 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. ये चारों राजस्थान के रहने वाले थे. जयपुर से एसओजी की एक टीम हरियाणा के भिवानी शहर भेजी गई. लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले आरोपी फरार हो गए.
पुलिस को 2 परीक्षा केंद्रों पर नकल कराए जाने की पुष्टि हो चुकी थी. पुलिस कांस्टेबल भरती परीक्षा आयोजित कराने का ठेका एप्टेक कंपनी ने लिया था. डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा ने 14 मार्च को पुलिस अधिकारियों और परीक्षा आयोजित करने का ठेका लेने वाली एप्टेक कंपनी के अधिकारियों की बैठक बुलाई. कोई एक गिरोह नहीं लगा था नकल कराने में, कुछ अंदर वाले थे
कुछ बाहर वाले इस में उन 10 जिलों के एसपी शामिल हुए, जहां परीक्षा हो रही थी. बैठक में डीजीपी ने सभी अधिकारियों को परीक्षा केंद्र अपनी निगरानी में लेने और अभ्यर्थियों पर नजर रखने के निर्देश दिए. बैठक में परीक्षा रद्द करने पर भी विचार किया गया. इस पर तय किया गया कि एसओजी की जांच के बाद ही परीक्षा के बारे में आगे का फैसला लिया जाएगा.
एसओजी को जांचपड़ताल में नकल कराने वाले दूसरे गिरोह के सक्रिय होने और अंगूठे के निशान की क्लोनिंग करने की भी चौंकाने वाली नई जानकारी मिली. एसओजी की टीम ने 15 मार्च को जयपुर में डौल्फिन किड्स इंरटनैशनल स्कूल में ही थंबप्रिंट क्लोन के जरिए असली परीक्षार्थी की जगह परीक्षा दे रहे नकली परीक्षार्थी को पकड़ा. वह सरकारी कर्मचारी ग्रामसेवक निकला. उस की निशानदेही पर परीक्षा केंद्र के बाहर से हरियाणा निवासी असली परीक्षार्थी और भरतपुर निवासी एक दलाल को गिरफ्तार कर लिया.
उसी दिन एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक के हरियाणा निवासी फरार संचालक को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा 15 मार्च को ही अलवर के अजरका निवासी एक परीक्षार्थी को गिरफ्तार किया गया. उस ने 10 मार्च को जयपुर के डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में परीक्षा दी थी. नकल कराने वाले गिरोह से सौदा करने के बाद परीक्षा के दौरान वह अपनी सीट पर डमी की तरह बैठा रहा था. उस का कंप्यूटर हैक कर हरियाणा के भिवानी से पेपर हल किया गया था.
उसी दिन अजमेर में भी कांस्टेबल भरती में नकल का मामला सामने आया. पुलिस ने कायड़ रोड घूघरा स्थित टैक्निकल संस्थान अजमेर इंफोटैक के 2 संचालकों और एक अभ्यर्थी सहित 8 लोगों को धोखाधड़ी और आईटी एक्ट में गिरफ्तार किया. यह गिरोह एएमएमवाईवाई एडमिन सौफ्टवेयर टूल से कंप्यूटर सिस्टम हैक कर लेता था. फिर एक्सपर्ट से पेपर हल करवाया जाता था.
16 मार्च को एसओजी ने थंबप्रिंट का क्लोन बनाने वाले गिरोह के भरतपुर निवासी मास्टरमाइंड और उस के जीजा को भी गिरफ्तार कर लिया. इन के अलावा सरस्वती इंफोटैक नकल गिरोह मामले में हरियाणा के 2 लेगों को गिरफ्तार किया. कांस्टेबल भरती परीक्षा में हाईटेक नकल करने के रोजाना एक से बढ़ कर एक चौंकाने वाले तरीके सामने आने से परीक्षा की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठने लगे थे. इस के विरोध में 17 मार्च को जयपुर कैलगिरि रोड पर सैकड़ों अभ्यर्थियों ने जाम लगा दिया.
इन अभ्यर्थियों ने परीक्षा में नकल करने और कराने वालों पर सख्त काररवाई करने और परीक्षा की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की. इस के अलावा यह परीक्षा औफलाइन कराने की मांग भी की गई. नकल के नएनए पैंतरे सामने आने पर दूसरे चरण की परीक्षाएं स्थगित करने की घोषणा कर दी गई. डीजीपी का कहना है कि 5390 पदों के लिए राज्य के बजट में की गई घोषणा के अनुसार, 15 हजार 291 पदों पर कांस्टेबलों की भरती भी इसी के साथ कराई जाएगी. इस तरह अब 20 हजार से ज्यादा कांस्टेबलों की भरती होगी. यह भरती परीक्षा नए सिरे से औफलाइन कराई जाएगी.
20 से 31 मार्च तक दूसरे चरण की होने वाली परीक्षा में करीब 3 लाख अभ्यर्थियों को भाग लेना था, जबकि इतने ही अभ्यर्थी पहले चरण की परीक्षा दे चुके थे. एसओजी ने नकल के मामले में 17 मार्च को डाक्टर व इंजीनियर सहित 5 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया. ये लोग बिहार, हरियाणा व राजस्थान के रहने वाले थे.
6 दिन में 4-5 अलगअलग गिरोह के सामने आने और करीब 3 दरजन बदमाशों की गिरफ्तारी के बाद आखिर 20 मार्च को नकल कराने वाले गिरोह के गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की गई. उस के बाद जो कहानियां सामने आई हैं, वह इस प्रकार हैं—
एसओजी ने 12 मार्च को सरस्वती इंफोटैक सेंटर से गिरफ्तार किए गए 6 लोगों, रोहतक के रहने वाले और सरस्वती इंफोटेक के पार्टनर विकास मलिक, नासिक के रहने वाले अमोल महाजन, बहादुरगढ़ के रहने वाले अभिमन्यु सिंह और संजय छिंकारा, सोनीपत के अंकित शेरावत और दिल्ली के अमित जाट से पूछताछ की तो पता चला कि गिरोह के लोगों ने 5 मार्च को ही परीक्षा केंद्र से करीब 500 मीटर दूर एक बिल्डिंग किराए पर लेकर वहां समानांतर सेंटर खोल लिया था.
इस समानांतर सेंटर से पेपर हल कर सबमिट किए जा रहे थे. इस गिरोह ने 8 मार्च को 6 और 10 मार्च को 3 अभ्यर्थियों के पेपर हल कर के सबमिट करने की बात बताई. छापे के दौरान सरस्वती इंफोटैक के 2 पार्टनर मुख्तियार और कपिल फरार हो गए थे. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में अभिमन्यु सिंह और संजय छिंकारा आईटी एक्सपर्ट हैं. इन दोनों को इंफोटैक के पार्टनर ने 10-10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से हायर किया था.
पता चला कि इस गिरोह का मास्टरमाइंड विकास मलिक राजस्थान पुलिस कांस्टेबल की भरती निकलने के साथ ही सक्रिय हो गया था. उस ने अपना गिरोह बना कर नकल कराने का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. इस के लिए सब से पहले उस ने सरस्वती इंफोटैक में पार्टनरशिप की.
फिर उस ने जुगाड़बाजी से पास होने की इच्छा रखने वाले अभ्यर्थी तलाशने शुरू कर दिए. थोड़ी कोशिश के बाद उसे कई अभ्यर्थी मिल गए. इस के बाद उस ने परीक्षा केंद्र के पास किराए पर बिल्डिंग ली और 2 एक्सपर्ट अभिमन्यु और संजय छिंकारा को हायर किया.
राजस्थान पुलिस मुख्यालय ने कांस्टेबल भरती परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एप्टेक कंपनी को सौंपी थी. इस कंपनी ने भरती परीक्षा के सेंटर संचालकों से ही कंप्यूटर आदि संसाधन उपलब्ध कराने को कहा. विकास मलिक ने इस का फायदा उठाया और हायर किए गए 2 आईटी एक्सपर्ट अभिमन्यु सिंह तथा संजय छिंकारा को अपना कर्मचारी बता कर सिस्टम में घुसपैठ करा दी. विकास ने इंफोटैक की बिल्डिंग पर वायरलैस एंटीना लगा दिया. परीक्षा केंद्र में लगे कंप्यूटर सर्वर को वायरिंग से जोड़ कर एंटीना से कनेक्ट कर दिया था.
टेक्नोलौजी के इस्तेमाल से रची गई नकल कराने की साजिश गिरोह ने परीक्षा सेंटर के पास किराए पर ली दूसरी बिल्डिंग की छत पर राउटर और अन्य उपकरण लगा दिए. इसी बिल्डिंग के एक कमरे में लैपटाप और अन्य उपकरणों के साथ प्रश्नपत्र हल करने वाले एक्सपर्ट किताबों के साथ बैठा दिए. जिस अभ्यर्थी से गिरोह का सौदा हुआ था, उस के कंप्यूटर में पहले ही पैन ड्राइव से सौफ्टवेयर इंस्टाल कर दिया
गया था.
इसके बाद आरोपी फोन पर अभ्यर्थी के कंप्यूटर का आईपी एड्रेस नकल कराने वाले कंट्रोलरूम में बैठे अपने साथियों को बता देते थे. कंट्रोलरूम में बैठे गिरोह के लोग अभ्यर्थी का कंप्यूटर रिमोट एक्सेस पर ले लेते थे. यानी उस का कंप्यूटर दूर बैठ कर भी अपने कब्जे में ले लेते थे.
रिमोट एक्सेस लेने के बाद अभ्यर्थी तो सेंटर पर बैठा हुआ केवल माउस हिलाता रहता था और दूसरी बिल्डिंग में बैठे गिरोह के एक्सपर्ट किताबें पढ़ कर पेपर हल कर वहीं से सबमिट भी कर देते थे.
पूछताछ में पता चला कि गिरोह ने नकल कराने के एवज में प्रत्येक अभ्यर्थी से 5 से 7 लाख रुपए तक का सौदा किया था. एसओजी ने गिरोह के कंट्रोलरूम में लैपटौप, राउटर, किताबें वगैरह जब्त कीं.
हाईटेक नकल के इस मामले में एसओजी ने दूसरे दिन एक परीक्षार्थी नागौर के डेगाना निवासी रामदेव खींचड़ और दिल्ली के दलाल राजीव डबास को गिरफ्तार किया. इन में रामदेव खींचड़ ने एसओजी अधिकारियों को बताया कि वह नागौर में एक कोचिंग क्लासेज में कोचिंग करता था. कोचिंग संचालक ने उसे गारंटी से कांस्टेबल परीक्षा पास कराने का वादा कर एक लाख रुपए एडवांस लिए थे.
बाकी रकम लिखित परीक्षा पास होने पर कोचिंग संचालक को दी जानी थी. इस कोचिंग क्लासेज से 60 अभ्यर्थियों ने कांस्टेबल भरती परीक्षा की तैयारी की थी. दलाल राजीव डबास नकल के लिए अभ्यर्थी तलाशता था. सरस्वती इंफोटैक के फरार 2 संचालक कपिल और मुख्तियार नकल कराने के लिए कोचिंग संचालकों से संपर्क करते थे.
एसओजी इस मामले में गिरोह के अन्य सदस्यों को पकड़ने और नकल से पेपर देने वाले अभ्यर्थियों की तलाश में जुटी हुई थी. एसओजी टीम ने उसी रात दबिश दे कर डौल्फिन किड्स इंटरनेशनल स्कूल के संचालक नागौर निवासी रामनिवास के अलावा जयपुर के चौमूं निवासी मुकेश कुमार जयपुर के ही आमेर निवासी रामरतन शर्मा और राजू उर्फ राजेंद्र जाट को गिरफ्तार कर लिया.
इन में स्कूल संचालक रामनिवास का एक आईटीआई कालेज होने का भी पता चला, जयपुर से एसओजी की एक टीम हरियाणा के भिवानी शहर भेजी गई. लेकिन वहां बैठे आरोपी प्रमोद फोगट और उस के साथी पहले ही फरार हो गए. गिरफ्तार हुए संजय छिकारा का मौसेरा भाई है. प्रमोद फोगट का डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल संचालक रामनिवास से संपर्क था. प्रमोद ने रामनिवास को एक अभ्यर्थी से 5 लाख रुपए तक मिलने का आश्वासन दे कर नकल कराने के लिए तैयार किया था.
रामनिवास ने कंप्यूटर हैक कर पेपर हल करने के लिए स्कूल के पास जो किराए की बिल्डिंग ली थी. प्रमोद ने स्कूल के परीक्षा केंद्र में लगे कंप्यूटरों को उस बिल्डिंग में लगे इंटरनेट से जोड़ दिया. फिर इंटरनेट के जरिए ही भिवानी में कंप्यूटर से हैकिंग सौफ्वेयर के जरिए सेंटर के कंप्यूटर को हैक कर लिया था.
इन में स्कूल संचालक रामनिवास ने खुद नकल करने वाले अभ्यर्थियों से सौदा किया और फिर हरियाणा के विकास मलिक के गिरोह से मिल गया. मुकेश कुमार परीक्षा का पर्यवेक्षक था. परीक्षा की पूरी मानिटरिंग की जिम्मेदारी उसी की थी. लेकिन वह भी नकल गिरोह से मिल गया. रामरतन शर्मा आईटी का एक्सपर्ट है. यह कंप्यूटर को रिमोट एक्सेस पर लेने के लिए डार्क कौंबैट सौफ्टवेयर डाउनलोड करता था. राजू उर्फ राजेंद्र स्कूल में टेक्नीशियन था.
गिरोह ने इस परीक्षा शुरू होने से पहले 7 मार्च को स्कूल के कक्ष के 100 कंप्यूटर पास वाले कमरे के कंप्यूटरों से ही जोड़ दिए. सभी कंप्यूटरों को ट्रांसमीटर लगा कर वाईफाई से जोड़ा गया ताकि इंटरनेट से भिवानी में हैक किए जा सकें. कंप्यूटर में डार्क कौंबैट सौफ्टवेयर डाउनलोड कर एक्सेस किया गया. छापा पड़ने का पता चलने पर रामनिवास ने रामरतन के साथ मिल कर स्कूल के कंप्यूटरों में डाउनलोड सौफ्टवेयर डिलीट कर सिस्टम फार्मेट कर दिए.
पहली बार सामने आया थंबप्रिंट क्लोन का मामला इस बीच, एसओजी को मुन्ना भाइयों द्वारा अंगूठे के निशान की क्लोनिंग करने की चौंकाने वाली जानकारी मिली. इस पर 15 मार्च को डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में ही थंबप्रिंट क्लोन के जरिए असली परीक्षार्थी की जगह परीक्षा दे रहे भरतपुर के एक ग्रामसेवक नरेश कुमार प्रजापति को गिरफ्तार किया गया.
उस की निशानदेही पर एसओजी ने परीक्षा केंद्र के बाहर से असली परीक्षार्थी हरियाणा के पलवल निवासी देवेंद्र कुमार और भरतपुर जिले में डीग निवासी दलाल नरेश जाट को भी गिरफ्तार कर लिया. इस गिरोह का मुख्य आरोपी डीग के पास अउ दरवाजा का रहने वाला जितेंद्र सिंह सिनसिनवार उस दिन एसओजी की गिरफ्त में नहीं आ सका. गिरफ्तार दलाल नरेश जाट ने एसओजी को बताया कि उस ने थंबप्रिंट क्लोन के जरिए अलवर में भी आधा दर्जन अभ्यर्थियों की जगह दूसरे लोगों को परीक्षा देने के लिए भेजा था, लेकिन पुलिस के पहुंचने के कारण फरजी परीक्षार्थी केंद्र पर नहीं पहुंचे.
नरेश ने हरियाणा निवासी परीक्षार्थी देवेंद्र से ढाई लाख रुपए में परीक्षा में पास कराने का सौदा किया था. इस के लिए 1 लाख रुपए एडवांस लिए थे. इस के बाद नरेश ने भरतपुर जिले के ग्रामसेवक नरेश प्रजापति को देवेंद्र की जगह परीक्षा देने के लिए तैयार किया और उसे जयपुर में परीक्षा देने भेज दिया. ग्रामसेवक नरेश प्रजापति ने उस दिन मेडिकल अवकाश लिया था.
पूछताछ में पता चला कि फरार जितेंद्र सिनसिनवार सहित इन आरोपियों ने थंबप्रिंट का क्लोन बनाने का तरीका यूट्यूब से सीखा था. इस के लिए सब से पहले ये लोग गर्म मोम को किसी सतह पर डालते थे. फिर अभ्यर्थी के अंगूठे पर मछली का तेल लगा कर मोम पर उस का थंब इंप्रेशन लेते थे. इंप्रेशन आने पर मोम की परत पर फेविकोल की हलकी परत बिछाते.
इस से इंप्रेशन फिक्स हो जाता था और इस तरह थंबप्रिंट का क्लोन बन जाता था. थंबप्रिंट का क्लोन बनाने के बाद आरोपियों ने परीक्षा से पहले टेस्टिंग के लिए आधार कार्ड वेरिफाई करवाया था. इस के लिए उन्होंने अभ्यर्थी का थंबप्रिंट क्लोन दूसरे व्यक्ति के अंगूठे पर लगा कर आधार कार्ड का पंजीयन कराया. इस थंबप्रिंट क्लोन को बायोमेट्रिक मशीन भी नहीं पकड़ पाती है.
आरोपियों ने इसी तरीके से देवेंद्र के अंगूठे का क्लोन बना कर ग्रामसेवक नरेश प्रजापति को दिया. नरेश प्रजापति अपने अंगूठे पर देवेंद्र के अंगूठे का क्लोन चिपका कर परीक्षा देने गया था. इसी दिन एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक के एक फरार संचालक मुख्तियार को भी गिरफ्तार कर लिया. वह हरियाणा के गुनाहा क्षेत्र का रहने वाला है. वह पहले दिल्ली में औनलाइन परीक्षा करवाता था. बाद में उस ने जयपुर आ कर
सरस्वती इंफोटैक में पार्टनरशिप कर ली थी.
पुलिस की जांच में पता चला कि अजमेर इंफोटैक का मालिक विकास जाट और हनुमान भाकर सेंटर में लगे कंप्यूटरों में आईटी एक्सपर्ट इंतजार अली और मोहम्मद जकी के जरिए प्रोक्सी आईडी बना कर उस कंप्यूटर सिस्टम का आईपी एड्रेस बाहर बैठे साथियों को मुहैया कराते थे.
सेंटर से बाहर बैठे लोग अपने सिस्टम पर पेपर को लौगइन कर एक्सपर्ट से हल कराते थे. गिरफ्तार आरोपी
रणजीत, सुरेश व जितेंद्र गोदारा नकल के इच्छुक अभ्यर्थियों को तलाशते थे. इस गिरोह ने नकल कराने के लिए अभ्यर्थियों से 4-4 लाख रुपए लिए थे.
जीजासाले का कमाल थंबप्रिंट का क्लोन बनाने वाले गिरोह के मास्टरमाइंड जितेंद्र सिंह सिनसिनवार और उस के जीजा शिशुपाल जाट को एसओजी ने 16 मार्च को गिरफ्तार कर लिया. इन से पूछताछ में पता चला कि जितेंद्र सिंह सिनसिनवार 3 बार कांस्टेबल भरती परीक्षा में पास हो चुका था, लेकिन एक आपराधिक मामले में चालानशुदा होने के कारण सिपाही नहीं
बन सका. इस के बाद उस ने थंबप्रिंट क्लोन बना कर फरजी अभ्यर्थी को भरती परीक्षाओं में बैठा कर मोटी रकम लेने का धंधा शुरू कर दिया. जितेंद्र की कुछ विषयों पर अच्छी पकड़ थी. इसीलिए वह अपने जीजा शिशुपाल का भी थंबप्रिंट बना कर उस के नाम से परीक्षा दे चुका था. जितेंद्र अपने जीजा के साथ अभी जयपुर में मालवीय नगर में किराए पर रह कर कांस्टेबल की परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों से संपर्क कर उन के थंबप्रिंट क्लोन बना कर फरजी परीक्षार्थी से परीक्षा दिलवाते थे. जितेंद्र इस से पहले एसएससी और पोस्टमैन भरती परीक्षा में भी इसी तरह थंबप्रिंट क्लोन बना कर दूसरे परीक्षार्थियों की जगह परीक्षा दे
चुका है.
एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक नकल गिरोह मामले में हरियाणा के भिवानी निवासी संदीप कुमार और झज्जर निवासी सज्जन सिंह को भी 16 मार्च को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी ने इस मामले में 17 मार्च को डाक्टर व इंजीनियर सहित 5 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया. इन में बीटेक उत्तीर्ण बिहार के पटना निवासी अतुल वत्स, भागलपुर निवासी बैंक परीक्षा की तैयारी में जुटा संदीप जाट, हरियाणा के हिसार का रहने वाला एमबीबीएस में अध्ययनरत योगेश यादव, नागौर के चितावा का रहने वाला अभ्यर्थी हीरालाल जाट और हरियाणा का सोनीपत निवासी सरस्वती इंफोटैक का कर्मचारी रविकिरण जाट शामिल
थे.
इन्होंने कांस्टेबल भरती के पहले चरण की परीक्षा में कई अभ्यर्थियों के पेपर हल किए थे. इन में अतुल वत्स ने पटना एनआईटी से बीटेक किया है. वह दिल्ली में इसी तरह कंप्यूटर हैकिंग कर नीट प्रीपीजी परीक्षा में भी नकल करते पकड़ा जा चुका है. योगेश यादव रोहतक कालेज से एमबीबीएस अंतिम वर्ष का छात्र है. इतने सारे मुन्नाभाई पकड़े जाने पर आखिर 20 मार्च, 2018 को पुलिस मुख्यालय ने कांस्टेबल भरती की औनलाइन परीक्षा रद्द कर दी. अब 20 हजार से ज्यादा कांस्टेबल पदों के लिए नई भरती औफलाइन तरीके से होगी. राजस्थान पुलिस के लिए पद बढ़ जाने की वजह से अब एक बार फिर आवेदन लिए जाएंगे. इस बार करीब 25 लाख तक आवेदन आने की उम्मीद है.
तलाश है फरार अपराधियों की पुलिस अफसर इस बार भरती प्रक्रिया को पूरी तरह बदलना चाहते हैं ताकि फिर नकल की स्थिति सामने न आए. इस के लिए आईजी का नया पद सृजित कर आईजी प्रशाखा माथुर को पुलिस भरती की जिम्मेदारी सौंपी गई है. कांस्टेबल भरती परीक्षा के लिए जिस कंपनी एप्टेक को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उस की भूमिका की भी जांच की जा रही है. इस संबंध में कंपनी के अधिकारियों से भी पूछताछ की गई है. पुलिस इस कंपनी को परीक्षा के लिए दी गई
एडवांस राशि भी वापस वसूल करेगी. परीक्षा के लिए करीब 16 लाख अभ्यर्थियों से फीस के रूप में पुलिस को 60 करोड़ रुपए से ज्यादा मिले थे. टेंडर की शर्तों के मुताबिक एप्टेक कंपनी को 220 रुपए प्रति अभ्यर्थी यानी करीब 30 करोड़ रुपए का भुगतान पुलिस मुख्यालय को करना था. इस में करीब 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की एडवांस राशि कंपनी को दे दी गई थी. कंपनी ने 140 रुपए प्रति अभ्यर्थी के हिसाब से 34 सेंटरों को 15 फीसदी एडवांस राशि दे दी थी.
कांस्टेबल भरती परीक्षा में नकल के मामले में फरार आरोपियों को राजस्थान पुलिस और एसओजी तलाश कर रही है. साथ ही उन अभ्यर्थियों को भी चिन्हित किया गया है जिन्होंने परीक्षा में नकल की थी. सरकारी नौकरियों की भरती एजेंसियां और पुलिस भले ही कितने ही व्यापक प्रबंध कर लें, लेकिन आमतौर पर हरेक दूसरी बड़ी परीक्षा में कोई ना कोई नकल माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो ही जाते हैं.
दिल्ली के यूसुफ सराय मार्केट और टैगोर नगर सहित कई अन्य जगहों पर नकल के लिए 7 हजार से ले कर 25 हजार रुपए तक में कई तरह की डिवाइस मिल जाती हैं. इन में जैमर प्रूफ बनियान, कान में लगाए जाने वाले माइक्रो ईयरफोन और शर्ट की कौलर में लगने वाली डिवाइस आदि उपकरण शामिल हैं.
माफिया ब्लूटूथ से भी अभ्यर्थियों को नकल कराता है. कंप्यूटर हैक कर रिमोट एक्सेस पर लेने और बायोमेट्रिक को धोखा देने वाले थंबप्रिंट का क्लोन बनाने के मामले पहली बार सामने आए हैं. नकल माफिया के ये मुन्नाभाई जब तक रहेंगे, तब तक परीक्षाओं पर आंच आती ही रहेगी.