रशीद हुस्ना को दिलोजान से चाहता था, लेकिन साधारण परिवार की हुस्ना ने उसे तवज्जो नहीं दी. उसने अमीर शाहनवाज से इसलिए शादी की ताकि ऐशोआराम की जिंदगी जी सके. पर शाहनवाज ने उसे ऐसा क्या दिया कि हुस्ना पश्चाताप के आंसू बहाती रह गई…
रशीद वैसे तो हमारे घर अकसर आताजाता रहता था, पर जब से मैं बड़ी हुई थी, उस का आनाजाना बढ़ गया था. मैं स्कूल से आती तो वह गली में टहलता मिलता था. घर पर इंतजार कर रहा होता. अजीब इंसान था, न कभी बात करता न मेरी तारीफ करता. न नजर भर कर देखता पर उस के अंदाज बताते थे कि वह मुझ से मोहब्बत करता है. मेरे करीब रहने के लिए वह हर जतन करता, कभी बाजार जाकर अम्मा की दवाई लेकर आता, कभी अब्बा का कोई काम करता. कभी मेरी छोटी बहन को घुमा कर लाता, उसे किसी काम से इनकार नहीं था.
रशीद हमारे घर के करीब ही रहता था. उस की मोटर मैकेनिक की दुकान थी, जिस में उस के अलावा 2 कारीगर काम करते थे. आमदनी अच्छी थी. घर में किसी को उस के आनेजाने पर ऐतराज नहीं था. सभी उसे पसंद करते थे. वह बचपन से हमारे घर आता था. देखने में भी अच्छाखासा था. मैं 10वीं में 2 बार फेल हो चुकी थी, उम्र भी 18 हो गई थी. पर देखने में मैं खूबसूरत थी.
मेरे अब्बा एक औफिस में चपरासी थे. आमदनी कम थी, खर्चे ज्यादा थे. मैं एक अच्छे स्कूल में पढ़ती थी लेकिन छोटे भाईबहन सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. मेरे स्कूल में बड़े घरों की लड़कियां पढ़ती थीं. उन के बीच रह कर मैं अपने घर की गरीबी भूल जाती और उन की तरह ही रहने की कोशिश करती. उन के घरों में जाती, उन के घरों में ऐशोआराम के सामान देख कर दंग रह जाती और सोचती कि पढ़लिख कर मैं भी किसी अमीर लड़के से शादी करूंगी.
गरीबी आखिर ख्वाब देखने से तो नहीं रोक सकती. मैं ने सोच लिया था कि किसी गरीब या मामूली इंसान से हरगिज शादी नहीं करूंगी. अगर गरीबी में ही दिन काटने हैं तो अपना घर क्या बुरा है. बड़े घर की लड़कियों के बीच रह कर दिमाग भी ऊंचा सोचने लगा था. ऐसे में भला मुझे रशीद कैसे अच्छा लग सकता था.
वह ठीकठाक पैसे कमाता था, पर था अनपढ़. एक सब्जी बेचने वाले का बेटा. काम भी गाड़ी मैकेनिक का करता था. मुझे उस से नफरत तो नहीं थी, पर जिस चाहत से वह देखता था, मुझे बुरा लगता था. लेकिन वह भी अजीब मिट्टी का बना था. न कोई शिकायत न कोई शिकवा.
मेरी सहेली महताब की शादी थी. वह अकसर अपने मंगेतर की बातें मुझे बताती रहती थी. उस की बातें सुन कर मैं भी ख्वाबों की दुनिया में खो जाती थी. महताब ने बड़े इसरार से हल्दी से लेकर रिसैप्शन तक 4 दिन की दावत दी. मैंने कहा, ‘‘अम्मी से इजाजत मिलना मुश्किल है और फिर मुझे लाएगा कौन?’’
वह रोते हुए बोली, ‘‘देख हुस्ना, शादी के बाद मैं अमेरिका चली जाऊंगी, फिर पता नहीं कब आना हो. अब मैं कल से स्कूल भी नहीं आऊंगी. तुम्हें आना ही पड़ेगा.’’ वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. उस का लगाव देख कर मुझे आने का वादा करना पड़ा. अब मेरे सामने 2 मसले थे, एक तो घर वालों की इजाजत और दूसरे किस के साथ जाऊंगी?
घर आ कर मैंने अम्मी को बताया, ‘‘अम्मी, मेरी खास सहेली की शादी है. उस की शादी मुझे हर हाल में अटेंड करनी है, फिर वह अमेरिका चली जाएगी.’ ‘‘कहां पर है शादी?’’ ‘‘क्लिफ्टन में कोठी है उस की.’’
‘‘बेटा, इतनी दूर कैसे जाओगी? कहीं पास होती तो मैं साथ चली चलती. कोई जरूरत नहीं है जाने की.’’ ‘‘अब्बा से कहें वो साथ चलें.’’ ‘‘नहीं, वो भी नहीं जाएंगे.’’
मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे. उसी वक्त अब्बा और रशीद भी आ गए. पूरी बात सुन कर अब्बा भी यही बोले, ‘‘बेटा, भेजने में कोई हर्ज नहीं है, पर जाओगी कैसे?’’ रशीद के चेहरे पर मुसकान आ गई, वह जल्दी से बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मैं छोड़ आऊंगा.’’ अब्बा राजी हो गए पर अम्मा को ऐतराज था. लेकिन उन के ऐतराज ने मेरी जिद के आगे दम तोड़ दिया. दूसरे दिन शाम को रशीद किसी की नई मोटरसाइकिल लेकर आ गया. मैं खूब तैयार हुई थी. ऊपर से एक चादर ओढ़ कर मैं उस के साथ बैठ गई.
महताब के घर जैसे रंग व नूर की बारिश हो रही थी. कोठी के आगे बड़ा सा शामियाना लगा था, जहां उबटन का फंक्शन होना था. रशीद मुझे कोठी के बाहर उतार कर चला गया. मैंने उसे 10 बजे आने को कहा. सारी मेहमान लड़कियां अच्छे कपड़ों और जेवरों से सजीधजी थीं. उन्हें देख कर मुझे कौंप्लेक्स हो रहा था.
मैं महताब के पास पहुंची, वह लड़कियों से घिरी बैठी थी. उस ने पीले रंग का हल्दी का जोड़ा पहन रखा था. उसी वक्त फाकिरा आ गई, जो मेरी दूसरी अच्छी सहेली थी. वह मुझ से लिपट गई. उस ने पूछा, ‘‘हुस्ना, किस के साथ आई हो?’’
मैंने कहा, ‘‘अपने कजिन के साथ आई थी, उसे वापस भेज दिया.’’ ‘‘अरे, उसे वापस क्यों भेज दिया, इतने मर्द हैं, वह भी शामिल हो जाता.’’ ‘‘10 बजे लेने आ जाएगा.’’
लड़कियां ढोलक लेकर बैठ गईं. गीत और डांस होने लगा. फाकिरा ने कहा, ‘‘चल आ नीचे की रौनक देख कर आते हैं.’’ शामियाने में स्टेज सज रहा था. फाकिरा ने एक स्मार्ट से नौजवान से मिलाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे कजिन शाहनवाज हैं. और ये मेरी प्यारी दोस्त हुस्ना है.’’ शाहनवाज खूबसूरत लड़का था, उस ने खासे महंगे कपड़े पहन रखे थे. उस ने हाथ मिलाने को हाथ बढ़ाया तो मैं झिझक गई. उस ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया और गर्मजोशी से कहा, ‘‘अरे फाकिरा, तुम्हारी दोस्त इतनी खूबसूरत है. इसे कहां छिपा कर रखा था? मोहतरमा आप से मिल कर दिल खुश हो गया.’’
मैं क्या कहती. वह फिर बोला, ‘‘गरमी लग रही है, आओ चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’ मैं इनकार करती रही. दोनों मुझे हाथ पकड़ कर कार में ले गए. हम ने साथ बैठ कर आइसक्रीम खाई, वह भरपूर नजरों से मुझे देखता रहा. उस की बेतकल्लुफी देख कर मैं हैरान थी. फिर मैं ने सोचा बड़े लोगों में ऐसा ही होता होगा.
हम वहां से लौट कर आए तो मैं ने दूर से रशीद को खड़े देखा. पर मैं उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ गई. शाहनवाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘तुम वापस कैसे जाओगी?’’ मैंने कहा, ‘‘मेरा कजिन लेने आएगा.’’ ‘‘अगर वह न आता तो मैं तुम्हें छोड़ आता. कल जरूर आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ उस ने शोखी से कहा. उस लड़के ने मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि मुझ पर फिदा हो गया. मेरा दिल भी उस की तरफ खिंच रहा था. उबटन शुरू हो चुका था. हम ने एक रस्म निभाई और खाने की तरफ बढ़ गए. मैं ने फाकिरा से पूछा, ‘‘ये तुम्हारा कजिन कुछ काम करता है या पढ़ता है.’’
‘‘इसे कुछ करने की जरूरत नहीं है. शानदार बंगले में अकेला रहता है. फैमिली अमेरिका में है. इस के खर्चे के लिए इतना भेजते हैं कि दोनों हाथों से लुटाता है, कुछ बिजनैस सेट करने का भी इरादा है.’’ करीब 11 बजे फंक्शन से फारिग हो कर बाहर पहुंची तो रशीद बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहा था. मैं ने कहा, ‘‘आप जल्दी आ गए थे, इसलिए इतना इंतजार करना पड़ा.’’
‘‘कोई बात नहीं, आप की राह देखना तो मेरा नसीब है.’’ रास्ते भर वह चुप रहा. मुझे डर था कहीं शाहनवाज के बारे में न पूछ बैठे. उतरते वक्त मैं ने शुक्रिया कहा तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब जाना है?’’ मैं शाहनवाज के जादू में डूबी हुई थी. फौरन बोली, ‘‘अब रोज ही जाना होगा.’’
‘‘अच्छा, कल मैं किसी की कार मांग लाऊंगा.’’ उस के जाने के बाद मैं खयालों में डूब गई. एक तरफ पूरी चमकदमक के साथ शाहनवाज खड़ा था, दूसरी तरफ एक मामूली मैकेनिक. दिल कह रहा था कि मैं रशीद के साथ अन्याय कर रही हूं, मुझे उस के साथ नहीं जाना चाहिए.
दूसरे दिन रशीद कार लेकर आ गया. मुझे उस के साथ जाना पड़ा. जैसे ही मैं कार से उतरी, शाहनवाज आ गया. उस ने रशीद को देख कर कहा, ‘‘अच्छा, ये हैं तुम्हारे भाईसाहब.’’ रशीद का चेहरा पीला पड़ गया. मैं ने बात बदली, ‘‘फाकिरा आ गई?’’
‘‘वह आज देर से आएगी.’’ रशीद मुझे वहां छोड़ कर चला गया. मैं महताब के पास चली गई. शाहनवाज मेरे हवासों पर ऐसा छाया था कि मेरा दिल महताब के पास नहीं लगा. मैं उठ कर नीचे आ गई. शाहनवाज मेरा मुंतजर था. वह मुझे ले कर समंदर किनारे आ गया. उस ने मेरा हाथ थाम कर कहा, ‘‘हुस्ना, ये शादी 2 दिन में खत्म हो जाएगी. फिर हम कैसे मिलेंगे.’’
मैंने उसे छेड़ा, ‘‘मिलना कोई जरूरी नहीं है.’’
उस ने बेताबी से कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा नहीं, तुम ने 2 मुलाकातों में मुझे दीवाना बना दिया है. अब तुम्हारे बिना रहना मुश्किल है.’’ ‘‘आप को मालूम नहीं, मेरी फैमिली कैसी है. मेरा घर से निकलना कितना मुश्किल होता है.’’
‘‘कुछ दिनों की परेशानी है फिर मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लूंगा.’’ ‘‘आप जानते नहीं, मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ ‘‘मैं गरीबअमीर के फर्क को नहीं मानता. मैं शुरू से अपने फैसले खुद करता हूं. तुम से शादी के लिए मेरे मांबाप को भी कोई ऐतराज नहीं होगा.’’ काफी देर तक हम वहां घूमते रहे, फिर लौट कर महताब के घर आ गए. कुछ देर तक महताब के पास बैठ कर मैं नीचे आई, रशीद आ चुका था. आज वह ज्यादा ही खामोश था, खफा भी लग रहा था. मैं ने कहा, ‘‘रशीद भाई, आप को 2 दिन आना पड़ा, तकलीफ हुई. अब कल मत आना. मुझे महताब बुलवा लेगी, अपने कजिन को भेज कर.’’
‘‘उस का कजिन वही है न जो आज वहां मिला था?’’ रशीद ने बड़ी मायूसी से कहा. ‘‘हां, वही है शाहनवाज नाम है.’’ ‘‘वह लड़का मुझे कुछ ठीक नहीं लगता, किस बदतमीजी से उस ने तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा था.’’
‘‘बड़े लोगों में ये फैशन है, इसे बुरा नहीं समझा जाता.’’ ‘‘मैं तुम्हें समझाने का हक तो नहीं रखता, पर इतना जरूर कहूंगा कि इस आदमी पर भरोसा मत करना वरना धोखा खाओगी.’’
‘‘मुझे मालूम है किस पर भरोसा करना है, किस पर नहीं. मुझे समझाने की कोशिश न करें.’’ ‘‘पर मैं तुम्हारा नुकसान बरदाश्त नहीं कर सकता.’’ ‘‘तुम होते कौन हो, मेरा भलाबुरा सोचने वाले?’’
मुझ पर शाहनवाज का जादू चढ़ गया था. मैं गुस्से में बकती चली गई. उस ने सड़क के किनारे गाड़ी रोकी और मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ‘‘हुस्ना, क्या तुम्हें अंदाजा नहीं है कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं. अब तक की सारी जिंदगी तुम्हें सपनों में बसा कर बसर की है. मैं कैसे तुम्हें किसी और का बनता देख सकता हूं और खास कर बरबाद होते कैसे देख सकता हूं्?’’
‘‘मुंह देखा है कभी आईने में? तुम्हारा शाहनवाज का क्या मुकाबला? अब बकवास बंद करते हो या मैं नीचे उतर जाऊं? कल मुझे लेने के लिए आने की जरूरत नहीं है.’’ ‘‘अब मैं तुम से कुछ नहीं कहूंगा. अपनी मोहब्बत से मजबूर हो कर कह गया, पर तुम मुझ से ऐसा सलूक न करो.’’
मैं खामोशी से उतर कर अपने घर चली गई. कपड़े बदल कर अम्मा के पास आई और उन से कहा, ‘‘अम्मा, मैं कल से रशीद के साथ नहीं जाऊंगी, मेरी सहेली का भाई लेने आएगा.’’ दूसरे दिन शाम को चमचमाती कार मेरे दरवाजे पर खड़ी थी. मैं ने शाहनवाज को फोन कर के घर आने को कह दिया था. मैं ने अम्मा से कहा, ‘‘अम्मा, मेरी सहेली का भाई मुझे लेने आ गया है, मैं जा रही हूं लौटने में मुझे देर हो सकती है.’’ अम्मा बड़बड़ाती रह गई. मैं बाहर निकल गई. जैसे ही हमारी कार बाहर निकली, मैं ने रशीद को एक खंभे के सहारे उदास खड़े देखा.
हम महताब के घर न जा कर सीधे समंदर किनारे चले गए. वहां उस की शानदार हट थी. ये मेरे लिए एकदम नई दुनिया थी. रात 12 बजे तक हम वहीं रुके और भविष्य के सपने बुनते रहे. वहां से मैं सीधी घर आ गई. दूसरे दिन भी यही सिलसिला रहा. मैं महताब की शादी में भी नहीं गई. मेरी बेरुखी के बावजूद रशीद चुपचाप हमारी खिदमत करता रहा. पता नहीं उस ने अब्बा से क्या कहा कि वह अम्मा से कहने लगे, ‘‘रशीद अच्छा लड़का है, देखाभाला. अच्छाखासा कमाता भी है. मैं ने तय किया है कि हुस्ना की शादी रशीद से कर दी जाए. वह सुखी रहेगी और हमारी आंखों के सामने भी.’’
अम्मा ने ऐतराज करना चाहा तो अब्बा बोले, ‘‘इस से अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा. रशीद हुस्ना को पसंद भी करता है. गरीब चपरासी की लड़की के लिए किसी शहजादे का रिश्ता तो आएगा नहीं.’’ मैं ने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, मैं रशीद से शादी नहीं करना चाहती और वह भी नहीं चाहता.’’ मुझ पर शाहनवाज के इश्क का ऐसा नशा चढ़ा था कि जो दिल में आया, कह दिया. अब्बा उस वक्त खामोश हो गए. दूसरे दिन स्कूल से वापस लौटते हुए मैं रशीद की दुकान पर रुक गई. मैंने उस से रूखेपन से कहा, ‘‘तुम ने अब्बा से यह क्यों कहा कि मुझ से शादी करना चाहते हो?’’
‘‘क्योंकि मैं तुम से मोहब्बत करता हूं और तुम अपनी सहेली के कजिन से शादी करना चाहती हो पर याद रखना वह फ्रौड है, तुम्हें धोखा देगा.’’
‘‘मैं तुम्हारी नसीहत सुनने नहीं आई हूं. मैं शाहनवाज से मोहब्बत करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी. बेहतर यही है कि तुम बीच में से हट जाओ. तुम शादी वाली बात के लिए अब्बा से इनकार कर दो.’’
‘‘मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करता हूं, तुम्हारी खुशी के लिए हर कुरबानी दूंगा. अगर तुम यही चाहती हो तो मैं शादी से इनकार कर दूंगा.’’
मुझे इस से कोई सरोकार नहीं था कि उस के दिल पर क्या गुजर रही है. मैं यह सोच कर खुश थी कि वह इनकार कर देगा. दूसरे दिन अब्बा ने रशीद को घर बुला कर मुझ से शादी के बारे में पूछा. उस ने उदासी से कहा, ‘‘चाचा, मैं आप की बड़ी इज्जत करता हूं. ये मेरी खुशनसीबी है कि आप ने मुझे अपना बेटा बनाने की सोची, पर मैं ने हुस्ना को अपनी बहन समझा है. मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं? आप हुस्ना की शादी किसी बड़े घर में करिएगा, जहां पर वह खुश रहे. यह भाई उस की शादी का खर्च उठाने को भी तैयार है.’’
मैं छिप कर सब सुन रही थी. उस ने कहा था, कर दिखाया. पहली बार अहसास हुआ कि उस की मोहब्बत सच्ची है. उन दिनों मैं स्कूल जाती थी, पर रास्ते में शाहनवाज मुझे पिक कर लेता था और हम घूमनेफिरने निकल जाते थे. वह अभी तक मुझे अपने घर ले कर नहीं गया था. इम्तिहान के बाद शाहनवाज के शादी के तकाजे बढ़ गए.
एक दिन वह 2 औरतों के साथ हमारे घर आ गया. उस ने बताया कि वे दोनों उस की खाला हैं. मैंने अम्मी को बता दिया था कि फाकिरा का कजिन रिश्ता लेकर आएगा. मुझे भी हैरानी हो रही थी कि फाकिरा क्यों नहीं आई, पर मैं चुप रही. मगर अम्मा ने खाला से पूछ ही लिया, ‘‘फाकिरा को साथ आना चाहिए था. वह बीच में है, फिर क्यों नहीं आई?’’
‘‘बहन, क्या बताएं खानदान की बात है, फाकिरा ये समझ रही थी कि शाहनवाज उस से शादी करेगा, पर जब उस ने शादी के लिए हुस्ना का नाम लिया तो वह चिढ़ गई. उस के घर वाले हम से नाराज हैं.’’
अम्मा बोली, ‘‘न कोई बहन न मांबाप, हम किस की जिम्मेदारी पर हां कह दें, कोई तो बीच में होता.’’
‘‘बहन, आप फिक्र न करें, शाहनवाज के मांबाप ने हमें पूरा अख्तियार दे रखा है. ये लीजिए, आप ये खत पढ़ लें जो उस के मांबाप ने हमें भेजा है. आप समझ जाएंगी.’’ इन औरतों ने एक खत अम्मा को पकड़ा दिया. ‘‘आप लोग ये खत छोड़ जाएं, मैं हुस्ना के अब्बा को दिखा कर पूछूंगी फिर कुछ जवाब दूंगी.’’
दोनों औरतों ने शाहनवाज के खानदान और उस की दौलत का ऐसा नक्शा खींचा कि अम्मा काफी हद तक राजी हो गईं. शाम को उन्होंने अब्बा को वह खत दिखाया और जोर दिया कि रिश्ता अच्छा है, हां कह दें. अब्बा ने दुनिया देखी थी. इस बात ने उन्हें जरा भी प्रभावित नहीं किया. अब्बा ने बहुत ऐतराज उठाए पर अम्मा और मेरी जिद के आगे उन की एक नहीं चली. अम्मा ने रिश्ता मंजूर कर लिया. 2 दिन बाद फिर वही दोनों खाला आईं, अम्मा ने उन्हें मंजूरी की इत्तिला दी तो उन्होंने मेरे हाथों में 10 हजार रुपए दिए और हीरे की अंगूठी पहनाई. इस तरह से मेरी मंगनी हो गई.
अम्मा को शादी और दहेज की फिक्र सताने लगी. लेकिन शाहनवाज की खालाओं ने आ कर यह चिंता भी दूर कर दी. उन्होंने कहा कि लड़के के पास सब कुछ है. दहेज के नाम पर कुछ नहीं लिया जाएगा. मेरे मांबाप ने मुझे कुछ चांदी के जेवर और एक सोने की चेन दी. मेरी शादी सादगी से संपन्न हो गई. मैं शाहनवाज के घर आ गई. इतना बड़ा और शानदार घर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था. घर में मैं थी और एक बूढ़ी नौकरानी थी. मैं सुहाग सेज पर बैठी शाहनवाज का इंतजार कर रही थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘बीबीजी, आप सो जाएं, शाहनवाज मियां जब आएंगे, मैं आप को जगा दूंगी.’’
मुझे शाहनवाज पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि सुहाग सेज पर मैं अकेली उस का इंतजार कर रही हूं और वह गायब है. ‘‘बीबीजी, साहब आ गए.’’ थोड़ी देर बाद नौकरानी ने आ कर बताया. मैं संभल कर बैठ गई. शाहनवाज अंदर दाखिल हुआ. उस के बैठते ही मुझे अंदाजा हो गया कि वह शराब पी कर आया है.
‘‘आप ने शराब पी है?’’ ‘‘हां, पी है तो क्या हुआ? हमारी क्लास में इसे बुरा नहीं समझा जाता. आइंदा इस बारे में कुछ नहीं कहना, न पूछताछ करना.’’ मुझे उस से ऐसे जवाब व लहजे की उम्मीद नहीं थी, पर मैं चुप रही. दूसरे दिन सुबह मेरा भाई, मेरी बहन और मोहल्ले की एक लड़की मेरे लिए नाश्ता ले कर आए. बहनभाई घर देख कर दंग रह गए. हम सब ने मिल कर नाश्ता किया. फिर मेरी बहन ने पूछा, ‘‘शाहनवाज भाई, अगर आप इजाजत दें तो बाजी को हम साथ ले जाएं?’’
शाहनवाज ने खुशी से इजाजत दे दी. मैं घर पहुंची तो औरतों की भीड़ लग गई. कोई कपड़े देखती तो कोई जेवर देखती. सब तारीफ करती रहीं, अम्मा खुश होती रही. शाम को शाहनवाज को लेने आना था. अम्मा ने रात के खाने का अच्छा इंतजाम किया. रशीद ने सामान लाने का जिम्मा खुद उठा लिया. वह 3-4 आइटम खुद ही बाजार से लेकर आ गया. उस ने मुझ से कोई बात नहीं की, नजरें झुका कर देखता रहा.
जब शाहनवाज आया तो मोहल्ले के बच्चे उस की गाड़ी घेर कर शोर मचाने लगे. उन के लिए यह बड़ी चीज थी. यह देख कर शाहनवाज को गुस्सा आ गया. वह चीख कर बोला, ‘‘अब कभी इस चिडि़याखाने में नहीं आऊंगा. बडे़ बेहूदा बच्चे हैं, इस मोहल्ले के.’’
उसी वक्त रशीद भी आ गया. उस ने रशीद से हाथ मिलाने के बजाय उस का हाथ झटक दिया. शाहनवाज ने अब्बा से पूछा, ‘‘ये साहब कौन हैं?’’ अब्बा ने कहा, ‘‘बेटा ही समझो, बचपन से घर आताजाता है.’’
‘‘अच्छा, तुम वही हो जो महताब की शादी में हुस्ना को छोड़ने आए थे. उस दिन किस की गाड़ी चुरा कर लाए थे?’’ ‘‘साहब, हम गरीब जरूर हैं पर शरीफ हैं. चोरी नहीं करते. आप बेवजह मुझ पर इलजाम लगा रहे हैं. चोर वो होते हैं जो गरीबों की दौलत समेट कर अमीर बनते हैं.’’
वह तन कर खड़ा हो गया और गुस्से में बोला, ‘‘अब मैं यहां एक मिनट नहीं रुक सकता, जहां बाहर के लोग मेरी बेइज्जती करें, चलो.’’ ऐसा लग रहा था जैसे वह पहले से ही यह सब सोच कर आया था. सब रोकते रह गए. शाहनवाज मेरा हाथ पकड़ कर मुझे घर ले कर आ गया. घर पहुंच कर मैं ने कहा, ‘‘ये आप को क्या हो गया था? आप ने सब की बेइज्जती कर दी.’’
‘‘बेइज्जती होती है इज्जत वालों की. तुम तो कह रही थीं, रशीद तुम्हारा भाई है.’’ ‘‘हां, हम उसे अपना भाई ही समझते हैं.’’ ‘‘खैर, आज के बाद तुम घर वालों से और रशीद से कोई ताल्लुक नहीं रखोगी. न तुम वहां जाओगी, न वहां से यहां कोई आएगा.’’ यह छोटी बात नहीं थी. मैं शाहनवाज से खूब लड़ी. बड़ी मुश्किल से वह इस बात पर राजी हुआ कि कभीकभी वह खुद मुझे मां से मिला कर ले आएगा. लेकिन अकेले नहीं जाने देगा.
शाहनवाज मुझे प्यार दे रहा था. इतने नाज उठा रहा था कि मैंने उस की यह शर्त भी मंजूर कर ली. 2 महीने बड़े आराम से गुजरे. वह मुझे एक बार अम्मा से मिला कर ले आया. फिर एक दिन बोला, ‘‘हमें ये कोठी छोड़ कर फ्लैट में जाना है.’’
मुझे पहली बार मालूम हुआ कि ये कोठी किराए की थी. मुझे इतना अच्छा घर छोड़ने का दुख तो हुआ पर फ्लैट भी बहुत शानदार था. वह भी किराए का था. फ्लैट में आकर मुझे शाहनवाज ज्यादा मुतमइन दिख रहा था. वह सारा दिन बाहर मसरूफ रहता था. मैंने एक दिन पूछ लिया, ‘‘आप तो कहते थे, आप कोई काम नहीं करते. फिर सारा दिन कहां गायब रहते हो?’’
वह गुस्से से बोला, ‘‘ये सब बातें तुम्हें जानने की जरूरत नहीं है कि मैं क्या करता हूं?’’ ‘‘मैं तो सिर्फ पूछ रही हूं, रोक नहीं रही.’’ ‘‘मैं तुम पर बहुत पैसे खर्च कर चुका हूं. उसे वसूल करने के जुगाड़ में लगा हूं.’’
उस की बात मेरी समझ में नहीं आई पर मैं चुप रही, ज्यादा पूछो तो चिढ़ जाता था. एक दिन उस ने मुझे तैयार होने को कहा और एक शानदार पार्टी में लेकर आ गया. शादी के बाद वह मुझे पहली बार कहीं ले कर निकला था. इस पार्टी में बड़ी बेशर्मी व बेहूदगी थी. सब शराब पी रहे थे. डांस कर रहे थे. मुझे कुछ ठीक नहीं लगा. मैंने शाहनवाज से कहा, ‘‘यहां से चलिए, मेरा दिल घबरा रहा है.’’
‘‘थोड़ी देर में सब ठीक लगेगा. मेरे साथ रहना है तो ऐसी पार्टियों की आदत डाल लो.’’ मैं डर कर चुप हो गई. मैं रशीद को मनमाना सुना सकती थी, शाहनवाज को नहीं. मैं ने पहले कभी शराब नहीं पी थी, पर उस रात शाहनवाज ने मुझे जिद कर के शराब पिला दी. मेरी हालत खराब हो गई. जब मुझे होश आया तो एक अजनबी मेरे साथ था. घर खाली पड़ा था, मैं घबरा कर उठी और उस से पूछा, ‘‘शाहनवाज कहां है?’’ ‘‘अभी आता ही होगा. पहले तुम फ्रैश हो लो.’’ अजनबी ने बेफिक्री से जवाब दिया.
मैं अपनी तकदीर पर आंसू बहाने लगी. मेरा मुहाफिज ही मेरा लुटेरा बन गया. शाहनवाज आया तो मैं दौड़ कर उस से लिपट गई. ये मेरा भोलापन था, मैं अभी भी उसे अपना मुहाफिज समझ रही थी. ‘‘शाबाश, वेलडन. आओ, चलो घर चलें.’ अपने फ्लैट पर पहुंच कर मैं अपनी बेबसी पर फूटफूट कर रो पड़ी. वह मेरे पास आ कर बोला, ‘‘रोती क्यों हो, इसे हमारी क्लास में बुरा नहीं समझते.’’ ‘‘ये गलत है.’’
‘‘इस से ताल्लुकात बनते हैं और काम निकाले जाते हैं.’’ मैंने गुस्से से कहा, ‘‘मैं अपने घर जा रही हूं.’’ ‘‘उस घर में जहां रशीद होता है. बेकरार क्यों होती हो, मैं यहीं तुम्हें कई रशीद ला दूंगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं, तुम मुझे जाने से कैसे रोकते हो?’’ उस ने मुझे चंद तसवीरें दिखाईं, जिन में मैं उस अजनबी के साथ गंदी हालत में थी. ‘‘अगर तुम ने कदम बाहर निकाला तो सब तसवीरें अखबारों में आ जाएंगी. फिर तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी और तुम्हारे मांबाप बेमौत मर जाएंगे. बहन घर बैठी रह जाएगी.’’
‘‘बस करो शाहनवाज, रहम करो मुझ पर.’’ ‘‘ठीक है, मैं जो कहता हूं, चुपचाप करती रहो.’’ बदनामी के डर ने मुझे खामोश कर दिया. इस का कारोबार अब मेरी समझ में आया वह गरीब लड़कियों से शादी करता था और उन से दौलत कमाता था. वह अकेला नहीं था, पूरा एक गिरोह था. शाहनवाज उस का एक मेंबर था. ये सब मुझे उस वक्त पता चला, जब वह मुझे इस फ्लैट से दूसरे फ्लैट ले कर गया. वहां मेरे जैसी खूबसूरत 4 लड़कियां और थीं.
यहां पहुंच कर मालूम हुआ कि उस का ये धंधा बड़े पैमाने पर चलता है. कितने ही बड़े व नामवर लोग उस के यहां आते थे. लड़कियां उन के पास जातीं, इन बड़े व सरकारी लोगों की उस पर मेहरबानी थी, जिन की वजह से उस का कुछ नहीं होता था.
लड़कियां इस गोरखधंधे में मकड़ी के जाले में मक्खी की तरह फंसी हुई थीं. हम लोगों के कुछ खास फोन नंबर थे, जो हर एक को नहीं बताए जाते थे. कोई कस्टमर फोन करता, किसी खास नाम का हवाला देता, जो शाहनवाज तय करता था. फिर दूसरे फोन से काल कन्फर्म की जाती थी. इस बारे में इलाके के थानेदार को बताया जाता कि लड़की कहां भेजी जा रही है. बहुत ही सावधानी से सारा इंतजाम किया जाता था.
इस काम के लिए पुलिस वालों की रकम तय थी. मैंने ऐसेऐसे लोगों को वहां देखा कि नाम ले देती तो जिंदा भी नहीं बचती. इतने असरदार लोगों के पास से भाग निकलना मेरे पूरे घर को मौत की दावत देना था. मैंने इस जिंदगी को नसीब समझ कर कबूल कर लिया. कभीकभी घर चली जाती. मेरे गरीब मांबाप मेरे कपड़े व गाड़ी देख कर खूब खुश थे. दिल चाहता पैसों से उन की मदद करूं, मगर ये हराम की कमाई देने को दिल नहीं मानता था.
रशीद को देख कर अफसोस होता. वह उदास अकेला उसी तरह मेरे मांबाप की मदद करता रहा. काश! मैं ने रशीद से शादी कर ली होती तो आज कितनी सुखी होती. वह सच कहता था कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती.
अब तो अपने आप से शर्म आने लगी थी. मुझे मांबाप को न आने की वजह बताने में मुश्किल होने लगी थी. कभीकभी लगता कि सच कह दूं लेकिन हिम्मत नहीं होती. आखिरकार मैं ने घर में मशहूर कर दिया कि मैं अमेरिका जा रही हूं. इस तरह अपने घर वालों की नजरों में हमेशा के लिए अमेरिका चली गई.
कुछ दिनों से शाहनवाज बहुत परेशान नजर आ रहा था. कई बार फोन पर उसे धमकियां मिलती थीं. गिरोह के लोगों का आनाजाना और मीटिंग बहुत बढ़ गई थी. बड़े लोगों से अकेले में खूब बहस होती. इन बातों से मुझे मालूम हो गया कि मामला बहुत गंभीर है.
आखिर एक दिन सच्चाई सामने आ गई. पता चला कि दूसरे शहर से एक असरदार आदमी ने उस इलाके में आ कर यही धंधा शुरू कर दिया था. जिन्हें शाहनवाज पैसे भरता था, उन से यह मुहायदा था कि यहां कोई दूसरा यह कारोबार नहीं करेगा. अब जब उस रसूखदार ने धंधा शुरू कर दिया, पैसे खाने वालों ने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि उस आदमी का दबदबा और दहशत बहुत ज्यादा थी. उस का गिरोह भी शातिर था.
मैं 4 सालों से शाहनवाज के साथ थी. इतना तो जानती थी कि गैंगवार के नतीजे क्या हो सकते हैं. एक दिन विरोधी गुट ने हमारे फ्लैट पर हमला कर दिया. यहां भी सब तैयार बैठे थे. दोनों तरफ से खूब गोलियां चलीं. शुक्र है कोई मरा नहीं. केवल 1-2 लोग घायल हुए ‘‘ये तो केवल एक ट्रेलर था, असल जंग तो बाद में शुरू होगी.’’ शाहनवाज के एक साथी ने कहा.
शाहनवाज ने चिंता से कहा, ‘‘फैसला हमारे हक में नहीं होगा. क्योंकि पुलिस और बड़े लोग अब हमारे साथ नहीं हैं.’’ ‘‘तो क्या हम मैदान छोड़ देंगे बौस?’’ ‘‘अक्लमंदी इसी में है, कोई दूसरा मजबूत सहारा मिलने के बाद फिर नए जोश से खड़े होंगे.’’
शाहनवाज का इरादा वह जगह छोड़ देने का था, पर उसी रात को पुलिस का छापा पड़ गया. शाहनवाज और उस के साथी भाग निकले. हम 4 लड़कियां पुलिस के हत्थे चढ़ गईं. अखबार व मीडिया को एक रंगीन कहानी मिल गई. हमारी तसवीरें अखबार व टीवी का मसाला बन गईं.
हमें थाने ले जाया गया. फिर जेल में डाल दिया गया. वहां भी वही अफसर थे, जो हमारे यहां आते थे. हमें ठीक से रखा गया था. मैं रोरो कर बेहाल थी. ये खबर मेरे घर तक पहुंच गई थी. उन का क्या हाल होगा.
मैं यहां से निकल कर कैसे मुंह दिखाऊंगी. खुदकुशी कर लूं तो रुसवाई कम नहीं होगी. हम जैसी लड़कियों से मिलने कौन आता है? लेकिन मुझे हैरत हुई, रशीद मुझ से मिलने आया. मैं ने कहा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो? मैं तुम्हें मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही.’’
‘‘नहीं, ऐसा न कहो, यह तो एक हादसा है जो किसी के भी साथ हो सकता है. तुम परेशान न हो.’’ ‘‘सब घर वाले क्या कहते हैं, मेरे बारे में?’’ ‘‘कुछ नहीं, बस तुम जल्दी से घर आ जाओ.’’
‘‘मैं यहां से निकल कर घर नहीं आ सकती.’’ ‘‘पागल मत बनो, जब मैं हूं तो फिक्र न करो.’’ ‘‘तुम नहीं जानते, ये लोग कितने खतरनाक हैं. शाहनवाज मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’ ‘‘वह सब बाद में देखा जाएगा. अगर यह मुकदमा अदालत में गया तो अच्छा वकील कर के मैं तुम्हारा केस लड़ूंगा.’’
वकील करने की नौबत नहीं आई. एक महीने बाद हमें बिना कोई मुकदमा चलाए छोड़ दिया गया. उन लोगों में कुछ सांठगांठ हुई थी. मैं जेल से बाहर निकली तो शाहनवाज किसी बहुत इज्जतदार शहरी की तरह हमें लेने आया. मालूम हुआ इस की कोशिशों से रिहा हुई थी.
मैं सोचती रही कि कब शाहनवाज जैसे मुलजिम सजा पाएंगे. वह एक दिन भी जेल में नहीं रहा. उस के आकाओं ने उसे बचा लिया था. हम चारों को वह फिर अपने फ्लैट की तरफ ले जा रहा था. अभी हम ने क्लिफ्टन का पुल पार किया ही था कि चारों तरफ से गाड़ी पर गोलियों की बौछार होने लगी.
मैं होश में आई तो अस्पताल में एडमिट थी. वहां मालूम पड़ा शाहनवाज और 2 लड़कियों ने अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया था. एक गोली मेरे बाजू में लगी थी पर हड्डी सलामत थी. एक बार खबरों व टीवी पर हमारी तसवीरें आने लगीं. दुनिया का कानून तो मुझे रिहाई न दिला सका, पर कुदरत ने मुझे आजादी दे दी.
रशीद मुझे अस्पताल में देखने आया. एक बार फिर पुलिस मेरा बयान लेने आ गई. मेरा बयान व फोटो फिर चर्चा का विषय बन गया. मैं काफी ठीक थी फिर भी पुलिस डिस्चार्ज करवाने में देर कर रही थी. रशीद की कोशिशों से मैं डिस्चार्ज हो गई. यह मेरी खुशकिस्मती थी कि मेरे घर वालों ने मुझे धिक्कारा नहीं, बल्कि मुझे कबूल कर लिया. नहीं तो मेरे पास खुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं था. मैं ने अपनी इद्दत के दिन मांबाप के प्यार के साए में गुजारे. उस के बाद फिर मेरे घर में रशीद से मेरी शादी का जिक्र छिड़ गया.
मेरे मांबाप की मजबूरी मेरी हालत और अपनी मोहब्बत की खातिर रशीद मुझे सहारा देने को तैयार हो गया. लेकिन अब मैं अपने आप को उस महान आदमी के लायक नहीं समझती थी. कहां वह सीधासच्चा इंसान और कहां मैं गुनाहों के कीचड़ में लिथड़ी हुई एक बदनाम औरत.
मैंने इनकार कर दिया. उस के सामने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘रशीद तुम मुझे अपनी ही नजरों में मत गिराओ. मैं कीचड़ में पड़ा मुरझाया, नोचाखसोटा हुआ फूल हूं. मुझे हाथ लगाओगे तो तुम खुद गंदे हो जाओगे. मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं. मैं तुम्हारी नौकरानी बनने के लायक भी नहीं, तुम शायद मेरे नसीब में न थे, तभी तो मैं ने हीरा ठुकरा कर पत्थर चुना था. अब मैं ठुकराए जाने के लायक हूं.’’
आज भी रशीद मेरे घर की चौखट पकड़े बैठा है. वह जब भी आता है, मैं उस की नौकरानी की तरह खिदमत करती हूं. उस के आगेपीछे घूमती हूं. दुआ करिए, मैं जिंदगी में उसे वह खुशी दे सकूं, जो उस की दिली तमन्ना है.द्य