तलाकशुदा रेशमा के साथ हसीन लिवइन रिलेशन में रह कर खुश था. रेशमा को भी उस से कोई शिकायत नहीं थी. इसी दौरान एक दिन कूड़े के ढेर पर रेशमा और उस की दोनों बेटियों की लाशें मिलीं. आखिर किस ने कर दी इन तीनों की हत्या?
पुलिस ने भी महसूस किया कि दुर्गंध कूड़े के ढेर से ही आ रही है. पुलिस वाले वहां जांचपड़ताल करने लगे. उन की नजर पास में पड़े 2 प्लास्टिक के थैलों पर गई. निश्चित तौर पर दुर्गंध उन्हीं से आ रही थी. उन की जांच की गई तो उन में 2 बच्चों की सड़ी लाशें थीं. पुलिस वालों का माथा ठनका! वे आसपास और भी सघनता से जांचपड़ताल करने लगे. उन्हें वहीं कूड़े के ढेर में फोम के गद्दा से ढंका एक महिला का शव भी मिला.
महिला समेत 2 बच्चों की लाशें मिलने पर पुलिस महकमे से ले कर पूरे इलाके में हड़कंप मच गया था. घटनास्थल पर देहरादून की कोतवाली पटेल नगर के कई पुलिसकर्मी पहुंच चुके थे. उन में कोतवाल कमल कुमार लुंठी भी थे. उन्होंने इस की सूचना एसएसपी (देहरादून) अजय सिंह समेत सीओ अनिल कुमार जोशी को दे दी थी.
वहां आने वाले पुलिस अधिकारियों में एसएसआई मनमोहन नेगी भी थे. नेगी और लुंठी ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान पाया कि इस इलाके में आम लोगों का आनाजाना बहुत कम होता है. लाशें ब्लूडार्ट कुरिअर कंपनी के थैले में डाल कर लाई गई थीं.
पेट्रोल पंप से कुछ दूरी पर 25 जून, 2025 को शाम के समय एक सूखे नाले के पास की सड़क पर गुजरते हुए लोग बहुत ही असहज महसूस कर रहे थे. कारण, वहां फैली तेज दुर्गंध थी. लोग परेशान थे. हर कोई पहले इधरउधर नजर दौड़ाता था, फिर नाकमुंह बंद कर कूड़े के ढेर के पास पहुंच कर तेजी से आगे बढ़ जाता था. उस सड़क पर वैसे तो कारें व बाइक तेजी से गुजर रही थीं, मगर पैदल चलने वाले कुछ लोगों ने महसूस किया कि दुर्गंध कूड़े के ढेर से आ रही है.
वह सड़क जंगली क्षेत्र से गुजरती है, जहां अकसर जंगली जानवर गुलदार, आवारा कुत्तों के अलावा जहरीले सांप भी घूमते रहते थे. उस रोज इस क्षेत्र में फैली दुर्गंध असहनीय हो गई थी. वहां से गुजरने वाले लोगों को सांस लेनी दूभर हो गई थी. इसी बीच किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. सूचना पाते ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. कूड़े के ढेर पर एक महिला व 2 बच्चियों के शव मिले.
घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान ही सूचना मिलने पर सीओ अनिल कुमार जोशी, फील्ड यूनिट टीम, पुलिस चौकी (आईएसबीटी) प्रभारी विजय प्रताप राही तथा एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी भी वहां पहुंच चुके थे. सभी ने घटनास्थल की गहनता से जांचपड़ताल की.
जांच की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने स्थानीय लोगों से शवों की शिनाख्त कराने की कोशिश की, किंतु उन की पहचान नहीं हो पाई. लाशों की हालत देख कर इतना तो तय था कि उन की हत्या कहीं और की गई थी. अंत में तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
बस के टिकटों से कैसे आगे बढ़ी जांच
इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी की टीम को भी पटेल नगर पुलिस के साथ लगा दिया गया. लाशें जिस ब्लूडार्ट कुरिअर कंपनी के थैले में मिली थीं, पुलिस उस कुरिअर कंपनी के औफिस गई, लेकिन वहां से कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा पुलिस टीमों ने आसपास के थानों समेत सीमावर्ती जिलों सहारनपुर, बिजनौर व मुजफ्फरनगर जिले के थानों से संपर्क कर महिला और 2 लड़कियों के लापता होने की भी जानकारियां जुटाने की शुरुआत कर दी.
बरामद लाश वाले थैले में ही महिला और बच्चों के कपड़े समेत अन्य सामान भी था. उसी के अंदर बैंगनी रंग का एक छोटा पर्स भी था. पर्स में नहटौर, बिजनौर से देहरादून की उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस का टिकट मिला. टिकट एक बालिग और एक नाबालिग का था.
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के टिकट के आधार पर पुलिस ने पहले बस का पता लगाया और फिर उस बस के कंडक्टर व ड्राइवर से पूछताछ की तो पता चला कि मिले शव का हुलिया उन यात्रियों से मेल खाता है, जो वारदात वाले दिन बस से बिजनौर से देहरादून आए थे.
घटनास्थल के पास स्थित टिंबर फैक्ट्री में पुलिस को कुरिअर कंपनी का वैसा ही नीले रंग का बैग मिला, जैसा बरामद लाश वाला बैग था. इस बारे में पुलिस ने फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ की.
उन से मिली जानकारियों में एक अहम जानकारी वहां काम करने वाले एक कर्मचारी हसीन के बारे में भी थी. वह नहटौर का रहने वाला था. उस के नहटौर से होने के बारे में सुनते ही पूछताछ कर रही पुलिस चौंक गई. उन्हें पर्स से मिला टिकट भी नहटौर से था. इस के बाद पुलिस नहटौर पहुंची और जांच की कडिय़ां आपस में जुड़ती चली गईं.
हसीन के इस हत्याकांड से जुड़े होने का संदेह तब और गहरा हो गया जब महिला का शव फैक्ट्री में रखे फोम के गद्ïदे में पैक होने का सबूत मिला. वह कूड़े के ढेर में दबा दिया गया था.
दोनों लड़कियों के शव बैग में कूड़े के ढेर पर फेंके गए थे, जो पहले दिन ही मिल गए थे, जबकि महिला का शव अगले दिन मिला था. लड़कियों की लाशें 25 जून, 2024 की शाम को बरामद हुई थीं. इस के करीब 18 घंटे बाद अगले रोज दोपहर महिला का शव मिला था.
लगातार दूसरे दिन शव मिलने के बाद पुलिस की जांच में और तेजी आ गई थी. जांच आगे बढ़ाई गई. आसपास के जिले सहारनपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, हरिद्वार, रुड़की आदि स्थानों पर महिला और बच्चों की गुमुशुदगी का पता लगाया गया.
26 जून, 2024 को एसओजी टीम को बिजनौर जिले के अंतर्गत नहटौर थाने से एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. थाने में एक महिला की 2 बच्चियों समेत गुमशुदगी दर्ज की गई थी. इस सूचना पर एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी और मनमोहन नेगी नहटौर गए. उन्होंने वहां जा कर लापता महिला उस की दोनों बच्चियों की तसवीरें देखीं.
मृतकों की ऐसे हुई शिनाख्त
तीनों तसवीरें देहरादून से बरामद लाशों से मेल खा खा रही थीं. तसवीरों की पहचान से उन के नाम, पहचान और पते की जानकारी हो गई. महिला का नाम रेशमा था, जो मुसलिम समाज की एक तलाकशुदा महिला थी. उस के बाद बीते कई सालों से हसीन के साथ देहरादून के बडोवाला इलाके में रह रही थी. उन के बीच लिवइन रिलेशन थे.
जब वह हसीन के साथ आई थी तब वह एक बच्ची की मां थी, किंतु 3 साल पहले उस ने हसीन से एक बच्ची को जन्म दिया था. इस तरह वह 2 बेटियों की मां मां बन गई थी. रेशमा के मायके में सभी उन के बीच लिवइन के बारे में जानते थे. वे हसीन को भी जानते थे, जो बडोवाला देहरादून की एक टिंबर फैक्ट्री में नौकरी करता है.
पुलिस को रेशमा, उस के बच्चे, तलाकशुदा जिंदगी और हसीन के साथ प्रेम संबंध के बारे में कई जानकारियां मिल गई थीं. अब तलाश हसीन की थी. पुलिस टीम वापस देहरादून लौट आई. एसएसआई मनमोहन नेगी 27 जून को बडोवाला स्थित टिंबर फैक्ट्री गए. हसीन वहां मिल गया.
पुलिस को देखते ही हसीन के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. उस ने सहज बनने की भरसक कोशिश की, लेकिन भीतर ही भीतर डर गया. नेगी उस से पूछताछ के लिए कोतवाली पटेल नगर ले आए.
कोतवाली में जब सीओ अनिल जोशी और कोतवाल कमल कुमार लुंठी ने हसीन से रेशमा व उस की बेटियों की हत्या के मामले में पूछताछ शुरू की, तब वह इस बारे में अनजान बनने लगा. उस ने सिरे से नकार दिया कि उसे तीनों की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
हसीन को नेगी अलग कमरे में ले गए. उस से सख्त लहजे में तीनों की हत्या की सच्चाई पूछी. नेगी ने सीधा सवाल किया, ”तुम ने अपनी प्रेमिका के साथ बच्चों को क्यों मारा?’’
इस पर हसीन चुप्पी साध गया. इस पर उन्होंने लिवइन रिलेशन के कानूनी दुष्परिणामों के बारे में भी कहा. डांटते हुए रेशमा के मायके वालों द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर सजा मिलने की बात कही. नेगी की इस सख्ती का असर हुआ और वह सब कुछ बताने के लिए तैयार हो गया.
करीब 5 मिनट की चुप्पी के बाद हसीन ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि रेशमा और बच्चों को उस ने मारा है. इस की उस ने माफी मांगते हुए पूरे घटना के पीछे के कारण के बारे में जो कुछ बताया वह इस प्रकार है—
तलाकशुदा रेशमा की शुरू हुई नई प्रेम कहानी
हसीन मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नहटौर थाने के अंतर्गत फरीदपुर गांव का रहने वाला था. कई सालों से वह देहरादून के मोहल्ला ब्रह्मïपुरी पटेल नगर में रहते हुए बडोवाला स्थित टिंबर फैक्ट्री में नौकरी करता था. करीब 2 साल पहले रेशमा की हसीन से मुलाकात हुई थी. उसे पति तलाक दे चुका था. वह 14 वर्षीया एक बेटी की मां थी, लेकिन दिखने में बला की सुंदर और कमसिन जैसी थी.
पहली मुलाकात में ही रेशमा ने उसे अपनी घरेलू परेशानी बताते हुए आजीविका की समस्या के लिए मदद मांगी. हसीन उस की हरसंभव मदद के लिए तैयार हो गया. उस के बाद दोनों की फोन पर बातें होने लगीं.
धीरेधीरे ये बातें मोहब्बत में बदल गईं. जल्द ही दोनों एकांत जगहों पर मिलनेजुलने लगे. हसीन उस के लिए छुट्टी ले कर बारबार नहटौर जाने लगा, जहां उस का मायका था.
हसीन उस के घर वालों से भी मिला और उस ने रेशमा के प्रति हमदर्दी जताई. रेशमा बला की सुंदर थी. वह उस की जवानी पर मोहित हो गया था. इसलिए उसे पैसे की मदद करने लगा.
जल्द ही दोनों के बीच प्रेम संबंध गहरे हो गए. दोनों ने लिवइन रिलेशन में रहना भी शुरू कर दिया. एक साल कैसे बीत गए उन्हें पता ही नहीं चला. इसी दौरान रेशमा गर्भवती हो गई. रेशमा ने राजीखुशी के साथ एक बच्ची को जन्म दिया. हसीन ने भी उस के मां बनने पर खुशी जाहिर की और दोनों ने मिल कर उस का नाम आयशा रखा.
आयशा 8 माह की हो गई थी. हसीन ने उसे नहटौर में किराए के मकान में रख दिया. हसीन वहीं आता था और कुछ दिन रह कर देहरादून लौट जाता था. एक दिन रेशमा ने देहरादून में ही साथ रहने की जिद की. हसीन नहीं चाहता था कि रेशमा अपने बच्चों के साथ देहरादून में रहे.
वह उस की इस बात को महीनों से टाल रहा था. जबकि रेशमा बारबार यही जिद कर रही थी. फोन पर बात होती थी, तब और जब हसीन सामने होता था तब रेशमा तोते की तरह रटने लगती थी, ”मुझे देहरादून में ही साथ रहना है. वहीं कमरा ले कर साथ रहेंगे. वहीं पर मैं भी कुछ काम करूंगी.’’
जून के महीने में एक रोज हसीन नहटौर आया था. उस के कदम कमरे की चौखट के भीतर पड़ते ही रेशमा उस पर बरस पड़ी, ”तुम ने हमें 2-2 बेटियों के साथ यहां मरने के लिए छोड़ दिया है. छोटी बेटी को कैसे संभालती हूं, मैं ही जानती हूं. हमें आज ही देहरादून ले चलो, यहां नहीं रहेंगे.’’
”अरे! तसल्ली रखो, मैं वहां कमरा देख रहा हूं. सस्ता नहीं मिल रहा है. महंगाई है. शहर भी महंगा है.’’ हसीन ने समझाने की कोशिश की.
”नहींनहीं! मैं वह सब नहीं जानती हूं. यहां अब नहीं रह सकती. मोहल्ले वाले अजीबअजीब नजरों से देखते हैं.’’ रेशमा बोली.
”हां अब्बू! लोग हम से भी आप के बारे में पूछते हैं.’’ बड़ी बेटी भी बोली.
”ठीक है, देहरादून जा कर बात करता हूं.’’
उस रोज हसीन ने किसी तरह मांबेटी को समझाबुझा कर शांत किया. वह उलटे पैर वापस देहरादून लौट आया. रास्ते भर सोचता कि वह रेशमा को कैसे देहरादून में रख पाएगा? उस का खर्च कैसे जुटा पाएगा? खर्चीली रेशमा के नखरे कैसे उठाएगा? ऊपर से जवान होने को आई रेशमा की बेटी के देखभाल की जिम्मेदारी और आ गई थी.
उसे पता था कि देहरादून में किराए के कमरे काफी महंगे हैं. यदि वह रेशमा को नहटौर से देहरादून ले आता तो फैक्ट्री के वेतन से उस का खर्च चलाना मुश्किल हो जाएगा.
कुछ दिन इसी उधेड़बुन में निकल गए, जबकि इस बारे में रेशमा हसीन को लगातार फोन करती रही. उस पर देहरादून में कमरा ले कर साथ रखने का दबाव बनाती रही. आखिर में तंग आ कर उस ने रेशमा को बेटियों समेत देहरादून बुलवा लिया.
काश! रेशमा जिद पर न अड़ी होती
इस सूचना को पाते ही रेशमा अपनी बेटियों आयत व आयशा को साथ ले कर 23 जून, 2024 को बस द्वारा नहटौर से देहरादून के आईएसबीटी बसअड्डे पर पहुंच गई. उन्हें वहीं हसीन मिल गया. वह अपनी बाइक ले कर आया था. वह तीनों को अपनी बाइक (यूपी20वीई 9915) पर बिठा कर अपनी फैक्ट्री में ले आया. तब तक शाम का अंधेरा गहरा चुका था. वहीं उस ने तीनों को एक कोने में खाना खिला कर सुला दिया.
जब तीनों गहरी नींद में सो गए, तब उस ने पहले रेशमा का गला दबा कर उसे मार डाला. इस के बाद आयत व आयशा का मुंह और गला दबा कर उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. इस तरह तीनों को गला घोंट कर मार देने के बाद हसीन के सामने बड़ी समस्या तीनों शवों को ठिकाने लगाने की आ गई थी.
हालांकि उस का उपाय भी उस ने निकाल रखा था. इस की तैयारी पहले से कर रखी थी. वह जहां काम करता था वह एक सोफा फैक्ट्री थी. उस के पीछे जंगल था. वहां पर कूड़े के बड़ेबड़े ढेर थे.
हसीन ने दोनों लड़कियों की पहचान छिपाने के लिए उन के कपड़े उतार दिए थे. फिर उस ने ब्लूडार्ट कुरिअर के बैगों में उन के शव को डाल दिया था. इस के बाद उस नेे उसे फैक्ट्री के पीछे के कूडे के ढेर में फेंक आया.
रेशमा की लाश को उस ने फोम में लपेट कर कूड़े के नीचे दबा दी थी. बाद में हसीन ने रेशमा का मोबाइल और उस के नहटौर स्थित घर की चाबी अपने पास रख ली थी. उस के जेवर, उस के घर की चाबी तथा उस का मोबाइल उस ने एक पर्पल कलर के बैग में छिपा कर रख लिया.
हसीन के इस कुबूलनामे के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. हसीन की निशानदेही पर रेशमा, आयत व आयशा को आईएसबीटी से फैक्ट्री तक लाने वाली बाइक, कुरिअर कंपनी का बैग, आयशा की दूध की बोतल तथा मृतकों के घर की चाबी, मोबाइल व रेशमा के जेवर भी बरामद कर लिए.
इस तरह से एसएसपी अजय सिंह ने इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई. हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को डीजीपी (उत्तराखंड) अभिनव कुमार ने 25 हजार रुपए का नकद इनाम देने की घोषणा की.
अगले दिन पटेल नगर पुलिस को रेशमा, आयत व आयशा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में उन तीनों की मौत की वजह गला दबा कर सांस रोकनी बताई गई.
कथा लिखे जाने तक इस तिहरे हत्याकांड का आरोपी हसीन देहरादून जेल में बंद था. इस मामले की जांच एसएसआई मनमोहन सिंह नेगी द्वारा की जा रही थी. वह आरोपी के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर के उस के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने में लगे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित