चालाक लोग सोचते हैं कि लालच दे कर लोगों को ठगना सब से आसान है. यह बात किसी हद तक सही भी है, तभी तो विक्रम सिंह जैसे लोग दूसरों की जेब से पैसा निकाल कर करोड़पति बन जाते हैं.
जमाकर्ताओं के करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा हड़पने के आरोपी खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसाइटी के चेयरमैन विक्रम सिंह राजपुरोजित को लंबे समय बाद आखिर सिरोही पुलिस ने पकड़ ही लिया. पुलिस ने उसे 9 जनवरी, 2018 को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया. करीब डेढ़ साल पहले सोसायटी में परिपक्व हो चुकी अपनी जमापूंजी लेने निवेशक सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के हैड औफिस पहुंचे तो उस समय उन्हें किसी तरह झांसा दे कर टाल दिया गया था. पर सोसायटी कर्मचारियों की बहानेबाजी ज्यादा दिनों तक नहीं चली.
निवेशकों को जब बारबार टरकाया जाने लगा तो वे परेशान होने लगे. फिर जुलाई 2016 में सोसायटी की सभी शाखाओं में ताले लटक गए तो निवेशकों को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. इस के बाद निवेशकों ने अलगअलग थानों में सोसायटी संचालकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थीं. लोगों ने जोधपुर, पाली, सिरोही, पिंडवाड़ा, गुजरात के दमन व दीव समेत कई जगहों पर उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए. शुरुआत में संबंधित थानों की पुलिस भी केवल मामले दर्ज कर उन्हें रफादफा कराने की कोशिश में रही, लेकिन जब इस डेढ़ सौ करोड़ की ठगी की बात उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आई तो थाना पुलिस हरकत में आ गई.
विक्रम सिंह ने सन 1992 में सिरोही जिले के पालड़ीएम कस्बे से स्टोन क्रैशर लगा कर व्यवसाय शुरू किया था. जल्द ही उस के दिमाग में मोटा पैसा कमाने का आइडिया आया तो उस ने सन 2003 में खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसायटी बनाई. विक्रम सिंह ने अपने एक भाई राजवीर सिंह को सोसायटी का एमडी और दूसरे भाई शैतान सिंह को सोसायटी का पीआरओ बना दिया था. सोसायटी की ओर से वलसाड़, वापी, सेलवास, दमन, सरीगांव, उमरगांव, धरमपुर और चिखली में कुल मिला कर 9 ब्रांच खोली गई थीं.
गुजरात के अलावा उस ने गोवा, दमन, दादर व नगर हवेली में भी सोसायटी की शाखाएं खोली थीं. इन सभी में मैनेजर और अन्य स्टाफ की नियुक्तियां की गईं. इस के बाद आकर्षक जमा योजनाओं के जरिए लोगों से पैसे जमा कराए गए. लोगों में विश्वास बढ़ाने के लिए इन्होंने स्थानीय लोगों को अपनी शाखाओं में नौकरी पर रखा. हालांकि बीच में जब किसी जमाकर्ता की मियाद पूरी हुई तो उन्हें रकम लौटाई भी गई, लेकिन उसी दौरान दूसरी आकर्षक योजनाएं भी लाई गईं, जिस से ग्राहक अपनी परिपक्व हुई राशि को फिर से सोसायटी में जमा करा दे.
जमा कराए लोगों के पैसों से सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम सिंह राजपुरोहित ने सिरोही, पाड़ीव, आबू रोड, तलेटी, नयासानवाड़ा, पिंडवाड़ा, रामपुरा, अहमदाबाद, अंबाजी, मुंबई आदि जगहों पर अपने और रिश्तेदारों के नाम से करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति खरीदी. इतना ही नहीं, उसने अपनी ही सोसायटी से अपने नाम 12 करोड़ का लोन भी लिया था. इस तर हलोगों को करीब डेढ़ सौ करोड़ का चूना लगाकर शातिर दिमाग विक्रम सिंह फरार हो गया.
फरारी के बाद वह नेपाल, गोवा, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि जगहों पर घूमता रहा. कोई उसे पहचान न सके, इस के लिए वह साधु के भेष में रहता था. कभीकभी वह सपेरा भी बन जाता था. जोधपुर में वह महामंदिर इलाके में किराए पर मकान ले कर भी रहा था. वहां वह अपने भतीजे के संपर्क में था. पिछले डेढ़ साल से पुलिस पर विक्रम को पकड़ने का दबाव था, लेकिन वह पुलिस को लगातार चकमा दे कर बच निकलता था. उस की गिरफ्तारी पुलिस के लिए एक चुनौती बनी हुई थी, लेकिन सिरोही के एसपी ओमप्रकाश के निर्देश पर उस की गिरफ्तारी के लिए एक गोपनीय योजना बनाई गई, जिस की जानकारी केवल 2 लोगों को ही थी. एक थाना सिरोही के सीआई आनंद कुमार और दूसरे कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को.
उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी तरह विक्रम सिंह का पता लगा कर उसे गिरफ्तार किया जाए. ये दोनों क्या प्लान कर रहे हैं, कहां आजा रहे हैं, यह बात थाने में किसी को भी पता नहीं रहती थी. कांस्टेबल योगेंद्र सिंह जब भी विक्रम सिंह की तलाश में बाहर गए, तब उन्होंने जरूरी काम बता कर थाने से छुट्टी ली थी. 3-4 दिन तक तलाश कर के वे वापस लौट आते, दोबारा जाते तो भी छुट्टी ले कर ही जाते थे.
उधर विक्रम सिंह भी इतना शातिर था कि वह कभी मोबाइल से बात तक नहीं करता था. बहुत जरूरी होने पर विक्रम सिंह किसी नए फोन नंबर से बात करता था. इस के बाद वह तुरंत अपनी लोकेशन बदल लेता था. ऐसे में पुलिस के लिए यह चुनौती बन जाती थी कि लोकेशन को कैसे ट्रेस किया जाए. पुलिस अपने मुखबिरों का भी सहारा ले रही थी. मुखबिरों की सूचनाओं पर काम किया गया. आखिरकार इन दोनों पुलिसकर्मियों की मेहनत रंग लाई. ये दोनों ही उस का करीब एक महीने से पीछा कर रहे थे.
कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को पक्की खबर मिली कि आरोपी विक्रम सिंह जोधपुर में ही है. इस पर उन के साथ एक एसआई को भेजा गया. एसआई को यह नहीं पता था कि किस की गिरफ्तारी के लिए निकले हैं. आखिर 9 जनवरी, 2018 को विक्रम सिंह जोधपुर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उसे जोधपुर से सिरोही ला कर पूछताछ की गई. फिर पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के उस का रिमांड लिया और विस्तार से पूछताछ की. सीआई आनंद कुमार 13 जनवरी को विक्रम सिंह राजपुरोहित को सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के कार्यालय पर ले गए.
पुलिस ने कार्यालय की चाबी के बारे में विक्रम सिंह से पूछा तो उस ने चाबी की जानकारी होने से मना कर दिया. इस पर पुलिस ने ताला खोलने वाले एक युवक को बुला लिया. लेकिन वहां उन्हें मुख्य दरवाजे पर लगा ताला कुंदे समेत पहले से ही टूटा मिला. मुख्य दरवाजे से लगते दूसरे दरवाजे पर इंटरलौक जरूर था, लेकिन वह भी अंदर से तोड़ा हुआ था. अंदर की अलमारी को तोड़ने पर उस में पुराने रेकौर्ड मिले.
इस के साथ ही उसी अलमारी के अंदर एक लौकर और था, उस में एक हजार व 500 का एकएक पुराना नोट मिला. कुछ नोट और पूजा सामग्री भी मिली. पुलिस जब खेतेश्वर सोसायटी के सिरोही कार्यालय पहुंची तो वहां लाइट कनेक्शन कटा मिला. पुलिस को टौर्च व मोबाइल की रोशनी में जांच करनी पड़ी. काररवाई के दौरान विक्रम सिंह भी साथ था. उस ने खुद पुलिस को फाइलों के बारे में जानकारी दी कि किस से संबंधित कौन सी फाइल है.
पुलिस ने कार्यालय में रखी फाइलों और अन्य दस्तावेजों के बारे में जानकारी ली. इन फाइलों में लोगों की एफडी, बैंकों में पूर्व में जमा करवाए गए पैसों का लेखाजोखा था. पुलिस का कहना है कि विक्रम सिंह ने रेकौर्ड के अलावा अन्य दस्तावेज अपने बड़े भाई शैतान सिंह व छोटे भाई राजवीर सिंह के पास बताए होने की बात कही. पुलिस का कहना है कि ये सभी पुराने लेनदेन का रेकार्ड है, जो सन 2010 से पहले के हैं. उस के बाद के कागजातों के बारे में भी पूछताछ की गई. कार्यालय में मैनेजर के कमरे की टेबल के पास कुछ कागजातों को जलाए जाने के भी सबूत मिले.
जांच से संबंधित तमाम दस्तावेज पुलिस थाने ले आई. पूछताछ में पता चला कि उस ने सोसायटी के माध्यम से हजारों लोगों की खूनपसीने की कमाई से करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए ठगे थे. यहां एक बात यह भी बता दें कि खेतेश्वर सोसायटी में रुपए जमा करने वाले सब से ज्यादा जमाकर्ता सिरोही जिले के ही थे. विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के बाद जमाकर्ताओं को उम्मीद बंधी है कि शायद उन के खूनपसीने की कमाई उन्हें वापस मिल जाए. विक्रम सिंह और उस की खेतेश्वर सोसायटी के खिलाफ जमाकर्ताओं ने जहांजहां रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वहां की पुलिस भी विक्रम सिंह से पूछताछ की तैयारी में थी.
विक्रम सिंह के एक भाई श्याम सिंह पुरोहित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. ठगी का मामला सामने आने पर विक्रम के भाई श्याम सिंह ने मीडिया के सामने आ कर सफाई दी कि पिछले लंबे समय से उन का विक्रम सिंह से कोई वास्ता नहीं रहा. वह घर आताजाता भी नहीं और यहां तक कि उस से बोलचाल तक नहीं है. साथ ही यह भी कि 4 महीने पहले जब उन की पत्नी की मृत्यु हो गई, तब भी वह घर पर नहीं आया था. पुलिस विक्रम सिंह के उन भाइयों को भी गिरफ्तार करेगी जो सोसायटी में शामिल थे और उन तमाम शाखाओं के मैनेजरों से भी पूछताछ करेगी, जिन्होंने सोसायटी के माध्यम से लोगों को अच्छा रिटर्न देने का वादा कर के उन की खूनपसीने की कमाई हड़प ली थी.
कथा लिखने तक विक्रम सिंह की जमानत नहीं हो सकी थी. कोर्ट के आदेश पर उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित