अरुण और शीबा की छोटी सी मुलाकात पहले बौयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड में बदली, फिर वे आपस में बेइंतहा मोहब्बत के सफर पर निकल पड़े. इसी मस्ती के बीच न जाने कब किस ने 2 जिस्म एक जान बने रहने का वादा तोड़ डाला. और फिर जो हुआ, उस में एक की जान चली गई और दूसरे की जिंदगी कोर्ट, कानून, पुलिस के जांचमुकदमे और सजा के पचड़े में फंस गई…
बहराइच जिले के थाना नानपारा के अंतर्गत हांडा बसेहरी गांव के पास झाडिय़ों में 23 जुलाई, 2024 को मिली एक युवती की सिरकटी लाश की पहचान अगर पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती थी तो उस इलाके के लिए यह एक सनसनीखेज दिल दहला देने वाली घटना थी.
पुलिस ने शव की पहचान के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन सिर कटा होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था, सिर्फ इस के कि लाश बेहद खूबसूरत और कमसिन लड़की की थी. वह निर्वस्त्र थी और उस की शारीरिक सुंदरता में उन्नत और सुडौल उरोज के अनुसार उम्र करीब 20-22 साल आंकी गई थी. सुंदर मांसल देह पर खून की महीन और मोटी लकीरें ही परिधान बन गई थीं.
बहराइच के एसपी वृंदा शुक्ला ने इस मामले की जांच के लिए प्रशिक्षु पुलिस सीओ हर्षिता तिवारी की अगुवाई में एक टीम गठित करवा दी थी. जांच में तेजी थी, फिर भी लाश की पहचान नहीं हो पा रही थी, जिस की सूचना किसी राहगीर ने पुलिस दी थी.
जब पुलिस ने 22 जुलाई को गुमशुदगी की रिपोर्ट पर ध्यान दिया तो पता चला कि 20 वर्षीय शीबा नाम की युवती उसी इलाके से लापता थी. लाश की पहचान शीबा के रूप में हुई. यह गुमशुदा शीबा की तसवीर और शव के दाहिने पैर में बंधे काले धागे के मिलान करने पर संभव हो पाया.
इस पहचान की शीबा के परिजनों ने भी पुष्टि कर दी. इस पहचान के सिलसिले में पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा की फोन पर अकसर एक हिंदू लड़के अरुण सैनी से बात होती थी. वह श्रावस्ती जिले के थाना मल्हीपुर अंतर्गत मल्हीपुर खुर्द का रहने वाला था.
पुलिस ने बरामद लाश के बारे में सब कुछ पता करने के लिए आपनी जांच की सूई पूरी तरह से शीबा के लापता होने के मामले और अरुण की तरफ घुमा दी थी. हालांकि शीबा के बारे में तहकीकात करने पर पुलिस को पता चला कि वह अपने मामा हशमत अली के घर जमोग गांव में रहती थी और अरुण अपने मामा के पास बगल के गांव में रहता था.
दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और पिछले एक साल से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इस दोस्ती को लेकर भी गहन छानबीन करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा के मामा उन के बीच की दोस्ती से बेहद खफा थे.
अरुण की शादी तय हो गई थी. शीबा का मामा नहीं चाहता था कि दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल बने. यहां तक कि उन के बीच फोन पर भी बातचीत नहीं हो. मामा एक तरह से मोहब्बत में खलनायक बन गए थे. वह बातबात पर शीबा को टोकते रहते थे और अरुण को भी उस से दूर रहने की हिदायत दिया करते थे. यह घोर विरोध धर्म के अंतर की वजह से था. पुलिस को जब मालूम हुआ कि शीबा और अरुण के बीच मामा कबाब में हड्डी की तरह घुसा हुआ था, तब अपनी जांच और भी गहनता से करने लगी.
इलाके में पूछताछ पर पता चला कि एक बार शीबा के मामा ने अरुण की पिटाई तक कर दी थी, जिस से अरुण काफी गुस्से में आ गया था और उस ने मामा को काफी खरीखोटी सुनाई थी. पुलिस को समझने में देर नहीं लगी कि शीबा की हत्या का पूरा मामला प्रेम कहानी, धार्मिक अंतर और परिवार की प्रतिष्ठा के साथ जुड़ा हुआ है. शीबा के मामा का पक्ष तो सामने आ गया था, लेकिन अरुण की तरफ से किसी भी तरह की सच्चाई सामने नहीं आ पाई थी.
इस मामले में पुलिस की जांच टीम अज्ञात हत्यारोपियों पर नजर रखे हुए थी. लाश बरामदगी के हफ्ते भर बाद 29 जुलाई, 2024 को केस दर्ज कर लिया गया था. एसओजी यानी स्पेशल औपरेशन ग्रुप के प्रभारी दिवाकर तिवारी और सर्विलांस सहित पुलिस की टीमों ने घटनास्थल पर सक्रिय मोबाइल नंबरों और कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ करने के बाद अरुण सैनी को पकड़ लिया था.
बहराइच की मिलीजुली जातियों की आबादी वाले जमोग गांव में मुसलिम परिवारों की भी अच्छीखासी संख्या थी. उन्हीं में एक परिवार हशमत अली का भी है. शीबा उन्हीं की भांजी थी. गिरफ्तार किया गया अरुण भी पास के गांव में अपने ननिहाल में ही रहता था. वह भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां शीबा पढ़ती थी. लेकिन उन की कक्षाएं अलगअलग थीं. शीबा आठवीं में पढ़ती थी, जबकि अरुण नौंवी में पढ़ता था. दोनों जब स्कूल से निकलते थे, तब अपनेअपने गांव जाने के दौरान कुछ दूरी पर साथ होते थे. उस के बाद शीबा को खेतों के रास्ते जाना होता था और वह सड़क के नीचे पगडंडियों से होते हुए अपने ननिहाल चली जाती थी.
हालांकि सड़क उस के गांव से हो कर गुजरती थी, लेकिन उस रास्ते जाने पर शीबा को अधिक पैदल चलना होता था. इस कारण शीबा पगडंडियों के छोटे रास्ते से गुजरती हुई अपने मामा के घर जाती थी. वहां तक जाने में उसे 5 से 7 मिनट का समय लगता था. अरुण उसे पगडंडियों पर कमर लचकाती जाती हुई सड़क पर खड़ेखड़े तब तक देखता रहता था, जब तक कि वह उस की आंखों से ओझल हो नहीं जाती थी.
बीते कुछ दिनों से उस ने महसूस किया था कि शीबा जब पगडंडी पर संभलती हुई तेजी से चलती थी, तब उस की कमर कुछ ज्यादा ही लचकती थी. यह देखना उसे बहुत अच्छा लगता था. कई बार उस ने देखा था कि शीबा पगडंडी से गिरनेगिरने को हो… इच्छा होती थी कि जा कर पीछे से उस की कमर को सहारा दे दे. उसे दिल में गुदगुदी का एहसास होने लगता था.
करीब एक साल पहले की बात है. एक बार अरुण स्कूल जाते वक्त उसी पगडंडी के पास सड़क के किनारे खड़ा शीबा के आने का इंतजार कर रहा था. कुछ सेकेंड बाद ही उस ने देखा, शीबा दौड़ती हुई आ रही है. असल में उस रोज स्कूल का समय करीबकरीब हो चुका था. जैसे ही शीबा सड़क के पास आई, उस का पैर पगडंडी से फिसल गया और नीचे खेत में लुढ़क गई. अरुण कुछ दूरी पर ही था. वह दौड़ कर उस के पास गया. अपना बैग रखा और उसे उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया.
शीबा भी संभलती हुई उस के हाथ के सहारे से उठी और संभलते हुए उस के कंधे को पकड़ लिया. अरुण उसे संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर उठाने लगा. जब वह नहीं उठ पाई, तब उस ने दूसरे हाथ से उस की कमर पकड़ कर खेत से पगडंडी तक ले आया.
”अरे छोड़ो, मेरी कमर छोड़ो.’’ शीबा बोल पड़ी.
”छोड़ दूंगा तब तुम फिर गिर जाओगी. नहीं दिख रहा नीचे कितना गड्ढा है.’’ अरुण बोला.
”अरे मैं कह रही हूं…छोड़ो न, गुदगुदी हो रही है.’’ शीबा बोली.
”अच्छा तो यह बोलो न.’’ यह कहते हुए अरुण ने उसे तुरंत छोड़ दिया और अपने कंधे पर लग आई मिट्टी को साफ करने लगा. शीबा ने भी अपने कपड़े झाडऩे के बाद पास गिरे स्कूल बैग को उठा लिया. अरुण उसे गौर से देखने लगा.
”अब क्या देख रहे हो? चलो, रास्ता छोड़ो स्कूल को देर हो रही है.’’ शीबा बोली.
लेकिन अरुण को अचानक शरारत सूझी, उस ने उस की पेट के बगल में एक बार फिर गुदगुदाने के लिए हाथ लगा दिया.
”अरे, क्या करते हो. मैं लड़की हूं, तुम्हें नहीं पता क्या?’’ यह कहती हुई शीबा ने एक तरह से अरुण को डपट दिया था और उसे धक्का दे कर सड़क पर तेजी से चली आई थी. पीछेपीछे अरुण भी उस के पास आ गया. बोला, ”एक तो मैंने तुम्हें बचाया और तुम मुझे थैंक्यू बोलने के बजाए गुस्सा हो रही हो.’’
”नाराज होने वाली हरकत ही तुम ने की तो मैं क्या करती?’’ शीबा नरमी से बोली.
अरुण भी चुप रहा और साथसाथ स्कूल पहुंच गया. उस रोज दोनों के बीच दोस्ती की बुनियाद पड़ गई थी. स्कूल से छुट्टी होने पर शीबा ने देखा कि अरुण सड़क के एक किनारे उस का इंतजार कर रहा है. शीबा अपनी सहेलियों से विदा ली और अरुण के पास आ कर बोली, ”मेरा इंतजार कर रहे हो?’’
”नहीं तो!’’
”तो फिर यहां क्यों खड़े हो?’’ शीबा बोली और मुसकराने लगी.
”सुबह तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी थी?’’ अरुण हमदर्दी के साथ पूछा.
”तुम्हें मेरा बड़ा खयाल है!’’ शीबा मजाकिया अंदाज में बोली.
”क्यों न हो, तुम लड़की जो हो और वह भी सुंदर लड़की.’’अरुण बोला.
अपनी सुंदरता की बात सुन कर शीबा शरमा गई. बोली, ”अच्छाअच्छा चलो.’’
उन के बीच न केवल दोस्ती हो गई थी, अरुण को शीबा की सुंदरता और देह से फूटती सैक्स की गंध लुभाने लगी थी. गाहेबगाहे उस के शरीर की मांसलता, कमर की लोच और स्तन के उभार पर उस की नजर टिक जाती थी. इस का एहसास शीबा को भी हो चुका था, लेकिन इस बारे में अरुण को जरा भी पता चलने नहीं देती थी. सच तो यह था कि शीबा भी मन ही मन अरुण से प्रेम कर बैठी थी.
दोनों के बीच मोहब्बत की लौ जल चुकी थी. वे आपस में मिले बगैर नहीं रह पाते थे. स्कूल में मुलाकात हुई तब ठीक, नहीं तो फोन पर बातें करने लगे थे. समय अपनी गति से चलता रहा, लेकिन उन के बीच के प्रेम को पंख लग चुके थे और गंध भी फैल चुकी थी. शीबा को एक दिन मामा ने ही डपट दिया था और उस का स्कूल जाना बंद करवा दिया.
एक तरह से शीबा पर कहीं भी बाहर आनेजाने से ले कर फोन करने पर पाबंदी लगा दी गई थी. शीबा के मामा अरुण के साथ भांजी के प्रेम संबंध का पता चलने पर और भी चिंतित हो गए थे. वह मुसलिम थे और अरुण का परिवार हिंदू था. दोनों के बीच शादीब्याह तो बहुत दूर की बात थी.
वह जानते थे कि ऐसे रिश्ते का दोनों समाज के लोग घोर विरोधी थे. इस के खतरनाक अंजाम की आशंका से शीबा के मामा ने अरुण को प्यार से समझाया. उसे शीबा से संबंध खत्म करने के लिए कहा. यहां तक कि उसे धमकी दी. पारिवारिक विरोध और बंदिशों के चलते शीबा कुछ समय तक अपने मन को काबू में रखे रही. अरुण भी पढ़ाई, करिअर अपने कामकाज में व्यस्त हो गया. एक दिन उसे बाजार में शीबा मिल गई. शिकायती लहजे में 5-6 महीने से नहीं मिलने का कारण पूछ बैठी.
कुछ देर तक उन के बीच इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी सिलसिले में अरुण ने बताया कि उस की शादी तय हो चुकी है. इसलिए वह उसे भूल जाए. अरुण की बात सुन कर शीबा को झटका लगा. वह बिफरती हुई बोली, ”तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. मैं तुम्हारे अलावा और किसी से निकाह नहीं कर सकती. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूंगी.’’
अरुण ने उसे समझाने की कोशिश की. अपनी जाति, धर्म और समाज की बात समझाते हुए तमाम बाध्यताओं की बातें की, लेकिन शीबा के दिलोदिमाग पर इस का कोई असर नहीं हुआ. उस रोज तो बात आईगई हो गई, लेकिन शीबा का दिल यह मानने को कतई तैयार नहीं था कि वह अरुण से संबंध तोड़ ले. वह उस से फोन पर बातें करने लगी.
कभी भी वह अरुण को काल कर देती थी. कभी वाट्सऐप मैसेज भेज देती तो कभी वीडियो काल कर देती थी. शीबा का फोन आने पर अरुण न चाहते हुए भी उस से बात करने को मजबूर हो जाता था. वह बातोंबातों में धमकी तक दे डालती थी. काल रिकार्डिंग और पुरानी बातों के हवाले से उसे बदनाम करने तक की बातें करने लगती थी.
एक दिन तो शीबा ने फोन पर हद ही कर दी. रात का वक्त था. सभी गहरी नींद में सो रहे थे. जबकि शीबा फोन पर लगी हुई थी. वह बेहद गुस्से में थी. अरुण नरमी से बातें कर रहा था, जबकि शीबा बारबार बोले जा रही थी, ”मैं देख लूंगी, सब को देख लूंगी! जिसजिस ने मुझे सताया है, जिस ने भी धोखा देने का काम किया है, जो भी ऐसा करेगा, मैं सब को फंसा दूंगी. उन को जेल नहीं भिजवाया तो मेरा नाम शीबा नहीं…’’
यह सुन कर अरुण तिलमिला गया, जबकि शीबा की ये बातें उस के मामा ने भी सुनीं. वह अरुण के प्रति आगबबूला हो गए. वह गलतफहमी में आ गए… उन्हें लगा कि अरुण उस के मना करने के बावजूद शीबा को अपनी मोहब्बत के रंग में रंगे हुए है. उस के दिमाग से मोहब्बत का फितूर उतरा नहीं है. फिर क्या था, उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए उस की जम कर पिटाई करवा दी. अरुण दोहरे तनाव से घिर गया था. एक तरफ शीबा थी, जो उसे अपने प्रेम के जाल में फांसे हुए थी और बारबार शादी करने का दबाव बना रही थी, कानूनी जाल में फंसाने की धमकी देती थी, जबकि दूसरी तरफ उस के परिवार वाले भी धमकियां देते रहते थे.
अरुण से शादी करने की जिद पर शीबा अड़ी थी. अरुण को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे उस से छुटकारा पाए. वही अरुण पुलिस हिरासत में था. उसे शीबा की मौत का जिम्मेदार माना जा रहा था. शीबा के परिजनों के मुताबिक उस की हत्या उसी ने करवाई थी. किंतु पुलिस के सामने यह सवाल था कि जब दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे, तब एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को क्यों मारेगा?
इस बाबत पुलिस ने जब सख्ती के साथ उस से पूछताछ की, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि अपने एक दोस्त कुलदीप के साथ मिल कर उस ने शीबा का बेरहमी के साथ कत्ल किया था. उस ने यह कबूल कर लिया कि कत्ल के बाद हत्या के सबूत मिटाने के मकसद से उस का सिर और हाथ काट कर नहर में फेंक दिए थे. शीबा की लाश पहचानी न जा सके, इस के लिए अरुण ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतार कर नहर में फेंक दिए थे.
अब सवाल था कि जिस के प्यार में शीबा सब कुछ छोडऩे को तैयार थी, उसी अरुण ने उसे क्यों मार डाला? पुलिस पूछताछ में पता चला कि दोनों के प्रेम प्रसंग करीब सालभर तक चले. उन के प्यार के बारे में जब दोनों के परिजनों को पता चला, तब उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने से मना कर दिया.
ऐसे में अरुण ने किनारा करना शुरू कर दिया, लेकिन शीबा उस के साथ शादी की जिद पर अड़ी रही. जबकि शीबा ने अरुण से कहा कि वो उस के लिए अपना घर और धर्म दोनों छोडऩे के लिए तैयार है. फिर भी अरुण को यह सब ठीक नहीं लगा और वह शीबा से छुटकारा पाने का उपाय तलाशने लगा.
उस ने एक योजना बनाई और 21 जुलाई को शीबा से कहा कि वो दोनों भाग कर शादी कर लेंगे. शीबा मान गई थी और बैग में अपने कुछ कपड़े रख कर अरुण की बताई जगह पर पहुंच गई थी. वहां अरुण के साथ उस का दोस्त कुलदीप भी था. अरुण ने शीबा को बातों में उलझाया और मौका देख कर उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अरुण और कुलदीप ने शीबा का सिर और एक हाथ काट कर अलग कर दिए. दोनों ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतारे और काटे गए अंगों के साथ ही सरयू नहर में फेंक दिया. लाश को वहीं पुल के पास छोड़ कर दोनों ने खून से सने अपने कपड़े उतारे और उन्हें कुछ दूरी पर झाडिय़ों में छिपा दिया.
इस की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हो गई. किंतु शीबा के शरीर पर कई जगह धारदार हथियार से काटे जाने के निशान भी मिले. इस बारे में पूछने पर अरुण ने बताया कि उस की प्लानिंग शीबा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने की थी, लेकिन किसी वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया था.
पुलिस ने उस की निशानदेही पर शीबा की लाश को काटने वाला हथियार भी बरामद कर लिया. कातिलों पर संबंधित धाराओं में केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया. उस के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लिखे जाने तक जांच जारी थी.