एक कांस्टेबल सीताराम की समझबूझ से 926 करोड़ रुपए की डकैती होने से बच गई. चूंकि डकैती हो नहीं पाई, इसलिए यह मामला ज्यादा बड़ा नहीं लगता, लेकिन डकैती हो गई होती तो…
पुलिस कांस्टेबल सीताराम की जयपुर की सी स्कीम के रमेश मार्ग स्थित ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच में ड्यूटी थी. 5 फरवरी की रात करीब 2 बजे वह बैंक की चेस्ट ब्रांच पर पहुंच गया. सीताराम जब पहुंचा तो बैंक का निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद मेनगेट पर तैनात था. सीताराम को आया देख कर प्रमोद ने उसे नमस्कार किया. सीताराम ने भी उस के अभिवादन का जवाब देते हुए पूछा, ‘‘प्रमोदजी, बैंक के अंदर आज ड्यूटी पर कौनकौन हैं?’’
कड़ाके की ठंड में रात में बैंक के बाहर ड्यूटी दे रहे प्रमोद ने जवाब में कहा, ‘‘साहब, रतिराम और मानसिंह ड्यूटी पर हैं.’’ ‘‘ठीक है प्रमोदजी, उन दोनों से मेरी अच्छी पटरी बैठती है.’’ सीताराम ने अपनी टोपी सिर पर लगाते हुए कहा, ‘‘दोनों से बात करते हुए पता ही नहीं लगता कि कब रात गुजर गई.’’ कह कर कांस्टेबल सीताराम बैंक के अंदर जाने लगा, तभी जैसे उसे कुछ याद आया. उस ने पलट कर प्रमोद से कहा, ‘‘भैयाजी, ठंड ज्यादा पड़ रही है. रात का समय है. संभल कर होशियारी से ड्यूटी करना.’’
सीताराम की इस बात पर प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप देखते ही हो कि मैं अपनी ड्यूटी पर किस तरह मुस्तैद रहता हूं.’’ प्रमोद की बात सुन सीताराम हंसते हुए अंदर बैंक में चला गया. सीताराम ने बैंक के अंदर पहुंच कर देखा तो उस के साथी पुलिसकर्मी रतिराम और मानसिंह रेस्टहाउस में थे. सीताराम ने अपनी बंदूक संभाली और ड्यूटी पर खड़ा हो गया. सीताराम को बैंक के अंदर आए हुए करीब आधा घंटा ही हुआ होगा कि उस ने बैंक के बाहर मेनगेट से किसी के कूद कर आने और कुछ टूटने जैसी आवाज सुनी. सीताराम चौंकन्ना हो गया. वह बैंक के अंदर बनी खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर चिल्लाया, ‘‘कौन है?’’
सीताराम के चिल्लाने पर जवाब में कोई आवाज नहीं आई तो उस ने बाहर झांक कर देखा. उसे 4-5 लोग नजर आए. रात करीब ढाई बजे बैंक के अंदर लोगों को देख कर सीताराम एक बार तो घबरा गया, लेकिन तुरंत ही उस ने खुद को संभाला और हिम्मत से काम लेते हुए बंदूक लेकर थोड़ा बाहर तक आया.
बाहर देखा तो उसे 10 से भी ज्यादा लोग नजर आए. उन के हाथों में हथियार थे. किसी ने रूमाल से तो किसी ने मंकी कैप से और किसी ने मफलर से चेहरे ढंक रखे थे. इन में से 4-5 लोग बैंक का मेनगेट फांद कर अंदर आ गए थे. इन्होंने बैंक की बिल्डिंग का चैनल गेट भी खोल लिया था.
इतने सारे हथियारबंद लोगों को देख कर सीताराम समझ गया कि उन लोगों के इरादे ठीक नहीं हैं. वे बदमाश हैं और बैंक लूटने आए हैं. सीताराम ने इधरउधर देखा कि बैंक का गार्ड प्रमोद कहीं नजर आ जाए, लेकिन उसे वह कहीं नजर नहीं आया. सीताराम को लगा कि इन बदमाशों को नहीं रोका गया तो ये लोग बैंक लूट ले जाएंगे और हो सकता है किसी को मार भी डालें.
सीताराम ने एक पल सोचा कि अंदर रेस्टहाउस से अपने साथी पुलिसकर्मियों रतिराम व मानसिंह को बुलाने जाए या नहीं. इतना समय नहीं था. अगर वह साथी पुलिसकर्मियों को बुलाने जाता तो हो सकता था तब तक बदमाश बैंक के अंदर चेस्टरूम तक पहुंच जाते. सीताराम ने तुरंत फैसला लिया. उस ने बदमाशों को ललकारा और अपनी बंदूक से हवाई फायर कर दिया.
फायर होते ही बदमाश हड़बड़ा गए और तेजी से मेनगेट फांद कर वापस भागने लगे. उन के साथी जो बैंक के बाहर खड़े थे, वे भी फटाफट वहां खड़ी गाड़ी में बैठ गए. इस के बाद सभी बदमाश गाड़ी से भाग गए बदमाशों के भागने पर सीताराम बैंक की बिल्डिंग से बाहर निकला तो देखा बाहर ड्यूटी पर तैनात बैंक के गार्ड प्रमोद के हाथपैर बंधे हुए थे. सीताराम ने उस के हाथपैर खोले. प्रमोद बेहद घबराया हुआ था. वह सीताराम से लिपट कर बोला, ‘‘भाईसाहब, आज तो आप ने हमारी जान बचा ली वरना वे बदमाश हमें मार सकते थे.’’
सीताराम ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत करो, जो बदमाश आए थे, वे भाग गए हैं. तब तक हवाई फायर की आवाज सुनकर बैंक के रेस्टहाउस से पुलिसकर्मी रतिराम व मानसिंह भी वहां आ गए. यह सारा घटनाक्रम मुश्किल से 3 मिनट में हो गया था. कांस्टेबल सीताराम ने सब से पहले फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना देने के 5-7 मिनट में ही पुलिस गश्ती दल बैंक के बाहर पहुंच गया. पुलिस के गश्ती दल ने बैंक के निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद कुमार से पूछताछ की. करौली के रहने वाले प्रमोद ने बताया कि ऐक्सिस बैंक प्रशासन ने उसे बाहरी हिस्से में सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी है.
प्रमोद ने पुलिस को बताया कि रात करीब ढाई बजे वह बैंक के बाहरी हिस्से में राउंड ले रहा था. जब वह पीछे की ओर चैकिंग करने गया था, तभी बैंक के आगे वाले हिस्से के गेट से किसी के कूदने की आवाज आई. इस पर वह मेनगेट की तरफ आया तो देखा कि 2 युवकों ने मुंह पर नकाब पहना हुआ था और उन के हाथों में पिस्तौलें थीं.
मैं उन्हें रोक ही रहा था कि 3 और युवक मेनगेट से बैंक के अंदर आ गए. उन लोगों ने पिस्तौल कनपटी पर लगा कर मुझे पकड़ कर नीचे गिरा दिया. मुझ से चाबी छीन ली, उसी चाबी से एक युवक ने चेस्ट ब्रांच के गेट से पहले वाले चैनल गेट का ताला खोल लिया. एक युवक ने मेरा मुंह बंद कर दिया और 2 युवक मेरे ऊपर बैठ गए. बाकी बचे एक युवक ने मेरे हाथ बांध दिए.
वे मेरे पैर बांध रहे थे, तभी बैंक के अंदर से सीताराम के चिल्लाने की आवाज आई. इस पर बदमाश घबरा गए. इस के कुछ सैकेंड बाद ही गोली चलने की आवाज सुनाई दी. गोली चलने की आवाज सुन कर सभी बदमाश बैंक के गेट को फांद कर बाहर भाग गए. प्रमोद ने बताया कि जो बदमाश बैंक के अंदर घुसे थे, उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की थी. फायरिंग की आवाज सुन कर सिर्फ इतना कहा कि भागो यहां से. इस के बाद सीताराम ने आ कर मुझे संभाला और पुलिस को सूचना दी.
रात को ही ऐक्सिस बैंक के अफसरों को मौके पर बुलाया गया. राजधानी जयपुर में बैंक लूटने के प्रयास की सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के आला अफसर रात को ही मौके पर पहुंच गए. बैंक के अफसरों ने बताया कि राजस्थान में ऐक्सिस बैंक की सभी शाखाओं में इसी चेस्ट ब्रांच से पैसा जाता है. पूरे राज्य से जमा हो कर पैसा भी इसी चेस्ट ब्रांच में आता है. बैंक अफसरों से पुलिस अधिकारियों को पता चला कि इस चेस्ट ब्रांच में वारदात के समय 926 करोड़ रुपए रखे हुए थे. इतनी बड़ी रकम की बात सुन कर पुलिस अफसर हैरान रह गए.
अगर पुलिस कांस्टेबल सीताराम हिम्मत दिखा कर गोली नहीं चलाता तो शायद बदमाश बैंक लूटने में कामयाब हो जाते. अगर यह बैंक लुट जाती तो यह भारत की अब तक की सब से बड़ी बैंक डकैती होती. सीताराम के गोली चलाने से यह बैंक डकैती होने से बच गई थी. कांस्टेबल सीताराम की ओर से बदमाशों को ललकारने के लिए चलाई गई गोली बैंक के सामने बाईं ओर एक मकान की खिड़की में जा कर लगी. गोली लगने से खिड़की का कांच टूटा तो मकान मालिक और उन के परिवार की नींद खुल गई. उन्होंने बाहर आ कर पता किया तो बैंक में डकैती के प्रयास का पता चला. तब तक पुलिस भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस ने रात को जयपुर से बाहर निकलने वाले सभी रास्तों पर कड़ी नाकेबंदी करवा दी. 6 फरवरी को कांस्टेबल सीताराम की रिपोर्ट के आधार पर जयपुर के अशोक नगर थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
6 फरवरी को सुबह से पुलिस और ऐक्सिस बैंक के आला अफसरों का मौके पर जमावड़ा लगा रहा. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने भी मौके पर पहुंच कर बैंक के सुरक्षा इंतजामों के बारे में जानकारी ली. पुलिस को जांचपड़ताल के दौरान 4 बड़े खाली कट्टे (बोरी) मिले. ये कट्टे बदमाश अपने साथ लाए थे, लेकिन गोली की आवाज सुन कर भागते समय छोड़ गए.
बदमाशों का पता लगाने के लिए पुलिस ने बैंक के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि बदमाश 7 सीटर इनोवा गाड़ी से आए थे. इस गाड़ी से 11 बदमाश बाहर निकले और 2 बदमाश अंदर ही बैठे रहे. बाहर निकले सभी बदमाशों के चेहरे ढंके हुए थे. इन में से 4-5 बदमाशों के हाथ में पिस्तौल और बाकी के हाथों में डंडे और सरिए थे. इस इनोवा का नंबर तो साफ दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन राजस्थान के नागौर जिले की नंबर सीरीज जरूर नजर आ रही थी.
लिस की जांच में पता चला कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में लिमिट से करीब 3 सौ करोड़ रुपए ज्यादा रखे हुए थे. नियमानुसार बैंक को यह राशि रिजर्व बैंक में जमा करानी चाहिए थी. यह बात सामने आने पर करेंसी चेस्ट में सुरक्षा मापदंडों को ले कर चूक और लिमिट से ज्यादा कैश रखने के मामले में रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक करेंसी पी.के. जैन ने ऐक्सिस बैंक से रिपोर्ट मांगी.
बहरहाल, ऐक्सिस बैंक में देश की सब से बड़ी डकैती टल गई थी. कांस्टेबल सीताराम की सूझबूझ से बदमाशों को भागना पड़ा. सीताराम जयपुर का हीरो बन गया था. सीताराम की सतर्कता और बहादुरी से 926 करोड़ रुपए की बैंक डकैती टल जाने पर जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओ.पी. गल्होत्रा से बात की और दिलेरी दिखाने वाले कांस्टेबल सीताराम को पुरस्कृत करने की सिफारिश की. डकैती तो टल गई थी, लेकिन जयपुर पुलिस के लिए बैंक में घुसने वाले बदमाशों का पता लगाना सब से पहली चुनौती थी. इस के लिए पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अपने मातहत अधिकारियों की मीटिंग कर के वारदात के लिए आए बदमाशों का पता लगाने को कहा.
विचारविमर्श में यह बात सामने आई कि 7 सीटर इनोवा में 13 लोगों का बैठना आसान नहीं है. इस का मतलब बदमाशों के पास कोई दूसरा वाहन भी रहा होगा, लेकिन सीसीटीवी फुटेज में दूसरा वाहन नजर नहीं आ रहा था. इनोवा गाड़ी भी चोरी की होने या उस पर फरजी नंबर प्लेट होने की आशंका थी. इस बात पर भी विचार किया गया कि बैंक में वारदात करने से पहले बदमाशों ने रैकी जरूर की होगी. अगर उन्होंने रैकी की थी तो उन्हें इस बात का पता रहा होगा कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में 3-4 पुलिसकर्मी हमेशा मौजूद रहते हैं.
एक सवाल यह भी उठा कि बदमाशों की संख्या करीब 13 थी और उन में 4-5 के पास पिस्तौल भी थीं तो वे केवल एक गोली चलने से घबरा क्यों गए? बैंक में डकैती डालने की हिम्मत करने वाले बदमाश डर कर भागने के बजाय मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. इस से संदेह हुआ कि बदमाश कहीं नौसिखिया तो नहीं थे. इस के अलावा बदमाशों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बैंक में 926 करोड़ रुपए होंगे. पुलिस ने वारदात की जानकारी मिलने के तुरंत बाद जयपुर से बाहर निकलने वाले रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. फिर भी बदमाशों का कोई सुराग नहीं मिला था. इस से यह बात भी उठी कि बदमाश जयपुर शहर के ही रहने वाले तो नहीं हैं.
पचासों तरह के सवालों का हल खोजने के लिए पुलिस कमिश्नर ने 4 आईपीएस अधिकारियों के सुपरविजन में एक दरजन टीमें गठित कीं. इन टीमों में सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. अलगअलग टीमों को अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईं. पुलिस टीमों ने मुख्य रूप से बैंक कर्मचारियों और वहां तैनात गार्डों से पूछताछ, बैंक से रुपए लाने ले जाने वाली 3 निजी सिक्योरिटी एजेंसियों के मौजूदा और पुराने कर्मचारियों से पूछताछ, जयपुर से निकलने वाले रास्तों पर स्थित टोल नाकों पर सीसीटीवी फुटेज, जयपुर के आसपास हाइवे और कस्बों में स्थित होटल, ढाबों पर हुलिए के आधार पर बदमाशों की जानकारी हासिल करने, इस तरह की वारदात करने वाले गिरोहों की जानकारी जुटाने आदि बिंदुओं पर अपनी जांचपड़ताल शुरू की.
दूसरी ओर, पुलिस कमिश्नर ने रिजर्व बैंक में जयपुर के सभी पब्लिक सैक्टर और निजी सैक्टर के बैंक अधिकारियों, रिजर्व बैंक के अधिकारियों और गोल्ड लोन देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. इस मीटिंग में पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सभी बैंक सुरक्षा व्यवस्था के बारे में रिजर्व बैंक की गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करें.
इस के अलावा उन्होंने सुरक्षा के खास प्रबंधों के साथसाथ अलार्म और हौटलाइन की आवश्यक व्यवस्था करने को भी कहा. कैश लाने ले जाने से पहले मौकड्रिल करने की भी बात की. उन्होंने राय दी कि बैंक के सीसीटीवी कैमरे अपग्रेड किए जाएं, जिन में कम से कम 90 दिन का बैकअप होना चाहिए. अलार्म सिस्टम भी जरूर लगाए जाएं.
वारदात के दूसरे दिन पुलिस के अधिकारी और जवान सभी बिंदुओं पर विचार कर जांचपड़ताल करते रहे, लेकिन यह भी पता नहीं चल सका कि बदमाश किस रास्ते से वापस गए. दूसरे और तीसरे दिन भी पुलिस को बदमाशों के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ नहीं लगा. इस बीच जयपुर से पुलिस की टीमें नागौर, पाली, अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर व झुंझुनूं आदि जिलों में गईं और संदिग्ध बदमाशों की तलाश की.
9 फरवरी को जयपुर पुलिस को इस मामले में उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं. कई जगह फुटेज में नजर आया कि बदमाशों की इनोवा गाड़ी के पीछे वाली बाईं ओर की लाइट टूटी हुई थी. इसी वजह से गाड़ी चलने पर यह लाइट नहीं जलती थी. इसी आधार पर पुलिस जयपुर से अजमेर की ओर टोल नाकों पर ऐसी इनोवा कार की तलाश में जुटी रही.
इसी दिशा में पुलिस आगे बढ़ी तो पता चला कि दूदू के पास एक बार के बाहर इनोवा कार रुकी थी. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कुछ लोगों की तसवीर आ गई थी. इन लोगों ने कानों में सोने की मुर्की पहन रखी थीं. चेहरे भी ढंके हुए नहीं थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि बदमाश जोधपुर–पाली की तरफ के हो सकते हैं. दूदू में होटल पर रुकने के बाद यह गाड़ी ब्यावर की ओर चली गई थी.
इसी बीच जांचपड़ताल में पता चला कि ऐक्सिस बैंक में बदमाश जो कट्टे छोड़ गए थे, वे पाली जिले की रायपुर तहसील के बर गांव में एक दुकान से खरीदे गए थे. इन कट्टों पर बर गांव की परचून की दुकान का नाम लिखा था. पुलिस उस दुकानदार तक पहुंची. हालांकि दुकानदार से बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, लेकिन इस से यह अंदाजा जरूर लग गया कि बदमाशों का पाली जिले से कोई न कोई संबंध जरूर था.
पुलिस को बदमाशों की इनोवा कार की लोकेशन ब्यावर तक मिल गई थी. इस बीच महाराष्ट्र के नंबरों का पता चलने पर एक पुलिस टीम महाराष्ट्र भेजी गई. ब्यावर से पुलिस टीम सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इनोवा कार का पीछा करते हुए जोधपुर तक पहुंच गई.
10 फरवरी को पाली जिले की पुलिस को कुछ जानकारियां मिलीं. इस के अगले दिन 11 फरवरी को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के महामंदिर थानाप्रभारी सीताराम को सूचना मिली कि जोधपुर के कुछ बदमाश कहीं बाहर कोई बड़ी वारदात कर के आए हैं.
इस पर जोधपुर पुलिस की एक टीम बदमाशों की तलाश में जुटी और शाम तक 6 बदमाशों प्रकाश जटिया, पवन जटिया, धर्मेंद्र जटिया, जयप्रकाश जटिया, दिनेश लुहार और प्रमोद बिश्नोई को पकड़ लिया. ये छहों लोग जोधपुर के रहने वाले थे. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक कुमार राठौड़ ने इस की सूचना जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी. इस पर जयपुर से एक टीम रवाना हो कर रात को ही जोधपुर पहुंच गई.
पकड़े गए 6 बदमाशों से बाकी लुटेरों का भी पता चल गया. जयपुर व जोधपुर पुलिस उन की तलाश में जुट गई. 12 फरवरी को पुलिस ने 2 और बदमाशों को पकड़ लिया. इन में अनूप बिश्नोई को जोधपुर के बनाड इलाके से पकड़ा गया, जबकि झुंझुनूं के बदमाश विकास चौधरी को जैसलमेर से गिरफ्तार किया गया. विकास चौधरी आजकल जैसलमेर के शिकारगढ़ इलाके में रह रहा था.
इन बदमाशों से की गई पूछताछ में सामने आया कि लूट की योजना जोधपुर के ओसियां के सिरमंडी निवासी हनुमान बिश्नोई उर्फ लादेन ने बनाई थी. लादेन ही इस गिरोह का सरगना है. लादेन ने जयपुर में ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच की रैकी कर रखी थी. तिजोरी के ताले तोड़ने के लिए उस ने प्रमोद बिश्नोई के सहयोग से जोधपुर की जटिया कालोनी के रहने वाले प्रकाश, पवन, धर्मेंद्र व जयप्रकाश को तैयार किया था.
तिजोरी तोड़ने के लिए ये बदमाश जोधपुर से ही औजार ले कर चले थे. हनुमान उर्फ लादेन इस योजना में प्रकाश बिश्नोई से बराबर का हिस्सा मांग कर पार्टनर बना था. बाकी बदमाशों को 20 हजार से 10 लाख रुपए तक का लालच दिया गया था. लादेन और प्रकाश ने अपने भाड़े के साथियों को यह नहीं बताया था कि जयपुर में बैंक लूटने जाना है. उन्हें बताया गया था कि जयपुर में हवाला की रकम लूटनी है.
5 फरवरी को लादेन के नेतृत्व में 15 बदमाश जोधपुर से 2 गाडि़यों में सवार हो कर जयपुर के लिए चले. उन्होंने रास्ते में जयपुर-अजमेर के बीच दूदू के पास एक गाड़ी छोड़ दी. इनोवा गाड़ी से सभी बदमाश उसी रात जयपुर पहुंचे और ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच पर धावा बोल दिया. बैंक में तैनात पुलिस कांस्टेबल के गोली चलाने से सभी बदमाश डर कर भाग निकले थे.
प्रकाश बिश्नोई जनवरी 2014 में राइकाबाग में रोडवेज बस स्टैंड पर रात्रि गश्त कर रहे पुलिस के एक एएसआई राजेश मीणा की हत्या का भी अभियुक्त था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. घटना के समय वह जमानत पर छूटा हुआ था. इस गिरोह के सरगना जोधपुर निवासी हनुमान उर्फ लादेन को 20 फरवरी को जयपुर से गिरफ्तार कर लिया गया. जोधपुर के ही रहने वाले राजकुमार, किशोर नायक, लखन शर्मा और संदीप विश्नोई को पंजाब के मोहाली से पकड़ा गया. रविंद्र के पास से एक करोड़ 5 लाख की पुरानी करेंसी मिली.
ये लोग रिजर्व बैंक से नोट बदलवाने के चक्कर में थे, क्योंकि एनआरआई कोटे के तहत अभी भी नोट बदले जा रहे थे. पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार किए गए आठों बदमाशों को पुलिस जोधपुर से जयपुर ले आई. बदमाशों से उन के साथियों और आपराधिक वारदातों के बारे में पूछताछ की गई. ऐक्सिस बैंक में लूट के प्रयास के दौरान उपयोग किए गए हथियारों के बारे में भी पता लगाया गया. गिरफ्तार व फरार बदमाशों का आपराधिक रिकौर्ड भी खंगाला गया. यह भी पता लगाया गया कि इस वारदात में बैंक के किसी नएपुराने कर्मचारी का सहयोग तो नहीं था. देश की सब से बड़ी बैंक लूट की वारदात को विफल करने का हीरो कांस्टेबल सीताराम ही रहा. हालांकि जयपुर पुलिस ने वैज्ञानिक तरीकों से जांचपड़ताल के जरिए बदमाशों को पकड़ कर अपनी साख जरूर बचा ली.
यह भी दिलचस्प रहा कि 11 फरवरी को जोधपुर में जब 6 बदमाश पकड़े जा रहे थे, उसी समय जयपुर में राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओ.पी. गल्होत्रा ने कांस्टेबल सीताराम को हैडकांस्टेबल के पद पर विशेष पदोन्नति दी. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट में आयोजित समारोह में पुलिस महानिदेशक ने कहा कि ड्यूटी के दौरान उत्कृष्ट कार्य कर के सीताराम ने राजस्थान पुलिस की शान बढ़ाई है.
राजस्थान के सीकर जिले के पूनियाणा गांव के रहने वाले सीताराम के मातापिता पढ़लिख नहीं सके थे. वे मेहनतमजदूरी करते थे. पिता टोडाराम व मां प्रेम ने अपने एकलौते बेटे सीताराम को अपना पेट काट कर पढ़ाया लिखाया. सीताराम ने सीनियर सेकैंडरी तक की पढ़ाई सीकर में दांतारामगढ़ से की. 12वीं में वह क्लास टौपर रहा. कालेज की पढ़ाई रेनवाल से की. मातापिता की ख्वाहिश थी कि सीताराम शिक्षक बन जाए. सीताराम ने बीएड करने के साथ शिक्षक बनने की तैयारी शुरू भी की थी, लेकिन तभी वह कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया.
उस ने साल 2015 में नौकरी जौइन की. प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद उसे बैंक की चेस्ट ब्रांच में सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. डेढ़ साल पहले ही उस की शादी हुई थी. सीताराम के मातापिता और गांव के लोगों को ही नहीं, आज राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल से ले कर पुलिस महानिदेशक तक सभी को उस पर गर्व है.